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*जप चर्चा* *22 सितंबर 2021* *शोलापुर धाम से* हरे कृष्ण ! 823 स्थानों से आज भक्त सम्मिलित हैं इस्कॉन शोलापुर की जय ! आज इस्कॉन शोलापुर है जहां मैं पहुंच चुका हूं। आज इस्कॉन शोलापुर के नाम का उल्लेख हुआ अर्थात यही कि एक महीने के उपरांत शरद पूर्णिमा के दिन राधा दामोदर के विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा होने जा रही है। अलग से आपको कुछ स्पेशल अनाउंसमेंट इनविटेशन भेजे जाएंगे, कृष्ण भक्त प्रभु यह कार्य करेंगे हरि हरि ! वर्ल्ड होली नेम फेस्टिवल चल ही रहा है और फिर जपा टॉक के अंत में माधवी गौरी माता जी को मैं देख रहा हूं वह भी कुछ आज के इवेंट और अपडेट दे सकती हैं। अदरवाइस क्या हुआ "वर्ल्ड होली नेम फेस्टिवल" तो संपन्न हो ही रहा है और भाद्र पूर्णिमा अभियान चल ही रहा है। भाद्र पूर्णिमा अभियान, उसके अंतर्गत इस्कॉन में स्पेशली इंडिया, भारत में श्रीमद्भागवत सेट का वितरण हो रहा है और आज प्रातः काल इस्कॉन शोलापुर में अनाउंसमेंट सुन के कि कल दस सेट भागवतम का वितरण हुआ। यह अनाउंसमेंट किया गया कि भगवान की प्रसन्नता के लिए प्रभुपाद की प्रसन्नता के लिए और मैं वहां उपस्थित था तो उन्होंने कह ही दिया कि मेरी प्रसन्नता के लिए और उपस्थित भक्तों की प्रसन्नता के लिए, मै बड़ा प्रसन्न हुआ जब मैंने सुना कि 1 दिन में भागवत के दस सेट वितरण किए गए। भाद्र पूर्णिमा के दिन ही शुकदेव गोस्वामी जो ऑफिशियल भागवत कथा कर रहे थे उस का समापन हुआ। पूर्णिमा के दिन पूर्ण आहुति हुई। आज तृतीया हो सकती है प्रथमा द्वितीया तृतीया शुकदेव गोस्वामी ने भागवत कथा का समापन किया। शुकदेव गोस्वामी अपने प्रवचन कथा के अंत में द्वादश स्कंध अध्याय तीसरा में कली के लक्षण लिखते हैं। कली के लक्षण आप जानना चाहते हो? कलयुग के लक्षण, क्या करोगे कहां पढ़ोगे , आप यह नोट कर सकते हो , नहीं तो भूल जाओगे। आप ट्वेल्थ केंटो चैप्टर नंबर 3 , इस चैप्टर के अध्याय के अंत में कलयुग के लक्षणों का वर्णन किया है। उस अध्याय में वैसे शुकदेव गोस्वामी कथा कर रहे थे तो वह नहीं कह रहे थे कि यह अध्याय या द्वादश स्कंध पूरा हुआ, यह अध्याय चल रहा है। ऐसा भी नहीं कहते, वह लगातार कथा कहते ही रहते हैं। श्रील व्यासदेव ने भागवत का ऐसा विभाजन किया, कितने अध्याय ? 335 अध्याय भागवत में हैं तो यह द्वादश स्कंध के तृतीय अध्याय की बात हम कर रहे हैं और चतुर्थ और पंचम अध्याय तक ही शुकदेव गोस्वामी की कथा होगी। कुछ छठ वें अध्याय से सूत गोस्वामी का भाष्य शुरू होगा तो श्रीमद्भागवत के प्रथम पांच अध्याय शुकदेव गोस्वामी की कथा है वही कथा का समापन, पूर्णाहुति करते हैं। बात यह है कि तृतीय अध्याय के अंत में ट्वेल्थ कैंटों थर्ड चैप्टर के अंत में, *कलेर्दोषनिधे राजन्नस्ति ह्येको महान्गुणः । कीर्तनादेव कृष्णस्य मुक्तसङ्गः परं व्रजेत् ॥* (श्रीमद भागवतम 12.3.51) अनुवाद- हे राजन् , यद्यपि कलियुग दोषों का सागर है फिर भी इस युग में एक अच्छा गुण है केवल हरे कृष्ण महामंत्र का कीर्तन करने से मनुष्य भवबन्धन से मुक्त हो जाता है और दिव्य धाम को प्राप्त होता है । *कृते यद्धयायतो विष्णुं त्रेताया यजतो मखैः । द्वापरे परिचर्यायां कलौ तद्धरिकीर्तनात् ॥* (श्रीमद भागवतम 12.3.52) अनुवाद- जो फल सत्ययुग में विष्णु का ध्यान करने से, त्रेतायुग में यज्ञ करने से तथा द्वापर युग में भगवान् के चरणकमलों की सेवा करने से प्राप्त होता है, वही कलियुग में केवल हरे कृष्ण महामंत्र का कीर्तन करके प्राप्त किया जा सकता है। यह दो श्लोक इस अध्याय के अंत में हैं। कलयुग के कुछ लक्षणों का या मुख्य मुख्य लक्षणों का उल्लेख किया है और कितना कहेंगे, कलि पुराण और फिर उन्होंने सारांश में यह उपसंहार करते हुए कलेर्दोषनिधे राजन्नस्ति ह्येको महान्गुणः , कलयुग तो है दोषों का खजाना है। राजन मतलब, हे राजा परीक्षित संबोधन कर रहे हैं कलेर्दोषनिधे राजन्न , राजा कलयुग दोषों का भंडार है अस्ति ह्येको महान्गुणः किन्तु एक महान गुण कलि काल में या कलयुग में हैं दोष या अवगुण तो अनेक हैं उनका तो खजाना है बड़ा स्टोर हाउस है। लेकिन गुण तो एक ही है, दोष कई है किंतु दोषनिधि राजन , एक गुण ही पर्याप्त है। कलि के जो दोष हैं सारी समस्याएं , दिक्कतें उत्पन्न करते हैं। यह सारी समस्याएं उलझन में फंसाती है। यह कलि के काल के दोष हैं, अवगुण हैं, यह सारी उलझने हैं तब सोल्युशन क्या है। अस्ति ह्येको महान्गुणः , गुण कौन सा है। कीर्तनादेव कृष्णस्य मुक्तसङ्गः, ओके कथा का समापन हो ही रहा है और यह सारी कथा के श्रवण का फल ही है, और उसमें कलि का महान गुण है या अन्य स्थानों पर उसे धर्म ही कहा है, कलि का जो धर्म है नाम संकीर्तन उसको अपनाने से कीर्तनादेव कृष्णस्य, कृष्ण के कीर्तन करने से, कृष्ण सेवा करने से है। कृष्ण का कीर्तन होना चाहिए जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा यह नहीं चलेगा। कृष्ण का कीर्तन, देवी देवता का कीर्तन नहीं या किसी और का कीर्तन नहीं, राजनेता का या अभिनेता का, हम लोग करते ही रहते हैं गौरव गाथा गाते ही रहते हैं। अमिताभ बच्चन यह हीरो, यह हीरोइन, ऐसा धनी व्यक्ति यह इतना उसका सौंदर्य, व्हाट ए ब्यूटी हम लोग ऐसा सब समय इस संसार के लोगों की कीर्ति का गान तो करते ही रहते हैं। वाह-वाउ फैक्टर, कभी किसी व्यक्ति को पकड़ लेते हैं आई लव यू.... यह सब चलता रहता है। यह वही धंधा है किंतु यह सब तो माया का कीर्तन है कभी राजनेता का कीर्तन है कभी किसी अभिनेता का कीर्तन है यह सिनेमा में क्या होता है एक दूसरे का कीर्तन एक बार नट गाता है फिर नटी, नट बोल्ट जैसे कहते हैं नट बारी बारी से गाते ही रहते हैं। इंडियन मूवीस में यही होता है दो चार या आठ दस गाने सुनते ही रहते हैं उनके, अर्थात पुरुष स्त्री का इतना गौरव, जीना तो क्या जीना तुम्हारे बाहों के बिना और यह सब बकवास है यह सब बदमाशी है। यह सब राक्षसों के काम धंधे हैं या गौरव गाथा करने के टॉपिक हैं। *श्रोतव्यादीनि राजेन्द्र नृणां सन्ति सहस्रशः अपश्यतामात्मतत्त्वं गृहेषु गृहमेधिनाम् ॥* (श्रीमद भागवतम 2.1.2) अनुवाद - भौतिकता में उलझे उन व्यक्तियों के पास जो परम सत्य विषयक ज्ञान के प्रति हे सम्राट, भौतिकता में उलझे उन व्यक्तियों के पास जो परम सत्य विषयक ज्ञान के प्रति अंधे हैं, मानव समाज में सुनने के लिए अनेक विषय होते हैं। शुकदेव गोस्वामी बिल्कुल प्रारंभ में लगभग कथा का प्रारंभ करते ही द्वितीय स्कंध में कथा जैसी प्रारंभ हुई वैसे ही केंटो २ चैप्टर 1 श्लोक संख्या 2 , 212 ऐसा कहे श्रोतव्यादीनि राजेन्द्र नृणां सन्ति सहस्रशः अपश्यतामात्मतत्त्वं गृहेषु गृहमेधिनाम् , मुझे पूरा याद नहीं आ रहा है। हम लोग भूल जाते हैं यह कलयुग का प्रभाव है तो श्रोतव्या सुनने के कई टॉपिक आते हैं, कई विषय, कई व्यक्तियों की गौरव गाथा गाते हैं और फिर उसे सुनते हैं इंटरनेट में यही होता है सोशल मीडिया में यही होता है हरि हरि ! शुकदेव गोस्वामी कह रहे हैं कीर्तनादेव कृष्णस्य, कृष्ण का कीर्तन निश्चित होना चाहिए मुक्तसङ्गः परं व्रजेत् ऐसा कोई करेगा तो क्या होगा वह मुक्त होगा वह भक्त होगा वह मुक्त होगा और परं व्रजेत् और फिर जाएगा ब्रज मतलब कहां जाएगा? परं व्रजेत् या परम गति को प्राप्त होगा। मतलब भगवत धाम को प्राप्त होगा मतलब भगवान को प्राप्त होगा। कौन व्यक्ति? कीर्तनादेव कृष्णस्य मुक्तसङ्गः परं व्रजेत् अर्थात कृष्ण का कीर्तन होना चाहिए। *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।* और फिर हरि हरि ! शुकदेव गोस्वामी ने बताया है सतयुग में कौन सा धर्म होता है कृते यद्धयायतो विष्णुं सतयुग में ध्यान का मेडिटेशन का धर्म होता है, त्रेताया यजतो मखैः त्रेता युग में यज्ञों द्वारा भगवान की आराधना होती है, द्वापरे परिचर्यायां द्वापर युग में आराधना पद्धति से भगवान को प्रसन्न किया जाता है कलौ तद्धरिकीर्तनात् कलयुग में हरि कीर्तन होगा हरि हरि ! *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे* इस तरह कलेर्दोषनिधे राजन्नस्ति कली के दोष या कली के लक्षण श्रीमद्भागवत के प्रारंभ में हैं। राजा परीक्षित ने ऐसा किया कि ओक, कलि ! चार स्थानों पर तुम रह सकते हो द्यूतं पानं सुन: स्त्रीय, कहां ? जहां मांस भक्षण होता है, नशापान होता है और जहां अवैध स्त्री पुरुष संग होता है और जहां जुआ खेला जाता है। यत्र अधर्म चुतर्विधा या जहां चार प्रकार के अधार्मिक कृत्य होते हैं। हे कलि तुम वहां रहो और पांचवा स्थान भी ब्लैक मार्केटिंग जहां काला धंधा या ब्लैक मनी है वहां भी कलि ही रहेगा। इस प्रकार से संसार भर में यही हो रहा है। यत्र अधर्म चुतर्विधा जहां यह चार प्रकार के अधार्मिक कृत्य होते हैं वहां कलि का अड्डा है, कलि का स्थान है या कलि का विचरण है। जो मांस भक्षण करता है मतलब वह अधार्मिक है वह हिंदू नहीं है वह मुसलमान भी नहीं है ही इज़ नॉट बिलॉन्ग टू एनी रिलिजन वह धार्मिक नहीं है। ऐसा भागवत का कहना है यदि कोई कहे आई एम हिंदू आई एम दिस एंड देट यदि आप मांस भक्षण करते हो तो आप अधार्मिक हो। आप किसी भी धर्म के नहीं हो। फिर आप कौन से धर्म के हो , ऐसा नाम लेने की आवश्यकता भी नहीं है। तुम धार्मिक ही नहीं हो वही बात है या वही बात लागू होती है तुम जो नशा पान करते रहते हो, तुम्हारा किसी धर्म से संबंध नहीं है तुम अधार्मिक हो यू आर नॉट रिलीजियस यू आर इररिलीजियस या अवैध स्त्री पुरुष संग जहां होता है, इल्लिसेट सेक्स, तुम फिर किसी धर्म के नहीं होते भागवत धर्म को तो भूल ही जाओ। लेकिन अन्य जो धर्म हैं आजकल के प्रचलित हैं उस धर्म के भी तुम सदस्य नहीं हो यदि तुम कलि के चेले बने हो और कलि ही तुमको नचा रहा है, व्यस्त रख रहा है एंड गैंबलिंग और यह सब करने के लिए, देन यू नीड मनी, ब्लैक मनी इस मनी का उपयोग , माया की सेवा में पाप कृत्यों के लिए किया जाता है वह मनी ब्लैक मनी है हरि हरि ! चार पुरुषार्थ धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष , आप ध्यान दे सकते हो कौन से चार पुरुषार्थ कहे हैं या इन चार पुरुषार्थो में से या परे और श्रेष्ठ पुरुषार्थ है या पंचम पुरुषार्थ है प्रेम प्राप्ति किंतु यह चारों पुरुषार्थ के रूप में स्वीकार भी करेंगे तब धर्म, अर्थ, अर्थ किसके लिए धर्म के लिए, अर्थ का धनराशि का, उपयोग धर्म की सेवा में, धर्म का पालन और धर्म को फैलाने में धर्म की स्थापना करने के लिए अर्थव्यवस्था, अतः धर्म अर्थ काम वैसे यह तीन पुरुषार्थ हैं धर्म, अर्थ, काम इन तीनों में क्या है बीच में अर्थ, एक और है धर्म और दूसरी ओर है काम, आप उस अर्थ का उपयोग धर्म के लिए कर रहे हो या कामवासना की तृप्ति के लिए कर रहे हो। यदि धर्म के लिए कर रहे हो तो तुम धार्मिक ही हो या फिर आपका जो धन है नारायण की सेवा में, इट इज़ नो मोर ब्लैक मनी, वह वाइट हो गई संसार की माने तो ब्लैक मनी तो ब्लैक मनी है ही किंतु जो दूसरी मनी है या वाइट मनी है यदि उसका उपयोग कृष्ण की सेवा में या कृष्ण भावना भावित होने में या कृष्णकॉन्सियस होने में नहीं करेंगे , श्रीमद् भागवत ग्रंथ खरीदने के लिए यदि उपयोग नहीं किया तो वह भी ब्लैक मनी ही है। उस अर्थ का उपयोग या फिर ब्लैक मनी आपने और कुछ खरीदा, क्या खरीदा टेलिविजन सेट खरीदा, भगवतम सेट नहीं खरीदा, उसका वितरण हो रहा है भागवतम सेट की बजाए आपने टेलीविजन सेट खरीद लिया और अपने घर को बनाया है सिनेमाघर, होम थिएटर बना दिया और सोफा भी खरीद लिया और फिर आराम से कंफर्ट जोन में आप सारे नंगे नाच देख रहे हो बॉलीवुड और हॉलीवुड एंड तब यह सारा धन का दुरुपयोग हुआ और ऐसे ही दुनिया कर रही है। यह सारे संसार पर अप्लाई करता है इट डज नॉट कि इंडिया लिमिटेड हिंदू लिमिटेड अर्थात जहां यह मांस भक्षण, नशा पान अवैध स्त्री पुरुष संग, मनो धर्म होते रहते हैं वह सभी लोग अधार्मिक हैं। यह सारी आसुरी प्रवृत्ति है गीता में चैप्टर ही है "आसुरी संपदा और दैवी संपदा" आसुरी संपदा भारत में भी है, आसुरी संपदा सारे संसार में है और देवी संपदा के लोग भी आपको भारत में मिलेंगे कुछ विदेश में भी मिलेंगे यह दो प्रकार के दैव , असुर। जगत में दो प्रकार के लोग होते हैं, इंडिया में हुए तो सारा जगत हो गया। ऐसा नहीं है या कृष्ण ऐसा नहीं बोलते ऐसा कृष्ण सोच ही नहीं सकते , ही कूड नेवर थिंक, इस संसार में दो प्रकार के लोग दैव् असुरेव च, कलेर्दोषनिधे राजन्न कली का जो दोष है कलि के दोष हैं और यह दोष सारे संसार भर में हैं। कली सारे संसार भर में हैं या मैं कई बार कह चुका हूं , हम हिंदू थोड़े ही हैं हम तुम्हारे गीता भागवत को नहीं मानते यह तुम्हारा कलि वगैरह अपने पास रखो हमें कुछ लेना-देना नहीं कलि वलि से, लोग माने या ना माने यह कलि के चेले हैं, बन ही चुके हैं, बनाऐ ही गए हैं। *ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम् | मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः ||* (श्रीमद भगवद्गीता 4.11) अनुवाद- जिस भाव से सारे लोग मेरी शरण ग्रहण करते हैं, उसी के अनुरूप मैं उन्हें फल देता हूँ | हे पार्थ! प्रत्येक व्यक्ति सभी प्रकार से मेरे पथ का अनुगमन करता है | नो चॉइस भगवान ने घोषणा की हुई है भगवान दो चार भगवान नहीं हैं। नाम अलग-अलग हो सकते हैं कोई अल्लाह कहता है कोई जहोबा कहता है और कोई क्या क्या कहता है। अल्लाह कृष्ण ही हैं अल्लाह भगवान ही हैं। सब जगह वही भगवान हैं। जैसे सूर्य को कोई सूर्य कहता है या मार्कंडेय कहता है कोई क्या कहता है अलग-अलग भाषाओं में अलग-अलग देशों में सूर्य को अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है। अलग-अलग नामों के पुकारने से अलग-अलग या एक से अनेक नहीं हो जाते किसी भी नाम से पुकारो सूर्य तो एक ही रहता है वैसे आप समझ जाओ , भगवान एक ही हैं *कृष्ण जिनका नाम है गोकुल जिनका धाम है । ऐसे श्री भगवान को मेरे बारंबार प्रणाम है* (वैषणव भजन) कलि का प्रचार प्रसार सर्वत्र है कुछ दिन पहले हम कह रहे थे कि तुम न्यूयॉर्क क्यों गए ऐसी समझ है कि न्यूयॉर्क इज द कैपिटल ऑफ कलि, कलि की वह राजधानी है इसीलिए सेनापति भक्त श्रील प्रभुपाद ने सीधे राजधानी पर हमला किया। वहीं पर उन्होंने इस्कॉन की स्थापना की, रजिस्ट्रेशन ऑफिस इस्कॉन का वहीँ है और वहीं पर कीर्तन प्रारंभ हुआ टोंपकिंस स्क्वेयर पार्क में और यह गीता भागवत जो टाइमबम है उसका एक्सप्लोजन न्यूयॉर्क में होने लगा। जब यह बम फट जाते हैं तब उससे कोई विनाश नहीं होता उससे विकास ही होता है। इस टाइम बम से डिस्ट्रक्शन नहीं होता। श्रीमद भगवतम टाइम बम या यह हरिनाम यह भी अस्त्र है, श्री चैतन्य महाप्रभु अलग से कोई अस्त्र लेकर नहीं आए। सुदर्शन चक्र या कोई गदा या परशुराम से कोई अस्त्र, ऐसा कोई अस्त्र का उपयोग नहीं किया हरि नाम ही अस्त्र था। *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।* इन अस्त्रों का उपयोग करके इससे विकास हुआ विनाश नहीं हुआ नॉट डिस्ट्रक्शन, *चेतो - दर्पण - मार्जनं भव - महा - दावाग्नि - निर्वापणं श्रेय : -कैरव - चन्द्रिका - वितरणं विद्या - वधू - जीवनम् । आनन्दाम्बुधि - वर्धनं प्रति - पदं पूर्णामृतास्वादनं सर्वात्म - स्नपनं परं विजयते श्री - कृष्ण - सङ्कीर्तनम्*॥१ ॥ अनुवाद भगवान् कृष्ण के पवित्र नाम के संकीर्तन की परम विजय हो , जो हृदय रूपी दर्पण को स्वच्छ बना सकता है और भवसागररूपी प्रज्वलित अग्नि के दुःखों का शमन कर सकता है । यह संकीर्तन उस वर्धमान चन्द्रमा के समान है, जो समस्त जीवों के लिए सौभाग्य रूपी श्वेत कमल का वितरण करता है । यह समस्त विद्या का जीवन है। कृष्ण के पवित्र नाम का कीर्तन दिव्य जीवन के आनन्दमय सागर विस्तार करता है। यह सबों को शीतलता प्रदान करता है और मनुष्य को प्रति पग पर पूर्ण अमृत का आस्वादन करने में समर्थ बनाता है । *श्रेय : -कैरव - चन्द्रिका - वितरणं विद्या - वधू - जीवनम् इस संसार में चेतो - दर्पण - मार्जनं भव - महा - दावाग्नि - निर्वापणं जहां आग लगी है जगत में यह शिक्षा अष्टकम की ओर हम बढ़े हैं। प्रथम शिक्षा अष्टकम में कहा है जो भी कीर्तन करेंगे जब जब करेंगे, कीर्तनादेव कृष्णस्य तब क्या होगा ? चेतना का मार्जन होगा सफाई होगी और भव महादवाग्नि संसार भर में जो आग लगी हुई है उसको बुझाने वाला यह नाम संकीर्तन है। महा - दावाग्नि - निर्वापणं , निवारण करेगा बुझाएगा आग को और जहां आग लगी थी उस को बुझा कर उस स्थान पर क्या होगा? श्रेय : -कैरव - चन्द्रिका - वितरणं हमारा परम कल्याण होगा। चंद्रिका, किरण फैलेगी वहां, जैसे सूर्य की किरण फैलती है तब व्यक्ति सुख का अनुभव करता है , शांति का अनुभव करता है वैसे मन के देवता चंद्र ही हैं। जहां आग लगी थी उसी स्थान पर फिर हरियाली उगेगी, पुष्प खिलेंगे , वहां शीतल सुगंधित मंद वायु बहने लगेगी। क्रांति होने वाली है या क्रांति करता है , क्रांतिकारी है यह आंदोलन , यह हरे कृष्ण महामंत्र, श्रेय : -कैरव - चन्द्रिका - वितरणं था महा - दावाग्नि था और अब उसके स्थान पर बन गया एक पिकनिक स्पॉट की तरह जहां हम जाकर रहना चाहेंगे विजिट करना चाहेंगे एंजॉय करेंगे हरि हरि । शुकदेव गोस्वामी अपने सात दिवसीय कथा का समापन इन्हीं शब्दों के साथ कर रहे हैं अब कुछ थोड़े मिनटों के लिए वह बोलेंगे ओनली वन मोर चैप्टर उन्होंने कहा है कलेर्दोषनिधे राजन्नस्ति ह्येको महानगुणः यह वचन अब थोड़ा सा चौथे अध्याय की कथा कर के पांचवे अध्याय में समापन करेंगे और यह पांचवा अध्याय जो है सभी अध्यायों में सबसे छोटा अध्याय है। यह अध्याय तेरह श्लोक वाला ही है। द्वादश स्कंध का पांचवा अध्याय यह अत्यंत संक्षिप्त है और जिसके अंत में उन्होंने कहा है *ए तत्ते कथितं तात यदात्मा पृष्टवान्नृप।हरेर्विश्वात्मनश्चेष्टां किं भूय: श्रोतुमिच्छसि।।* ( श्रीमद् भागवतम् 12.5.13) अनुवाद:- हे प्रिय राजा परीक्षित, मैंने तुमसे ब्रह्मांड के परमात्मा भगवान् हरि की लीलाएंँ --- वे सारी कथाएंँ--- कह दीं जिन्हें प्रारंभ में तुमने पूछा था अब तुम और क्या सुनना चाहते हो? कथा सात दिवसीय कर रहे थे अब पूछते हैं और कुछ जानना या सुनना चाहोगे दिज़ आर द लास्ट वर्ल्ड शुकदेव गोस्वामी के यह अंतिम वर्ड हैं किं भूय: श्रोतुमिच्छसि इसके उत्तर में राजा परीक्षित कहने वाले हैं राजोवाच *सिध्दोस्म्यनुगृहीतोस्मि भवता करुणात्मना।। श्रावितो यच्च मे साक्षादनादिनिधनो हरि:।।* (श्रीमद् भागवतम् 12.6.2) अनुवाद: - महाराज परीक्षित ने कहा: अब मुझे अपने जीवन का लक्ष्य प्राप्त हो गया है क्योंकि आप सरीखे महान् तथा दयालु आत्मा ने मुझ पर इतनी कृपा प्रदर्शित कि हैं। आपने स्वयं मुझसे आदि अथवा अंत से रहित भगवान् हरि कि यह कथा कह सुनाई हैं। आपकी कृपा से मैं सिद्ध बन चुका हूं। यह सब भगवत करुणा यह सब आपकी करुणा का ही फल है। मतलब वे कह रहे हैं ठीक है अभी और सुनने की आवश्यकता नहीं है। मैं अब तैयार हूं आपने मुझे तैयार किया है अंते नारायण स्मृति अब होगा, अब वह सर्प आ ही रहा है , देखो देखो अवश्य ही आने वाला है उसको जो करना है करने दो। मैं क्या करूंगा "अंते नारायण स्मृति" करने वाला हूं। "इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले गोविंद नाम लेकर तब प्राण तन से निकले" मैं गोविंद का नाम लूंगा *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे । हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।* निताई गौर प्रेमानन्दे !

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