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20th अक्टूबर 2019
हरे कृष्ण!
आज हमारे साथ इस कॉन्फ्रेंस में केवल 490 भक्त ही जप कर रहे हैं। आज पूरे विश्व भर से विशेष रूप से दीपदान के विषय में काफी आनंददायी और प्रोत्साहित करने वाली रिपोर्टस आ रही हैं। भक्त पूरे विश्व में किस प्रकार से दीपदान का आयोजन कर रहे हैं। यह रिपोर्ट्स मैं पढ़ रहा हूँ लेकिन अच्छा होगा कि आप सब भी यह रिपोर्टस पढ़ लीजिए जिससे मुझे यह सारी रिपोर्ट्स दुबारा रिपीट ना करनी पड़े और आपको बार बार सुनानी ना पड़े। आप लोग भी स्क्रीन पर ये सारी रिपोर्ट पढ़ सकते हो।
यह जरूरी नहीं है कि अभी इस कॉन्फ्रेंस में ही ये सारे रिपोर्ट्स पढ़े जाएं। आप दिन में भी हमारे फेसबुक पेज letschantstogether पर ये सारी रिपोर्ट्स पढ़ सकते हैं। आप ये रिपोर्टस पढ़कर प्रेरणा और उत्साह प्राप्त कर सकते हैं किस तरह से आप में से ही काफ़ी भक्त दामोदर की महिमा, कार्तिक मास का गुणगान और दीपदान करने में लगे हुए हैं एवं वे किस प्रकार से दामोदर, वृंदावन,ब्रज, कृष्ण की चेतना और कृष्णभावनामृत का प्रचार बढ़-चढ़कर कर रहे हैं। आप सब बता ही रहे हैं कि काफी भक्त इस कार्य में लगे हुए हैं लेकिन यदि आप में से कुछ भक्त दामोदर मास या वृंदावन या कृष्णभावनामृत का प्रचार करने के लिए कुछ भी नहीं कर पाए हैं या जिन्होंने कुछ भी नहीं किया है, वे सब यह रिपोर्ट पढ़कर प्रेरणा प्राप्त कर इस कार्य में लग सकते हैं।
कल जब मैं वृंदावन आ रहा था, मैंने मार्ग में कुछ होर्डिंग /बोर्ड पढ़े जिसमें उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा दिवाली के दिन अयोध्या में दीपदान के भव्य आयोजन हेतु एडवरटाइजमेंट की गई थी। मैं यह सोच रहा था कि हम लोग तो दामोदर मास में प्रत्येक दिवस ही दिवाली मनाते हैं। आप में से जिन भक्तों को पता नहीं था उनकी जानकारी के लिए कि दामोदर लीला दिवाली के दिन ही सम्पन्न हुई थी। दिवाली के दिन ही सुबह के समय में यशोदा मैया ने भगवान नंदलाल, माखन चोर कृष्ण को अपने ही घर में माखन चोरी करते हुए पकड़ा था और उन्होंने बाल कृष्ण माखन चोर के उदर को रस्सी के साथ बांध दिया था। इस प्रकार भगवान का नाम दामोदर हुआ। हमें उस नाम या शब्द का अर्थ भी समझना चाहिए। दाम का अर्थ है रस्सी और उदर का अर्थ है पेट। जब यशोदा मैया ने भगवान कृष्ण के पेट को ऊखल के साथ रस्सी से बांध दिया तब भगवान का नाम दामोदर हुआ। हम दामोदर मास में प्रत्येक दिवस दीपदान और दामोदर लीला का स्मरण करके रोज दिवाली मनाते हैं। अयोध्या में तो दिवाली भगवान श्रीरामचंद्र के लिए एक ही दिन मनाई जाएगी परंतु हम कार्तिक मास में प्रत्येक दिन दिवाली भगवान श्रीकृष्ण के लिए मनाते हैं।
नमस्तेऽस्तु दाम्ने स्फुरद्दीप्तिधाम्ने
त्वदीयोदरायाथ विश्वस्य धाम्ने।
जैसे कि हम दामोदरअष्टक के अंतिम अष्टक में गाते हैं- नमस्तेऽस्तु दाम्ने स्फुरद्दीप्तिधाम्ने और हम शुरुआत में तो गाते ही हैं- नमामीश्वरं सच्चिदानंदरूपं अर्थात हम भगवान के सच्चिदानंदरूप को प्रणाम करते ही हैं अपितु हम उस रस्सी को भी प्रणाम करते हैं जोकि कोई साधारण रस्सी नहीं है। जिस रस्सी से यशोदा मैया द्वारा भगवान कृष्ण के पेट और ऊखल को बांधा गया था। वह रस्सी भी दिव्य है, वह साधारण रस्सी नहीं है जैसा कि हम जानते हैं -धाम में हर एक वस्तु सजीव है, हर वस्तु का एक अपना ही स्वरूप है। अतः हम उस रस्सी को भी प्रणाम करते हैं जिसका उपयोग यशोदा मैया ने भगवान को बांधने के लिए किया था और जिसकी वजह से भगवान का नाम दामोदर पड़ा। हम ऐसी रस्सी को भी प्रणाम करते हैं।
इस दामोदर अष्टकम में जब हम आगे गाते हैं- 'नमस्तेऽस्तु दाम्ने स्फुरद्दीप्तिधाम्ने
त्वदीयोदरायाथ विश्वस्य धाम्ने' दूसरी पंक्ति में हम भगवान के उदर को प्रणाम करते हैं। पहला प्रणाम तो हम उस दिव्य रस्सी को करते हैं।तत्पश्चात दूसरा प्रणाम हम भगवान के उदर को करते हैं। वह कैसा उदर है ? विश्वस्य धाम्ने अर्थात पूरा विश्व अर्थात ब्रह्माण्ड जो भगवान के उदर में निवास करता है। हम ऐसे उदर को भी प्रणाम करते हैं। इस अंतिम अष्टक में दो अलग-अलग प्रणाम है- पहला प्रणाम रस्सी को किया जा रहा है जिसका उपयोग यशोदा मैया ने भगवान को बांधने के लिए किया था। दूसरा प्रणाम हम भगवान के उदर को करते हैं जहां पर पूरे विश्व का निवास है। भगवान का एक अन्य नाम जगन निवास भी है जिसका अर्थ है कि जहां पर पूरा जगत अर्थात पूरा ब्रह्मांड, भगवान में निवास करता है। जैसे कि हम दामोदर का अर्थ समझते हैं- दाम अर्थात रस्सी और उदर अर्थात पेट, हम उस दिव्य रस्सी को प्रणाम करते हैं जिससे उदर को बांधा गया था और दूसरा प्रणाम फिर हम भगवान के पेट को करते हैं जहां पर पूरा ब्रह्मांड निवास करता है।
इस प्रकार हम दो अलग-अलग प्रणाम करते हैं पहले रस्सी को, उसके पश्चात भगवान के उदर को।
हरि! हरि!
यह आपको समझना होगा कि
हम पूरे दामोदर अष्टक की हर पंक्ति में लगभग अलग अलग चीज़ों को अलग अलग प्रकार से प्रणाम कर रहे हैं। पूरा दामोदर अष्टक ही लगभग प्रणाम या दंडवत से ही भरा हुआ है। जब हम इसे समझ कर गाँएगे तभी हमें यह लीला समझ में आ सकती है। हम देखते हैं कि किस प्रकार से यशोदा मैया ने यह संकल्प किया कि वह कृष्ण को ऊखल से बांध देगी। उन्होंने पहले घर पर उपलब्ध कुछ रस्सी का उपयोग कर बांधने का प्रयास किया लेकिन उससे बात नहीं बनी।तत्पश्चात उन्होंने गौशाला की रस्सी का प्रयोग किया फिर भी बात नही बनी। उसके पश्चात पूरे गोकुल से अड़ोस पड़ोस की गोपियां भी उनकी सहायता करने के लिए रस्सी लेकर आ गयी।
आप इस समय इस लीला को स्मरण करने या देखने का प्रयास कीजिए कि किस प्रकार से यशोदा मैया कृष्ण को बांधने के लिए अति परिश्रम कर रही है। उन्होंने कृष्ण को बांधने के लिए एक लंबी रस्सी ही नहीं अपितु लगभग पूरे गोकुल की सारी रस्सी लगा दी थी। वह रस्सी अत्यंत ही लंबी हो गयी थी लेकिन जब भी यशोदा मैया कृष्ण को बांधने का प्रयास करती तब वह रस्सी हमेशा दो उँगली जितनी छोटी रह जाती थी अर्थात दो उंगली का अंतर रह जाता था। यह अंतर किस वजह से आता होगा ? अब आप इसे समझने में सफल हो सकते हैं। भगवान का उदर कोई साधारण उदर नही है, विश्वस्य धाम्ने। जैसा कि हमने कहा- 'भगवान के उदर में केवल एक ब्रह्मांड नही, एक विश्व नहीं, अपितु अनंत कोटी ब्रह्मांडो का निवास है। विश्वस्य धाम्ने अर्थात वहाँ पर काफ़ी सारे ब्रह्मांडो का निवास है। आप कल्पना कर सकते हैं कि इतने सारे ब्रह्मांडों को बांधने के लिए कितनी लंबी रस्सी की आवश्यकता होती होगी। जैसा कि हम समझते हैं इस पृथ्वी का लगभग 25000 किलोमीटर की परिधि (सरकम्फेरेंस) होता है। हम तो भगवान के उदर में स्थित अनन्त कोटि ब्रह्मांडो की बात कर रहे हैं। आप उतने सारे ब्रह्मांडो को बांधने की कल्पना कीजिए कि कितनी बड़ी रस्सी लगती होगी या लगेगी।
इस प्रकार से हम समझ सकते हैं भगवान की यह लीला और सारी लीलाएं दिव्य और अचिंत्य होती है जो कि हमारी इंद्रियों से परे है। हम अपनी इंद्रियां या बुद्धि का प्रयोग करके भगवान की दिव्य लीलाओं को नहीं समझ सकते। जैसे कि श्रील प्रभुपाद कहते थे भगवान की दिव्य लीलाओं जोकि अचिंत्य हैं, उसे हम हमारी टिनी फ्रेंड् (प्रभुपाद जी टाइनी शब्द का उच्चारण टिनी कह कर किया करते थे) अर्थात अपनी छोटी बुद्धि से नहीं समझ पाएंगे। यह हो सकता है कि हम उन लीलाओं का कुछ तत्व समझ पाएं लेकिन हम अपनी इंद्रियों से इन लीलाओं नहीं समझ सकते इसलिए भगवान का एक नाम अधोक्षज भी है। अधोक्षज का अर्थ है जो हमारी इंद्रियों से परे है अर्थात जिनको जानना और समझना हमारी भौतिक इंद्रियों से परे है। इसीलिए भगवान का नाम अधोक्षज भी है। यह दामोदर लीला काफी जल्दी सुबह प्रारंभ हुई थी और यह लीला पूरा दिन या लगभग दोपहर तक चली। पहले तो यशोदा मैया को भगवान को पकड़ने के लिए उनके पीछे दौड़ कर काफी परिश्रम करना पड़ा। कुछ समय बाद जब भगवान उनके हाथ में आए तब यशोदा मैया को रस्सी एकत्रित करने और लंबा करने में उससे ज्यादा परिश्रम करना पड़ा।लगभग सारे बृजवासी, यशोदा मैया के साथ रस्सी लंबी करने या कृष्ण को बांधने में सहायता करने में लग गए थे। लगभग दोपहर तक यशोदा मैया द्वारा कृष्ण को पकड़कर रस्सी लंबी कर उनको बांधने का प्रयास चल ही रहा था। आप यह सोच या समझने का प्रयास कीजिए कि इतनी सुबह से जो यह लीला प्रारंभ हुई, वह लीला लगभग दोपहर तक चल ही रही है। दोपहर तक यशोदा मैया कृष्ण को बांध ही नहीं पाई थीं। अतः हम समझ सकते हैं कि भगवान का उदर कोई साधारण उदर नहीं है। यशोदा मैया को उन्हें बांधने के लिए कितना परिश्रम करना पड़ा होगा ।
हरि! हरि!
हमारा समय लगभग समाप्त हो ही गया है लेकिन इस अंतिम अष्टक का एक और भाग है अर्थात अंतिम पंक्ति है। जिसके विषय में हम थोड़ा सा स्पष्ट या समझने का प्रयास करेंगे।
नमस्तेऽस्तु दाम्ने स्फुरद्दीप्तिधाम्ने
त्वदीयोदरायाथ विश्वस्य धाम्ने।
नमो राधिकायै त्वदीय-प्रियायै
नमोऽनन्त लीलाय देवाय तुभ्यम्।
जो अंतिम पंक्ति या लाइन हैं- नमोऽनन्त लीलाय देवाय तुभ्यम् अर्थात भगवान स्वयं अनंत हैं या उनकी लीलाएं भी अनंत हैं। हमारे लिए यह संभव नहीं होगा कि हम इस लीला के विषय में या भगवान की किसी भी लीला के विषय में पूर्ण रूप से चर्चा या वर्णन कर पाएं और एक समय ऐसा आए जहाँ हम कह सकें कि यह लीला पूरी संपन्न हुई या हमने इस लीला के विषय में सारी चर्चा या हर बात का वर्णन कर लिया है, ऐसा बिल्कुल भी संभव नहीं है। भगवान की लीलाएं अनंत काल से चल रही हैं और चलती रहेंगी इसीलिए उसे अनंत लीला कहते हैं। ऐसी अनंत लीलाओं को भी हमारा प्रणाम हैं। यदि इस दामोदर लीला के विषय में पूरा महीना भी चर्चा करेंगे तो भी समय कम पड़ेगा और हम फिर भी नहीं कह पाएंगे कि हमने दामोदर लीला के विषय में हर एक बात के विषय में चर्चा कर ली हैं। लेकिन हमने अब प्रयास किया हैं कि हम दामोदर लीला के अंतिम अष्टक को लगभग भली-भांति समझ पाएं।
हम आज ब्रज मंडल परिक्रमा में गोवर्धन परिक्रमा करेंगे। ब्रजमंडल दर्शन पुस्तक में गोवर्धन लीला परिक्रमा का वर्णन है, आप भी उस लीला में भाग ले सकते हैं। वृंदावन आने से पहले जब मैं नोएडा पदयात्रा बुक ट्रस्ट के ऑफिस में गया था तो मैंने वहां लगभग 300 से अधिक ब्रजमंडल दर्शन पुस्तकें एक लाइन में लगी देखी जो अमेज़न ऑनलाइन डिलीवरी के लिए तैयार थी। अब तक काफी सारी पुस्तकें वितरित हुई है और काफी पुस्तकें जा भी रही हैं। हमारे काफ़ी भक्त वृंदावन में भी ब्रजमंडल दर्शन पुस्तकों का वितरण कर रहे है। ब्रजमंडल दर्शन पढ़ने से विश्व भर के भक्त लाभान्वित हो रहे हैं। उन्हें ब्रज मंडल परिक्रमा करने का फल लगभग घर पर बैठकर प्राप्त हो रहा है। मैं बहुत प्रसन्न हूँ,दामोदर मास में बड़ी संख्या में ब्रजमंडल दर्शन पुस्तक का वितरण हो रहा है। यदि आपके पास यह उपलब्ध नहीं है तब आप भी इसे मंगवाए और पढ़िए।
हम यहीं रुक जाते हैं। कुछ नेटवर्क इश्यू हो रहा है और समाप्त करने का भी समय हो गया है।
गौर प्रेमानंदे! हरि! हरिबोल!
कृष्ण बलराम की जय!
दामोदर की जय!
वृंदावन धाम की जय!