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19 अक्टूबर 2019 हरे कृष्ण! आज हमारे साथ 555 स्थानों से भक्त जप कर रहे हैं। यह संख्या 600 के पार पहुंच गई थी, परंतु आज हम उस संख्या से 50 कम हैं। हम चाहते हैं कि इस कांफ्रेंस में जप करने वाले भक्तों की संख्या बढ़े। आप सब इस कॉन्फ्रेंस में अधिक से अधिक भक्तों को जोड़ने का प्रयास कीजिए। चूंकि आज शनिवार है, अतः हमारे साथ मेलबर्न, ऑस्ट्रेलिया से कई भक्त जप कर रहे होंगे। हमें आप सभी भक्तों से कार्तिक मास की बहुत अधिक मात्रा में रिपोर्ट्स प्राप्त हो रही हैं। हो सकता है कि इन सभी रिपोर्ट्स को प्रकाशित किया जाए। इसके साथ साथ आप सभी प्रणाम भी भेज रहे हैं, आप सभी मेरा आशीर्वाद स्वीकार करें। कई भक्त यह भी रिपोर्ट भेज रहे है कि महाराज! मैं वृंदावन आ रहा हूँ या मैं एक नवम्बर को वृंदावन पहुंच रहा हूं अथवा मुझे वृंदावन का स्मरण हो रहा है, या मैं प्रतिदिन ब्रजमंडल दर्शन पुस्तक पढ़ रहा हूँ। सोलापुर, अहमदाबाद, भिवंडी आदि कई स्थानों पर अधिक से अधिक मात्रा में दीप दान और कीर्तन मेले का आयोजन किया जा रहा है। ये सभी दिव्य और आध्यात्मिक समाचार हैं। जो आप सब इस कॉन्फ्रेंस में अपने कमैंट्स के माध्यम से मुझे भेज रहे हैं। आप सभी ये आध्यात्मिक पुस्तकें पढ़ते रहिए। आप दिन के समय इन रिपोर्ट्स को भी पढ़ सकते हैं। आप हमारे letschantstogether फेसबुक पेज पर भी ये सभी रिपोर्ट्स पढ़ सकते हैं और अपनी रिपोर्ट्स या कमैंट्स भी भेज सकते हैं। कुछ भक्त यह पूछ रहे हैं कि आज नरोत्तम दास ठाकुर का तिरोभाव दिवस है, हम किस प्रकार से नरोत्तमदास ठाकुर के चरणों का अनुगमन कर सकते हैं ? आप उनके स्मरण पर लिख सकते हैं और यदि आपका कोई प्रश्न भी हो, उसे भी आप फेसबुक के उस पेज पर पूछ सकते हैं। आप गुह्यामाख्याति पृयच्छति कर सकते हैं इन प्रश्न के उत्तर केवल मेरे द्वारा नहीं दिये जायेंगे अपितु आप भक्त भी इन प्रश्नों के उत्तर दे सकते हैं। यह ज़ूम कॉन्फ्रेंस सोशल मीडिया नहीं है। कई भौतिक व्यक्ति समझते हैं कि यह एक सोशल मीडिया है परंतु हमारे लिए यह आध्यात्मिक मीडिया है। हम इस कॉन्फ्रेंस के माध्यम से आध्यात्मिक विषयों पर गहन चर्चा करते हैं, हम यहां मनगढंत बातों पर चर्चा नहीं करते अपितु हम इस कॉन्फ्रेंस में जप करते हैं।अतः इसका नाम जप कॉन्फ्रेंस हैं। इसके साथ साथ हम अन्य उत्सवों के विषयों पर चर्चा करते हैं जैसे आजकल दामोदर व्रत चल रहा है तो हम दामोदर लीला पर चर्चा कर रहे हैं। इसी प्रकार हम भगवान राम,कृष्ण, चैतन्य महाप्रभु तथा अन्य आचार्यों के अविर्भाव और तिरोभाव दिवस पर उनकी लीलाओं के विषय में चर्चा करते हैं। अतः यह एक आध्यात्मिक कॉन्फ्रेंस है, ना कि कोई सामाजिक कॉन्फ्रेंस। अभी मैं राधा गोविंद देव मंदिर, नोएडा में हूं और मेरे मन में एक विचार आ रहा था। मैं कल यहां दीप दान के समय उपस्थित था। मंदिर भक्तों और अतिथियों से भरा हुआ था। यशोदा दामोदर के विग्रह एक सुंदर वेदी पर थे और उन्हें अच्छे तरीके से सजाया हुआ था। कल वहाँ सभी भक्त दामोदरअष्टक प्रार्थना गा रहे थे। हमें यह बात समझनी चाहिए कि दामोदरअष्टक संस्कृत में है। वह संस्कृत भी अत्यंत सरल नहीं अपितु थोड़ी क्लिष्ट है। यह संभावित है कि हमें वह संस्कृत समझ नहीं आए अर्थात उसका अर्थ क्या है? हम समझ नहीं पाए। इसलिए मैं आप सभी भक्तों को रिकमंड(सिफारिश) करूँगा कि आप उसके साथ साथ अनुवाद और उसका तात्पर्य भी पढें जिससे हम समझ सकें कि दामोदर लीला क्या है ? दामोदर अष्टक में क्या भाव है ? जब आप बाहर पब्लिक प्रोग्राम करते हैं और नए लोगों से दीप दान करवाते हैं,उस समय भी आपको दामोदरअष्टक के अनुवाद को अवश्य पढ़ना चाहिए जिससे कि नए लोगों को पता लग सके कि हम क्या कर रहे हैं। यदि हम ऐसा नहीं करेंगे तब जैसा कि कहते हैं 'रिलिजन विदाउट फिलॉसफी' अर्थात दर्शन बिना धर्म के केवल कर्मकांड बन कर रह जाएगा। वे लोग इसे एक नार्मल रिवाज की तरह ही करेंगे। यदि आप चाहते हैं कि इस कार्यक्रम में सम्मलित होने वाले लोगों की चेतना में परिवर्तन आए तो आप दामोदरअष्टक का अनुवाद जरूर पढ़िए जिससे उन्हें पता लग सके। आज हमारे एक अत्यंत महान आचार्य श्री नरोत्तमदास ठाकुर का तिरोभाव दिवस है, आज हम उनका स्मरण करेंगे। उनके विषय में बहुत कुछ कहने के लिए है, हम कहाँ से शुरू करें। नरोत्तम दास ठाकुर के अविर्भाव के पहले ही चैतन्य महाप्रभु एक समय जोर जोर से नरोत्तम! नरोत्तम! कहकर पुकारने लगे। उस समय भक्त समझ नहीं पा रहे थे कि महाप्रभु किसे बुला रहे हैं। इस प्रकार महाप्रभु ने नरोत्तमदास ठाकुर के जन्म से पहले ही उनके आगमन की भविष्यवाणी कर दी थी। नरोत्तम दास ठाकुर का जन्म वर्तमान में बंगला देश के खेतरी ग्राम में हुआ था। महाप्रभु ने जब इस धरती पर अपनी लीला का समापन किया, उसके तुरंत बाद ही नरोत्तमदास ठाकुर का जन्म हुआ। मुझे भी नरोत्तम दास ठाकुर के जन्म स्थान पर जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। नरोत्तम दास ठाकुर एक राजा के पुत्र थे। अतः मैंने उनके महल जो कि बंगला देश के खेतरी ग्राम में है,वहाँ का दर्शन किया। वहाँ पद्मावती नदी बहती है और वह ग्राम पद्मावती नदी के तट पर स्थित है। यह नदी भारत और बंगला देश को विभक्त करती है। मैंने उस धाम की धूलि को अपने सिर पर चढ़ाया। इससे मैं स्वयं को अत्यंत सौभाग्यशाली समझता हूं। नरोत्तम दास ठाकुर स्वयं को वृंदावन और चैतन्य महाप्रभु के संग से दूर नहीं रख सकें। इसलिए उन्होंने खेतरी ग्राम छोड़ दिया और वृंदावन आ गए और जीव गोस्वामी से शिक्षा ग्रहण करने लगे। चूंकि उस समय षड् गोस्वामियों में से कोई अन्य गोस्वामी नहीं थे, यह एक प्रकार से सेकंड जनरेशन थी। तत्पश्चात उन्होंने लोकनाथ गोस्वामी से दीक्षा प्राप्त की। वह लोकनाथ गोस्वामी के एकमात्र शिष्य थे, यह भी एक अत्यंत विशिष्ट लीला है। इतिहास में वर्णन है कि किस प्रकार से नरोत्तम दास ठाकुर ने अपने गुरु महाराज की सेवा की। इसके पश्चात जीव गोस्वामी ने नरोत्तमदास ठाकुर, श्यामानंद प्रभु, श्रीनिवास आचार्य इन तीनों को गौड़ीय ग्रंथ देकर बंगाल में प्रचार के लिए भेजा। यह आचार्य त्रय कहलाते हैं अर्थात तीन आचार्य। उनमें से एक नरोत्तम दास ठाकुर थे। नरोत्तम दास ठाकुर अपने भजनों के लिए बहुत ही सुविख्यात हैं। उन्होंने कृष्णभावनामृत की फिलॉसफी(दर्शन) को अपने सरल बंगाली भजनों में भर दिया है। श्रील प्रभुपाद ने हमें जो भजन दिए हैं, उनमें से हम अधिकतर भजन नरोत्तम दास ठाकुर के ही गाते हैं। जैसे "राधा कृष्ण प्राण मोर जुगल किशोर.. ,गुरु पूजा या श्री कृष्ण चैतन्य प्रभु दया कर मोरे..." आदि ऐसे सैंकड़ों भजन हैं जिनकी रचना नरोत्तम दास ठाकुर ने की है, यह उनका हमारे लिए विशेष योगदान है। नरोत्तम दास ठाकुर के भजन वैदिक ज्ञान से भरे हुए हैं और यह अत्यंत सरल बंगाली भाषा में लिखे हुए हैं। जैसा कि कहते है- 'वेदैक्ष्चसर्वेरहमेव वेद्दो .. भगवान कहते हैं कि वेदों का सार केवल भगवान को जानना है। इसी प्रकार जब हम नरोत्तम दास ठाकुर के भजन को समझते हैं, तब हम भगवान कृष्ण को, चैतन्य महाप्रभु को समझ सकते हैं। वेदों का भाव उनके भजनों में हैं। नरोत्तम दास ठाकुर का एक अन्य भजन है- गौरांङ्ग बलिते हबे पुलक शरीर। हरि हरि बलिते नयने बबे नीर।। जब हम इन भजनों को समझते हैं तब हम आचार्यों और उनके भावों को समझ सकते हैं। जैसे नरोत्तम दास ठाकुर इस भजन में कह रहे हैं कि "वह दिन कब आएगा, जब मैं गौरांग! गौरांग! कहूंगा और उस समय मेरे शरीर में पुलक होगा अथवा मैं पुलकित हो जाऊंगा, मेरे नयनों से अश्रुधारा बहेगी।" वह प्रार्थना कर रहे हैं कि वह दिन कब आएगा। इसी भजन में वे आगे कहते हैं - विषय छाडिया कबे शुद्ध हबे मन कबे हाम हरेब श्री वृंदावन।। श्री नरोत्तम दास ठाकुर कहते हैं कि "कब मैं वृंदावन का दर्शन करूंगा ?कब मैं दिव्य या आध्यात्मिक वृंदावन को देख पाऊंगा, कब मैं वृंदावन में वास करूंगा।" उनका विचार है कि कोई व्यक्ति वृंदावन को देखने में तभी सक्षम हो सकता है जब वह विषयों अर्थात विषय वासना, इन्द्रियों को भोगने की इच्छा को छोड़ता है। इस प्रकार से इन्द्रियों के संयम द्वारा उसका मन शुद्ध होता है और वह वृंदावन का दर्शन करने योग्य बनता है। जब हम इन्द्रियों पर संयम करते हैं तब हम इस भौत्तिक जगत में इन्द्रिय तृप्ति से निवृत होते हैं और उसे भोगना नही चाहते। इसके पश्चात ही हम वृंदावन में प्रवेश के योग्य बन सकते हैं। नरोत्तम दास ठाकुर यहां वृंदावन के दर्शन करने की बात कर रहे हैं, वास्तव में वे भगवान के दर्शन और भगवान की लीलाओं के दर्शन की बात कर रहे हैं। वृंदावन जाना इतना सस्ता नहीं है। हमें वृंदावन जाने के लिए मूल्य चुकाना पड़ता है। वह मूल्य कोई किराया राशि नहीं है। अपितु उस मूल्य के लिए भौतिक इंद्रियों अर्थात अपनी इच्छाओं को त्याग करना पड़ता है। तभी आप वृंदावन जाने के योग्य बनते हैं। इस प्रकार आप नरोत्तम दास ठाकुर के भजनों को गाते रहिए, उन्हें पढ़ते रहिए, निरंतर जप करते रहिए, दीप दान कीजिए, कृष्ण पुस्तक और ब्रजमंडल दर्शन पढ़िए और अधिक से अधिक भक्तों से दीपदान करवाइए। तब आप स्वयं इस प्रकार वृंदावन में प्रवेश के योग्य जाएंगे। हरि! हरि! गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल!

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