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हरे कृष्ण जप चर्चा पंढरपुर धाम से 17 नवंबर 2020 आज हमारे साथ 655 भक्त जप कर रहे है। गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल। आप सभी का स्वागत है। कईयों का स्वागत नहीं हो रहा,क्योंकि वे सेशन ज्वाइन नहीं कर रहे है। ना जाने क्यों क्या हुआ है। जरा पता लगाओ हमारे टीम में से कई लोग अब जपा टॉक सुन नहीं रहे है। तो आप मिलकर विचार करो। तो आप विचार कर सकते हो कि कौन आजकल नहीआ रहा? क्या हुआ है? क्यों ज्वाइन नहीं कर रहे है? यह बड़ा विशेष मास है कार्तिक मास है! कार्तिक व्रत संपन्न हो रहा है। हमें व्रती बनना है, जो व्रती होता है वह जो व्रत का पालन करता है। उसे व्रती कहते हैं। जो कथा श्रवण का व्रत लेता है उसे वृत्ति कहते हैं।जो मैं कथा सुन लूंगा ऐसा व्रत लेता है उसे वृद्धि कहते हैं। ऐसे ही यह कार्तिक व्रत के आप सभी वृत्ति हो या और उन्हें भी व्रत लिया था। लेकिन आप इस सेशन में दिख तो नहीं रहे हैं। पर मालीपुर कुछ विचार करो हमारा टारगेट था कि स्टेशन को हाउसफुल करना है। इस जूम कॉन्फ्रेंस की कैपेसिटी 1000 की है तो रिक्त स्थानों की पूर्ति करो! रिकामी जागा भरा ऐसा मराठी में कहते हैं तो जो रिक्त स्थान है उसे भरने की बातें चल रही थी किंतु रिक्त स्थानों की संख्या बढ़ गई है, घटने की वजह बढ़ गई है। और यह गंभीर मामला है इस पर आप विचार करो ठीक है। गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल! तो आप परिक्रमा देख रहे हो सुन रहे हो? सबको प्रेरित करते रहिएगा, ज्वाइन करते रहिएगा। कल परिक्रमा बरसाने में ही थी। तो परिक्रमा बरसाने में हे और आज उसका नंदग्राम में प्रस्थान हुआ है आपने गोवर्धन पूजा जरूर की होगी और कल परिक्रमा भी हुई तो गिरिराज गोवर्धन की जय! गोवर्धन पूजा महोत्सव की जय! हरि हरि। तो कृष्ण ने कहा था नंद बाबा और ब्रज वासियों को की गोवर्धन की पूजा करो! तो उस आदेश का आपने भी पालन किया अगर आपने कल गोवर्धन पूजा की है और गोवर्धन पूजा में सम्मिलित हुए हो, वैसे यहां भी पंढरपुर में गोवर्धन पूजा किए कई सारे भक्त! लेकिन हमारे अलावा, इस्कॉन भक्तों के अलावा और कोई गोवर्धन पूजा नहीं मना रहा था। भारत भर में ना गोवर्धन पूजा होती है ना तो गोवर्धन को जानते हैं! ना उसकी पूजा करते है! वे गणेश पूजन, दुर्गा पूजन करते हैं यह पूजन प्रसिद्ध है। जो लोग काम ही होते हैं वह आपने यह कामना की पूर्ति के लिए अन्य देवता या अन्य देवों के पास पहुंचते हैं उनकी पूजा करते हैं। यह बात भगवान को पसंद नहीं है जब हम गोवर्धन की पूजा करते हैं तो भगवान प्रसन्न होते हैं हरि हरि! स्वयं महादेव भोले शंकर, पार्वती से कहे राधा कृष्ण की आराधना और वृंदावन धाम की आराधना करनी चाहिए लेकिन जो अन्य देवता के उपासक हैं, वह गोवर्धन पूजा ना जानते हैं ना करते हैं। यह दुर्दैव है। मुझे इस संबंध में ज्यादा नहीं कहना और जो मायावादी या निराकारवादी है उनका विश्वास तो भगवतधाम में नही है। वह बस मानते हैं कि, ब्रह्माज्योति है। हरि हरि। बस उन्हें ब्रह्म में लीन होना है। उनका लक्ष्य यह नहीं होता कि भगवत धाम में प्रवेश करना है, और भगवान से मिलना है, या भगवान से खेलना है ऐसा लक्ष्य मायावादी का नहीं होता। और इनकी बहुत बड़ी संख्या है। हिंदू या मुसलमान भी मायावती है। राधा कृष्ण एक समय कैसे वहां मुश्किल से उनका मिलन हुआ , कई सारे विघ्न आते हैं । जब वह बैठे थे एक दूसरे से मिल रहे थे , गले लगा रहे थे एक दूसरे को अपने दिल की बात *गृह्यम आख्याति पृश्चती* कह रहे थे , इतने में एक बभ्रमर उनके ऊपर ही मंडरा रहा था , तब मधुमंगल आए लाठी लेकर उन्होंने इस भ्रमर को भगाया और जब वह जा रहे थे तब कहा , मधु को मैंने भगाया! यह सुनते ही राधा रानी ने सोचा कि बड़े मुश्किल से हम मिल रहे थे किंतु इस बदमाश मधुमंगल ने , मधु को मेने भ्रमर कोे भगाया ऐसे कहा था लेकिन राधारानी ने सोचा कि मेरे मधुसूदन को उसने भगाया और फिर पुन्हा में अकेली रह गई ऐसा सोचती हुई राधा रानी बहुत दुखी थी , उसको दुख हुआ जब कृष्ण पून्ह उनको छोड़कर चले गए तो राधा रानी रोने लगी , कंदन करने लगी , आंसू बहाने लगी , अश्रु की धाराएं बहने लगी । हरि हरि । हे राधे ! क्या हुआ तुमको ? मैं तो यही हूं , क्यों दुखी हो ?क्यों रो रही हो ? ऐसा सारा प्रयास कर रहे हैं कृष्ण उसको स्मरण दिलाने का की मैं यही हूं , तुम्हारे साथ हूं , तुम्हारे साथ ही हूं । लेकिन राधा रानी ना तो सुन रही है , ना तो मान रही है , ना ही स्विकार कर रही है कि कृष्ण वहीं पर है । वह तो सोच रही थी कि कृष्ण चले गए हैं मुझे अकेली को छोड़ कर । यह राधा का भाव है , यह राधा की भक्ति है , ऐसी राधा की विप्रलम्ब स्थिती जब हो जाती है , वीरह की व्यथा का राधा रानी जब अनुभव कर रही थी तो उसका दर्शन करते हुए , उसका अनुभव करते हुए श्री कृष्ण अब अश्रु बहाने लगे । अश्रु धारा उनके नेत्र कमलों से बहने लगी और फिर राधा रानी के अश्रु की धाराएं और कृष्ण के नेत्रों से उत्पन्न अश्रू धाराएं वहां तो तालाब बन गया । जहां जल अश्रु बिंदू ,अश्रू धाराये एकत्रित हुई या मिश्रित हुई राधा की अश्रू धाराये और कृष्ण की अश्रू धाराये इनका मिलन हो रहा है और वैसे ही सरोवर बन गया और यही है प्रेम सरोवर । यही है प्रेम की कहानी , यह प्रेम सरोवर आज भी हमें लीला का स्मरण दिलाता है । हरि हरि । आगे बढ़ते हैं एक संकेत नाम का स्थान है , संकेत बिहारी मंदिर भी है । यहां पर वैसे गोपाल भट्ट गोस्वामी का भजन कुटीर भी है और इस भजन कुटीर को आप देखोगे तो हैरान हो जाओगे , इतना छोटा सा भजन कुटीर है । भजन कुटीर मतलब तपस्या की स्थली , ऐशो आराम का महल नहीं है *कृष्णोत्कीर्तन- गान-नर्तन-परौ प्रेमामृताम्भो-निधी धीराधीर-जन-प्रियौ प्रिय-करौ निर्मत्सरौ पूजितौ श्री-चैतन्य-कृपा-भरौ भुवि भुवो भारावहंतारकौ वंदे रूप-सनातनौ रघु-युगौ श्री-जीव-गोपालकौ नाना-शास्त्र-विचारणैक-निपुणौ सद्-धर्म संस्थापकौ लोकानां हित-कारिणौ त्रि-भुवने मान्यौ शरण्याकरौ राधा-कृष्ण-पदारविंद-भजनानंदेन मत्तालिकौ वंदे रूप-सनातनौ रघु-युगौ श्री-जीव-गोपालकौ श्री-गौरांग-गुणानुवर्णन-विधौ श्रद्धा-समृद्धि अन्वितौ पापोत्ताप- निकृंतनौ तनु-भृतां गोविंद-गानामृतैः आनंदाम्बुधि-वर्धनैक-निपुणौ कैवल्य-निस्तारकौ वंदे रूप-सनातनौ रघु-युगौ श्री-जीव-गोपालकौ *त्यक्त्वा तूर्णम् अशेष -मंडल-पति-श्रेणें सदा तुच्छ-वत् भूत्वा दीन* […] वहां , *तत्व तृण महेश्वस मंडल पदी* *श्रेणीम सदा तुच्छवत* षट गोस्वामी वृंदोने ऐशो आराम और धन दौलत और अपने-अपने बड़ी पदवी या स्थिती यह सब त्याग कर षट गोस्वामी वृंद वृंदावन में *संख्या पूर्वक नाम गाननतीही* संख्या पूर्वक नाम गान साधना कर रहे थे । *नतीही* पुन: पुन: धाम को भगवान को प्रणाम करते हुए , भजन कुटीर छोटी सी तो है लेकिन अधिकतर उनका भजन तो वृक्षो के नीचे ही होता रहा है । और फिर एक वृक्ष के नीचे अधिक समय बिताते भी नहीं , ज्यादा से ज्यादा 3 दिन , बहुत ही अच्छा स्थान है , छाया है या बिछाना है , हरियाली है , अच्छी घास है यहां मुझे लेटने के लिए , ऐसा सोच कर शायद वह उस स्थान से आसक्त होंगे ,इस विचार से वह फिर आगे प्रस्थान करते हैं । हम लोग तो ऐशो आराम बढ़ाते रहते हैं । हरि हरि । उसका विस्तार करते रहते हैं । हरि हरि । यह षट गोस्वामी वृंद ऐसे महात्मा थे । उनको तो कृष्ण चाहिए थे और कृष्ण मिलेंगे तभी आराम मिलेगा और यह बात ही सत्य है । हरि हरि । *कोपीन कंथाश्रीतो* बस कम से कम वस्त्र पहनते थे , कोपीन पहनते थे , थोड़े ही वस्त्र पहनते थे और कंबल है एक बस समाप्त । और जप माला है , कमंडलु है उनकी सारी सामग्री , संपत्ति , सुख सुविधा बस इतनी है । यह हमारे आचार्य है और उनमें से रूप गोस्वामी प्रधान है और हम रूपानुग कहलाते हैं । अनुग , उनके चरण कमलों का अनुगमन करते हुए हमें आगे बढ़ना है । परिक्रमा जब करते हैं तो यहां स्थान स्थान पर षट गोस्वामी वृंद की भजन कुटीर या विशेष लीला स्थली या फिर उनके समाधि मंदिर भी मिलते हैं , जो हमें स्मरण दिलाते हैं । वैसे हमें यह कृष्ण का ही स्मरण दिलाते हैं कि उनका जीवन कृष्ण प्राप्ति के लिए है । यहां संकेत नामक स्थान है , यहां राधा कृष्ण मिलते हैं । पहले मिले थे रावल गांव में ही जहां राधा रानी जन्मी थी । राधा रानी के जन्म दिवस पर राधा और कृष्णा मिले थे । पुनः अब जब बड़े हुए हैं और रावल गांव के निवासी बरसाना रहने के लिए आए हैं और नंदगोकुल के सारे गोकुल वासी अब नंदग्राम में रहने लगे हैं तो यह सारा अदल बदल होने के उपरांत अब जब मिलन होने जा रहा है राधा कृष्ण का तो वह मिलन स्थली है यह संकेत और वैसे इसी स्थान पर आकर वैसे मिलते नहीं , दूर से ही संकेत के साथ कुछ इशारों के साथ , कुछ मुद्राओं के साथ यह निर्धारित करते हैं कि आज का मिलन कहां ? भांडीरवन ? नहीं , नहीं , नहीं ! भांडीरवन नहीं । उसके बगल में ? वहां मिलेंगे । लक्ष्मी के वन में , बेलवन मे मिलेंगे । ठीक है । ठीक है । उनके अपने अपने संकेत के साथ संकेत होता है और निर्धारित किया जाता है कि आज की लीला इस वन में , आज की लीला उस वन में तो वही संकेत स्थली है । और कई सारी स्थलीया है । उद्धव बैठक भी है तो यही याद रखना होगा, परिक्रमा में यही बातें समझ में आती है कि जब हम पढ़ते हैं भागवतम में , श्रील प्रभुपाद की कृष्ण बुक में की उद्धव वृंदावन गए । उद्धव वृंदावन गए और वहां नंद बाबा , यशोदा को मिले और गोपियों में से भी मिले वहीं उद्धव बैठक है हमें यह समझना होगा की उद्धव वृंदावन गए मतलब कौन से वृंदावन गए ? नंदग्राम गए ऐसा समझना होगा । हमारे दिमाग में तो वृंदावन मतलब जो पंचकोशी वृंदावन है जहां केशी घाट है , जहां राधा मदन मोहन मंदिर है , कृष्ण बलराम मंदिर है श्रील प्रभुपाद ने बनाया है तो वह भी वृंदावन है जहा लोई बाजार है लेकिन भागवत में जब उल्लेख होता है वृंदावन जाने का , उद्धव आये वृंदावन गए फिर अक्रूर भी जाने वाले हैं कृष्ण बलराम को मथुरा लाने के लिए , वह भी गये रथ में बैठकर गए , वृंदावन गए तो कहां गए ? कौन से वृंदावन गए ? यह नंदग्राम वृंदावन गये यह समझना होगा । यहां पर उद्धव संदेश देते हैं , कृष्ण का संदेश है उसको उद्धव कहते हैं । लेकिन कृष्ण का संदेश है जो उन्होंने गोपियों को सुनाया उस स्थान पर जहा उद्धव बैठक नंदग्राम के पास ही है और यही वह भ्रमर भी आया तो उसको देखकर राधा ने भ्रमरगीत गाया । श्रीमद्भागवत के दशम स्कंद मे कई प्रसिद्ध गीत है । जैसे गोपी गीत है , वेणू गीत है या युगल गीत है उसी में एक भ्रमरगीत भी प्रसिद्ध है । भ्रमर को संबोधित करते हुए राधा ने जो गाया है वह भ्रमरगीत जहां राधा रानी ने गाया वह स्थली यह उद्धव बैठक है । ठीक है । अभी समय समाप्त हो रहा है , और फिर कई स्थलिओ का दर्शन करते हुए और फिर उप्पर बीच आप नंदग्राम का जो पहाड़ है यहां पर वैसे सारे गांव तो पहाड़ के ऊपर ही थे , सुरक्षित थे । वहां पर भी दर्शन है , नंदग्राम का वही मुख्य दर्शन है और पावन सरोवर भी है । आज का पड़ाव नंदग्राम मे ही होगा । फिर कल श्रील प्रभुपाद तिरोभाव महोत्सव जो है वह नंदग्राम में भी भक्त बनाएंगे आप भी मनाओगे । ठीक है । ब्रज मंडल परिक्रमा सभी भक्तों की जय! नंद ग्राम की जय! श्रील प्रभुपाद की जय! *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।* *हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।।*

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