Hindi

जप चर्चा 18 नवम्बर 2020 हरे कृष्ण!

ॐ अज्ञान तिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जन शलाकया। चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः।। अनुवाद:- मैं घोर अज्ञान के अंधकार में उत्पन्न हुआ था और मेरे गुरु ने अपने ज्ञान रूपी प्रकाश से मेरी आँखें खोल दी। मैं उन्हें सादर नमस्कार करता हूँ।

आज का दिन भी विशेष दिन है। पता है ना आपको? पद्मजा जानती हो? जगन्नाथ स्वामी, जानते हो? आज का दिन विशेष, महान है। हरि! हरि!

आज श्रील प्रभुपाद का तिरोभाव तिथि महोत्सव है। श्रील प्रभुपाद की जय!

जब श्रील प्रभुपाद ने प्रस्थान किया तब वैसे मैं श्रील प्रभुपाद के क्वार्टर अथवा बगल में ही था । वे, हमें पीछे छोड़ कर, आगे बढ़े। तब हमारे पास क्रन्दन करने के अतिरिक्त कुछ नहीं था।श्रील प्रभुपाद का क्वार्टर उनके विश्व भर के भक्तों व शिष्यों की उपस्थिति से पूरा भरा हुआ था। सभी तो नहीं थे लेकिन काफी उपस्थित थे। हम हरे कृष्ण हरे कृष्ण,कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे।। कह अथवा गा रहे थे। हम सभी साथ में गा रहे थे। वहाँ कोई एक भक्त लीड कर रहा है और दूसरे कोर्स में पीछे गा रहे हैं, ऐसा नही हो रहा था। सभी एक सुर में रो रहे थे और वो रोना भी गायन था और कृष्ण का नाम ही पुकार रहे थे। हरि! हरि!

वैसे शिष्य के जीवन में गुरु जैसा कोई और व्यक्तित्व नहीं हो सकता। इस संसार में हम कई लोगों के सम्पर्क में आते हैं और उनसे मिलते हैं, उनके साथ रहते हैं, उनसे सुनते हैं, यह संसार चलता रहता है। संसार करोड़ो लोगों से भरा पड़ा है। 'मिलियन्स और बिलियन्स ऑफ ह्यूमन बीइंगस।'

मेरा अनुभव रहा कि उनमें एक व्यक्ति अर्थात मेरे जीवन में श्रील प्रभुपाद ने जितना मुझे प्रभावित किया। श्रील प्रभुपाद जितना मेरे जीवन में बदलाव, परिवर्तन अथवा क्रांति लाए, ऐसा और किसी ने नहीं किया। हरि! हरि!

भाई थे, बहनें थी, निश्चित ही माता- पिता थे, बंधू थे, पड़ोसी थे, सहपाठी थे, ये थे, वे थे अर्थात दुनिया भर के लोग थे लेकिन एक व्यक्ति अर्थात श्रील प्रभुपाद ने मुझे प्रभावित किया। श्रील प्रभुपाद की जय!

श्रील प्रभुपाद सेनापति भक्त थे। वे गौरांग महाप्रभु के प्रतिनिधि थे। श्रील प्रभुपाद के पास मेरे लिए गौरांग महाप्रभु या श्री कृष्ण का संदेश था। श्रील प्रभुपाद ने मुझसे भी कहा, जब वे सभी को सम्बोधित कर रहे थे तब मुझे समझ में आया कि यह बात तो मेरे लिए ही कही जा रही है। श्रील प्रभुपाद ने वैसे कुछ अन्य विशेष बातें अथवा आदेश- उपदेश मेरे लिए ही कहे। प्रभुपाद ने मुझसे कहा कि "तुम तो पहले से ही सन्यासी हो, लेकिन क्या औपचारिकता को पूर्ण करना चाहते हो।" मैंने कहा- "हाँ, हाँ श्रील प्रभुपाद।" प्रभुपाद ने कहा- "ठीक है। वृंदावन जाओ। मैं वहाँ तुम्हें सन्यास दूंगा।" यह एक संवाद हुआ। वैसे मैंने पूरा ग्रंथ ही लिखा हैं- इन कन्वर्सेशन विद् श्रील प्रभुपाद।' जिसका हिंदी में 'गुरुमुख पद्म वाक्य' शीर्षक है। श्रील प्रभुपाद के साथ व्यक्तिगत रुप या कभी कुछ भक्तों के सङ्ग में संवाद अथवा प्रश्न उत्तर या आदेश उपदेश हमें सैकड़ों बार प्राप्त हुए।

हरि हरि!

श्रील प्रभुपाद ने वो सब बातें कही कि भगवान् की बात गुरुमुख पद्म वाक्य कही।

गुरुमुख पद्म वाक्य, चितेते करिया ऐक्य, आर न करिह मने आशा। श्रीगुरुचरणे रति, एइ से उत्तम-गति, ये प्रसादे पूरे सर्व आशा॥2॥

अर्थ:- मेरी एकमात्र इच्छा है कि उनके मुखकमल से निकले हुए शब्दों द्वारा अपनी चेतना को शुद्ध करूँ। उनके चरणकमलों में अनुराग ऐसी सिद्धि है जो समस्त मनोरथों को पूर्ण करती है।

श्रील प्रभुपाद की जय!

गुरु के मुखारविंद से निश्चित ही जो वचन थे, चितेते करिया ऐक्य, उसने मेरी चेतना अथवा विचारों को कुछ ऐक्य ( एकता) अथवा केन्द्रित किया। भगवान भी भगवत गीता में कहते हैं-

व्यवसायात्मिका बुद्धिरेकेह कुरुनन्दन । बहुशाखा ह्यनन्ताश्च बुद्धयोऽव्यवसायिनाम्।। ( श्री मद् भगवतगीता २.४१)

अनुवाद:- जो इस मार्ग पर (चलते) हैं वे प्रयोजन में दृढ़ रहते हैं और उनका लक्ष्य भी एक होता है | हे कुरुनन्दन! जो दृढ़प्रतिज्ञ नहीं है उनकी बुद्धि अनेक शाखाओं में विभक्त रहती है।

हम यह सोचते है, वह सोचते है। सब खींचातानी चलती रहती है। मन की दुविधा कि यह करें, यह ना करें चलता रहता है। ऐसे मन की स्थिति के विषय में श्रील प्रभुपाद या आचार्य गुरुवृन्द क्या करते हैं- चितेते करिया ऐक्य आर न करिह मने आशा। यही बात श्रील प्रभुपाद ने मुझ से भी कही थी। मैं, श्रील प्रभुपाद के साथ अकेला ही था। सन 1977 मुंबई में श्रील प्रभुपाद ने कहा- 'आर न करिह मने आशा।'

हम गुरु पूजा के समय जो गीत गाते हैं जिसे नरोत्तम दास ठाकुर ने लिखा हैं। श्रील प्रभुपाद ने उसे ही मुझे दोहराया और मुझे समझाया कि 'आर न करिह मने आशा।' हरि! हरि!

यार देख , तारे कह ' कृष्ण ' - उपदेश । आमार आज्ञाय गुरु हजा तार ' एइ देश ॥ ( श्री चैतन्य चरितामृत ७.१२७)

अनुवाद " हर एक को उपदेश दो कि वह भगवद्गीता तथा श्रीमद्भागवत में दिये गये भगवान् श्रीकृष्ण के आदेशों का पालन करे । इस तरह गुरु बनो और इस देश के हर व्यक्ति का उद्धार करने का प्रयास करो । "

श्रील प्रभुपाद ने मुझे सन्यास भी दिया और एक विशेष प्रकार का आदेश किया कि तुम पदयात्रा करो। बैल गाड़ी संकीर्तन करो। तुम वृंदावन से मायापुर जाओ। यह हो सकता है या सम्भावना है अथवा तुलना की जा सकती है। जब जीव गोस्वामी वृंदावन में थे तब तीन आचार्यों (श्याम नंद पंडित, नरोत्तम दास ठाकुर, श्रीनिवास) अर्थात जिनको हम आचार्य त्रयः भी कहते हैं, को कहा कि तुम बंगाल जाओ, मायापुर की ओर जाओ। नवद्वीप जाओ। उनको भी बैल गाड़ी से जाना था। बैल गाड़ी की क्या जरूरत थी? हमारे जो गौड़ीय वैष्णव ग्रंथ है, उन सारे ग्रंथो को गाड़ी में लोड करके गौड़ीय वैष्णव समाचार/ संदेश के रूप में गौड़ बंगाल या गौड़ देश में पहुंचाओ।जीव गोस्वामी ने ऐसा आदेश उन आचार्य त्रयः को दिया। कभी कभी मैं सोचता हूँ कि श्रील प्रभुपाद ने भी मुझे जो आदेश दिया, वह आदेश भी ऐसा ही था। जिस मार्ग पर वे आचार्य त्रयः (श्याम नंद, श्रील नरोत्तम दास ठाकुर और श्रीनिवास आचार्य) चले थे, उसी मार्ग पर हमें बैल गाड़ी से आगे बढ़ना था। उस कार्यक्रम अथवा उपक्रम का शुभारंभ श्रील प्रभुपाद की उपस्थिति में श्रील प्रभुपाद के क्वाटर वृंदावन में ही हुआ था। हम श्रील प्रभुपाद के चरणों में बैठे थे तब घण्टे भर के लिए उनसे कई सारी बातें हुईं। श्रील प्रभुपाद हमें और स्फूर्ति दे रहे थे अर्थात हमारा मार्गदर्शन कर रहे थे। अंत में उन्होंने फाइनल आदेश कहा- उन्होंने मुझे कहा यारे देख, तारे कह 'हरे कृष्ण ' - उपदेश । चैतन्य महाप्रभु ने कूर्म ब्राह्मण को कहा था- 'यारे देख , तारे कह ' कृष्ण ' - उपदेश' लेकिन श्रील प्रभुपाद ने थोड़ा परिवर्तन करके मुझे कहा- 'यार देख , तारे कह 'हरे कृष्ण ' - उपदेश।' कुछ भेद है और नही भी है, ऐसा कह सकते हैं।

मैंने समझा कि यारे देख, तारे कह 'हरे कृष्ण ' - उपदेश करो- हरे कृष्ण महामंत्र के प्रचार व प्रसार करो। श्रील प्रभुपाद ने ऐसा आदेश मुझे दिया। क्यों? प्रश्न पूछा जा सकता है ।

नमस्ते सारस्वते देवे गौर-वाणी प्रचारिणे निर्विशेष - शून्यवादी-पाश्चात्य- देश- तारिणे।

श्रील प्रभुपाद जब स्वयं ही गौरवाणी का प्रचार कर रहे थे। उनका गौरवाणी का प्रचार करने का उद्देश्य क्या था? पृथिवीते आछे यत नगरादि-ग्राम।सर्वत्र प्रचार हइबे मोर नाम।।

( चैतन्य भागवत) अर्थ:- पृथ्वी के पृष्ठभाग पर जितने भी नगर व गांव हैं, उनमें मेरे पवित्र नाम का प्रचार होगा।

श्रील प्रभुपाद इस भविष्यवाणी को सच करके दिखाना चाहते थे। तत्पश्चात उद्देश्य रहा- बैलगाड़ी से हमें यात्रा और प्रचार करना है या पदयात्रा करनी है। करना क्या है? श्रील प्रभुपाद कहते थे- यारे देख, तारे कह 'हरे कृष्ण' - उपदेश। जिससे अधिक से अधिक गांव व नगरों में हरि नाम का प्रचार बढे़। श्रील प्रभुपाद ने ऐसा प्रचार करने का आदेश- उपदेश भी मुझे किया। हरि! हरि! अन्य भी कई सारे उपदेश- आदेश दिए। आप उस ग्रंथ को पढ़िएगा। ' इन कन्वर्सेशन विद् श्रील प्रभुपाद या हिंदी में गुरु मुख पदम् वाक्य। अब अन्य कई भाषाओं में इस ग्रंथ को छापा जा रहा है। अन्य कई ग्रंथ भी हैं कि जब ग्रंथ की बात चल रही है, आप श्रील प्रभुपाद की गौरवगाथा सुनना चाहते ही हो। मैनें श्रील प्रभुपाद की गौरव गाथा और भी कई अन्य ग्रंथों में भी लिखी है। 'मायापुर वृंदावन फेस्टिवल' नाम का एक और ग्रंथ है। श्रील प्रभुपाद के समय वाले अर्थात श्रील प्रभुपाद जिन उत्सवों के केंद्र में रहते थे और उन उत्सवों में श्रील प्रभुपाद, हम सभी को स्फूर्ति प्रदान करते थे। वे उत्सव इस्कॉन अथवा हरे कृष्ण आंदोलन का बहुत बड़ा अंग रहे। मैंने एक मायापुर वृंदावन उत्सव ग्रंथ नामक लिखा है- आप उसको भी पढ़िएगा। मेरे प्रभुपाद अथवा मांझे प्रभुपाद नाम का भी एक ग्रंथ है जिसमें अधिकतर मेरी श्रद्धांजलियां जो व्यास पूजा के समय लिखी जाती है। वो उसमें प्रकाशित हुई हैं। अन्य भी कुछ गौरव गाथा कथा उसमें लिखी हैं।

मेरे प्रभुपाद में- प्रभुपाद द्वारा मुझे लिखे हुए कुछ पत्र भी प्रकाशित हुए हैं। एक और विशेष ग्रंथ कहूंगा- जो मुंबई के सम्बंध में है- बॉम्बे इज माई आफिस। प्रभुपाद कहा करते थे- बॉम्बे मेरा आफिस है, मायापुर मेरा तीर्थ है और वृंदावन मेरा घर है। बॉम्बे इज माई आफिस- जब मैनें इस्कॉन को जॉइन किया तब हमनें, श्रील प्रभुपाद के बॉम्बे ऑफिस को जॉइन किया। हम श्रील प्रभुपाद के ऑफिस के नौकर चाकर बने। उन्होंने हमें नौकरी दी। हम एक स्टाफ के रुप में आए। हम मुंबई में श्रील प्रभुपाद के सानिध्य में रहे और हम बम्बई के भक्तों व ब्रह्मचारियों को प्रभुपाद का बहुत संग मिला क्योंकि श्रील प्रभुपाद या हर व्यक्ति दफ्तर में अधिक समय व्यतीत करता है। श्रील प्रभुपाद भी मुम्बई में बहुत सारा समय बिताया करते थे। मैंने एक ग्रंथ लिखा है- उस ग्रंथ का नाम ही 'बॉम्बे इज माई आफिस' ( मुंबई मेरा ऑफिस) है। वह भी पढ़ने योग्य ग्रंथ है जिसमें आपकी प्रभुपाद के साथ मुलाकात या आपका अधिक परिचय प्रभुपाद से होगा। मैंने, श्रील प्रभुपाद को किस प्रकार समझा। प्रभुपाद का सानिध्य या प्रभुपाद का मार्गदर्शन किस प्रकार मुंबई में प्राप्त हुआ या प्रभुपाद की दिनचर्या अर्थात वे प्रात:काल से सायं काल तक कैसे दिन बिताया करते थे। उनको मुंबई में हरे कृष्ण भूमि के लिए कितना अधिक संघर्ष करना पड़ा। एक दृष्टि से वह कुरुक्षेत्र का मैदान हुआ। वहाँ महाभारत जैसा युद्ध चल रहा था। वहाँ जिस मालिक ने, प्रभुपाद को जमीन की भूमि बेची थी।....

वह सब संघर्ष की बात है। ये इस्कॉन के प्रारंभिक दिन थे। प्रभुपाद व उनके शिष्यों या उनके अनुयायियों को भारतवासी नही समझ रहे थे और ना ही समझना चाहते थे। यह सब बातें आप बॉम्बे इज माई ऑफिस में पढ़ सकते हो। ठीक है, मैं यहां रुक जाता हूँ। वैसे मैं दिन में भी शब्दांजलि मंदिर में संस्मरण या गौरवगाथा कहूंगा। उस समय भी मैं कहने वाला हूँ। इसलिए मैनें सोचा था कि हम आप से भी सुन सकते हैं व औरों को सुना सकते हैं।

आप में से कोई भक्त, वैसे तो आप सभी भी प्रभुपाद से प्रभावित हुए ही हो। यदि प्रभुपाद नही होते तो क्या होता। कल्पना भी नही कर सकते। प्रभुपाद ने कैसे आपका जीवन में प्रभाव डाला है या आप कैसे लाभान्वित हुए हैं इत्यादि-इत्यादि। आप में से कुछ भक्त एक या दो मिनटों में शब्दांजलि कर सकते हैं। चलिए प्रारंभ करते हैं।

English

Russian