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17/06/2019 हरे कृष्णा! आज हम नोएडा में हैं। कल हमने यहां नोएडा में स्नान उत्सव बहुत धूम -धाम से मनाया। आज जगन्नाथपुरी में औपचारिक रूप से स्नान यात्रा उत्सव मनाया जाएगा। जगन्नाथपुरी धाम की जय! आज जगन्नाथ धाम में स्नान यात्रा प्रारम्भ हो रही है और दो सप्ताह के उपरांत भगवान जगन्नाथ की सुन्दर दिव्य रथयात्रा भी होगी। अब से जगन्नाथपुरी में उत्सवों का एक क्रम शुरू हो रहा है और आज का उत्सव उस क्रम की एक शुरुआत मात्र है। आज के दिन स्नान यात्रा मनाने का मुख्य कारण यह है कि आज ही के दिन भगवान कृष्ण स्वयं जगन्नाथ जी के रूप में प्रकट हुए थे। कुरुक्षेत्र में सूर्य ग्रहण के समय वृन्दावनवासी और द्वारकावासी दोनों ही एकत्रित हुए। रोहिणी मईया द्वारकावासियों को ब्रजवासियों की स्थिति के बारे में बता रही थी कि ब्रजवासी कृष्ण के विप्रलम्ब या उनके विरह में कैसा अनुभव करते थे और उनके जाने के उपरांत उनकी कैसी दशा हुई। रोहिणी जी (बलराम जी की माता) अपने व्यक्तिगत अनुभव ब्रजवासियों की ओर से द्वारकावासियों को आदान - प्रदान कर रही थी। मैं अभी उस कथा को डिटेल में नहीं बताना चाहता हूं , लेकिन आप को ज्ञात होगा कि रोहिणी मैया ने सुभद्रा जी को यह सेवा दी कि वे द्वार पर खड़ी हो जाए और इस बात का ध्यान रखें कि कृष्ण और बलराम इस वार्ता को न सुन पाए और उनको अंदर आने से भी रोक दे। रोहिणी माता सोच रही थी कि यदि कृष्ण बलराम इस बहुत ही दिव्य और आध्यात्मिक विप्रलम्ब भाव वार्ता को सुनेंगे तो निश्चित रूप से वे इस वार्ता को सुनकर बहुत ही ज्यादा दुखी और बहुत ही अचम्भित हो जाएंगे। इसलिए वह नहीं चाहती थी कि कृष्ण और बलराम उनकी इन वार्ताओं को सुने l सुभद्रा जी को द्वार पर खड़ा कर, जब रोहिणी जी अपना सम्बोधन प्रारंभ कर रही थी, तभी कृष्ण और बलराम जी अनायास वहाँ पहुँच गये। सुभद्रा जी ने उन्हें बताया कि आप अंदर प्रवेश नहीं कर सकते। उन्होंने सुभद्रा मैया (जो उनसे छोटी थी) की बात को अनसुना कर दिया और कहा," ठीक है।हम अंदर नहीं जाएंगे परन्तु हम यहाँ खड़े होकर वार्ता तो सुन ही सकते हैं"। कृष्ण, बलराम और सुभद्रा वहाँ खड़े होकर वार्ता को सुनने लगे और जैसे ही रोहिणी माता के मुख से ब्रजवासियों का अपने प्रति प्रेम का उदगार सुना, वे अपने हृदय में एक विशेष प्रकार का कष्ट और ब्रजवासियों के प्रति विप्रलम्ब का अनुभव करने लगे। ब्रजवासियों की दशा को सुन कर उनके बाह्य रूप में विशेष प्रकार का परिवर्तन होने लगा। भगवान कृष्ण ने जगन्नाथ जी का, बलराम जी स्वयं बलदेव और सुभद्रा देवी का रूप ग्रहण किया। उन तीनों का ही विशेष प्रकार का रूप प्रकट हुआ। कुरुक्षेत्र में भगवान कृष्ण ने जब बृजवासियों का अपने प्रति प्रेम , तथा विरह में हुई उनकी विप्रलम्ब दशा को सुना, तब भगवान कृष्ण की जो दशा हुई, वह आज ही के दिन मनाई जाती है और यह हमें कुरुक्षेत्र में हुई घटना का स्मरण भी कराती है। यह घटना भगवान की एक लीला थी जो संक्षिप्त रूप में यहां बताई गयी है। इस प्रकार से कृष्ण ने जगन्नाथ जी के रूप में, बलराम जी ने बलदेव के रूप में और सुभद्रा देवी के रूप में आए। पुनः कुछ देर पश्चात वे अपने वास्तविक स्वरूप में आ गए लेकिन ब्रजवासियों की दशा को सुनकर, जो भगवान का रूप प्रकट हुआ था, वह रूप शाश्वत रूप से स्थापित हो गया। भगवान की प्रत्येक लीला शाश्वत, आध्यात्मिक, पूर्ण रूप से दिव्य होती हैं। यह लीला भी भगवान की दिव्यतम और पूरी तरह से शाश्वत हो गई। आज भी इस लीला का यशोगान पूरे संसार में किया जाता है। श्रील प्रभुपाद की कृपा से आज भगवान जगन्नाथ पूरे संसार मे फैले हुए हैं और उनकी लीला भी पूरे संसार में भक्तों के द्वारा गायी जा रही है पूरे संसार में भक्त आज भगवान जगन्नाथ का स्मरण कर रहे हैं।श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने स्वयं जगन्नाथ बलदेव, सुभद्रा की उपासना की और उन्होंने इसको अपने जीवन में प्रमुखता देते हुए अपने जीवन की आखिरी लीलाओं को जगन्नाथपुरी में ही किया। जगन्नाथ भगवान ही उनके प्रकट या साक्षात पूर्ण आराध्य विग्रह थे। जगन्नाथपुरी में रहकर जब हम भगवान जगन्नाथ का दर्शन करते हैं, पूरा संसार भगवान जगन्नाथ का दर्शन करता है। श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने भगवान जगन्नाथ का दर्शन किया। हम जिस रूप में भगवान जगन्नाथ के दिव्य दर्शन करते हैं परंतु वास्तव में पूरा संसार, भगवान जगन्नाथ का दर्शन उस रूप में नहीं कर पाता है लेकिन सौभाग्य से हम लोग गौड़ीय वैष्णव हैं। श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु के कृपा से हम वास्तव में समझ पाते हैं कि स्वयं भगवान जगन्नाथ क्या हैं और इस रूप के पीछे का रहस्य क्या है। भगवान जगन्नाथ का वास्तविक दर्शन गौड़ीय वैष्णव ही कर पाते हैं। जब हम भगवान जगन्नाथ का दर्शन करते हैं, तब हम भगवान के उस रूप को वास्तव में देखते हैं जिसमें कि भगवान यह दर्शाना चाहते हैं कि वह अपने भक्तों से कितना प्रेम करते हैं। पिछले दिनों जब हमने दुर्वासा मुनि के विषय में सुना था और भगवान दुर्वासा मुनि से कह रहे थे कि साधवो ह्रदयं मह्यं साधूनां ह्रदयं त्वहम्। मदन्यते न जानन्ति नाहं तेभ्यो मनागपि।। (श्री मद्भगवतम 9.4.68) शुद्घ भक्त सदैव मेरे हृदय में रहता हैं और मैं शुद्ध भक्तों के हृदय में सदैव रहता हूं। मेरे भक्त मेरे अतिरिक्त और कुछ नहीं जानते और मै भी उनके अतिरिक्त और किसी को नहीं जानता। यह वास्तव में भगवान का अपने भक्तों के प्रति उदगार है। भगवान का भक्तों के साथ बहुत ही प्रगाढ़ प्रेम सम्बंध है, उसका स्मरण करना चाहिए। जब हम भगवान के दिव्य रूप को देखते हैं और भगवान से कहते हैं कि भगवान मैं आपसे प्रेम करता हूँ। हम भगवान का जिस रूप में दर्शन लेते हैं, भगवान भी अपने उसी रूप को हमारे समक्ष प्रस्तुत करते हैं। भगवान भी वास्तव में अपने भक्त से बहुत प्रेम करते हैं। यह एक प्रकार से दो तरफ का ट्रैफिक एक्सचेंज जैसा है। हम गौड़ीय वैष्णव ही भगवान का दर्शन करते हैं और कहते हैं कि भगवान मै आपसे बहुत प्रेम करता हूं। भगवान जगन्नाथ जी का विग्रह रूप भी अपने भक्तों से बहुत जोर से कहता है कि मै भी आपसे बहुत प्रेम करता हूँ। यह भगवान और भक्त के बीच का बहुत पारस्परिक और प्रेम पूर्ण आदान प्रदान है। जब हम भगवान जगन्नाथ का दर्शन करते हैं, तब हम देखते हैं कि भगवान के चरण पूरी तरह से उनके शरीर के अंदर धँस गए हैं परंतु भगवान के हस्त, कोहनी तक ही शरीर के अंदर गए हैं।और उसके आगे के हाथ के बारे में आचार्य जन बताते हैं कि हाथ इसलिए बाहर है ताकि भगवान अपने भक्तों को उठा सके, उनका आलिंगन कर सकें जैसे एक माँ अपने बच्चे को गोद में उठा कर उसका चुम्बन लेती हैं, उसका आलिंगन करती है उसको बताती है कि मै तुम्हारे लिए हूं। इसी प्रकार से भक्त जब भी भगवान का दर्शन करने आते हैं, भगवान उनको बताना चाहते हैं कि मैं तुम्हारे साथ हूं, मैं तुम्हें इस भवसागर से निकाल दूंगा। भगवान अपने दर्शन के माध्यम से भक्तों को बहुत ही आनंद देते हैं और अपने दोनों हस्तों के द्वारा उनको समीप लाते हैं। गौड़ीय वैष्णव हरे कृष्ण महा मंत्र का जप करते हैं - हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे l हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ll इस महामंत्र से हम कृष्ण के प्रति अपनी चेतना को पुनः स्थापित करते हैं। इस प्रकार से भगवान हमसे प्रेम करते हैं। भगवान जगन्नाथ जी के रूप, दिल को समझने से यह समझ जाते हैं कि भगवान किस प्रकार से वृहद हस्त हमारी तरफ बढ़ाये हुए हैं और हम यह तभी समझ पाते हैं,जब हम ध्यान पूर्वक हरे कृष्ण महा मंत्र का जप और कीर्तन करते है तो जैसा कहा जाता है "प्रेम सो पार्थो महान " मनुष्य जीवन का परम् लक्ष्य अर्थात भगवान का दिव्य प्रेम हमें तभी प्राप्त हो सकता है, जब हम हरे कृष्ण महामंत्र का जप बहुत ध्यान पूर्वक करते हैं और हम भगवान जगन्नाथ का दर्शन, पूजा, सेवा, उनकी स्नान यात्रा उत्सव, रथयात्रा इत्यादि का आयोजन करते हैं या उसमें भाग लेते हैं। इस प्रकार हम भगवान के प्रति अपने गुप्त प्रेम का विकास करते हैं। आज आप किसी भी स्थान से स्नान यात्रा में भाग ले सकते हैं। कुछ भक्त आज के दिन जगन्नाथ पुरी में, कई भक्त इस्कॉन के मंदिरो में जहाँ भी जगन्नाथ भगवान का विग्रह है, अन्यथा घरों में जिनके पास जगन्नाथ बलदेव, सुभद्रा जी के विग्रह हैं,वह अपने घर पर भगवान की स्नान यात्रा का आयोजन कर सकते हैं एवं भगवान के विषय में कथा सुन सकते हैं। आज हमारे साथ में जप करने वाले प्रतिभागियों की संख्या 627 के करीब है। आप सब को स्नान यात्रा दिव्य उत्सव के लिए बहुत बहुत बधाई। आप इसको मनाईये। हमें स्नान यात्रा या जगन्नाथ यात्रा के साथ हर समय हरे कृष्ण महामंत्र का जप करना चाहिए अर्थात हमें हरे कृष्ण महा मंत्र का जप सदैव ही करते रहना चाहिए तभी हम वास्तव में यह जो यात्राएँ और उत्सव है इनका सही अर्थ समझ पाएंगे l गुरु महराज की जय ! जगन्नाथ स्नान यात्रा महोत्सव की जय !

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17th June 2019 Snana Yatra We are in Noida. Yesterday we celebrated snana yatra here. Official snana yatra festival is today in Jagannath Puri, Jagannath Puri dhama ki jai. They must be getting ready for maha maha bathing abhsihek- snana yatra of Jagannath Baladev Subhadra today. Today, as I said snana yatra as I said earlier, leading later in two weeks time there will be ratha yatra festivals. Series of yatras and festivities and today is beginning of those festivities in Jagannath Puri, snana yatra of Lord Jagannath. Why snana yatra done on this day in Jagannath? Reason being today is the day when Krishna manifested as Jagannath. We expect you to know the pastime which took place in Kurukshetra. When Dwarkavasis and Vrindavanvasis had assembled and Rohini was narrating to the Dwarkavasis about the state of affairs of devotees of Vrindavan specially how they had been missing Krishna. This she has been narrating to residents of Dwarka. Rohini, of course, the mother of Balarama was sharing the realizations, the experiences on this day to Dwarkavasis in Kurukshetra. As she was about to begin her narration, she did not want Krishna Balarama to hear this narration. She appointed Subhadra at the door, and was told not to allow Krishna and Balarama. Rohini was thinking that Krishna and Balarama They will not be able to handle or tolerate. They could be disturbed hearing the transcendental suffering of Vrajavasis. This would be too much for Them to hear this. So Rohini never wanted that Krishna Balarama to hear these pastimes. So Rohini’s was addressing and Subhadra was at the door Krishna and Balarama for sure came at the door. Subhadra did try to stop Them but They overpowered her. They said ‘ok We will not go inside but We could stand at the door.’ And Krishna Balarama and Subhadra heard about the residents of Vrindavan. Now all the three are hearing the pastime as Rohini had predicted They could not handle that was too much for Them to digest. There was agitation in Their hearts. Externally, They were getting transformed there was change in Their whole personality and form. Krishna becoming Jagannath with Balarama and Subhadra. So, this form They assumed as They heard Rohini speak about devotees in Vrnidavan. And that transformation as I said earlier happened today. Krishna assuming form of Jagannath, we could say it’s lila of Krishna appearing as Jagannath took place today. Hence, snana yatra takes place today. So, this was just one pastime one episode that was briefly narrated to you and that happened today and lasted for a while then They assumed Their normal regular forms. The form that Krishna Balarama and Subhadra had assumed as They were hearing Rohini that became immortalized as it's said every lila of Lord is eternal. This was one lila that took place on this day. Lord Krishna is worshipped in Jagannath Puri as Jagannath. And by the arrangement of Srila Prabhupada and Hare Krishna movement, Jagannath Swami is remembered and worshipped all over the world. We all are devotees of Jagannath, worshippers of Jagannath because Caitanya Mahaprabhu worshiped Jagannath, Baladev, Subhadra or He preferred to perform His last pastimes in Jagannath Puri. So, when we of course, whole world takes darsana and then Gaudiya vaisanavas take darsana. Caitanya Mahaprabhu takes darsana. What do we see when we take darsana of Jagannath? What is that darsana reminding us of? The whole world does not understand but Jagannath gives the darsana or true darsana to Gaudiya vaisanavas, as we take darsana or try to understand Jagannath through the vision of Sri Krishna Caitanya Mahaprabhu. To understand Jagannath or as we take darsana what reminders He is giving to us? He loves His devotees so much. The other day we were talking, Lord was saying to Duravasi Muni, sādhavo hṛdayaṁ mahyaṁsādhūnāṁ hṛdayaṁ tv aham mad-anyat te na jānanti nāhaṁ tebhyo manāg api [SB 9.4.68] The pure devotee is always within the core of My heart, and I am always in the heart of the pure devotee. These are feelings of the Lord. And these feelings are exhibited, manifested in the form of Jagannath. This is what is in our minds as we take darsana of Lord, who is He is thinking of? So, we say I love the Lord, you all love the Lord but as we take darsana, Lord is showing us or expressing us communicating that I love My devotees. This is two way traffic, this love this exchange. It's not that living entity only loves Krishna but Lord doesn't love us. No!Lord is showing I love My devotees. He says I love My devotees. So this is the darsana we are getting on Jagannath Puri. So, when we take darsana of Jagannath His feets they have entered the truck. His main body but half of the hands are still out from elbows. So, when we take darsana, why is He is extending His hands forward. Some realizations of the acaryas, Lord is trying to pick the child, embrace the child, kiss the child. Lord is extending His hands to love us, accept us and embrace us. Those Gaudiya vaisnavas who chant, chanting this Hare Krishna maha mantra this revives our love for Krishna resulting in understanding Jagannath, understanding the form of Jagannath, understanding heart of Jagannath, understanding what is on the mind of Jagannath thus having two way communication or reciprocation with Jagannath. This is the result of chanting and hearing about Jagannath. prema pumartho mahan Attaining love of Godhead is goal of human form of life that is achieved by chanting Hare Krishna, worshipping Jagannath, serving Jagannath, performing snana yatar of Jagannath and performing ratha yatra of Jagannath. Thus, by chanting and worshipping Jagannath we achieve love of Godhead. So you may be taking part in snana yatra wherever you may be. Some devotees must have reached Jagannath Puri or at your homes if you have Jagannath deities take part in snana yatra. Hear the pastime, perform snana yatra. Today we have 627 devotees are chanting with us. Congratulations and best wishes on snana yatra. Every snana yatra, ratha yatra is incomplete without chanting of Hare Krsna mantra. Chanting accompanies all other activities. Jagannath snana yatra mahotsava ki jai!

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