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जप चर्चा दिनांक 16 नवंबर 2021 हरि हरि!! आप सब लोग सुन ही रहे हो, हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। तो आप लोग जप करते रहिए। श्रवण: कीर्तन जले कर: शेचन, इस प्रकार आपको याद भी दिलाया जाता है। ब्रह्माण्ड भ्रमिते कोन भाग्यवान जीव। गुरु-कृष्ण प्रसादे पाय भक्ति-लता बीज।। ये सब आप लोग जानते हो या कई बार सुन रखा है। भक्ति-लता बीज! आपको प्राप्त हो चुका है या आप लोग तैयारी में हो कि आपको भक्ति-लता बीज का रोपण हो या दीक्षा के समय औपचारिक रुप से उसका रोपण होता है और फिर आपकी जिम्मेदारी बनती है की उस बीज की रखवाली करे और बीज को बीज ना रखे, बीज अंकुरित हो, फिर वृक्ष बने और फल भी लगे। तो इसके लिए किस की जरूरत है। श्रवण: कीर्तन जले कर: शेचन, ऐसा बंगला भाषा में कहा गया है। तो ये बहुत अधिक महत्वपूर्ण है, हरेर नामैव केवलम! भी कहा ही है। नाम नाचे जीव नाचे, नाचे प्रेम धन! तो इस प्रकार जब हम अभ्यास करते रहेंगे, अभ्यास मनुष्य को पूर्ण बनाता है, साधना से सिद्ध होगे हम, तो फिर उसका लक्ष्य क्या है? नाम नाचे जीव नाचे, नाचे प्रेम धन! नाम नाचने लगेगा, नाम नाचेगा मतलब नाम भगवान है। अभिन्नत्वा नाम नामिनो, नाम और भगवान अभिन्न है। नाम नाचे, मतलब भगवान हमारी जिह्वा पे नाचने लगेगे और जीव नाचे, और हम लोग भी भगवान के साथ नाचने लगेगे। श्रील प्रभुपाद कहा करते थे की हमारा लक्ष्य है कि हम लोग राधा कृष्ण की रास क्रीड़ा या माधुर्य लीला या व्रज लीला में प्रवेश कर के इस व्रज लीला या व्रज धाम का अनुभव करे। हरि हरि! तो यहां सोलापुर में कुछ दिनों से उत्सव संपन्न हो रहा था और आज प्रातः कालीन मंगला आरती के साथ राधा दामोदर की पहली मंगला आरती हुई। और में सोचता हूं इसी के साथ इस उत्सव का समापन हो रहा है। तो ये उत्सव यशस्वी रहा और भगवान प्रकट हुए तो अब हमे भगवान की सेवा करनी है। कृष्ण ने भगवद गीता में कहा है, मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु। गीता के अंत में भगवान ने कहा कि है अर्जुन अब में तुमको गुह्यतम बात कहूंगा। भगवान ने कुछ गुह्य बाते कही, कुछ गुह्यतर बाते कही और अब में तुमको गुह्यतम बात कहूंगा। ऐसा कह कर फिर भगवान ने कहा, मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु। मामेवैष्यसि सत्यं ते प्रतिजाने प्रियोऽसि मे।।18.65।। तो जब भगवान के विग्रह प्रकट होते है तो फिर ये करना ’मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु’ आसन होता है। भगवान बहुत सुंदर है। मन्मना भव मद्भक्तो, सदैव मेरा चिंतन करो और मेरे भक्त बनो। मद्याजी, मेरी आराधना करो। श्रीविग्रहाराधन-नित्य-नाना श्रृंगार-तन्-मन्दिर-मार्जनादौ। युक्तस्य भक्तांश्च नियुञ्जतोऽपि वन्दे गुरोःश्रीचरणारविन्दम्॥ तो फिर आराधना करो, विग्रह ही भगवान है और आज सुबह ही मंगला आरती में जब में श्रोताओं को संबोधित कर रहा था तो मेने कहा कि विग्रह की आराधना करने से पाप नष्ट हो जाते है। मां नमस्कुरु, मुझे नमस्कार करो। भगवान को नमस्कार करना भी सिखाए श्रील प्रभुपाद। जैसे ही हम लोग मंदिर में प्रवेश करते है तो विग्रह देखते ही हम लोग नमस्कार करते है। विग्रह को देखते ही, ओह कृष्ण यहां है, सर्व कारण कारणम, हम लोग कृष्णभावना भावित हो जाते है। तो हम नमस्कार करते है और बारंबार नमस्कार करते है। कई बार लोग मंदिर में आते है और विग्रह को नमस्कार नही करते है, उनको अनदेखा कर देते है। बस अपने परिवार को देखते रहते है और अपनी ही कुछ गपशप या राम कथा करते रहते है। तो विग्रह के प्राकट्य से ये आसन होता है, मन्मना,मेरा चिंतन करो, मद्भक्तो, मेरे भक्त बन जाओ, मद्याजी, मेरी आराधना करो, नमस्कुरु, मुझे नमस्कार करो। श्री कृष्ण करुणा सिंधू या करुणा निधान, तो भगवान विग्रह के रुप में प्रकट हो कर तुमको अपना सानिध्य या अपनी सेवा प्रदान करते है। या तुमको अपने धाम ले जाने के लिए भगवान प्रकट होते है। विग्रह के रूप में प्रकट हो कर जो छप्पर फाड़ के भगवान हम लोगो को अपनी कृपा दे रहे है तो हमे उनकी कृपा का पात्र होना चाहिए। तो आज हम यही विराम देते है। निताई गौर प्रेमानंदे, हरि हरि बोल।।

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