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11th जुलाई 2019 हरे कृष्ण आज जप करने वालों की संख्या हमारे साथ 394 ही है। भक्तों की संख्या इसलिए कम हो गई है क्योंकि अधिकांश भक्त हमारे साथ ही यहां पंढरपुर में हैं। मैंने कल कहा था कि हम लोग धाम में आते हैं हरे कृष्ण महामंत्र का जप करने के लिए। मैं आपको बताता रहता हूं कि प्रात:काल के जप की तैयारी एक रात पहले1 दिन पहले बल्कि कई दिन पहले से आज के दिन की जप की पूर्ण तैयारी करनी चाहिए। जप करना है तो ध्यान पूर्वक जप करें, जप कैसा करना होता है ध्यान पूर्वक जप, तो उसकी तैयारी अवश्य करें। हम लोग जप के लिए बैठते हैं, फिर ध्यान पूर्वक जप करने की चिंता करते हैं, कुछ प्रयास करते हैं, वो भी होना चाहिए किंतु तैयारी हमें 1 दिन पहले से करनी चाहिए। कल प्रात:काल मुझे जप करना है, मुझे कैसा जप करना है, ध्यान पूर्वक जप करना है। आज मुझे क्या-क्या करना चाहिए, कैसे कैसे करना चाहिए, कार्य है, सेवा है। ताकि कल जब मैं जप के लिए बैठूंगा तो मेरा ध्यान पूर्वक जप होगा। क्या मेरे मन की स्थिति अनुकूल होगी, मन तो चंचल है। चंचलता कुछ तो कम होगी आशा तो है प्रयास तो है। चंचलं ही मन:कृष्ण BG 6.34 अर्जुन ने घोषित किया कि मेरा मन बड़ा चंचल है। अर्जुन का ही मन चंचल था, या हमारे मन भी चंचल है। यह सभी का अनुभव है, मन तो मन ही है। मन क्या है मन एक तत्व है:-पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, मन बुद्धि अहंकार। भूमिरापोनलो वायु BG 7.6 यह एक प्रकृति है, मन भी एक एलिमेंट है, धातु है, प्रकृति का अंग है । मन का अपना लक्ष्य है, मन तो मन है, इंडियन माइंड ,अमेरिकन माइंड। तो मैं सोच रहा था कि आज आपका जप कैसा रहा, आप तो हरि बोल ही कहते हैं। धाम में जप ध्यानपूर्वक होना चाहिए। जहां तक पूर्व तैयारी की बात है कल रात तैयारी की, कल संध्या काल में तैयारी की, कल दिन भर हम व्यस्त रहे। हमे कितना साधु संग प्राप्त हुआ, विट्ठल भगवान का भी दर्शन करके आए। नित्यानंद प्रभु की चरण पादुकाओं का आगमन हुआ, चंद्रभागा में हमने स्नान किया। षडविधम प्रीति लक्ष्णम उपदेशामृत 4. भक्तों को हमने कुछ भेट दी उन्होंने स्वीकार भी की। हम सभी कल कार्यक्रम के अंत तक रहे पूरे दिन भर फिर हमने नरसिंह भगवान का ड्रामा भी देखा, उनकी गर्जना भी सुनी। हमने कल भोजन भी किया भक्तों के साथ और प्रसाद भी खिलाया। यह सब तैयारी है जो हमें आज के प्रातः काल जप में मदद करेगी, मदद हुई ही होगी आपको। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे। । उत्सव है तो इतनी सारी व्यवस्था करने के लिए मैनेजर भी हैं। फेस्टिवल के मैनेजमेंट संगठन का आयोजन हो रहा है, भक्तों का आगमन हो रहा है। भक्तों की आवास निवास की तैयारी में इस्कॉन पंढरपुर के सारे भक्त गण, अधिकारी और भी कई सारे भक्त व्यस्त हैं। व्यवस्था के मध्य में जप तो करना ही है, ऐसा मैं सोच रहा था। हमें मिनिमम 16 राउंड्स करने ही हैं। कुछ भक्तों ने संकल्प लिया है तो उत्साह के साथ, निश्चय के साथ, धैर्य के साथ जप तो करना ही है । करना है कि नहीं,श्रील प्रभुपाद की कृपा दया से। नित्यानंद प्रभु की कृपा दया प्रेरणा शक्ति से मैंने हर दिन जप किया है। 1972 से 2019 कितने साल, कितने महीने, कितने सप्ताह, कितने दिन अगर मल्टीप्लाई करेंगे तो कितने दिन हुए उसका पता लग सकता है। सारे दिन मैने मिनिमम 16 राउंड्स का जप किया है और कुछ काम धंधा नहीं है, ऐसी बात नहीं है। निर्जन भजन भी जीवन है ऐसा तो इस्कॉन में हो ही नहीं सकता। श्रील प्रभुपाद ऐसा नहीं किया और हमें भी ऐसा करने के लिए प्रेरणा नहीं दी। ऐसा आदर्श प्रभुपाद ने हमारे समक्ष नहीं रखा। हमको व्यस्त ही रखा 24 घंटे इन्क्लूडिंग मैनेजमेंट। जारे देखो तारे कहो कृष्ण उपदेश ये तो करना ही होता है। सब देशों में पदयात्रा और उस समय भी बहुत व्यस्त रहना पड़ा। प्रभुपाद का जन्म शताब्दी महोत्सव था उसकी भी तैयारी कर रहे थे। हम लोग 4 साल से प्रभुपाद के जन्म शताब्दी महोत्सव कि तैयारी कर रहे थे और फिर पांचवे साल पूरा साल उत्सव मनाया। 1996 में उस समय कितना व्यस्त में रहा,रहना पड़ा, लेकिन मैंने कभी जप नहीं छोड़ा। प्रतिदिन मैंने हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। ऐसे मैंने प्रतिदिन जप किया। उस समय की मुझे बात याद आती है जो कि मैं भूल नहीं सकता। मैं जब दिल्ली में था, दिल्ली मंदिर का अध्यक्ष ( टेंपल प्रेसिडेंट ऑफ इस्कॉन न्यू दिल्ली) 1978, 1979 और 1980 में एक समय मै बहुत बीमार था । तो जब में बहुत बीमार था तो उस दौरान शायद 2 या 3 दिन मेरा जप नहीं हुआ। सिर्फ उन्हीं तीन दिनों में मेरा जप नहीं हुआ। जब से मेने संकल्प लिया है सिर्फ उन्हीं तीन दिनों में मैंने जप नहीं किया सिर्फ उन्हीं तीन दिनों को छोड़ के मैंने प्रतिदिन जप किया है। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। आप सभी ने संकल्प तो लिया ही है जब दीक्षा होती है तो सब कहते हैं कि हम 16 माला रोज करेंगे प्रतिदिन न्यूनतम 16 माला करेंगे। मैं यह संकल्प ले रहा हूं ऐसा हम बोलते हैं। उसे भी ना भूलिए। जो भी हम करते हैं इस्कॉन में , जब मैंने कहा इस्कॉन में , आप सभी इस्कॉन में हो आप कोई फूल टाइम डीवोटी हो, कोई सन्यासी हो, हम है या में हूं। आप हो या नहीं हो इस्कॉन में, इस्कॉन आप सभी का है । आप सभी इस्कॉन के मेंबर हो सदस्य हो । हरेर्नामेव केवलम कलो नास्तेव नास्तेव नास्तेव गतिरन्यथा, इस्कॉन को कहते है हरे कृष्ण मूवमेंट। हम लोग हरे कृष्ण लोग के नाम से जाने जाते हैं हरे कृष्ण पीपल। वो देखिए हरे कृष्ण पीपल हम कैसे है हरे कृष्ण पीपल, ये लोग कौनसे लोग है हरे कृष्ण लोग है। हमारी पहचान ही क्या है हम हरे कृष्ण लोग है। दुनिया को हमने नहीं कहा कि हमें हरे कृष्ण लोग कहो। बस ये हरे कृष्ण करते रहते हैं कुछ काम धंधा नहीं है बस हरे कृष्ण करते रहते हैं और ये अच्छी पहचान है। हमारा संबंध सीधे हरे कृष्ण के साथ है ये हरे कृष्ण लोग। यह सदैव हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।। कीर्तनिया सदा हरी। सततं किरतयंतो मां BG 9.14 भगवान कृष्ण कन्हैया लाल की जय। कुरुक्षेत्र में भी भगवान ने कहा आदो मध्ये अन्ते हरि सर्वत्र गीयते मेरे भक्त क्या करते हैं सदा कीर्तन करते हैं, मेरी कीर्ति का गान करते हैं। दृढ़ संकल्प लेते हैं। दृढ़ संकल्प के साथ कीर्तन करते हैं। कभी कभी तो हरे कृष्ण हरे कृष्ण किस्न कीस्न हरे हरे, कैसे जप करते है किस्न किस्न हरे हरे। जप करने के लिए हर क्षण हमको कीर्तन करना है । हरे कृष्ण हरे कृष्ण करना ये भी कीर्तन ही हुआ और भगवान कि कीर्ति का गान भी। भागवतम में भी कीर्ति है। हरी सर्वत्र गियते तो गीता, भागवतम, चैतन्य चरितामृत , रामायण, महाभारत इसमें भगवान की कीर्ति का गान है, यह भी भगवान की कीर्ति है। हरे कृष्ण महामंत्र भी कीर्ति है गान है, जो भी सेवा करते हैं वह भी कीर्ति है। जो पुजारी भगवान का श्रृंगार करते हैं, जो दर्शन आरती आते हैं या हम भी जब जाते हैं दर्शन करने तो पुजारी ने श्रृंगार करके भगवान की कीर्ति को बढ़ाया, उनका कीर्तन किया। हर समय हमें कृष्ण भावना भावित होना है, भगवान की कीर्ति को बढ़ाने के लिए बहुत सारे कार्यकलाप हैं, साधना भी हमारे जप के लिए अनुकूल हो ऐसी सेवा करें, हरे कृष्ण आंदोलन या मूवमेंट इस्कॉन के मध्य में है। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे । हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। मध्य में है, यह भगवान ही है भगवान तो होने ही चाहिए। हमारे जीवन में और सबके जीवन में भी हरे कृष्ण हरे कृष्ण को मध्य में रखना चाहिए और बाकी सारे कार्यकलाप, भागा दौड़ी उससे परिस्थिति अनुकूल हो सकती है। हरे कृष्ण जप ध्यान पूर्वक करने के लिए परिस्थिति कैसे अनुकूल हो सकती है। इस उद्देश्य से हमें इसका स्मरण रखते हुए प्रयास करना चाहिए। हरी हरी। ऐसी बुद्धि आपको भगवान दे, मुझे भी दे। भगवान ने कहा भी है कि मैं बुद्धि दूंगा, ऐसी बुद्धि मैं दे दूंगा कि उस बुद्धि की मदद से क्या होगा मेरे पास तुम आओगे। ऐसी बुद्धि मैं तुम्हें दूंगा। तेषां सतत युक्तानां भजतां प्रितिपूर्वकम ।ददामि बुद्धियोगं तं एनमामुपयान्ति ते ।। BG10.10 भगवान किस को बुद्धि देते हैं, हमें हरे कृष्ण हरे कृष्ण यह जप भी करना है, कीर्तनिया सदा हरी भी करना है। भगवान की अराधना, भक्ति, कीर्ति, सेवा को फैलाना है। वह भी सतत करने के लिए करें, मेरी सेवा में जो सतत युक्त है और प्रीति पूर्व कम। प्रीति पूर्वक का मतलब प्रेम से जो मेरी भक्ति करते हैं उनको मैं बुद्धि देता हूं। ऐसी बुद्धि, ऐसी शक्ति, ऐसी प्रेरणा आप यहां इस धाम में पंढरपुर धाम में, पंढरपुर धाम की जय, और इस उत्सव में प्राप्त करके जाओगे तो पैसा वसूल होगा। आपको हर्ष होगा कि आपने इस उत्सव में भाग लिया, आप सभी को प्रभुपाद घाट और चंद्रभांगा मैया की जय, का दर्शन कराना चाहते हैं। हम पैदल ही जा सकते हैं, तुम कैसे करोगे, जाओगे घाट पर क्या यह आच्छा विचार नहीं है और फिर श्रृंगार दर्शन के लिए लौटेंगे श्रृंगार दर्शन यहां भी होगा और फिर उसके उपरांत पंढरीनाथ में भी होगा। उसके बाद यहां एकत्रित होंगे और गुरु पूजा आरंभ होगी और कल हमको जप करना है। करना है कि नहीं ? हरि बोल। कैसा है हमे जप करना है, ध्यान पूर्वक जप करना है तो उसकी तैयारी करनी है। ऐसा कुछ करो, ऐसी करनी करो ताकी कल का जप अच्छा हो सके। वैसे तो हमें हर दिन जप करना है, जिस दिन टाइम नहीं मिला उस दिन का भी करना है। बचा हुआ जप करना है कि नहीं, की हो गया। ऐसा भी होता है भक्तों को प्रात:काल जप करते हुए देखता हूं। उच्चारण के साथ सुनाई देता है और हम सब सुनते हैं और दिन में कुछ भक्त झोली लेकर घूमते तो हैं लेकिन ध्यान पूर्वक जप नहीं करते। दिन में जप नहीं होता है, ये दुर्देव है। मैंने भी एक समय ऐसा अनुभव किया अपने जीवन में की जब मेरी 10, 12 माला मॉर्निंग समय में हुआ करती थी और बची हुई माला दिन में कभी लेट नाइट या प्रचार के बाद ऐसा बहुत समय के लिए चल रहा था। मुझे लगता था कि आजकल मेरा 12 माला का ही जप हो रहा है। 16 माला करता था लेकिन मुझे लगा कि 4 माला कम ही हो रही है क्योंकि दिन में ध्यानपूर्वक या सेवा के मध्य में करता था। फिर मैंने उसको सुधारा प्रात: काल में करने का प्रयास करता था और मैंने समय निकाल कर एक समय जप ही करूंगा और कोई कुछ नहीं करूंगा। जप और सेवा को मिक्स नहीं करना चाहिए। दिन में भी बची हुई माला का जप करना है आज भी और हर दिन । निताई गौर प्रेमानंदे हरि हरि हरि बोल।

English

11th July 2019 I have always chanted my 16 rounds Yesterday, I was telling that we have come to the dhama to chant Hare Krsna. I keep on telling in the conference that we should do preparation of today’s japa one night and one day not only one day and one night but many days and many nights before so that we can chant attentively. How should we chant -attentively. So, preparation of chanting is very important. When we sit for chanting we should endeavor to chant attentively. So we should start the preparation one day before. I have to chant tomorrow morning and tomorrow how I have to chant- attentively. So what I have to do and how I have to do the services so that when I sit for chanting tomorrow morning then, I can chant attentively, my mind will be stable, not flickering here and there. cancalam hi manah krsna pramathi balavad drdham [BG 6.34] Arjuna declared ‘My mind is restless, turbulent and obstinate.’ My mind is cancal. So, was only Arjuna mind canchalam? No, everyone's mind is cancal. This must be everyone’s experience. Mind is mind only. It’s an element. bhumir apo nalo vayuh kham mano buddhir eve cha bhankara itiyam me bhinna prakritir astadha [Bg 7.6] It’s the nature of mind to flicker here and there. How was your today’s chanting? Haribol! You are in the dhama and your chanting should be attentive in dhama. To speak of preparation of chanting- yesterday night, yesterday full day we were all busy- we had association of devotees, we had darsana of Lord Vitthal, Nityananda paduka arrived all the way from Mayapur, Nityananda prabhu came. You all had holy dip in Chandrabhaga. All India padayatra arrived and dindis arrived, ṣaḍ-vidhaṁ prīti-lakṣaṇam [NOI 4TH VERSE] There was exchange of love in devotees. guhyam ākhyāti pṛcchati We shared our thought with devotees. Then there was bodhayanta parasparam amongst the devotees. dadāti pratigṛhṇāti, then we gave and accepted gifts from each other. Late in the night we had darsana of Narsingh Bhagwan in a drama, we also heard His roaring sound. bhuṅkte bhojayate caiva, we offered prasadam to devotees and we all honored prasadam. So we had a busy devotional day yesterday. This all was preparation for today’s chanting. This must have definitely helped you all in today's chanting. This is festival time so all the leaders and managers are busy, there is construction going on, many things are going on, devotees are arriving, preparations are going on and we all are busy but we also need to chant our rounds. Yesterday many devotees took sankalpa of chanting 16 rounds daily. So, every day we have to chant 16 rounds with all enthusiasm and patience. isn’t it? It is all Srila Prabhupada’s mercy. I will tell you about myself, by the mercy of Nityananda Prabhu I have chanted daily my rounds since 1972 to 2019. So many years and so many months, many weeks, many days and many hours I have chanted my minimum16 rounds daily. It’s not that I did not have any service. Srila Prabhupada always inspired us to be busy in some services. He was also busy 24 hours but he kept chanting. During Prabhupada centennial we did preparation for 4 years for the centennial celebration in 1996. Padayatra were organized in 100 countries I was busy but I chanted my rounds. I never stopped chanting, I was always chanting. Hare Krsna Hare Krsna Krsna Krsna Hare Hare Hare Rama Hare Rama Rama Rama Hare Hare I remember once in 1978-80 I was president of ISKCON New Delhi and at that time I was seriously ill and those 2 or 3 days I could not chant, otherwise I have chanted my rounds daily. So all of you also, we take sankalpa during initiation that I will chant my 16 rounds daily, don’t ever forget that sankalpa. So, whatever we do in ISKCON, as I am saying ISKCON, are you all in ISKCON? Who’s is ISKCON? Are you members of ISKCON? Haribol! harer namaiva kevalam kalau nasty eva nasty eva nasty eva gatir anyatha ISKCON is also called as Hare Krsna movement or we are known as the Hare Krsna people. “Whi are these people? They are Hare Krsna people”. That’s our identification, we are Hare Krsna people. We did not tell people to call us Hare Krsna. But they all call us as Hare Krsna people. Why are we called Hare Krsna? Because we keep chanting Hare Krsna that's our only business. People think they always keep chanting Hare Krsna they do not have any other work. That’s our identification and it’s a good identification. We are directly connected to Hare Krsna. People call us “They are Hare Krsna people, they always keep chanting Hare Krsna.” kirtanya sadahari satatam kirtayanto mam yatantas ca drdha-vratah [BG 9.14] Lord Krsna said in, satatam kirtayanto mam, what do my devotees do? They are always chanting My holy name with all efforts and determination. yatantas ca drdha-vratah. With great determination My devotees chant My holy name. Some devotees chant “Hare snik Hare snik snik snik Hare” all inattentive chanting. So, we have to chant daily, regularly Hare Krsna mahamantra. We have to glorify the Lord and perform kirtana of Lord’s holy name and that’s not possible without taking extra efforts or special endeavors. Chanting Lord’s name is also kirtana and Bhagavatam also describes glories of the Lord. ado madhe ante hari sarvatra giyate So the Lord’s glory is sung all over, in Gita, Mahabharat, Bhagavatam. At every moment we have to meditate on our chanting. At every moment we must be Krsna conscious. Whatever services we do, it should be done in a way that it is favorable to our chanting. Hare Krsna Hare Krsna Krsna Krsna Hare Hare Hare Rama Hare Rama Rama Rama Hare Hare Lord Himself, He is in the center of the movement and also, He is center of the lives of devotees. Whatever service we do we should make that service is favorable for our chanting, So Lord should give you and me such brain. dadāmi buddhi-yogaḿ taḿ yena mām upayānti te [BG 10.10] Lord says, I will give you the brain so that you come to Me. To whom does the Lord give such brains, teṣāḿ satata-yuktānāḿ bhajatāḿ prīti-pūrvakam So, whoever serves Me with love to them, I give such a brain so that they can come to Me. Such brain and strength and inspiration if you all get in the dhama and in this festival you will achieve that, then it's worth attending such festival. Hare Krsna

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