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जप चर्चा, वृंदावन धाम से, 10 सितंबर 2021. 804 स्थानों से जप हो रहा है। मतलब आप सभी का समावेश। गौरांग। जय श्री कृष्ण बलराम की जय। आज की हमारी कक्षा कहो या जप चर्चा शार्ट ही होगा। हरि हरि। 7:15 बजे यहां श्रृंगार दर्शन होगा और फिर मुझे गुरु पूजा कीर्तन भी गाना है। सब पद्ममाली प्रभु सूचित करेंगे पुनः 8:00 बजे भागवतम् कक्षा होगी इंग्लिश में। तो आपका स्वागत है उस समय भी हमारे इंग्लिश भागवतम से जुड़ने के लिए। हरि हरि। और क्या कहें? यह मेरा आखिरी दिन भी है वृंदावन में आज। अच्छा समाचार तो नहीं है, न तो इस बात से मैं प्रसन्न हूं। लेकिन क्या करें कर्तव्य है तो प्रस्थान करना पड़ेगा। फिर मिलेंगे आपको कई अलग अलग स्थानों पर। चिन्तामणिप्रकरसद्मसु कल्पवृक्ष लक्षावृतेषु सुरभीरभिपालयन्तम्। लक्ष्मी सहस्रशतसम्भ्रमसेवयमानं गोविन्दमादिपुरुषं तमहं भजामि।। इन शब्दों में ब्रह्मा जी वृंदावन की स्थिति का गाना किए है ब्रह्मसंम्हिता में। यह धाम कैसा है चिंतामणि है यह पृथ्वी, आग, वायु, आकाश से नहीं बना है, जैसे ब्रह्मांड बना है। यह चिंतामणि धाम है। और प्रकरसद्मसु यहां कई सारे भवन है सद्मसु मतलब भवन कई सारे भवन है। मतलब नंद भवन और ,और और ब्रज वासियों के भवन है। यहां कई सारे नगर और ग्राम है इस धाम में। प्रकरसद्मसु कल्पवृक्ष लक्षावृतेषु और यहां के वृक्ष कल्पवृक्ष है। आपको समोसा भी मिल सकता है ऐसा प्रभु पर कहे एक समय। यह वृक्ष केवल पत्रं, पुष्पम, फलम ही नहीं देते या तोयम भी। यह खाने के कुछ व्यंजन पदार्थ भी देते हैं इसीलिए तो कहा है कल्पवृक्ष। और कई असंख्य यह वन ही है तो वृंदावन। पूरे को वृंदावन कहां है मतलब फॉरेस्ट। तो फिर वृक्ष ही वृक्ष है। वैसे उन वृक्षो में तुलसी के वृक्ष है। तुलसी हैं, तुलसी का वन है यह। मतलब तुलसी देवी का है यह भी समझना चाहिए। वृंदा यः वनं वृंदावनं। हरि हरि। और वृंदा देवी यहां का बहुत सारा संचालन करती है। वृंदा देवी एक प्रकार से यहां की इवेंट मैनेजर है। समझते हैं इवेंट मैनेजर? और इसीलिए भी यह वृंदावन है, वृंदा देवी का वन है और यहां तुलसी भी है। वृंदा देवी की जय चिन्तामणिप्रकरसद्मसु कल्पवृक्ष लक्षावृतेषु सुरभीरभिपालयन्तम् तो मनुष्य के अलावा यहां पशु भी है, वृक्ष भी है, सद्मसु भवन भी है और पशु है। पशुओं में गौ माता की जय। वैसे भी इसको वृंदावन तो कहते ही हैं, इसको गोकुल भी कहते हैं। गोकुल वृंदावन कहते हैं या गोलोक कहते हैं। तो यह गाय का ही लोक है। तो गोपगोभिरलङ्कृतम् यह शोभायमान है वृंदावन किससे है? शोभा गायों से, गायों के कारण और गोपो के कारण। गोप और गाय या गो और गोप एक तो गायें हैं। सुरभीरभिपालयन्तम् कहां ही है पालन करते हैं गायों का और वैसे गायें सुरभि गायें हैं। वृक्ष है कल्पवृक्ष, तो गायें है सुरभि गायें। और वे भी बहुत कुछ देती रहती हैं गोरस कहते हैं। गायों से गोरस प्राप्त होता है रस तो फलों का रस होता है। लेकिन गोरस भी कहते हैं, गोरस मतलब उत्पादन गो उत्पादन। उसमें मुख्य तो दूध है, दही है, छाज है और मक्खन है। मक्खन लाल कृष्ण कन्हैया लाल की जय। फिर कृष्ण की लीलाएं अधूरी रह जाती अगर वृंदावन में माखन नहीं होता। अगर गाय नहीं होती तो माखन भी नहीं होता। तो कन्हैया ने सारी व्यवस्था की हुई है। तो यहां पर पशु है तो गाय जैसे पशु है, पक्षी है मयूर जैसे पक्षी है। किसी भक्त कवि ने ऐसे अपनी इच्छा भी रखी है मुझे हे प्रभु पक्षी बनाना चाहते हो तो वृंदावन का पक्षी बनाओ या वृंदावन का कुछ भी बना दो मुझे वृंदावन का बना दो मुझे वृंदावन में वास दो। पशु बनाओ, पक्षी बनाओ, वृक्ष बनाओ। तो यहां के कल्पवृक्ष वैसे कई ऋषि मुनि वृक्षो के रूप मंन उपस्थित है। ऐसी भी समझ है कल्पवृक्ष सुरभीरभिपालयन्तम् अभिपालयन्तम् गायों का लालन-पलन यह कृष्ण का व्यवसाय है। कृष्ण वैश्य समाज के हैं। नंद महाराज भी वैश्य समाज के प्रधान है। तो उनका धर्म है कृषि, गोरक्ष, वाणिज्य। कृष्ण भी वही करते हैं गायो की सेवा करते हैं। लूट लूट दही माखन खायो ग्वाल बाल संग धेनु चरायो माखन की चोरी करते हैं या चोरी करने में उनको आनंद आता है। चोराग्रगण्य चोरों में अग्रगण्य बनते हैं. जो भी भूमिका भगवान निभाते हैं वह सर्वोपरि होती है, वैसे और कोई नहीं बन सकता। चोर बनना है तो कृष्ण जैसा चोर नहीं मिलेगा आपको चोर नंबर वन। इसी प्रकार से कई प्रकार के चोरी करते हैं चित्त चोर भी है या गोपी वसन हर गोपियों के वस्त्रों की चोरी करते हैं। कृष्ण की माधुर्य लीला श्रीराधिका-माधवयोर्अपार- माधुर्य-लीला-गुण-रूप-नाम्नाम् यह वृंदावन है ही माधुर्य धाम, वैकुंठ होते हैं ऐश्वर्य धाम, मायापुर है कौन सा धाम? औदार्य धाम। वृंदावन में माधुर्य होता है और श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु उसी माधुर्य का वितरण करते हैं। और वही माधुर्य है हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे यह वृंदावन का माधुर्य ही है। जिसको श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु जो कृष्ण ही है केवल कृष्ण नहीं राधा और कृष्ण। वृंदावन के राधा और कृष्ण टू इन वन हो गए हैं। दो के एक बन जाते हैं एकात्मानावपि एक आत्मा बन जाते हैं। और वैसे है भी देह - भेदं गतौ तौ ऐसे भी कहा है चैतन्य चरितामृत में। तो वे दो रूपों में रहते हैं वृंदावन में और मायापुर में उनका एक रूप होता है श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु का गौर रूप। उस रूप में वृंदावन के माधुर्य का भी वितरण करते है। श्रील प्रभुपाद द्वारा स्थापित यह हरे कृष्ण आंदोलन उसी माधुर्य का वितरण कर रहा है सारे विश्व भर में। यह नहीं कि यह वितरण केवल मायापुर नवद्वीप में ही होता है। वितरण प्रारंभ तो वहां हुआ सही किंतु इस माधुर्य का वितरण विश्वभर में हो रहा है चैतन्य महाप्रभु की ओर से। संकीर्तनैक पितरों फाउंडिंग फादर्स चैतन्य महाप्रभु या गौर नित्यानंद उनकी योजना के अनुसार उनकी भविष्यवाणी के अनुसार यह वृंदावन के माधुर्य का वितरण सर्वत्र सर्वत्र प्रचार होई बे मोर नाम सर्वत्र प्रचार हो रहा है। हरि हरि। तो हरिनाम के रूप में वृंदावन के राधा कृष्ण को श्रील प्रभुपाद प्रकट कराए उनको न्यूयॉर्क में। और धाम भी प्रकट हो रहे हैं न्यू वृंदावन, न्यू जगन्नाथ पुरी और कई सारे विग्रह। यह बालक क्या करेगा 108 मंदिरों का निर्माण करेगा। तो जहां-जहां मंदिरों की स्थापना हुई तो वहां धाम का भी प्राकट्य है। और श्रील प्रभुपाद के ग्रंथों के माध्यम से भी यह माधुर्य का वितरण होता है। ग्रंथों में भागवतामृत का माधुर्य भरा हुआ है गीता, भागवत, चैतन्य चरितामृत में। तो हम जब ग्रंथों का वितरण करते हैं अब यह भद्र पूर्णिमा आ रही है तो भागवत के सेट्स का वितरण करना है। तो किसी को भागवत दिया मतलब क्या दिया? वृंदावन के माधुर्य को हम शेयर करते हैं देते हैं उनको। तो वृंदावन का माधुर्य विग्रहो के रूप में, ग्रंथों के रूप में, उत्सवों के रूप में, अब जन्माष्टमी मनाई जाती है सर्वत्र। और गौशाला है सर्वत्र स्थापित हो रही है जो गौ भक्षक थे। एक समय के गौ भक्षकों को श्रील प्रभुपाद गौ रक्षक बनाएं। और वह भी अभी सीखे हैं नमो ब्रह्मण्य देवाय गोब्राह्मण हिताय च । जगत् हिताय कृष्णाय गोविन्दाय नमो नमः ॥ इस प्रार्थना के साथ विश्व भर के लोग अब गाय की आराधना कर रहे हैं। गाय की सेवा कर रहे हैं। गौशालाओं की स्थापना हुई है। यह सारी ब्रज की संस्कृति है, वृंदावन की संस्कृति है। जिसको हम कभी-कभी भारतीय संस्कृति कहते हैं, तो भारतीय संस्कृति का ओरिजिन तो वृंदावन ही है। वृंदावन की संस्कृति, वृंदावन की जीवन शैली, वृंदावन के आचार- विचार, हाव -भाव, नृत्य- गायन। तो इस प्रकार वृंदावन को ही फैलाया जा रहा है सर्वत्र। और फिर प्रसाद भी है तो कृष्ण प्रसाद या राधा कृष्ण प्रसाद या जगन्नाथ प्रसाद और जगन्नाथ रथ यात्राएं। तो यह सब जो जो वितरित किया जा रहा है, जो जो आपको प्राप्त हो रहा है अपने अपने घरों में, नगरों में, ग्रामों में, देशों में उसका श्रोत तो वृंदावन में है। वृंदावन धाम की जय। इस प्रकार आप सबका, हम सबका वृंदावन से संबंध स्थापित होता है। वृंदावन से हम जुड़ जाते हैं और हम जहां भी है वैसे वह स्थान फिर वृंदावन बन जाता है। तीर्थी कुर्वंति तीर्थानि वह तीर्थ बन जाते हैं। हमारे घर को मंदिर बनाना है, घर का मंदिर बनाओ। दिल का तो मंदिर है ही दिल एक मंदिर है। तो घर एक मंदिर के विषय में क्या? तो घर का जब मंदिर बनाते हैं मंदिर मतलब वृंदावन हो गया, वृंदावन में रहते हैं। वृंदावन में रहो और वही घर बैठे बैठे फिर वृंदावन का स्मरण भी करो। वृंदावन पहुंच जाओ। क्योंकि हमें एक दिन यही आना है, वृंदावन ही हमारा लक्ष्य है, क्योंकि हम सारे जीव यही के हैं वृंदावन के हैं। हमारी मातृभूमि पितृभूमि सब वृंदावन ही है। क्योंकि माता कौन है माता पिता सब कृष्ण है। राधा-कृष्ण हमारे माता-पिता है, तो उनकी भूमि ही तो हमारी भूमि हुई। हां संभ्रमित होकर हम क्या-क्या सोचते रहते हैं। सर्वोपाधि- विनिर्मुक्तं तत्परत्वेन निर्मलम् हमको निर्मल बनना है सारी उपाधियों से मुक्त होकर। अंततोगत्वा त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोऽर्जुन। वृंदावन धाम की जय। श्री कृष्ण बलराम की जय। श्रील प्रभुपाद की जय। गौर प्रेमानंद हरि हरि बोल।

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