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*जप चर्चा* *गोविंद धाम से* *11 सिंतबर 2021* हरे कृष्ण!!! आज इस जपा कॉन्फ्रेंस में 802 स्थानों से भक्त जप कर रहे हैं। गौरांग! गौर प्रेमानंदे, हरि हरि बोल! वृन्दावन धाम की जय! हम गोविंद धाम इस्कॉन नोएडा में आए तो हैं किन्तु हमारा हृदय वृन्दावन में खो गया हैं "आई लॉस्ट माई हार्ट इन वृन्दावन।" हरि! हरि! इस बार वृन्दावन की भेंट कुछ विशेष रही। वैसे भी हम बहुत समय के उपरान्त वृंदावन गए थे। हरि !हरि! वृंदावन ने हमारे चित की चोरी की व अपनी ओर अधिक आकृष्ट किया। वृंदावन या वृन्दावन बिहारी लाल की जय! एक ही बात है। वृंदावन भगवान से अभिन्न है, वृन्दावन भगवान हैं और भगवान वृन्दावन हैं। भगवदधाम भी भगवान का एक स्वरूप है। हम जब से इस्कॉन में सम्मिलित हुए हैं तब से श्रीकृष्ण जन्माष्टमी महोत्सव मना ही रहे हैं, लेकिन... एक बार पहले भी मैं जन्माष्टमी के दिन वृन्दावन में था। शायद यह दूसरी या तीसरी बार था, जिस दिन मैं जन्माष्टमी के दिन वृन्दावन रहा और श्रीकृष्ण जन्माष्टमी वृन्दावन में ही मनाई।श्री कृष्ण जहाँ अष्टमी के दिन जन्में थे, जहाँ लीला खेली थी। उस वृन्दावन धाम में ही श्रीकृष्ण बलराम मंदिर में श्रील प्रभुपाद ने भगवान को उनके विग्रह के रूप में प्रकट किया। हमनें वहीं पर कृष्ण बलराम, राधाश्याम सुन्दर की जन्माष्टमी मनाई। कृष्ण की ही जन्माष्टमी। वृन्दावन में वह दिन तथा उसका अनुभव अति विशेष रहा। कृष्ण की कथा करने का भी अवसर मिला और रात्रि को जब कृष्ण का महा महा अभिषेक हुआ जैसे नंद यशोदा नंद के घर आनंद भयो जय कन्हैया लाल की। जैसे नंद- यशोदा व सभी ब्रज वासियों ने मिलकर श्रीकृष्ण जन्माष्टमी मनाई थी। उस उत्सव का स्मरण करते हुए हमनें भी श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का उत्सव मनाया और हमें वृन्दावन में श्रील प्रभुपाद की 125वीं व्यास पूजा मनाने का अवसर मिला। वृन्दावन के लिए प्रभुपाद कहा करते थे," वृन्दावन इज माई होम," वृन्दावन इज माई होम" उस होम में जाकर जहां प्रभुपाद राधा दामोदर मंदिर में रहे, श्रील प्रभुपाद मथुरा में भी रहे थे। यह वृन्दावन मथुरा भगवान का धाम है। कृष्ण जिनका नाम हैं, गोकुल जिनका धाम हैं। उसी वृन्दावन को श्रील प्रभुपाद अपना घर मानते थे। वृंदावन इज माय होम। उस होम (घर) में ही हमनें श्रील प्रभुपाद की व्यास पूजा मनाई। हम चैतन्य बैठक पर रुके, जहां एक बार श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु बैठे थे। हम भी वहां बैठ गए और श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु की वृंदावन की परिक्रमा को याद कर रहे थे। हम वहां थोड़े समय के लिए रुके और चैतन्य महाप्रभु का स्मरण कर रहे थे। चैतन्य बैठक एक बहुत प्रसिद्ध स्थान है, आप भी वहां गए ही होंगे। वहां जरूर रुकना चाहिए। वह बहुत विशेष स्थान है। वहां पर चैतन्य महाप्रभु और जगन्नाथ के विग्रह भी हैं। इस पंचकोसी परिक्रमा के अतिरिक्त (वैसे हमने आपको 1 दिन बताया था) हमनें गोवर्धन परिक्रमा भी की। यह विशेष परिक्रमा रही। पहली बार हमने वाहन में बैठकर गोवर्धन की परिक्रमा की। हरि! हरि! वहां की लीलाओं की रास्ते में कुछ चर्चा भी हो रही थी। उसको हम याद कर रहे थे। इतनी सारी बातें हैं कि शुद्र जीव कितना याद कर सकता है, क्या-क्या याद कर सकता है।हम उन लीलाओं के सिंधु में से कुछ बिंदु का आस्वादन कर रहे थे। हम राधा कुंड भी गए थे। राधा कुंड श्याम कुंड की जय! वहां पर हमनें रघुनाथ दास गोस्वामी की समाधि का दर्शन किया। रघुनाथ दास गोस्वामी की जय! रघुनाथ दास गोस्वामी राधा कुंड के तट पर लगभग 41 वर्ष रहे अर्थात उन्होंने राधा कुंड पर लगभग 41 वर्ष बिताए। वह भी परिक्रमा करते रहे जैसे कि सनातन गोस्वामी गोवर्धन की परिक्रमा किया करते थे। हरि! हरि! वहीं राधा कुंड के तट पर कृष्ण दास कविराज गोस्वामी रहते थे। राधा कुंड के तट पर ही कृष्ण दास कविराज गोस्वामी ने श्रीचैतन्य चरितामृत की रचना की। वे रघुनाथ दास गोस्वामी से चैतन्य महाप्रभु की लीला कथा का श्रवण करते थे। उनके पास अन्य भी कुछ कडचा ( नोट) इत्यादि थे। जिसके आधार व संदर्भो की मदद से उन्होंने चैतन्य चरितामृत की रचना राधा कुंड पर की। जय राधे! इस राधा कुंड पर प्रतिदिन अष्टकालीयलीला के अंतर्गत मध्यान्ह के समय राधा कृष्ण की लीलाएं संपन्न होती हैं। जल क्रीड़ा है या झूलन यात्रा है। जय राधा माधव कुंज बिहारी अथवा वहां के कुंजों में विहार है। प्रतिदिन ध्यान के समय राधा कुंड की लीला का स्मरण किया। वैसे राधा कुंड सर्वोपरि है। वृंदावन के सभी स्थानों में राधाकुंड श्रेष्ठ स्थान है। जैसे कृष्ण के सभी भक्तों में राधा रानी श्रेष्ठ है। वैसे ही उनका कुंड भी सर्वश्रेष्ठ है। वह स्थान सबसे ऊंचा है, सर्वोपरि है। हमने गोवर्धन परिक्रमा का समापन वहीं पर किया व पुनः वृन्दावन लौटे। हरि! हरि! इन्हीं दिनों वृंदावन में 1 दिन दीक्षा समारोह भी संपन्न हुआ। जैसे आज नोएडा में भी यहां दीक्षा समारोह संपन्न होने वाला है और एक वृंदावन में भी हुआ था। एक दिन में मैं अपने शिष्यों से भी मिला। वृंदावन में रहने वाले भक्तों और शिष्यों की संख्या कुछ दिन-ब-दिन बढ़ रही है। 100 से अधिक शिष्य वृंदावन में रह रहे हैं। हरि! हरि ! उन को संबोधित करते हुए हमने सबको कहा कि जैसे और लोग रिटायर होने के बाद आराम करने के लिए आते हैं लेकिन हम गौड़ीय वैष्णव विशेष रुप से श्रीलप्रभुपाद के अनुयायी हैं, वह कभी रिटायर नहीं होते। वे इस भौतिक जगत से ऊब गए हैं और सब छोड़ वृंदावन पहुंच जाते हैं। छोड़ो दुनियादारी, छोड़ो दिल्ली या नागपुर, यह रूटीन कार्यकलाप। वृंदावन में जाओ, गो बैक टू होम। कुछ भक्त ऐसा कर रहे हैं, उसमें से मेरे शिष्य भी वहां पहुंचे हैं और मैं उनको कह रहा था कि एक्टिव रहो सक्रिय रहो और श्रील प्रभुपाद का वृन्दावन में जो मिशन, मंदिर अथवा प्रोजेक्ट है, उसमें सहायता करो। इस्कॉन की सेवा करो, इस्कॉन सेवी बनो। मैंने उस समय कहा भी था कि हमें इस्कॉन भोगी नहीं बनना चाहिए। इस्कॉन का फायदा नहीं उठाना चाहिए, इस्कॉन द्रोही मत बनो। जैसे कि लोग राष्ट्र द्रोही , इसके द्रोही, उसके द्रोही बनते हैं। इस्कॉन द्रोही मत बनो। इस्कॉन त्यागी भी मत बनो। अर्थात इस्कॉन को त्याग अथवा छोड़ दिया और इधर उधर भटक रहे हैं, मठ मंदिर जा रहे हैं और वहां जुड़ रहे हैं, यह मत करो। मूलभूत रूप से हमें इस्कॉन भोगी नहीं, इस्कॉन द्रोही नहीं, इस्कॉन त्यागी नहीं अपितु इस्कॉन सेवी बनना है। मतलब इस्कॉन द्रोही, इस्कॉन त्यागी , इस्कॉन भोगी होना मतलब यह प्रभुपाद द्रोह हो जाता है अर्थात जैसे हमनें प्रभुपाद को त्याग दिया,यह आपके गुरु महाराज पर भी लागू होता है। गुरु द्रोही, गुरु भोगी, गुरु त्यागी... नहीं! अपितु गुरु सेवी बनो। गुरु सेवी, प्रभुपाद सेवी, इस्कॉन सेवी या सेवक बनो। निश्चित ही जो अभी आप मुझे सुन रहे हो , यह हम सभी के लिए है। आप जो वृंदावन में भी हो या वृंदावन में नहीं हो तो भी आपके लिए भी यह संदेश अथवा उपदेश भी है। हरि! हरि! इस वृंदावन की यात्रा में हमें कृष्ण बलराम और राधा श्याम सुंदर की मंगला आरती गाने का भी और आरती करने का भी अवसर मिला। विग्रह आराधना अथवा कम से कम आरती तो उतारता हूं। मुझे भगवान की आरती उतारना अच्छा लगता है। वृंदावन के विग्रह बहुत बहुत विशेष हैं। अनुभव होता है, वहीं वृन्दावन के भगवान वहीं जन्मे, वही लीला खेलने वाले भगवान अर्च विग्रह के रूप में विद्यमान है। वें स्वयं भगवान हैं या वहां साक्षात भगवान की उपस्थिति का कुछ अनुभव होता है। वहीं पर लीलाएं हो रही हैं। वहीं पर रमणरेती है, जिस रेती में कृष्ण बलराम रमते हैं और राधा श्याम सुंदर और ललिता विशाखा भी है । कल ही मैनें भागवत की अंग्रेजी में कथा की और मैं कह रहा था कि ऑल्टर पर कृष्ण बलराम का विग्रह दर्शन करते समय वहां एक गाय हैं, एक बछड़ा भी है। दोनों गाय नहीं, दोनों बछड़े नहीं है। मैंने पहले भी देखा था लेकिन जब कल मैंने आरती भी उतारी अर्थात मंगला आरती मैंने देखा कि एक गाय के सींग थे अर्थात गाय थी। दूसरा बछड़ा था, उसके सींग नहीं थे। बछड़ों के सींग नहीं होते हैं। आकार तो लगभग एक जैसा ही लगता है, लेकिन एक के सींग है ,दूसरे के नहीं हैं। एक गाय हैं और एक बछड़ा है। भागवत में कृष्ण के वत्सपाल होने की चर्चा हो रही थी तब मैंने पूछा कि कृष्ण और बलराम वत्सपाल है? या गोपाल है?। कोई कह रहा था गोपाल है और कोई कह रहा था वत्सपाल है। हमने कहा कि लगता है यह दोनों ही हैं। ऑल्टर पर गाय भी है गोपाल हो गए और वत्स अर्थात बछड़ा भी है तो वत्सपाल हो गए। हमनें दोनों लीलाओं का वत्सपाल लीला, गोपाल लीला का दर्शन किया। भगवान का जब श्रृंगार होता है तब (मैंने कल कहा था और मैंने कई बार देखा भी है) कृष्ण बलराम के हाथ में रस्सी अथवा डोरी देते हैं अर्थात कृष्ण बलराम एक डोरी धारण किए हैं और पुजारी एक डोरी को गाय के गले में बांध देते हैं और दूसरी डोरी बछड़े के गले में बांध देते हैं। कृष्ण भगवान के हाथ में कहीं लंच पैक अथवा टिफिन भी होता है। कई बार उनके हाथ में फल भी होते हैं। ऐसे ही कृष्ण बलराम के हाथ में गाय बछड़े भी हैं और वे साथ साथ में टिफिन भी लिए हुए हैं। श्रृंगार दर्शन के समय अर्थात 7:15 पर जो दर्शन होता है । लगता है कि कृष्ण बलराम गोचारण लीला अथवा गोचारण प्रस्थान के लिए तैयार हैं। तब विचार आता है और दिल ललचाता है कि क्या हम भी जा सकते हैं। अन्य भी कई सारे ग्वाल बाल साथ में हैं ही, कृष्ण बलराम क्या हम आपके साथ जा सकते हैं? आप तो तैयार हो। जब वृन्दावन के कृष्ण बलराम का दर्शन करते हैं, तब ऐसा कुछ अनुभव भी करते हैं। ऐसे विचार आते हैं। वृंदावन के कृष्ण बलराम या अन्य विग्रह कुछ बहुत ही विशेष है उनकी आरती करने का भी अलग ही अनुभव होता है। कृष्ण श्रीमद भगवतगीता में कहते हैं- *मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु। मामेवैष्यसि सत्यं ते प्रतिजाने प्रियोऽसि मे ||* (श्रीमद भगवतगीता 18.65) अनुवाद:- सदैव मेरा चिन्तन करो, मेरे भक्त बनो, मेरी पूजा करो और मुझे नमस्कार करो | इस प्रकार तुम निश्चित रूप से मेरे पास आओगे | मैं तुम्हें वचन देता हूँ, क्योंकि तुम मेरे परम प्रिय मित्र हो | कृष्णा अल्टीमेटली इतना ही करने को कहते हैं। राधा श्यामसुंदर ललिता विशाखा गौर निताई के विग्रह का स्मरण करो, उनके भक्त बनो। उनकी आराधना करो। केवल आरती उतारने से आराधना नहीं होती और भी अन्य कई प्रकार की आराधना होती है। उनको भोग खिलाओ, यह भी आराधना है। उनका अभिषेक करो, उनका श्रृंगार करो। यह भी आराधना है, उनके लिए कीर्तन करो। जब आरती होती है अथवा विग्रह की आराधना होती है तब साथ में कीर्तन जरूर होना चाहिए। कीर्तन भजन के साथ आरती होनी चाहिए। आरती उतारी जा रही है तो यह भगवान की आराधना है भगवान का कीर्तन हो रहा है *कृष्णवर्ण त्विषाकृष्णं साङ्गोपाङ्गास्त्रपार्षदम् । यज्ञैः सङ्कीर्तनप्रायैर्यजन्ति हि सुमेधसः ॥* ( श्रीमद भागवतम 11.5.32) अनुवाद:- कलियुग में , बुद्धिमान व्यक्ति ईश्वर के उस अवतार की पूजा करने के लिए सामूहिक कीर्तन ( संकीर्तन ) करते हैं , जो निरन्तर कृष्ण के नाम का गायन करता है । यद्यपि उसका वर्ण श्यामल ( कृष्ण ) नहीं है किन्तु वह साक्षात् कृष्ण है । वह अपने संगियों , सेवकों , आयुधों तथा विश्वासपात्र साथियों की संगत में रहता है। हम कीर्तन करते हैं, आराधना करते हैं।मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु भगवान ने कहा कि मेरी आराधना करो और मुझे नमस्कार करो। हम जब विग्रह को जब नमस्कार करते हैं, मां नमस्कुरु हुआ। कृष्ण के विग्रह केंद्र में, नाम भी केंद्र में, भागवत श्रवण भी केंद्र में, प्रसाद भी केंद्र में होना चाहिए। प्रसाद के बिना क्या जीवन है। हरि! हरि! तत्पश्चात कथा कीर्तन करने का भी अवसर प्राप्त हुआ ही। भागवतम कक्षाएं हिंदी व अंग्रेजी में हुई। कृष्ण बलराम हॉल में हिंदी में कथाएं होती है। टेंपल हॉल में अंग्रेजी में कथाएं होती हैं, वह सेवा करने का भी अवसर प्राप्त हुआ। इस समय श्रील प्रभुपाद की गुरु पूजा और कीर्तन, प्रभुपाद के विग्रह के साथ कृष्ण बलराम मंदिर बाहर से कीर्तन के साथ परिक्रमा होती है। मंदिर के अध्यक्ष पंचगौड़ प्रभु कहते हैं कि ऐसी गुरु पूजा वृंदावन में होती है। बड़े उत्साह के साथ, काफी बड़ी संख्या में भक्त उपस्थित रहते हैं। गुरु पूजा के उपरांत श्रील प्रभुपाद के विग्रह के साथ पूरे मंदिर की परिक्रमा होती है। ऐसी गुरु पूजा शायद ही कहीं पर होती होगी। ऐसा मंदिर के अध्यक्ष कह रहे थे। हरि! हरि! हम थोड़ा अधिक जप कर ही रहे थे, वैसे भी चातुर्मास तो चल ही रहा है। हम धाम वास के लिए भी गए थे, ताकि अधिक जप भी कर पाए। हमनें वृंदावन में *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।* का कीर्तन और जप भी थोड़ा अधिक बढ़ाया। बहुत सारी बातें है, एक बात और कहना चाहूंगा कि हम कुछ अध्ययन भी कर रहे थे। वृंदावन चंद्र महाराज के सानिध्य में हम दोनों कुछ पढ़ रहे थे, आचार्यों की भागवत पर टीका, गोपाल भट्ट गोस्वामी की कृष्ण कर्णामृत पर टीका, जो बड़ी ही रसभरी अथवा अमृत से भरी है। वही उनकी टीकाएँ हैं या श्रीधर स्वामी की टीकाओं के संबंध में कहा है *अहं वेद्मि शुको वेत्ति व्यासो वेत्ति न वेत्ति वा । भक्त्या भागवतं ग्राह्यं न बुद्ध्या न च टीकया ॥* ( श्रीचैतन्य चरितामृत मध्य लीला 24.313) अनुवाद " [ शिवजी ने कहा : ] श्रीमद्भागवत को या तो मैं जानता हूँ या व्यासपुत्र गोस्वामी जानते हैं , तथा व्यासदेव जानते हैं अथवा नहीं जानते । इस निष्कलंक पुराण श्रीमद्भागवत को केवल भक्ति से सीखा जा सकता है - भौतिक बुद्धि , चिन्तन विधियों या काल्पनिक टीकाओं द्वारा नहीं । " व्यासदेव जानते हैं, शुकदेव जानते हैं पता नहीं राजा जानते हैं या नहीं जानते लेकिन पता नहीं श्रीधर स्वामी पाद जानते हैं या नहीं जिन्होंने भागवत पर टीका लिखी है। जिस टीका को चैतन्य महाप्रभु पसंद करते थे। श्रीधर स्वामी, चैतन्य महाप्रभु से भी पहले हुए, श्रीधर सक्लम वेति अर्थात श्रीधर स्वामी पाद सब कुछ जानते हैं। वे नरसिंह के भक्त थे। नरसिंह प्रसाद या कृपा से वह सब जानते थे, उन टीकाओं व कुछ भाष्यों को भी हम वृंदावन में पढ़ रहे थे। इतना कुछ पढ़ना सुनना और सीखना बाकी है किंतु और इतनी सारी व्यस्तता रहती है कि जो चाहते हैं उतना नहीं कर पाते । हरि !हरि !यह सब वृंदावन में कर ही रहे थे। वृंदावन मेरी जन्मभूमि है जहां पर मैंने श्रील प्रभुपाद से दीक्षा प्राप्त की इसलिए वृंदावन को मैं अपनी जन्मभूमि समझता हूं। अन्य व्यस्तताओं व जिम्मेदारियों के कारण इस जन्म भूमि को छोड़कर कर्म भूमि अर्थात जहां-जहां प्रचार के लिए जाना पड़ता है हरि! हरि !वृंदावन की यादें तो सताती रहेगी और वृंदावन को याद करते हुए अपना संबंध बनाए रखते हुए भी हम कर्मभूमि में कुछ कर्म करेंगे, कुछ सेवा करेंगे, प्रचार करेंगे। हरि! हरि! वृंदावन धाम की जय! श्रीकृष्ण बलराम की जय! श्रील प्रभुपाद की जय! गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल!

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