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जप चर्चा दिनांक २३.०१.२०२१
हरे कृष्ण!
आज इस कॉन्फ्रेंस में 726 स्थानों से भक्त सम्मिलित हुए हैं।
ॐ अज्ञान तिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जन शलाकया चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः।। अर्थ:- मैं घोर अज्ञान के अंधकार में उत्पन्न हुआ था और मेरे गुरु ने अपने ज्ञान रूपी प्रकाश से मेरी आँखें खोल दी। मैं उन्हें सादर नमस्कार करता हूँ।
(आप भी कहिए।) नम ॐ विष्णु – पादाय कृष्ण – प्रेष्ठाय भूतले श्रीमते भक्तिवेदान्त – स्वामिन् इति नामिने नमस्ते सारस्वते देवे गौर – वाणी प्रचारिणे निर्विशेष – शून्यवादी – पाश्चात्य – देश – तारिणे ( श्रील प्रभुपाद प्रणति)
अर्थ:- मैं कृष्णकृपाश्रीमुर्ति श्री श्रीमद् ए.सी.भक्ति वेदांत स्वामी प्रभुपाद को सादर प्रणाम करता हूँ जो दिव्य नाम की शरण लेने के कारण इस पृथ्वी पर भगवान श्रीकृष्ण को अत्यंत प्रिय है।
हे गुरुदेव! सरस्वती गोस्वामी के दास! आपको मेरा सादर विन्रम प्रणाम है। आप कृपा करके श्री चैतन्य महाप्रभु के संदेश का प्रचार कर रहे हैं तथा निराकारवाद एवं शून्यवाद से व्याप्त पाश्चात्य देशों का उद्धार कर् रहे हैं।
(जय) श्रीकृष्ण चैतन्य प्रभुनित्यानन्द श्रीअद्वैत गदाधर श्रीवासादि – गौरभक्तवृन्द। ( पञ्चतत्व मंत्र) अर्थ:- मैं श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु, श्री नित्यानंद प्रभु, श्री अद्वैताचार्य प्रभु, श्री गदाधर पंडित प्रभु तथा श्रीवास प्रभु सहित अन्य सभी गौरभक्तों को प्रणाम करता हूँ।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।
जय ॐ विष्णुपाद परमहंस परिव्राजकाचार्य अष्टोत्तरशत कृष्णकृपामूर्ति श्रीमद् ए. सी.भक्तिवेदांत स्वामी श्रील प्रभुपाद की जय!
यदि प्रभुपाद न होएते तो कि होइते। वर्ष 2021प्रारंभ हो चुका है। इस्कॉन के भक्तों या प्रभुपादनुगों के लिए यह विशेष वर्ष है। प्रभुपादनुग कौन है? अच्छा! कुछ अपना हाथ ऊपर करके दिखा रहे हैं। " मैं भी हूँ, मैं प्रभुपादनुग हूँ।" प्रभुपाद अर्थात प्रभुपाद और अनुग अर्थात श्रील प्रभुपाद के जो अनुयायी हैं अथवा उनके चरण चिन्हों का अनुगमन करने वाले प्रभुपादनुग कहलाते हैं।
हम सब प्रभुपादानुग हैं। हम प्रभुपादानुगों के लिए यह वर्ष विशेष वर्ष है। इस वर्ष का क्या विष्ट्यता है? यह वर्ष श्रील प्रभुपाद के जन्म का 125 वां वर्ष है। श्रील प्रभुपाद 1896 में जन्मे थे। 125 वर्ष बीत चुके हैं अथवा इस वर्ष बीत रहे हैं। हम इस्कॉन के अथवा प्रभुपादनुगों के लिए यह प्रभुपाद का125 वां बर्थ (अभिर्भाव) वर्षगांठ वर्ष है। हरि! हरि! 125 वी जन्म वर्षगांठ महोत्सव की जय!
हम आपको वर्ष के प्रारंभ में ही स्मरण दिला रहे हैं और हम पूरे वर्ष भर यह एनिवर्सरी उत्सव मनाते जाएंगे। इस्कॉन मनाएगा। इस्कॉन मतलब क्या है? आप इस्कॉन हो। हम इस्कॉन हैं। सदस्यों से इस्कॉन इंस्टिट्यूशन अर्थात इस्कॉन संस्था बनती है। यदि सदस्य ही नहीं होंगे तो इंस्टिट्यूशन ( संस्था) का कोई अर्थ ही नहीं है। यदि लोग या भक्त संगठित ही नहीं हुए तो वह संघ कैसे हो सकता है। इस्कॉन को हिंदी में अंतरराष्ट्रीय श्रीकृष्ण भावनामृत संघ कहते हैं। हम इस संघ में संगठित हुए हैं।
चतुर्विधा-श्री भगवत्-प्रसाद- स्वाद्वन्न-तृप्तान् हरि-भक्त-संङ्घान्। कृत्वैव तृप्तिं भजतः सदैव वन्दे गुरोः श्रीचरणारविन्दम्॥4॥ ( श्री श्री गुर्वाष्टक)
अर्थ:- श्रीगुरुदेव मन्दिर में श्रीश्रीराधा-कृष्ण के अर्चाविग्रहों के पूजन में रत रहते हैं तथा वे अपने शिष्यों को भी ऐसी पूजा में संलग्न करते हैं। वे सुन्दर सुन्दर वस्त्र तथा आभूषणों से श्रीविग्रहों का श्रृंगार करते हैं, उनके मन्दिर का मार्जन करते हैं तथा इसी प्रकार श्रीकृष्ण की अन्य अर्चनाएँ भी करते हैं। ऐसे श्री गुरुदेव के चरणकमलों में मैं सादर वन्दना करता हूँ।
श्रील प्रभुपाद जब हरि भक्तों को
संगठित होते हुए देखते हैं कि वह प्रसाद ग्रहण कर रहे हैं तब वे तृप्त और प्रसन्न होते हैं कि हम इस प्रकार संगठित हुए हैं अथवा एकत्रित हुए हैं। एकत्रित होना जरूरी है, एकत्रित होने से ही तो अंतरराष्ट्रीय श्रीकृष्णभावनामृत संघ बनेगा। संगठित होने से संगठन होता है। इसे संघे शक्ति कलौ युगे भी कहा है। कलयुग में संघ से शक्ति का प्रदर्शन होगा। लोग संगठित होकर अपनी शक्ति का प्रदर्शन करेंगे। जिस प्रकार लोग अलग-अलग यूनियंस में करते ही रहते हैं। यह लेबर यूनियन है आदि आदि। वे इकट्ठे होते हैं परंतु उनका उद्देश्य कुछ गलत भी हो सकता है और अधिकतर होता भी है। वह अपनी शक्ति का प्रदर्शन तो करते ही हैं। संगठन से शक्ति का प्रदर्शन होता है। जिसे 'यूनाइटेड वी स्टैंड' भी कहा गया है। इस वर्ष हमें भी संगठित होना है। हरि! हरि!
हमें इस वर्ष प्रभुपाद कॉन्शसनेस, प्रभुपाद का स्मरण, प्रभुपाद के भाव को उजागर करने हैं और उन भावों के साथ इकट्ठा होना है तब प्रभुपाद की शक्ति या कृष्ण की शक्ति का प्रदर्शन होगा अथवा भक्ति की शक्ति का प्रदर्शन होगा या हरि नाम की शक्ति का प्रदर्शन होगा। श्रील प्रभुपाद ने हमें यह संदेश दिया है - चेंट हरे कृष्ण एंड बी हैप्पी ( हरे कृष्ण का जप करो और सदैव खुश रहो ) या केवल चेंट कहा है। प्रभु के नामों का उच्चारण करो। हरि! हरि!
नमस्ते सारस्वते देवे गौर – वाणी प्रचारिणे श्रील प्रभुपाद के चरणों में नमस्कार! नमस्ते सारस्वते देवे - सरस्वती नहीं कहना है। सुधरो! आप कब सुधरोगे? या सुधार करके कब कहोगे? हमें नमस्ते सारस्वते कहना है। श्रील प्रभुपाद ने हमें स्मरण दिलाया था। यह उच्चारण की बात है। हम् सब अधिकतर गलत ही उच्चारण करते हैं। प्रभुपाद ने एक बार अपने एक शिष्य को पत्र लिखा था। प्रभुपाद ने अपने शिष्य को कहा -'नहीं !सरस्वती नहीं। यह लक्ष्मी औऱ सरस्वती में से सरस्वती नहीं है। यह सारस्वते देवे है, श्रील प्रभुपाद,भक्ति सिद्धांत सरस्वती के शिष्य हैं। इसीलिए हम श्रील प्रभुपाद को नमस्ते सारस्वते ऐसा संबोधन या प्रार्थना करते हुए कहते हैं आप कहो। मेरी ओर से आप थोड़ा दूसरों को भी सुनाओ। उन्हें याद दिलाओ कि सरस्वती कहना गलत है। जब हम अपने संस्थापकाचार्य को प्रणाम करते हैं तब हम उसका उच्चारण सही नहीं करते हैं। हम इस वर्ष इसका सुधार करते हुए यह प्रणाम मंत्र कहेंगे। 'नमस्ते सारस्वते कहो।' कहा आपने? अर्जुन, तुम कह रहे हो? नमस्ते सारस्वते, नमस्ते सरस्वती देवी मत कहिए। यहां कोई सरस्वती नहीं है। वैसे श्रील प्रभुपाद के गुरु का नाम भक्ति सिद्धांत सरस्वती है और हम उनके शिष्य को संबोधन करते हैं, पुकारते हैं अथवा प्रार्थना करते हैं इसलिए नमस्ते सारस्वते देवे। 752 भक्त मुझे सुन रहे हैं, इसलिए आप थोड़े एजेंट बनो। हमारी ओर से एवं हमारी कीर्तन मिनिस्ट्री की ओर से भी आप भक्तों को थोड़ा स्मरण दिलाओ। जब जब वे सरस्वती कहते हैं, तब आप उनको बोलो, नहीं! यह गलत है। आप करोगे? आप यह गलत उच्चारण नहीं करना और दूसरा भी जब कोई गलत उच्चारण करता है तो उन्हें कहो, प्रभुपाद ने भी अपनी नाराजगी व्यक्त की थी इसलिए उन्होंने एक शिष्य को पत्र लिखा था-" नहीं! नहीं! नहीं-नहीं सरस्वती नहीं, सारस्वते देवे। उन सारस्वते देवे श्रील प्रभुपाद ने क्या किया?
नमस्ते सारस्वते देवे गौर – वाणी प्रचारिणे उन्होंने चैतन्य महाप्रभु ने गौर वाणी का प्रचार किया। उन्होंने गौर वाणी का प्रचार करते हुए पाश्चात्य देश को बचाया। निर्विशेष – शून्यवादी – पाश्चात्य – देश – तारिणे पाश्चात्य देश की रक्षा की।
उन्होंने किससे रक्षा की ? निर्विशेषवाद और शून्यवाद से रक्षा की। बुद्धदेव ने इस शून्यवाद का प्रचार किया था। हरि! हरि! शंकराचार्य ने निर्विशेषवाद का प्रचार किया था।
अद्वैतवाद का प्रचार किया। शून्यवाद और निर्विशेषवाद का यह प्रचार प्रसार पूरे विश्व भर में फैला है। श्रील प्रभुपाद ने शून्यवाद और निर्विशेषवाद से पाश्चात्य देश को बचाया लेकिन हम लोग तो पाश्चात्य देश के नहीं है, आप कहोगे कि हमें भी तो बचाया है। यहां पाश्चात्य – देश – तारिणे क्यों कहा है? आप समझ रहे हो? कोई भी ऐसा प्रश्न पूछ सकता है? यह पाश्चात्य – देश – तारिणे क्या है? पाश्चात्य देश के लोगों को थोड़े ही बचाया है, केवल उनको ही नहीं बचाया अपितु हमें भी बचाया है। केवल वेस्टर्न ही नहीं अपितु ईस्टर्न को भी बचाया है। पूर्व से होता है पूर्वात्य। हम ईस्टर्न देशों के लोगों को भी तो बचाया है। उस समय ही श्रील प्रभुपाद के प्रणाम मंत्र की रचना हुई थी इसलिए आप यह प्रणाम मंत्र कह सकते हो। जैसा कि श्रील प्रभुपाद ने सभी को आदेश और आशीर्वाद दिया। उस समय इस्कॉन का प्रचार अथवा श्रील प्रभुपाद का प्रचार पाश्चात्य देशों में ही हो रहा था। 1970 से पहले ही इस प्रणाम मंत्र की रचना हुई थी। 1970 के बाद श्रील प्रभुपाद भारतवर्ष वापस लौटे थे। तत्पश्चात 1971 में हम श्रील प्रभुपाद से मिले। वैसे और भी मिले। हरि! हरि! जब इस प्रणाम मन्त्र की रचना हुई थी, उस समय पाश्चात्य देशों में प्रचार हो रहा था। अतः उस समय जो मंत्र रचित हुआ था, हम अब भी उसी मन्त्र का ही प्रयोग करते हैं लेकिन हमें समझना चाहिए कि प्रभुपाद ने सिर्फ पाश्चात्य देशों को नहीं अपितु पूर्वात्य देशों को भी बचाया। प्रभुपाद ने क्यों और कैसे बचाया? उन्होंने गौर वाणी का प्रचार करके बचाया। गौरांग! गौरांग! गौरांग! इसे श्रील प्रभुपाद का विशिष्टय कहो या उनके प्रचार का विशिष्टय कहो, उन्होंने गौर वाणी का प्रचार किया। प्रभुपाद ने मनोधर्म की बात कभी नहीं की।
श्री चैतन्यमनोऽभीष्टं स्थापितं येन भूतले स्वयं रूपः कदा मह्यं ददाति स्वपदान्तिकम् ( श्री रूप गोस्वामी प्रणाम मंत्र)
अर्थ:- श्रील रूप गोस्वामी प्रभुपाद कब मुझे अपने चरणकमलों में शरण प्रदान करेंगे, जिन्होंने इस जगत में भगवान चैतन्य की इच्छा की पूर्ति के लिए प्रचार अभियान की स्थापना की है?
श्री चैतन्यमनोऽभीष्टं- चैतन्य महाप्रभु का मनोऽभीष्ट। चैतन्य महाप्रभु जो स्वयं भगवान् हैं, उनके क्या विचार हैं? उनकी क्या इच्छा है? उनकी क्या योजना है? उन्होंने कौन सी भविष्यवाणी की थी? चैतन्य महाप्रभु क्या चाहते थे? उन्होंने कौन से धर्म का प्रचार किया? स्वयं भगवान् चैतन्य महाप्रभु ने कौन से धर्म की स्थापना की? यह सब समझ कर और उसके साक्षात्कार के साथ ही फिर श्रील प्रभुपाद ने उस गौर वाणी का प्रचार किया।
एवं परम्पराप्राप्तमिमं राजर्षयो विदुः ।स कालेनेह महता योगो नष्टः परन्तप ।।( श्री भगवतगीता ४.२) अनुवाद:- इस प्रकार यह परम विज्ञान गुरु-परम्परा द्वारा प्राप्त किया गया और राजर्षियों ने इसी विधि से इसे समझा | किन्तु कालक्रम में यह परम्परा छिन्न हो गई, अतः यह विज्ञान यथारूप में लुप्त हो गया लगता है। उनके गुरु महाराज ने उनको आदेश दिया कि तुम पाश्चात्य देशों में प्रचार करो। तुम बड़े बुद्धिमान लगते हो।
मैं तो कहूंगा और कहता ही रहता हूं। 1922 में कोलकाता में श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर ने अभय बाबू की ओर उंगली करते हुए कहा था जोकि अभी अभी अंदर ही आए थे और प्रणाम करके पूरी तरह अंदर बैठे ही नहीं थे। इतने में श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर ने उंगली करते हुए बोले कि तुम पाश्चात्य देशों में प्रचार करो। श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर के मुखारविंद से यह वचन तो निकले थे लेकिन इसके मूल वक्ता तो स्वयं श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु है। श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर के मुख अथवा जिव्हा का उपयोग किया अर्थात उन्होंने श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर को निमित्त बनाया। श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर इस आदेश देने के निमित्त बने लेकिन यह आदेश तो भगवान का ही आदेश है जो कि अभय बाबू को वहाँ हो रहा था। जो भविष्य में हमारे श्रील प्रभुपाद बने। श्रील प्रभुपाद की जय!
श्रील प्रभुपाद ने गौर वाणी का प्रचार किया। राम और कृष्ण का प्रचार तो हो ही रहा था लेकिन कलियुग में चैतन्य महाप्रभु द्वारा किए गए प्रचार की आवश्यकता अधिक थी। राम और कृष्ण के साथ में चैतन्य महाप्रभु का प्रचार हो रहा था। यह नहीं कि राम से कृष्ण भिन्न हैं। चैतन्य महाप्रभु भिन्न हैं। राम ही कृष्ण है और कृष्ण ही स्वयं कृष्ण चैतन्य महाप्रभु है।
हरि! हरि! अयोध्या सभी को पता थी। मथुरा, वृंदावन को सभी जानते थे लेकिन मायापुर, नवद्वीप का किसको पता था? श्रील प्रभुपाद ने नवद्वीप मायापुर को प्रकाशित किया। कुछ ही सीमित संख्या में लोग मायापुर को जानते थे। श्रील प्रभुपाद रॉक द् न्यूज़। उन्होंने इस बात को सारे विश्व भर में फैलाया। प्रभुपाद ने मायापुर को प्रकाशित किया और उन्होंने ही मायापुर फेस्टिवल प्रारंभ किया। श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु कौन है?
श्रील प्रभुपाद ने उन्होंने चैतन्य महाप्रभु की शिक्षाओं व चरित्र अर्थात चैतन्य चरितामृत में अंग्रेजी में अनुवाद किया और कहा कि अब चैतन्य चरितामृत का संसार भर की जितनी अधिक भाषाओं में संभव हो, अर्थात जितने से अधिक से अधिक भाषाओं में अनुवाद कर सकते हो उसका अनुवाद करो। इस प्रकार अनुवाद होते गए और उसी के साथ केवल बांग्ला भाषा या उड़िया भाषी लोग ही चैतन्य महाप्रभु व उनकी लीलाओं को जानते थे या उनके धाम को जानते थे, अब वे चैतन्य चरितामृत को अपनी-अपनी भाषाओं में पढ सकते हैं। संसार भर के जीव जो भगवान के ही अंश हैं
ममैवांशो जीवलोके जीवभूतः सनातनः । मनःषष्ठानीन्द्रियाणि प्रकृतिस्थानि कर्षति ॥ ( श्रीमद् भगवतगीता १५.७)
अनुवाद:- इस बद्ध जगत् में सारे जीव मेरे शाश्र्वत अंश हैं। बद्ध जीवन के कारण वे छहों इन्द्रियों के घोर संघर्ष कर रहे हैं, जिसमें मन भी सम्मिलित है।
वे मायापुर धाम से परिचित हुए। तत्पश्चात मायापुर विश्वभर के गौड़ीय वैष्णवों के लिए मक्का बन गयी। जैसे मुसलमान का तीर्थ स्थान मक्का है या ईसाइयों का जेरुसलम है। सिख भाइयों का अमृतसर है ऐसे ही गौड़ीय वैष्णवों का तीर्थ मायापुर है। मायापुर धाम की जय! हरि! हरि! चैतन्य महाप्रभु ने स्वयं भी नृत्य और कीर्तन किया था।
महाप्रभोः कीर्तन-नृत्यगीत वादित्रमाद्यन्-मनसो-रसेन रोमाञ्च-कम्पाश्रु-तरंग-भाजो वन्दे गुरोः श्रीचरणारविन्दम्॥ ( श्री श्री गुर्वाष्टक श्लोक संख्या २)
अनुवाद:-श्रीभगवान् के दिव्य नाम का कीर्तन करते हुए, आनन्दविभोर होकर नृत्य करते हुए, गाते हुए तथा वाद्ययन्त्र बजाते हुए, श्रीगुरुदेव सदैव भगवान् श्रीचैतन्य महाप्रभु के संकीर्तन आन्दोलन से हर्षित होते हैं। वे अपने मन में विशुद्ध भक्ति के रसों का आस्वादन कर रहे हैं, अतएव कभी-कभी वे अपनी देह में रोमाञ्च व कम्पन का अनुभव करते हैं तथा उनके नेत्रों में तरंगों के सदृश अश्रुधारा बहती है। ऐसे श्री गुरुदेव के चरणकमलों में मैं सादर वन्दना करता हूँ।
हम गाते ही रहते हैं। महाप्रभोः कहना है, महाप्रभू नहीं कहना है। यह भी एक करेक्शन है। समझे? आप इतनी आसानी से नहीं समझोगे, मुंडी तो हिला रहे हो? सुनने के बाद भी आपका महाप्रभू कीर्तन-नृत्यगीत ही चलेगा। थोड़ा वैष्णव गीत पुस्तक( सॉन्ग बुक) में देखा करो। जो गलत उच्चारण करते हैं, यदि हम उनको सुनते हैं तब हम भी अंधाधुंध उनका अनुसरण करते हैं। ऐसे हम भी गलत उच्चारण को दोहराते रहते हैं, थोड़ा ध्यान दो। सॉन्ग बुक खोल कर, थोड़ा नए भक्त बन कर छोटी बड़ी मात्राएँ आदि देखो। प्रभु है या प्रभू और उसमें नमस्ते सारस्वते देवे भी लिखा है। सरस्वती नहीं लिखा है।
महाप्रभोः कीर्तन-नृत्यगीत महाप्रभु ने कीर्तन और नृत्य किया और तब वादित्र अर्थात वाद्य भी बजते थे। परिभाषा की दृष्टि से संकीर्तन उसको कहा जाता है जब कम से कम तीन बातें तो होती ही हैं। कीर्तन होता है, वाद्य बजते हैं और नृत्य होता है। ये तीन तो होने ही चाहिए, तब ही सम्यक प्रकार से संकीर्तन हुआ।
'मनसो-रसेन' वह सबसे अधिक महत्वपूर्ण हैं। हमारे भाव भक्ति मन की स्थिति ऐसी है, तो फिर संकीर्तन हुआ। श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने स्वयं ऐसा संकीर्तन किया। फिर उन्होंने भविष्यवाणी भी की।
पृथिवीते आछे यत नगरादि-ग्राम।सर्वत्र प्रचार हइबे मोर नाम।। ( चैतन्य भागवत अन्तय खण्ड ४.१.२६) अनुवाद:- पृथ्वी के पृष्ठभाग पर जितने भी नगर व गाँव हैं, उनमें मेरे पवित्र नाम का प्रचार होगा।
इसको भी कंठस्थ करो। आप प्रचारक हो। चैतन्य महाप्रभु की वाणी को कंठस्थ करो, ह्रदयंगम करो। चैतन्य महाप्रभु ने भविष्यवाणी की थी या की हुई है कि मेरे नाम का सर्वत्र प्रचार होगा। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।
इसका प्रचार सर्वत्र होगा, हर नगर हर ग्राम में होगा। हरि! हरि! इसके लिए भी प्रभुपाद ने कई सारी योजनाएं बनाई जिससे हरि नाम का प्रचार हो। प्रभुपाद ने ही नगर संकीर्तन प्रारंभ किए। 26 सेकंड एवेन्यू से पहले भी प्रभुपाद फुटपाथ पर कीर्तन किया करते थे। वह न्यूयॉर्क के फुटपाथ पर बैठकर अक्षरशः कीर्तन करते थे। पब्लिक चेंटिंग(जपा) फुटपाथ पर शुरू हुई थी। तत्पश्चात धीरे-धीरे श्रील प्रभुपाद ने न्यूयॉर्क में मैनहैटन के सेकंड एवेन्यू नाम के स्थान पर किराए का स्थान लिया।
वहां एक साइन बोर्ड था। उनके अनुयायियों ने कहा,- स्वामी जी! स्वामी जी! एक साइन बोर्ड लगा हुआ है। उसको उतार दें? पहले के दुकानदार ने अपनी दुकान तो शिफ्ट कर दी लेकिन अपना साइन बोर्ड वहीं छोड़कर चला गया। तब प्रभुपाद ने पूछा- क्या लिखा है? तो उन्होंने बताया उस पर लिखा है मैचलेस गिफ्ट। प्रभुपाद ने जब सुना कि उस बोर्ड पर मैचलेस गिफ्ट लिखा है। प्रभुपाद ने कहा- 'नहीं! नहीं!' इसे मत छुओ। साइन बोर्ड मत उतारो उसे वही लगे रहने दो। यह सही है। यह साइन बोर्ड सही है क्योंकि जो भेंट मैं लेकर आया हूं या जिस भेंट का मैं इस स्थान से वितरण कर रहा हूं, यह भेंट, यह गिफ्ट मैचलेस गिफ्ट ही है। वह साइन बोर्ड वहीं रह गया। वह इस्कॉन का पहला औपचारिक स्थान रहा। मैचलेस गिफ्ट शॉप जो किराए का लिया हुआ था, वहां पर कीर्तन, नृत्य औऱ प्रसाद वितरण सब हुआ फिर धीरे-धीरे श्रील प्रभुपाद टम्पकिन स्क्वेयर पार्क में गए। वह न्यूयॉर्क का सबसे प्रसिद्ध पार्क है। वहां पर श्रील प्रभुपाद ने कीर्तन प्रारंभ किया। यह वही स्थान है, आपने देखा होगा कि श्रील प्रभुपाद एक पेड़ के बगल में खड़े हैं। उसका तना बड़ा है। श्रील प्रभुपाद ऐसे खड़े हैं और कुछ लोग प्रभुपाद के सामने खड़े हैं। प्रभुपाद उनको देख रहे हैं और उनको सम्बोधित(एड्रेस) कर रहे हैं। आपको याद है? आपने टम्पकिन स्क्वेयर पार्क का वह चित्र देखा होगा? 1996 में श्रील प्रभुपाद का १००वां बर्थ एनिवर्सरी अर्थात जन्म शताब्दी महोत्सव मनाया गया था। वह एक बहुत ही विशेष आयोजन रहा। (क्या कहा जा सकता है)
इस्कॉन में जी.बी.सी मिनिस्ट्री का संगठन किया हुआ था। प्रभुपाद सैनिटनियल मिनिस्ट्री। सेलिब्रेशन तो 1996 में होना था किंतु इस मिनिस्ट्री की स्थापना1992 में हुई थी। जी.बी.सी ने मुझे आदेश दिया अथवा मुझे मिनिस्टर बनाया था और हम सैनिटनियल मिनिस्टर के रूप में सारे उत्सव की तैयारी कर रहे थे। ऐसी समझ होती हैं कि 80% प्लानिंग 20% एग्जीक्यूशन( कार्यान्वन) के लिए समय या रिसोर्सेज का उपयोग होना चाहिए। हम उत्सव के सेलिब्रेशन के लिए मास्टर प्लान बना रहे थे अथवा चार वर्ष तैयारी कर रहे थे। तब पांचवें वर्ष 1996 में पूरे साल भर के लिए 1 जनवरी से वह सेलिब्रेशन प्रारंभ किया और 31 दिसंबर 1996 तक चलता ही रहा। हरि! हरि! कई सारी योजनाएं थी। अब पुनः वैसा ही कुछ वर्ष 2021 है। जब इस्कॉन श्रील प्रभुपाद के 125वां जन्म शताब्दी उत्सव को मना रहा है, मतलब आप मनाओगे। आपके बिना तो इस्कॉन का अस्तित्व ही नहीं है। हम सब मिलकर साल भर यह उत्सव मनाएंगे। देखो! आप क्या क्या कर सकते हो? एक तो थोड़ा मैंने हल्की सी बात कही है कि हमें प्रभुपाद कॉन्शियस बनना है। हमें अपनी प्रभुपाद कॉन्शसनेस को बढ़ाना होगा। श्रील प्रभुपाद कौन थे और श्रील प्रभुपाद कौन है? हम भविष्य में समय-समय पर श्रील प्रभुपाद के विषय में और भी कहते जाएंगे। श्रील प्रभुपाद का जीवन चरित्र है। आप प्रभुपाद से नहीं मिल पाए जब स्वयं श्रील प्रभुपाद विद्यमान थे तब आपने उन्हें नहीं देखा। आपने उनको नहीं सुना। आप श्रील प्रभुपाद का जीवन चरित्र प्रभुपाद लीलामृत ग्रंथ से पढ़ सकते हैं। यदि आपके पास नहीं है, क्या आपके पास है? श्याम सुंदर शर्मा जी क्या आपके पास प्रभुपाद लीलामृत है? है! वेरी गुड (बहुत अच्छा) माताजी के पास भी है, पदम सुंदरी के पास भी है। जिनके पास नहीं है और संभावना है कि अधिकतर भक्तों के पास नहीं होगी। प्रभुपाद के अन्य ग्रंथ गीता भागवत होते हैं लेकिन भक्त लीलामृत थोड़ा कम ही लेते हैं।
इस वर्ष के प्रारंभ में ही देखना कि आपकी लाइब्रेरी अथवा ग्रंथालय में प्रभुपाद लीलामृत हो। जब अगली बार इस्कॉन मंदिर जाओगे या कल रविवार है, आप कल भी जा सकते हो या प्रभुपाद लीलामृत मंगवा सकते हो। प्रभुपाद लीलामृत का अध्ययन करो। श्रील प्रभुपाद को जानो, श्रील प्रभुपाद को समझो। इस्कॉन के संस्थापकाचार्य को समझो। जिन्होंने (क्या कहा जाए) संसार भर में खलबली मचाई है। संसार भर के कई जीवो के विचारों व भावों में क्रांति 'रेवोल्यूशन इन कॉन्शसनेस' लायी है। पाश्चात्य देश के लोग और अब संसार भर के लोग ऐसे नियमों का पालन कर रहे हैं जो कभी उन्होंने सुने भी नहीं थे और कल्पना भी नहीं की होगी कि ऐसी जीवनशैली भी हो सकती है या ऐसे नियम भी होते हैं या पालन करना होता है। 'नो मीट ईटिंग' अर्थात मांस भक्षण नहीं करना- केवल कृष्ण प्रसाद ग्रहण करना चाहिए। लोग इस नियम का पालन करने लगे। यह भी एक क्रांति है। कोई नशा पान नहीं करना- जैसे आप लोग जलपान करते हो या भोजन के समय कुछ जल का प्याला रखते हो, उसी प्रकार पाश्चात्य देशों में भोजन के समय ब्रेकफास्ट या लंच या डिनर के समय साथ में शराब की बोतल होती है, वे लोग शराब पीते हैं, शराब जो खराब है जो राक्षसों का पेय है, राक्षस पीते हैं, वैसा पान करने वालों को श्रील प्रभुपाद ने चैतन्य चरितामृत का पान या हरिनामामृत का पान या चरणामृत ( भगवान् के अभिषेक के बाद चरणामृत) का पान करना सिखाया। वे तैयार हुए , इसमें चाइनीज भी सम्मिलित हुए जो क्या नहीं खाते, क्या नहीं पीते स्नेक सूप पीने वाले या चूहे खाने वाले और क्या क्या कहा जाए आपको, ऐसे लोगों से यह सब अभक्ष्य भक्षण छुड़वाया और यह सारे संसार भर के पेय बंद किए और अवैध स्त्री पुरुष सङ्ग जो उनके लिए नार्मल जीवन है,सेकेंड नेचर है, यह बाएं हाथ का खेल है ऐसे काम धंधे करना पर स्त्री पर पुरुष सङ्ग करना श्रील प्रभुपाद ने वह सब छुड़वा दिया। प्रभुपाद ने ब्रह्मचारी, संन्यासी और गृहस्थ आश्रम की स्थापना की। जो पहले ग्रहमेधी हुआ करते थे, प्रभुपाद ने उनको गृहस्थ आश्रमी बनाए। यह तीसरी बात हुई। चौथी बात है नो गैम्बलिंग अर्थात जुआ नहीं खेलना- प्रभुपाद ने यह बात सिखाई और हम संसार भर में समझ और उनका पालन कर रहे हैं। यह बहुत बड़ी घटना है। इन नियमों का पालन करने के लिए भी संसार भर के लोग तैयार हुए हैं व पालन कर रहे हैं। यह सब करो।भगवान ने श्रील प्रभुपाद को यह सब करने का उपदेश देने के लिए ही निमित्त बनाया।
तस्मात्त्वमुत्तिष्ठ यशो लभस्व जित्वा शत्रून् भुङ्क्ष्व राज्यं समृद्धम् । मयैवैते निहताः पूर्वमेव निमित्तमात्रं भव सव्यसाचिन् ॥ ( श्रीमद् भगवतगीता ११.३३)
अनुवाद:- अतःउठो! लड़ने के लिए तैयार होओ और यश अर्जित करो | अपने शत्रुओं को जीतकरसम्पन्न राज्य का भोग करो |ये सब मेरे द्वारा पहले ही मारे जा चुके हैं और हे सव्यसाची! तुम तो युद्ध में केवल निमित्तमात्र हो सकते हो।
यह सब फैलना तो था ही क्योंकि चैतन्य महाप्रभु की इच्छा और भविष्यवाणी थी कि हरि नाम का प्रचार सर्वत्र होगा और सर्वत्र हरि राम का कीर्तन होगा। और सारे संसार भर के लोग नाम से ही फिर धाम तक नवद्वीप तक पहुंचेंगे, जहां श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु प्रकट (जन्म स्थान) हुए थे। यह सब होना था। श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने भविष्यवाणी की थी। महाप्रभु ने श्रील प्रभुपाद को सेनापति भक्त बनाया और उनको ऐसी एंपावरमेंट ( शक्ति) दे दी, उनको साक्षात हरि बनाया। श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने उनको निमित्त बनाया और भगवान् ने श्रील प्रभुपाद से अंतरराष्ट्रीय कृष्ण भावनामृत संघ की स्थापना करवाई। उससे पहले श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर से वह आदेश दिलवाया अर्थात चैतन्य महाप्रभु ने श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर को माध्यम अथवा निमित बनाकर आदेश दिया।
बहूनां जन्मनामन्ते ज्ञानवान्मां प्रपद्यते ।वासुदेवः सर्वमिति स महात्मा सुदुर्लभः ॥
( श्रीमद् भगवतगीता ७.१९) अनुवाद:- अनेक जन्म-जन्मान्तर के बाद जिसे सचमुच ज्ञान होता है, वह मुझको समस्त कारणों का कारण जानकर मेरी शरण में आता है | ऐसा महात्मा अत्यन्त दुर्लभ होता है।
भगवान के यह गिने-चुने महात्मा बहुत ही दुर्लभ महात्मा हैं। श्रील प्रभुपाद की जय! हम उनका 125 वां जन्म वर्ष मनाने वाले हैं। आप भी मनाओगे? आप भी तैयार हो? आप अगर तैयार हो तो हम यहीं पर विराम देते हैं। अगर आप तैयार नहीं हो तो फिर और कुछ बोलना होगा। ठीक है।
समय भी बीत चुका है। मैं यहीं पर विराम देता हूं। आप सोचो क्या क्या कर सकते हो? एक तो प्रभुपाद लीलामृत का अध्ययन करना है। प्रभुपाद के जीवन चरित्र और शिक्षाओं का अध्ययन करो। अच्छे प्रभुपादनुग बनो। जैसे पिता या दादा की इच्छा(विल) होती है उसी प्रकार प्रभुपाद कि विल को समझो और उसका एग्जीक्यूशन(कार्यान्वन) करो। प्रभुपाद के शिष्य या प्रभुपाद के पड़शिष्य हम यह मिलकर उत्सव मनाने वाले हैं। तैयार हो जाओ।
कल एकादशी है। हम कल मिलेंगे। कल वैसे कीर्तन मिनिस्ट्री की ओर से कुछ कार्यक्रम रखे हैं। विश्व भर के भक्तों के लिए हमारा जप और जपा टॉक और थोड़ा कीर्तन भी होगा। मेरा भी स्लॉट है और कुछ अन्य भक्तों के भी स्लॉट हैं अन्य भक्त भी जप करने वाले हैं जपा रिट्रीट जैसे कुछ टॉक भी होंगे और कीर्तन भी होगा। हमारी मिनिस्ट्री का हर एकादशी को ऐसा करने का विचार है। कल पहली एकादशी है जिसे श्रवणं कीर्तन उत्सव नाम दिया गया है। श्रवण कीर्तन उत्सव एकादशी के दिन ही मनाएंगे जो कि कल से 6:00 बजे से प्रारंभ हो रहा है लेकिन हम अपना सत्र 5:45 बजे शुरू करेंगे लेकिन उसकी घोषणा में 6:00 बजे ही कहा है। ६-७.३० तक जप तत्पश्चात जपा टॉक फिर कीर्तन होगा। सब आधा-आधा घंटे का रहेगा तत्पश्चात तब दूसरे भक्त इसको आगे बढ़ाएंगे। कल जप चर्चा अंग्रेजी में होने की संभावना है क्योंकि यह सारे संसार भर के भक्तों के लिए है। ओके (ठीक है)
पदमाली स्कोर का अनाउंसमेंट कल नहीं हो पाएगा क्योंकि कीर्तन मिनिस्ट्री ने कल फिक्स प्रोग्राम रखा है। इसका अनाउंसमेंट सोमवार को रखो। ठीक है। हरे कृष्ण!
English
23 January 2021
Let the whole world know who is Srila Prabhupada
Hare Krsna! Devotees from over 726 locations are chanting with us right now.
om ajnana-timirandhasya jnananjana-salakaya cakshur unmilitam yena tasmai sri-gurave namah
nama om vishnu-padaya krishna-preshthaya bhu-tale srimate bhaktivedanta-svamin iti namine
namas te sarasvate deve gaura-vani-pracarine nirvisesha-sunyavadi-pascatya-desa-tarine
sri-krsna-caitanya prabhu-nityananda sri-advaita gadadhara srivasadi-gaura-bhakta-vrnda
Hare Krishna Hare Krishna Krishna Krishna Hare Hare Hare Rama Hare Rama Rama Rama Hare Hare
Jaya Om Vishnu-pada paramahamsa parivrajakacharya ashtottara-shata Shri Srimad His Divine Grace Srila A. C. Bhaktivedanta Swami Srila Prabhupada ki …jai
yadi prabhupada na hote toh kya hota, yeh jivan behta kaise?
If Srila Prabhupada had not come, what would have happened? How could we have passed our lives?
2021 is a very special year for ISKCON devotees, for Prabhupadanugas. Who are Prabhupada - anuga? Some are raising their hands. I am also Prabhupadanuga. Prabhupada is Prabhupada and anuga means the followers of Srila Prabhupada. We all are Prabhupadanuga. This is a very special year for Prabhupadanugas. Prabhupada was born in 1896 so this year is the 125th birth anniversary of Srila Prabhupada.
I am reminding you of this at the beginning of the year. We will have celebrations throughout this year. ISKCON will be celebrating. What does ISKCON mean? You all are ISKCON. We all make ISKCON. ISKCON is made by its members. If there are no members then there is no existence of the society. If the people don’t unite, then how can it be a society? In the International society for Krishna Consciousness we are united and because of our unity,
catur-vidha-sri-bhagavat-prasadasvadv- anna-triptan hari-bhakta-sanghan kritvaiva triptim bhajatah sadaiva vande guroh sri-caranaravindam
Translation:
The spiritual master is always offering Krishna four kinds of delicious food [analyzed as that which is licked, chewed, drunk, and sucked]. When the spiritual master sees that the devotees are satisfied by eating bhagavat-prasada, he is satisfied. I offer my respectful obeisances unto the lotus feet of such a spiritual master. When Srila Prabhupada sees the devotee honouring prasada he becomes very happy.
hari-bhakta-sanghan When we come together, it’s very important that we unite, then only will it become the International society for Krishna Consciousness.
It is said Sanghe Shakti Kaliyuge — only unity has power in Kaliyuga. Unity is strength. People will display their power by coming together and uniting. Many unions keep doing that. They just come together, unite. Their objective may be something wrong also and mostly it is, but they display their power by coming together.
United we stand.
This year we have to come together. Being Prabhupada conscious, we have to increase awareness of Prabhupada, remembrance of Prabhupada and manifest transcendental emotions for Srila Prabhupada. With transcendental emotions we have to unite and display the power of Srila Prabhupada, the power of Krsna and the power of our devotion and Harinama.
Prabhupada gave us a message, Chant and be happy.
namas te sārasvate deve gaura-vāṇī-pracāriṇe nirviśeṣa-śūnyavādi-pāścātya-deśa-tāriṇe
Translation
Our respectful obeisances are unto you, O spiritual master, servant of Bhaktisiddhanta Saraswati Goswami. You are kindly preaching the message of Lord Chaitanya and delivering the Western countries, which are filled with impersonalism and voidism.
Don’t say sarasvati, say namas te sārasvate. Many of us keep pronouncing it wrongly as sarasvati. Prabhupada had written a letter to one of his disciples.
Srila Prabhupada says, '' You should pronounce it Sarasvate, not Sarasvati. Sarasvati is my spiritual master. So his disciple is Sarasvate.’’
It’s not sarasvati as in Laksmi and Sarasvati, its sarasvate, a disciple of Bhakti Siddhanta Sarasvati.
Let us do it this year, let’s say namaste sarasvate. There is no sarasvati here. Bhakti Siddhanta Sarasvati is there and his disciple is addressed as namaste sarasvate deve. You remind others that saying sarasvati is wrong. When we offer obeisances to the founder acarya we pronounce it incorrectly. All 726 of you hearing me become agents on my behalf and also on behalf of the Kirtana Ministry. Correct those who pronounce it incorrectly. Remind them whenever they say namaste sarasvati that it is wrong. Will you do this? Prabhupada had expressed his resentment in a letter to his disciple.
namaste sarasvate deve gaura-vani-pracharine nirvishesha-sunyavadi
He preached gaura-vani, preached the message of Lord Caitanya and protected the Western countries from impersonalism and voidism.
Buddha Deva preached sunyavad [voidism]. Sankaracarya preached impersonalism, advaitavada and the whole world is filled with this impersonalism and voidism, Prabhupada saved the world from impersonalism and voidism.
You will say we are not from the Western world. Prabhupada has not only saved them, but us also. Then why is it pashchatya-desha-tarine you may ask. Are your understanding what is this pashchatya-desha-tarine? He not only saved the westerners, but also the eastern people. Prabhupada pranam mantra was written and Prabhupada instructed everyone to say this pranam mantra. At that time, before 1970, preaching was being done only in the Western countries. This pranam mantra was written then. After 1970 Prabhupada returned to India. In 1971 we meet Srila Prabhupada. We are using the same mantra written before 1970. We have to understand that Prabhupada saved not only the western countries but also the eastern countries. He saved us by preaching the message of Sri Caitanya Mahaprabhu, Gauranga! Gauranga!
Srila Prabhupada’s speciality is that he spread Gaura-vani all over. There is no place for mental
speculation.namo maha-vadanyaya krishna-prema-pradaya te krishnaya krishna-chaitanya- namne gaura-tvishe namah
Translation
O most munificent incarnation! You are Krsna Himself appearing as Sri Krsna Caitanya Mahaprabhu. You have assumed the golden colour of Srimati Radharani, and You are widely distributing pure love of Krsna. We offer our respectful obeisances unto You.
Sri Krsna Caitanya Mahaprabhu is Lord Krsna. Understanding the desires, thoughts and plans and prediction of Sri Caitanya Mahaprabhu and realising all this, Srila Prabhupada preached Gaura-vani.
evam parampara-praptam imam rajarsayo viduh sa kaleneha mahata yogo nastah parantapa
Translation
This supreme science was thus received through the chain of disciplic succession, and the saintly kings understood it in that way. But in course of time the succession was broken, and therefore the science as it is appears to be lost. [BG 4.2]
His spiritual master instructed him to preach in the West. You look very intelligent. I always keep saying, in Kolkatta in 1922 Srila Bhaktisiddhanta Sarasvati Thakur had said pointing his finger towards Abhay Babu who had just arrived at the gathering. He had not even settled after offering obeisances. His spiritual master said, ‘You preach in the West.’ The words are coming from Bhaktisiddhanta Sarasvati Thakur, but the original instructor was Sri Krsna Caitanya Mahaprabhu, Bhaktisiddhanta Sarasvati was made the instrument to give that instruction to Srila Prabhupada. This was order of Sri Krsna Caitanya Mahaprabhu to Abhaya Babu who in future became our Srila Prabhupada.
Preaching of Rama and Krsna was going on, but in Kaliyuga the preaching of Caitanya Mahaprabhu was required. It’s not that Rama is different from Krsna or Krsna is different from Caitanya Mahaprabhu. They are the same.
Everyone knew Ayodhya, Vrndavana and Mathura, but nobody knew Mayapur, Navadvipa. Prabhupada has revealed Mayapur and Navadvipa. Very few people knew about Mayapur, but Srila Prabhupada broke the news. He started the Mayapur festival. Then who is Sri Krsna Caitanya Mahaprabhu and the Life and teachings Caitanya-caritamrta was translated in English by Prabhupada. He then instructed that Caitanya-caritamrta should be translated in as many languages as possible. These translations kept happening. Only some Bengali devotees knew Caitanya Mahaprabhu, but now people all over the world know about Caitanya Mahaprabhu by reading Caitanya-caritamrta in their own language.
mamaivamso jiva-loke jiva-bhutah sanatanah
Translation
The living entities in this conditioned world are My eternal, fragmental parts.
The Jiva got introduced to Mayapur and Navadvipa. Mayapur became famous. It became the Mecca for devotees. It became a pilgrimage place for Vaisnavas all over the world. The pilgrimage place for our Muslim brothers is Mecca, Amritsar is for our Sikhs brothers and Jerusalem for our Christian brothers. Like that Mayapur is the pilgrimage place for Gaudiya vaisnavas.
mahaprabhoh kirtana-nritya-gitavaditra- madyan-manaso rasena
Translation
Chanting the holy name, dancing in ecstasy, singing, and playing musical instruments, the spiritual master is always gladdened by the sankirtana movement of Lord Caitanya Mahaprabhu. Because he is relishing the mellows of pure devotion within his mind,
Say Mahaprabhoh not Mahaprabhu. This also we should be aware of. This is again another correction. Check the diacritics in the song books. We follow whoever pronounces incorrectly and say Mahaprabhu. Be careful! Become a new devotee. Correct yourself. Mahaprabhu performed kirtana, nrtya and played musical instruments. By definition Sankirtana means there should be at least three things: kirtana, musical instruments are being played and there is nrtya. manaoso-rasena- the state of our mind is very important. Such sankirtana Caitanya Mahaprabhu performed. He also predicted.
prithvite ache yata nagaradi grama sarvatra prachara haibe mora nama
Translation
In as many towns and villages as there are on the surface of the earth, My holy name will be preached.
All our preachers should learn this prediction of Caitanya Mahaprabhu.
Hare Krishna Hare Krishna Krishna Krishna Hare Hare Hare Rama Hare Rama Rama Rama Hare Hare
Prabhupada made plans so that the prediction is realised. He started nagar sankirtana. He literally performed sankirtana on footpaths of New York. Public chanting started on the footpath. Slowly Srila Prabhupada took 26 second Avenue on rent in Manhattan, New York.
Swamiji there is a sign board. Should we remove it?
No, don’t remove the sign board.
The owner of the shop moved shop, but forgot to remove the sign board. Prabhupada asked, “What is written on the board? Matchless gifts. When Prabhupada heard this he said, “No! No! Don’t touch it. Let it be. It’s the correct sign board because the gift which I have brought and will be going to distribute from this place is matchless.” The sign board was left there and this was the first official centre of ISKCON’s Matchless Gift Shop.
Slowly preaching started from there. Prabhupada went to Tompkins Square and started sankirtana there. There is a big tree and Prabhupada is standing there addressing some people who are standing in front of Srila Prabhupada.
In 1996 we celebrated Srila Prabhupada’s 100th birth anniversary. It was a grand celebration. ISKCON formulated the Srila Prabhupada Centennial Ministry in 1992 and the GBC had made me Centennial Minister. We were preparing for the celebration - 80% planning and 20% execution. For four years we were making amaster plan for the celebration and in the fifth year, in 1996 we started the celebration from 1 January till 31 December 1996. It was a full year of celebrations. There were many plans. It is 2021. Similarly we all will be celebrating 125th birth anniversary of Srila Prabhupada. There is no existence of ISKCON without you. All together we will be celebrating this festival for the whole year. Think what you all can do?
We have to become Prabhupada conscious. We have increase our Prabhupada consciousness. Who is Srila Prabhupada? We will keep speaking about Srila Prabhupada as we get time. The life of Srila Prabhupada - Prabhupada Lilamrta. As you all did not meet Srila Prabhupada, you did not hear him. Prabhupada Lilamrta is his life and teachings. There is a possibility that many devotees do not have Prabhupada Lilamrta. Those who don’t have, this is the year see to add it to your library and read it. Know about Srila Prabhupada. Try to understand him. He had brought about revolution in consciousness in the lives of many people. People all over the world are following the rules and regulations given by him.
No meat eating. Honour only Krsna prasada. This rule is being followed. This is also a revolution. No intoxication. Like we have a glass of water with poor meals, in Western countries people have a glass of alcohol. It is a bad thing. It is the drink of the demons. To such people Srila Prabhupada offered Caitanya-caritamrta, Harinamarita and Caranamrita.
No illicit sex. In the West it’s normal or second nature to have an illicit connection, but Prabhupada inspired them give up all this and made them grhastas. They were grhmedis, and Prabhupada made them grhasta. No gambling. People are understanding and following this.
It is great that people all over the world are following the 4 rules and regulations. Preach all this. The Lord has made Srila Prabhupada instrumental.
nimitta-matram bhava savya-sacin
Caitanya Mahaprabhu had predicted that Harinama will spread all over but Srila Prabhupada was made instrumental. All the people will be performing sankirtana and then, nama se dhama tak. The holy name will take us to the Lord’s abode.
Caitanya Mahaprabhu made Srila Prabhupada the senapati bhakta, made him sakshat hari, made him nimmita and ISKCON was established.
bahunam janmanam ante jnanavan mam prapadyate vasudevah sarvam iti sa mahatma su-durlabhah
Translation
After many births and deaths, he who is actually in knowledge surrenders unto Me, knowing Me to be the cause of all causes and all that is. Such a great soul is very rare. [BG 7.19]
We will be celebrating 125th birth anniversary of Srila Prabhupada so get into action. Study the life and teachings of Srila Prabhupada and become a good Prabhupadanuga. Understand the will of Srila Prabhupada and execute it.
Prabhupada’s disciples, Prabhupada’s grand disciples will be celebrating Srila Prabhupada’s 125th birth anniversary together.