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*जप चर्चा*, *गोविंद धाम, नोएडा*, *22 अगस्त 2021* हरी बोल। हमारे साथ 825 स्थानों से भक्त जप कर रहे हैं। हम सब को बल देने वाले या बल के स्त्रोत बलराम। बल भी देने वाले और राम भी देने वाले। *रमयती च इति राम:*। जो रमते हैं और रमाते हैं राम। बलराम आज उनका प्राकट्य दिन है। हरि हरि। कृष्ण बलराम जय कृष्ण बलराम, कृष्ण बलराम जय कृष्ण बलराम, कृष्ण बलराम जय कृष्ण बलराम, कृष्ण बलराम जय कृष्ण बलराम। यह भगवान की जोड़ी है कृष्ण और बलराम। क्या आप अब सुन पा रहे हो? हरि हरि। मैंने बहुत कुछ कहा। बलराम पूर्णिमा महोत्सव की जय। दाऊजी का भैया बलराम को क्या कहोगे आप? कृष्ण कन्हैया। कृष्ण कन्हैया और फिर आपकी बारी है दाऊजी का भैया। दाऊजी का भैया कृष्ण कन्हैया, कृष्ण कन्हैया दाऊजी का भैया। वृंदावन में जब हम बलदेव जाते हैं, दाऊजी मतलब कृष्ण के बड़े भैया। तो वहां पर जब हम परिक्रमा में जाते हैं। वहां पर यह सब गान चलता रहता है। ब्रज के और क्षेत्र में तो जय राधे चलता रहता है। किंतु जब हम महावन जाते हैं। महावन में पहले बलदेव या दाऊजी जाते हैं। वहां पर दाऊजी के भैया कृष्ण कन्हैया दाऊजी के भैया कृष्ण कन्हैया। तो ब्रज में बलदेव के विग्रह है। महावन में 4 देव है। एक बलदेव है, गोविंद देव है, हरिदेव है और मथुरा में कौन है केशव देव। हरि हरि। कृष्ण के परपोत्र उन्होंने इन विग्रहों की स्थापना करी। तो फिर मैं बहुत कुछ सोच तो रहा हूं या सोच तो रहा ही था। लेकिन एक मुख से क्या कह सकता हूं? ऐसे हैं। कृष्ण कथा ही करनी है। एक मुख से और बलराम जी का एक शुद्र जीव क्या गुण गा सकता है? वैसे कहा जाता है कि कृष्णदास कविराज गोस्वामी भी कहे हैं। जितना संभव है, मैं इतना ही कह सकता हूं और इतना ही लिख सकता हूं। चैतन्य महाप्रभु वृंदावन की यात्रा कर रहे हैं। तो वह लिखे हैं कृष्णदास कविराज गोस्वामी कि चैतन्य महाप्रभु वृंदावन का दौरा कर रहे हैं। वह कहते हैं कि बहुत कुछ लिखा और कहा जा सकता है तो मैं यह छोड़ दूंगा। अनंतशेष वदन को कहने दो या सहस्त्र वदन को कहने दो। सहस्त्र वदन कौन है? यह बलराम है। वैसे सर्वोत्तम कथाकार तो बलराम ही है और उनके तो एक हजार मुख है। मैं देख रहा था कि बलभद्र सहस्त्रनाम। सहस्त्र वदन बलराम के हजार नाम है। बलभद्र सहस्त्रनाम, गर्ग संहिता में गर्गाचार्य बलराम के हजार नाम, विष्णु सहस्त्रनाम आपने सुना होगा। तो बलभद्र सहस्त्रनाम गर्गाचार्य ने लिखा है। गर्ग मुनि यदुवंश के आचार्य और पुरोहित थे। उन्होंने लिखी गर्ग संहिता और उन्हें जो भी लिखी गौरवगाथा उसका नाम दिए गर्ग संहिता। यह हम जानते हैं इस नाम से गर्गाचार्य बलराम के 1000 नामों का उल्लेख करते हैं। तो उन नामों में से एक नाम सहस्त्र वदन भी है। बलराम को सहस्त्र वदन क्यों कहते हैं? क्योंकि उनके सहस्त्र वदन ही है। सहस्त्र वदनो से क्या करते हैं? गुण गाथा गाते हैं और उनके लिए कृष्ण भगवान है। वह स्वयं भी भगवान है और साथ ही साथ श्री कृष्ण उनके भगवान है। वह श्रीकृष्ण की गाथा गाते रहते हैं। अनंत शेष हरि कथा गाने वाले कहने वाले तो हो गए, वैसे बलराम स्वयं ही हो गए आचार्य या गुरु। बलराम एक गुरुत्व भी है या आदिगुरु तो बलराम ही है यानी गुरुओं के गुरु बलराम ही है। वह कृष्ण की सेवा करके दिखाते हैं या कृष्ण का गुण गाकर हमको सुनाते हैं। हमारे सभी के समक्ष एक आदर्श प्रस्तुत करते हैं। कृष्ण प्रकट हुए तो सर्व प्रथम कृष्ण को मिलने वाले कौन थे और सेवा करने वाले कौन थे? संकर्षण, कुछ दिन पहले बताया था। बलराम जी आ गए और उनको फनो से छाता बनाकर उन्होंने वर्षा से उनकी सेवा करने लगे और बचाने लगे। सहस्त्र वदन ऐसे बलराम का आज आविर्भाव या प्राकट्य दिन है। ऐसा मैं सोच ही रहा था तो उसमें से जब वृंदावन में कृष्ण बलराम प्रकट हुए या श्रील प्रभुपाद कृष्ण बलराम को प्रकट किए। कृष्ण बलराम विग्रह का प्राकट्य जब हो रहा था। 1975 में तब मैं वहां पर था। रामनवमी का दिन था। कई दिनों तक प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव चलता रहा और अंततोगत्वा कृष्ण बलराम मंदिर की श्रील प्रभुपाद वृंदावन में स्थापना कर रहे हैं। उन्होंने कृष्ण बलराम को केंद्र में रखा है। इस्कॉन के वृंदावन के मंदिर का वैशिष्ट्य है। बगल में राधा श्यामसुंदर और गौर निताई और केंद्र में कृष्ण बलराम की जय। ऑल्टर पर पहले अभिषेक हो रहा था। मंदिर में लोग चारों ओर थे। ऑल्टर पर कृष्ण बलराम को स्थापित किया गया और पहली आरती श्रील प्रभुपाद ने ही की। मैं वहीं पर खड़ा था। कृष्ण बलराम का और साथ ही साथ श्रील प्रभुपाद का दर्शन कर रहा था। सारे संसार को श्रील प्रभुपाद ने कृष्ण बलराम को दिया। श्री कृष्ण बलराम की जय। उस प्रकार उस तरह प्राकट्य हो रहा था। विग्रह भगवान का अवतार है। वृंदावन इस्कॉन कृष्ण बलराम मंदिर के कृष्ण बलराम जिस दिन प्रकट हुए तब मैं वहां पर उपस्थित था। मैं उनके प्राकट्य का साक्षी था। हरि हरि। इस रमणरेती में कृष्ण बलराम गौचारण लीला खेलते हैं और वहीं पर श्रील प्रभुपाद कृष्ण बलराम को प्रकट किए। कृष्ण बलराम के पास ऑल्टर पर ही एक गाय और बछड़ा भी रखा। कई बार कृष्ण बलराम के हाथों में रस्सी होती है और एक रस्सी बछड़े के गले में और दूसरी रस्सी गाय के गले में होती है। जब हम कृष्ण बलराम का श्रृंगार दर्शन करते हैं और कई बार ऐसा अनुभव होता है कि कृष्ण वन में जाने के लिए तैयार हैं। गौचारण लीला के लिए प्रस्थान कर रहे हैं और फिर दिल ललचाता है कि मैं कई बार सोचता रहता हूं। चलो हम भी चलते हैं, कृष्ण बलराम गाय चराने के लिए प्रस्थान कर रहे हैं। चलो मुझे भी ग्वाला बनना है। प्रभुपाद ग्वाले थे। श्रील प्रभुपाद यह सारा कृष्ण बलराम का दर्शन प्रकट किए। हम भी जब कृष्ण बलराम के दर्शन करते हैं, गाय बछड़े भी है और हाथ में डोरी भी है। कभी-कभी लंच पैकेट भी होता है। कृष्ण बलराम के फल भी उनके हाथों में दिए जाते हैं। ऐसा अनुभव होता है कि कृष्ण बलराम अपनी गौचारण लीला के लिए तैयार हैं और चलो, हम भी चलते हैं। श्री कृष्ण बलराम की जय। सभी के इष्टदेव हैं श्री कृष्ण बलराम। तो यह देवकी के सातवें पुत्र रहे। जब शुकदेव गोस्वामी कथा कर रहे थे। वैसे उन्होंने बलराम के प्राकट्य की पूरी कथा तो नहीं कही है। उनसे अधिक कथा तो गर्गाचार्य ने गर्ग संहिता में बलराम प्राकट्य वर्णन किए हैं। किंतु प्रारंभिक वर्णन श्रीमद् भागवत में शुकदेव गोस्वामी पूर्व तैयारी करते हैं। बलराम के प्राकट्य ऐसी तैयारी हो रही थी ताकि वह जन्म ले बलराम। गोलोक में ही कृष्ण बुलाते हैं योगमाया को। योग माया जब पहुंच जाती है। गच्छ देवि व्रज भद्रे गोपगोभिरल तम् रोहिणी वसुदेवस्य भार्यास्ते नन्दगोकुले । अन्याश्च कंससंविग्ना विवरेषु वसन्ति हि ॥ (श्रीमद भगवतम 10.2.7) अनुवाद:- भगवान् ने योगमाया को आदेश दियाः हे समस्त जगत द्वारा पूज्या तथा समस्त जीवों को सौभाग्य प्रदान करने वाली शक्ति , तुम व्रज जाओ जहाँ अनेक ग्वाले तथा उनकी पत्नियां रहती हैं उस सुन्दर प्रदेश में जहाँ अनेक गावें निवास करती हैं , वसुदेव की पत्नी रोहिणी नन्द महाराज के घर में रह रही हैं । वसुदेव की अन्य पत्नियां भी कंस के भय से वहीं अज्ञातवास कर रही हैं कृपा करके वहाँ जाओ । कृष्ण गोलोक में आदेश देते है । गोलोक में यह घटना घट रही है । गोलोकनाम्नि निजधाम्नि तले च तस्य देवीमहेशहरिधामसु तेषु तेषु । ते ते प्रभावनिचया विहिताश्च येन गोविन्दमादिपुरुषं तमहं भजामि ॥ (ब्रह्म संहिता 5.43) अनुवाद:- जिन्होंने गोलोक नामक अपने सर्वोपरि धाम में रहते हुए उसके नीचे स्थित क्रमशः वैकुंठ लोक (हरीधाम), महेश लोक तथा देवीलोक नामक विभिन्न धामों में विभिन्न स्वामियों को यथा योग्य अधिकार प्रदान किया है, उन आदिपुरुष भगवान् गोविंद का मैं भजन करता हूंँ । कृष्ण और बलराम गोलोक में रहते हैं। कृष्ण भी गोलोक के निवासी हैं और बलराम भी गोलोक के निवासी हैं। हरि हरि। भगवता के दृष्टि से विचार करें। कृष्ण कहते हैं गीता में मत्तः परतरं नान्यत्किञ्चिदस्ति धनञ्जय । मयि सर्वमिदं प्रोतं सूत्रे मणिगणा इव ॥ (श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप 7.7) अनुवाद:- हे धनञ्जय! मुझसे श्रेष्ठ कोई सत्य नहीं है | जिस प्रकार मोती धागे में गुँथे रहते हैं, उसी प्रकार सब कुछ मुझ पर ही आश्रित है । वैसे बलराम भी यह वचन कह सकते हैं। लेकिन राम नहीं कह सकते । ना ही परशुराम कह सकते हैं। ना ही और कोई अवतार कह सकता है। लेकिन कृष्ण बलराम यह दोनों कह सकते हैं। *मत्तः परतरं नान्यत्किञ्चिदस्ति धनञ्जय*। तो श्रील प्रभुपाद लिखते है कि कृष्ण और बलराम एक जैसे हैं। केवल उनका कांति का ही अंतर है। एक है घन इव श्याम घनश्याम कृष्ण और दूसरे हैं बलराम यह शुक्ल वर्ण के हैं। वर्ण का ही भेद है। दोनों की भगवता और जैसे राम घोषित नहीं कर सकते हैं *मत्तः परतरं नान्यत्किञ्चिदस्ति धनञ्जय*। लेकिन बलराम कह सकते हैं। कृष्ण में चार अधिक विशेष गुण है। राम में 60 गुण है और बाकी अवतारों में 60 गुण हो सकते हैं। लेकिन कृष्ण में 4 अधिक गुण है और वह गुण बलराम में भी है। कृष्ण का रूप माधुर्य, लीला माधुर्य, प्रेम माधुर्य और वेणु माधुर्य, यह बलराम पर भी लागू होता है। माधुर्य का कह रहे है तो कृष्ण जैसे माधुर्य लीला खेलते हैं वैसे ही बलराम भी माधुर्य लीला खेलते हैं। रास क्रीडा खेलने वाले सिर्फ दो ही भगवान है, एक है कृष्ण और दूसरे बलराम। राम यह नहीं कर सकते हैं। बाकी सब जितने भी अवतार हैं उनकी एक एक लक्ष्मी है, लक्ष्मी नरसिंह, लक्ष्मी वराह। लक्ष्मी नारायण एक लक्ष्मी एक नारायण, एक लक्ष्मी एक नरसिंह, एक लक्ष्मी एक वराह। हर अवतार की अपनी एक–एक लक्ष्मी है किंतु चिन्तामणिप्रकरसद्यसु कल्पवृक्ष- लक्षावृतेषु सुरभीरभिपालयन्तम् । लक्ष्मीसहस्रशतसम्भ्रमसेव्यमानं गोविन्दमादिपुरुषं तमहं भजामि ॥ (ब्रह्म संहिता 5.29) अनुवाद:- जहाँ लक्ष-लक्ष कल्पवृक्ष तथा मणिमय भवनसमूह विद्यमान हैं, जहाँ असंख्य कामधेनु गौएँ हैं, शत-सहस्त्र अर्थात् हजारों-हजारों लक्ष्मियाँ-गोपियाँ प्रीतिपूर्वक जिस परम पुरुष की सेवा कर रही हैं, ऐसे आदिपुरुष श्रीगोविन्द का मैं भजन करता हूँ। वृंदावन में कितनी लक्ष्मियां है? *लक्ष्मीसहस्रशतसम्भ्रमसेव्यमानं* लाखों करोड़ों अरबों लक्ष्मी को व्यस्त रख सकते हैं, प्रसन्न रख सकते हैं। जैसे कृष्ण वैसे बलराम भी। बलराम अपनी गोपियों के साथ भी रास क्रीडा खेलते हैं। कृष्ण की अपनी गोपियां है और बलराम की अपनी गोपियां है। तो द्वारका से जब लौटे थे। बलराम अकेले ही आए थे। द्वारकावासियों ने केवल द्वारका से केवल बलराम को ही भेजा । आप अकेले ही जाओ, आप दोनों नहीं जा सकते। जब बलराम वृंदावन आए थे । वृंदावन में 2 मास के लिए रहे चैत्र वैशाख इन 2 महीने रहे तो उन दिनों में बलराम अपनी रासक्रीडा संपन्न किए । जय रामघाट , जय रोहिणीनन्दन । जय जय वृन्दावनवासी यत जन ॥ 7 ॥ अनुवाद:- जहाँ बलरामजी ने रास रचाया था उस रामघाट की जय हो । रोहिणीनन्दन बलरामजी की जय हो । सब वृन्दावनवासियों की जय हो । जब हम लोग नंद ग्राम से यह सब समय लगेगा यह सब समझा नहीं मैं, तो एक है राम घाट है वहां पर बलराम पहुंच जाते हैं । वहां आज भी बलराम विद्यमान है उनके विग्रह है तो वहां पर रासक्रीडा खेलना चाह रहे थे बलराम । यमुना मैया कुछ दूर थी तो उन्होंने कहा कि यहां आओ ताकि हम रासक्रीडा खेलेंगे तो यमुना कुछ हाना कानी कर रही थी कुछ देरी हो रही थी सुन नहीं रही थी तो बलराम ने ऐसा उसको धमकाया और अपना हल लेके उसको खींचकर अपनी और लाने का प्रयास चल रहा था तो फिर यमुना को चेतना हाई तो यमुना आगे बढ़ी तो जहां यह रामघाट है यमुना सबसे अधिक उसका विशाल पात्र है और कई नहीं है व्रजमंडल में केवल उसी स्थान पर है क्योंकि बलराम ने जो अपने हल से वह खींच रहे थे पास में ला रहे थे तो वहां नदी का विस्तार हुआ । वहां पर फिर रासक्रीडा खेले हैं बलराम राम घाट जहां है तो यह बलराम पहले जन्म लेते हैं तो हम बता रहे थे । मैं नहीं बता रहा था वैसे । शुकदेव गोस्वामी बता चुके हैं की कृष्ण योगमाया को बुलाए गोलक में ही और कहे कि हे भद्रे 'व्रजंगच्छ' वृंदावन जाओ । ठीक है मैं चाहती हूं । क्या आदेश है ? क्या मेरा काम है ? गच्छ देवि व्रज भद्रे गोपगोभिरल तम् रोहिणी वसुदेवस्य भार्यास्ते नन्दगोकुले । अन्याश्च कंससंविग्ना विवरेषु वसन्ति हि ॥ ( श्रीमद् भागवतम् 10.2.7 ) अनुवाद:- भगवान् ने योगमाया को आदेश दियाः हे समस्त जगत द्वारा पूज्या तथा समस्त जीवों को सौभाग्य प्रदान करने वाली शक्ति , तुम व्रज जाओ जहाँ अनेक ग्वाले तथा उनकी पलियाँ रहती हैं उस सुन्दर प्रदेश में जहाँ अनेक गावें निवास करती हैं , वसुदेव की पत्नी रोहिणी नन्द महाराज के घर में रह रही हैं । वसुदेव की अन्य पलियाँ भी कंस के भय से वहीं अज्ञातवास कर रही हैं कृपा करके वहाँ जाओ । देवक्या जठरे गर्भ शेषाख्यं धाम मामकम् । तत्सन्निकृष्य रोहिण्या परे सन्निवेशय ॥ ( श्रीमद् भागवतम् 10.2.8 ) अनुवाद:- देवकी के गर्भ में संकर्षण या शेष नाम का मेरा अंश है । तुम उसे बिना किसी कठिनाई के रोहिणी के गर्भ में स्थानान्तरित कर दो । तो योग माया को गोलक में ही श्री कृष्ण बता रहे हैं वसुदेव की एक र्भाया एक पत्नी आजकल उस समय 5200 कितने ? 48 वर्ष पूर्व तो कृष्ण प्रकट हुए । बलराम उनके लगभग 1 साल पहले तो फिर 49 हो जाएगा । 5249 ऐसा लगभग जोड़ना होगा इतने वर्ष पूर्व कृष्ण बता रहे हैं तो आजकल इस समय वसुदेव की एक र्भाया गोकुल में रहती है । उसका नाम है रोहिणी तो तुम को क्या करना है ? इस समय "शेषाख्यं धाम मामकम्" मैं ही मनो अनंत शेष के रूप में या अनंतशेष बलराम के रूप में देवकी के गर्भ में पहुंच चुका हूं या बलराम देवकी के गर्भ में है तो है योग माया तुमको बलराम को देवकी के गर्भ से मथुरा के कारागार में, कंस कारागार में देवकी है उनके गर्भ से रोहिणी के गर्भ में बलराम को पहुंचा दो तो फिर वैसे ही हुआ है और फिर आज के दिन तो नहीं । रोहिणी के गर्भ में बलराम पहुंच गए और कुछ ही दिन वहां रहे अब उनको पूरे 9-10 मास रहने की आवश्यकता नहीं थी इतने दिन उतना समय तो देवकी के गर्भ में वे थे ही केवल प्रकट होने के उद्देश्य से रोहिणी के गर्भ में पहुंचे हैं या पहुंचा गया है तो आज के दिन रोहिणी ने बलराम को जन्म दिया । हरि बोल ! और वह वे गए रोहिणी नंदन बलराम । गर्ग मुनि वर्णन करते हैं जैसे कृष्ण का जन्म मथुरा में जब होता है तो सारे देवता पहुंच गए । एक तो बलराम का जन्म गोकुल में हुआ है इसको समझना होगा तो देवता वहां पहुंचे हैं और देवता ही नहीं सारे अप्सरा पहुंची है गंधर्भ पहुंचे हैं और गान चल रहा है, नृत्य हो रहा है, पुष्प वृष्टि हो रही है और स्तुति हो रही है बलराम की और जय बलदेव ! तो गर्गाचार्य समझाते हैं गर्गसंहिता में की गोकुल के निवासियों को थोड़ा आश्चर्य हो रहा था कि हुआ क्या और कुछ मन में कुछ शंकाएं भी उत्पन्न हो रही थी । रोहिणी के पतिदेव तो मथुरा में है और यहां कैसे गर्भवती हुई और यहां कैसे उसने जन्म दिया यह क्या मामला है ? ऐसा कुछ मन में प्रश्न कहो कुछ शंकाए उत्पन्न हो रही थी तो इस शंका का समाधान या इन प्रश्नों का उत्तर देने के लिए वैसे सोयम श्रील व्यास देव वहां पहुंच जाते हैं और प्रश्न के उत्तर देने के लिए नहीं वह आ ही जाते हैं । नारद मुनि आ जाते हैं । कई ऋषि मुनि भी आ गए गोकुल और बलराम का दर्शन करना चाहते हैं और वह विशेष निवेदन कर रहे हैं नंद बाबा से । हमें दर्शन कराओ ! हमें दर्शन कराओ ! बलराम के दर्शन कराओ ! बड़े ही उतकंठीत् है । दर्शन भी हो ही जाता है । ऐसा कहने से नहीं होता है वैसे दर्शन हो ही जाता है लेकिन कैसा दर्शन उन्होंने किया ? कैसे गए ? जहां बलराम जी को पालने में लिटाया था और पालने को कैसे सजाया है और श्रील व्यास देव, नारद मुनि इत्यादि ऋषि मुनि देवर से महर्षि वहां पहुंच जाते हैं और कैसे साष्टांग दंडवत प्रणाम करते हैं और स्तुति गान होता है, प्रदक्षणा करते हैं बलराम की और फिर हम एशा ही कह सकते हैं । श्रील व्यास देव यह जो मामला या जो लोगों के प्रश्न थे या शंका थी उसका भी समाधान करते हैं । यह सारा कृष्ण ने कैसी योजना मनाई योगमाया को यह कार्य दिया था और बलराम पहले वैसे देवकी के गर्भ में ही थे वहां से स्थानांतरित या गर्भांतरित किए गए यह सब रहस्य का उद्घाटन श्रील व्यास देव करते हैं तो फिर सभी का चित्त शांत हो जाता है, प्रसन्न होता है और वह सब गोकुल वासी भी बलराम पूर्णिमा महोत्सव बड़े धूमधाम उत्साह के साथ हर्ष उल्लास के साथ मनाते हैं आज के दिन मनाया उन्होंने गोकुल में, नंद भवन में । गोकुल में जो नंद भवन है वही या वही रहती थी रोहिणी तो वही जन्म बलराम का है । वैसे हम लोग जब गोकुल जाते यात्रा के लिए यात्रा लेके या परिक्रमा भी तो जब हम दर्शन करते हैं कृष्ण बलराम के और सारे परिवार वहां हैं । नंद यशोदा भी है तो वहां के पुरोहित जरूर बताते हैं बलराम का जन्म स्थान बलराम का जन्म स्थान । हमारे यात्रा में कई गीत अंतरराष्ट्रीय भक्त भी होते हैं तो उनके जानकारी के लिए भी वहां के आजकल के पुरोहित अंग्रेजी भाषा में बोलने के प्रयास करते हुए वह यह वाक्य बोलते हैं; बलराम का जन्म स्थान बलराम का जन्म स्थान ऐसे सब और फिर हंसने के लिए कहते हैं हां ! हा हा हा हा हा ....नहीं तो आप दर्शन नहीं कर सकते तो वहां ऐसे झूला भी है तो पालने में बिठाए हैं कृष्णा और बलराम को भी शायद तो आप झूला झूल सकते हो लेकिन उसके पहले आपको हंसना होता है । हसो ! हसो ! हा हा हा हा हा .... सभी हंस रहे हैं ? हां ? नहीं तो दर्शन नहीं होगा । हस ना मतलब आप खुश हो । आपके हर्ष का प्राकट्य तो वहां जब दर्शन करते हैं हम बलराम के और वैसे वहां पर ही नहीं व्रज भर में जहां-जहां बलराम के विग्रह है । बलराम को तो होना चाहिए सफेद होने चाहिए बलराम शुक्ल वर्ण के बलराम तो वस्त्र तो पहनते हैं । नीले वस्त्र पहनते हैं नीली धोती पहनते हैं इसीलिए नीलांबर कहते तो हैं तो बलराम है नीलांबर और कृष्ण है पितांबर । पितांबर, नीलांबर । लेकिन उस शुक्ल, सफेद के बलराम का दर्शन नहीं करते हम लोग वृंदावन में वह भी काले सांवले हीं होते हैं । फिर दाऊजी जाइए दाऊजी बलदेव वृंदावन में । दाऊजी नाम का धाम स्थान है कई बार समझ में नहीं आता दाऊजी क्या है ? दाऊजी नाम भी है । दाऊजी मतलब दादा । बड़े भैया कृष्ण के बड़े भैया । अग्रज कहते हैं कृष्ण के अग्रज हे बलराम । 'अग्र' मतलब पहले I 'ज' मतलब जन्म ऐसे शब्द है बहुत बढ़िया संस्कृत भाषा में । शब्द समझ लिया तो फिर बहुत कुछ समझ में आता है । 'अग्रज' हे बलराम और अनुज है बलराम अनुज है कृष्ण । दोनों में 'ज' है । जन्म की बात है । एक में 'अग्र' है एक में 'अनु' है । अग्रज कहेंगे तो बलराम हो गए और अनुज कहेंगे तो कृष्ण हो गए तो अग्रज बलराम । ओ समय भी हो गया ! यह कैसे हुआ । इसको कह देते हैं तो यह विग्रह बलराम के विग्रह कृष्ण बनके काले सांवले घनश्याम जैसे बलराम भी क्यों ? तो वहां जब पूछेंगे हम तो उसका उत्तर यह है कि जब बलराम भी चिंतन करते हैं कृष्ण का । बलराम भी स्मरण करते हैं कृष्ण का दो बलराम हो जाते हैं कृष्ण भावनाभावित । बलराम क्या होते हैं ? कृष्ण भावनाभवित बलराम होते हैं तो उनके रंग का अंग में परिवर्तन होता है । वे सफेद के अंदर जैसा भाव है कृष्ण भावनाभावित है तो वही रंग उसी कांति के बलराम बन जाते हैं तो इतने कृष्ण भावनाभावित बलराम भी है । और उसके बाद तो कृष्ण बलराम भावना भावित भी कह सकते हैं । इस प्रकार यह दोनों भाई भाई भी है और भगवान भगवान भी है । तो जिनको हम अवतारी अवतारी कहते हैं, अवतारी केवल कृष्ण ही नहीं है बलराम भी अवतारी है । बाकी सब तो अवतार है ... रामदिमूर्तिषु कलानियमेन तिष्ठन् नानावतारमकरोद् भुवनेषु किन्तु । कृष्ण: स्वयं समभवत्परम: पुमान् यो गोविन्दमादिपुरुषं तमहं भजामि ॥ ( ब्रम्ह संहिता 5.39 ) अनुवाद:- जिन्होंने श्रीराम, नृसिंह, वामान इत्यादि विग्रहों में नियत संख्या की कला रूप से स्थित रहकर जगत में विभिन्न अवतार लिए, परंतु जो भगवान श्री कृष्ण के रूप में स्वयं प्रकट हुए, उन आदिपुरुष भगवान् गोविंद का मैं भजन करता हूंँ । "किन्तु कृष्ण: स्वयं समभवत्परम: पुमान् यो" एक तो कृष्ण अवतारी है हम सुनते ही हैं लेकिन हम को समझना होगा कि बलराम भी अवतारी है । अवतारी मतलब जिनसे अवतार होता है तो मोटा मोटी यह जो पुरषा अवतार है, मतलब कौन ? महाविष्णु । विष्णु के तीन प्रकार है । महाविष्णु, गर्भोदकशायी विष्णु, क्षीरोदकशायी विष्णु ये बलराम के अवतार हैं । वैसे हां शकर्षण से यह तीनों विष्णु का प्राकट्य है और सारी सृष्टि के निर्माण की जिम्मेदारियां सब यह तीनों विष्णु मिलाके संभालते हैं । मतलब बलराम ही संभालते हैं यह सारी जो । हरि हरि !! तो हो गए बलराम अवतारी है और बलराम सब "सच्चिदानन्द विग्रहः" भगवान कृष्ण है कि नहीं "सच्चिदानन्द विग्रहः" सत्-च्चिद्-आनंद तो 'सत'मतलब संधिनी । भगवान की जो संधिनी शक्ति है जो आधार है संधिनी से ही सृष्टि दिव्य दृष्टि सारे जो लोग हैं या गोलक है यह बलराम है । भगवान जहां-जहां लीला खेलते हैं, कृष्ण जहां जहां लीला खेलते हैं वह जो मंच है वह जो स्थान है वह क्षेत्र रहे बलराम है । यहां तक की अनंतसया भगवान जब जहां-जहां लेते हैं क्या पलंक पर ही लेटते हैं तो बलराम है या अनंत शेषसया तो बलराम है ही उसी पर पोहुड़ते हैं । इस प्रकार बलराम सेवा करते रहते हैं या कृष्ण का आधार बलराम है या फिर कृष्ण के जो जूते पहनते हैं वह बलराम है । छाता बलराम है, छत्र है बलराम है कई प्रकार से यह कृष्ण बलराम साथ में रहते हैं या बलराम कृष्ण के सेवा करते हैं । तीनों भी होता है वैसे कृष्ण भी बलराम की सेवा करते हैं तो कभी-कभी बलराम कृष्ण से उनसे ऊंचे भी है, बड़े भैया भी हैं, बलवान भी है इत्यादि इत्यादि तो कृष्ण से बेहतर हैं और कहीं पर कृष्ण के समकक्ष हैं तो कई कई लीलाओं में कृष्ण से वह निम्न है तो तीनो स्तर पर बलराम कृष्ण के साथ सौदा करते हैं । श्रेष्ठतर, कृष्ण से श्रेष्ठतर कृष्ण के समकक्ष, कृष्ण के नीचे या नाम के ही निम्नतर । निम्नतर मतलब कुछ दोस्त नहीं है या अभाव की बात नहीं है तो यह दोनों सदैव साथ में रहते हैं शुरू से अंत तक या जन्म साथ में ले रहे हैं और सारी लीलाएं फिर मथुरा वृंदावन में । फिर मथुरा गए कंस के वध के लिए तो साथ में रहेंगे । उज्जैन पढ़ाई के लिए तो साथ में गए और वहां से द्वारिका गए तो साथ में गए । द्वारिका में साथ में रहते हैं और फिर प्रस्थान का समय आया तो गए कहां ? कौन सा स्थान है वह ? प्रभास क्षेत्र तो प्रभास क्षेत्र से दोनों का प्रस्थान भी लगभग एक समय का ही है । बलराम थोड़े आगे जाते हैं और कृष्ण पीछे से प्रस्थान करते हैं पहले आए थे ना । प्रकट भी पहले हुए तो प्रस्थान भी पहले करते हैं बलराम लेकिन ज्यादा अंतर नहीं है 19-20 का फर्क है थोड़ा आगे बढ़ते हैं तो पीछे से कृष्ण प्रस्थान करते हैं तो इसी तरह से यह कृष्ण बलराम यह जोड़ी सदैव साथ में है या कुछ स्थानों पर कुरुक्षेत्र की लड़ाई के समय दोनों साथ में नहीं थे तो कई कई पर वे स्थानों पर साथ में नहीं है उन दोनों के कुछ मत भिन्नता भी देखी जाती है । दोनों के विचार अलग-अलग होते हैं । सुभद्रा का विवाह के समय कृष्ण पक्ष में थे, बलराम उनके विरुद्ध थे जब अर्जुन अपरहण करके सुभद्रा का अपहरण करके ले जा रहे थे तो कृष्ण का समर्थन था और बलराम उनके विरुद्ध । हरि हरि !! ठीक है । मैं यही रुकता हूं । श्री कृष्ण बलराम की जय ! बलराम पूर्णिमा महोत्सव की जय ! श्रील प्रभुपाद की जय ! गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल !

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