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जप चर्चा,
18 जून 2021,
पंढरपूर धाम.
हरे कृष्ण, गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल 929 स्थान भक्त जप के लिये भक्त जुड गये है
जय राधा माधव,
जय कुन्ज बिहारी।
जय गोपी जन बल्लभ,
जय गिरवरधारी।
यशोदा नंदन, ब्रज जन रंजन,
जमुना तीर बन चारि।
ॐ अज्ञान तिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जन शलाकया । चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः ॥
गुरु महाराज कांफ्रेंस में एक भक्त को संबोधित करते हुए, "आप तैयार हैं।" श्रील प्रभुपाद की जय! श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर के या तो अविर्भाव या तिरोभाव के उपलक्ष्य में श्रील प्रभुपाद बोल रहे थे, तब उन्होंने एक विशेष श्लोक उद्धृत किया। जिसका मुझे स्मरण हो रहा था। पिछले कुछ दिनों से मैं सोच रहा था उस श्लोक यह वचन के संबंध में। आज वही बात या श्लोक आपको सुनाते हैं। और वह है या तो आप उसे याद रखिए या लिख लीजिए। यह वचन इसका कोई संदर्भ त प्राप्त नहीं है। कहां से है यह वचन श्लोक, किंतु है तो है। यह सत्य वचन।
राजपुत्र चिरंजीव ऐसी शुरुआत है।
राजपुत्र चिरंजीव मुनिपुत्र मा जीव।
जीवो वा मरो वा साधो, मा जीवो मा मरो खट्टिका-।।
ऐसे सुनने में भी अच्छा लगता है। वैसे आप सुनोगे या पढ़ोगे जीव, जीवो वा मरो वा साधो,मा जीवो मा मरो खट्टिका- जीव जीवों की पुनरावृत्ति हुई है। या तो जीव को ही संबोधित किया है। या जीते रहो ऐसा भी संकेत किया है। राजपूत्र चिरंजीव यह अलग-अलग पार्टिज् है। चार पार्टीज् को यहां पर चुनाव हुआ है। या चार प्रकार के लोग, एक है राजपुत्र, दूसरा है मुनिपुत्र, तीसरा है साधु और चौथा है खट्टीक मतलब कसाई। और इन चारों को अलग-अलग उपदेश दिए जा रहे हैं। या कह सकते हैं, उनको आशीर्वाद दिया जा रहा हैऋ या शाप दिया जा रहा है। या फिर कहो कि, उन सभी का राजपूत्रका, मुनि पुत्र का, साधु का और कसाई का भविष्य बताया जा रहा है। तुम्हारा भी भला हो या तुम्हारा मुंह काला हो। वैसे सभी श्रेणीके है। यहां पर या सभी श्रेणी के लोगों का उल्लेख होता है। यहां पर ऐसे नहीं कहा जा सकता है, किंतु मोटा मोटी, इस संसार के जो लोग हैं उनमें हम भी हैं। वैसे हम थोड़े अलग श्रेणी के हो गए है संसार से। हो सकता है, वह लागू नहीं होगा हमको। लेकिन हम भी तो फिट होंगे इसमे से ही किसी एक श्रेणी में या प्रकार में। तो यह हमारा भविष्य है। यह उन लोगों का भविष्य है। हरि हरि, आप भी समझ सकते हो। आपका भविष्य है।ध आपका गंतव्य स्थान कौन सा होगा। या फिर और भी जो जन है। हो सकता है, आपके परिवार के जन या पड़ोसी वृंद या अन्य आपके देशवासी हैं या और भी अन्य कई कई सारे लोग आप शायद बता भी सकते हो उनका भविष्य।
कई सारे लोग जानना भी चाहते हैं। हाथ दिखाते हैं। स्वामीजी आप हाथ देखते हो। जैसे मै हीं एक बार आ रहा था मास्को रशिया से दिल्ली आ रहा था हवाईजहाज में। वहां भी भोजन परोसते हैं। हवाईसुंदरी आई और हमको पूछ रही थी, स्वामीजी क्या लोगे मछली या मुर्गी? मछली खाना पसंद करोगी या मुर्गी खाना पसंद करोगे? हम तो चुप बैठे थे। लेकिन हमारे साथ, मेरे बगल में 2 माताएं बैठे थे। एक थी मां और दूसरी उसकी बेटी बैठी थी। उन्होंने तो भरपेट खाया। एक ने चिकन खाया दूसरी ने मछली खाई पेट जब भर गया तो, जो मम्मी थी मेरी ओर मुड़कर मैं कहां पर बैठा था उसने पूछा स्वामी जी हाथ देखते हो/ मतलब हमारा भविष्य बता सकते हो? यह बात जब उसने पूछा वैसे मैं तो नाराज था। यह जो मां बेटी थे वह दोनों भारतीय थे। मेरे बगल में बैठ कर उन्होंने एकने चिकन और एकने मछली खाई। मुझे अच्छा नहीं लग रहा था। उन्होंने ऐसा नहीं खाना चाहिए था, साधु के बगल में बैठ कर। और फिर जब स्वामीजी हाथ देखते हो ऐसे पूछा मुझे और भी थोड़ा क्रोध आया हल्का सा। मैंने वह व्यक्त तो नहीं किया शब्दों मे। लेकिन फिर सोचता रहा कि अगर पहली बार पूछा, फिर दोबारा पूछ रही थी। मैं सोच रहा था और एक बार पूछती है तो फिर बता ही दूंगा इसका भविष्य। और मैंने उत्तर तैयार करके रखा था। तुमने क्या खाया मुर्गी को खाया, तो तुम्हारा भविष्य है तुम मुर्गी बन जाओगी। यही तुम्हारा भविष्य है। और जिसने मछली को खाया वह बन जाएगी मछली। यही उसका भविष्य है। यहां कहां है खट्टीक खट्टीक का उल्लेख हुआ है। खट्टीक कसाई सिर्फ कसाई ही नहीं। जो मांस को बेचेगा, उसे पकाएगा फिर परोसेगा उसे खाएगा तो उन सब का भविष्य क्या है। मांस आज तुम मुझे खा रहे हो अगली बार मैं तुम्हें खाऊगा। मांस मां मैं का संकेत होता है और स वह का होता है मैंने उसको खाया। वह मुझे खाएगा। ऐसा चलता रहेगा फिर यहां कहां है हे खटीक मांस भक्षक या फिर साथ में और कोई पाप होते ही रहता है। हे
व्यभिचारी, व्यभिचार या फिर चार जो महापाप है। मांस भक्षण एक हैं, नशापान दूसरा है, अवैध स्त्री पुरुष संग तीसरा है जुवा इत्यादि खेलना चौथा है। इन सब के लिए क्या कहा है, मां जीव मां मरो तुमको जीना भी नहीं चाहिए। ऐसा जीवन जी रहे हो मरो उससे। मरोगे तो सीधे नर्क जाओगे। तो तुम्हारा जीवन भी नारकीय जीवन होगा। अब भी तुम नरकीय जीवन ही जी रहे हो। नरक जैसे परिस्थिति में ही जी रहे हो। और तुम मरोगे तो असली नरक जाने वाले हो। तो तुम क्या करो मा जीव मां मरो कठिन है, क्या करे? बेचारा उसको कहां जा रहा है। तुम जीना नहीं तुम मरना नहीं। दोनों भी परिस्थिति महा भयानक है, इस खटीक के लिए। कसाई के लिए। ऐसा उपदेश उसके जानकारी के लिए कहा। ऐसा उसके भविष्य के लिए कहा। तुम्हारा क्या हाल अब है और क्या होने वाला है इसीलिए कहां मां जीव मां मरो। हरि हरि, किंतु जो साधु है, संत है, महात्मा है महात्मानस्तु मां पार्थ दैवीं प्रकृतिमाश्रिताः |
महात्मा या साधु वह है कौन है। कृष्णा ने कहा दैवीं प्रकृतिमाश्रिताः जिसने भी प्रकृति का आश्रय लिया हुआ है। श्रीमती राधा रानी की जय! बोलो श्री राधे श्याम। जिन्होंने सीधे राधारानी के चरणों का आश्रय लिया हुआ है। या फिर सीधे नहीं कभी डायरेक्टली इनडायरेक्टली राधारानी का ही आश्रय लिया हुआ है। राधा के चरणों का आश्रय लिया है। राधा के चरणों का आश्रय लेते हुए फिर हमारे वंदे गुरु श्रीचरणारविंदम हमने गुरु की भक्तों की महात्माओं की शरण ली हुई है। वह शरणागति वह आश्रय भी राधा का ही आश्रय है। हरि हरि, या उस आश्रय का विषय होता, आश्रय और विषय। हम हैं आश्रित, राधा के आश्रित होते हैं। परंपरा में आचार्यों के आश्रय में हम आते हैं। उनकी माध्यम से, उनके जरिए, उनको केंद्र में रखते हुए हमारा संबंध है राधारानी के चरणों के साथ होता है। राधारानी की जय! महारानी की जय! और जिन्होंने राधारानी के चरणों का आश्रय लिया हुआ है। राधे तेरे चरणों की यदि धूल मिल जाए वृंदावन में प्रार्थना करते हैं। आप भी जहां कहीं भी हैं प्रार्थना कर सकते हैं। राधे तेरे चरणों की यदि धूल जो मिल जाए तो क्या होगा? तकदीर बदल जाए मेरी तकदीर बदलेगी। तो ऐसे संत महात्मा साधु जो है या साधु बन रहे हैं बने हैं उनके लिए क्या कहा गया जिवो वा मरो वा कोई अंतर नहीं है। तुम जीवित हो तो भी राधा रानी के साथ हो या राधा कृष्ण के साथ हो। कृष्ण के चरणों में हो। राधा-कृष्ण भी है, परीकर भी है, भक्त भी है, संत समागम है।
साधु संग साधु संग सर्व शास्त्र कय
लव मात्र साधु संग सर्व सिद्धि हय
( चैतन्य चरित्रामृत मध्य 22.54)
साधु संग भी प्राप्त हो रहा है तो तुम तो पहुंच गए या पहुंचे हुए महात्मा हो। तो तुम जीवन मुक्त हो ऐसा भी कहा जाता है। जीवित तो हो तुम इस संसार में लगता है कि संसार में हो, इस शरीर में हो किंतु तुम मुक्त हो। इसी शरीर में जहां भी हो वहां जीते रहो। जिवो वा मरो वा या मर भी जाते हो तो सीधे भगवद्धाम लौटोगे। और यहां जो अनुभव कर रहे थे वही अनुभव तुम्हें फिर भगवद्धाम में होगा। तो तुम जीते रहो या मरते रहो कोई फर्क नहीं है साधु के लिए सब एक ही बात है। तो साधु के लिए कहा ए साधो जिवो वा मरो वा एक ही बात है। यह दो चरम हुए, एक तो कसाई कि बात कसाई को कहां मा जिवो मा मरो तुमको जीना भी नहीं चाहिए तुमको मरना भी नहीं चाहिए। दोनों स्थिति में तुम्हारी हालत बहुत भयानक है। और साधु के लिए कहा जिवो वा मरो वा कोई फर्क नहीं है।
तुम जीवित हो इसी शरीर में हो जीते रहो। या फिर मृत्यु भी हो जाती है तो भगवत प्राप्ति निश्चित है तो जिवो वा मरो वा। अब बच गया राजपुत्र चिरंजीव कहां है, किंतु हे तुम राजपुत्र हो तो तुम जीते रहो। क्योंकि राजपुत्र होगे या तुम राजपुत्र बने हो तो यह तुम्हारे पूर्व जन्म के कुछ पुण्य का यह फल है जो तुम राजपूत्र बने हो। ताकि भोग विलास तुम कर सकते हो या फिर पुण्यात्मा स्वर्ग में भी पहुंच जाते हैं। स्वर्ग में वहां का सोमरस पेय.. स्वर्ग में तो लोग खाते कुछ कम है पीते ही रहते हैं। खाने में कुछ कष्ट या परिश्रम भी करना होता है पीने में तो कुछ कष्ट नहीं करना होता है। वह बस आनंद लेता है। तो स्वर्ग में पहुंचे हुए पुण्यात्मा है इसीलिए स्वर्ग में पहुंचे है या कोई राज पुत्र बना हुआ है। भोग विलास चल रहे हैं। तो होता क्या है जब व्यक्ति के पुण्य कर्म का जो फल है ऐशो आराम विलासिता पूर्ण जीवन जीता रहता है, सुख उपभोगता है। जैसे सुख का उपभोग करेगा तो उसी के साथ उसका क्षीणे पुण्ये मर्त्यलोकं विशन्ति उसका पुण्य क्षीण होता है, कम होता है, घटता है। तो उसका भविष्य क्या है फिर? पुण्य क्षीण होगा फिर मृत्युलोक पहुंचेगा।
स्वर्ग लोक में था या फिर वह राजपूत्र नहीं रहेगा। अगले जन्म में कोई शुद्र पुत्र बन सकता है। क्योंकि पुण्य फल से राजपुत्र बन गया, स्वर्गवासी बन गया किंतु उसी के साथ उसका पुण्य क्षीण घटते जाने वाला है। और जैसे घटेगा उसी के साथ फिर वापस चौक में। फिर कोई पापी तापी योनि में या परिवार में या वर्ण मे शुद्र योनि में कई जन्म लेगा। इसीलिए उसको कहा है राज पुत्र तुम जीते रहो तुम जीते रहो। क्योंकि जैसे मरण होगा तुम्हारा फिर तुम्हारा भविष्य कुछ उज्वल नहीं है। फिर तुम्हारा भविष्य अच्छा नहीं है तुम्हारा भला नहीं होगा तो फिर जीते रहो। और फिर मुनिपुत्र मा जीव कहां है। राजपूत्र चिरंजीव किंतु तुम मुनिपुत्र मुनि के पुत्र हो इसीलिए मा जीव। यह समझना कठिन है। तुम जीना नहीं क्योंकि मुनि पुत्र हो। तो वह क्या करेंगे? तपस्या करेंगे कठोर तपस्या होगी, कई सारे असुविधा है। फिर प्रातः काल में जाड़े के दिनों में उठना है फिर ठंडे पानी से स्नान करना है और मित भुख रहना है, यह मत खाओ, यह नहीं खाओ, यह तो खा सकते हो और इतना ही खा सकते हो। कई सारे नियम है, कई सारी कठोर तपस्या है असुविधा है इस तुम्हारे तपस्वी के जीवन में। या जो मुनि पुत्र तुम बने हो तो तुम्हारे पिताश्री तुमसे करवा रहे हैं सारी साधना। किंतु यह तपस्या का जीवन जैसे पूरा होगा या पूरी तपस्या हुई तो यह तपस्या क्या करने वाली है, तपो दिव्यं पुत्रका येन सत्त्वं शुद्ध्येद्यस्माद्
ब्रह्मसौख्यं त्वनन्तम ऐसे ऋषभदेव कहे अपने पुत्रों से। या मुनी पुत्रों की बात चल रही है तो ऋषभदेव भी अपने पुत्रों को मुनि के पुत्रों जैसे ही उनके पुत्र या उनसे वह साधना करवा रहे थे। उनको उपदेश कर रहे हैं, हे पुत्रों क्या करो? तपस्या करो तपस्या करो। तप करो, तप करोगे तो क्या होगा? शुद्ध्येद्यस्माद् जिससे
तुम शुद्ध बनोगे। तुम्हारे चेतना का चेतोदर्पण मार्जनम होगा, चेतना का दर्पण चमकेगा। और फिर क्या होगा? तुम शाश्वत सुख को प्राप्त करोगे। ब्रह्मसौख्यं त्वनन्तम् अनंत सुख तुम्हारी प्रतीक्षा में है। यह तपस्या का जीवन समाप्त होते ही यह ब्रह्मानंद, परमानंद, भक्त्यानंद तुमको प्राप्त होना है। इसीलिए पूरा करो इस तपस्या को, तपस्या की जीवन को जल्द से जल्द भी कह सकते हैं पूरा करो। ताकि कोई और असुविधा नहीं हो या कुछ और असुविधा भी महसूस हो रही थी तो वह भी नहीं होगा. तुम्हारा जीवन स्वाभाविक होगा और तुम इस जीवन का आनंद लूटोगे। इसीलिए मुनि पुत्र मा जीव इस तरह का जीवन थोड़ा जल्दी समाप्त करो यह तपस्या का जीवन असुविधा का जीवन। हरि हरि। ठीक है तो यह मूल विचार हैं।
राजपुत्र चिरंजीव, मुनिपुत्र मा जीव, जीवो वा मरो वा साधो, मा जीवो मा मरो खट्टिका-
हे कसाई तुम, मा जीवो मा मरो, साधु मरो नहीं मरो, राजपूत्र जीते रहो, हे तपस्वी मुनि पुत्र मा जीव जल्दी समाप्त करो, यह तपस्या का जीवन और सिद्धि को प्राप्त करो। कृष्ण तुम्हारी प्रतीक्षा में है आनंद ही आनंद तुम लूटोगे। हरि हरि। तो ऐसे हम इस शरीर के साथ समाप्त तो नहीं होते या इससे कई सारे बातें कई सारे विचार आगे आ सकते हैं, सोचे जा सकते हैं। एक तो जीव अमर है और पुनर्जन्म है। कई सारे या चारवाक परंपरा की मंडली है तो वह कहेंगे ओ किसने देखा है भस्मीभूतस्य देहस्य पुनरागमनं कुतः एक बार बन गई राख इस शरीर की, राम नाम सत्य है राम नाम सत्य है स्मशान घाट भूमि पहुंचा दिया और बन गई राख सब खत्म। ऐसे कहने वाले भी कई मिलेंगे। लेकिन वे तो अनाड़ी है। या फिर कोई कहेंगे बौद्ध पंथीय कहेंगे शुन्यवाद बस अपने अस्तित्व को समाप्त करना है। वह भी संभव नहीं है क्योंकि आत्मा अजर अमर है और शुन्य या अस्तित्व हिन बन नहीं सकता। या फिर जो मायावादी या निराकार वादी है वे अहं ब्रह्मास्मि कि बात कहेंगे। मैं ब्रह्म हूं, ब्रह्म में ज्योत मे ज्योत मिलाने की बात वे करते हैं। उनकी समझ भी ठीक नहीं है।
भगवान के चरण कमलों का अनादर करते हैं वे मायावादी। इसीलिए फिर भागवत ने कहा है पतन्त्यध:। तो ज्योत मे ज्योत मिलाने का प्रयास तो होता है, विचार तो होता है लेकिन वैसे होता तो नहीं संभव ही नहीं है। आत्मा को परमात्मा में या ब्रह्म में मिलाया नहीं जा सकता। हरि हरि। वह अलग रहता ही है अलग है ही। ममैवांशो जीवलोके जीवभूत: सनातन: हैं जीव अंश है तो अंशी नहीं बन सकता सदा के लिए अंश है और अंश रहेगा ही। तो मायावादी भी नहीं जानते हैं, यह उनका भी आत्म साक्षात्कार ठीक नहीं है। बौद्ध पंथियों का आत्म साक्षात्कार का ज्ञान सही नहीं है और चारवाक जो भौतिकवादी है वे तो आत्मा को मानते ही नहीं है। देहात्मबुद्धि देह ही उनका आत्मा है। और जो ईसाई है मुसलमान है उनको भी पूरा ज्ञान नहीं है। तो वह भी समझते हैं कि ओह यह मनुष्य जीवन ही अंतिम जीवन है। इसके बाद दो बातें होगी या तो हम हम नहीं वे स्वर्ग जाएंगे या फिर उनको नरक भेजा जाएगा। तो उनका पुनर्जन्म में कोई विश्वास नहीं है। विश्वास नही होने से कोई फर्क नहीं पड़ता। अंधे ने कहा कि सूर्य नहीं है तो सूर्य का अस्तित्व समाप्त नहीं होता अंधे के कहने से। तो ऐसे कोई कहता है की पुनर्जन्म नहीं है, पुनर्जन्म में हमारा विश्वास नहीं है। तुम्हारा विश्वास हो या नहीं हो ऐसा ही होगा जो इस श्लोक में कहा है।
भविष्य तो निश्चित है। किस प्रकार का है, वह अलग बात है। लेकिन तुम रहोगे कहीं ना कहीं तुम रहोगे। इस शरीर में, उस शरीर में, स्वर्ग में, नर्क में, बैकुंठ में, गोलोक और यह मनुष्य शरीर अंतिम शरीर नहीं है। ....shall not kill तो कहां है बाइबिल में। उनके विकएंड कमांडमेंट्स मांस भक्षण मत करो। पशु हत्या मत करो। तो फिर तुम कर ही रहे हो मांस भक्षण तो वही नियम लागू होगा। आज तुमने मुझको खाया है, मैं तुमको कल खाऊंगा। छोडूंगा नहीं मैं तुम्हें ऐसे ही छोडूंगा नहीं। जीवो जीवस्य जीवनम ऐसा भी नियम है। ऐसा प्रकृति का नियम है। एक जीव दूसरे जीव को खाएगा। एक जीव दूसरे जीव के ऊपर निर्भर रहता है। या उसका भक्षण करता है उसके पालन-पोषण के लिए दूसरे जीव को खाता है। इसी तरह से उसका सेवन करता है। उस पर निर्भर रहता है। जीव जीवस्य जीवनम यह जो नियम है, यह भगवान के नियम है। हर देश का अपना-अपना कायदा हो सकता है। कायदा कानून नियमावली अपनी-अपनी हो सकती हैं। लेकिन भगवान के नियम सभी के लिए लागू होते हैं। हम क्रिश्चियन है तो हमारे लिए नियम हम हिंदू है तो हमारे लिए नियम। आप हिंदुओं के नियम हमको मंजूर नहीं है। हम बौध्द पंथी हैं बौद्ध अरे बुद्ध बनो बुद्ध बनो बौद्ध पंथी बनो क्योंकि हमारे कर्मा के नियम तो हम स्वीकार नहीं करते। मानते नहीं तो आप खूब पाप करो।
आपको उसका कोई फल भोगना नहीं पड़ेगा। इसलिए धर्म परिवर्तन करो। ऐसा प्रचार करते रहते हैं। लेकिन जो भी बनो, यह जो नियम है हम को छोड़ेंगे नहीं। हमको जहां भी हो वहां से बाहर निकाल कर, मैदान में निकाल कर हमें जो नियम है। प्रकृति के नियम है। मयाध्यक्षेण प्रकृति इस प्रकृति की नियामक भगवान है। भगवान भी एक है और उनके प्रकृति भी एक हैं। अमेरिकन के लिए एक और चाइनीज के लिए दूसरी क्रिश्चियन के लिए तीसरी हिंदू के लिए चौथी हमको इसाई है उनके लिए पांचवी और हम नास्तिक है तो हमारे लिए छठवी ऐसा नहीं है। ऐसा कुछ नहीं होता है। जैसे यहां कहां है, ऐसा ही भविष्य है। ऐसा ही होगा। इसीलिए जहां आदेश है उपदेश है क्या भविष्य कहां है, राजपुत्र चिरंजीव, मुनिपुत्र मा जीव जीवो वा मरो वा साधो, मा जीवो मा मरो खट्टिका-
अभी समय हो गया 7:30 बज गए। हम यहीं पर रुकेंगे। अगर कोई प्रश्न है तो आप लिख लो उस पर चर्चा भी करो।
ठीक है, हरि बोल।