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जप चर्चा
11 अगस्त 2020
840 स्थानों से जप हो रहा है । आप सभी का स्वागत है । हरि हरि । आप सभी आत्माओं का स्वागत है , मिट्टी का तो स्वागत नहीं हो सकता है । शरीर तो मिट्टी है जड़ है और इस शरीर का स्वागत किया भी तो शरीर को कुछ पता लगने वाला नहीं है । यह भी आप समझते हो ना ? मैं आपके हाथ का स्वागत करता हूं ! या तुम्हारे हाथ का स्वागत है !
आत्मा तो सुन रहा है । शरीर जड़ है और आत्मा चेतन है । कृष्ण जन्माष्टमी चेतन आत्मा के लिए है , जड़ शरीर के लिए नहीं है । जड शरीर का स्वागत हो , नहीं हो , नहीं के बराबर ही है । हरि हरि । शरीर तो त्याज्य ही है , और एक दिन त्वक्ता देहम होना ही है और त्वक्ता देहम तो हो जाये , स्वागत है । शरीर को त्याग सकते हैं , किंतु साथ ही साथ पुनर्जन्म नित्य अगर होता है तो पुनः जन्म नहीं हो और पंचमहाभूत के बने हुए इसी शरीर में , इसी योनि में पुनः पुनः प्रवेश , पुनः जन्म ना हो इसी की तैयारी करनी है । शरीर में और आत्मा में भेद समझो और आत्मा और परमात्मा में और आत्मा और भगवान में भी भेद समझो । भेद है भी और भेद है भी नहीं की बातें हैं , अचिंत्य भेदाभेद तत्व भी है । बड़ा भेद यह है कि भगवान अच्युत है , अच्युत ! भगवान च्युत नही होते मतलब भगवान का पतन नहीं होता , भगवान इस जगत में गिरते नहीं । और फिर माया से प्रभावित नहीं होते , हरि हरि ।
मयाध्यक्षेण प्रकृति: सुयते सचराचरम । हेतुनानेन कौन्तेय जगद्विपरिवर्तते
(Bg. 9.10)
अनुवाद: हे कुन्तीपुत्र! यह भौतिक प्रकृति मेरी शक्तियों में से एक है और मेरी अध्यक्षता में कार्य करती है, जिससे सारे चर तथा अचर प्राणी उत्पन्न होते हैं | इसके शासन में यह जगत् बारम्बार सृजित और विनष्ट होता रहता है |
वह सदैव माया के अध्यक् रहते है , महामाया के अध्यक्ष रहते हैं और योग माया के भी सदैव अध्यक्ष रहते हैं । इस महामाया के अधीन कभी नहीं होते , इसीलिए वह अच्युत कहलाते हैं , किंतु हम सूक्ष्म है , हम अनुआत्मा है यही भेद है । हम अनुआत्मा है और भगवान विभुआत्मा है । हम अनुआत्मा , भगवान विभुआत्मा ! इसीलिए विभुआत्मा कभी च्युत नहीं होतीे , सब समय अच्युत रहती हैं , और अनुआत्मा जो जीवात्मा है वह च्युत होता है , पतीत होता है , माया के अधीन हो जाता है ।
“प्रकृते: क्रियमाणानि गुणै: कर्माणि सर्वशः |
अहङकारविमूढात्मा कर्ताहमिति मन्यते ||
(भगवद् गीता 3.27)
अनुवाद : जीवात्मा अहंकार के प्रभाव से मोहग्रस्त होकर अपने आपको समस्त कर्मों का कर्ता मान बैठता है, जब कि वास्तव में वे प्रकृति के तीनों गुणों द्वारा सम्पन्न किये जाते हैं |
प्रकृति के तीन गुण जिसको नाचाते हैं , उससे कार्य करवाते हैं और अहङकारविमूढात्मा फिर ऐसा विमूढात्मा , च्युत और विमूढ होता है । कर्ताहमिति मन्यते अहंकारी बनता है । भगवान में अहंकार नहीं है , भगवान का अहंकार भी दिव्य है । हरि हरि । ऐसे श्री भगवान को ऐसे अच्युत भगवान को मेरा बारंबार प्रणाम है ।
परित्राणाय साधुनाम विनाशाय च दुष्कृताम।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ।।(भगवद गीता 4.8)
अनुवाद : साधुओं को आनंद देने, दुष्टों का विनाश करने तथा पुनः धर्म की स्थापना करने के लिए मैं प्रत्येक युग मे प्रकट होता हूँ ।
ऐसे अच्युत भगवान , सम्भवामि युगे युगे इस संसार में आते हैं और अवतार लेते हैं , और ऐसा भी एक अवतार का दिन बस एक ही दिन दूर है । कल श्री कृष्ण जन्माष्टमी है । कृष्ण के अवतार का दिन है और वैसे वह अवतार भी नहीं है । वह अवतारी है , सम्भवामि युगे युगे हर युग में प्रगट होने वाले अवतारों में से एक अवतार कृष्ण नहीं है । जैसे सम्भवामि कल्पे कल्पे , श्री कृष्ण का अवतार , अवतारी ही अवतरित होते हैं । तब भी वह अवतारी ही कहलाते हैं , अवतारी नहीं बनते । वह कल्पे कल्पे , युगे युगे नहीं । युगे युगे तो अवतार हर युग लेते हैं किंतु कृष्ण कल्पे कल्पे , एक कल्प मतलब , ब्रह्मा के एक दिन को कल्प कहते हैं । श्री कृष्ण का ऐसा दुर्लभ प्राकट्य है और वह दिन , कल का दिन है । कोई 5246 कहता है कोई 5248 कहता है , वर्ष पूर्व भगवान प्रकट हुए । उनके प्राकट्य का उत्सव , प्राकट्य दिन का महोत्सव एक ही दिन दूर है और हम उस दिन की प्रतीक्षा में है और उस दिन की तैयारी में है । हरि हरि । प्रतिदिन हम जो जप कर रहे हैं जूम कॉन्फ्रेंस में और जप चर्चा के अंतर्गत कृष्ण कथाएं भी हो रही है । यह भी तैयारी ही है । हरि हरि । जप करके , कृष्ण कीर्तन या कृष्ण कथा का श्रवण करके हम अपना जो कृष्णप्रेम है उसको जागृत कर रहे हैं , कृष्ण को याद कर रहे हैं । जब लीला का श्रवण होता है तब उस लीला का स्मरण भी होता है और लीला का स्मरण होता है मतलब लीला खेलने वाले कृष्ण का स्मरण होता है , होना ही चाहिए ? यह नहीं कि हमने लीला का तो स्मरण कर लिया और जिन्होंने लीला संपन्न की है उस कृष्ण का स्मरण नहीं किया , ऐसा तो नहीं है । लीला ही भगवान है , लीला और लीलाधारी में अभेद है । गोवर्धन धारी , रासबिहारी , माखन चोरी करने वाले कृष्ण का भी स्मरण होता ही है । हम याद कर रहे हैं , स्मरण कर रहे हैं । हरि हरि । हम भगवान को भूले थे । पहले हमको भगवान याद थे , पहले हम भगवान के साथ थे , भगवान को हम सदैव याद किया करते थे , उनका स्मरण किया करते थे किंतु ,
माया-मुग्ध जीवेर नाहि स्वतः कृष्ण-ज्ञान।
जीवेरे कृपाय कैला कृष्ण वेद-पुराण ॥
(चैतन्य चरितामृत मध्य लिला 20.122)
अनुवाद : बद्धजीव अपने खद के प्रयत्न से अपनी कृष्णभावना को जाग्रत नहीं कर सकता।
किन्तु भगवान् कृष्ण ने अहैतुकी कृपावश बैदिक साहित्य तथा इसके पूरक पुराणों का सूजन किया।
लेकिन हम जब माया मुग्ध हुए , इस संसार मे आले भोगवांच्छा करने लगे , उसीके साथ झपाटीया माये, मायाने झपाट लिया । निकटतस्त माया धरे झपाटीया धरे । माया ने झपाट लिया है और हम सम्भ्रर्मित है , इस माया ने , इस मायावी जगत मे भगवान को भुला दिया । जैसे हम सुनते हैं , श्रवण करते हैं , श्रवनम् कीर्तनम् विष्णु स्मरणम तब पुनः हमें स्मरण होने लगता है , हां ! वह कृष्ण ! वह इतने सुंदर कृष्ण ! वह कालिया दमन लीला करने वाले कृष्ण ! वह माखन चोरी करने वाले कृष्ण ! यशोदा नंदन कृष्ण !
यशोमती नन्दन बृजबर नागर
(भजन)
वृंदावन के नागर और क्या ?
नन्द गोधन रखवाला
नंद महाराज के गोधन के रखवाले बने हुए गोपाल का फिर स्मरण होता है ।
बृजबर पालन असुर कुल नाशन
कई सारे असुरों का संहार करने वाले कृष्ण का स्मरण होता है । इसी तरह श्रील भक्तिविनोद ठाकुरा और भी कई सारे आचार्य या भगवान के भी जिन्होणे लिखे हैं , गाये है उसको जब हम गाते हैं , हम स्मरण करते हैं , वह भी एक विधी है , पद्धति है जिससे हमे भगवान का स्मरण होता है ।
जामुना तट चल गोपी बसन हर केवल कह दिया जमुना तट चर , जमुना मैया की जय । जमुना का स्मरण , जामुना तट चल गोपी बसन हर गोपियों के वस्त्रों का हरण करने वाले कृष्ण , गोपियों के वस्त्र हरण किए फिर लौटा भी दिए , गोपिया अपने अपने घर लौट भी रही थी लेकिन उन्होंने अनुभव किया कि , आज हमारे वस्त्रों का जो चोर बना था उसने वस्त्र तो लौटा दिए लेकिन हमारे चित्त को चोरी करके चला गया । कृष्ण चित्त चोर है । हमारे चित्त की चोरी कब करेंगे भगवान ? भगवान का जो चितवन है , भगवान का जो सौंदर्य है कोई देख ही लेता कोई तो बस , मच्चित्ता कैसा बनता है ? मच्चित्ता कृष्ण ने ही गीता में कहा है ,
मच्चित्ता मद्गतप्राणा बोधयन्तः परस्परम्
कथयन्तश्र्च मां नित्यं तुष्यन्ति च रमन्ति च
(भगवत गीता १०.०९)
अनुवाद : मेरे शुद्ध भक्तों के विचार मुझमें वास करते हैं, उनके जीवन मेरी सेवा में अर्पित रहते हैं और वे एक दूसरे को ज्ञान प्रदान करते तथा मेरे विषय में बातें करते हुए परमसन्तोष तथा आनन्द का अनुभव करते हैं |
उसके चित में उसकी चेतना में मच्चित्ता भगवान अटक जाते है । हरि हरि । एक बार हम उनके फंदे में पड़ जाते है , कृष्णा के प्रेमी , भक्त बन जाते हैं फिर ऐसे कृष्ण हमारी जिमेदारी लेते है , हमारे हृदय प्राँगण में आकर विराजमान हो जाते है । वैष्णव का हृदय प्राँगण गोविंद का विश्राम बन जाता है और फिर वैष्णव आचार्य , भक्त गण कहते है यह भगवान हे गोविंद त्रिमंग ललित है । तीन स्थानों पर वे मोड़े हुए टेढे मेढे है , इसलिए हम जब उनको दिल मे बिठाने का प्रयास करते है तो सीधे होते तो सीधे हम उनको बिठा लेते थे लेकिन वह सीधे नहीं है , टेढे मेढे है । बाहेरीव यह भी प्रीति का लक्षण है । जैसे सर्प सीधा नहीं चलता । कृष्ण और भक्त, कृष्ण और गोपिया , विशेष रूप से गोपीयों के राधा के ओर कृष्ण के बीच का जो प्रेम है।
बाहेरिव जैसे सर्प सीधा नहीं चलता है , कभी टेढ़ा , कभी मेढ़ा चलता है वैसे टेढे मेढे चाल भी चलते है कृष्ण और फिर राधाराणी मानिनी बन जाती है । कहाँ है कि कृष्ण को हम जब बिठाने का प्रयास करते है वह त्रिभंग ललित है इसलिए उनको हृदय प्राँगण में बिठाना मुश्किल हो जाता है । वह सीधे नहीं है लेकिन एक बार बैठ गए तो फिर बैठ ही गए उनको वहाँ से बाहर करना या निकालना भी मुश्किल क्या ? संभव ही नहीं है । हरि हरि । यह है कन्हैया ।
कृष्ण और भी बड़े हो गए । गोपाष्टमी का दिन आया , कार्तिक में गोपाष्टमी के दिन ब्रजवासियों की सभा बुलाई गई और श्री कृष्ण के उम्र का और उनके कौशल का तथा उनके क्षमता पर विचार हुआ ।और यह निर्धारित हुआ कि अब यह गाये भी चरा सकता है या गाये चराने के लिए सक्षम बन चुका है ।
यह तो गाय चरा सकता है या गाय चराने के लिए सक्षम बन चुका है । उमर भी बड़ी है , अभी बलवान भी है । मतलब उस दिन कन्हैया पौगंड कुमार थे | कौमारं कुमार से पौगंड अवस्था को प्राप्त किया था , उसी दिन वत्सपाल, से वह गोपाल बने । गोपाष्टमी के दिन उनकी पदोन्नती हुई और फिर अब दूर दूर वनों में भी जाने लगे और द्वादश काननो में भी कृष्ण गोवर्धन लीला खेलने लग गए | गोचारण के साथ , गोचारण तो बहाना है अपने मित्रों के साथ सखाओ के साथ भी खेल रहे हैं । साख्यरस का प्राधान्यता चल ही रही है । कई असुरों का वध हो रहा है । वृषभासुर, गर्दभासुर फिर कोई गधा बनके आता है , कोई बछड़ा भी बन कर आया था । कभी बैल बनके आता है , कभी घोड़ा बनकर आता है, तो कभी क्या बन के आता है । पूतना वैसे एक सुंदर ही मानो लक्ष्मी बनके आई है , ऐसा बहाना बनाकर वह आई , वैसे असुरकुल नाश यह सब हो ही रहा है । गोचरण सेवा हो रही है , कृष्णा अपने मित्रों के साथ खेल भी रहे है और इस बीच बीच में असुरों के वध भी चल रहे हैं क्योंकि कृष्ण उम्र में बढ़ जाते है । अब स्थानांतरण होगा , गोकुल से शक्त्यावर्त गये थे , अब शक्त्यावर्त से आगे बढ़ेंगे और कृष्ण कुछ लगभग 6 - 7 वर्ष के हो चुके हैं , शक्त्यावर्त से प्रस्थान करके नंदग्राम पहुंच जाते हैं । केवल कृष्ण ही नही सारे गोकुल वासीयो का निवास स्थान नंदग्राम बन जाता है , और फिर रावल गांव की जन्मी राधा रानी और वृषभानु , कीर्तिदा और उस रावल गांव के वासी भी स्थानांतरित हो जाते हैं , और वह पहुंच जाते हैं । उन्हें वृषभानु पुर जिसका नाम अब बरसाना जो कहते हैं , वह बरसाना । राधा रानी की जय महारानी की जय , बरसाने वाली की जय , और कुछ यह बरसाना वृषभानुपूर है । कृष्ण नंदग्राम है और राधा रानी बरसाने मे है । धीरे-धीरे किशोर अवस्था को युवा अवस्था को प्राप्त कर रहे हैं , कृष्ण थोड़े जल्दी बड़े बड़े हो जाते हैं उम्र कम है लेकिन वह अलग-अलग कार्य के लिए लीलाओं के लिए अधिक परिपक्व और सक्षम हो जाते हैं । अब जहां पर राधा कृष्ण का मिलन प्रारंभ हो जाता है , संकेत नाम का स्थान है , संकेत ! लगभग नंदग्राम और बरसाने के मध्य में संकेत ! वहां मिलते हैं और वही से कई बार संकेत के साथ निर्धारित होती है , आज की लीला भांडीरवन में ठीक है ? और कहां ? कामवन में , ठीक है । संकेत के साथ , इशारों के साथ या मुद्राओं के साथ , और ऐसे माधुर्य लीलाओं की योजनाएं बनती है और माधुर्य लीलाएं भी अब संपन्न होने लगी है । यहां पर अब माधुर्य लीला , जिस में रास क्रीडाए भी है ,
यमुनातीरा वनचारी राधा माधव कुंज बिहारी जमुना के तट पर मध्यान्न के समय राधाकुंड तट पर मध्यान्न लीला , माधुर्य लीला या फिर झूलन यात्रा भी संपन्न हुई । झूले में झूलते हैं या जल खेली होती है जमुना में या राधा कुंड में ऐसी लीलाएं संपन्न होने लगती है । श्रीमद्भागवत के कुल 5 अध्याय है , दशम स्कंध के 29 अध्याय से 33 अध्याय तक के पांच अध्याय मे महारास का भी यहां वर्णन है । इन लीलाओं का प्राधान्य इस उम्र में होने लगता है । हरी हरी । कृष्ण अब 10 - 11 वर्ष के हुए हैं , कृष्ण ने कई सारे असुरों का वध किया है । जिन असुरोंको कंस ही भेजा करता था तो अब कंस के वध का ही समय आ चुका था । नारद मुनि ने इस रहस्य का उद्घाटन किया , " वह कृष्ण बलराम है ना , वही तो वसुदेव के सातवें और आठवें पुत्र है ।" उसी के साथ कई विचार कंस के मन में भी आते है और कई घटनाक्रम घटते हैं और कंस अक्रूर जी को भेजता है , "कृष्ण बलराम को ले आओ ।" तब कृष्ण बलराम को लेने नंदग्राम आते हैं और दूसरे दिन प्रातकाल कृष्ण बलराम को लेकर मथुरा के लिए प्रस्थान करते हैं ।
सोडुनिया गोपींना कृष्ण मथुरेसी गेला ।
कृष्ण रथामध्ये बैसला अक्रूराने रथ सजविला ।।
अक्रूर ने दूसरे प्रात काल रथ को सजाया है , कृष्ण बलराम रथ में बैठे हैं और रथ प्रस्थान कर रहा है । गोपिया बड़ी व्याकुल है , उनकी परवाह न करते हुए अक्रूर कृष्ण और बलराम भी प्रस्थान कर ही रहे हैं आ जाऊंगा , आ जाऊंगा , कहते हुए कृष्ण बलराम ने मथुरा के लिए प्रस्थान किया हैं । इस मथुरा के प्रस्थान के साथ कृष्ण की जो वृंदावन की प्रकट लीलाएं है उसका समार्पन होता है । उसी के साथ , हम भी प्रतिदिन सप्ताह भर से कथा कर रहे थे , उसमें कुछ वृंदावन लीला , बाल लीला , कौमार कौंडल लीलाओं की चर्चाओं को विराम देते है । भगवान की लीला रुकती नहीं चलती ही रहती है । भगवान की लीला नित्य लीला है । ठीक है ।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।।