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*जप चर्चा* *वृंदावन धाम* *24 अगस्त 2021* 848 स्थानों से आज जप हो रहा है । निताई गौर प्रेमानंदे कहे की बोलो श्री राधे श्याम कहे ? श्याम के धाम पहुंच ही गए । जय राधे जय कृष्ण जय वृंदावन । श्रीगोविंद गोपीनाथ मदन मोहन ।। 300000 गौड़ वैष्णवेर नाम, कृष्णदास कविराज गोस्वामी दिखते हैं । यह तीन नाम राधा मदन मोहन राधा या राधा गोविंद , राधा गोपीनाथ यह गोडीयों के नाथ है । गौड़ीय वैष्णवो के नाथ यह तीन विग्रह है । और यह विग्रह जहां है वही वृंदावन है । हरि हरि । वृंदावन यह वनम वृंदावनम , वृंदा यह वृंदा देवी का , राधायः वृंदा देवी का नाम वृंदावन या वृंदादेवी के कारण इसका नाम वृंदावन हुआ । कृष्ण जिनका नाम है , गोकुल जिनका धाम है ऐसे श्री भगवान को मेरा बारंबार प्रणाम है । आप सभी की ओर से भी मैं धाम को प्रणाम कर रहा हूं । कल मैं जब यहां पहुंचा तो मैंने कहा कि भक्त नहीं है भगवान नहीं है तो यह ऐसा कैसा धाम ? वैसे हम पहुंच रहे थे तो भक्त भी वृंदावन में पहले पहुंचे थे । कीर्तन भी हो रहा था , हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे । हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।। कभी-कभी हम इसको राधा कृष्ण राधा कृष्ण कृष्ण कृष्ण राधा राधा । राधा रमन राधा रमन राधा रमन रमन राधा राधा ऐसा भी हम बोलते हैं । ऐसे समझ के साथ भी भक्त कहते हैं हरे कृष्ण मतलब राधा कृष्ण राधा कृष्ण कृष्ण कृष्ण राधा राधा समझ में आ रहा है । हरे राम मतलब राधा रमन राधा रमन रमन रमन राधा राधा , और हम रमन रेती में पहुंचे हैं । रमन रेती जहां भगवान रमते हैं ।भगवान रमते है इसलिए फिर यह स्थान रमणीय बनता है और यह अच्छा शब्द आपके लिए सुनने के लिए याद रखने के लिए है रमणीय , रमने योग्य , रमन के लिए योग्य । यही कृष्ण बलराम रमते थे उन्हीं का दर्शन श्रील प्रभुपाद ने कृष्ण बलराम के विग्रह के रूप में कराया । हरि हरि । श्री कृष्ण जन्माष्टमी का महोत्सव भी आ ही रहा है । श्री कृष्ण जन्माष्टमी का महोत्सव वृंदावन में मनाने के उद्देश्य से में वृंदावन आ पहुचा हूं । कृष्ण जैसे ही प्रकट हुए मथुरा में और रातों-रात गोकुल पहुंच गए । कृष्ण चक्रवर्ती ठाकुर समझाते हैं आपके जानकारी के लिए या यह बातें स्मरणीय है या जो कृष्ण के संबंध में बातें हैं वह स्मरणीय है । स्थल होता है रमणीय , रमने योग्य स्थल होता है , स्थान होता है और वहां पर जो लीला संपन्न होती है वह लीलाये स्मरणीय होती है । स्मरण करने योग्य , लीला भी स्मरणीय है और कई सारी स्मरणीय बातें हैं । गोपिया क्या करती है ? बस स्मरण करती रहती है और कुछ नहीं करती । गोपिया केवल क्या करती है ? क्या जानती है ? स्मरण करना जानती है । स्मर्तव्यः सततं विष्णुर्विस्मर्तव्यो न जातुचित् । सर्वे विधि - निषेधाः स्युरेतयोरेव किङ्कराः ॥ (चैतन्य चरितामृत मध्य 22.113) अनुवाद “ कृष्ण ही भगवान् विष्णु के उद्गम हैं । उनका सतत स्मरण करना चाहिए और किसी भी समय उन्हें भूलना नहीं चाहिए । शास्त्रों में उल्लिखित सारे नियम तथा निषेध इन्हीं दोनों नियमों के अधीन होने चाहिए । " स्मरण करती रहती है । समर्तव्य मतलब स्मरण करना चाहिए ऐसा अर्थ हुआ। स्मरणीय मतलब स्मरण करने योग्य लेकिन समर्तव्य मतलब स्मरण करना चाहिए जैसे कर्तव्य , समर्तव्य ऐसे शब्द बन जाते हैं । गोपिया बस , उनका धर्म क्या है ? समर्तव्य , स्मरण करती है । विस्मरतव्य न जयतो चित , वि मतलब उल्टा हुआ समर्तव्य के विपरीत विस्मरतव्य। स्मरतव्य स्मरण करना चाहिए , विस्मरतव्य कभी नहीं भूलना चाहिए । गोपियां सिर्फ इतना ही जानती है , स्मरण करना चाहती है और भूलना नहीं जानती है कभी नहीं भूलती है मतलब स्मरण ही करती रहती है बस यही करती रहती है उसी के संबंध में कुछ चर्चा होती रहती है और अभी भी हो ही रही है । स्मरण करने योग्य स्मरतव्य स्मरण करना चाहिए , स्मरण करना चाहिए स्मरणीय स्मरतव्य । विश्वनाथ चक्रवर्ती ठाकुर कहते हैं कि कृष्ण 3 वर्ष 8 महीने गोकुल में रहे । आप कुछ नोंद करना चाहोगे मानसिक तौर पर या लिखना चाहिए । कई सारी लीलाये वहां संपन्न हुई और गोकुल में अंतिम लीला जो श्रीकृष्ण खेले वह दामोदर लीला थी । भक्तो का उद्धार किया और उन वृक्षों का उद्धार हुआ । उसी समय निर्णय लिया था ब्रज वासियों ने नंद बाबा , उपानंद वहां उपस्थित थे , उपा नंद , नंद महाराज के चार भाई हैं और नंद महाराज पांचवे हुए। नंद महाराज के सबसे बड़े जो भाई है उनका नाम उपा नंद है । उपा नंद ने प्रस्ताव रखा कि हमको यहां से प्रस्थान करना चाहिए इसको मैं अभी विस्तार से नहीं कहना चाहता हूं । सभी तैयार हुए और सारे गोकुल का परिवर्तन हुआ सभी ने यमुना को पार किया और सारे गोकुल के वासी चले गए सारा गोकुल खाली हो गया । वहां आतंकवाद बढ़ रहा था यह फिर कहना पड़ता है जब विस्तार से कहते हैं, फिर कारण देना होता है । क्यों क्यों छोड़ा उन्होंने गोकुल ? जब उन्होंने जमुना पार की सारे गोकुल वासी नंद यशोदा भी और कृष्ण बलराम भी वहा रहने लगे । मैं जहां अभी हूं या कृष्ण बलराम जिस जगह है वहां से कई दूरी पर छठीका नानक ग्राम है , छठीका आप जानते ही होंगे । छठीका और वहा से कृष्णा बलराम मंदिर के और मार्ग जाता है । उसका पहले नाम था छटीका और हम जब पहली बार वृंदावन आए थे उन दिनों में और कोई भक्त याद भी कर रहे थे । जब हम कल पहुंच रहे थे उन्होंने कहा कि महाराज अगले साल आपका 58 वा वृंदावन भेंट वर्षगाठ होगी । 1972 में मैं पहली बार वृंदावन में आया था । उस समय उस रास्ते का नाम था नाम था छटी करा । उसी का नाम फिर 1977 में भक्तिवेदांत स्वामी मार्ग हुआ और कृष्ण बलराम मंदिर के पास बहुत बड़ा गेट है आपने देखा होगा और वह गेट है भक्तिवेदांत स्वामी द्वार या गेट और जो वह रास्ता है वह भक्तिवेदांत स्वामी मार्ग है । इसका समाचार जप आया , आपके नाम से एक रास्ता बन रहा है । एक रास्ते का नाम भक्तिवेदांत स्वामी ऐसा हम दे रहे हैं वृंदावन मुंसिपल पार्टी ने इसे मान्यता दी है ऐसा समाचार लेके उस समय के 1977 के धनंजय प्रभु जो यहां के इसको के अध्यक्ष थे वह मुंबई आए थे और प्रभुपाद के मुंबई के क्वार्टर में पांचवें माले पर आये । मैं भी वहां था मुझे याद है , वह बता रहे थे कि आपके नाम से यह भक्तिवेदांत स्वामी मार्ग बन रहा है । वैसे पहले तो जो कह रहे थे सोच रहे थे कि क्या नाम दे जाए ? उससे श्री प्रभुपाद प्रसन्न नहीं थे । हम भक्तिवेदांत मार्ग नाम दे रहे हैं प्रभुपाद को यह नाम पसंद नहीं आया । भक्तिवेदांत और भी कोई हो सकता है , भक्तिवेदांत यह सामान्य नाम हुआ । भक्तिवेदांत के साथ स्वामी होना चाहिए तो फिर मेरा नाम हुआ लेकिन भक्तिवेदांत तो कोई भी हो सकता है । उसको सुधार के फिर उस मार्ग का नाम भक्तिवेदांत स्वामी मार्ग हुआ । बात यही हो रही थी कि छटीकरा का जो मार्ग है भक्तिवेदांत स्वामी मार्ग जहां मिलता है वह टी जंक्शन है । ठीक है । हरि हरि । वह गोकुल वासी छटीकरा में रहने लगे ।वह बैलगाड़ी में , छकड़े में बैलगाड़ी को छकड़ा कहते हैं । कई सारे छकड़े , बैलगाड़ी को उन्होंने गोलाकार पार्किंग किया और बीच में सभी गोकुल वासी रहते थे । छटीकरा वैसे अपभ्रंश है वैसे मूल नाम तो शास्त्र में शक्तावर्त लिखा है । शकट मतलब बैलगाड़ी , आपको पता है शक्तासुर कृष्ण ने वध किया । बैलगाड़ी के नीचे लिटाया था तो कृष्ण ने लात मारी उसी के साथ खत्म हो गया । और शक्ट भंजन लीला कहते हैं । कई सारे शकटो में बैल गाड़ियों में अपना घर का जो भी सामान है भरकर के सारे गोकुल वासी आए और यहां शक्तावत में रहने लगे । वह वहा रहने लगे । वह वहा 3 वर्ष और 8 महीने रहे । हरि हरि। जब कृष्ण रहते थे गोकुल में तब वह गोकुल शहर के बाहर भी कभी नहीं गए अधिकतर नंद भवन में ही और फिर माखन चोरी के लिए घर घर जाते ही थे जरूर और नंद भवन के प्रांगण में जहां ब्रह्मांड घाट है वहां कृष्णा ने मिट्टी खाई। कृष्ण का आना जाना या भ्रमण यही गोकुल में ही था । अब वह शक्तावत पहुंचे और वह थोड़ा भ्रमण करना चाहते हैं । यहीं से कृष्ण क्या बन गए ? कृष्ण वत्सपाल बन गए । आप गोपाल गोपाल सुनते ही रहते है । गोपाला गोपाला देवकीनंदन गोपाला । गोपाल सब जानते हैं लेकिन गोपाल बनने के पहले एक समय वह पहले वत्सपाल थे । वत्स मतलब बछड़ा पाल मतलब पालन । बछड़ों का पालन करते थे , वह स्वयं छोटे थे तो नंद महाराज ने सोचा कि यह बड़ी गायों को संभाल नहीं पाएंगे इसलिए छोटे छोटे गैया छोटे छोटे ग्वाल । शक्तावत में कृष्ण वत्सपाल बन गए , और फिर वह लीला खेल रहे थे । एक दिन एक असुर बछड़े का रूप लेकर आया तब कृष्ण ने कहां,' मैं तुमको जानता हूं ।" तुम कौन हो ।" वह बछड़ा होने का ढोंग कर रहा था लेकिन कृष्णा ने पकड़ लिया पिछले पैर से और सावधानी से थोड़ा आगे बढ़े और पास में जाकर उसके पीछे के पैर से पकड़ लिया । उस असुर को जो वत्स बना था और ऐसा उसको घुमाया और फेंक दिया वह एक पेड़ के शाखा में अटक गया और फिर खत्म । अब देवताओं का आना प्रारंभ हुआ , देवताओं ने अपना हर्ष प्रकट किया असुर का वध होता है तब सूर जो होते हैं या देवता जो होते हैं वह प्रसन्न होते हैं । वत्सासुर , कैसा असुर था ? वत्सासुर । कृष्ण वत्सपाल थे और यह वत्सासुर था ।इस वत्सासुर का वध किया तब कृष्ण होंगे कुछ चार पांच साल की उम्र के , ठीक है और भी लीलाए हैं जब वह शक्तावत में थे । वहां 3 वर्ष 8 महीने रहे और फिर आगे बढ़ते हैं यह थोडी टेंपरेरी व्यवस्था थी , इंट्रानसिट कहते हैं वहां सेटल नहीं होना था , वहां नहीं रहना था लेकिन दरम्यान थोड़े वहां 3 वर्ष 8 महीने रुके थे । नंदग्राम अंतिम स्थान रहा , आप नंदग्राम जानते हैं बरसाना और नंदग्राम , नंद महाराज का ग्राम बन गया । वहां नंदेश्वर भी है , वह पहाड़ शिवजी है । नंदग्राम एक पहाड़ के ऊपर है वह पहाड़ शिवजी है । बरसाने का पहाड़ ब्रह्मा है , ब्रह्मा के चतुर्मुख होते हैं इसलिये बरसाने में भी 4 शिखर है उनके नाम भी है उनकी लीलाये भी है । ब्रजमंडल दर्शन में आप पढ़ सकते है , अधिक विस्तार से जानकारी आप उस ग्रंथ में पढ़ सकते हो । ब्रह्मा , शिव और विष्णु इन तीनों पहाड़ के रूप में भी ब्रज मंडल में रहते हैं । ब्रह्मा बरसाना है , शिवजी नंदग्राम है और विष्णु कौन सा पहाड़ है ? कौन सा होगा ? विष्णु किस पहाड़ के रूप में रहते हैं ? गिरिराज गोवर्धन की जय । जब पहली बार पूजा हो रही थी तब श्री कृष्ण प्रकट हुए , सभी ने देखा वह बैठे बैठे अन्नकोश भोजन करने वाले थे और उस पहाड़ ने कहा , उस गोवर्धन ने कहा , क्या कहा ? शैलोस्मि , शैलोस्मि , शैलोस्मि ।गोवर्धन शीला , शीला से होता है शैल । शीला से शैल शब्द बनता है , पहाड़ । शैल यह जो पहाड़ है गोवर्धन , यह मैं ही हूं , ऐसा पहाड़ कहने लगा यह पहाड़ मूर्तिमान बना अपने मूल रूप को धारण किया या दर्शन दिलाया । इस नंदग्राम में कृष्ण रहे हैं और 3 वर्ष 8 महीने पूरा कितना हुआ गिनो , 10 साल हो गए कि नहीं ? ठीक है , मतलब कृष्ण अब किशोर हो चुके हैं । पहले बालक थे , बाल्य लीला में कोमार थे । कौमार लीला औकण्ड लीला । जब औकाण्ड अवस्था प्राप्त किया तो उसी दिन गोपाष्टमी का उत्सव मनाया गया । गोपाष्टमी , गोपाष्टमी क्यों कहते हैं ? क्योंकि कृष्ण उस दिन गोप बने , गोपाल बने । वत्सपाल थे , वत्सपाल बछड़ों का पालन करते थे और फिर वह कार्तिक का मांस भी था और अष्टमी का दिन भी था । कार्तिक शुक्ल अष्टमी के दिन श्रीकृष्ण को बढ़ती मिली वह वत्सवाल से गोपाल बन गए ।कुमार ऑगण्ड अवस्था उन्होंने प्राप्त की थी । तब पुनः सभा बुलाई गई थी जिसमें पुष्टि हुई उसमें कहा गया हां , हां , आज से कृष्ण गोपाल बनेगा , बड़ी-बड़ी गायों की , नवलाख गायों की रखवाली करेगा । नंदग्राम में फिर 3 वर्ष 8 महीने भगवान रहे । उस दिन उस समय अक्रूर आ गए , आप पढ़ते हैं कि अक्रूर को वृंदावन में भेजा है या फिर वह वृदावन पहुंच गए । हम सोचते थे वह यह दो ही बार वृंदावन आए होंगे । यहां पंचक्रोशी वृंदावन है , राधा दामोदर इत्यादि मंदिर है मदन मोहन है । वृंदावन मतलब नंदग्राम , नंदग्राम कहां जहां कृष्ण कभी भी रहे नहीं पंचकृषि वृंदावन में लिला सर्वत्र संपन्न होती ही है लेकिन कृष्ण का निवास यहां नहीं हुआ था । यहां नंदबाबा नहीं रहते थे ना तो नंदलाल रहते थे , न कृष्ण बलराम रहते थे । अक्रूर वृंदावन पहुंचे मतलब नंदग्राम पहुंचे , नंदग्राम गए । नंदग्राम को गए कृष्ण को लाने के लिए । हरि हरि । कृष्ण का स्मरण करते हुए वह जाही रहे थे , कृष्ण बलराम का स्मरण करते जा रहे थे वह नंदग्राम के पास अब उनका रथ पहुंची गया था तब उनका ध्यान भगवान के चरण कमल की ओर गया । वहां रास्ते के बगल में ही कृष्ण के चरण का चिन्ह दिखा , कृष्ण के चरण का चिन्ह देखा , अभी-अभी कृष्ण वहीं से लौटे थे । नंदग्राम गए थे अपनी गायों के साथ वह नंदग्राम लौट रहे थे तो वहीं से चले थे , अभी के ताजे जो चिन्ह थे । आज की ताजी खबर , जैसे ही वह देखे तब बस उनको कृष्ण का और स्मरण आया , भाव उमड़ आए और सबको उन्होंने रोक दिया और धड़ाम करके गिर गए , चरण का स्पर्श करने लगे । वहा की धूल अपने मस्तक पर उठा रहे थे वहां लोट रहे थे , ब्रज के रज में लोट रहे थे । बोहोत समय के उपरांत उन्होंने स्वयं को संभाला और रथ में पुनः स्थित हो गए और आगे की यात्रा हुई , नंदग्राम का स्थान वहां से पास में ही था और फिर अगले दिन , सोडूनिया गोपीना कृष्ण मथुरेसी गेला । अक्रूराने रथ सजविला , कृष्ण रथामधे बैसिला ।। सोडूनिया गोपीना कृष्ण मथुरेसी गेला । वह दूरदिन रहा , सुदिन नहीं ।दूरदिन रहा , उस दिनने कईयों को खास करके गोपियों को दुखी किया और वह कृष्ण को देख रही थी , कृष्ण को मथुरा की ओर प्रस्थान करते हुई देख रही थी , उन्होंने बड़ा प्रयास भी किया था कृष्णा को रोकने का , वह रथ के पहिए पकड़ रही थी आगे बढ़ने से रोक रही थी , कईयों ने अक्रूर का गला पकड़ा था "अरे ! तुमको किसने यह अक्रूर नाम दिया ? तुम तो बड़े क्रूर हो , हमारे प्राणनाथ को , हमारे प्राण को ही तुम लेकर जा रहे हो क्रूर कहीं का ।" फिर जमुना के तट पर थोड़ा मथुरा से पहले जमुना के तट पर अक्रूरजिने रथ को थोड़ा रोका , विश्राम हुआ कृष्ण बलराम रथ में बैठे रहे । अक्रूर ने वहां स्नान किया है और गायत्री के मंत्र का जप ध्यान कर रहे थे , ठीक है । अभी यह सब कहने के लिए समय नहीं है । हरि हरि । वह जो स्थान है उसको अक्रूर घाट कहते हैं इसको याद रखिए । अक्रूर घाट , इसलिए उस घाट का नाम अक्रूर घाट हुआ । हम जब ब्रजमंडल परिक्रमा शुरू करते हैं तब यह स्थान आता है , कृष्ण बलराम के मंदिर से हम प्रस्थान करते है तब अक्रोन आता है फिर उसके बगल में ही अक्रूर घाट है । वही फिर हम रुकते हैं वहां के सारे लीलाओं का स्मरण करते हैं , वहां पर संपन्न हुई लीलाएं उसी अक्रूर घाट पर श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने ब्रजमंडल परिक्रमा की , तब परिक्रमा के समय वृंदावन श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु रहे फिर परिक्रमा के अंत में श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु अक्रूर घाट पर ही रहे थे जो मथुरा और वृंदावन के बीच में है । अक्रूर घाट और श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने वहीं से जगन्नाथपुरी की लिए प्रस्थान किया । हरि हरि । ठीक है, मैं यही रुकता हूं । मैं ऐसे सोच रहा था या कुछ मिनटों का समय है आप को मुझे वह भी कहना था लेकिन मैंने नहीं कहा । मैं पहली बार जब वृदांवन आया तब मैंने क्या देखा और किस से प्रभावित हुआ और कौन सी बात अविस्मरणीय है जो हम कभी नहीं भूल सकते ऐसे दर्शन किए , ऐसे कुछ बातों से प्रभावित हुए । ऐसा अगर आपका कोई अनुभव है , पहले बाहर जो कोई वृंदावन गया तब मैंने यह देखा , यह सुना , जिसे कभी नही भूल सकते , ऐसे दर्शन किया , कुछ बातों से प्रभावित हुआ और मेरी तकदीर बदल गई या मेरे जीवन में क्रांति हुई ऐसा कोई आपका अनुभव है , आप में से कुछ भक्त कह सकते हो आप की वृंदावन में पहली भेंट । उस भेट में आपने क्या देखा ? जो आप जीवन भर में कभी नहीं भूल सकते हैं । ठीक है , थोड़े समय के लिए कोई बताना चाहता है तो आप बता सकते हो । हरे कृष्ण।

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