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23-11-2021 हरे कृष्ण , आज 828 स्थानों से भक्त जप कर रहे हैं। अच्छा हैं कि भक्तों की संख्या में वृद्धि हो रही हैं। ॐ अज्ञानतिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जनशालाकया चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः।। मूकं करोति वाचालं पङ्गुं लङ्घयते गिरिं । यत्कृपा तमहं वन्दे श्री गुरु दीं तरिणम परमानन्दं माधवं श्री चैतन्य ईश्वरम ॥ श्रील प्रभुपाद की जय.... उन्हीं की कृपा से गंगा भी वाचाल बन सकता हैं , ऐसे गुरुदेव हमारे जैसे दीनों को तार सकते हैं. ऐसे गुरुजनों के दिव्य चरणों का हमें स्मरण करना चाहिए , इसके साथ ही साथ हम गुरुदेव के साथ साथ वैष्णवों की वंदना भी करते हैं। वन्दे अहम् श्री गुरौ: श्रीयुत पद कमलान , श्री गुरन वैष्णवांश्च। अर्थात मैं श्री गुरु के चरण कमलों की वंदना करता हूँ। आज हम इसके विषय में चर्चा करेंगे , और उसके पश्चात आपको और कुछ बताएंगे ठीक हैं ? इस श्लोक में शब्द आया हैं युत , युत का अर्थ होता हैं दो अतः हम श्रील गुरुदेव के दोनों चरण कमलों की वंदना करते हैं। इसके अलावा प्रतिदिन हम गाते भी हैं : श्री गुरु चरण पद्म , केवल भक्ति सद्म। यदि आप सभी भी प्रतिदिन यह प्रार्थना करते हैं तो हम कह सकते हैं कि हम ऐसा कहते हैं। गुरो : का अर्थ एक वचन में हैं परन्तु गुरुन शब्द बहुवचन में हैं। अहम् गुरुन वन्दे अर्थात मैं गुरुओं की वंदना करता हूँ। अतः हमें यह समझना चाहिए कि पहले एक गुरु की बात हुई हैं अहम् गुरोः वन्दे अर्थात मैं दीक्षा गुरु की वंदना करता हूँ जो एक ही होते हैं परन्तु यहाँ बहुवचन में अहम् गुरुन वन्दे आया हैं जिसका अर्थ हैं कि मैं शिक्षा गुरुओं की वंदना करता हूँ। दीक्षा गुरु एक होते हैं परन्तु शिक्षा गुरु अनेक हो सकते हैं श्रील प्रभुपाद इस्कॉन के सभी भक्तों के प्रथम तथा सर्वोपरी शिक्षा गुरु हैं ही परन्तु उनके साथ साथ हमारे कई अन्य शिक्षा गुरु भी होते हैं। इसके पश्चात कहा गया हैं कि मैं वैष्णवों की वंदना करता हूँ। यद्यपि गुरु भी वैष्णव ही हैं परन्तु यहाँ पर वैष्णव शब्द से अनन्त कोटी वैष्णवों की वन्दना हो जाती हैं। इस प्रकार इस श्लोक की पंक्ति में तीन व्यक्तियों का उल्लेख हैं : अहम् गुरु पद कमलान वन्दे : मैं दीक्षा गुरु के चरण कमलों की वंदना करता हूँ। अहम् गुरून वन्दे : मैं सभी शिक्षा गुरुओं के चरणों की वंदना करता हूँ। अहम् वैष्णवान वन्दे : मैं सभी वैष्णवों की वन्दना करता हूँ। यद्यपि हमारी चर्चा का विषय कुछ और हैं परन्तु हमने आपको इस श्लोक के विषय में कुछ बताया हैं जिससे हमें पता रहे कि हम किसकी वंदना कर रहे हैं। जैसा कि आप सभी जानते हैं कि अभी हेमन्त ऋतू प्रारंभ हो चुकी हैं। आप सभी के लिए भी हेमंत ऋतू ही चल रही हैं तथा एक समय कृष्ण तथा गोपियों के लिए भी हेमन्त ऋतु चल रही थी , जिसका वर्णन श्रीमद भागवतम में हैं। हेमन्ते प्रथमे मासे (श्रीमद भागवतम 10.22 ) अर्थात हेमन्त ऋतु के प्रथम मास में अर्थात मार्गशीर्ष मास का वर्णन हैं। हमें सुबह जप चर्चा के समय श्रवण करना चाहिए तथा दिन में उसका चिन्तन करना चाहिए। इस प्रकार श्रवण , कीर्तन तथा स्मरण यह तीनों अत्यन्त आवश्यक हैं। दिन में अपने नोट्स पढ़ना , श्रील प्रभुपाद के ग्रंथों को पढ़ना , मंदिर में भागवतम कक्षा का श्रवण करना यह सब श्रवण कीर्तन ही हैं। इस प्रकार हम श्रवण, कीर्तन, मनन तथा चिंतन में पूरा दिन व्यस्त रह सकते हैं। हमें समय निकालकर श्रील प्रभुपाद की पुस्तकें पढ़नी चाहिए। यदि हम मनन नहीं करते तो हम केवल दैनिक समाचार पत्र के समान कुछ पढ़ते हैं और फिर भूल जाते हैं उसी प्रकार हम आध्यात्मिक ज्ञान भी भूल जाएंगे , इसलिए श्रवण करने के पश्चात कीर्तन तथा उसपर चिन्तन अत्यंत आवश्यक हैं। अतः हमें अधिक से अधिक मात्रा में भगवान् के विषय में श्रवण और कीर्तन करना चाहिए , यदि हम ऐसा करते हैं तो फिर हमें अवश्य विष्णु या कृष्ण का स्मरण होगा। और यदि हम ढृढ़तापूर्वक इसका पालन करते हैं तो यही बन जाता हैं : रम्या काचिदुपासना व्रजवधु वर्गेण या कल्पिता , हमें किसी आराधना करनी चाहिए ? चैतन्य महाप्रभु ने बताया हैं : गोपियों जैसी , यशोदा जैसी , राधारानी जैसी , साखों जैसी भक्ति करो यही हैं रागानुगा भक्ति। अतः हम यही कहना चाहते हैं कि आपको श्रवण हर समय करना चाहिए , श्रील प्रभुपाद के प्रवचन , गुरुओं के प्रवचन , सेमीनार आदि बहुत कुछ ऑनलाइन उपलब्ध हैं अतः हमें उनको हृदयङ्गम करना चाहिए और उसके पश्चात उन पर चिंतन मनन करना चाहिए। गोपियाँ स्मरण के लिए प्रसिद्द हैं। सततं स्मृत्यव्य: विष्णु अर्थात स्मरण करना चाहिए। कर्त्तव्य: करना चाहिए या करने योग्य हैं। कर्तव्य या करणीय दोनों समान हैं। इसी प्रकार स्मृतव्य कहें या स्मरणीय कहें दोनों एक ही बात हैं। यह संस्कृत के व्याकरण की कुछ बातें हैं। हम पुनः हेमंत ऋतु में हुई लीला की ओर चलते हैं। हेमन्त ऋतु में गोपियाँ चीर घाट पहुँची। वह प्रतिदिन प्रातःकाल में स्नान करने यमुना पर जाती हैं , वहीँ पर कृष्ण आ जाते हैं और उनके वस्त्र हरण कर लेते हैं और फिर उनके वस्त्र लौटा देते हैं। यहाँ तक की कथा आप सभी को विस्तार पूर्वक बता चुके हैं उसके आगे अब हम और चर्चा करेंगे। इस प्रकार हम बता रहे हैं कि गोपियाँ स्मरण के लिए प्रसिद्ध हैं : सततं स्मृत्यव्य: विष्णु, विस्मृतव्य न जातुचित। जातुचित का अर्थ है कभी भी नहीं अर्थात गोपियाँ सदैव भगवान् का स्मरण करती हैं और कभी भगवान् को नहीं भूलती हैं। यही गोपियों का भाव हैं। गोपियाँ बहुत अधिक नहीं जानती हैं वह केवल इतना ही जानती हैं कि भगवान् को कभी भूले नहीं और सदैव उनका स्मरण रहे। यही उनकी सबसे श्रेष्ठ भक्ति हैं। हमें भी इसका अभ्यास करना हैं। याताबला व्रजं सिद्धा मयेमा रंस्यथा क्षपा: । यदुद्दिश्य व्रतमिदं चेरुरार्यार्चनं सती: ॥ (श्रीमद भागवतम 10. 22. 27 ) यहाँ भगवान् ने गोपियों के वस्त्र लौटा दिया। उन्होंने सर्वधर्म परित्याग किया , सर्वाङ्ग दान दिया तब भगवान् उन्हें कह रहे हैं कि हे अबलाओं , हे गोपियों तुम सिद्ध , निपुण हो गई हो। गोपियों ने महिने भर भगवान् की अर्चना और तपस्या की और उसका फल हैं कि स्वयं भगवान् श्री कृष्ण उन्हें कह रहे हे कि तुम सिद्ध हो गई हो। जिस प्रकार साधना से सिद्धि प्राप्त होती हैं। भगवान् आगे कह रहे हैं कि अब आप ब्रजं , वृंदावन या अपने अपने घर जाओं। यात का अर्थ हैं : जाओ। गोपियाँ नदी के तट पर आई हुई थी भगवान् अब उन्हें आगे कुछ कह रहे हैं जो बहुत महत्वपूर्ण बात हैं। रंस्यथा क्षपा: - क्षपा: का अर्थ हैं रात्रि , स्यथा शब्द भविष्य का सूचक हैं तथा रं एक धातु हैं जिसका अर्थ हैं रमण करना। अतः भगवान् गोपियों से कह रहे हैं कि भविष्य में हम आपके साथ रमण करेंगे। अभी आपने मुझे अपना पति स्वीकार किया हैं , आपने मुझे अपना सर्वस्व दान कर दिया हैं , अब आप अपने अपने घर जाओं भविष्य में किसी रात्री को हम आपके साथ रमण करेंगे। राधा रमण या गोपी रमण। रमण रेती में हम रमण करेंगे। वैसे तो वृन्दावन का सम्पूर्ण हिस्सा रमन रेती हैं। सरे वृन्दावन की रज में भगवान् ने रमन किया हैं , आगे भगवान् कह रह रहे हैं कि हम भविष्य में भी रमन करेंगे। अभी हम दसवें स्कंध में हैं और हम 22 वां अध्याय पढ़ रहे हैं परन्तु जब हम 29 वे अध्याय में पहुंचेंगे तब हम वहां पहला श्लोक पढ़ेंगे : श्रीबादरायणिरुवाच भगवानपि ता रात्री: शारदोत्फुल्लमल्लिका: । वीक्ष्य रन्तुं मनश्चक्रे योगमायामुपाश्रित: ॥ श्रीमद भागवतम 10.29.1 ॥ यह रास पंचाध्यायी का प्रथम अध्याय हैं। 29 , 30 , 31 , 32 ,33 यह पांच अध्याय रास का वर्णन करते हैं। 29 वां अध्याय प्रथम अध्याय हैं , इसमें बताया गया हैं : भगवानपि ता रात्री: शारदोत्फुल्लमल्लिका: । वीक्ष्य रन्तुं मनश्चक्रे योगमायामुपाश्रित: यहाँ रात्रि का वर्णन हैं, रात्रि स्त्रीलिंग में हैं इसलिए इसे ता कहा हैं। २२ वे अध्याय में भगवान कहते हैं कि भविष्य में किसी रात्रि को हम मिलेंगे तथा २९ वे अध्याय में ता रात्रि कहा गया हैं अर्थात यह वही रात्रि हैं जिसका उल्लेख भगवान् ने किया था। वह रात्रि कौनसी रात्रि हैं ? हेमन्ते प्रथमे मासी : हेमंत ऋतु के प्रथम मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा को भगवान् ने कहा की हम भविष्य में रास क्रीड़ा करेंगे। तो वह रात्रि कौनसी रात्रि हैं ? कब भगवान ने रास क्रीड़ा की थी ? तो वह रात्रि हैं शरद पूर्णिमा। आश्विन मास की पूर्णिमा जिसे महाराष्ट्र में कोजागिरी पूर्णिमा कहते हैं। इस दिन भगवान् के मन में रमन करने की इच्छा जाग्रत हुई। इसीलिए यहाँ भगवानपि शब्द का प्रयोग किया गया हैं क्योंकि भगवान् आत्माराम हैं , उन्हें किसी की कामना नहीं रहती परन्तु फिर भी भगवान् होते हुए भी भगवान् के मन में रमन करने की इच्छा जगी। भगवान् ने यह इच्छा किसी से कही नहीं परन्तु योगमाया ने भगवान् के मन की बात जान ली. भगवान् की कई शक्तियां हैं उन्हें योगमाया कह दिया जाता हैं। इच्छा शक्ति , लीला शक्ति आदि कई शक्तियां हैं उन्होंने भगवान् के मन की इच्छा जान ली इसलिए यहाँ कहा गया हैं की योगमाया ने इस इच्छा की पूर्ति के लिए व्यवस्था की। अब रासलीला संपन्न होगी , इसका वर्णन 29 से 33 वे अध्याय तक किया गया हैं। रास क्रीड़ा प्रारम्भ होती हैं , फिर कुछ विघ्न आते हैं , गोपियाँ ढूंढती हैं , कृष्ण उन्हें नहीं मिलते हैं , तब वे गोपियाँ यमुना तट पर आ जाती हैं और वहां पर गीत गति हैं जिसे गोपी गीत कहते हैं , जो की अध्याय 31 में वर्णन हैं। गोप्य ऊचु: जयति तेऽधिकं जन्मना व्रज: श्रयत इन्दिरा शश्वदत्र हि । दयित दृश्यतां दिक्षु तावका- स्त्वयि धृतासवस्त्वां विचिन्वते ॥ भगवान् गोपियों द्वारा गाए गए इस गीत से प्रसन्न होकर पुनः प्रकट होते हैं तथा रासक्रीड़ा प्रारम्भ होती हैं। अंग्रेजी में रात्रि के लिए केवल एक शब्द हैं : नाइट परन्तु संस्कृत में रात्रि के लिए कई शब्द हैं : निशा , रात्रि , क्षपा , रजनी आदि। इस प्रकार संस्कृत भाषा समस्त भाषाओँ की जननी तथा अत्यन्त उत्कृष्ट भाषा हैं। रजनीश का अर्थ हैं चन्द्रमा , रजनी अर्थात रात्री तथा ईश का अर्थ हैं राजा अतः रात्रि का राजा हैं चन्द्रमा तथा एक शब्द हैं दिनेश जिसका अर्थ हैं सूर्य। अतः जैसा कि आपको बताया गया हैं कि आप ध्यानपूर्वक श्रवण कीजिये और फिर उसको मनन कीजिए और इसका लाभ लीजिए। मराठी में एक कहावत हैं : नाड़ी फुंकली सोनारे , इकडून तिकडून जाई वारे। सुनार अपनी धौंकनी से आग जलाने के लिए अथवा माताएं जब घरों में मिट्टी के तब आग जलने के लिए एक ओर से फूंक मारता हैं तथा वह दूसरी ओर से बहार निकल जाती हैं। हमें ऐसा नहीं करना हैं हमें भगवान् के ज्ञान का श्रवण करके उसे हृदयङ्गम करना चाहिए यह हमारी संपत्ति हैं इसे सहेज कर रखना चाहिए। गीता,भागवत, रामायण यह हमारी संपत्ति हैं हमें इनका अध्ययन करके इनको हृदयङ्गम करना चाहिए तथा चिंतन तथा मनन करना चाहिए तथा इसका पूरा लाभ लेनी चाहिए। हम अपनी जप चर्चा को यहीं विश्राम देंगे। हरे कृष्ण !!!

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