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*जप चर्चा* *पंढरपुर धाम से* *18 अगस्त 2021* *हरे कृष्ण !* हरि बोल ! गौरंगा ! एकनाथ गौर हरि हरि! आज 930 स्थानों से भक्त जप में सम्मिलित हैं स्वागत है। आज एकादशी होनी चाहिए इसीलिए इतनी बड़ी संख्या में भक्त उपस्थित रहते हैं। व्हाई नॉट एवरीडे, प्रतिदिन क्यों नहीं? थिंक अबाउट इट, कीर्तनीय सदा हरि। श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु एक्सपेक्टिंग इट वुड भी चैंटिंग ऑल द टाइम ,एवरीडे दिस, आल टाइम ऑफ द डे। प्रतिदिन फोरम में जप करने के लिए आपका स्वागत है। गौर किशोर , आप में से कुछ लगभग १०० डेढ़ सौ साधक ऐसे हैं जो प्रतिदिन इस फोरम में जप नहीं करते हो लेकिन अच्छा होगा, आपका संग हमको मिल जाए या फोरम वाले सभी साधकों को मिल सकता है और आप भी लाभान्वित होंगे। इस संघ से आपको प्रेरणा मिलेगी और आपका ध्यान अधिक केंद्रित भी हो सकता है या ध्यान पूर्वक जप करने में अधिक मदद होगी इस उद्देश्य से इसको चलाया गया है। एक तो जप करना है और कैसे करना है? ध्यान पूर्वक जप करना है या कम से कम यह दो बातें तो कही जा सकती हैं और भी कई बातें हैं लेकिन मुख्य बातें यही है। एक तो प्रतिदिन जप करना है और ध्यान पूर्वक जप करना है। ठीक है और अधिक नहीं कहेंगे इस संबंध में, आज एकादशी भी है और आज से झूलन महोत्सव प्रारंभ हो रहा है झूलन महोत्सव यात्रा की जय ! हम उसकी भी चर्चा नहीं करेंगे। कुछ दिनों से हम लोग श्रीकृष्ण जन्म की चर्चा कर रहे हैं उसी को आगे बढ़ाएंगे और अभी नोट कीजिए आपकी जानकारी के लिए 7:30 बजे आज एकादशी महोत्सव है तो इस्कॉन कीर्तन मिनिस्ट्री की ओर से श्रवण कीर्तन उत्सव का आयोजन प्रति एकादशी को होता है। इसलिए आज आपको 7:30 बजे, परम पूजनीय भक्ति मुकुंद गोस्वामी महाराज कथा सुनाएंगे, उनका प्रबोधन होगा। हमें जो भी कहना है मैं कहूंगा और यदि आपका कोई प्रश्न है या शंका समाधान इत्यादि है तो यह सब भी आज पूरा करना है। दिस प्रोग्राम बियॉन्ड गो ऑन एट 7:30। श्रीकृष्ण जन्म ले चुके हैं जैसे हम चर्चा कर रहे थे। श्रीकृष्ण का जन्म हो चुका है और वसुदेव देवकी की प्रार्थनाएं भी हुई हैं। श्रीभगवान उवाच, भगवान ने भी कहा है वसुदेव देवकी को संबोधित किया है और उनको भयभीत भी देखा है भगवान ने उपाय बताया, क्या है ? मुझे गोकुल ले चलो। वसुदेव ने जैसे ही अपने बालक को उठाया तभी वो मुक्त हो गए, हथकड़ी, बेड़ियों से मुक्त हो गए। वैसे आप हम भी हो सकते हैं, ऐसा कल भी कहा था, यदि हम भी हरि हरि श्रीकृष्ण को अपनाएंगे इसीलिए तो वे प्रकट हो रहे हैं अवतार ले रहे हैं , ताकि कोई ले ले। वैसे वसुदेव भी रास्ते में कहने वाले हैं इस बालक को कोई ले ले। जहां उन्होंने यह बात कही कोई लेले, उस स्थान का नाम कोईलाघाट हुआ है। जमुना को पार करने के उपरांत वसुदेव कहने लगे आप में से कोई है? ले ले लेना चाहते हैं कोई तो ले ले, मैंने तो लिया ही है। राधा विनोद जी कुछ विचार है कृष्ण को लेने का ? और नैना राधिका ऑल फैमिली सभी ले रहे हैं हरि हरि ! स्वयं को देने के लिए ही भगवान प्रकट हुए हैं मुझे ले लो ! मुझे ले लो ! हरि हरि! इस संसार में प्रकट हुए ताकि इस संसार में कुछ लोग उनको लें और कुछ ही लोग उनको लेते हैं, सभी नहीं लेते हैं। *मनुष्याणां सहस्रेषु कश्चिद्यतति सिद्धये। यततामपि सिद्धानां कश्चिन्मां वेत्ति तत्त्वतः||* (भगवद्गीता ७. ३ ) अनुवाद - कई हजार मनुष्यों में से कोई एक सिद्धि के लिए प्रयत्नशील होता है और इस तरह सिद्धि प्राप्त करने वालों में से विरला ही कोई मुझे वास्तव में जान पाता है । हजारों में, उन हजारों में कोई एक, आप यहां एक-एक हो जप करने वाले या *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे* कहते हो। आप क्या कर रहे होते हैं ? आप कृष्ण को ले रहे हैं, आप कृष्ण को चाहते हो कृष्ण को पुकार रहे हो आई वांट यू कृष्ण, आई वांट यू कृष्ण या सेवा योग्यं कुरु कृष्ण , मुझे सेवा के लिए योग्य बनाओ कृष्ण। आप ये जानते हो कई बार हमने है, जब हम हरे कृष्ण हरे कृष्ण कहते हैं तब हम क्या कहते हैं ? हरे कृष्ण हरे कृष्ण कहते तो हैं लेकिन , क्या भाव क्या विचार होता है ? "हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे" मेरे साथ रमिये कृष्ण, इत्यादि इत्यादि। मतलब, हम जप कर रहे हैं या फिर भक्ति भी कर रहे हैं या श्रीप्रह्लाद उवाच *श्रवणं कीर्तनं विष्णोः स्मरणं पादसेवनम् । अर्चनं वन्दनं दास्यं साख्यमात्मनिवेदनम् ॥इति पुंसार्पिता विष्णौ भक्तिश्चेन्नवलक्षणा । क्रियेत भगवत्यद्धा तन्मन्येऽधीतमुत्तमम् ॥* (श्रीमदभागवतम ७.५.२३-२४) अनुवाद - प्रह्लाद महाराज ने कहा : भगवान् विष्णु के दिव्य पवित्र नाम , रूप , साज - सामान तथा लीलाओं के विषय में सुनना तथा कीर्तन करना , उनका स्मरण करना , भगवान् के चरणकमलों की सेवा करना , षोडशोपचार विधि द्वारा भगवान् की सादर पूजा करना , भगवान् से प्रार्थना करना , उनका दास बनना , भगवान् को सर्वश्रेष्ठ मित्र के रूप में मानना तथा उन्हें अपना सर्वस्व न्योछावर करना ( अर्थात् मनसा , वाचा , कर्मणा उनकी सेवा करना ) - शुद्ध भक्ति की ये नौ विधियाँ स्वीकार की गई हैं । जिस किसी ने इन नौ विधियों द्वारा कृष्ण की सेवा में अपना जीवन अर्पित कर दिया है उसे ही सर्वाधिक विद्वान व्यक्ति मानना चाहिए , क्योंकि उसने पूर्ण ज्ञान प्राप्त कर लिया है । आप निवेदन भी कर रहे हैं, मतलब भगवान को चाह रहे हैं, उनकी सेवा, उनका नाम, उनका गान, उनकी लीला, उनका प्रसाद, यह सब चाहते हैं। *अकामः सर्व कामो व मोक्ष काम उदारधी: । तीब्रेण भक्ति योगेन यजेत पुरुषं परम् ।।* ( श्रीमदभागवतम २. ३. १०) अनुवाद:- जिस व्यक्ति की बुद्धि व्यापक है , वह चाहे सकाम हो या निष्काम अथवा मुक्ति का इच्छुक हो , उसे चाहिए कि सभी प्रकार से परमपूर्ण भगवान् की पूजा करे । अधिक तीव्रता है अधिक तीव्र इच्छा है तो भगवान मिलेंगे। हम को स्वयं को देने के लिए *साधवो हृदयं मह्यं साधूनां हृदयं त्वहम् । मदन्यत्ते न जानन्ति नाहं तेभ्यो मनागपि ॥* (श्रीमदभागवतम ९. ४. ६८) अनुवाद - शुद्ध भक्त सदैव मेरे हृदय में रहता है और मैं शुद्ध भक्त के हृदय में सदैव रहता हूँ । मेरे भक्त मेरे सिवाय और कुछ नहीं जानते और मैं उनके अतिरिक्त और किसी को नहीं जानता । कृष्ण ने कहा, साधु के हृदय में मैं रहता हूं। मेरा निवास स्थान कौन सा है? साधु का ह्रदय है। आप सब साधु हो या आप सब साधु बनना चाह रहे हो। आप फिर कहोगे साधु ! हमारी दाढ़ी नहीं है, हम कहां से साधु हैं ? फिर मैं सोचता हूँ , मैं सोचती हूं, मैं तो स्त्री हूं। मैं कहां से साधु हूं ? मैं तो कोई सन्यासी नहीं हूं। मैं गृहस्थ हूं, मैं स्त्री हूं। मेरी दाढ़ी नहीं है हरि हरि ! साधुता भाव से होती है। भाव में साधुता हो, विचारों में साधुता हो, या साध्वी, स्त्री को साध्वी कहते हैं। भगवान ने कहा ही है मैं साधु के हृदय में रहता हूं और साधु मेरे हृदय में रहते हैं। साधूनां हृदयं त्वहम् , साधु मेरे हृदय में और मैं साधु के हृदय में, इस प्रकार का आदान-प्रदान हो, इस प्रकार का लेन-देन हो, साधु कृष्ण को ले लेंगे और फिर भगवान साधु को ले लेंगे अपने हृदय में, इस उद्देश्य से भगवान प्रकट हो रहे हैं हरि हरि ! देखिए वसुदेव ने उठा लिया , या पहले सर्वप्रथम इस संसार में कृष्ण को स्वीकार करने वाले कृष्ण को गले लगाने वाले या फिर कृष्ण की सेवा करने वाले, जाना चाहते हैं गोकुल, तो उनको ले जाना उनकी सेवा हुई। यह सेवा प्रारंभ हुई है वसुदेव से, किंतु केवल वसुदेव ही सेवक नहीं है अकेले उनको सेवा करते हुए हम देखेंगे तो, हमारा दिल भी कहने लग जाएगा, मी टू , मी टू , हम भी उठाना चाहते हैं। स्वीकार करना चाहते हैं ऐसे बालक को, हरि हरि ! एक साथ यह बालक भी है, कुमार भी है, पौगंड भी है , किशोर भी है। 5 साल की आयु तक कृष्ण कौमार होते हैं, फिर 5 से 10 साल की आयु तक यह पौगण्ड अवस्था चलती है और 10 से 15 यह है किशोरावस्था, फिर 16 तक पहुंच जाते हैं। वहां से आगे नहीं बढ़ते, सदा के लिए उनकी आयु 16 साल की ही रहती है। संसार में गिनाये जाते हैं कृष्ण 125 वर्ष संसार में रहे, जब कुरुक्षेत्र में थे तब वह 100 वर्ष के थे। यह साल की गणना चलती है लेकिन कृष्ण की, *अद्वैतमच्युतमनादिमनन्तरूप माद्यं पुराणपुरुषं नवयौवनञ्च । वेदेषु दुर्लभमदुर्लभमात्मभक्ती गोविन्दमादिपुरुषं तमहं भजामि ॥* (ब्रह्म संहिता ५. ३३) अनुवाद - जो अद्वैत, अच्युत, अनादि, अनन्तरूप, आद्य, पुराण - पुरुष होकर भी सदैव नवयौवन - सम्पन्न सुन्दर पुरुष हैं , जो वेदोंके भी अगम्य हैं , परन्तु शुद्धप्रेमरूप आत्म - भक्तिके द्वारा सुलभ हैं , ऐसे आदिपुरुष गोविन्दका मैं भजन करता हूँ सदा के लिए किशोर ही रहते हैं। युवा ही रहते हैं। एक ही साथ कृष्ण, साईमनटेनियसली वह कुमार भी हैं, पौगंड और युवावस्था भी चल रही है। यह सब अचिंत्य बातें हैं और इस संसार में ऐसा अनुभव नहीं है इसीलिए हम कहते रहते हैं आउट ऑफ दिस वर्ड और वैसे भगवान का मथुरा वृंदावन भी कहां इस जगत में है? इस जगत में है ही नहीं, इसीलिए कृष्ण ने कहा भी मेरे जन्म और कर्म को दिव्य समझो, तत्त्वत: समझो, मेरी लीलाओं को या मेरे धाम को, मेरे परीकरो को तत्त्वत: जानो। *जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्त्वतः | त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोऽर्जुन ||* (भगवद्गीता ४. ९) अनुवाद- हे अर्जुन! जो मेरे अविर्भाव तथा कर्मों की दिव्य प्रकृति को जानता है, वह इस शरीर को छोड़ने पर इस भौतिक संसार में पुनः जन्म नहीं लेता, अपितु मेरे सनातन धाम को प्राप्त होता है | इस संसार का जो दृष्टि कोण होता है, यह संसार जिस प्रकार इवैल्यूएशन या मूल्यांकन करता है , वह सब वहां काम नहीं करेगा, डिड नॉट अप्लाई ऑन कृष्ण हरि हरि ! वसुदेव ने उठा लिया है और आगे बढ़ रहे हैं। उस कैद खाने में जो भी सिक्योरिटी फोर्स है और कंस ने, जो थोड़ा एक्स्ट्रा सिक्योरिटी फोर्स की व्यवस्था की थी यह सोच करके वह जान रहा था कि एनीडे नाउ, किसी भी दिन देवकी आठवें पुत्र को जन्म देने वाली है, इसके लिए थोड़ा एडिशनल सिक्योरिटी की व्यवस्था हो चुकी है। लेकिन वह सारी व्यवस्था बेकार हो गई। तब बंदूक है हाथ में, या क्या-क्या हाथ में है और दें आर स्लीपिंग, दिस इज़ कृष्ण। नहीं मुझे उठा कर ले जाओ कृष्ण को कहने की आवश्यकता भी नहीं थी कृष्ण इज़ सो हेल्पलेस, बालक जो है और बालक की लीला खेल रहे हैं और सुंदर लीला खेल रहे हैं अभी उठने का भी सामर्थ नहीं है। वह दौड़ेगा भी कैसे ? इसीलिए वसुदेव उनको उठा के ले जा रहे हैं और ऐट द सेम टाइम, ही इज एक्टिंग, सबको सुलाया जो है। यह सब किसके एक्शन हैं ? यह उन्हीं के एक्शन हैं। कृष्ण के जो एक्शन हैं अपने हाथ में कुछ इंस्ट्रूमेंट ले लिया, कुछ हथियार ले लिया जैसे पुलिस काम करती है ना, कुछ उपकरण कुछ हथियार अपने हाथ में लेते हैं ऐसा कृष्ण नहीं करते। भगवान की शक्तियां हैं। कृष्ण शक्तिमान हैं। *न तस्य कार्य करणं च विद्यते न तत्समश्चाभ्यधिकश दृश्यते । परास्य शक्तिर्विविधैव श्रुयते स्वाभाविकी ज्ञानवलक्रिया च ॥* (श्वेताश्वर उपनिषद 6.8) भगवान की कई सारी शक्तियां हैं। लीला शक्ति, क्रीडा शक्ति, इच्छा शक्ति, ज्ञान शक्ति, एवरेडी भगवान की सेवा के लिए , इच्छा हुई भगवान के मन में तो फटाफट इच्छा शक्ति, क्रिया शक्ति, लीला शक्ति, उसी को हम थोड़ा मोटा मोटी योग माया नाम देते हैं। या जो वृंदा देवी है और भी कई हैं यह सब बिजी रहते हैं। वसुदेव ने वासुदेव को , ओम नमो भगवते वासुदेवाय, को उठा लिया है और जा रहे हैं। लेकिन वहां कैद खाने में जस्ट २ मीटर की दूरी पर , वहां कृष्ण इज़ इट इन फुल एक्शन यहां उसके पास बोलने, चलने की शक्ति, समर्थ नहीं है और अभी बोलना भी नहीं सीखे, वैसे उन्होंने चतुर्भुज रूप दिखाकर ,उन्होंने लीला खेली है और पुनः बालक बन गए हैं। और बालक रोना ही जानता है बोलना नहीं जानता है। लेकिन ऐसा बालक सक्रिय है, अभी मार्ग में जो जो होगा उसके पीछे सर्वकारणकारणम् वही है। *ईश्वरः परमः कृष्णः सच्चिदानन्दविग्रहः । अनादिरादिर्गोविन्दः सर्वकारणकारणम् ॥* ॥ (श्लोक १ ब्रम्हसंहिता) अनुवाद - सच्चिदानन्दविग्रह श्रीगोविन्द कृष्ण ही परमेश्वर हैं वे अनादि , सबके आदि और समस्त कारणोंके कारण हैं ॥ थोड़ा आगे बढ़े कैद खाने का द्वार आ गया। कृष्ण को लेकर वसुदेव वहां पहुंच गए, खड़े हो गए, नाउ व्हाट टू डू ? कृष्णा नोज व्हाट टू डू और अब सारे ताले खुल रहे हैं, द्वार भी खुल रहे हैं। इसको खोलने वाला कौन है ? हम तो कहते हैं ऑटोमेटिक ! ऑटोमेटिक ! ऑटोमेटिक सिस्टम हमने बना दिया है और हम उसको ऑटोमेटिक तब कहते हैं जब हम को पता नहीं होता है कैसे हुआ किसने किया व्हाट हैपन ? इसका जब पता नहीं होता तब उसको नाम देते हैं ऑटोमेटिक, लेकिन ऑटोमेटिक नाम की कोई चीज नहीं है संसार में, उसके पीछे या तो इलेक्ट्रिसिटी है या कोई डिवाइस है , उसको बटन दबाने वाला कोई व्यक्ति है या कोई रिमोट कंट्रोलर है ही , मतलब ऑटोमेटिक कुछ नहीं होता। यहां पर भी जब द्वार खुल रहे हैं उसके पीछे भी कृष्ण की शक्ति है और यह शक्तियां भी अलग अलग व्यक्ति होते हैं। राधा रानी भी शक्ति हैं अल्हादिनी शक्ति, शक्ति बन गई व्यक्ति, हरि हरि ! एवरीथिंग इज अ पर्सनालिटी, आगे बढ़ते हैं। द्वार के बाद भी कई द्वार हैं, सारे खुलते रहते हैं और कृष्ण इज़ आउट फ्रॉम द प्रिजन, वसुदेव भी बाहर आए हैं। सर्वप्रथम स्वागत करने वाले सू- स्वागतम कृष्ण, ऐसा पता नहीं उन्होंने कहा कि नहीं? लेकिन ग्रीटिंग हुआ, और ऐसा स्वागत करने वाले कौन थे ? "बलराम" अपने अनंत शेष नामक विस्तार रूप में बलराम पहुंचे हैं। हिज़ ट्रांसी डेंटल स्नेक लाइक उसी की शय्या होती है। अनंतशेष शय्या और कृष्ण उस पर रहते हैं। इस प्रकार बलराम जन्मोत्सव भी आने वाला है। बलराम पूर्णिमा भी कुछ दिनों के उपरांत है। बलराम को जब हम बलराम तत्त्वतः जानेगे या समझेंगे, बलराम किन अलग-अलग रूपों में कृष्ण की सेवा करते हैं। अब सेवा शुरू हो गई बलराम की, वर्षा के दिन है छाता बने हैं उनके फणों के ऊपर मणि है वे बड़े तेजस्वी हैं। रात्रि का समय है कुछ प्रकाश की ऐसी व्यवस्था बलराम कर रहे हैं। वसुदेव के हाथ में कोई बैटरी या टॉर्च वगैरह नहीं है। बलराम ही उसकी व्यवस्था कर रहे हैं और फिर आगे बढ़ते हैं, मथुरा से जमुना के तट पर आ गए हैं। वर्षा के दिन थे ही, वहां पानी ही पानी, बाढ़ आ चुकी है। कैसे पार करेंगे ? लेकिन जमुना ने थोड़ा निहार के देखा यह कौन है ? हु इज दिस वन ? और वैसे तत्क्षण जमुना समझ गई, ओह माय लार्ड , मेरे स्वामी, मेरे तट पर श्रीकृष्ण पधार चुके हैं। जमुना केवल जल नहीं है, जमुना एक व्यक्ति है। जमुना महारानी है, कालिंदी है। उनका अपना यान वाहन भी है। जिस पर वह बैठती हैं और सभी नदियां अलग-अलग उनका भी रूप हैं उनका सौंदर्य है उनके सारे कार्यकलाप भी हैं। अभी समय नहीं है एनीवे, जमुना ने सोचा कि अब मुझे सहायता करनी होगी ताकि वसुदेव मुझे पार कर सकते हैं जमुना को पार कर सकते हैं। मुझे ऐसी सहायता करनी ही होगी। ऐसा सत्कार देना ही होगा। अदर वाइज ..., यह जो जमुना सोच रही है उसको त्रेता युग की घटना का स्मरण हुआ। श्रीराम को जब रामेश्वर से किष्किंधा कहो, या अभी रामेश्वर पहुंचे हैं और वहां से जाना है श्रीलंका और बीच में है समुद्र, समुद्र देवता आगे नहीं आ रहे हैं। कैसे पार करेंगे क्या योजना है क्या व्यवस्था है कैसे योगदान देंगे? राम प्रतीक्षा में थे लेकिन समुद्र देवता आगे नहीं आ रहे थे। राम क्रोधित हुए, उन्होंने धनुष उठाया और उसी के साथ सारे समुद्र में खलबली, सुनामी मच गई और भी कुछ हो सकता था। फिर तभी समुद्र देवता आ गए, इसलिए अभी जमुना सोच रही थी मैं भी अगर देर करुंगी या उनको योगदान नहीं दूंगी जमुना पार करने के लिए तब मेरा हाल भी वैसा ही हो सकता है। यह वही है। वही राम ! कभी राम बनके, कभी श्याम बन के या आज कल साईं बाबा बनके, कुछ बदमाश लोग या राक्षस लोग क्या क्या कहा जाए, हमने एक समय यह गीत कुछ नया चल रहा था, बहुत साल पहले, कभी राम बनके कभी श्याम बनके, हमको अच्छा लग रहा था, कि अच्छा गाया जा रहा है कभी राम बनके कभी श्याम बनके, उसी गीत को बड़ा करके कुछ लोगों ने कभी साईं बाबा बने के, सब सत्यानाश हो गया, ऐसा लिखते हैं गाते हैं क्योंकि वह नहीं जानते हैं। *जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्त्वतः | त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोऽर्जुन ||* अनुवाद- हे अर्जुन! जो मेरे अविर्भाव तथा कर्मों की दिव्य प्रकृति को जानता है, वह इस शरीर को छोड़ने पर इस भौतिक संसार में पुनः जन्म नहीं लेता, अपितु मेरे सनातन धाम को प्राप्त होता है | तत्त्वतः रूप में भगवान को नहीं जानते, इसीलिए फलाना यह भगवान, वो भगवान , हमारे देश में तो गलियों में घूमते रहते हैं भगवान ही भगवान, यमुना मैया की जय ! जमुना सोच रही थी राम ही तो आए हैं कृष्ण रूप में और फिर वह यह भी सोच रही है कि जब भविष्य में यह द्वारकाधीश होंगे यह विवाहित होने वाले हैं , मेरे साथ भी इनका विवाह होना है। मैं इनकी चौथी पटरानी बनूंगी। वैसे 8 पटरानिया हैं, जैसे अष्ट सखियां है वृंदावन में प्रमुख सखियां । हरी हरी ! द्वारका में आठ पटरानियां हैं पहली है, रुकमणी दूसरी सत्यभामा, तीसरी है जाम्ब्वती और चौथी है कालिंदी ,जमुना ही है कालिंदी, अर्थात विवाह का प्रस्ताव जब आएगा और मैं यदि अभी सहायता नहीं करूंगी तब जरूर याद रखेंगे, हां ! आई नो, आई नो , मुझे जब पार करना था उस रात्रि को, तब तुमने कुछ नहीं किया और अभी मुझसे विवाह करना चाहती हो। फॉरगेट, भूल जाओ, ऐसा कृष्ण कह सकते हैं, ऐसा द्वारकाधीश कह सकते हैं। इसीलिए अच्छा है कि मुझे उनकी सहायता करनी चाहिए। जमुना ने रास्ता क्लियर किया। वसुदेव ने जमुना को पार किया और फिर है कोई लेले, कोई लेले, कोई मेरे लाला को ले ले , ऐसा वसुदेव, ऐसे भाव थे उनके, अब जमुना पार करने के उपरांत गोकुल है गंतव्य स्थान, जब वो जा रहे थे तब वहां पर भी वसुदेव की जो मन :स्थिति है अपने मन की स्थिति, जो अलग-अलग विचारों का मंथन हो रहा है उसी के साथ ,उसको वैसे कहा भी है रुत विलंबित गति, उनकी जो गति है स्पीड है कभी-कभी वह धीरे धीरे चलते हैं , फिर सोचते इतने धीरे-धीरे यदि मैं चलूंगा तो बहुत देर लग सकती है गोकुल पहुंचने में और इतने में अगर कंस को पता लग जाए, अरे वसुदेव पलायन कर चुका है और अपने बालक को ले गया, साथ में चलो, सभी पीछा कर सकते हैं और फिर आगे सोचना भी नहीं चाहते क्या हो सकता है। इसीलिए फिर वसुदेव जो धीरे-धीरे जा रहे थे फिर वह दौड़ने लगते हैं। थोड़ा तेजी से दौड़ने लगते हैं और मतलब तेजी से विलम्बित गति से धीरे धीरे या तेजी से जाते जाते और सोचते यदि इतनी स्पीड से जाऊंगा, जल्दी पहुंच जाऊंगा। उस से क्या होगा कि मैं बालक को मुझे वहां रखना है इस बालक के अंग संग से वंचित हो जाऊंगा। मैं छोड़ जाऊंगा नहीं-नहीं नो नो नो, थोड़ा अधिक समय, थोड़ा धीरे धीरे चलता हूं, ताकि यह बालक मेरे साथ थोड़ा अधिक समय तक रहेगा, ऐसा सोचता तभी फिर दूसरा विचार आ जाता कि यदि कंस आएगा तो ? इस प्रकार यह सोचते सोचते वसुदेव जा रहे हैं और गोकुलधाम पहुंच गए, गोकुलधाम की जय ! गोकुलधाम में नंद भवन पहुंचे हैं और नंद भवन में सूतिका गृह कहिए, जहां यशोदा ने बालक को जन्म दिया है। उसको कुछ सुध बुध नहीं है, उसने कब जन्म दिया एक बालक को जन्म दिया या दों को दिया, जिसको भी जन्म दिया ये बालक है या बालिका ? अब वसुदेव पहुंचे और उन्होंने अपने बालक को रखा है। देवकीनंदन या वसुदेव नंदन को रखा और यशोदा की बालिका को लेकर मथुरा पहुंचे हैं हरी हरी ! इस प्रकार देखते हैं अनेक बातें है। इसका कोई अंत ही नहीं है। कुछ ही मिनटों में दूसरा प्रोग्राम शुरू होने वाला है इसीलिए इसी फोरम पर आप बने रहिए। उस प्रोग्राम को भी आपको अटेंड करना है। निताई गौर प्रेमानंदे ! हरि हरि बोल !

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