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*जप चर्चा* *पंढरपुर धाम से* *21 नवंबर 2021* हरे कृष्ण ! आज 707 भक्त हमारे साथ जपा टॉक में सम्मिलित हैं। 807 नहीं है या 907 नहीं है। 707 चल रहा है। कोई बात नहीं। गौरंग गौरंग। राधे राधे। जगन्नाथ स्वामी राधे राधे। कार्तिक मास संपन्न हुआ। कुछ वृंदावन में ही है या वृंदावन के भाव में ही है, भाव आवेश में है। कल से एक और भी व्रत प्रारंभ हुआ। कार्तिक व्रत पूरा होते ही दूसरा व्रत भी प्रारंभ हुआ उसका नाम कौन सा व्रत चल रहा है अभी? भूल गए? कात्यायनी व्रत। कात्यायनी महा वैष्णवी, परम वैष्णवी शिव पत्नी पार्वती ही है। गोपियों ने उनकी अराधना प्रारंभ की। वह तपस्या कर रही है। भगवत प्राप्ति के लिए प्रातः काल में श्रीशुक उवाच हेमन्ते प्रथमे मासि नन्दव्रजकुमारिका: । चेरुर्हविष्यं भुञ्जाना: कात्यायन्यर्चनव्रतम् ॥ ( श्रीमद् भागवद् 10.22.1 ) अनुवाद:- शुकदेव गोस्वामी कहा हेमन्त ऋतु के पहले मास में गोकुल की अविवाहिता लड़कियों ने कात्यायनी देवी का पूजा व्रत रखा । पूरे मास उन्होंने बिना मसाले की खिचड़ी खाई । हेमंत ऋतु के प्रथम मास में कौन सा महीना चल रहा था और अभी चल रहा भी है कार्तिक के बाद, मार्गशीष कल से प्रारंभ हुआ है। हेमंत ऋतु भी प्रारंभ हुआ। "हेमन्ते प्रथमे मासि नन्दव्रजकुमारिका:" का कहने से लघु का संकेत होता है यानी छोटा। कुमारी नहीं कहा है कुमारीका कहा है। गोपी कहना एक बात और गोपीका कहना मतलब यानी छोटी गोपी और जब राधा को राधिका कहते हैं तो मतलब छोटी राधा या बाल राधा। इस शब्द बालक भी कहते हैं और बालिका भी कहते हैं का से लघुत्व का उल्लेख होता है। छोटापन या लघुपन का उल्लेख होता है। यहां कुमारीका यानी छोटी उम्र वाली कुमारी और कहां की कुमारीका। यह व्रज किसका है? नंद महाराज का व्रज है। जैसे नंदगोकुल भी कहा है शास्त्रों में। गोकुल का जब उल्लेख होता है तो नंदगोकुल कहा गया है। नंदगोकुल से नंद महाराज और व्रजवासी नंदग्राम गए। जिस ग्राम में गए गोकुल से वह नंदगोकुल था और वह ग्राम भी हुआ नंदग्राम। नंद महाराज का गोकुल, नंद महाराज का ग्राम और यहां कहा है नंद महाराज का व्रज। इसलिए कहा है बृजेश तन्य। कृष्ण का एक नाम हुआ ब्रजेश तन्य। तन्य मतलब पुत्र किसके पुत्र हैं व्रज के ईश कौन है? नंद महाराज हैं। नंद महाराज के व्रज की कुमारी या यहां तपस्या कर रही है। अपनी साधना भक्ति कर रही है। तपस्या कर रही है। यह हेमंत ऋतु है शीतकाल है। जल्दी उठकर अपने अपने घरों से जमुना की ओर जा रही हैं और प्राकृतिक रूप से यह ठंड का मौसम है और जल ठंडा है। ठंडे जल में स्नान कर रही है। यह तपस्या है कि नहीं? जाड़े के दिनों में जल्दी उठकर मंगला आरती से पहले स्नान करना बहुत बड़ी तपस्या है। जिस तरह गर्मी के दिनों में चूल्हे के पास बैठ कर पकाना तपस्या है। उसी तरह तपस्या कर रही हैं और तपस्या करनी चाहिए। हरि हरि। ऋषभ उवाच नार्य देहो देहभाजां नलोके कष्टान्कामानहते विड्भुजा ये । तपो दिव्यं पुत्रका येन सत्त्वं शुद्धधेरास्माद्ब्रह्मसौख्य वनन्तम् ॥ (श्रीमद् भागवद् 5.5.1) अनुवाद:- भगवान् ऋषभदेव ने अपने पुत्रों से कहा - हे पुत्रो , इस संसार समस्त देहधारियों में जिसे मनुष्य देह प्राप्त हुई है उसे इन्द्रियतृप्ति के लिए ही दिन - रात कठिन श्रम नहीं करना चाहिए क्योंकि ऐसा तो मल खाने वाले कूकर - सूकर भी कर लेते हैं । मनुष्य को चाहिए कि भक्ति का दिव्य पद प्राप्त करने लिए वह अपने को तपस्या में लगाये । ऐसा करने से उसका हृदय शुद्ध हो जाता है और जब वह इस पद को प्राप्त कर लेता है , तो उसे शाश्वत जीवन का आनन्द मिलता है , जो भौतिक आनंद से परे है और अनवरत चलने वाला है । ऋषभदेव भगवान कहे हे पुत्रों! तपस्या करो। *तपो दिव्यं पुत्रका येन सत्त्वं शुद्धधेरास्माद्ब्रह्मसौख्य वनन्तम्* तपस्या करने से तुम शुद्ध होगे, शुद्धिकरण होगा। वैसे भगवान ने ब्रह्मांड के पहले जीव को ब्रह्मा उनको पहला जो आदेश दिया था। वह था त प, त प, त प। तब ब्रह्माजी को आदेश दिया तपस्या करने के लिए। भारतवर्ष कैसा है तपोभूमि है। बाकी भूमि भोग भूमि है। वृंदावन में गोपीयां क्या कर रही है? वह तपस्या कर रही है। कालिंदी के जल में प्रवेश करके स्नान कर रही हैं और उन्हें कात्यायनी की पूजा की या फिर वही की रेती या व्रज के रज से ही कुछ मिट्टी और बालू लेकर मूर्ति बनाई। कात्यायनी की प्रतिमा बनाई। कल भी कहे थे कि इन से आर्धना की गोपियों ने। आराधना करते समय वह प्रार्थना भी कर रही थी। कैसी थी प्रार्थना याद है? हे देवी क्या करो नंद सुतम नंद का जो सुत है पुत्र है। कात्यायनि महामाये महायोगिन्यधीश्वरि । नन्दगोपसुतं देवि पतिं मे कुरु ते नमः । इति मन्त्रं जपन्त्यस्ताः पूजां चक्रुः कमारिकाः ॥४ ॥ (श्रीमद भगवतम 10.22.4) अनुवाद:- प्रत्येक अविवाहिता लड़की ने निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए उनकी पूजा की : " हे देवी कात्यायनी , हे महामाया , हे महायोगिनी , हे अधीश्वरी , आप महाराज नन्द के पुत्र को मेरा पति बना दें । मैं आपको नमस्कार करती हूँ । हे देवी! कुरु यानी करो आप ऐसा भी आप सीख सकते हो। कुरु मतलब करो। देवी संबोधित कर रही हैं। देवी क्या करो? *पतिं मे कुरु* पति बना दो किसको? नन्दगोपसुतं नंद महाराज को गोप कहा है। नंद महाराज कैसे है। नंद महाराज भी गोप है। गाय के रखवाले हैं , गाय का पालन करते है। इनकी 900000 गाय है। कृष्ण की गाय नहीं है। उनके पिताजी की गाय है। यह 9 लाख गाय कृष्ण की गाय नहीं है। यह गाय तो नंद महाराज की है। नंद गोप कौन है नंद महाराज। नंद महाराज जो गोप है गाय का पालन करने वाले हैं। इतने गायों के जो मालिक है। उनका जो पुत्र है, हमारा नमस्कार स्वीकार करो, पुनः पुनः हम नमस्कार कर रही हैं। हमारा निवेदन सुनो। इसका परिणाम निकलने वाला है। यह द्वितीय दिन है। गोपियां प्रातः काल में ही चीर घाट पर जमुना के तट पर, यमुना मैया की जय। चीर घाट पर स्नान करती रही और कात्यायनी की आराधना करती रही, प्रार्थना करती रही। आज दूसरा दिन है। जब 30 दिन हो जाएंगे, पूरे मास के अंत में जब पूर्णिमा आएगी। तब पूर्णिमा के दिन, मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन भगवान क्या करने वाले हैं? चीर हरण करने वाले हैं। गोपियों के वस्त्रों को चुराने वाले हैं। गोपियों के वस्त्र की चोरी होगी। वस्त्र तो रखे थे नदी के तट पर, वह ले लिए और पेड़ के ऊपर चढ़ गए। गोपियों का स्नान तो पूरा हुआ। किनारे आ जाती है वस्त्र कहां है? पेड़ के ऊपर है। कृष्ण नटखट है। यह नटखटो में चूड़ामणि है। इसमें भी कोई कृष्ण की बराबरी नहीं कर सकता। यह नटखट कन्हैया वस्त्र लेकर पेड़ पर जाकर बैठे हैं। हरि हरि। श्रील प्रभुपाद कृष्ण पुस्तक में लिखते हैं कि यह सामान्य ज्ञान है ही कि प्रभुपाद लिखते हैं कि स्त्री केवल पति के समक्ष ही निर्वस्त्र हो सकती है। बिना वस्त्र या नग्न अवस्था में सिर्फ अपने पति के सानिध्य में। जब कृष्ण ने वस्त्र चोरी किए हैं और वह ऊपर बैठे हैं और कह रहे हैं कि सनी से बाहर निकलो आगे बढ़ो आ जाओ आ जाओ । अभी तो तैयार नहीं है और कृष्ण को दोष दे रही हैं और यह ठीक नहीं है यह अनुचित है । ये तो दुराचार है । तुम जो भी कर रहे हो । हम कंस को बताएंगे । शिकायत करेंगे राजा मथुरा नरेश को तो ऐसा डरा भी रही है । ऐसा कुछ चल रहा है संवाद गोपियां और कृष्ण के मध्य में, तो कृष्ण को दोष क्यों दे रही हो ? तुम तो हर रोज प्रार्थना करती रही बहुत ईमानदारी से । "पतिं मे कुरु ते नमः", "पतिं मे कुरु ते नमः" ठीक है । मैं खुश हूं तुम्हारे ऊपर आज मैं आपको अपनी पत्नी बना रहा हूं मैं पति हूं । "पतिं मे कुरु ते नमः" ठीक है मैं तुम्हारा पति हूं । मैं बन गया तो आ जाओ, तो पूर्णिमा के दिन आज द्वितीया है पूर्णिमा के दिन इस महीने के अंत में तो भगवान ने क्या किया है ? ये गोपियों की जो प्रार्थना है "पतिं मे कुरु ते नमः" "नन्दगोपसुतं देवि" तो देवी भी प्रसन्न हुई है और उनको प्राप्त हो रहे हैं । प्राप्त हो गए कृष्ण पति रूप में । ये समझना होगा । हरि हरि !! और इस लीला में यही है ... सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज । अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा श्रुचः ॥ ( भगवद् गीता 18.66 ) अनुवाद:- समस्त प्रकार के धर्मों का परित्याग करो और मेरी शरण में आओ । मैं समस्त पापों से तुम्हारा उद्धार कर दूँगा । डरो मत । का ये ज्वलंत उदाहरण है । "सर्वधर्मान्परित्यज्य" करने में सब धर्म को त्यागो । लज्जा भी धर्म है ये भी धर्म है कई सारे रीति रिवाज है या लोक व्यवहार है । इनको भी त्यागो तू ऐसा ही कर रही है ऐसा ही हुआ है । इस वस्त्रहरण जो लीला है चीर घाट के तट पर ये गोपियों का "सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज" हुआ है और माधुर्य रस का ये वैशिष्ट्य भी है । माधुर्य भाव इसमें "निजांग दान" या वात्सल्य रस में नंद बाबा, यशोदा और सारे बुजुर्ग जो वृद्ध वृद्धा स्त्री पुरुष है उनका भाव पालक है । वे पालक है और कृष्ण पाल्य है यह वैशिष्ट्य है वात्सल्य रस का । सभी मां समझते हैं ये वात्सल्य रस में कृष्ण का लालन पालन करना हमारा धर्म है तो उसी प्रकार माधुर्य रस का वैशिष्ट्य है "निजांग दान" । नीज-अंग अपना सर्वस्व दान या त्याग या आहुति स्वाहा । यहां तक कि मन और शरीर सब कुछ मानस , देह , गेह , जो किछु मोर । अर्पिलूँ तुया पदे नन्दकिशोर ॥ ( भक्ति विनोद ठाकुर ) तो इस लीला में ये जो वस्त्र हरण चीर घाट पर हो रहा है ये क्या हो रहा है ? "निजांग दान" काम भी हो रही हो रहा है, सब दान । अंगदान, मन का दान सब कुछ । सभी का त्याग ये आत्मा निवेदन भी है, समर्पण भी है और इस दृष्टि से वैसे ये माधुर्य रस, माधुर्य भाव ये सर्वोपरि है तो ये भाव वात्सल्य रस से भी ऊंचा है और साख्य रस से ऊंचा है, दास्य रस से ऊंचा है, शांत रस यह पांच या 4 प्रधान रस हुए फिर और 7 गोण भी है तो इन सभी और गोण और प्रधान रसों में माधुर्य रस जो है माधर्य लीला जो है ये सर्वोपरि है और फिर इस लीला के जो कलाकार है या यह सारे जो व्यक्तित्व है गोपिया है राधा रानी वे भी सर्वोपरि है । प्रथा राधा प्रिया विष्णोस्तस्याः कुण्डं प्रियं तथा । सर्व - गोपीषु सैवैका विष्णोरत्यन्त वल्लभा ॥ ( चैतन्य चरितामृत मध्यलीला 8.99 ) अनुवाद:- जिस तरह श्रीमती राधारानी श्रीकृष्ण को परम प्रिय हैं , उसी तरह उनका स्नान - स्थान राधाकुण्ड भी उन्हें प्रिय है । सारी गोपियों में श्रीमती राधारानी सर्वोच्च हैं और कृष्ण को अत्यन्त प्रिय हैं । अत्यंत प्रिय है या सर्वोपरि है । "सर्व - गोपीषु सैवैका" सभी भक्तों में गोपियां श्रेष्ठ है । दास्य रस के भक्त, सख्य रस के भक्त, वात्सल्य रस के भक्तों से श्रेष्ठ है गोपियां और फिर कहा है गोपियों में "सर्व - गोपीषु सैवैका" वैसे वो अकेली ही है और वो है राधा रानी । "प्रथा राधा प्रिया विष्णोस्तस्याः कुण्डं प्रियं तथा" ये भी पद्म पुराण का वचन है । वैसे राधा प्रिय है कृष्ण को या सबसे अधिक प्रिय तो राधा ही कृष्ण को प्रिय राधा । "तस्याः कुण्डं प्रियं तथा" उसी प्रकार राधा रानी के नाम के ये कुण्ड श्री कृष्ण को उतना ही प्रिय है जितनी राधा प्रिय है कृष्ण को । इस प्रकार ये राधा कुंड और राधा । ये भी समकक्ष है कृष्ण को जितनी राधा प्रिय है उतना ही प्रिय है राधा का कुण्ड कृष्ण को और राधा कितनी प्रिय है ? "सर्व - गोपीषु सैवैका विष्णोरत्यन्त वल्लभा" सभी गोपियों में अधिक प्रिय है कृष्ण को कृष्ण को राधा रानी की जय ! तो ये सिद्धांत भी सिद्ध हो रहे हैं इस लीला के साथ या जो व्रत हो रहा है कात्यायनी व्रत और उस कात्यायनी व्रत के अंत में पूर्णिमा के दिन कृष्ण जो वस्त्रों का हरण करेंगे चीर घाट पर । चीर मतलब वस्त्र तो इसीलिए सारे सिद्धांत भी स्पष्ट हो रहे हैं । माधुर्य रस सर्वोपरि है और यहां "निजांग दान" निज-अंगदान हो रहा है और यहां "सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज" हो रहा है । कृष्ण ने स्वीकार किया है इसी के साथ हो गई फिर हम जो कहते हैं राधा वल्लभ या गोपी वल्लभ । "गोपीजन वल्लभ गिरिवर्धारी" तो वल्लभ मतलब पति । प्रिय या पति । यहां कृष्ण बन रहे हैं, बन गए उस दिन पूर्णिमा के दिन राधा के पति बन गए । राधा पति या वे राधानाथ बन गए, गोपीनाथ बन गए, राधा वल्लभ बन गए, गोपी वल्लभ बन गए और वैसे इस लीला के साथ ऐसे कुछ पूर्व तैयारी भी हो रही है और मथुरा वृंदावन से कृष्ण द्वारका के लिए प्रस्थान करने वाले हैं । वहां उनके विवाह भी होने वाले हैं 16,108 रानियों के साथ विवाह होंगे । यह जो प्रार्थना है "नन्दगोपसुतं देवि पतिं मे कुरु ते नमः" । यहां तो व्रज में हेमंत ऋतु में मार्गशीर्ष महीने के अंत में पूर्णिमा के दिन एक कुछ झलक ही हाथ मिलाना कहो तुम मेरी पत्नी हो गोपियों मैं तुम्हारा पति हूं या कुछ विवाह ठीक हो रहा है किंतु यहां रूपांतरित होने वाला है द्वारका में । द्वारका में 16,108 रानियां है यह कहां से आ गई ? ये व्रज के गोपियां है । व्रज की गोपियां जो कात्यायनी की प्रार्थना कर रही थी, अर्चना कर रही थी तपस्या कर रही थी तो वही गोपियां ये पति रूप में उनको भगवान प्राप्त हो । वही गोपियां बन जाती है कृष्ण की रानियां द्वारका में 16,108 और फिर यहां चल रहा था "परकिया भावे याहा, व्रजेते प्रचार" यहां वृंदावन में तो 'परकिया भाव' पर स्त्रियां गोपियों के वैसे विवाह हो जाते हैं उनके अपने अपने पति है । लेकिन कृष्ण उनके साथ गोपियों के साथ अपना संबंध बनाए रखते हैं तो ये परकिय भाव हुआ । पर स्त्रियां है या कृष्ण उप पति हैं इन गोपियों के उप पति । द्वारका में वे सचमुच पति बन ही जाएंगे और फिर वहां 'स्वकिय भाव' होगा । वृंदावन में 'परकिय भाव' और द्वारका में स्वकिय मतलब अपनी विधिवत विवाह उनके विवाह यज्ञ संपन्न होंगे । विधिवत विवाह होगा और तो यही गोपियां वहां हो जाती हैं और फिर भगवान के वहां विवाह होते हैं और 'स्वकिय' वाली लीला द्वारका में संपन्न होती है । ठीक है और कभी और आगे की बातें उनको कहेंगे । कौन-कौन बनती है कौन सी गोपी कौन सी रानी पटरानी द्वारका में बनती है के इत्यादि इत्यादि । ठीक है । ॥ हरे कृष्ण ॥

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