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*जप चर्चा,* *21 मई 2021,* *पंढरपुर धाम.* हरे कृष्ण, 850 स्थानों से भक्त जप के लिए जुड़ गए हैं। हरि हरि, गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल! *ओम नमो भगवते वासुदेवाय* कहे या फिर क्या रहे वैसे कह सकते हैं। आज हैं शुभ दिन, पता था आपको? आज है नवमी वैशाख नवमी आज के नवमी का एक नाम तो सीता नवमी और दूसरा जान्हवा नवमी भी कह सकते हैं। आज के दिन सीता मैया का, *सीता माता की जय!* जन्मदिवस है। जन्मोत्सव है। और जान्हवा माता बंगाल में जो प्रकट हुई नित्यानंद की भार्यां उनका जन्मोत्सव है और मधुपंडित हमारे एक आचार्य हुए तो उनका आज तिरोभाव दिवस है। इस प्रकार से यह जो आज का दिन है, विशेष है। शुभ तिथि शुभ दिन है। हम हल्का सा संस्मरण करेंगे इन तीनों का। संस्मरण मतलब श्रवण कीर्तन होता है और फिर संस्मरण या के स्मरण होता है। मैं कुछ कीर्तन करूंगा। मतलब हरे कृष्ण हरे कृष्ण नहीं। कीर्तन मतलब हमें झठ से याद आता है, हरे कृष्ण हरे कृष्ण। किंतु कीर्तन मतलब कीर्ति, नाम कीर्तन होता है, रूप कीर्तन होता है, गुण कीर्तन होता है, लीला कीर्तन होता है, धाम कीर्तन होता है। यह सारे प्रकार है कीर्तन के और ऐसा कीर्तन होता है जब और जब हम सुनते हैं उसे तब श्रवण कीर्तन होता है। संस्मरण स्मरण होता है। तो अब हम क्या कह सकते हैं? यह पामर क्या कह सकता है? सीता माता के संबंध में या वैसे सीता मैया से कौन परिचित नहीं है। *सीताराम जय सीताराम सीताराम जय सीताराम सीताराम जय सीताराम* *अयोध्यावासी राम राम राम दशरथनंदन राम* दशरथ नंदन राम और जानकीजीवन राम और वहां जानकी सीता के जीवन श्रीराम। और पतितपावन राम और केवल राम ही पतितपावन नहीं हैं। सीता भी पतितपावन है। दोनों सीताराम दोनों मिलकर पतितो का उद्धार करते हैं। दोनों मिलकर हम सभी के उध्दार के लिए उनके लीलाएं हुई। आज के दिन जनकपुर में जब राजा जनक खेत को जोत रहे थे हल के साथ। तो हल अटक गया। बैल पूरी ताकत के साथ खींचने का प्रयास कर रहे थे किंतु कोई आगे नहीं बढ़ पाया। तो राजा जनक ने देखा थोड़ा मिट्टी को हिलाकर थोड़ा सा गड्ढा करके देखा उन्होंने। तो वहां पर एक संदूक है और संदूक को खोलते हैं तो देखते हैं सीता मैया की जय। सीता ऐसे जन्मी, ऐसे प्रकट हुई तो है कि नहीं यह *जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं* यह साधारण जन्म नहीं है। जैसे हम आप जन्म लेते हैं। ना तो सीतारानी जीवात्मा है। यह है भगवान की अल्हादिनी शक्ति, राम की अल्हाादिनी शक्ति राम को अल्हद देने वाली शक्ति। यह जीव तत्व नहीं है। यह शक्ति तत्व है। अल्हाद देने वाली शक्ति सीतारानी की जय! जैसे राधारानी भी वृषभानु को मिली यमुना में, कमल में, तो उसको लेकर आए कीर्तिदा को दिए। वैसे ही जनक राजा सीता को लाएं और अपने धर्म पत्नी को दे दिए। तो इस प्रकार यह अद्भुत जन्म लेने वाली सीता है। सीता स्वयंवर होता है। तब सीता है वधू तो वर कौन होंगे, राम ही हो सकते हैं। राम ने उस धनुष को उठाया और टुकड़े भी हो गए। आगे बढ़ी फिर सीता वरमाला लेकर और पहनाई श्रीराम को। माल्यार्पण हुआ और उसी के साथ हो गए एक दूसरे के। इस लीला मैं यह नहीं कि वह पहले एक दूसरे के नहीं थे। राम भी शाश्वत है तो सीता भी शाश्वत है। यह प्रकट लीला हो रही है इस धरातल पर। अयोध्या में या फिर जनकपुरी में यह प्रकट लीला हो रहि हैं। भगवत धाम में सीताराम की लीला नित्यलीला है। धाम भी नित्य है। बैकुंठ धाम वैकुंठ से भी ऊंचा है साकेत धाम। अयोध्या धाम बैकुंठ से भी ऊंचा है और साकेत धाम से सिर्फ गोलोक ही ऊंचा है। बैकुंठ और गोलोक मध्य में है अयोध्या जहां नित्य लीलाएं संपन्न होती है। सीताराम कोई नए नहीं है या यहां संबंध कोई नया तो स्थापित नहीं हो रहा है प्रकट लीला में। सीता स्वयंवर सीता राम ने एक दूसरे को अपनाया है। सीताराम की जय! पहले तो सीता ने पतिव्रत अपनाया है। पतिव्रत, कई प्रकार के व्रत होते हैं स्त्रियों के लिए तो मुख्य पतिव्रत होता है। राम ने भी संकल्प लिया है और वह है एक पत्नीव्रत। एक पत्नीव्रत, जब सीता माला पहना रहे थे *सीताया पतये नमः* कहते हैं, मतलब राम कैसे हैं सीता के पति है। जब सीता के पति बन रहे थे राम, विवाह उत्सव में तो उस समय वहां पर कई सारी नारियां स्त्रिया थी। उनका दिल ललचा रहा था। उनके मन में विचार आया आ रहा था। मैं भी, मैं भी, मुझे भी। मुझे भी राम जैसे पति मिल सकते हैं। मैं भी चाहती हूं कि राम जैसे पति मुझे मिले। राम जान तो गए वहां के उपस्थित सभी स्त्रियों के दिल के बात किंतु उन्होंने जो व्रत लिया है एक पत्नी व्रत है, उसको निभाना है। तो फिर होता क्या है, यह जो सारी नारियां है। मिथिला के जब राम प्रकट होते हैं कृष्ण के रूप में। कृष्ण ही वैसे राम बनते हैं। तो फिर स्वयं कृष्ण, स्वयं भगवान, *कृष्णस्तु भगवान स्वयं* जब वृंदावन में प्रकट हुए। वहां पर गोपियों का एक प्रकार है मिथिलावासी गोपिया कहते हैं। ऋषिचरा गोपियां वैसे कई प्रकार की गोपियों के प्रकार हैं। उसमें से एक है मिथिलावासी गोपिया जो स्त्रियां चाहती थी हमको राम जैसा पति मेरे पुरुष मिले तो उनकी इच्छा पूर्ति भगवान ने कृष्ण अवतार में की। ठीक है, हमारे पास मरने के लिए समय नहीं है। समय तो बीत रहा है। रामायण की जो काव्य है। त्रेतायुग में तो इसके नायक है श्रीराम और इसकी नायिका रही सीता महारानी। तो उनकी सारी लीलाए और फिर अयोध्या में शुरुआत में या अयोध्याकांड के अंतर्गत भी लीलाए हुई ।और फिर युद्धकांड जो लंका में हुआ उसके उपरांत भी सीताराम लौटे अयोध्या में ।राम का राज्याभिषेक हुआ। राम तो 11000 वर्षों तक इस धरातल पर अपनी लीला खेलते रहे। सीता और राम की उन दोनों की लीला भी इतने वर्षों तक होती रही। आप जानते हो आप पढ़े हो आज भी पढ़ो। और जब अरण्यकांड में सीता का अपहरण हुआ और फिर सीता को पहुंचाया लंका में अशोकवन मे उस राक्षस रावणने तो, उस समय राम और सीता के बिरह की व्यथा कौन समझ सकता है। दोनों बिछड़ गए हैं। दोनों भी व्याकुल है एक दूसरे के लिए या मिलन के लिए। तो इस लीला के अंतर्गत दोनों के जो भाव है वह विप्रलंब भाव है। जिसको राधा और कृष्ण भी अनुभव करते हैं वृंदावन में। सीता और राम उनकी स्थिति का वर्णन हुआ है। और उसी के साथ यह रामायण भी श्रृंगार रस कहिए माधुर्य रस या लीला माधुर्य प्रकट हुआ है। हरि हरि, वैसे रामलीला जब है तो 9 दिनों तक रामकथा चलती है। भागवत कथा तो 7 दिनों तक होती है ।सप्ताह तक चलती है लेकिन रामायण की कथा 9 दिनों तक होती है। हमारे पास तो 9 मिनट ही है। तो हम क्या कह सकते हैं। अंततोगत्वा विजयादशमी के दिन राम विजयी हुए। राम का विजय हुआ विजयादशमी लंका में। तो उसके उपरांत ततोः सीता राम की कथा शुकदेव गोस्वामी भी सुनाए हैं। भागवत में रामायण भी आता है। भागवत के नवम स्कंध में दूसरे अध्याय में शुकदेव गोस्वामी ने रामायण सुनाए है। वहां शुक उवाच शुकदेव गोस्वामी लिखते हैं, वह कौन सा कांड? युद्ध कांड युद्ध हो भी गया उसके उपरांत *ततो ददर्श भगवानशोकवनिकाश्रमे ।* *क्षामां स्वविरहव्याधि शिशपामूलमाश्रिताम् ॥ ३० ॥* अनुवाद - तत्पश्चात् भगवान् रामचन्द्र ने सीतादेवी को अशोकवन में शिशपा नामक वृक्ष के नीचे एक छोटी सी कुटिया में बैठी पाया। वे राम के वियोग के कारण दुखी होने से अत्यन्त दुबली-पतली हो गई थीं। तो राम अशोक वाटिका में जाते हैं और *ददर्श भगवानशोकवनिकाश्रमे* अशोक वन में राम ने सीता को देखा। *क्षामां* अत्यंत दुबली पतली सीता को देखा। *स्वविरहव्याधि* व्याधि से ग्रस्त सीता को देखा कौन सी व्याधि? विरह व्याधि। और कहां देखा? शिशप के पेड़ के नीचे उन्होंने सीता को देखा या राम ने दर्शन किया सीता का। कैसे दिखी सीता शुकदेव गोस्वामी सुना रहे हैं और फिर सीता ने भी देखा राम को। *रामः प्रियतमां भार्यां दीनां वीक्ष्यान्वकध्पत ।* *आत्मसन्दर्शनाहादविकसन्मुखपङ्कजाम् ॥ ३१ ॥* अनुवाद - अपनी पनी को उस दशा में देखकर भगवान् रामचन्द्र अत्यधिक दयार््र हो उठे। जब वे पत्नी के समक्ष आये तो वे भी अपने प्रियतम को देखकर अत्यन्त प्रसन्न हुई और उनके कमल सदृश मुख से आह्वाद झलकने लगा। *रामः प्रियतमां भार्यां* कैसे राम? जिनकी भार्या है प्रियतमां अति प्रियतम अत्यंत प्रिय श्री राम को उनकी जो भार्या है। उस भार्या ने कहां तो है *दीनां* बेचारी जब बिछड़ गई थी। उस सीता *आत्मसन्दर्शना* आत्म मतलब राम, राम को देखा केवल दर्शन ही नहीं कहा *आत्मसन्दर्शना* सम्यक प्रकार का दर्शन किया। तो क्या हुआ *आल्हादविकसन्मुखपङ्कजाम्* तो विरह की व्यथा से जो मर रही थी लगभग सीता के जान में जान आई। बहुत समय के उपरांत पहली बार जब से अपहरण हुआ था आल्हाद का अनुभव कर रही है। *विकसन्मुखपङ्कजाम्* उसी के साथ उसके मुख की जो कली है कमल सदृश जिसका मुख मंडल है वह प्रफुल्लित हुआ विकसित हुआ₹। आत्मसन्दर्शन और फिर आल्हाद भी राम का दर्शन किया फिर आल्हादित हुई। चेहरा मन का सूचक है कहो। चेहरे पर अभी वह आल्हाद छलक रहा था। तो ऐसे सीता को फिर राम भी देखें दोनों एक दूसरे को देख रहे हैं फिर मिलन हुआ, अलिंगन हुआ है। और इस तरह....। *श्री श्री सीताराम की जय।* तो ऐसी सीता... थोड़ा ही कहा है और कह रहे हैं। ऐसी सीता इतनी सी थोड़ी है सीता, और भी है सीता, बहुत कुछ है सीता। लेकिन फिर कहना पड़ता है ऐसे सीता का आज है जन्मदिन। *सीता नवमी महोत्सव की जय।* और फिर जान्हवा माता का भी जन्मदिन आज ही है नवमी के दिन। जान्हवा कह रहे हैं लिख लीजिए कभी-कभी लोग भ्रमित हो जाते हैं। एक है जान्हवी जाह्नवी तो है गंगा *जाह्नवी तट वने जगमन लोभा* जो आरती होती है गौर आरती गंगा के तट पर होती है। तो गंगा का एक नाम है जाह्नवी और यह है जान्हवा उसको मिक्स मत करिए। तो यह जान्हवा नित्यानंद प्रभु की भार्या है। एक गौरांग और दूसरे नित्यानंद *बलराम होइलो निताई* जो बलराम बने हैं नित्यानंद और फिर नित्यानंद प्रभु की बनी है यह भार्या जान्हवा माता। इनका जन्मदिन आज सूर्य दास सारकेल नाम के एक सज्जन थे जिनकी दो पुत्रीया रही एक वसुधा और दूसरी जान्हवा। नित्यानंद प्रभु ने इन दोनों को अपनी पत्नियों के रूप में स्वीकार किया। हरी हरी। वसुधा से एक पुत्र जन्मा वह विशेष था उनका नाम वीरभद्र था। जो भविष्य में बडे़ होने के बाद वे दीक्षित हुए थे जान्हवा माता से। वह समय आ गया जब चैतन्य महाप्रभु और नित्यानंद प्रभु नहीं रहे वह अंतर्धान हुए। तो उस समय यह जो गौडीय वैष्णव संप्रदाय उसकी अध्यक्षा, उसकी रक्षक, उसकी संचालक के लिए कहिए जान्हवा माता ने ही यह कार्य संभाला। जो कार्य संकीर्तनेक पितरों गौरांग और नित्यानंद प्रभु ने जिस संकीर्तन आंदोलन के प्रारंभ किया। तो एक समय संकीर्तन आंदोलन की स्थापना या रक्षा उसका विस्तार उसका संचालन स्वयं जान्हवा माता किया करती थी। हरि हरि। जानवा माता के कई सारे शिष्य, कई सारे अनुयायी थे। वह एक आचार्या ही थी। आचार्य आचार्या। उनके कई सारे असंख्य शिष्य थे जो *जा रे देखो तारे कहो कृष्ण उपदेश* कर रहे थे। या जान्हवा माता से शिक्षा ग्रहण करके उच्च शिक्षा का प्रचार प्रसार कर रहे थे सर्वत्र। जब नरोत्तम दास ठाकुर प्रथम गौर पूर्णिमा उत्सव मनाए वहां पर भी जान्हवा माता थी। उन्हीं की अध्यक्षता में यह गौर पूर्णिमा उत्सव केचुरी ग्राम जो पद्मावती नदी के तट पर है. एक बड़ा महान उत्सव पहला गौर पूर्णिमा उत्सव मतलब गौरांग महाप्रभु आविर्भाव महोत्सव मनाया जा रहा था। तो उस उत्सव की अध्यक्षता भी जान्हवा माता ने संभाली। वहां कई सारे विग्रहों की स्थापना हुई। छह अलग-अलग प्रकार के सभी विग्रहों की स्थापना हुई। उन विग्रहों कि प्राण प्रतिष्ठा करने वाली भी जान्हवा माता हि थी। बेशक आचार्यों के और भक्तों के संग में संपन्न हुआ। जान्हवा माता को एक समय पता चला कि वृंदावन में गोपीनाथ की आराधना हो रही है, किंतु साथ में राधारानी नहीं है राधा रानी के विग्रह नहीं है। तो जान्हवा माता ने तुरंत व्यवस्था की और राधा रानी की मूर्ति बनाकर वृंदावन राधा रानी को भेजा गया। और फिर गोपीनाथ के साथ राधा रानी की भी आराधना वृंदावन में होने लगी। हां फिर जान्हवा माता भी स्वयं वृंदावन गई। जान्हवा माता ने ही उस समय राधा गोपीनाथ की आराधना की। राधा गोपीनाथ के लिए कई सारे व्यंजन बनाए कई सारे भोग खिलाएं। आरती उतारी, स्वयं ही आराधना कर रही थी राधा गोपीनाथ की जान्हवा माता। जब राधा कुंड गई तो वहां पर उन्होंने राधा गोपीनाथ के दर्शन किए, आराधना भी की और गोपीनाथ ने दर्शन दिए हैं जान्हवा माता को। यह जान्हवा अनंग मंजरी है। राधा रानी की बहन अनंग मंजरी और भ्राता श्रीदामा है, यह भाई बहन है। तो राधा की बहन अनंग मंजरी ही जान्हवा के रूप में प्रकट होती है ऐसा भी शास्त्र में वर्णन है। अनंग मंजरी कहो या जान्हवा माता को दर्शन दिए हैं गोपीनाथ ने। राधा कुंड के तट पर जान्हवा बैठक भी है। राधा गोपीनाथ के मंदिर के निकट ही एक स्थान है उसे जान्हवा बैठक कहते हैं। बैठे थे आप समझते ही हो जहां बैठी और ध्यान किया स्मरण किया राधा कृष्ण का जान्हवा माता ने तो वह स्थान भी है।जान्हवा बैठक वृंदावन में राधा कुंड के तट पर। तो फिर से जैसे सीता जीव नहीं है या जीव तत्व नहीं है। जैसे राधा कृष्ण, कृष्ण की होती है राधा आल्हादिनी शक्ति। तो उसी प्रकार बलराम की भी होती हैं आल्हादिनी शक्ति रेवती। तो यहां गौर नित्यानंद लीला में नित्यानंद की भार्या उनके आल्हादिनी शक्ति के रूप में प्रकट हुई। नित्यानंद प्रभु को भी आल्हाद दिया और फिर नित्यानंद प्रभु नहीं रहे तो उनके प्रारंभ किए कार्य को आगे बढ़ाएं और आल्हाद देती रहीं और देती ही रहती है। यह शाश्वत जोड़ी है नित्यानंद और जान्हवा।जान्हवा देवी का जन्मदिन आज मना रहे हैं। और फिर अति संक्षेप में मधु पंडित। आज उनका तिरोभाव तिथि है *जे अनिल प्रेमधन* तो वह गाने का समय नहीं है। कोथा गेला मधु पंडित ठाकुर आज के दिन। *जय राधा गोपीनाथ राधा गोपीनाथ राधे* *मधुपंडितेर प्राणधन हे* हम लोग ऐसे ही अलग-अलग विग्रह का नाम लेते हैं और इनका उनका स्मरण करते हैं। उनके जो पुजारी रहे, आराधक रहे। फिर कहते हैं इनके प्राण धन ये उनके प्राण धन वे। राधा गोपीनाथ थे प्राणधन मधु पंडित के। आजकल तो राधा गोपीनाथ वृंदावन में नहीं है 500 वर्ष पूर्व जरूर थे। मधु पंडित उनकी आराधना करते थे। राधा गोपीनाथ हमारे प्रयोजन विग्रह है। संबंध विग्रह, अभिदेय विग्रह और प्रयोजन विग्रह है। तो प्रयोजन विग्रह जो प्रेम है उसके विग्रह है राधा गोपीनाथ। मधु पंडित उनकी आराधना करते थे। अगर आपको उन विग्रह का दर्शन करना है तो आपको जयपुर जाना होगा। हम कई बार गए हैं, आप भी गए होंगे। तो वह विग्रह जयपुर में है। यह मधु पंडित वैसे गदाधर पंडित.. आपको याद है गदाधर पंडित? चैतन्य महाप्रभु के परिकर और पंचतत्व के एक सदस्य। जिन्होंने जगन्नाथपुरी में क्षेत्र संन्यास लिया था और स्वयं गदाधर पंडित टोटा गोपीनाथ की आराधना करते थे। तो उस गदाधर पंडित के शिष्य थे मधु पंडित। और यह भी एक छोटी जानकारी जब नरोत्तमदास ठाकुर बंगाल के लिए प्रस्थान कर रहे थे सारे गौडीय ग्रंथ लेकर बैलगाड़ी में लोड करके। उनको प्रस्थान करना था, जाना था बंगाल की और। तो नरोत्तम दास ठाकुर गोपीनाथ के दर्शन के लिए गए। तो उस समय मधु पंडित ने राधा गोपीनाथ के गले का हार नरोत्तम दास ठाकुर को पहनाया था और विजयी हो, यशस्वी हो ऐसा आशीर्वाद दिया। तो वह मधु पंडित जी का तिरोभाव उत्सव हम मना रहे हैं। *मधु पंडित तिरोभाव तिथि महोत्सव की जय।* *सीता नवमी महोत्सव की जय।* *जान्हवा नवमी महोत्सव की जय।*

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