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जप चर्चा, 3 सितंबर 2021, वृंदावन धाम. हरे कृष्ण, 868 स्थानों से भक्त तक के लिए जुड़ गए हैं। आप सभी का स्वागत है। गुरु महाराज जप कॉन्फ्रेंस में एक भक्त को संबोधित करते हुए, आप तैयार हो, आप सभी तैयार हो? ठीक है, आज है तो एकादशी। एकादशी महोत्सव की जय! और मैं वृंदावन में भी हूं। मैं भी कुछ जप चर्चा के तौर पर कुछ बोलूंगा ही, बोलना मुझे बहुत अच्छा लगता है। कृष्ण के बारे में बोलना, प्रभुपाद के बारे में बोलना, लेकिन आज आपके भी बोलने का कुछ समय है। आपको भी अवसर दिया जाएगा। मैं जरा संक्षिप्त में ही कुछ कहूंगा फिर आपका समय होगा। आप श्रील प्रभुपाद की कुछ लीलाएं, कुछ स्मृतियां, यादें शेयर कर सकते हो। आज प्रातकाल जब मैंने भागवत को खोल दिया, दसवां स्कंध का 15 वा अध्याय खुल गया। मैं पढ़ रहा था और फिर पढ़ते पढ़ते चिंतन भी हो रहा था। ततश्च पौगण्डवय:श्रीतौ व्रजे बभूवतुस्तौ पशुपालसम्मतौ । गाश्चारयन्तौ सखिभि: समं पदै- र्वृन्दावनं पुण्यमतीव चक्रतु: यह श्लोक दशम स्कंध के 15 अध्याय का प्रथम श्लोक है। यह पूरा तो शायद भागवत कक्षा नहीं होगा, किंतु ततश्च पौगण्डवय:श्रीतौ व्रजे बभूवतुस्तौ पशुपालसम्मतौ । श्रीकृष्ण बलराम की जय! श्रीकृष्ण बलराम के धाम में है, हम जहां हैं, श्रील प्रभुपाद ने श्रीकृष्ण बलराम दिए हैं। आज कृष्ण बलराम की कथा सुनाई जा रही है। में बभूवतुस्तौ मतलब हुए, कौन हुए कृष्ण बलराम। बभूवतुस्तौ मतलब हुए कौन हुए हैं, पौगण्डवय:श्रीतौ पौगंड आयु के हुए। अब तक थे वह कुमार अवस्था के और आज कहां है, ततस्तौ उसके उपरांत यह हुआ, क्या होनेवाला है? श्रीकृष्ण और बलराम गोपाल होने वाले हैं। गोपाल बनने वाले हैं। उसके पहले थे वत्सपाल और वत्सपाल के रूपमे कई सारी लीलाएं संपन्न हुई। वत्सासुर का वध भी किया और उन बछड़ों की चोरी भी की ब्रह्माने। ब्रह्मा विमोहन लीला भी संपन्न हुई। और अंततोगत्वा ब्रह्मा भी पहुंच गए। ब्रह्मा ने की है कृष्ण की स्तुति, चौमुहा यहां से पास है वह स्थान है। चौमुहा वहां पर यह दसवें स्कंध का 14 वां अध्याय है। ब्रह्मा द्वारा भगवान कि, की गई स्तुति। अहो भाग्यम, अहो भाग्यम नंदगोपब्रजकोश्याम ऐसा भी कहां उन्होंने। यह बात बहुत अच्छी लगी कृष्ण को। और भगवान के वैभव, महान हो, यह हो, वह हो, ऐसा कह तो रहे हैं ब्रह्मा। जब ब्रह्मा ने कहा अहो भाग्यम अहोभाग्य नंदगोपब्रजोकोश्याम भाग्यवान है ब्रजवासी भाग्यवान है। ब्रजवासी भाग्यवान है। कैसे ब्रजवासी, नंदगोपब्रजकोश्याम नंद महाराज और ब्रजवासी। अहोभाग्य, अहोभाग्य ब्रह्मा ने दो बार कहा है। इसको जब कृष्ण सुन रहे थे। अहोभाग्यम अहोभाग्यम एक तो इन ब्रजवासियों के भाग्य का उदय हुआ है। इनको कृष्ण का सानिध्य लाभ प्राप्त होता है। यह एक अहोभाग्यम हुआ दूसरा दो बार जो अहोभाग्यम कहे तो कृष्ण सोच रहे थे, हां हां अहोभाग्यम मेरा भी अहोभाग्यम मुझे भी इस ब्रजवासी का नंदबाबा यशोदा और सुदामा, श्रीदामा और यह गोपिया राधारानी इनका संग मुझे भी प्राप्त हुआ है। और कितना में भाग्यवान हुआ हूं, अहोभाग्य अहोभाग्य। ऐसे कृष्ण भी सोच रहे हैं। तो यह सब लीलाएं या यह श्रीकृष्ण और बलराम दोनों जब वत्सपाल थे। वत्सपाल और कुमार भी थे। कुमारौ दोनों कुमार थे। कौमार्य उनकी अवस्था और अब पूरी हो रही है। 5 वर्षों के पूर्ण हुए तो ततः मतलब उसके उपरांत। 5 वर्ष पूर्ण हुए, उसके उपरांत क्या हुआ?पशुपालसम्मतौ, पशुपालसम्मतौ मतलब गोपाल। वृंदावन के लोग उनको गोपाल ही है या उनको गोप कहते हैं। पाल मतलब पालक, गोप कहो या गोपाल एक ही बात है। वैसे कृष्ण ही गोपाल नहीं है। वृंदावन में सभी गोप ही है यहां सभी गोपाल ही है। गोपाल गायों की रखवाली करना। गायों का पालन पोषण करना। गायों का रक्षण करना यही तो व्यवसाय है। कृषि गोरक्ष वाणिज्य, वर्णाश्रम के अनुसार। नंदबाबा एक वैश्य है वैश्य कमिटी के नेता है। उनका धर्म क्या है, गोपालन। गायों की सेवा करना और सभी बृजवासी वही करते हैं। ब्रज वासियों के जो बच्चे थे बछड़ों को चराते थे। और क्या होगा अब कृष्ण जब, बलराम थोड़े अधिक उम्र के होंगे क्योंकि, वह पहले जन्मे थे। कृष्ण जब अब 6 साल में पदार्पण करेंगे। पांचवा साल आब पूरा हुआ। ईष्ट गोष्टी हुई है, पशुपालकों की, गोपालो की, मतलब गोंपो की सम्मति हुई हैं। सभी ने खूब विचार-विमर्श करके, एक प्रस्ताव पास किया। ठराव पास किया। आज से क्या होगा कृष्ण बनेंगे गोपाल। और यह सब हो रहा है ब्रजे वृंदावन में। वृंदावन में कब हो रहा है? वृंदावन में कब हो रहा है, कार्तिक मास में हो रहा है। यह कृष्ण का प्रमोशन, वत्सपाल थे अब गोपाल बनेंगे। इनका प्रमोशन हो रहा है इनकी प्रगति हो रही है उन्नति हो रही है उत्कर्ष हो रहा है। अब उनको और बड़ी जिम्मेदारी दी जा रही है। वत्सपाल थे अब बनेंगे गोपाल। थे वत्सपाल अब बनेंगे गोपाल। कार्तिक के शुक्ल अष्टमी के दिन वे गोपाल बने। तो अष्टमी का नाम भी हो गया गोपाष्टमी। एक अष्टमी को जन्मे थे कृष्णाष्टमी और दूसरी एक अष्टमी को वे गोपाल बने। तो वह हो गया गोपाष्टमी। इस गोपाष्टमी के दिन से तथः जो इस श्लोक में कहां है उस दिन से श्री कृष्ण बन गए गोपाल और बलराम भी बन गए गोपाल। कृष्ण के मित्र भी सभी कम उम्र वाले थे तो सभी बछड़े चराते थे उनका भी हुआ है प्रमोशन। और वे भी अब यह नहीं कि कृष्ण के मित्र बछड़े चराते रहेंगे और कृष्ण अलग से जा रहे हैं गायों को चराने। ऐसा नहीं मित्र है तो साथ में रहेंगे साथ में ही बछडो की सेवा करते थे अब साथ में ही गायों की रखवाली करेंगे। तो वैसे यह प्रमोशन कईयों का हुआ है उस दिन और कृष्ण बने है गोपाल। गाश्चारयन्तौ सखिभि: समं यह लिखा ही है सखिभि: अपने मित्रों के साथ पदै-र्वृन्दावनं पुण्यमतीव चक्रतु: जब वे गो पालन के लिए गायों की सेवा में वन में विचरण कर रहे हैं, तो जूते तो नहीं पहने हैं। पृथ्वी माता से सीधा संपर्क हो रहा है कृष्ण के चरणों का। चरण के स्पर्श से पृथ्वी रोमांचित हो रही है शोभायमान हो रही है। पदै मतलब अपने चरण कमलों से र्वृन्दावनं पुण्यम मतलब वृंदावन को और भी अधिक पुनीत किया। पुण्यवान धाम बनाए हैं पवित्र किए हैं। कृष्ण सारे द्वादश काननों में अपने गौचरण लीला खेले हैं और खेलते खेलते र्वृन्दावनं पुण्यम अतीव अति पुण्य भूमि बनाए हैं ब्रजभूमि को। चक्रतु: फिर आगे आगे और भी इसका वर्णन है गोचारण लीला का, गोचारण लीला का वेणु नाद का। आप पढ़िए गा आगे या इतना जो पढ़ाया है उसका भी चिंतन मनन कीजिए और मन में बिठाईए। कृष्ण बलराम की जय। वैसे श्री कृष्ण बलराम को श्रील प्रभुपाद जी हमको दिए सारे संसार को दिए। ऐसे श्री प्रभुपाद की जय। तो श्रील प्रभुपाद की व्यास पूजाए प्रारंभ हुई, ऐसा भी समय था कई सालों तक श्रील प्रभुपाद की व्यास पूजा बर्थडे सेलिब्रेशन नहीं हुआ। तो धीरे-धीरे परिचय कराए श्रील प्रभुपाद। व्यास पूजा होगी फिर समझाना पड़ रहा था, सब कुछ नया था। पूरे जग भर में उनके जो अनुयाई थे और जब व्यास पूजा प्रारंभ हुई तो प्रभुपाद विदेशों में ही थे, भारत लौटे नहीं थे अब तक। तो वैसे भी जल्दी जल्दी से मैं यही कहूंगा कि जब हम कुछ दिन पहले यहां पर व्यास पूजा मना रहे थे तो श्रृतकीर्ति प्रभु जो श्रील प्रभुपाद के निजी सेवक भी रहे वे कुछ शेयर कर रहे थे। थोड़ी दिलचस्प कहो कुछ मजेदार बातें संक्षिप्त में मैं कहूंगा। तो जब पता चला की व्यास पूजा मनाई जाएगी श्रीला प्रभुपाद की तो उनकी एक शिष्या गोविंद दासी उनका नाम। उसने तो सोचा कि उसको जैसा अनुभव था बर्थडे का हैप्पी बर्थडे टू यू जैसे विदेशों में पाश्चात्य देशों में मनाते हैं। तो उसने केक लाया और कई सारी मोमबत्तियां जलाई थी और वह लेकर प्रभुपाद के सामने आई। प्रभुपाद कहे यह क्या कर रही हो? आपका बर्थडे है ना तो फिर वह यह भी कहीं श्रील प्रभुपाद यह जो मोमबत्तियां है इसको आपको बुझाना है। उनकी जो भी भावना या उनकी जो भी समझ थी उसके अनुसार श्रील प्रभुपाद आगे गए। प्रभुपाद ने वह मोमबत्तियां बुझा भी दी और हैप्पी बर्थडे टू यू। इस प्रकार से हमारे संस्कृति में भारतीय संस्कृति कहो या फिर गौडीय वैष्णव संस्कृति में भी हम लोग दीपक या ज्योति को जलाते हैं बुझाते नहीं। जलाने और बुझाने के पीछे जो भाव है इसको संसार नहीं जानता है। ऐसे अनाड़ी लोग ऐसे जगत में श्रील प्रभुपाद प्रचार कर रहे थे, वहा कृष्ण भावना की स्थापना कर रहे थे। तो शुरुआत में जैसा भी वे चाहते थे आपका बर्थडे ऐसे मनाएं तो श्रील प्रभुपाद बोले ठीक है वैसे ही करेंगे। फिर और एक साल मे वह शुरुआत के ही वर्ष थे जो व्यास पूजा अभी-अभी मनाना प्रारंभ हुआ था। तो प्रभुपाद ने कहा व्यास पूजा है तो पुष्पांजलि होगी। तो भक्तों को पुष्पांजलि क्या होता है यह पता नहीं था। तैयारी करो पुष्पांजलि होगी। कैसी तैयारी की? कुछ भक्त किचन में गए और उन्होंने एक पकवान बनाया जिसका नाम होता है पुष्पान्न। आप नाम सुने होंगे चावल से बना हुआ। पुष्पान्न आप सुने हो? हम जानते हैं हमने भी सुना है। तो उन्होंने पुष्पान्न बनाया चावल से एक पदार्थ बनाएं और प्रभुपाद के सामने ले आए। क्या होगा अभी? होने वाली तो थी पुष्पांजलि लेकिन वह लाए थे एक पकवान पुष्पान्न लेकर आए थे। तो इस तरह प्रभुपाद को बहुत कुछ सिखाना समझाना पड़ा। ॐ अज्ञान तिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जन शलाकया। चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै शीगुरवे नमः।। तो हम भक्तों की शिष्यों की आंखें श्रील प्रभुपाद ज्ञानाञ्जन ज्ञान का अंजन डालते हुए बोलते गए देश के विदेश के सारे पृथ्वी पर। पृथ्वीम् स शिष्यात उनके सारे पृथ्वी पर शिष्य थे। तो हम ऐसे लोग थे ऐसे अनाड़ी थे हम कुछ भी नहीं जानते थे। श्रील प्रभुपाद को एकदम शुरू से शुरुआत करना पड़ा। या जानते तो बहुत कुछ थे किंतु गलत बातें ही जानते थे। श्रीला प्रभुपाद को हमको सिखाने से शुरू करना पड़ा। पहले हम जो कुछ सीखे थे उसको मिटाना पडा श्रील प्रभुपाद को। और फिर सब नया सिखाना पड़ा, इसमें अधिक मेहनत लगती हैं. वह सारे सब नए थे पहले से कुछ पता नहीं था। पता भी था तो सब गलतियां और दुनिया ने हमको बहुत कुछ सिखाया था, ब्रेनवाशिंग किया हुआ था। ऐसा ही होता है या हमारे दिमाग को गंदा या गंदी आदते है, गंदे विचार धारा, जीवन शैली और क्या नहीं। तो इन सब से मुक्त करना होता है गुरुजनों को आचार्य को। तो श्रील प्रभुपाद को बहुत मेहनत करनी पड़ी। ताकि उनके विचारों में और भावो में क्रांति हो। लेकिन श्रील प्रभुपाद सफल हो ही गए, माया को परास्त किए। परम विजयते श्री कृष्ण संकीर्तनम और श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु के आंदोलन की जय हो।

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