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*जप चर्चा* *पंढरपुर धाम सें* *29 नवंबर 2020* *हरे कृष्णा* *जय श्री कृष्ण चैतन्य प्रभु नित्यानंद श्रीं अद्वैत गदाधर श्रीवास आदि* *गोर भक्त वृंद की जय!* *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे* *हरे* 672 स्थानों से भक्त जप चर्चा के लिए जुड़ गए हैं। जो प्रतिदिन इस कॉन्फ्रेंस में जुड़कर हमारे साथ जप कर रहे हैं,उनका तो स्वागत हैं ही लेकिन मुख्यत: आज जो अधिक दीक्षार्थी भक्त हैं, जिनका दीक्षा से मतलब हैं,या जो दीक्षा लेना चाहते हैं,या जो दीक्षा को अर्थ पूर्ण समझते हैं और दीक्षा को प्राप्त करना चाहते हैं,उनको दीक्षार्थी कहते हैं।उन सभी दीक्षार्थीयो का विशेष स्वागत हैं और उनका अभिनंदन भी हैं।जैसा पद्मावली प्रभु ने बताया कि दीक्षार्थी भी अब इस कॉन्फ्रेंस को ज्वाइन कर सकते हैं।आज भी आपका स्वागत हैं और कल परसों जब भी आप जॉइन करोगे आपका हमेशा स्वागत होगा।प्रात काल: में ही जप करना हैं और फिर मेरी जप चर्चा में दीक्षार्थीयो के लिए उपदेशामृत भी होगा और कभी-कभी तो यह कटु भी हो सकता हैं। सत्य कभी-कभी कटु होता हैं। कहा जाता है कि प्रातः काल में जप करो, अगर ऐसा उपदेश दिया जाता हैं तो यह कटु लग सकता हैं क्योंकि प्रातकाल: की जो मीठी नींद का समय हैं वह त्याग और ठुकरा कर जप करना या जप करने के लिए उठना भी एक कटु सत्य हो सकता हैं। हरि हरि। आपको बहुत कुछ सीखना और समझना होगा। आपके जीवन में क्रांति की आवश्यकता हैं। आपको बहिर्मुखी से अंतर्मुख होना हैं। भोगी की बजाय आपको योगी बनना हैं।आपसे कई सारे परिवर्तन अपेक्षित हैं और आप के कार्यकलापों में परिवर्तन होगा।आपकी जो मित्र मंडली हैं जिनके साथ आप अधिक संबंध रखते थे हो सकता है कि वह बदमाश हो,लेकिन आपको अभी तक यह समझ ना आया हो इसलिए उनका संग त्याग करना हैं। *asat-saṅga-tyāga,—ei vaiṣṇava-ācāra* *strī-saṅgī’—eka asādhu, ‘kṛṣṇābhakta’ āra* *(चैतन्य चरित्रामृत मध्य लीला 22.87)* भगवान ने कहा है कि बदमाशों के संग को त्यागो। आप भी पहले बदमाश रहे होंगे लेकिन अब आप सुधर रहे हो और ज्यादा सुधरने के लिए आपको ध्यान रखना है कि किन के साथ संबंध रखना है किनके साथ नहीं रखना हैं, किन की संगति करनी हैं और आपको अपने खान-पान मैं भी परिवर्तन करना हैं, जिसे हम कहते हैं कि अब और ज्यादा मांस चिकन नहीं खाना।अगर आप ऐसा कुछ अपक्षय भक्षण करते भी होंगे तो आपने तो यह कई सालों से छोड़ दिया होगा। अब उस सब को ना खाने के अभ्यस्त हो चुके होंगे तभी तो आपकी दीक्षा के लिए सिफारिश हुई हैं, तभी आप दीक्षार्थी बने हो विशेष रूप से अपनी भावना में परिवर्तन और क्रांति करनी हैं। एक छोटे वाक्य में कहा जा सकता है कि कैसी क्रांति करनी हैं? आप के भावों में क्रांति करनी हैं, जिसे कहते हैं रिवॉल्यूशन इन कॉन्शसनेस। यह भाव आत्मा का ही लक्षण हैं। हरि हरि। पहले हम भोगी और रोगी थे, फिर अब योगी और त्यागी बनना हैं। भाव में परिवर्तन करने से सब परिवर्तित हो जाता हैं। भक्ति भाव होने से हमारे सारे कार्यकलाप भक्ति पूर्ण और भगवान को प्रसन्न करने वाले होंगे।मैंने जैसे कल ही कहा था कि इस संसार के भाव को छोड़कर भक्ति भाव को अपनाना हैं। एक चांदी का व्यापारी व्यापार करते-करते बूढ़ा हो गया और बीमार भी था उसे बुखार हुआ था तो डॉक्टर आए और डॉक्टर ने टेंपरेचर लिया और कहा कि शरीर का 105 तापमान हैं।वह बेचारा लेटा हुआ था, लेकिन जब उसने 105 सुना तो वह प्रसन्न हो गया। उसने यह नहीं सुना कि 105 तापमान हैं, उसकी खोपड़ी में तो बाजार भाव घुसा हुआ था। तो उसने सोचा कि मैंने जो सोना चांदी खरीदा था तब ₹90 तोला खरीदा था, अब अगर 105 उसका मूल्य आ रहा हैं,तो इसमें फायदा हैं, तो उसने चिल्ला चिल्ला कर कहा कि हां हां बेच दो,बेच दो। आप समझ रहे हैं कि मैं क्या समझाना चाह रहा हूं? शायद मैंने ठीक से समझाया नहीं। हमारी भी खोपड़ी में ऐसा बाजार भाव घुसा रहता हैं। इस में परिवर्तन करना होगा और क्योंकि यह भाव महत्वपूर्ण हैं, अंत में हमारे जीवन की परीक्षा में यही भाव महत्वपूर्ण हैं। कुछ दिन पहले मैं कह रहा था कि हम आर्ट ऑफ लिविंग सीखते हैं,कभी-कभी हमारी जीवन शैली पर ही चर्चा होती रहती हैं *लाइफस्टाइल* *लाइफस्टाइल* करते रहते हैं और आज अगर आप कहीं मॉल वगैरह में जाओगे तो वहां लिखा रहता हैं *स्टाइल* *लाइफस्टाइल* *लाइफस्टाइल* डेथ स्टाइल भी होती हैं, हम में से कुछ लोग जीने की कला सीखते होंगे उसे सिखाने के लिए कुछ संस्थान भी हैं, जैसे आर्ट ऑफ लिविंग और भगवान ने भी कहा है कि *बुद्धियुक्तो जहातीह उभे सुकृतदुष्कृते |* *तस्माद्योगाय युज्यस्व योग: कर्मसु कौशलम् |* *(भगवद्गीता 2.50)* *अनुवाद- भक्ति में सलंग्न मनुष्य इस जीवन में ही अच्छे तथा बुरे* *कार्यों से अपने को मुक्त कर लेता बुरे अतः योग के लिए प्रयतन करो* *क्योंकि सारा कार्य कौशल यही हैं।* सही या गलत जो भी हैं, लोग उस लाइफस्टाइल को सीखने का प्रयास करते हैं।लाइफस्टाइल यानी जीवन शैली यानी जीने की कला। लोग जीने की कला तो सीखते हैं,लेकिन मरने की कला भी तो हैं। मरने की कला या मरने का शास्त्र भी हैं। मरण का शास्त्र हैं। हो सकता है कि जीने की कला आसान हो। सीखना हैं,तो मरने की कला सीखो।यह सीखो की मरे कैसे? मरने की कला का भी शास्त्र हैं। इस अंतरराष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ में हम आपको मरने की कला सिखाएंगे। धर्म भी यही सिखाता हैं कि कैसे मरे। *इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले, गोविंद नाम लेकर* *तब प्राण तन से निकले!* आप हरे कृष्णा आंदोलन में भर्ती हो रहे हो और दीक्षार्थी बने हो तो शिक्षा भी आपको दी जाएगी। कहा जा सकता है कि आपको प्रशिक्षित किया जाएगा ताकि आप यह मरने की कला को सीख सकें। इसका मतलब यह नहीं है कि आप आत्महत्या करो वह तो मूर्खता हैं हरि हरि। आत्महत्या करने से जीवन के लक्ष्य को हम प्राप्त नहीं कर सकते, लेकिन ऐसा मरो कि मरते समय भगवान का ध्यान रहे। भगवान ने स्वयं कहा है कि मरते समय मुझे याद करो। हरि हरि। भगवान ने गीता में कहा हैं *यं यं वापि स्मरन्भावं त्यजत्यन्ते कलेवरम्।* *तं तमेवैति कौन्तेय सदा तद्भावभावितः।।* *(भगवद्गीता 8.6)* *अनुवाद-हे कुंती पुत्र शरीर त्यागते समय मनुष्य जिस जिस भाव का* *स्मरण करता है वह उस उस भाव को निश्चित रूप से प्राप्त होता हैं।* जिस प्रकार का भाव हमारा मृत्यु के समय होगा उसी प्रकार का शरीर हमें प्राप्त होगा या फिर हम सद् योनि प्राप्त करेंगे या असद योनि या हम स्वर्ग जाएंगे या नर्क जाएंगे,बैकुंठ लोक जाएंगे या गोलोक जाएंगे यह सारा निर्भर करता हैं कि हम मृत्यू के समय क्या सोच रहे हैं। *पुनरपि जननं पुनरपि मरणं, पुनरपि जननी जठरे शयनम्।* *भज गोविन्दं भज गोविन्दं, गोविन्दं भज मूढ़मते।* *(भज गोविंदम)* पुनरपि जननं पुनरपि मरणं चलता रहता हैं, परंतु हमारा भविष्य क्या होगा, किस योनि में या किस स्थान पर हम जाएंगे, हमें भगवत प्राप्ति होगी भी या नहीं? यह सारा इस पर निर्भर करता है कि हमारे मृत्यु के समय पर क्या भाव या विचार हैं। हरि हरि। भागवत धर्म हमको जीने की कला भी सिखाता हैं और मरने की कला भी सिखाता हैं। हमें मरने का शास्त्र भी सिखाता हैं ताकि हमें पुनर्जन्म ना लेना पड़े।*हरे कृष्ण* *हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे हरि* *हरि* मुझे और भी बहुत कुछ कहना था लेकिन एक मुख के साथ क्या-क्या कह सकते हैं? इसीलिए भक्त कभी-कभी प्रार्थना करते हैं किं *tunde tandavini ratim vitanute tundavali-labdhaye* मेरे अगर कई सारे मुख होते तो मैं कई सारी बातें एक ही साथ करता। भगवान के इतने सारे गुण हैं, उनके गुणों का वर्णन करता।उनके रूप का वर्णन करता। *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे* *राम राम राम हरे हरे* का जप भी करता और एक मुख से प्रसाद ग्रहण करता,एक मुख से भगवान के गुण का र्कीतन करता,एक मुख से भगवान की लीला का वर्णन करता और एक मुख से भगवान की धाम या कीर्ति का वर्णन करता। भगवान के 1000 मुख हैं। 1000 मुख से अलग-अलग चर्चा होती हैं।शिवजी के पास पांच मुख हैं,ब्रह्मा के पास चार मुख हैं या पांच मुखी हैं। हमारे ब्रह्मांड वाले ब्रह्मा के पास चार मुख हैं लेकिन ओर ब्रह्मांड में 8 मुख वाले ब्रह्मा भी हैं, कुछ ब्रह्मांड में 16 मुख वाले भी हैं,11 मुख वाले भी हैं, 12 भी हैं, 13 भी हैं,32 भी 64 भी, हजारों लाखों मुख वाले ब्रह्मा भी हैं। शिवजी भी पंचाग मुखी हैं। वह लोग अपने जितने भी मुख हैं, उन मुखो से भगवान के नाम, रूप,गुण, लीला का कीर्तन करते रहते हैं। जीवन में ऐसी भी स्थिति आ जाती हैं कि मैं कितना बोलूं? मैं यह भी कहना चाहता हूं वह भी कहना चाहता हूं। भगवान के संबंध में भक्त बहुत कुछ बोलना चाहता हैं, क्योंकि भगवान अनंत हैं और उनकी लीलाएं भी अनंत हैं *advaitam acyutam anādim ananta-rūpamādyaṁ* *purāṇa-puruṣaṁ nava-yauvanaṁ cavedeṣu* *durlabham adurlabham ātma-bhaktau* भगवान के अनंत रूप हैं, अनंत गुण हैं, अनंत धाम हैं। हरि हरि। मेरा तो बहुत कुछ कहने का विचार था लेकिन हमारा शरीर एक ही मुख वाला हैं और समय भी बहुत सीमित हैं, यहां तक कि मरने के लिए समय नहीं हैं। यहां कई सारे दीक्षार्थी इकट्ठे हुए हो, इसीलिए यह कक्षा बीच में छोड़कर नामकरण की ओर बढना पड़ रहा हैं। हरि हरि। लेकिन लीला कथा सुनते रहिए। हम भी सुनाएंगे और भी भक्त आपको सुनाएंगे *मच्चित्ता मद्गतप्राणा बोधयन्त: परस्परम् |* *कथयन्तश्च मां नित्यं तुष्यन्ति च रमन्ति च |* बोधयन्त: परस्परम् ही हमारा जीवन हैं।श्रील प्रभुपाद के ग्रंथ पढिये। श्रील प्रभुपाद ने गोरवाणी का प्रचार किया हैं। आपने यह मंत्र कहा या नहीं? *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम* *राम हरे हरे* यह तो केवल मैंने ही कहा हैं, आप तो चुप करके ही बैठे हो। इतने समय से तो आप ने कुछ नहीं कहा।चलो कहा नहीं सुना तो वह भी अच्छा हैं। एक बात तो यह हैं कि एक तो *कीर्तनीया सदा हरि* करना हैं, कब कब करना हैं? सदा और दूसरी बात हैं *नित्यम भागवत* *सेवया* यह दो बातें तो सदैव ही करनी हैं और भी कई सारी बातें हैं। प्रसाद सदैव नहीं लेना हैं। युक्त आहार विहारसय या उसके लिए अलग नियम हैं। बैलेंस डाइट होनी चाहिए। लेकिन कम से कम यह दो तो सदैव करना ही हैं। एक तो *कीर्तनया सदा हरि*, दूसरा *नित्यम भागवत सेवया* आपको यह करते रहना हैं, ताकि आपके जीवन में क्रांति हो। आप के भावों में विचारों में क्रांति हो। अभी यहां रुकेंगे। क्या आप प्रसन्न हैं? भगवान प्रसन्न हैं, तो हम भी प्रसन्न हैं और अगर हम प्रसन्न हैं तो भगवान भी प्रसन्न हैं। आप अब भगवान की ओर मूड रहे हो। भगवान को जानना और भगवान को प्राप्त करना चाहते हो या आप अंतरमुखी हो रहे हो। भगवान की ओर मूड़ रहे हो,इसलिए भगवान प्रसन्न हैं। यह देखकर हम भी प्रसन्न हैं और जो भक्त यहां उपस्थित हैं, वह भी प्रसन्न हैं। *निताई गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल* *हरे कृष्ण*

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