Hindi

जप के समय स्थान तथा अंग विन्यास का महत्त्व आप अपने फेफड़ों में हवा भरते हैं। जब हम कम मात्रा में हवा ग्रहण करते हैं तब हम महामन्त्र का उच्चारण सही प्रकार से नहीं कर पाते हैं। जब आप गहरी साँस लेकर महामन्त्र का उच्चारण करते हैं तब यह तीव्र तथा साफ़ होता हैं। फिर जैसे जैसे आप महामन्त्र जपते हैं वैसे वैसे धीरे धीरे सांस छोड़िये। इससे हमें प्रोत्साहन मिलेगा। धीरे धीरे हमें जप करते समय पुनः सांस छोड़नी चाहिए। जब आप बहुत अधिक मात्रा में हवा लेते हैं तथा धीरे धीरे उसे छोड़ते हैं तब आप प्राणायाम करते हैं , जिसका अन्तिम उद्देश्य हमारी एकाग्रता तथा ध्यान बढ़ाना हैं। इस प्रकार साँस लेने से आपके रक्त में ऑक्सीजन अधिक मात्रा में रहेगी जो मस्तिष्क तक पहुँच कर हमें ताज़गी का अनुभव देगी तथा इससे हमारी याद्दाश्त तेज़ होगी। इस प्रकार साँस लेने तथा छोड़ने के बहुत अधिक फायदे हैं। अन्यथा हम जिस प्रकार साँस लेते हैं वह शरीर के लिए ठीक नहीं हैं। यह हमें प्रभावशाली जप में कुछ भी सहायता नहीं करती हैं। इससे केवल फुसफुसाना होगा क्योंकि चूँकि शरीर में पर्याप्त हवा नहीं हैं अतः आप सही प्रकार से हरिनाम का ध्यानपूर्वक उच्चारण तथा श्रवण नहीं कर पाएंगे। उससे हम किसी अन्य ही जगत में होते हैं तथा शने : शने : हमारा जप छूट जाता हैं। आप एक गहरी साँस लीजिये फिर उसी सांस में ३, ४ या ५ महामन्त्र जपिये फिर धीरे धीरे सांस छोड़ दीजिए। इसके बहुत लाभ हैं। फिर पुनः साँस लीजिए तथा इसे दोहराइये। ऐसा करने का कोई नियम नहीं हैं परन्तु अधिकतर भक्त ऐसा अभ्यास करते हैं। आप भी इसका अभ्यास कर सकते हैं। अब हम मायापुर धाम में हैं। जैसा कि मैंने आपको कल बताया था मैं नॉएडा से मायापुर आ गया हूँ। हम दिल्ली तथा नॉएडा में भी जप कर रहे थे। जो नियमित रूप से इस कांफ्रेंस में सम्मिलित होते हैं उन्हें यह पता होगा कि मैं हर कुछ दिनों में एक नए स्थान पर होता हूँ। परन्तु जप हैं जो कभी भी नहीं बदलता हैं , जप सदैव स्थिर रहता हैं। यदि आप किसी अन्य स्थान पर जाएं तो इसका अर्थ यह नहीं हैं कि आप अपना जप रोक दें। मैं प्रत्येक स्थान पर किसी नई सेवा में संलग्न हो जाता हूँ परन्तु जप सदैव एक जैसा रहता हैं। यह आप के लिए भी हैं , चाहे आप अपनी आरामदायक स्थिति में हो , घर में हो या किसी अन्य प्रदेश , देश या महाद्वीप की यात्रा कर रहे हो , प्रत्येक स्थिति में आपको जप करना चाहिए। स्थिति चाहे कोई सी भी हो परन्तु सदैव जप करते रहिए। आज मुझे पंचतत्त्व की मंगल आरती करने का सौभाग्य मिला। जैसा कि मैं समय समय पर बताता हूँ हमें जप के लिए तैयारी करनी चाहिए। मंगल आरती , तुलसी आरती में सम्मिलित होना यह उस तैयारी का एक हिस्सा हैं, अतः मैंने पंचतत्त्व की आरती करकेअपनी तैयारी की जिस पर मैं मनन कर सकता हूँ। मैं अभी धाम में हूँ तथा धामवास की शास्त्रों में संस्तुति की गई हैं। पांच प्रकार की साधनाओं में धामवास भी एक हैं। मैं अन्य चार साधनाओं को अभी नहीं बताऊंगा यह आप के लिए कार्य हैं जिसे आप स्वयं खोजिये। उनमे से एक धामवास भी हैं। धाम की ऊर्जा तथा प्रभाव आपके जप के लिए अत्यन्त अनुकूल होता हैं। चूँकि हमारे सत्र का मुख्य उद्देश्य जप हैं अतः मैं धामवास से जप का सम्बन्ध बता रहा हूँ। हमारे इस्कॉन मन्दिर भी धाम हैं। हम विभिन्न इस्कॉन मन्दिरों में जा सकते हैं जिससे हमें धाम वास का तथा वहां जप का लाभ मिल सके। इसके अलावा भी कहा गया हैं - तीर्थी कुर्वन्ती तीर्थानी (श्रीमद भागवतम १.१३.१०) , आप अपने घरों को तीर्थ बना सकते हैं। आपके घर में पूजा गृह, भगवान के चित्रपट , विग्रह होने चाहिए जिससे आपका घर वैकुण्ठ के समान हो सकता हैं। वहां तुलसी महारानी हो सकती हैं। आप एक गाय रख सकते हैं , परन्तु इस बात का ध्यान रखिएगा कि आप कुत्ता नहीं पाल रहे हैं। यदि आपके घर में कुत्ता होगा तो वह उसे अपने स्थान के जैसा बना देगा , वह पुरे घर में घूमेगा जो वाँछनीय नहीं हैं। आपके घर में प्रभुपाद की पुस्तकें होनी चाहिए। जब आप अपनी रसोई में भगवान के लिए भोग बनाते हैं तथा हरे कृष्ण का जप करते हैं तब आपका घर तीर्थ या धाम में परिवर्तित हो जाता हैं। इस प्रकार धाम में रहने से हम जप की चेतना में स्थिर रह सकते हैं। जप प्रारम्भ करने से पहले सभी वैष्णवों को प्रणाम कीजिए। उनसे उनकी कृपा के लिए प्रार्थना कीजिए। आप ये कर सकते हैं। हमारे लिए सबसे बड़ी परेशानी हैं - वैष्णव अपराध। हम वैष्णवों के प्रति अपराध करने में अत्यंत सक्षम हैं। अत्यंत सरलता से तथा नियमित रूप से हम वैष्णव अपराध करते हैं। इसके लिए हम स्वयं को हरिनाम के प्रति दस अपराधों के विषय में समझा सकते हैं। ऐसा सभी इस्कॉन मंदिरों में किया जाता हैं। इसके साथ ही साथ आप अलग से भी अकेले यह प्रार्थना कर सकते हैं - वांछा कल्पतरुभ्यश्च , कृपा सिन्धुभ्य एव च। पतितनाम पावनेभ्यो , वैष्णवेभ्यो नमो नमः।। (वैष्णव प्रणाम मन्त्र ) ये सभी भी जप से पहले तैयारी हैं। आज सुबह वैष्णवों को प्रणाम करते समय , जिस प्रकार मैंने वैष्णवों को प्रणाम किया उससे मैं बहुत प्रसन्न था। वह प्रणाम कुछ भावनाओं के साथ था। प्रेमांजन प्रभु ने आज सुबह सभी से निवेदन किया तथा प्रणाम करने के लिए बंगाली में कहा , " माथा नीचे करुन " । वे सभी नए आगंतुकों को बता रहे थे कि अपने मस्तिष्क नीचे कीजिए। जब उन्होंने ऐसा कहा तो मैंने भी कुछ भावनाओं के साथ अपना सिर झुकाया। षाष्टांग दंडवत प्रणाम में पुरुष 'अष्टांग प्रणाम ' अपने आठों अंगों से प्रणाम करते हैं तथा स्त्रियां 'पञ्चाङ्ग प्रणाम ' करती हैंजिसमे पांच अंग सम्मिलित होते हैं। ।इनमे से कुछ अंग दोनों में समान रहते हैं। प्रणाम करते समय हम शरीर , शब्दों , मन तथा आत्मा के साथ प्रणाम करते हैं। सूक्ष्म शरीर , मन, बुद्धि तथा चेतना या भावना के रूप में सही अहंकार के साथ, भी प्रणाम करने चाहिए। मैं प्रणाम करके प्रसन्न था तथा यह सोच रहा था कि आज से पहले मैंने जितनी भी बार वैष्णवों को प्रणाम किया हैं तो क्या मैंने वास्तव में प्रणाम किया ? मेरे मन में यही विचार थे। यह पहली बार था जब वैष्णवों को प्रणाम करते समय मेरे मन में इस प्रकार की भावना थी , मैं उनसे क्षमा मांग रहा था, तथा अत्यंत नम्रता , भक्ति तथा भावना के साथ के साथ उनकी कृपा के लिए याचना भी कर रहा था। सदैव जप करते रहिए। आपको जप करते समय सीधा बैठना चाहिए। प्रभुपाद ने भी जप के सम्बन्ध में कई निर्देश दिए जिनमें एक श्रील प्रभुपाद ने एक जप सत्र के दौरान (रिकॉर्डेड प्रवचन) कहा , " सीधे बैठो "। इसलिए ढ़ंग से बैठना क्या हैं ? एक योगी के समान आपकी पीठ तथा गर्दन सीधी होनी चाहिए। इसे ही ढ़ंग से बैठना कहते हैं। दो दिन पहले मैं दिल्ली में एक भक्त से जो पहले योगी थे परन्तु अब भक्ति योगी हैं , उनके साथ मैं ढ़ंग से बैठने के सम्बन्ध में बात कर रहा था। उन्होंने कहा कि यदि हम रीढ़ की हड्डी को ढीला छोड़कर तथा गर्दन झुकाकर बैठते हैं तो वह योगियों का आसन नहीं हैं। आप अगर इस स्थिति में बैठते हैं तब आपको सांस लेने में तकलीफ होती हैं, तथा आप इस स्थिति में सही प्रकार से जप भी नहीं कर सकते। वो बता रहे थे कि जब हम सही ढ़ंग से बैठते हैं तो हमारे फेफड़े खुलते हैं। यदि हम इन्द्रधनुष के समान झुककर बैठते हैं तो इससे सांस लेने में रूकावट होती हैं। यह उसी प्रकार का आसन हैं जिस प्रकार आप माता के गर्भ में रहते हैं। आप इस स्थिति में न तो ढ़ंग से बैठ सकते हैं न ही ढ़ंग से बोल सकते हैं। यदि आप पर्याप्त मात्रा में सांस नहीं लेते हैं और तब यदि जप करते हैं तो उस नाम में वह प्रेरणा तथा प्रोत्साहन नहीं होता हैं। आप केवल फुसफुसाते हैं। यह न तो तेज़ होता हैं और न ही साफ़। न केवल सांस लेने के सम्बन्ध में परन्तु तंत्रिका तंत्र के साथ होने वाले हमारे आन्तरिक संवाद में भी तकलीफ़ होती हैं। यह सब तनाव का कारण बनता हैं। यह आपको सही प्रकार से सोचने तथा याद्दाश्त बढ़ाने में सहायता नहीं करता हैं। इससे आप उचित मात्रा में बुद्धिमान भी नहीं होते हैं। इस प्रकार यह अत्यन्त महत्वपूर्ण पहलु हैं जिस पर हम अधिक विचार नहीं करते हैं। यह प्राणायाम हैं जिसका मुख्य लक्ष्य ध्यान , याददाश्त तथा अवशोषण हैं। हम यहाँ इस कांफ्रेंस के माध्यम से सम्पूर्ण जप सत्र नहीं देते हैं परन्तु उन में से कुछ महत्वपूर्ण बातों पर जिससे आपको जप सुधारने में प्रोत्साहन मिले उन दिशा-निर्देश पर चर्चा करते हैं। मैं आप सभी को आज या कल सुबह तक यदि आप मायापुर आ सकें तो आमंत्रित करता हूँ। यहाँ बहुत अधिक मात्रा में भक्त आ रहे हैं। मन्दिर भक्तों से पूरा भर गया हैं। कल पंचतत्त्व का महा - अभिषेक हैं। हम सभी अत्यंत उत्सुकता के साथ उसकी प्रतीक्षा कर रहे हैं। हम अभिषेक के दौरान कीर्तन करेंगे। आप इसे मायापुर टीवी पर देख सकते हैं। हरे कृष्ण …….

English

IMPORTANCE OF PLACE and POSTURE DURING JAPA! You fill up your lungs with air. When we take in a little air we don't say the mantra properly. If you take a deep breath and say the mahamantra, then it is loud and clear. Then slowly release the air as you say the mahamantra. Then there is boost. Slowly release the air as you say the mahamantra. When you take lot of air in and then release it, you are also doing pranayam, which is ultimately meant for concentration and meditation. By this your blood will be purified and oxygenised which will reach the brain and you will remain fresh and your memory will become sharper. There are lot of benefits of doing this. Otherwise the way we breathe is also not good for health. It also doesn't lead to effective chanting . It's only whispering, because the air is less, and you are not making an endeavour to say the name and hear the name with attention. We are in another world and then we stop chanting. You should take a deep breath and then chant 3, 4 or 5 Hare Krishna mahamantras in one breath. Then again take a deep breath and repeat it same way. It has lots of benefits. It's not a hard and fast rule, but many devotees practice that way. You can also try. Here we are in Mayapur dham. As I told day before, I left Noida yesterday and arrived in Mayapur dham. I was chanting in Delhi, and Noida also. Those who attend the conference regularly, they know every few days I am in another location. Chanting is something that doesn't change. Chanting is constant. Location changes. If you go to another place that doesn't mean you stop chanting. I do something new at each place, but chanting is the constant factor. For you also, wherever you are, if you are stationed in your comfort zone, your home or if you are travelling, and you have to go to another state, another country, another continent, still you chant. No matter what but you stick to chanting. I also had fortune to offer aarti to Panchatattva today. As I say from time to time, that you have to do preparation for chanting. Attending mangal-aarti , Tulsi aarti is part of that preparation, so I kind of prepared myself for chanting by worshipping Pancatattva. I am here in the dham and the dhamvas also strongly recommended. One of the five sadhanas is Dham-vas. I will not say the other four.You can find it out. We have Dham-vas also. Power or influence of dham also certainly becomes very favourable for your chanting. Since our topic is chanting, I am drawing chanting connections from that. Our ISKCON temples are dham. We could always go to various ISKCON temples and get the benefit by visiting the dham and chant there. Otherwise there is also - tirthi kurvanti tirthani . ( SB. 1.13.10) You could make your home tirtha. If you have an altar or photograph or some Deities, or if you are making your home look like Vaikuntha. Tulasi maharani is there. You can have a cow. Make sure you don't have a dog. Have a cow. If a dog is there, he could be in his own place. If he walks all over that is not desirable. You can have Prabhupada's books at home. In your kitchen when you are cooking for the Deities, and you are always chanting your Hare Krishna also, so then your home could be termed as, or experienced as Tirth or Dham. Being in the dham certainly helps to concentrate on chanting. Offer your obeisances to Vaisnavas before chanting. Beg for their mercy. You could do this. Biggest trouble for us is Vaisnava aparadha . We are expert at offending Vaisnava. Very naturally and spontaneously we commit Vaisnava aparadh. Part of the preparation is, we could also remind ourselves, about what the ten offenses against the holy name are. That is done in all the temples. Individually also your can do that and offer prayers - vanca kalpatarubhyaca kripa sindhubhy evaca/ patitanam pavanebhyo vaishnavebhyo namo namaha//. ( Vaisnav pranam mantra) These are also preparations, before you chant. While offering pranam mantras to the Vaisnava this morning , I was happy, the way I offered my obeisances to Vaishnavas . That was with some feelings. Premanjan Prabhu madean announcements. So while announcing he said, ‘ matha niche karun’. He was telling that for the visitors, that they have to bow down their head. As he said that , I bow down with some feelings. Sashtanga dandavat, which means , eight part of your body are involved in offering Dandavats for gentlemen. Ladies do Panchang pranam . Some things are common. Obeisance's are offered with the body, words , mind and also soul is there. Mind, intelligence and ego , real ego, -the chetana, consciousness, most subtle being ,’also offers obeisance's. ! I was happy and wondering whether all the previous times that I had offered my pranams to Vaisnavas if I really did I offer my obeisances? I just had this thought. The first time I was offering my obeisances that I had special feelings while offering Vaisnava pranams. That is begging for forgiveness. Begging for their mercy also, very humbly, emotionally, devotionally. Keep chanting. You should also sit properly. Prabhupada also gave several instructions about chanting, but one that stands out which he gave in middle of , one of the Japa sessions ( it was recorded) was - “ sit properly.” So what is sitting properly? Your backbone and neck should be straight, sitting like a yogi. That is sitting properly. Two days ago I had a conversation with one yogi, who is now a Bhakti-Yogi in Delhi temple regarding sitting properly. He said that if we sit with the back bone relaxed and neck down, it's not a yogic posture. You try sitting in this improper way and you will feel that your breathing is kind of blocked. You can't speak clearly in that posture. He was explaining that when we sit properly our lungs open up. When we sit down bending like a rainbow there is a blockage. It's like the position when you are in the womb of your mother. You can't sit properly. You can't speak properly. You are not taking in sufficient air and then when we chant, there is not a thrust or boost behind the names you utter. You are just whispering. It is not loud and clear. Not only for breathing, but there is a blockage in the internal communication which goes on through the nervous system. That whole thing is also put under stress. It doesn't help you to think properly or remember. You are not sharp enough. So it is a very important aspect which we don't pay much attention to. This is a pranayam which is aimed at concentration, remembrance and total absorption. We don't give a full Japa seminar over here, only some tips or guidelines, some inspiration, some encouragement for all of you to go on chanting properly and attentively. I am inviting you , if you can come by today or tomorrow morning to Mayapur, like lots of devotees are pouring in. Temple was flooded. Tomorrow is Maha Abhishek of Pancatattva. We are eagerly waiting for that. We will chant during Abhishek. You can watch on Mayapur T.V. Hare Krishna!

Russian

Джапа сессия 28.02.2019 ВАЖНОСТЬ МЕСТА И ПОЛОЖЕНИЯ (позы, осанки) ВО ВРЕМЯ ДЖАПЫ! Вы наполняете свои легкие воздухом. Когда мы вдыхаем не достаточно воздуха, мы не можем произнести мантру должным образом. Если вы сделаете глубокий вдох и повторите маха-мантру, это получится громко и отчетливо. Затем медленно выдыхайте воздух одновременно произнося маха-мантру. Тогда есть ускорение. Медленно выдыхайте воздух произнося Маха-мантру. Когда вы вдыхаете большое количество воздуха и затем выдыхаете его, вы также делаете пранаяму, которая в конечном итоге предназначена для концентрации и медитации. Благодаря этому ваша кровь будет очищаться и насыщаться кислородом, который достигнет мозга, вы останетесь свежими, а ваша память станет острее. В этом есть много преимуществ. В противном случае способ, которым мы дышим, не очень полезен для здоровья. Это также не приводит к эффективному воспеванию. Это только шепот, потому что воздуха мало, и вы не прилагаете усилий что бы произнести и услышать мантру внимательно. Мы оказываемся в другом мире, и перестаем воспевать. Вы должны сделать глубокий вдох и затем повторять 3, 4 или 5 Харе Кришна Маха-мантр на одном дыхании. Затем снова сделайте глубокий вдох и повторите то же самое. У такого повторения есть много преимуществ. Это не твердое правило, но многие преданные так практикуют. Вы также можете попробовать. Сейчас мы в Маяпур-дхаме. Как я сказал днем раньше, я покинул Ноиду вчера и прибыл в Маяпур-дхаму. Я воспевал в Дели, а также в Нойде. Те, кто регулярно посещают конференцию, знают, что каждые несколько дней я нахожусь в другом месте. Воспевание - это то, что не меняется. Воспевание постоянно. Местоположение меняется. Если вы переедете в другое место, это не значит, что вы перестанете воспевать. Я делаю что-то новое в каждом месте, но воспевание является постоянным фактором. Для вас так же, где бы вы ни находились, если вы находитесь в своей зоне комфорта, в своем доме или если вы путешествуете, и вы должны поехать в другой штат, в другую страну, на другой континент, продолжайте воспевать. Несмотря ни на что, придерживаетесь воспевания. Мне посчастливилось сегодня предложить арати Панчататтве. Время от времени я говорю, что вы должны подготовиться к воспеванию. Посещение мангала-арати, Туласи арати являются частью этой подготовки, поэтому я как бы подготовился к повторению, поклоняясь Панчататтве. Я здесь, в дхаме, и dhamvas также настоятельно рекомендую. Одним из пяти садхан является Дхам-вас. Я не буду говорить другие четыре. Вы можете найти их. У нас также есть Дхам-васс. Сила или влияние дхамы также, безусловно, становится очень благоприятным для вашего воспевания. Поскольку наша тема - воспевание, я ищу точки соприкосновения с воспеванием. Наши храмы ИСККОН - это Дхама. Мы всегда можем посещать различные храмы ИСККОН и получать пользу, посещая дхаму и воспевая там. Иначе есть и тиртхи-курванти-тиртхани. (ШБ. 1.13.10) Вы можете сделать тиртхой свой дом. Если у вас есть алтарь или фотография или какое-то Божество, вы делаете свой дом похожим на Вайкунтху. Туласи Махарани здесь. У вас может быть корова. Убедитесь, что у вас нет собаки. Есть корова. Если там есть собака, она должна быть на своем месте. Нежелательно если она ходит везде. У вас дома должны быть книги Прабхупады.Когда вы готовите для Божеств на вашей кухне, и всегда, когда вы повторяете Харе Кришна Махамантру, ваш дом можно назвать или почувстровать как Тиртху или Дхаму. Нахождение в дхаме, безусловно, помогает сосредоточиться на воспевании. Перед воспеванием предложите свои поклоны вайшнавам. Молитесь об их милости. Вы можете делать это. Самая большая проблема для нас - это вайшнава апарадха. Мы являемся экспертами в оскорблении вайшнавов. Очень естественно и спонтанно мы совершаем вайшнава апарадхи. Как часть подготовки перед повтореним, мы могли бы также напомнить себе о десяти оскорблениях Святого Имени. Это делается во всех храмах. Вы также можете сделать это индивидуально и предложить молитву - ванчха-калпатарубхйаш ча крипа-синдхубхйа эва ча патитанам паванебхйо ваишнавебхйо намо намах ( Шри вайшнава пранама ) Это также подготовка перед воспеванием. Когда я произносил Шри вайшнава пранама этим утром, я был счастлив, предлагая свои поклоны вайшнавам. Это было с определенными чувствами. Преманжан Прабху сделал объявления. Объявляя, он сказал: «Матха нишу карун». Он говорил это для посетителей, что они должны склонить голову. Когда он сказал это, я поклонился с определенными чувствами. Sashtanga dandavat означает, что восемь частей вашего тела вовлечены в предложение дандаватов для мужчин. Дамы делают Panchang pranam. Некоторые вещи являются общими. Поклоны предлагаются телом, речью, умом и душой. Ум, разум и эго, истинное эго, четана, сознание, тонкое тело, также предлагают поклоны ! Я был счастлив мне было интересно, раньше когда я повторял Шри вайшнава пранаму, действительно ли я предлагал свои поклоны? Я размышлял об этом. В первый раз, когда я предлагал свои поклоны, у меня были особые чувства, когда я предлагал Шри вайшнава пранаму. Это мольба о прощении. Умоляйте об их милости, очень смиренно, эмоционально, преданно. Продолжайте воспевать. Вы также должны сидеть правильно. Прабхупада также дал несколько наставлений о воспевании, но одно из них выделяется, то которое он дал в середине одной из сессий джапы (она была записана), было: “ sit properly.” «Сиди правильно». Что же значит правильно сидеть? Ваш позвоночник и шея должны быть прямыми, сидя как йог. Так сидеть правильно. Два дня назад я разговаривал с одним йогом, который сейчас является бхакти-йогом в храме в Дели, о том, как правильно сидеть. Он сказал, что если мы сидим с расслабленным позвоночником и шеей, это не йогическая поза. Пытаясь сидеть таким неподходящим образом, вы почувствуете, что ваше дыхание заблокировано. В этой позе вы не можете говорить четко. Он объяснял, что когда мы сидим правильно, наши легкие открываются. Когда мы садимся, сгибаясь, как радуга, возникает блокировка. Это похоже на положение, когда мы в утробе матери. Вы не можете сидеть правильно. Вы не можете говорить правильно. Вы не набираете достаточно воздуха, и когда мы воспеваем, нет никакого толчка или выталкивания имен, которые вы произносите. Вы просто шепчете. Это не громко и не ясно. Блокируется не только дыхание, но так же есть блокировка и во внутренней передаче, которая происходит через нервную систему.. Все это также подвергается стрессу. Это не помогает вам правильно думать или запоминать. Вы недостаточно проницательны. Так что это очень важный аспект, на который мы не обращаем особого внимания. Это пранаяма, которая направлена на концентрацию, память и полную погруженность. Мы не проводим здесь полный семинар по джапе, только некоторые советы или рекомендации, немного вдохновения, немного ободрения для всех вас продолжать воспевать правильно и внимательно. Я приглашаю вас, если вы можете прийти сегодня или завтра утром в Маяпур, и влиться в поток преданных. Храм был заполнен. Завтра Маха Абхишека Панчататтвы. Мы с нетерпением ждем этого. Мы будем петь во время Абхишеки. Вы можете посмотреть на Mayapur T.V. Харе Кришна!