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*जप चर्चा* *5 नवंबर 2021* *वृंदावन धाम से* हरे कृष्ण आप लोग हरिनाम को तो सुन रहे हो ही। अब कुछ हरि कथा या गोवर्धन कथा सुनिए। अब तक 810 स्थानों से भक्त जप कर रहे हैं। थोड़ी देर में मुझे बरसाना जाना है। बरसाना धाम की जय। धाम तो राधा रानी का है बरसाना, किंतु वहां ब्रज मंडल परिक्रमा के भक्तों के साथ गोवर्धन पूजा मनाएंगे हम। इसलिए जब कोई इमरजेंसी वगैरह होती है तो हम हमारा जपा टॉल्क 6:30 बजे शुरू करते हैं। और फिर समापन भी थोड़ा जल्दी कर ही देते हैं या करना पड़ता है। हरि हरि। आप सुनोगे 7:00 बजे अनाउंसमेंट्स होगी। पद्ममाली प्रभु भी वृंदावन पहुंचे हैं तो वे अनाउंस करेंगे। अलग-अलग अनाउंसमेंट्स है उसमें परिक्रमा में कभी कथा होगी या मैं कभी पहुंचूंगा। लगभग 8 से 8:15 वहां पर कथा होगी। मेरे पुर्व वहां सचिनंदन महाराज की कथा है। 7:30 बजे उनकी कथा प्रारंभ होगी और लगभग 7:15 बजे हमें ट्रैवल कर के वहां पहुंचना है। ठीक है ऐसी बहुत सारी सूचनाएं होगी। तो आज.. गोवर्धन पूजा महोत्सव की जय। गोवर्धन का संस्मरण तो होता ही है समय-समय पर इस फोरम में। तो फिर आज का क्या कहना? आज तो गोवर्धन पूजा का दिन है। वैसे जब कल की लीला हुई तब क्या हुआ? उखल बंधन लीला गोकुल में संपन्न हुई... इसे विस्तार से नहीं कहूंगा। लेकिन यह याद रख सकते है हम की वैसे श्रीराम ही अयोध्या नहीं लौटे कल और फिर दिवाली का उत्सव मनाया गया कल के दिन। तो कल के ही दिन कृष्ण भी और सारे गोकुल वासी वैसे गोकुल से वृंदावन के लिए प्रस्थान किए या वृंदावन में प्रवेश हुआ कहो। सर्वप्रथम पहली बार कृष्ण वृंदावन आए, दीपावली के दिन की बात चल रही है। कृष्ण यमलार्जुन वृक्षों का उद्धार किए। हम तो उद्धार किए वगैरा की बात करते हैं। लेकिन गोकुल वासियों का जो उन वृक्षों के उद्धार के अंतर्गत या उसके कारण जो हलचल मच गई। सारे ब्रजवासी गोकुल वासी चिंतित थे। यह आतंकवाद बढ़ रहा है टेरेरिस्ट अटैक हो रहे हैं ऐसा ही उन्होंने सुना, सुना नहीं समझा। उनको पता नहीं था यह दो वृक्ष कैसे और किसने उखाड़े। लेकिन कृष्ण की सुरक्षा हुई यह सब होते हुए भी ऐसे वे समझ रहे थे। तो उस घटना के उपरांत सभा बुलाई गई थी गोकुल में। नंद बाबा ने सभा बुलाई और उसमें विचार विमर्श हो रहा था की यह स्थान तो छोड़ना होगा हमें। पूतना आइ, तृणावर्त आया, छकटासुर आया और पता नहीं आज कौन आया था। तो यहां से प्रस्थान करना है। तो उस इष्ट गोष्ठी में विचार हो रहा था कि हम कहा जा सकते हैं। गोकुल को छोड़कर हमको तो जाना ही है, तो हम कहां जा सकते हैं। उपानंद नंद बाबा के बड़े भ्राता श्री वह तो कब से चिंतित थे। और केवल चिंतित ही नहीं थे वे सोच रहे थे। सोच ही नहीं रहे थे वैसे उन्होंने सारे ब्रजमडल का भ्रमण करके एक स्थान का चयन भी किया हुआ था। हां हमें वहां जाना चाहिए, तो उपानंद कहे थे कि हमें वृंदावन में गोवर्धन के निकट जाना चाहिए। हरी हरी। तो गोवर्धन की उपयोगिता को ध्यान में रखते हुए उपानंद जी का यह प्रस्ताव था कि हमें गोवर्धन के निकट जाकर रहना चाहिए। क्योंकि यह गोवर्धन क्या करने वाला है? क्या कर सकता है? पानीयसूयवसकन्दरकन्दमूलै: यह जो वचन है गोपियों का वेणु गीत में तो उसमें गोपियों ने क्या कहा? गोवर्धन क्या करता है? पानीय यहां पानी की बहुत बड़ी व्यवस्था है, यहां कई सारे प्रपात है वॉटर फॉल्स, कई झरने हैं, कुंड हैं। और सूयवस यहा बढ़िया घास है। तो नंद महाराज का और और गोकुल वासियों का जो धन है गोधन। जब धन की बात होती है वृंदावन में तो ब्रज वासियों का धन है गोधन गाय ही धन है। तो हम उस गोवर्धन के पास जाएंगे तो गौ का क्या होगा वर्धन गोवर्धन। यह गोवर्धन वर्धन करेगा गाय का वर्धन करेगा। हमारी गाय के रूप में जो संपत्ति है वह बढ़ेगा वर्धन होगा। गोवर्धन क्या करेगा गायों को हष्टपुष्ट रखेगा। सच ही तो कहा है गोवर्धन। इस पहाड़ का नाम गोवर्धन प्रसिद्ध नाम है क्योंकि यह गायों की पुष्टि करता है। गायों के लिए यह गोवर्धन गोचारण भूमि भी है या क्षेत्र है। यहां कृष्ण गायों को चराने के लिए ले जाते हैं। यह गोवर्धन एक शोभनिय, रमणीय, दर्शनीय स्मरणीय स्थल है। हरि हरि। जहां यह गोचरण लीलाएं भी संपन्न होती है। मित्रों के साथ खेलने के लिए यह जिसको हम सीनिक स्पॉट कहते हैं जहां जहां लोग जाते हैं पिकनिक के लिए पिकनिक स्पॉट। तो मित्र भी वहां गायों को ले जाते हैं जहां कृष्ण भी होते हैं बलराम होते हैं। यद् रामकृष्णचरणस्परशप्रमोद: और रामकृष्ण जब चढ़ते हैं वे तो चढ सकते हैं, हम चढ़ नहीं सकते। वे चढ़ते हैं जब गोवर्धन के ऊपर तो अपने चरण के स्पर्श से गोवर्धन को रामकृष्णचरणस्परशप्रमोदः गोवर्धन प्रसन्न होता है।उसके रोमांच खड़े होते हैं वृक्ष के रूप में। हरि हरि। इसकी गुफाएं भी है, गुफा में विश्राम करते हैं। बाहर गर्मी है, तो फिर अपने मित्रों के साथ कृष्ण कन्दरकन्दमूलै: गुफा में प्रवेश करते हैं। बाहर तो गरमा गरम मामला है लेकिन गुफा में जाते ही सभी जगह शीतलता है, नैसर्गिक ऐसी व्यवस्था है। तो वहा विश्राम करते हैं कृष्ण। और गोवर्धन क्या करता है? गायों के लिए भी घास की व्यवस्था है। और मित्रों के लिए गोवर्धन पर कन्दरकन्दमूलै कई कंद मूल फल यह गोवर्धन देता है। फुल भी देता है फल भी देता है। पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्याा प्रयच्छति जिसको कृष्ण कहें। यहां पत्रं प्राप्त है गोवर्धन में। पत्रं पुष्पं फलं तोयं तोयं मतलब जल। अर्पित करो कृष्ण को प्रीति पूर्वक। तो फिर कहो की गोवर्धन अपना पत्रं पत्ते कई प्रकार के शायद उसकी कुछ सलाद के रूप में भगवान स्वीकार कर रहे हैं। पुष्पम वहां के खिले हुए पुष्प है उसी की माला बनाते हैं और फिर कृष्ण वनमाली बन जाते हैं। वनके कुछ पुष्प भी है कुछ पत्ते भी होते हैं उसकी माला बनाते हैं और अर्पित की जाती है। फलं वहां पर कई सारे पहाड़ी इलाकों में और भी कई भिन्न भिन्न प्रकार के वृक्ष उगते हैं और यह फल प्रदान करते हैं, मतलब गोवर्धन ही फल दे रहा है। तोयं मतलब जल तो प्रचुर मात्रा में वहां है। उसकी शोभा भी देखो वॉटर फॉल्स। लोग वॉटर फॉल्स देखने के लिए जाते हैं यहां जाते हैं वहां जाते हैं बेशक इतने सारे वॉटरफॉल्स नहीं है। लेकिन गोवर्धन में वाटरफॉल्स ही वॉटरफॉल्स। उसको देखते भी है इसीलिए हमने कहा दर्शनीय, गोवर्धन दर्शनीय है देखने योग्य है। वहां रमन करने योग्य है तो रमणीय है। शोभनीय है और स्मरणीय है स्मरण करने योग्य है जैसे अभी हम स्मरण कर ही रहे हैं, गोवर्धन का स्मरण कर रहे हैं। कितना शोभनीय है रघुनाथ दास गोस्वामी कहते हैं कि यह गोवर्धन वृंदावन का तिलक है। हम भी जब तिलक पहनते हैं तो हमारी शोभा बढ़ती है। यह शरीर एक मंदिर है, उसकी शोभा हम बढ़ाते हैं तिलक पहन के। कई सारे स्थानों पर तिलक और फिर फाइनली भाल पर भाले चंदन तिलक मनोहर। ब्रज मंडल ने वृंदावन ने यह तिलक पहना हुआ है और वह ब्रजमंडल का तिलक है गोवर्धन। वैसे रघुकुल तिलक कहते है, रघुकुल के तिलक कौन है? जय श्री राम। इसीलिए रघुकुल तिलक श्री राम सारे कुल की शोभा बढ़ाने वाले श्री राम रघुकुल तिलक। तो ब्रज के तिलक है यह गोवर्धन। उसकी शोभा का क्या कहना? यह जो गोवर्धन है जिसको सेटिंग द सीन कहते हैं। यहां तो सीन वैसे सेट है। कई प्रकार के सेट्स है, जब मूवी बनती है तो हर मूवी के निर्माण के समय प्रोडक्शन के समय कई प्रकार के सेट्स सीन्स वह खड़े कर देते हैं। तो यहां गोवर्धन में कुदरती नैसर्गिक रूप से कहीं सारे मंच है या सीन्स है या सेट्स है। कई भिन्न-भिन्न प्रकार की लीलाएं संपन्न हो सकती है। यह रास क्रिडा की स्थली भी है यह गोवर्धन। हरि हरि। वहां दानघाटी है जहां कृष्ण एंड कंपनी गोपीयो से और राधा से टैक्स कलेक्ट करते हैं। तो यह श्रृंगार लीला की स्थली भी है यह गोवर्धन। रासस्थली भी है यह गिरीराज गोवर्धन। रास क्रीडा या माधुर्य लीला संपन्न और भी स्थानों पर होती ही होगी लेकिन फिर राधा कुंड के तट पर माधुर्य लीला प्रतिदिन संपन्न होती है। आप अब तक समझ गए होंगे, मध्यान्ह के समय श्री कृष्ण की माधुर्य लीला संपन्न होती है। गोचारण लीला के लिए गए थे तो गोवर्धन में ही गायें चर रही है। तो कृष्ण वहां से गायब होते हैं या पलायन करते हैं या कुछ बहाना बनाकर मित्रों को कहते हैं, अभी अभी आता हूं। तो मित्र गाय चरा रहे हैं गोवर्धन मैं या और कोई वन में भी हो सकता है। लेकिन गोवर्धन और वहां से कृष्ण फिर राधाकुंड जाते हैं। निश्चित रूप से राधा कुंड गोवर्धन का एक भाग है। राधा कुंड गोवर्धन का ही एक अंग है। गोवर्धन ही है राधा कुंड श्याम कुंड। या गोवर्धन की आंखें हैं और वहां गोवर्धन का मुख है जहां राधा कुंड और श्याम कुंड है। और गोवर्धन एक मयूर के रूप में या उसने मयूर का रूप धारण किया है ऐसी भी समझ है। तो मयूर का मुख है, गोवर्धन का मुख है जहां राधा कुंड श्याम कुंड है। और फिर पूछ है पूछरी का लोटा बाबा। हम लोग परिक्रमा करते हुए जाते हैं, फिर दक्षिण दिशा में जो स्थान है आखिरी स्थान जहां से हम यू टर्न लेते हैं जतीपुरा की ओर। वहा पूछरी का लोटा बाबा अपनी लाठी लेकर बैठे हैं। और वैसे ऐसी भी समझ है कि वे नोट करते रहते हैं कौन-कौन परिक्रमा में आए हैं ओ यह भी आ गया यह भी आ गया। वे रिपोर्टिंग करते हैं फिर कृष्ण को यह लोग आए थे नागपुर से, सोलापुर से, कोल्हापुर से, यहां से, वहां से। गोवर्धन पहाड़ को धारण करने वाले तो गिरिराज धरण श्री कृष्ण ही थे। लेकिन कुछ लोग थोड़े चिंतित थे कि कितने दिनों से धारण किए है इस गोवर्धन को कृष्ण, शायद थके होंगे। अब थकेंगे तो हो सकता है गोवर्धन नीचे आ सकता है। और फिर क्या होगा हमारा चलो थोड़ा सहायता करते हैं कृष्ण को। कईयों ने अपनी अपनी लाठी लेकर वे भी गिरधारी बनना चाह रहे थे, भूमिका निभा रहे थे। तो उसमें से लौटा बाबा भी एक थे, जिन्होंने अपनी लाठी से गोवर्धन को धारण किया। फिर यह लोग सोच रहे थे यह तो छोटा बच्चा है, हम बड़े बुजुर्ग हैं, पहलवान हैं, बलवान हैं। इसको धारण करने वाले तो हम ही हैं। कृष्ण ने उनके मन को पढ़ा, और फिर कृष्ण ने अपना हाथ थोड़ा नीचे लेकर हाथ घुमाते हुए कुछ कर रहे थे। शायद कुछ एक मिली मीटर नीचे और 1 इंच नीचे लेकर हाथ घुमा रहे थे। तो फिर सब समझ गए उनकी लाठियां टूट रही थीऔर कमर भी टूट रहे थे वे गिर रहे थे फिर वे कहने लगे नहीं हम नहीं हम नहीं गिरिराज धारण करने वाले तुम ही हो। बाकी तो मनुष्य थे, जैसे हम, आप हैं। हम क्या कितना बोझ धारण कर सकते हैं। यही तो बात है.. कृष्णस तू भगवान स्वयं। यह भी सिद्ध किया भगवान ने गोवर्धन धारण करके। तो आप कितना बोझ उठा सकते हैं? शायद 20 किलो 50 किलो.. हां कितना उठा सकते हो आप? तो ब्रजवासी भी उतना ही उठा सकते हैं। वे भी जीवात्मा है, भक्त है। लेकिन भगवान ही इस पहाड़ को उठा सकते हैं, उठाएं। हम तो पत्थर को भी नहीं उठा सकते, लेकिन भगवान ने पहाड़ को उठा लिया। जो 16 मिल ऊंचा गोवर्धन पहाड़ था और 21 किलोमीटर इसकी परिक्रमा है। और वैसे गोलोक में भी गोवर्धन है उसको शतश्रृंग कहते हैं। श्रृंग मतलब शिखर सौ शिखर वाला गोवर्धन। और यह भी वैसा ही है हम को दिखता नहीं है या हम पूरा दर्शन नहीं कर पाते या दर्शन नहीं होता है हमें। तो जो वहां है वही यहां पर भी है। इसीलिए राधा ने कहा था मैं वहां नहीं जाऊंगी जब उनके प्राकट्य का संभवामि युगे युगे समय आया था। राधा रानी ने कहा था, मैं वहां नहीं जाऊंगी जहां क्या नहीं है? वृंदावन नहीं है, यमुना नहीं है और विशेष रूप से गोवर्धन नहीं रहता है। मुझे ऐसी जगह से कुछ लेना देना नहीं है। तो कृष्ण ने कहा था हां हां वहां सब कुछ है, सब कुछ प्रकट हो रहा है प्रकट किया गया है। सीन सेट है चलो चलते हैं। तो फिर कृष्ण पहले प्रकट हुए और पीछे से 1 साल के बाद राधारानी भी प्रकट हुई। और फिर जब वे बड़े होते हैं तो इस गोवर्धन के तलहटी में, गोवर्धन के शिखर पर, गोवर्धन का जो मुख है श्यामकुंड राधाकुंड वहा भी खुब राधा कृष्ण की लीलाएं संपन्न होती है। आज भी होती है। तो 5000 वर्ष पूर्व के वृंदावन में कई सारे परिवर्तन, बदलाव आ जाते हैं। स कालेनेह महता योगे नष्टः परन्तप कालका ऐसा प्रभाव। तो भी ऐसी समझ है कि कृष्ण के समय के तीन आइटम तो आज भी मौजूद है। और वह है यमुना मैया की जय नंबर वन और ब्रज की रज वही की वही आज भी है और तीसरा है गोवर्धन गिरिराज गोवर्धन की जय। हरि हरि। तो गोवर्धन वैसे हमारी रक्षा कर रहा है। ऐसे गोवर्धन की आज पूजा का दिन है। जो पूजा स्वयं श्री कृष्ण ने समझाया बुझाया नंद महाराज और बुजुर्ग ब्रज वासियों को। और छोड़ दो यह इंद्र पूजा। तो जो प्रवचन, भाषण, उपदेश अर्जुन को देने वाले थे कुरुक्षेत्र के मैदान में। उसी का कुछ भाषण कृष्ण सुनाए थे.. कामैस्तैस्तैर्हृतज्ञाना: प्रपद्यन्तेऽन्यदेवता: अपनी कामवासना की पूर्ति के लिए उनका यह हेतु होता है, देवी देवताओं की पूजा के पीछे। तो फिर कृष्ण कह रहे थे कि यह छोड़ दो और तुमने जो सामग्री इस साल भी शॉपिंग वगैरह की हैं। कल के दिन अमावस्या थी, इंद्र पूजा की तैयारी हो रही थी। तो कृष्ण ने कहा कि यही जो सामग्री आपने इकट्ठी की हुई है इसका उपयोग करो गोवर्धन पूजा के लिए। सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज इंद्र पूजा, यह पूजा, वह पूजा, यह सब यह धर्म, यह कर्म इसको सब त्यागो। यह कर्मकांड और ज्ञानकांड इत्यादि क्या करो? मामेकं शरणं व्रज। तो व्रज मतलब जाना है वैसे लेकिन व्रज मतलब ब्रज मंडल भी है या ब्रज मतलब वृंदावन भी है। और सारे धर्म कर्म छोड़ो और क्या करो वृंदावन जाओ। ऐसा ही भाव निकालते है कुछ ब्रजवासी भक्त। मामेकं शरणं व्रज मतलब ब्रज वृंदावन जाओ बहुत हो गई दुनियादारी इत्यादि वृंदावन जाओ या फिर गोवर्धन जाओ। और आज गोवर्धन की पूजा करो, आप सभी को गोवर्धन पूजा करनी है। इस्कॉन मंदिरों में जाओ भक्तों के साथ गोवर्धन पूजा मनाओ। या फिर आप अपने अपने घरों में भी गोवर्धन का पहाड़ या अन्नकूट बना सकते हो। फिर अर्पित करो वह अन्नकूट गोवर्धन को। तो आज के दिन गोवर्धन की सर्वप्रथम पूजा हुई और उस पूजा में कृष्ण बलराम भी उपस्थित थे या कृष्ण बलराम भी बन गए पुजारी। और सभी ब्रज वासियों के साथ उन्होंने गोवर्धन की पूजा की। फिर आज के दिन सभी ने वह पूजा की सामग्री जो भी अर्पित कर रहे थे अन्नकूट। अन्न का पहाड़ बनाया उन्होंने। इतने सारे पकवान्न, भोजन सभी अर्पित कर रहे थे ब्रजवासी गोवर्धन को। और गोवर्धन उसका भक्षण कर रहे थे या आस्वादन कर रहे थे। आनीओर आनीओर की बात चल रही थी। वह स्थान भी है गोवर्धन परिक्रमा करते हैं तो एक आन्यौर नाम का एक ग्राम है। वही तो स्थान है गोविंद कुंड के पहले। राधा कुंड से जब हम जाते हैं गोविंद कुंड की ओर तो गोविंद कुंड से थोड़ा पहले एक गांव आता है आन्यौर। तो वही अन्नकूट महोत्सव, गोवर्धन पूजा महोत्सव संपन्न हुआ। आनीओर आनीओर और ले आओ और ले आओ।और ऐसे कहने वाले गोवर्धन मूर्तिमान भगवान बन गए, इस गोवर्धन को ही अपना रूप बनाए। फिर उन्होंने कहा भी शैलोस्मि शैलोस्मि यह गोवर्धन पहाड़ या शीला मैं हूं। ऐसा कहने वाला मुख मंडल और ऐसा रूप सभी ब्रज वासियों ने देखा। वे आश्चर्यचकित हुए और वे आनंदित भी हुए देखकर गोवर्धन भगवान को। तो यह सब आज के दिन हुआ। कई सारे जो विशेष स्थली है उसकी परिक्रमा करने वाले भक्त परिक्रमा करते समय अलग-अलग स्थानों पर उसी गोवर्धन की शीलाए लेकर एक छोटा सा भवन बनाते हैं। पत्थर रखते हैं एक दो और ऊपर से शीला रख दी छत के रूप में। और फिर प्रार्थना करते हैं मोर एइ अभिलाष, विलासकुंजे दिओ वास हे गोवर्धन जब यह शरीर नहीं रहेगा त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति जब होगा तब मुझे आपके तलहटी में हे गोवर्धन या यहां आपकी कुंज भी है तलहटिया है, तो यही मुझे वास दीजिए। मैं स्वर्ग का वास नहीं चाहता हूं मैं ब्रजवास चाहता हूं। ब्रजवास में भी गोवर्धन के निकट मुझे मेरा वास निवास हो। तो ऐसा छोटा सा निवास बनाकर गोवर्धन की शीलाओ से भक्त प्रार्थना करते हैं। गोवर्धन को प्रार्थना करते हैं, भगवान को प्रार्थना करते हैं कि मुझे यही वास निवास दीजिए। हरि हरि। ठीक है, बरसाना जाने का समय हो चुका है। हरे कृष्ण।

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