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जप चर्चा 3 मार्च, 2022 मायापुर धाम से नमः ॐ विष्णु पादय, कृष्ण पृष्ठाय भूतले, श्रीमते भक्ति वेदांत स्वामिन इति नामिने । नमस्ते सरस्वते देवे गौर वाणी प्रचारिणे, निर्विशेष शून्य-वादी पाश्चात्य देश तारिणे ।। श्री कृष्ण चैतन्य, प्रभु नित्यानंद, श्री अद्वैत, गदाधर, श्रीवास आदि गौर भक्त वृन्द ।। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। आप सब का स्वागत है। मायापुर धाम की जय। मैं सोच रहा था कि मैं मायापुर में जप कर रहा हूँ और आप भी मेरे साथ जप कर रहे थे मतलब आप भी मायापुर में ही जप कर रहे थे। यू चेटिंग विथ मी, मैं जहां हूँ आप भी वहां जप कर रहे थे या अभी आप मायापुर में ही हो। मुझे अगर आप देख रहे हो या सुन रहे हो, मायापुर से मैं आपके साथ वार्तालाप कर रहा हूँ। जप कर रहा था अब कुछ वार्ता होगी वार्ता मतलब न्यूज़। मैं यहां मायापुर उत्सव में सम्मिलित होने के लिए पहुंचा हूँ। मैं फोर्टी नाईन्थ टाइम यह मेरी मायापुर की उनचास वीं भेंट है। श्रील प्रभुपाद और गौरांग महाप्रभु की अहेतु की कृपा का ही फल है कि मुझे भगवान और श्रील प्रभुपाद बारंबार मायापुर ले आते हैं। मायापुर धाम की जय। श्री गौड़ मंडल भूमि, जेबा जाने चिंतामणि तार होए ब्रज भूमे वास (भजन - नरोत्तम दास ठाकुर द्वारा कृत) अनुवाद – श्री गौर मंडल भूमि को जो चिंतामणि के रूप में जानता है, वह ब्रजभूमि में वास करता है। ऐसा कहा गया है यह चिंतामणि धाम है, वृंदावन चिंतामणि धाम है। यह धाम वृंदावन से अभिन्न है। यह भी चिंतामणि धाम है, नाम चिंतामणि। नाम भी चिंतामणि का बना हुआ है। नाम चिंतामणि कृष्णस्य,चैतन्य रस विग्रह। पूर्ण शुद्धो नित्य मुक्तो,अभिन्न त्वान्नाम नामिनोह।। ( चैतन्य चरितामृत मध्य लीला 17.133) अनुवाद - कृष्ण का पवित्र नाम दिव्य रूप से आनंदमय है । यह सभी आध्यात्मिक आशीर्वाद प्रदान करता है, क्योंकि यह स्वयं कृष्ण हैं, सभी सुखों के भंडार हैं। कृष्ण का नाम पूर्ण है, और यह सभी दिव्य मधुरों का रूप है । यह किसी भी परिस्थिति में भौतिक नाम नहीं है, और यह स्वयं कृष्ण से कम शक्तिशाली नहीं है । चूंकि कृष्ण का नाम भौतिक गुणों से दूषित नहीं है, इसलिए इसके माया के साथ शामिल होने का कोई सवाल ही नहीं है । कृष्ण का नाम हमेशा मुक्त और आध्यात्मिक है; यह कभी भी भौतिक प्रकृति के नियमों द्वारा वातानुकूलित नहीं होता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि कृष्ण और कृष्ण के नाम स्वयं समान हैं । यहां पर इस वर्ष राधा माधव गोल्डन फेस्टिवल मनाया जा रहा है, स्वर्ण महोत्सव। यह इस्कॉन का पचासवां हरे कृष्ण उत्सव है। 1972 में श्रील प्रभुपाद पहले भी मायापुर आए थे लेकिन अपने विश्व भर के शिष्यों को लेकर पहली बार यहां आए थे गौर पूर्णिमा महोत्सव संपन्न करने के लिए। सारे संसार को या नवद्वीप मायापुर वासियों को और उनके गुरु बंधुओं को यह दर्शाने, दिखाने के लिए कि श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु की भविष्यवाणी सच हो चुकी है। पृथिवीते आचे यता नगरादि-ग्राम सर्वत्र प्रचार होइबे मोरा नाम (चैतन्य भागवत अंत्य खंड 4.126) अनुवाद - दुनिया की सतह पर जितने कस्बे और गांव हैं, वहां सभी जगह मेरा नाम प्रसारित किया जाएगा। यह जो भविष्यवाणी श्रीमन महाप्रभु कि देख लो यह अमेरिका से है, यह जापान से है, यह ऑस्ट्रेलियन भक्त है, यह अफ्रीका के हैं और इसी धाम में गौर नित्यानंद प्रभु ने जगाई मधाई का उद्धार किया था। श्रील प्रभुपाद दर्शा रहे थे अमेरिकन, यूरोपियन, ऑस्ट्रेलियन, कैनेडियन और जगाई मधाई एक समय के अब जगाई मधाई नहीं रहे अब वे वैष्णव बन चुके हैं। ब्रजेन्द्र नंदन जेई, शची सुत होइलो सेई, बलराम होइलो निताई। दीन हीन जत छिलो, हरिनाम उद्धारिलो टार शाक्षी जगाई मधाई ।। (भजन - नरोत्तम दास ठाकुर द्वारा कृत) अनुवाद – जो ब्रजेन्द्र नंदन कृष्ण थे वे ही शची माता के पुत्र (चैतन्य महाप्रभु ) बन गए और बलराम निताई बन गए है। हरिनाम ने दीन हीन सबका उद्धार किया। जगाई और मधाई नाम के दो महापापी इसका प्रमाण हैं। दीन हीन पतितों को हरी नाम पावन बनाता है। तार साक्षी उस गीत में तो कहा है इस के साक्षी जगाई मधाई लेकिन श्रील प्रभुपाद और बहुत सारे गवाह या साक्षी हैं कि हरि नाम दीन हीन पतितों को पावन पवित्र बनाता है, वैष्णव बनाता है। इसका प्रूफ क्या है? यह इसका प्रूफ है। प्रभुपाद मानों दिखा रहे थे, दर्शा रहे थे। हरि नाम का नाम्नामकारि बहुधा निज-सर्व-शक्तिस् तत्रार्पिता नियमितः स्मरणे न कालः । एतादृशी तव कृपा भगवन्ममापि दुर्दैवमीदृशमिहाजनि नानुरागः ।। (चैतन्य चरितामृत अन्त्य लीला 20.16) अनुवाद- हे प्रभु, हे पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान, आपके पवित्र नाम में जीव के लिए सर्व सौभाग्य निहित है, अत: आपके अनेक नाम हैं यथा कृष्ण तथा गोविन्द, जिनके द्वारा आप अपना विस्तार करते हैं। आपने अपने इन नामों में अपनी सारी शक्तियाँ भर दी हैं और उनका स्मरण करने के लिए कोई निश्चित नियम भी नहीं हैं। हे प्रभु, यद्यपि आप अपने पवित्र नामों की उदारतापूर्वक शिक्षा देकर पतित बद्ध जीवों पर ऐसी कृपा करते हैं, किन्तु मैं इतना अभागा हूँ कि मैं पवित्र नाम का जप करते समय अपराध करता हैं, अतः मुझ में जप करने के लिए अनुराग उत्पन्न नहीं हो पाता है। हरि नाम में जो शक्ति है और हरी नाम कैसे उद्धार कर सकता है? और प्रभु नित्यानंद ने जगाई मधाई का इसी धाम में उधार किया तो उन्हीं का यह आंदोलन इस्कॉन श्री कृष्ण अंतरराष्ट्रीय कृष्ण भावनामृत संघ सारे विश्व में विश्व भर के जगाई मधाई का उद्धार कर रहा है। इसका दर्शन, प्रदर्शन प्रभुपाद मानो 1972 में कर रहे थे, हरि हरि। उसी समय ऑफिशियली श्रील प्रभुपाद ने उस उत्सव को संपन्न करते हुए नवद्वीप मायापुर धाम का लोकार्पण या जगत अर्पण किया सारे संसार को इंटरड्यूज कराया, परिचय कराया। नवद्वीप धाम की जय। । धीरे-धीरे प्रभुपाद भी यहां इस्कॉन के हेड क्वार्टर की स्थापना करेंगे और संसार भर के देश विदेश के भक्तों को यहां आमंत्रित करेंगे। मायापुर उत्सव के समय और भी समय आ सकते हैं। इस प्रकार श्रील प्रभुपाद ने यह धाम का जो रहस्यमई है इस रहस्य का उद्घाटन किया, इस धाम का परिचय दिया सारे संसार को और उसी उत्सव में राधा माधव विग्रह की आराधना भी प्रारंभ हुई। यह एनिवर्सरी या वार्षिक उत्सव 50 वां वार्षिक उत्सव मनाया जा रहा है। राधा माधव गोल्डन माधव महोत्सव यहां राधा माधव भी पधारे उनकी आराधना प्रारंभ हुई, उसका भी उत्सव है और तब से कई भक्तों ने धाम की सेवा में अपना सब कुछ न्यौछावर किया है, मायापुर प्रोजेक्ट की सेवा में तो उनका भी स्मरण किया जा रहा है और उनकी भी गौरव गाथा गाई जा रही है जैसे - जय पताका स्वामी महाराज डे वन से या उत्सव नंबर एक से वे यहीं है। उससे पहले वे कोलकाता में थे इस्कोन कोलकाता के टेंपल प्रेसिडेंट थे। जब मायापुर में इस्कॉन की स्थापना हुई तो उनको यहां ट्रांसफर किया गया और जय पताका महाराज तब से ‘मैं तुमको यह आध्यात्मिक जगत दे रहा हूँ आई एम गिविंग यू किंगडम ऑफ गॉड यहां और विकास करो इसको सजाओ’ ऐसा आदेश प्रभुपाद ने जय पताका महाराज को दिया। जन निवास प्रभु श्री राधा माधव के पहले पुजारी रहे और अब तक वे पुजारी है ही तो पिछले 50 वर्षों से जन नीवास प्रभु राधा माधव की आराधना अर्चना कर रहे हैं, और भी सारे भक्त, अधिक तो भक्त नहीं थे संख्या कम ही थी 50 वर्षों से जो इस धाम के साथ, धाम की सेवा में जुड़े हुए हैं। मेरा संबंध तो थोड़ा फेस्टिवल लिमिटेड ही रहा, उत्सव से मर्यादित ही रहा। 1972 का जो पहला उत्सव प्रभुपाद ने मनाया वह तो मैंने मिस किया, वैसे मिस नहीं किया क्योंकि श्रील प्रभुपाद ने यहां उत्सव मनाया 1972 में मायापुर में गौर पूर्णिमा के समय ये गौर पूर्णिमा उत्सव ही मनाया जा रहा था और फिर श्रील प्रभुपाद यहां से उस साल 29 फरवरी 1972 को गौर पूर्णिमा थी तो उसके उपरांत मार्च में श्रील प्रभुपाद बम्बई आये और बम्बई में उन्होंने हरे कृष्ण फेस्टिवल मनाया। जिस फेस्टिवल को मैंने जॉइन किया उस समय तो मैं रघुनाथ भगवान पाटील ही था, मैं कॉलेज स्टूडेंट ही था, तो मिस किया और नहीं भी किया यहां अटेंड नहीं किया लेकिन हरे कृष्ण उत्सव 1972 में बम्बई में जुहू में रहा तो इस प्रकार 49 उत्सव यह और पहला बम्बई में इस प्रकार 50 उत्सव मैंने भी अटेंड किए हुए हैं तो मुझे भी कल पुरस्कार दिया गया। मुझे भी मेडल दिया गया। जो जो विजेता रहे या प्रारंभ से इस प्रोजेक्ट के साथ जुड़े रहे या उत्सव में सम्मिलित होते रहे उन्हें भी पुरस्कार दिए गए। मैं उनका आभारी हूँ , यहाँ की फेस्टिवल कमेटी का भी मैं आभारी हूँ। जय पताका महाराज के साथ को-चेयरमैन हूँ तो वह सेवा मैं मायापुर फेस्टिवल में करते रहता हूँ, मतलब यही वैष्णवों की सेवा, धाम की सेवा, नाम की सेवा इस धाम में करने का अवसर मुझे 49 वीं बार, फोर्टी नाईन्थ टाइम प्राप्त हो रहा है। यह गुरु और गौरांग की अहेतु की कृपा ही है। आप ऑनलाइन देखते जाइए पदममाली प्रभु शायद आपको बता सकते हैं या मायापुर टीवी पर प्रसारण हो रहा है। दिन भर उत्सव संपन्न होते रहते हैं। बहुत सारी बातें और भी है श्री राधा माधव मैं कह ही देता हूँ राधा माधव की सेवा भी मुझे 1973 में जब पहली बार यहां आया तब मैं राधा रासबिहारी का पुजारी था। श्रील प्रभुपाद ने मुझे बम्बई में राधा रासबिहारी का पुजारी और फिर धीरे-धीरे हेड पुजारी बनाया। जन नीवास प्रभु ने मुझे आमंत्रित किया और मैं और जन नीवास प्रभु 1973 में हम राधा माधव की सेवा वे माधव की सेवा करते थे और मुझे राधा रानी की सेवा करने का मौका दिया तो राधा रानी के चरणों की सेवा और सर्वांग की सेवा और उनकी अर्चना, उनका अभिषेक, उनका श्रृंगार इत्यादि इत्यादि सेवा 1973 में मैं कहूँगा जन निवास प्रभु यहां के हेड पुजारी उनकी कृपा से मिला। हम जब राधा माधव की अर्चना में व्यस्त रहते थे। यह मुझे याद है उसी समय श्री प्रभुपाद मॉर्निंग वॉक पर जाया करते थे। इस प्रोजेक्ट के सामने भक्ति सिद्धांत रोड इस रोड का नाम उसी मार्ग पर श्रील प्रभुपाद मॉर्निंग वॉक पर जाते थे और प्रभुपाद लौटते तब राधा माधव के श्रृंगार दर्शन करते। मैं तो राधा रानी की सेवा करते करते श्रील प्रभुपाद का खूब स्मरण किया करता रहता था कि प्रभुपाद वहां होंगे, वहां पहुंचेंगे होंगे, ब आते ही होंगे फिर भक्त लोटस बिल्डिंग उस समय एक ही बिल्डिंग थी इसका नाम लोटस बिल्डिंग था। 1972 में तो प्रभुपाद कुटीर में ही रहा करते थे। प्रभुपाद कुटीर वही उत्सव संपन्न हुआ लेकिन 1973 में जब हम आए फेस्टिवल के लिए तो प्रभुपाद लोटस बिल्डिंग में सेकंड फ्लोर पर रहते थे। इस बिल्डिंग के सामने भक्त कीर्तन करके श्रील प्रभुपाद का का स्वागत किया करते थे जिससे मैं जान जाता था कि प्रभुपाद पहुंच गए है। हम लोग और फटाफट, जल्दी-जल्दी, झटपट बचा हुआ जो श्रृंगार होता उसे पूर्ण करते हुए श्रृंगार दर्शन की तैयारी किया करते थे। श्रील प्रभुपाद बिल्कुल समय पर या समय से पहले पहुंचकर राधा माधव के दर्शन की प्रतीक्षा करते थे, पर्दा खुलते ही जन निवास प्रभु शंख बजाते थे प्रभुपाद पर्दा खोलते थे। प्रभुपाद दंडवत प्रणाम किया करते थे। वृद्धावस्था में भी मैंने तो कभी नहीं देखा कि प्रभुपाद ने विग्रह के सामने कभी पंचांग प्रणाम किया, हमेशा पूरा साष्टांग दंडवत प्रणाम। तीन ऑल्टर हैं तो हर ऑल्टर के समक्ष दंडवत प्रणाम किया करते थे। आज जगन्नाथ दस बाबाजी का तिरोभाव तिथि महोत्सव भी है । आज के दिन वे समाधिस्थ हुए और वो समाधि है नवद्वीप एक टाउन भी है, नगर भी है गंगा के उस पार वहां उनकी समाधि हैं। वे 1894 में समाधिस्थ हुए। श्रील प्रभुपाद के जन्म के 2 वर्ष पूर्व जगन्नाथ दास बाबाजी का तिरोभाव या डिसअपीरियंस उस साल भी संपन्न हुआ और हर साल संपन्न होता है और इस साल भी हो रहा। गौडिय वैष्णव जगत स्मरण कर रहा है और उनके गौरव गाथा सारे विश्व भर में गाई सुनी जा रही है। गौराविर्भाव भूमेस्त्वं निर्देष्टा सज्जन प्रियः। वैष्णव सार्वभौमः श्रीजगन्नाथाय ते नमः।। ( जगन्नाथ दास बाबाजी महाराज प्रणाम मंत्र) अनुवाद – मैं उन जगन्नाथ दास बाबाजी महाराज को सादर नमन करता हूँ जो समस्त वैष्णव समुदाय द्वारा सम्मानित हैं तथा जिन्होंने गौरांग महाप्रभु की आविर्भाव भूमि की खोज की थी। वैष्णवों में वे सार्वभौम, श्रेष्ठ थे। यह प्रणाम मंत्र भी हम उनके चरणों में करते हैं। इस समय वे वृंदावन में साधन भजन कर रहे थे । वैसे वह साधन सिद्ध थे, सिद्ध महात्मा, साक्षात कार्य पुरुष थे। राधा कुंड के तट पर वे अष्ट कालीय लीला स्मरण, लीला प्रेम में तल्लीन रहा करते थे। वृंदावन से वे मायापुर नवद्विप आ जाते हैं नॉर्मली तो मायापुर से वृंदावन जाना होता है या जाते हैं लेकिन वह वृंदावन से मायापुर आ गए। गौर किशोर दास बाबा जी महाराज वृंदावन में पहले रहा करते थे, अपना साधन भजन किया करते थे। अब वे भी मायापुर आए थे। जगन्नाथ दास बाबा जी महाराज श्रील भक्तिविनोद ठाकुर के शिक्षा गुरु रहे या भक्ति विनोद ठाकुर को यदि आप अगर हल्का सा जानते हो, उनकी महिमा जानते हो तो वे उनके गुरु हैं जिनको उन्होंने इनके चरणों का जिन्होंने आश्रय लिया वे श्री जगन्नाथ दास बाबा जी महाराज कितने महान होंगे? 1891 में जगन्नाथ दास बाबा जी महाराज जब बंगाल आए तो अंग्रेजों के जमाने कि बात है, आप याद रखें 1891 की बात है। भक्ति विनोद ठाकुर जगन्नाथ दास बाबा जी महाराज से पहले 1880 में मिले थे। अब उनकी मुलाकात वर्धमान नाम का बंगाल में एक जिला है वही हुई थी। श्रील भक्तिविनोद ठाकुर उस समय वे केदारनाथ दत्त ही थे वे एकादशी के दिन वर्धमान गए और एकादशी की रात्रि जगन्नाथ दास बाबा जी के सानिध्य में बिताई, हरि कीर्तन और हरि कथा में मग्न जगन्नाथ दास बाबा जी महाराज का अंग संग उस रात्रि को उनको प्राप्त हुआ। एकादशी का दिन था हरि वासर कहते हैं, हरि वासर वासर मतलब वा या दिन जैसे सोमवार को सोमवासर, रविवार या रविवासर, एक हरी वासर भी है एकादशी तो हरि वासर भी कहते हैं। भक्ति विनोद ठाकुर जगन्नाथ दस बाबाजी के महाराज के सानिध्य में रात बिताई और फिर दूसरे दिन प्रभात फेरी या नगर संकीर्तन जो हो रहा था तो उसका नेतृत्व भी जगन्नाथ दास बाबा जी महाराज ही कर रहे थे, तो उस कीर्तन में भी, रात्रि में भी उन्होंने अनुभव किया ही था। साधु-संग, 'साधु-संग - सर्व-शास्त्रे काया । लावा-मात्रा साधु-संगे सर्व-सिद्धि हया ।। ( चैतन्य चरितामृत मध्य लीला 22.54) अनुवाद - सभी प्रकट शास्त्रों का निर्णय यह है कि शुद्ध भक्त के साथ एक क्षण की भी संगति करने से व्यक्ति सभी सफलता प्राप्त कर सकता है। इतना सारा संग श्रील भक्ति विनोद ठाकुर को प्राप्त हुआ और नगर संकीर्तन के समय जगन्नाथ दास बाबा जी महाराज के साथ थे। स्पेशली उस नगर संकीर्तन में जगन्नाथ दास बाबाजी के हाव भाव, उनका कीर्तन, नृत्य और उनके द्वारा किया हुआ उद्दंड कीर्तन। उस समय जगन्नाथ दास बाबा जी महाराज की आयु 120 साल थी। उस अवस्था में जगन्नाथ दास जी महाराज ऐसे नृत्य कर रहे थे, कभी जमीन पर लोट जाते लोटांगन होता, अपनी विरह व्यथा को प्रकट करते। हे राधे व्रजदेविके च ललिते हे नन्दसूनो कुतः। श्री गोवर्धन कल्पपादन तले कालिन्दवने कुतः ।। ( श्रीनिवास आचार्य कृत षड गोस्वामी अष्टकम) अनुवाद – हे व्रज की पूजनीय देवी राधिके आप कहाँ हो? हे ललिते आप कहाँ हो? हे ब्रजराजकुमार आप कहाँ हो? श्री गोवर्धन के कल्पवृक्षों के नीचे बैठे हो अथवा कालिंदी के कमनीय कूल पर विराजमान वन समूह में भ्रमण कर रहे हो? यह गौडीय वैष्णवों का वैशिस्ठय है। वे मिलन आनंद का उल्लेख कम ही करते है। मिलन आनंद, दर्शन आनंद, विरह आनंद या व्यथा वो आनंद ही होता हैं उसी को व्यक्त करते रहते है। विप्रलम्भ अवस्था, श्रील भक्ति विनोद ठाकुर ने ऐसा दर्शन कभी व कहीं पर नहीं किया था। उनसे भक्ति विनोद ठाकुर और भी अधिक प्रभावित व लाभान्वित हुए। श्रील भक्ति विनोद ठाकुर ने जगन्नाथ दास बाबाजी महाराज को कीर्तन और सत्संग के लिए गौद्रुम द्वीप में सरस्वती नदी के तट पर स्वानन्द सुखद कुञ्ज नामक जो स्थान जहाँ उनका घर या जहाँ उनकी समाधी हैं, वहां आमंत्रित किया। उन दिनों का वैशिस्ठय ये भी आप नोट कीजिये मैं उल्लेख करता रहता हूँ , ऐसा भी समय था जब भक्ति विनोद ठाकुर के घर में एक ही साथ वहां सत्संग में जगन्नाथ दास बाबाजी महाराज, भक्ति विनोद ठाकुर, गौर किशोर दास बाबाजी महाराज और श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर एक ही बैठक में, एक ही संग में वह एकत्रित रहते थे। ये कुछ वर्षों के लिए चलता रहा । श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर को हम लोग सप्तम गोस्वामी कहते है। वृन्दावन में जैसे षड गोस्वामी एकत्रित होकर nana-sastra-vicaranaika-nipunau sad-dharma-samsthapakau lokanam hita-karinau tri-bhuvane manyau saranyakarau radha-krishna-padaravinda-bhajananandena mattalikau vande rupa-sanatanau raghu-yugau sri-jiva-gopalakau- Sad Gosvami astakam-2 by Srinivas Acarya नानाशास्त्रविचारणैकनिपुणौ सद्धर्मसंस्थापकौ लोकानां हितकारिणौ त्रिभुवने मान्यौ शरण्याकरौ । राधाकृष्णपदारविन्दभजनानन्देन मत्तालिकौ वन्दे रूपसनातनौ रघुयुगौ श्रीजीवगोपालकौ || ( श्रीनिवास आचार्य कृत षड गोस्वामी अष्टकम) अनुवाद - मैं छह गोस्वामी, अर्थात् श्री रूप गोस्वामी, श्री सनातन गोस्वामी, श्री रघुनाथ भट्ट गोस्वामी, श्री रघुनाथ दास गोस्वामी, श्री जीव गोस्वामी और श्री गोपाल भट्ट गोस्वामी को सम्मानपूर्वक प्रणाम करता हूं, जो सभी प्रकट शास्त्रों की जांच में बहुत विशेषज्ञ हैं। सभी मनुष्यों के लाभ के लिए शाश्वत धार्मिक सिद्धांतों की स्थापना के उद्देश्य से। इस प्रकार उन्हें तीनों लोकों में सम्मानित किया जाता है और वे आश्रय लेने के लायक हैं क्योंकि वे गोपियों की मनोदशा में लीन हैं और राधा और कृष्ण की पारलौकिक प्रेमपूर्ण सेवा में लगे हुए हैं। ऐसे उद्देश्य से षड गोस्वामी वृंद वृन्दावन में या राधा दामोदर के परिसर में एकत्रित हुआ करते थे वैसी ही बैठक या सत्संग नवद्वीप मायापुर में भक्ति विनोद ठाकुर के निवास पर हमारे संप्रदाय के जो चार आचार्य हैं, एकत्रित हुआ करते थे । इनका मुख्य सहयोग जगन्नाथ दास बाबाजी महाराज प्रसिद्ध है, भक्ति विनोद ठाकुर चैतन्य महाप्रभु की लीला स्थलियों को ढूंढ रहे थे उनका निर्धारण चल रहा था। उन दिनों में समस्या यह थी कि चैतन्य महाप्रभु का जन्म स्थान है वो कहाँ है? गंगा के पश्चिमी तट पर है या पूर्वी तटपर है? जहाँ इस्कोन है, मायापुर पूर्वी तट पर है। इस प्रकार कई मत मतान्तर चल रहे थे । भक्ति विनोद ठाकुर इस पर रोकथाम लगाना चाहते थे, बस कोई यहाँ कहता हैं, कोई कहता वहां पर है । भक्ति विनोद ठाकुर को थोडा सा अंदाजा था । वे इस पर काफ़ी रिसर्च कर रहे थे । एक दिन उन्होंने जगन्नाथ दास बाबाजी महाराज से सहायता की मांग करी और कहा आप चलिए मुझे आपकी सहायता की आवश्यकता है । जगन्नाथ दास बाबाजी महाराज के लिए चलना मुश्किल था वे उठ भी नहीं सकते थे । बिहारी दास बाबा जो जगन्नाथ दास बाबाजी महाराज को टोकरी में वृन्दावन से लेकर आये थे, उस दिन भी वे उन्हें टोकरी में बिठाकर यहाँ वहां लेकर जा रहे थे, औ रफिर जैसे ही भक्ति विनोद ठाकुर और भी मंडली साथ में थी वे जहाँ योग पीठ हैं जैसे ही वहां पहुचे जगन्नाथ दास बाबाजी महाराज उस टोकरी में से छलांग मार कर गौरंगा- गौरंगा ऐसे पुकार रहे थे, उनका उद्दंड नृत्य वा कीर्तन उस टोकरी में ही होने लगा । श्रील भक्ति विनोद ठाकुर हर्षित हुए और सहमत भी हुए कि चैतन्य महाप्रभु की जन्म स्थली यही होनी चाहिए । गौर महाप्रभु का जन्म भूमि या स्थल को निर्देशित करने वाले जगन्नाथ दास बाबाजी महाराज की जय । वे इस बात के लिए विशेष रूप से प्रख्यात है, अन्यथा हमें इस बात का अभी तक पता भी नहीं चलता कि चैतन्य महाप्रभु कि जन्म स्थली कौन सी हैं? जगन्नाथ दास बाबाजी महाराज को उस स्थान को ढूंढने, स्थापना करने का सारा श्रेय जाता है, घोषणा तो बाद में भक्ति विनोद ठाकुर ने करी और फिर भक्ति विनोद ठाकुर ने उसी स्थान पर जहाँ वर्तमान में मंदिर विद्धयमान है, वहां नीम भी हैं वहां स्थापना का कार्य प्रारंभ किया और भक्ति सिद्धांत ठाकुर के कर कमलों से उस कार्य को पूरा किया या समापन किया, और सारे संसार को योग पीठ प्राप्त हुई । सभी आचार्यों को हमारा दंडवत प्रणाम, श्रील प्रभुपाद, श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर, गौर किशोर दस बाबाजी महाराज, भक्ति विनोद ठाकुर और स्पेशली आज के दिन जगन्नाथ दास बाबा जी महाराज के चरणों में हमारे बारंबार प्रणाम और प्रार्थना भी कि हम सभी को वह शक्ति, बुद्धि, सामर्थ्य दे ताकि यह प्रचार का कार्य है, हरि नाम प्रचार का कार्य अब हमारी बारी है प्रचार करने की इस कार्य को हम सफलतापूर्वक आगे बढ़ाएं । कलि-कालेर धर्म ---कृष्ण-नाम-सड़्कीर्तन। कृष्ण- शक्ति विना नहे तार प्रवर्तन।। (श्रीचैतन्य चरितामृत अन्त्य लीला 7.11) अनुवाद: - कलयुग में मूलभूत धार्मिक प्रणाली कृष्ण के पवित्र नाम का कीर्तन करने की है। कृष्ण द्वारा शक्ति प्राप्त किए बिना संकीर्तन आंदोलन का प्रसार कोई नहीं कर सकता। कलयुग का धर्म है नाम संकीर्तन और कृष्ण शक्ति के बिना इसका प्रचार प्रसार संभव नहीं है तो कृष्ण शक्ति हमको आचार्यों के माध्यम से प्राप्त होती है । आचार्य हमें कृष्ण की शक्ति देते हैं, हमको शक्तिमान या बुद्धिमान या समर्थ बनाते हैं और यह प्रचार प्रसार का कार्य तभी संभव है । आइए हम पुनः पुनः प्रार्थना करते हैं जगन्नाथ दास बाबा जी महाराज के चरणों में कि वह हमें ऐसी शक्ति दे ताकि उन्हीं के कार्य को हम आगे बढ़ा सके । श्रील प्रभुपाद की जय, जगन्नाथ दास बाबा जी महाराज तिरोभाव तिथि महा महोत्सव की जय गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल

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