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हरे कृष्ण. जप चर्चा, 13 नवंबर 2020, पंढरपुर धाम.
हरे कृष्ण, सुवर्णगोपेश सुन रहे हो। सुनने के लिए तैयार हो आप। ठीक है। फिर लूट सके तो लूट लो, राम नाम के हीरे मोती। कृष्ण नाम के हीरे मोती।
हरि हरि इस कार्तिक मास में प्रेम की गंगा बह रही है। ज्योत से ज्योत मिलाकर। प्रेम की गंगा ज्योत से ज्योत। अब दिवाली भी आ रही है तो ज्योत ही ज्योत प्रकाश ही प्रकाश होगा।
हरि हरि, यहां आपका प्रकाश प्राप्त हुआ है तो वह प्रकाश औरो तक पहुंचाओ। आपको कुछ अनुभव हो रहा है कृष्ण भावना में। कृष्णभावना भावित हो रहे हो। आप हो रहे हो कि नहीं? हां, कुछ हो रहा है कि नहीं या सिर्फ रोज की दैनंदिनी चल रही है। हरि हरि और क्या हो सकता है? इतना सारा हो रहा है। दामोदर मास की जय! दामोदर व्रत संपन्न हो रहा है। परिक्रमा हो रही हैं। दीपदान हो रहा है। कृपा की वृष्टि हो रही है। इस कृपा को औरों तक पहुंचा दो।
हरि हरि, गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल! और परिक्रमा तो हो ही रहे हैं। आप परिक्रमा कर रहे हो? हर रोज परिक्रमा कर रहे हो। कहां हो आज? परिक्रमा कहां है? आप मानसिक परिक्रमा, वर्चुअल परिक्रमा करते-करते कहां तक पहुंचे हो? इतना तो याद है कौन से वन में पहुंच गए या ऐसे ही आप संभ्रमित होकर भटक रहे हो। आप वृंदावन में खो गए हो क्या? वैसे पता होना चाहिए वृंदावन में हम कहां हैं। वृंदावन में किस वन में हम हैं। या मैं यह पूछते रहता हूं कहां है? हम वैसे परिक्रमा के अंत में हम पूछते रहते हैं। कहो सारे वनों के नाम कहो जिन जिन वनों कि तुम नहीं यात्रा की। उनका नाम भी तो याद है। वहां की लीला वगैरा की बात अलग है या बाद में हो सकती है। वहां के नाम भी तो याद है जिन बनो कि तुम्हें यात्रा की हैं। तो यह सवाल आपको भी पूछा जाएगा। कहो वंशीबदन ठाकुरजी सारे वनों के नाम कहो कौन-कौन से वन की यात्रा की? ऐसे पूछेंगे आप सुनेंगे।
हम तो ऐसे ही बता रहे हैं। वैसे 30 दिनों में 12 वनों का नाम क्रम से याद होना चाहिए उल्टा सीधा नहीं क्रम से। मधुबन और फिर ताल वन कुमोद वन, बहुला वन वृंदावन और फिर छठवे वनमें पहुंचे हैं हम कामवन। यह कामवन काफी प्यारा और न्यारा वन है। यह एक निश्चित है, परिक्रमा के अंत में आपके साक्षात्कार कहो। कौन सा वन आपको अधिक अच्छा लगा, आपके पसंदीदा वनका नाम बताओ? वैसे कई भक्त कामवन का नाम लेते हैं। कामवन की यात्रा अधिक अविस्मरणीय होती है। कामवनमें जितने दर्शनीय स्थल है उतने और किसी वन में दिखते नहीं। वैसे सारा ब्रजमंडल दर्शनीय स्थलों से भरपूर है। सर्वत्र है दर्शनीय स्थल। किंतु कुछ वनों में यह दर्शनीय स्थल अब लुप्त है। अच्छादित है। तो कुछ वनों में बहुत स्थलीया भी प्रकट है। कई सारे चिन्ह है। वहां लक्षण है। जैसे कई लीलाओं का स्मरण दिलाता है यह कामवन।
हरि हरि इतनी सारे स्थलिया है। तो कामवन की यात्रा हम 2 दिन करते हैं। आज भी होगी। आज अंतर्गत परिक्रमा का वन के अंदर के अंदर परिक्रमा होगी। कल फिर बाहर वाली परिक्रमा होगी।तो भी पूरा नहीं होता सारे दर्शन, हम पूरे नहीं कर पाते। वात्सल्य पूर्ण लीलाए संपन्न हुई। हैं वैसे हम सभी लीलाएं तो नहीं कर पाएंगेँँ यशोदा कुंड तट पर ही हमारा परिक्रमा का पड़ाव रहता हैऋ और यह गोचारण लीला स्थली ही है। कामवन और गोचारण की लीला करते-करते कन्हैया ने यहां भोजन भी किया। कामवन कि भोजन स्थली प्रसिद्ध है। और यहां माधुर्य लीला भी संपन्न हुई है। यहां एक कुंड है जिसका नाम है विमल कुंडृ। ब्रज के प्रसिद्ध कुंडों में से एक कुंड है विमल कुंड। इतनी रास क्रीडा यहां संपन्न हुई। नृत्य होता है तो परिश्रम भी होता है। रास क्रीडा में नृत्य करते-करते पसीने पसीने हो गई गोपियां। पसीने की बूंदे या पसीनो के धाराओं से कुंड बन गया और उस कुंड का नाम हुआ विमल कुंड। विमल कुंड जहां मल नहीं है। विमल कुंड!
हरि हरि, इसी वन में जय राधे, जय कृष्ण, जय वृंदावन, श्री गोविंद गोपीनाथ मदनमोहन कामवन में भी मदनमोहन विग्रह का दर्शन है। मंदिर है। मदन मोहन, राधा गोविंद देव की जय! और राधा गोपीनाथ, यह गौड़ीय वैष्णव के आराध्य देव, आराध्य विग्रह है। इन तीनों के दर्शन यहां है वैसे इन तीनों के दर्शन एक तो वृंदावन में है। मदनमोहन, राधा गोविंद, गोपीनाथ वृंदावन पंचक्रोशी वृंदावन की बात है।
वैसे इन विग्रहो को सुरक्षित स्थान पर ले जाने का प्रयास किया जा रहा था मुसलमानों का यवनों का आक्रमण हुआ था। 500 वर्ष पूर्व की बात है। वह मूर्तियों को तोड़ते फोड़ते क्या-क्या करते हैं। यह विग्रह पहले पंचक्रोशी वृंदावन में थे, फिर राधा कुंड में लाए। तो यह तीनों मंदिर राधा कुंड में भी है फिर वहां से कामवन में लाए सुरक्षित रखने के उद्देश्य से। वहां सुरक्षित नहीं थे। तो फिर वहां से जयपुर लाए गए। जयपुर के राजा धार्मिक थे। धर्म रक्षक थे। तो उनके आश्रय पहुंचाए गए सारे विग्रह को। तो आपको दर्शन होगा राधा गोविंद जो मूल विग्रह है। राधा गोविंद की मूल विग्रह जयपुर में है। और मदन मोहन मूल विग्रह जयपुर में थे। फिर वहां से नीम करोली नाम का स्थान है, जयपुर से कुछ ही दूरी पर उधर हैं। वृंदावन में जो राधा कुंड और कामवन में जो विग्रह है उसे प्रतिभू मूर्ति कहते हैं। हरि हरि, परिक्रमा में हम आज आएंगे तो इन सारे मंदिरोंं का दर्शन होगा। वैसे विशेष दर्शन केवल और केवल काम वन में ही होगा। और वह दर्शन है वृंदा देवी का दर्शन। वृंदा देवी की जय! वृंदा देवी को भी सुरक्षित स्थान पर जयपुर ले जाने का प्रयास हो रहा था। लेकिन वृंदा देवी वृंदावन नहीं छोड़ना चाह रही थी। हर प्रयास तो हो रहा था उनको ले जाने का लेकिन वहां टस से मस नहीं हुई। हिंदी में कहावत है वृंदा देवी का मूल दर्शन काम वन में है। और उसी मंदिर में राधा गोविंद के भी दर्शन है। राधा गोविंद और वृंदा देवी। वृंदा देवी जिनका नाम से वृंदावन प्रसिद्ध है। वृंदावन वृंदावन कहते हैं। ८वृंदावनः यहं वृंदावनम्* या वृंदारण्य भी कहते हैं जैसे दंडकारण्य वैसे वृंदारण्य।
दीव्यद्वन्दारण्य-कल्प-द्रुमाध श्रीमद्लागार-सिंहासनस्थौ। श्रीमद्राधा-श्रील-गोविन्द-देवी प्रेष्ठालीभिः सेव्यमानौ स्मरामि ।। (Cc aadi 1.16)
अनुवाद श्री श्री राधा-गोविन्द वृन्दाबन में कल्पवृक्ष के नीचे रत्नों के मन्दिर में तेजोमय सिंहासन के ऊपर विराजमान होकर अपने सर्वाधिक अन्तरंग पार्थदों द्वारा सेवित होते हैं। मैं उन्हें *सादर नमस्कार करता है।*
दीव्यद्वन्दारण्य-कल्प-द्रुमाध वृंदारण्य कि किसी कल्प के अधः के नीचे रत्नवेदी पर विराजमान है श्री श्री राधा गोविंद देव प्रेष्ठालीभिः सेव्यमानौ उनकी सेवा कर रही है, अष्ट सखियां और अन्य गोपियां मंजीरिया। तो ऐसे दृश्य का मैं स्मरण करना चाहता हूं। ऐसी प्रार्थना हम करते रहते हैं, राधागोविंद के चरणकमलोंमें। तो इसी वृंदा देवी के मंदिर में, राधागोविंद देव जी है।
और एक समय या रूप गोस्वामी के समय, षड गोस्वामी यों का जो समय रहा उस समय रूप गोस्वामी प्रभुपाद वृंदावन में राधा गोविंद की आराधना किया करते थे और साथ में उसी मंदिर में वृंदा देवी की भी आराधना होती थी। वैसे हम जब तुलसी की आराधना करते हैं तुलसी का गीत जब गाते हैं श्रीराधा-गोविन्द-प्रेमे सदा येन भासि नमो नमः तुलसी कृष्णप्रेयसी हे तुलसी कृष्ण, कैसी है तुलसी तुलसीकृष्ण या कृष्ण की तुलसी हो तुम तुलसी कृष्ण जैसे राधाकृष्ण तो तुलसीकृष्ण। वैसे तुलसी मतलब वृंदा देवी वृंदा देवी ही तुलसी के रूप में प्रकट होती हैं। तुलसीकृष्ण मतलब वृंदा श्री श्री वृंदाकृष्ण। वृंदा देवी तुलसी की बहुत बड़ी पदवी है लगभग राधा रानी जैसी पदवी है। उसी वक्त तुलसी के साथ भी एक तो राधा रानी के साथ भी विवाह हुआ है भांडीरवन में कृष्ण का और तुलसी के साथ भी इस कार्तिक मास में तुलसी विवाह भी संपन्न होने वाला है। शालिग्राम तुलसी विवाह। यह तुलसी भी एक वल्लभा भार्या है श्रीकृष्ण की। खूब सारी योजना बनाती रहती हैं और मंच खड़े करती है। ताकि उस मंच पर कृष्ण का खेल राधा कृष्ण लीला संपन्न हो। वह एक इवेंट मैनेजर की तरह है। हरि हरि। वृंदा देवी के बिना कोई लीला संपन्न नहीं होती है वृंदावन में। वृंदा देवी की जय। तो ऐसी वृंदा देवी का दर्शन है कामवन मे।
हरि हरि। जैसे हमने कहा कि अधिक दर्शनीय स्थल काम वन में ही है देखेंगे मिलेंगे। तो वैसे ही सबसे अधिक वानर भी कामवन में ही है और वनों की अपेक्षा। कामवन पहुंचते ही आपको वानरों के झुंड के झुंड मिलेंगे। क्या कारण है? इसी वन में वैसे रामेश्वर है और इसी वन में अशोक वाटिका भी है वह अशोक वाटिका श्रीलंका की अशोक वाटिका जहां सीता को एक प्रकार के कारागार में ही कहो बंद रखा था नजरबंद यह अशोक वाटिका है। अब तक तो आप चार धामों में से एक धाम बद्रिकाश्रम का भी दर्शन किए और फिर यहां इस वन में आप रामेश्वर का दर्शन करोगे। रामेश्वर से श्रीलंका तक जो पुल बनाए तो यह पुल भी है वृंदावन में सेतुबंध। किसने बनाया यह पुल.. राम ने बनाया आप कहोगे लेकिन किस की सहायता से यह बन गया वे थे हनुमान एंड कंपनी। हनुमान और ओर वानरों ने ही तो बनाया यह पुल। एक समय कृष्ण ने कहा कि हे गोपीयो हे राधे एक समय में राम था और तुम थी सीता और तुम्हारा अपहरण हुआ ऐसा स्मरण दिला रहे थे त्रेता युग में जो लीला संपन्न हुई कृष्ण की। कृष्ण बने *रामादिमूर्तिषु कलानियमेन तिष्ठन्
नानावतारमकरोद् भुवनेषु किन्तु* उस त्रेता युग के अवतार में मैं राम बना था, मैंने यह किया, मैंने वह किया, फिर तुम्हारा अपहरण हुआ, फिर मैंने तुम को खोज निकाला। तुम जहां थी अशोक वाटिका में फिर हम वहां पर पुल बनाते हुए वहां पहुंच गए, फिर रावण का वध किया राम विजय उत्सव संपन्न हुआ। और यह सारा उसमें से कुछ बातें कह रहे थे फिर हम वहां से पुष्पक विमान में बैठकर तुमको बिठाया मैंने, हनुमान को बिठाया, अंगद को बिठाया, विभीषण को बिठाया और हम आयोध्या लौटे। जाने दीजिए दिवाली पास आ रही है तो मुझे सब याद आ रहा है। हम जब अयोध्या पहुंचे तो दीपावली का उत्सव मनाया वहां। ऐसी अगवानी ऐसा स्वागत हुआ मेरे भ्राता श्री भरत ने पादुका भी पहुंचाई। इस तरह कुछ लीलाओं का उल्लेख कृष्ण कर रहे थे। गोपियों ने और राधा ने कहा कृष्ण तो ऐसे ही डिंग मार रहे हैं मैं यह था मैं वह था, अगर यह सब सच है तो दिखाओ हमको दर्शन कराओ उस लीला का। तुम ने पुल बनाया वानरों की मदद से दिखा दो गोपीयोने ऐसा चैलेंज किया। इसे साबित करो जब हम देखेंगे तो विश्वास होगा हमारा। फिर वहां का सीन चेंज हुआ वह सब यह देखो यह रामेश्वरम है वहां सब कंस्ट्रक्शन शुरू हुआ सभी वानर बड़े-बड़े पत्थर, चट्टाने या वृक्ष फेंक रहे थे। वहा सागर भी था और गोपियां देख रही थी वहा नील भी थे। पत्थर या वृक्ष जल को स्पर्श करने से पहले झठ से उस पर राम का नाम लिख रहे थे राम का स्टॅम्प लगा रहे थे राम राम तो वह पत्थर डूबने की जगह तैर रहा था।
उसी के साथ वे आगे बढ़ रहे थे फिर वे लंका पहुंचे फिर युद्ध हुआ फिर राम अशोक वाटिका पहुंचे और फिर मिलन हुआ राम सीता का। तो गोपिया यहां सब देख रही थी सारा दृश्य हूबहू संपन्न हो रहा था हो रही थी यह लीला। हरि हरि। तो इसीलिए आज भी वहां अधिक संख्या में आपको वानर मिलेंगे और वहां रामेश्वर और अशोक वाटिका का भी दर्शन कर लेना और आपको पुल भी दिखेगा सेतुबंध। हरि हरि। इसी वन में ही चौरासी खंबा नाम का स्थान है या ऐसा स्थान है, ऐसी वास्तु रही एक समय लेकिन अब टूट रही है, गिर रही है, लेकिन अब भी कई सारे स्तम्भ खड़े हैं। चौरासी खंबे जहां अज्ञातवास के समय पांडव काम वन में रहते थे उनके निवास के लिए ऐसी व्यवस्था चौरासी खंबा वाला मेहल या स्थान बना था। वैसे चौरासी खंबे वाला और भी एक स्थान और एक ही स्थान है ब्रज मंडल में और वह है नंदभवन। गोकुल में जब पहुंच जाओगे तो नंद भवन में भी चौरासी खंबे है और यह कामवन में भी चौरासी खंबे वाला स्थान है जहां पांडव एक समय रहे। वैसे हम जो परिक्रमा कर रहे हैं ब्रज मंडल परिक्रमा वह भी चौरासी कोस परिक्रमा है। इस ब्रह्मड में भी हम लोग चौरासी लक्ष्य योनियों में भ्रमण करते रहते हैं, कर रहे हैं, पता नहीं कर चुके हैं या दोबारा राउंड मारना पड़ेगा। हरि हरि। अगर आप नहीं चाहते हो कि पुनः उस चौरासी लाख योनियों मे से गुजरना पड़े, इससे बचना चाहते हो तो करो यह चौरासी कोस परिक्रमा। साथ ही साथ करो दर्शन इस चौरासी खंबे वाला पांडवों का जो निवास स्थान जो कामवन का है और गोकुल में चौरासी खंबे वाला नंदभवन है। खंभों को भक्त अलिंगन भी देते हैं, साष्टांग दंडवत प्रणाम भी करते हैं। चौरासी कोस की परिक्रमा तो पूरे विनम्र भाव के साथ और धुली को अपने मस्तक पर उठाते हुए और धुली को भी नमस्कार करते हुए यह ब्रज की वही धुली है। ऐसी समझ है कि कृष्ण के समय के बाद काफी कुछ परिवर्तन आया है ऐसा दिखता तो है, क्योंकि भौम वृंदावन। एक वृंदावन और फिर भौम वृंदावन इस भूमि पर वृंदावन है।
स कालेनेह महता योगे नष्टः परन्तप कलि कुछ विनाशकारी होता है, कलि कुछ परिवर्तन लाता है वृंदावन में भी। हरि हरि। लेकिन कुछ बातें ऐसी है जो कृष्ण के समय से अब भी है उस समय भी थी आज भी है। वह है जमुना मैया की जय एक, गिरिराज गोवर्धन की जय दो और यहां के ब्रज रज की जय ब्रज की जो धूल ही है तीन। यह तीन बातें तो आज भी है इसके अलावा और भी बहुत कुछ है लेकिन यह तीन मुख्य बातें है। तो यहां की जो ब्रज धूली है, इस धूलि में हमको खूब लौटना चाहिए, इस धूली को अपने मस्तक पर उठाना चाहिए।
यहां की धूली मस्तक पर उठाने के उद्देश्य से ही वैसे ब्रह्मा प्रकट होते हैं, बरसाने का जो पर्वत है बरसाना, तो वह ब्रह्मा बने हैं। ताकि उनके सिर पर वहां राधा कृष्ण की लीला संपन्न हो। वह धुली उनके मस्तक पर वे धारण कर रहे हैं स्वयं ब्रह्मा। हरि हरि। ब्रजमंडल की जय। और भी कई सारी बातें है सब बताऊंगा तो आप.. परिक्रमा को देखना भी तो हैं। जब परिक्रमा रिलीज होगी तो उसमें भी जॉइन करना है, तो सब कह दिया तो काम नहीं चलेगा। फिर आप कुछ छोड़ देते हैं या यह तो ऑडियो हुआ, परिक्रमा में वैसे तो वीडियो चलता है, तो उस वीडियो को भी देखिए और वहां भी ऑडियो है उसको सुनिए और अपना जीवन सफल कीजिए।
निताई गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल।
English
13 NOVEMBER 2020
6TH FOREST, THE
Hare Krsna!
Devotees from 724 locations are chanting with us. The super sale of Kartik month is on. This super sale is free and you are given the opportunity to take away as much as you can. You are getting to hear about and to virtually perform Braj Mandal Parikrama. I hope you're all having a special experience. There is Parikrama going on, Deepdaan going on. Share this with others. Ask them to join and take the benefit of this. You must be aware of where we have reached in the Parikrama. Where are we? Although virtually, but your consciousness should be full of this. You must know where we have reached? You must remember the names of all the 12 forests that you visit in this Kartik month by the end. You should remember in sequence the names of the 12 forests that you visit in these 30 days.
Now we have reached Kamyavan. It is an extremely beautiful forest. At the end of Parikrama, every year devotees are asked to name the forest that they liked the most. Many devotees name Kamyavan. Parikrama to Kamyavan is unforgettable. Though the entire Braj Mandal is full of places of pastimes, some places have been lost or disappeared. But in Kamyavan, there are many places of Darshan. We will stay here today and tomorrow. Today we will do the interior parikrama and tomorrow, we will do the exterior parikrama. Still it is difficult to cover all darshan places of Kamyavan. There are places of parental pastimes and cow grazing fields. Yashoda kund is famous. Bhojan sthali is famous as Krsna had His food here. Vimal Kund is one of the most popular kund of Vraja, Rasa dance took place here. The Gopis perspired so much dancing with Krsna that an entire Kund was filled with it. Vimal means without any impurities.
jaya rādhe, jaya kṛṣṇa, jaya vṛndāvan śrī govinda, gopīnātha, madana-mohan
TRANSLATION All glories to Radha and Krsna and the divine forest of Vrndavana. All glories to the three presiding Deities of Vrndavana--Sri Govinda, Gopinatha, and Madana-mohana. (1st verse, Jaya Radhe Jaya Krsna Jaya Vrndavana (I), Sri Vraja Dhama Mahimamrta, Krsna Dasa)
You will also find the temples of Radha Govinda, Gopīnātha and Madanmohan here in Kamyavan. These are worshipable deities of Gaudīya Vaiśnavas. Their darshan is also available in 5-kos Vrindavan. They were originally in 5-kos Vrindavan 500 years ago, but they were being transferred to safer zones out of fear of cruel Muslim rulers who were breaking and destroying temples and deities. The deities were brought to Radha kund first and then Kamyavan on the way to Rajasthan. The original deity of Radha Govinda is in Jaipur as the King of Jaipur was a religious person. The original deity of Radha Gopīnātha is in Udaipur and Madanmohan is in Karauli. The deities now in Vrindavan, Radha kund and Kamyavan are called Pratibhu deities. We will have darshan of all these deities today. Vrinda Devi's temple is also found in Kamyavan. Vrinda Devi was also tried to be shifted to a safer place but after she reached Kamyavan, she did not move as she did not want to leave Vrindavan. We also get darshan of Sri Sri Radha Govinda here in Vrinda Devi's temple. Vrindavan name comes from Vrinda Devi. Vrindavan or Vrindaranya means forest of Vrinda/Tulasi.
divyad-vrindaranya-kalpa-drumadhah srimad-ratnagara-simhasana-sthau srimad-radha-srila-govinda-devau preshthalibhih sevyamanau smarami
TRANSLATION In a temple of jewels in Vrindavana, underneath a desire tree, Sri Sri Radha-Govinda, served by Their most confidential associates, sit upon an effulgent throne. I offer my most humble obeisances unto Them. (Abhidheyadhideva Pranama)
When we pray to Radha Govinda, we say that I wish to always have that sight of Śrī Radha Govinda who are seated on a throne studded with gems and diamonds under a desire tree in the forests of Vrinda and who are being served by the 8 gopīs. Rupa Goswami Prabhupāda used to worship Radha Govinda in Vrindavan where Vrinda Devi was also being worshiped.
dina krishna-dase koy, ei yena mora hoy sri-radha-govinda-preme sada yena bhasi
TRANSLATION This very fallen and lowly servant of Krsna prays, "May I always swim in the love of Sri Radha and Govinda. (5th verse, Sri Tulasi-Aarti)
When we sing Tulasi arati, in the last line we sing that Tulasi is always in the love of Radha Govinda. She is also remembered with Krsna as His extreme beloved. Vrinda Devi is Tulasi Herself. Tulasi Maharani is extremely elevated as Śrīmati Radharani. Krsna is married to Śrīmati Radharani in Bhandirvan. He is married to Tulasi also. Tulasi and Shaligram Marriage will also take place soon in Kartik. Vrinda Devi also has great authorities and responsibilities so that Radha Krsna's pastimes could take place. Vrinda Devi is like an event manager. None of the pastimes take place without her in Vrindavan. The temple of Original Vrinda Devi deity is found in Kamyavan. Also, a lot of monkeys are found here. Compared to the other forests, the number of monkeys found here is much higher. The reason being, Rameshwaram and Ashok Vatika are here in Kamyavan. Ashok Vatika, where Mother Sita was taken by Rāvana. Yesterday we had Darshan of Badrinath and Kedarnath. I had told you that all the holy places reside in Braj Mandal. Here we have darshan of Rameshwaram. You will also find the stone Bridge (Setu Bandha) here to Lanka. It was made by Hanuman and many monkeys.
rāmādi-mūrtiṣu kalā-niyamena tiṣṭhan nānāvatāram akarod bhuvaneṣu kintu kṛṣṇaḥ svayaṁ samabhavat paramaḥ pumān yo govindam ādi-puruṣaṁ tam ahaṁ bhajāmi
TRANSLATION I worship Govinda, the primeval Lord, who manifested Himself personally as Kṛṣṇa and the different avatāras in the world in the forms of Rāma, Nṛsiṁha, Vāmana, etc., as His subjective portions. (Śrī brahma-saṁhitā 5.39)
One day Krsna said to Radha, "Long ago in our previous life in Treta yuga, I was Śrī Rama and you were Sita. You were kidnapped in Ashok Vatika and then I made a bridge and fought and brought you back. I did such great jobs then. I killed the great demon Rāvana and became victorious and celebrated Rama Vijay Utsav. I returned to Ayodhya with you on the Pushpaka Vimana with Hanuman and Vibhishan." Diwali was the day, which is approaching, therefore I am remembering this. Gopis said that you are boasting just to impress us, if all this is true then prove it by constructing the bridge again. We shall believe only if we see. Krsna brought them to this place and showed them Rameshwaram. Then there were monkeys who were writing Ram on the stones and throwing them in the water. To their surprise, the rocks floated. Then Krsna showed the entire pastime of reaching Lanka and killing the demon Ravana and reunited with Sita in Ashok Vatika. The Gopis were seeing all this. You may also have darshan of Rameshwaram, Ashok Vatika and Setu Bandha.
Then you also see a place called chaurasi khamba ( 84 pillars) in Kamyavan means a palace with 84 pillars. Here the Pandavas had spent the 13th year of exile. This is different from the 84 pillared palace, Nanda Bhawan of Nanda Maharaj which is in Gokula. The entire Braj Mandal Parikrama is also of 84 Kos (a unit of measuring distance). Then there are 84 hundred thousand species and we keep moving in this cycle of birth and death. If you wish to be freed from this cycle then perform this Braj Mandal Parikrama of 84 Kos and also visit 84 pillars place in Kamyavan and Gokula. Devotees embrace these pillars and offer their obeisances.
evaṁ paramparā-prāptam imaṁ rājarṣayo viduḥ sa kāleneha mahatā yogo naṣṭaḥ paran-tapa
TRANSLATION This supreme science was thus received through the chain of disciplic succession, and the saintly kings understood it in that way. But in course of time the succession was broken, and therefore the science as it is appears to be lost. (B.G. 4.2)
Kaliyuga is destructive so it does bring apparent changes in Vrindavan as well. Yet there are a few things which are still present from Krsna's time. Yamuna, Govardhan and Braja soil are the three major ones of them. You must make sure you relish these great associates of Krsna. We must offer obeisances and possess Braja soil to our head. Brahma became the hill of Barsana for this cause. All glories to Braj Mandal Parikrama. You must make sure that you attend the virtual VMP. This was the audio version but you also get to see the audio-visual version. Therefore, do attend that and make your life successful.
Nitai Gaura Premanande Hari Hari bol!