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12 जून 2019 हरे कृष्ण! आज मैं आप सब को जपा टॉक के लिए रोक रहा हूँ। आप सब जप करने में इतने मग्न हो कि शायद आप लोग रूकना नही चाहते हो। हरि! हरि! आज पूरे संसार से हमारे साथ 650 भक्त जप कर रहे हैं ।हम आशा करते हैं कि कल तक यह संख्या 700 से पार पहुंच जाएगी। कल निर्जला एकादशी है, निर्जला एकादशी के दिन हमें जल भी ग्रहण नहीं करना चाहिए। हमें निर्जला एकादशी के दिन बिना जल के व्रत रखने का प्रयास करना चाहिए परंतु हमें उस दिन अधिक से अधिक हरिनाम का पान करना चाहिए। उस दिन भक्त लोग ज़्यादा से ज़्यादा जप करते हैं। कुछ भक्त 32 माला, 64 माला, 128 माला करते हैं। कल हम भी अधिक से अधिक जप करने का संकल्प ले सकते हैं और मिल कर जप कर सकते हैं। मैं सोच रहा हूँ कि कल के जपा टॉक में हम लोग अधिक जप करेंगे और वार्ता कम करेंगे। आज बहुत ही पवित्र दिवस है।आज गंगा मैया का आविर्भाव दिवस है। आज गंगा पूजा है। गंगा मैया की जय! आज गंगा माता गोस्वामिनी जी का आविर्भाव दिवस भी है और आज बलदेव विद्याभूषण जी का भी तिरोभाव दिवस है। इनका प्रस्थान वृंदावन में ही हुआ था। बलदेव विद्याभूषण जी की समाधि वृंदावन में ही है। अतः आज उनका चिंतन व स्मरण करने के लिए बहुत पवित्र अवसर है। गंगा मैया की जय! हम गंगा माता को नमस्कार करते हैं। हम गंगायैः नमः भी कह सकते हैं। जैसे राधाये नमः! सीतायै नमः कहते हैं। इसमें कुछ गलत नहीं है परंतु शिवाय नमः, रमाय नमः नही कहना चाहिए, यहां व्याकरण के सिद्धांत लागू होते है। इसलिए जब हम प्रणाम करते है तो गंगाय नमः कहेगें। हमें प्रणाम मंत्र बोलते हुए ध्यानपूर्वक रहना चाहिए कि हम प्रणाम मंत्र का उच्चारण गलत तरीके से करके कोई अपराध न करें। हमें गंगायैः नमः जैसे राधाये नमः, सीतायै नमः इस प्रकार से प्रणाम करना चाहिए। यदि आप में से कोई गंगा मैया के तट पर निवास करता है, तो उसे निश्चित रूप से गंगा में जाकर स्नान करना चाहिए और यदि वह गंगा में स्नान नहीं कर सकता तो उसे गंगा जल की कुछ बूंदे लेकर उसका पान करना चाहिए अन्यथा गंगा मैया का स्मरण करना चाहिए।आज हम लोग भी गंगा मैया को स्मरण करते हुए उसके विषय में कुछ बताएंगे। गंगा मैया की महिमा असीमित और शानदार है अर्थात उसमें असंख्य गुण हैं जिनका गुणगान किया जा सकता है। हम गंगा मैया को हे गंगे, जय गंगे कह संबोधन करते हैं। जब हम उनको प्रणाम करते हैं , गंगाय नमः कहते हैं। श्रील जयदेव गोस्वामी ने अपने दशावतार स्रोत में भगवान के वामन अवतार और गंगा मैया का गुणगान किया है। "वामन देव के पदनखनीर जनितजन पावन केश्वधृत वामनरूप जय जगदीश हरे" में उन्होंने गंगा मैया का गुणगान गाया है। गंगा जल का उदगम भगवान के चरण कमलों से हुआ है अर्थात भगवान के नाखूनों को धोने के उपरांत या चरणों को धोने के उपरांत महाप्रसाद रूपी चरणामृत उत्पन्न हुआ है , उसको गंगा जल कहते हैं या गंगा मैया भी कहते हैं। गंगा मैया इस भौतिक जगत का अंश नहीं है। वह भगवान महाविष्णु के शरीर का स्वेत/पसीना भी माना जाता है। जब भगवान वामन देव ने महाराजा बलि के समक्ष दूसरा कदम लिया था,तब उन्होनें अपने दूसरे कदम को उठा अपने अंगूठे से इस ब्रह्मांड के आखिरी आवरण में छिद्र अर्थात छेद किया, यह गंगा कारणोदक जल है। उस छिद्र से उसकी बूंदे अंदर आने लगी। इस तरह से कारणोदक जल ने गंगा जल का रूप धारण किया और ब्रहांड में गंगा के रूप में प्रकट हुई। इस प्रकार गंगा माता स्वर्गीय लोकों में ही बहा करती थी लेकिन राजा भगीरथ ने अत्यंत कठिन प्रयास किए। इस कार्य में बहुत बड़े बड़े अवरोध उनके सामने आए लेकिन उन्होंने किसी भी प्रकार से अपनी चेष्टा को नहीं छोड़ा और गंगा मैया को धरती पर लाने में सफलता प्राप्त की। आज ही के दिन गंगा मैया गोमुख से अवतरित हुई अर्थात आज ही के दिन राजा भगीरथ उनको लाने में सफल हुए। इसलिए गंगा का नाम भगीरथी भी पड़ा है। जब गंगा माता ने इस धरती का स्पर्श किया, तब उनका स्वागत-सत्कार किया गया, पूजा की गयी। इसलिए आज के दिवस को गंगा पूजा दिवस भी कहते हैं। महाराज भगीरथ का मुख्य उद्देश्य गंगा मैया को पश्चिम बंगाल ले जाने का था, जहाँ पर उनके पूर्वज महाराज सगर के 60000 पुत्रों के शरीर भस्म हुए थे और उनकी राख पड़ी हुई थी और वे सभी गंगा में मुक्ति और डूब जाने की प्रतीक्षा कर रहे थे। राजा भगीरथ को अपने पूर्वजों का उद्धार करने के लिए या उनको सद्गति देने के लिए गंगा माता को पश्चिमी बंगाल के तट पर लाने का श्रेय जाता है।इस प्रकार गंगा माता बंगाल में बहती हुई नवद्वीप धाम पहुंची। गंगा माता नवद्वीप धाम का एक अभिन्न अंग है। श्री चैतन्य महाप्रभु ने गंगा के किनारे अपनी अनेक लीलाओं का प्रदर्शन किया जैसे भोग लगाना आदि। श्री चैतन्य महाप्रभु ने गंगा को माँ गंगा के रुप में माना और उनकी पूजा की। उनकी दो माताएं थी- एक शची माता, दूसरी गंगा माता। गंगा माता की जय! आज गंगा माता गोस्वामिनी जी का प्राकट्य दिवस है। जिस दिन गंगा माता पृथ्वी पर प्रकट हुई, उसी दिन एक और महान व्यक्तित्व का प्रकाट्य हुआ अर्थात जिस दिन गंगा मैया अवतरित हुई, उसी दिन उनका अविर्भाव अर्थात उनका जन्म हुआ इसलिए उनका नाम भी गंगा माता गोस्वामिनी पड़ा। शुरुआत में वह शची के नाम से प्रसिद्ध थी, फिर उनका नाम गंगा माता पड़ा। हमारे गौड़ीय वैष्णव आचार्यों में गंगा माता का एक बहुत बड़ा व्यक्तित्व है।उनको आचार्य की पदवी दी गयी थी। उनको गंगा माता आचार्य कहा जाता हैं।हमारे गौड़ीय वैष्णव में बहुत सारी माताएं / स्त्रियाँ आचार्य बनी है। नित्यानंद प्रभु की पत्नी श्रीमती जान्हवाँ देवी और गंगा माता गोस्वामिनी दोनों ही आचार्य थी। वे शिष्यों को दीक्षा भी देती थी। गंगा माता गोस्वामिनी और जान्हवाँ देवी दोनों ही बहुत ही पूजनीय हैं। गंगा माता गोस्वामिनी जन्मजात भक्त थीं, उनका जीवन शुरू से ही बहुत त्यागपूर्ण रहा था। हालांकि वह एक राजा की बेटी के रूप में पैदा हुई थी अर्थात वह एक राजकुमारी थी लेकिन उनका किसी राजसी गतिविधि या परिवार के प्रति कोई लगाव नही था। वह विवाह भी नहीं करना चाहती थी परंतु उनके माता पिता उनका विवाह करवाना चाहते थे लेकिन वह इस भौतिक संसार में किसी जीव के साथ विवाह नहीं करना चाहती थी। इस प्रकार उनके घर वालों ने उनके अंदर बहुत ही वैराग्य देखा। धीरे धीरे उनके माता पिता ने शरीर छोड़ दिए और कुछ समय के लिए वह राजकुमारी के रूप में पद को संभाला। कुछ समय पश्चात उन्होनें सब राजपाट को त्याग दिया और वह पूर्ण रूप से भगवान की भक्ति करने लगी।अपना कुछ समय जगन्नाथ पुरी में व्यतीत करने के बाद, वह श्री वृंदावनधाम में आई। वह वृंदावन धाम में हरिदास पंडित जी के सम्पर्क में आई, जो कि वृंदावन में एक भक्त थे। गंगा माता गोस्वामिनी जी ने उनके समक्ष रह कर उनसे शिक्षा ग्रहण की। वह एक राजकुमारी थी और उनके समक्ष बहुत प्रचूर मात्रा में धन सम्पति थी परंतु वह कोई महंगी बनारसी साड़ी नहीं चाहती थी और न ही कोई आभूषण, न कोई सुनहरी चूड़ियां और गहने, वह साधारण कपड़े पहन कर खुश थी। वह वहां बहुत सरल वैराग्य पूर्ण जीवन जी रही थी। हरिदास पंडित जी ने गंगा माता गोस्वामिनी जी को घर घर जाकर मधुकरी करने के लिए कहा। तब वह घर घर जा कर अपने लिए भिक्षा मांग कर अपना जीवन निर्वाह करने लगी। जब हरिदास पंडित ने उनकी दृढ़ता और श्रद्धा देखी , तब हरि दास पंडित प्रसन्न हो गए और उनको गौड़ीय वैष्णव परंपरा में दीक्षा दी। कुछ समय के वृंदावनवास के उपरांत उन्हें जगन्नाथपुरी जाने और गौड़ीय वैष्णववाद का प्रचार करने के लिए कहा गया। इसलिए गंगा माता गोस्वामिनी जी श्री जगन्नाथ पुरी में चली गयी और वहां गंगा माता गोस्वामिनी जी ने जगन्नाथपुरी में सार्वभौम भट्टाचार्य जी के निवास पर रहना शुरू कर दिया, जहां स्वयं श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु भी कुछ समय के लिए प्रवास किए थे अथवा रुके थे। वह जगन्नाथपुरी में श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु के आंदोलन का प्रचार कार्य करने लगी। हम पिछले वर्ष जगन्नाथपुरी रथ यात्रा के दौरान सार्वभौम भट्टाचार्य जी के निवास स्थान पर भी गए थे।यहाँ पर हमने उनके विषय में कथाएं सुनी और गंगा माता गोस्वामिनी को भी स्मरण किया एवं उनके विषय में अधिक से अधिक जानकारी एकत्रित की। जब गंगा माता गोस्वामिनी सार्वभौम भट्टाचार्य जी के निवास पर रह रही थी, उस समय पुरी के राजा ने एक बहुत बड़ी सम्पति का दान दिया। वह सम्पति जहाँ गंगा माता गोस्वामिनी रह रही थी, वो ठीक उसी के सामने थी। उसका नाम पड़ा - श्वेत गंगा। एक समय कोई विशेष उत्सव अर्थात प्रसिद्ध दिन था। सब लोग जगन्नाथ पुरी से गंगा में स्नान करने के लिए गंगा के तट पर जाने की तैयारी कर रहे थे, उस समय गंगा माता गोस्वामिनी के मन में भी बहुत इच्छा हुई कि वे भी उनके साथ जाकर गंगा में स्नान करें परंतु उनके गुरु महाराज हरिदास पंडित जी ने उन्हें निर्देश दिया था कि आप जीवन पर्यंत कभी जगन्नाथपुरी को छोड़िएगा मत। इसलिए वह जगन्नाथपुरी को छोड़ कर कहीं नही जा पायी। उसी रात में मध्य रात्रि के समय श्वेत गंगा का प्रकाट्य हुआ। जिस समय गंगा माता गोस्वामिनी नदी में स्नान कर रही थी, तब गंगा नदी का जल बढ़ता गया। और इतना बढ़ा, की बाढ़ आ गई। गंगा की लहरों और तरंगों के साथ गंगा माता गोस्वामिनी जी जगन्नाथ मंदिर के गर्भगृह में पहुंच गई। रात्रि में पुजारियों को जगन्नाथ जी के मंदिर की तरफ से कुछ ध्वनियां सुनाई देने लगी। गंगा मैया की जय ! हर हर गंगे! जगन्नाथ जी के मंदिर की तरफ से आ रहीं ध्वनियां को सुनकर सच या झूठ पता लगवाने के लिये जब दरवाजे खोले तो वे गंगा माता गोस्वामिनी जी को जगन्नाथ, बलदेव, सुभद्रा के साथ देख कर आश्चर्यचकित हो गए। हरि हरि! पुजारियों ने गंगा माता गोस्वामिनी को देखा और बोले कि तुम चोर हो, जगन्नाथ जी के अलंकार और गहने चोरी करने के लिए मध्य रात्रि के समय आयी हो। यह जगन्नाथ जी का विश्राम का समय है। तुम यहाँ क्यों हो, तुम चोर हो। पुजारियों ने राजा के पास शिकायत पहुंचाई और राजा ने निर्णय दिया कि इसको गिरफ्तार करो। जेल में डाल दो और उन्हें जेल में डाल दिया गया। तब जगन्नाथजी, पुरी के राजा के सपने में दिखाई दिए और कहा,' नहीं, नहीं, वह चोर नहीं हैं, वह मेरी शुध्द भक्त है। मैंने ही उसे यहाँ जगन्नाथ पुरी में लाने की सारी व्यवस्थाएँ की हैं, जिससे वह इस शुभ अवसर पर गंगा में स्नान कर सकें। आप और सभी पुजारी अपराधी हो, आपको उसे तुरंत रिहा करना चाहिए। वह गौड़ीय वैष्णव सम्प्रदाय की आचार्य हैं।' इस प्रकार भगवान जगन्नाथ जी ने राजा और सभी पुजारियों को चेतावनी दी और गंगा माता गोस्वामिनी जी को रिहा कर दिया गया। वह जगन्नाथ पुरी में रही एवं उन्होंने जगन्नाथ पुरी के पुजारियों और निवासियों को दीक्षा देना शुरु किया। इस प्रकार गंगा माता गोस्वामिनी जी का जीवन अद्भुत और शिक्षा प्रद है। वह एक दुर्लभ और महान आत्माओं में से एक थी और आज उनका आविर्भाव दिवस है। गौड़ीय वेदांत आचार्य बलदेव विद्याभूषण तिरोभाव दिवस की जय! बलदेव विद्याभूषण जी गौड़ीय वैष्णव सम्प्रदाय के वेदांत आचार्य के रूप में जाने जाते हैं। बलदेव विधाभूषण- कितना अद्भुत नाम हैं अर्थात विद्या ही जिसका भूषण और सजावट थी। विद्या उनका अलंकार थी।बलदेव विद्याभूषण जी ने गौड़ीय वैष्णव के अचिंत्यभेदाभेद तत्व को प्रस्तुत किया था। उनका जन्म रेमुना, उड़ीसा में हुआ था। जहां खीरचोर गोपीनाथ जी की पूजा की जाती है। वह उड़ीसा से वृंदावन चले गए। जयपुर के गौड़ीय वैष्णव सिद्धांत के अनुसार जयपुर में राधा गोविंद की पूजा ठीक प्रकार से नहीं की जा रही थी। इससे वहां के राजा भी परेशान थे। रामानंदी, श्री सम्प्रदाय एवं रामानुज सम्प्रदाय के अनुयायी पूजा के प्रभारी थे और वे गौड़ीय वैष्णवों को राधा गोविंद की पूजा करने की अनुमति नहीं दे रहे थे। उन्होंने राधा को गोविंद से अलग कर दिया। वह सोच रहे थे कि राधा की गोविंद अर्थात कृष्ण के साथ पूजा नहीं की जा सकती। वे राधा को नहीं समझते थे और गौड़ीय वैष्णव राधा और कृष्ण को समझते हैं। उन्होंने सोचा कि गौड़ीय वैष्णव राधा कृष्ण की पूजा नही कर सकते, वे अधिकृत नहीं है। उनके सम्प्रदाय ने वेदांत पर भाष्य नहीं लिखा है। वे कहते थे कि यदि आपके पास वेदांत सूत्र पर टिप्पणी नही है तो आप अधिकृत नहीं हो और आपको अधिकृत परंपरा के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता। जयपुर के राजा भी रामानंदी, श्री सम्प्रदाय के अनुयायियों के कारण खुश नही थे। फिर उन्होंने वृंदावन में बलदेव विद्या भूषण जी को संदेश भेजा और गौड़ीय वैष्णव रक्षक विश्वनाथ चक्रवर्ती ठाकुर जी से संपर्क किया। वे बूढ़े होने के कारण जयपुर जाने में असमर्थ थे इसलिए उन्होंने बलदेव विद्या भूषण जी को जयपुर भेजा। बलदेव विद्या भूषण ने रामानंदी के साथ वाद- विवाद कर गौड़ीय वैष्णव वाद और उनकी सिद्धता के वर्चस्व को साबित करके उन सभी को हरा दिया। तब गोविंद ने उन्हें संकेत किया। श्रुतलेख से विद्याभूषण जी ने टीका तैयार की। गोविंद देव द्वारा बलदेव विद्या भूषण को वेदांत सूत्र पर टीका प्रकट की गई थी । यह गौड़ीय सम्प्रदाय के वेदांत सूत्र का पहला भाष्य था। इसलिए जब यह टीका तैयार हुई तब बलदेव विद्याभूषण जी ने इस टिप्पणी को गोविंद भाष्य नाम दिया।इस वेदांत सूत्र के भाष्य के लेखक कौन है? गोविंद! गोविंद! अर्थात इस टिप्पणी को गोविंद ने स्वयं लिखा है, इसलिए उन्होंने इसका श्रेय गोविंद को दिया और इसकी कमेंट्री गोविंद भाष्य के रूप में प्रकट हुई। गौड़ीय वैष्णवों ने वेदांत सूत्र पर अपनी टिप्पणी की थी,तब उन्हें अधिकृत/ प्रामाणिक रूप में स्वीकार किया गया और राधा और गोविंद की पूजा करने की अनुमति दी गयी। वे राधा जी को ले आए जिसे अब तक कहीं और रखा हुआ था। अब जयपुर में राधा गोविंद जी एक ही वेदी पर पूजा हो रही हैं और गौड़ीय वैष्णव ही राधा गोविंद की पूजा कर रहे हैं। यह बलदेव विद्या भूषण की महिमा है। बलदेव विद्याभूषण की जय! बलदेव विद्याभूषण जी ने उस स्थिति को सुलझाया और हमारी परंपरा को भी प्रामाणिक बनाया। वास्तव में उनका अचिंत्यभेदाभेद तत्व की सिद्धता में एक महान योगदान है। हम इस टिप्पणी और इस प्रमाणिकता के लिए बलदेव विद्याभूषण जी के सदा ऋणी हैं। हरे कृष्ण!

English

12th June 2019 Glories of Ganges, Gangamata Gosvamini and Baladeva Vidyabhushan Today is a very auspicious day. Today is Ganga puja. It’s appearance day of Ganga, Ganga Maiya ki jai! Today is also appearance day of Gangamata Gosvamini ki jai! And today is also disappearance of Baladeva Vidyabhushan. He departed in Vrindavan. There is Samadhi of Baladeva Vidyabhushan in Vrindavan. So these are the three most auspicious occasions, they coincide with this day. So we remember these personalities. Ganga Maiya ki.Jai! We could also say, Gangayai namah! Don’t say Gangaya namah, its wrong. So we say Gangayai like Radhayai, Sitayai. That is different from Ramaya, Sivaya, this is Sanskrit pronunciation, grammar which is also associated with the name of Ganges. While offering our obeisances we are going to say Gangayai namah! So remember Ganges and offer your obeisances. Ramaya is okay, Sivaya is okay, but we can’t say Radhaya. Radhayai, Sitayai, Gangayai, like that, this is how it works. So just don’t commit offenses by pronouncing this pranam mantra wrongly. If you are residing at the bank of Ganges you should go, take holy dip in Ganges today or at least try to manage to get Ganga jal (water) and drink few drops of Ganga jal today, on her appearance day or at least we should remember and we are trying to remember her by talking, remembering about Ganga Maiya. Glories of Ganges are unlimited and glorious. Jai Ganges! This is how you address, when you are addressing Ganges you should say Jai Ganga! or Hey Ganga! Thus, you offer obeisances and say Gangayai namah! pada nakha nira janita jana pavana keshavadrta vamanrupa jai jagadish hare Jayadeva Gosvami also has glorified Lord Vaman and Ganges in his Dashavatar sotra. Water of Ganges emanate or originate from the lotus feet of the Lord or toenails of the Lord and that water that has washed the lotus feet of the Lord that is Ganges. Ganga is also out of this world, not part of this world. It is also considered perspiration from the body of MahaVishnu and that is Karanodak Jal and some of that jal (water) has entered this universe when Vaman deva becomes Trivikrama. As He takes second step,His lotus feet touch the covering of the universe and that thick covering of universe was punctured, there was a hole made by Lord’s lotus feet, touch and the water. Karanodak jal started dripping in and that’s how Ganges appeared in the universe. Thus Ganges was then flowing in the svarga, in heaven only. Then king Bhagirath, he made lot of efforts. So many stumbling blocks were there in his attempt in bringing Ganges from heaven to the earth. And because he became responsible for bringing Ganges on earth from heaven, Ganges has another name called Bhagirathi, the person who made all attempts to bring Ganges here on the earth. And by his efforts only today Ganges reached, touched this earthly planet and that place is Gomukha which is on the top of the Himalayan Mountains. So, today is also called as Ganga puja day, as Ganges was welcomed on this Bhumi planet. She was welcomed and worshiped on this day, Ganga puja day. And then Bhagirath was to bring Ganges to West Bengal, where his forefathers 60,000 of them, sons of king Sagara and their ashes were lying and waiting to be liberated or immersed in Ganges all the way to Ganga sagar, so he had to bring that Ganga from Gomukha to Ganga sagar and Bhagirath did that. And then Ganges is flowing through Bengal, Ganges is flowing through Navadvip dhama and Ganges is integral part of Navadvip Dhama and Sri Krishna Chaitanya Mahaprabhu performed His lilas at the banks of Ganges. Sri Krishna Chaitanya Mahaprabhu treated and worshiped Ganges as mother Ganges or He had two mothers, mother Saci and mother Ganges. Ganga Maiya ki jai! Gangamata Gosvamini, you could see her name is also Gangamata and she appeared on Ganga puja day. On the day Ganges appeared on the earth, that day another great personality appeared and her name was Saci initially and later on she was given name Gangamata Gosvamini. This is great personality, Gangamata Gosvamini is considered Acharya, and she is one of our Gaudiya Vaisnava Acharya. There are not so many ladies or women Acharyas in our parampara. One is Nityananda Prabhu’s wife, Jahanva mata and then Gangamata Gosvamini and they were Acharyas and they were initiating disciples. Gangamata Gosvamini was kind of born devotee and her life was type of renunciation from the childhood, although she was born as a daughter of a king. She was a princess and she had no interest in the kingdom, specially she had no interest in getting married to some mortal, she wanted to marry Krishna only. And her parents wanted her to marry, but she had no interest. So they were appealing to her and hoping that she would get married but she did not. As a result, her parents left the bodies and she continued as a princess or in charge for a while, which also later on she renounced that. And she moved to Jagannath Puri. After spending little time in Jagannath Puri she moved to Vrindavan and she came in contact with Haridas Pandit, exalted devotee of Vrindavan and she was being trained under tutorship of Haridas Pandit in Vrindavan. She was wearing simple clothes, although she was princess and she had certainly lots of wealth at her disposal but she did not wanted some expensive banarasi saris though she could have done so, but she was happy with simple clothing and no ornaments, no golden bangles and jewelry. Very simple renounced life she was leading and Haridas Pandit wanted her to do madhukari, go door to door and beg for alms. Again although she was princess, she was going around, begging for alms. And by seeing all this, these kind of activities, this kind of sadhana, life style of renunciation & devotion Haridas Pandit was pleased and finally she was initiated by Haridas Pandit in Gaudiya parampara. Then after some time in Vrindavan she was asked to go to Jagannath Puri and propagate Chaitanya Mahaprabhu’s cult or Gaudiya Vaisanavism. So, she came to Jagannath Puri and she started residing in Sarvabhauma Bhattacharya’s home. You know where Chaitanya Mhaprabhu also had stayed for some time, same house of Sarvabhauma Bhattacharya now Gangamata Gosvamini was residing in Jagannath Puri. When we were in Jagannath Puri, during yatra last year, all our devotees were brought to Sarvabhauma Bhattacharya’s home and the pastimes or activities of Gangamata Gosvamini also recited or reminded to all the pilgrims that time. When Gangamata Gosvamini was residing at Sarvabhauma Bhattacharya’s residence, the king of Puri, he donated property, just across from where she was residing, that property or place was sacred, well known place, known as Sveta Ganga, there Ganges is present in Puri, donated that land to Gangamata Gosvamini. So one time there was special occasion to go to Ganges and take Ganga snana and every one was going from everywhere including Jagannath Puri pilgrims were going to take bath in Ganga. Gangamata Gosvamini could not go although she wished to go, she wanted to go , but as she was instructed by Haridas Pandit never ever leave Jagannath Puri, so she could not go to Ganga river and take bath that one day. And then what happened was that day or towards the end of that day late in the night river Ganges appeared in Jagannath Puri and Gangamata Gosvamini was immersing in Ganges water, she was floating and the water of Ganges was rising and rising and there were waves in the water and as a result eventually Gangamata Gosvamini ended up swimming and floating, she ended up in Jagannath Puri temple in the middle of the night. And pujaris were wondering, now they were hearing some sound, Jai Gangamaiya ki Jai, Har Har Gange! They were hearing so many sounds coming from inside Jagannath temple, so they opened and were surprised to see Gangamata Gosvamini there with Jagannath, Baladeva, Subhadra in the Garbhagriha. And they thought, what are you doing here? Do you want to steal some ornaments of Jagannath, that’s why you came in the middle of the night? So all those pujaris were accusing her and all those false allegations that she was a thief and causing those entire disturbance and this is time for Lord Jagannath to sleep. What are you doing here? And then she was arrested and imprisoned. Pujaris complained to the king and king ended up in putting her behind the bars. Then Jagannath appeared in the dream of king of Puri. He said, ‘no, no, she is not a thief. She is My pure devotee. And I am the one who made all these arrangements, even bringing Ganges in Jagannath Puri, so that she could take bath in Ganges on this auspicious occasion. And I am the one who brought her in front of Me. You are offenders, you all pujaris and the king, you should release her immediately. And accept her as your spiritual authority. She is Acharya of Gaudiya Vaishnava sampradaya.’ So, Lord Jagannath warned the king and all the pujaris like that. And of course she was released and she stayed on and on in Jagannath Puri. And in the dream also, that ‘you accept her as your spiritual master’ and then Gangamata Gosvamini started giving initiations. Residents of Jagannath Puri and pujaris were getting initiated by her. And like that this is the wonderful life and teachings of Gangamata Gosvamini. She was one of the rare souls, great souls, mahatmas and this is her appearance day today. Baladeva Vidyabhushan is known as Gaudiya Vedanta Acharya. Gaudiya, Vedanta Acharya and Baladeva Vidyabhushan. What a name! Wonderful name and title of Baladeva Vidyabhushan! Vidya was his bhusan, vidya was his decoration, vidya was his alankar and vidya was beautifying him. AchintyaBhedabheda tattva of Gaudiya Vaishnava was presented by Baladeva Vidyabhusan and he was born in Remuna Orissa, where Khirachora Gopinath is worshiped in that area his birth took place. Today is his disappearance day. Then he moved from Orissa to Vrindavan. In Jaipur, Radha Govind was not being worshiped properly as per Gaudiya Vaisnava siddhanta. Even the king was disturbed. There were Ramanandis, followers of Sri sampradaya, Ramanuja sampradaya, they were in charge of worship and they were not allowing Gaudiya vaisnavas to worship Radha Govind. They had separated Radha from Govind. They were thinking, no no, Radha cannot be worshiped with Krishna, with Govind, because they didn’t understand Radha tattva. Gaudiya understand Radha and Krishna. They thought, Gaudiya vaisnavas cannot worship Radha Govind. You are not authorized. Your sampradaya has not written commentary on Vedanta. Where is your bhasya, commentary on Vedanta sutra? If you don’t have commentary on Vedanta sutra then you are not authorized. You cannot be accepted as authorized parampara. So the king of Jaipur also was not happy with the disturbance caused by Ramanandi, the followers of Sri sampradaya. Then he sent message to Vrindavan and Baladeva Vidyabhushan then contacted Vishvanath Chakravarti Thakur. He was Gaudiya Vaishnav protector, but he was too old to go to Jaipur. So he sent Baladeva Vidyabhushan to Jaipur and Baladeva Vidyabhushan had shastrarth dialogue, debate with Ramanandis and he defeated them all by proving the supremacy of Gaudiya Vaishnavism and their siddhanta. Then Govind did the prompting, the dictation and Baladeva Vidyabhushan was taking notes. This was the commentary on Vedanta sutra. The commentary on Vedanta sutra was revealed unto Baladeva Vidyabhushan by Govinda, Govind Deva. So when that commentary was ready and this was the first ever commentary of Vedanta sutra of Gaudiya sampradaya, so Baladeva Vidyabhushan named this commentary as ‘Govinda Bhashya’. This bhashya, commentary of Vedanta sutra, who is author of this? Govinda! Govinda! Govinda Himself has written this commentary, so he gave the credit to Govinda and commentary became as Govinda Bhashya. So, once Gaudiya vaisnavas had their own commentary on Vedanta sutra and then they were accepted as authorized, authentic. Then Gaudiya vaisnavas were allowed to worship, take charge of worship of Radha Govinda and they also brought Radha which was by now placed elsewhere and now Radha and Govinda were being worshiped on the same altar in Jaipur and the Gaudiya vaisnavas were worshipping Radha Govinda. So this is the glory of Baladeva Vidyabhushan. Baladeva Vidyabhushan ki jai! He settled the situation and also made our parampara authentic. This is respectable and superior, in fact the super most siddhanta called Achintya Bhedabheda tattva, this is the great contribution of Baladeva Vidyabhushan. We are eternally indebted to Baladeva Vidyabhushan for this commentary and this authenticity. Hare Krishna!

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