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हरे कृष्ण जप चर्चा पंढरपुर धाम से 23 फरवरी 2021 गौरांग! एकादशी श्रवण कीर्तन महोत्सव की जय! सुंदर ते ध्यान उभे विटेवरी कर कटावरी ठेवोनिया तुळसीहार गळा कासे पितांबर आवडे निरंतर हेची ध्यान मकर कुंडले तळपती श्रवणी कंठी कौस्तुभ मणी विराजित तुका म्हणे माझे हेची सर्व सुख पाहीन श्रीमुख आवडीने सुंदर ते ध्यान उभे विटेवरी अभंग - संत तुकाराम महाराज आप सभी का स्वागत है। हमारे हर रोज के भक्त और आज जो नए से जुड़े हैं उनका भी स्वागत है! और जो केवल एकादशी को सम्मिलित होते है, उनका भी स्वागत है। आज संख्या अधिक है तो मैं प्रसन्न हूं! मैं अभी पंढरपुर में हूं और पंढरी के भगवान की स्तुति संत तुकाराम महाराज ने इस अभंग में की हुई है। आप सभी को शुभ प्रभात और मेरी सुबह तो अच्छी ही है और मैं यह आपके साथ बाट रहा हूं। उसी के साथ कुछ अच्छे विचार भी मेरे मन में आए थे वह भी मैं आपके साथ बांटना चाहता हूं। हरि हरि। आज सुबह बहुत ही अच्छी मंगल आरती हुई और यहां पर बहुत ही दिव्य और खूबसूरत राधा पंढरीनाथ भगवान है। राधा पंढरीनाथ की जय! और उसी के साथ गौर निताई भी है, तुलसी महारानी भी है और हमारे आचार्यों की तस्वीरें भी है। श्रील प्रभुपाद की जय! श्रील प्रभुपाद मंदिर में है! और एक वरिष्ठ भक्त मंगल आरती का कीर्तन गा रहे थे तो वह बहुत अच्छा समय था। हरि नाम संकीर्तन और नृत्य चल रहा था वहां पर गुरुकुल के विद्यार्थी भी थे और वे भी नृत्य कर रहे थे और उनका नृत्य मोर जैसा लग रहा था, मैं उनके नृत्य को मैच नहीं कर पा रहा था। मेरी यह इच्छा थी कि मैं उनके जैसा नृत्य कर पाऊं। वे तो केवल 7 साल के हैं लेकिन मैं तो अभी 70 साल का हो गया हूं। हरि हरि। लेकिन आत्मा की कोई उम्र नहीं होती तो 7 या 70 साल को लेकर क्यों चिंता करना? और फिर उन्होंने मुझे तुलसी आरती का कीर्तन करने के लिए बोला। तुलसी कृष्ण प्रेयसी नमो नमः। और आप सभी को तो पता ही है कि यह आरती का गीत बहुत ही गजब का है। अगर हम क्या गा रहे हैं यह समझ पाए तो जान जाएंगे कि यह बहुत ही गजब का गीत है। ये तोमार शरण लय, तार वांच्छा पूर्ण हय । कृपा करि कर तारे वृंदावनवासी।। है तुलसी आप प्रेयसी हो, आप भगवान को बहुत ही प्रिय हो। राधाकृष्ण सेवा पाबो एइ अभिलाषी ।। और यह मेरी अभिलाषा है कि मुझे भी राधा कृष्ण की सेवा प्राप्त हो। तुलसी कृष्ण प्रेयसी नमो नमः। ऐसे ही यह गीत चल रहा था। मोर एइ अभिलाष, विलास कुंजे दियो वास । मेरी और एक इच्छा है कि आप जहां पर रहती हो यानी वृंदावन के कुंजो में , कृपा करके मुझे भी उन कुंजो में कुछ जगह दो। हरि हरि। भगवान श्री कृष्ण उनका अधिकतर समय इन कुंजो में व्यतीत करते है। सब गोपिया और राधा रानी के मध्य में भगवान यहां पर लीला करते हैं। मुझे भी वहां पर रहने का सौभाग्य प्रदान करें क्योंकि आप वहां की देवी हो। हरि हरि। यह विचार मेरे मन में आया था जो मैंने आपको बताया। मोर एइ अभिलाष, अमेरिका देशे दियो वास । हे तुलसी महारानी मुझ पर दया करके मुझे अमेरिका देश का वास दीजिए। मैंने वीजा के लिए निवेदन दे दिया है। मेरा वीजा मान्य हो जाए ताकि मैं अमेरिका जा पाऊं। मैं अब भारत में रह कर थक चुका हूं। ऐसे ही प्रार्थना होती रहती है। एइ निवेदन धर, सखीर अनुगत कर। श्री कृष्णा चैतन्य महाप्रभु की यह इच्छा है कि, आराध्यो भगवान् व्रजेशतनयस्तद् धाम वृंदावनं रम्या काचीदुपासना व्रजवधूवर्गेण या कल्पिता । श्रीमद भागवतं प्रमाणममलं प्रेमा पुमर्थो महान् श्रीचैतन्य महाप्रभोर्मतामिदं तत्रादशे नः परः ।। (चैतन्य मंज्जुषा) अनुवाद : भगवान व्रजेन्द्रन्दन श्रीकृष्ण एवं उनकी तरह ही वैभव युक्त उनका श्रीधाम वृन्दावन आराध्य वस्तु है । व्रजवधुओं ने जिस पद्धति से कृष्ण की उपासना की थी , वह उपासना की पद्धति सर्वोत्कृष्ट है । श्रीमद् भागवत ग्रन्थ ही निर्मल शब्दप्रमाण है एवं प्रेम ही परम पुरुषार्थ है - यही श्री चैतन्य महाप्रभु का मत है । यह सिद्धान्त हम लोगों के लिए परम आदरणीय है । गौरांग! आराध्यो भगवान् व्रजेशतनयस्तद् धाम वृंदावनं श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु कह रहे हे, वृंदावन धाम की पूजा कर रहे हैं और उसी के साथ बृजेंद्र नंदन की भी पूजा कर रहे हैं। रम्या काचीदुपासना व्रजवधूवर्गेण या कल्पिता । और गोपीयां जो अलग-अलग भाव में है जैसे वात्सल्य रस और माधुर्य रस। गोपीभाव या राधाभाव जो कि सर्वोत्तम है। जो बाजार भाव से भिन्न है। एइ निवेदन धर, सखीर अनुगत कर । सेवा अधिकार दिये कर निज दासी ।। मुझे भी इस काबिल बनाईये , हे कृष्ण प्रेयसी तुलसी महारानी। ऐसे ही तुलसी आरती चलती रही और उसके बाद उससे भी अच्छा हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे महामंत्र का कीर्तन भी हुआ। मंदिर के भक्त और विशेषता गुरुकुल के विद्यार्थी उसमें नृत्य कर रहे थे जो मुझे अभी याद आया। यह तुलसी आरती का कीर्तन भी हरे कृष्ण महामंत्र में समाविष्ट है। इतना ही नहीं सारे गीत हरे कृष्ण महामंत्र में समाविष्ट हुए है। सारी प्रार्थनाएं महामंत्र के कीर्तन में समाविष्ट हुई है। सारे मंत्र एक ही मंत्र में समाविष्ट हुए है। हम बंद्ध हैं हम सारे मंत्र याद नहीं रख पाते है तो कोई बात नहीं केवल एक मंत्र का जप कीजिए। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे आपको सारे मंत्रों का जप करने का फल प्राप्त होगा। हरि हरि। जब हम हरे हरे या कृष्ण कृष्ण कहते हैं तो हम सब कुछ बोल देते है। हरे यानी राधा रानी के बिना भगवान अपूर्ण है। शक्ति और शक्तिमान! जब हम शक्तिमान कहते हैं तो उसकी शक्ति यानी राधारानी महत्वपूर्ण है। वैसे भगवान की कई सारी शक्तियां है लेकिन जब हम हरे कृष्ण बोलते हैं या राधा कृष्ण बोलते हैं तो उसमें सबकुछ समाविष्ट है। मंगल आरती के बाद में मंदिर के पीछे गया जहां पर हमने भगवान महाप्रभु के नित्यानंद प्रभु के और विश्वरूप प्रभु के चरणकमल प्राणप्रतिष्ठित किए हुए है। वहां पर मैंने और एक बार छोटी सी आरती गाई और धूप और फूल अर्पण किए। और उसके बाद उन चरण कमलों की प्रदक्षिणा भी की! पंढरपुर धाम की जय! यहां पर नित्यानंद प्रभु सबसे पहले आए थे और यही पर उनकी दीक्षा भी हुई थी। मुझे कई बार यह याद आता है कि बलराम होईले निताई भगवान बलराम भी कई बार पंढरपुर आए थे उसके बाद जब वह नित्यानंद प्रभु थे तब भी पंढरपुर धाम आए थे। मैं अभी उस धाम में हूं जहां पर नित्यानंद प्रभु आए थे, और उसके बाद विश्वरूप प्रभु भी आए थे। जगदीश्वर प्रभु ने सन्यास लिया और नवद्वीप का त्याग किया था तो वह पूरा संसार का भ्रमण करके पंढरपुर धाम में आए। तब उनका नाम शंकरारण्य स्वामी था। उन्होंने यहां पर कुछ लिलाए की लेकिन हमें उसके बारे में कुछ पता नहीं और सारी लीला करके उन्होंने यहीं पर अपनी आखरी लीला की और वह भगवत धाम लौटे। उसके बाद महाप्रभु भी आए जिन्होंने सन्यास लिया हुआ था और वह भी सारे संसार का भ्रमण कर रहे थे। वे भी पंढरपुर धाम में आए और यहां पर श्रीरंगपुरी से मिले, वे उनके सात दिन सात रात बैठे रहे। और उसी के साथ महाप्रभु ने चंद्रभागा में स्नान भी किया जो गंगा से अभिन्न है। गंगा मैया की जय! महाप्रभु हमेशा दौड़ते रहते थे कभी चलते नहीं थे या फिर कीर्तन किया करते थ और भगवान की दिशा में हमेशा दौड़ते थे । पांडुरंग पांडुरंग! और वह विट्ठल मंदिर के दर्शन मंडप में गए, उन्होंने दर्शन लिया। यहां पर भगवान का उनके चरण कमलों को स्पर्श कर के दर्शन लेने की प्रथा है। लेकिन हम ऐसा जगन्नाथ मंदिर में नहीं कर सकते। हरि हरि। लेकिन उन्होंने यह विट्ठल मंदिर में किया और भगवान के सामने उसी के साथ नृत्य करते हुए कीर्तन भी किया। मैं कह रहा था कि यहां पर इस्कॉन पंढरपुर में हमने महाप्रभु , नित्यानंद प्रभु और विश्वरूप प्रभु के चरण कमल प्राण प्रतिष्ठित किए हुए हैं।मंगल आरती का समय बहुत ही विलोभनीय था। जो कि मैं अभी अभी याद कर रहा था और उसी के साथ चैतन्य चरितामृत की प्रार्थना है जो कृष्णदास कविराज गोस्वामी ने लिखी है, कथञ्चन स्मृते यस्मिन्दुष्करं सुकरं भवेत्। बिस्मूते विपरीतं स्यात् श्री-चैतन्यं नमामि तम् ।। (चैतन्य चरितामृत आदि लीला 14.1) अनुवाद: यदि कोई चैतन्य महाप्रभु का किसी भी प्रकार से स्मरण करता है, तो उसका कठिन कार्य सरल हो जाता है। किन्तु यदि उनका स्मरण नहीं किया जाता, तो सरल कार्य भी बड़ा कठिन बन जाता है। ऐसे चैतन्य महाप्रभु को मैं सादर नमस्कार करता हूँ। कैसे भी करके हमें भगवान को याद करना ही होगा और उनके चरण कमलों का भी ध्यान करना होगा। ऐसा करने के बाद अगर कुछ बहुत कठिन कार्य है वह बहुत ही सरल हो जाएगा। हम उसे बहुत ही सरलता से कर पाएंगे। और उसी प्रार्थना में और आता है कि अगर हम भगवान का चरण कमलों का ध्यान नहीं करेंगे तो उसके विपरीत होगा जैसे कि कुछ बहुत ही सरल कार्य है वह भी बहुत कठिन हो जाएगा। आपको यह फरक समझ में आ गया होगा। मैं ऐसे महाप्रभु को मेरे प्रणाम समर्पित करता हूं। आज सुबह मैंने यह प्रार्थनाएं याद की और उसके बाद में चंद्रभागा के तट पर गया जहां पर गंगा नदी भी है। चंद्रभागा नदी गंगा नदी से अभीन्न है। भीमा आणि चंद्रभागा तुझ्या चरणीच्या गंगा ऐसी यहां पर एक प्रार्थना है। चंद्रभागा के तट पर मैंने मेरी प्रार्थना अर्पण की और जब में यह कर रहा था तब मेने सुना की, पांडुरंग पांडुरंग पांडुरंग विट्ठला! जहां पर मैं था वहां से कुछ मीटर दूर नदी के उस पार विट्ठल मंदिर में मंगल आरती चल रही थी। यह पांडुरंग विट्ठल जो स्वयं भगवान है वैसे तो राधा पंढरीनाथ भी भगवान हैं और महाप्रभु भी स्वयं भगवान है लेकिन यह पांडुरंग विट्ठल भगवान ने 5000 वर्ष पूर्व एक लीला की, जिसमें वह द्वारका से पंढरपुर आए। अब मेरा कीर्तन करने का समय हो गया है मुझे यह कथा रखनी पड़ेगी तो इसके बारे में और मैं नहीं बताऊंगा। भगवान ने यह यात्रा की द्वारका से पंढरपुर तक ताकि वह रुक्मिणी देवी को मना पाए। और उसके बाद भगवान एक भक्त को मिले जिसका नाम पुंडलिक था। पुंडलिक ने भगवान के चरण कमलों के प्रति एक प्रार्थना की कि, हे भगवान ! कृपा करके यहां पर रुक जाओ! और वह प्रार्थना बहुत ही दिल से हुई थी और भगवान तो अपने भक्तों के प्रेम के अधीन है। श्रीभगवानुवाच अहं भक्तपराधीनो ह्यस्वतन्त्र इव द्विज । साधुभिर्ग्रस्तहृदयो भक्तैर्भक्तजनप्रियः ॥ (श्रीमद भागवत 9.4.63) अनुवाद: भगवान् ने उस ब्राह्मण से कहा : मैं पूर्णतः अपने भक्तों के वश में हूँ । निस्सन्देह , मैं तनिक भी स्वतंत्र नहीं हूँ । चूँकि मेरे भक्त भौतिक इच्छाओं से पूर्णतः रहित होते हैं अतएव मैं उनके हृदयों में ही निवास करता हूँ । मुझे मेरे भक्त ही नहीं , मेरे भक्तों के भक्त भी अत्यन्त प्रिय हैं । भक्तपराधीनो भगवान स्वतंत्र नहीं है वे अपने भक्तों के अधीन हे। इसी वजह से भगवान ने यहां पर रुकने का निर्धार किया और भगवान यहां पर रुक गए!यहां पर जो पांडुरंग भगवान का विग्रह है वह विग्रह नहीं है, जो जयपुर या कहीं और जगह पर बनाया गया हो! वहां साक्षात भगवान है! जो यहां पर रुके है। उनकी आरती चल रही थी और मैं वह सुन रहा था। शंख बाजे घंटा बाजे और उसी के साथ गीत भी गाया जा रहा था। यह सब सुनकर में कृपासागर में गोते लगा रहा था! इसीलिए तो पंढरपुर को भूवैकुंठ कहा जाता है। वैकुंठ जो धरती पे है, द्वारका जो धरती पर है और उसी के साथ यह गोलोक भी है। पंढरपुर ही नहीं यहां पर गोपालपुर भी एक जगह है। हरि हरि। यह कुछ आज की, एकादशी की सुबह की यादें थी जो कि बहुत ही मंगलमय थी तो मैंने आपसे कही। हरि हरि। ठीक है। हमारे कीर्तन मिनिस्ट्री ने यह महोत्सव शुरू किया है, एकादशी श्रवण कीर्तन महोत्सव! हर एक एकादशी को हम यहां महोत्सव मनाएंगे। जो कि पहले ही 6 बजे शुरू हो चुका है। हमारे विश्वंभर प्रभु ने कुछ देर के लिए कीर्तन किया उसके बाद मैंने कथा की और अब आधे घंटे के लिए मैं आप सबके लिए और भगवान के लिए कीर्तन करूंगा। हमारे साथ बने रहिए। मेरे प्रिय गुरु भाई महात्मा प्रभु 1 घंटे के लिए जपा रिट्रीट देंगे जो अपने जपा रिट्रीट के लिए बहुत ही विख्यात हे। उसका लाभ लजिए। हरे कृष्ण!

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