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*जप चर्चा* *पंढरपुर धाम से* *19 दिसंबर 2021* हरे कृष्ण ! आज 982 भक्त हमारे साथ जपा टॉक में सम्मिलित हैं। हरे कृष्ण। आज रविवार है। आज स्कोर सुनकर आपको पता लग ही जाएगा कि कुछ लोगों की , कुछ भक्तों की आदत छूटती नहीं है। सोचते हैं कि रविवार आराम का दिन है। हरि हरि। मैं ज्यादा नहीं कहूंगा, अच्छी बात नहीं है आप उनको बताइए। आपने देखा ही है कि ऑल इंडिया पदयात्रा के भक्त कुछ समय के लिए कार्तिक मास में वृंदावन में थे। फिर वृंदावन में ही कृष्ण बलराम मंदिर में ही ग्रंथ वितरण कर रहे थे। प्रभुपाद समाधि के पास में ही पदयात्रा का रथ था और वही से भगवत गीता का वितरण कर रहे थे और कीर्तन तो पदयात्री करते ही रहते हैं। प्रतिदिन ग्रंथ का वितरण करते हैं। वैसे प्रभुपाद ने मुझे कहा था कि जप, कीर्तन, ग्रंथ वितरण और प्रसाद वितरण, पदयात्रा के मुख्य कार्यक्रम है। पदयात्रा वृंदावन से कुरुक्षेत्र जा रहे हैं। धर्म क्षेत्रे, यह चल ही रहा है। शीतकाल है, लेकिन पदयात्री अपने आरामदायक परिस्थिति में बैठे या लेटे नहीं है। वह मैदान में उतरे हैं और कुरुक्षेत्र की ओर जा रहे है। प्रतिदिन प्रभुपाद के ग्रंथों का वितरण कर रहे हैं। भारत का शीतकाल तो पाश्चात्य देश की तुलना में कुछ भी नहीं है। तो यह ग्रंथ वितरण या भगवत गीता का वितरण, मेरे समझने से फर्क नहीं पड़ता है। बात तो यह है कि भगवत गीता स्वयं भगवान ही है। भगवत गीता का वितरण करना या भगवद्गीता किसी को देना मतलब भगवान को ही देना है। भगवान आपके समक्ष है जब आप पढ़ते हो। तो भगवान आपसे आपके साथ संवाद प्रारंभ होता है। आप उस गीता को पहुंचा रहे हैं। पाश्चात्य देश में जहां पर बर्फ होती है। वहां पर भी भक्त कनाडा, रशिया, मंगोलिया उत्तरी ध्रुव के पास में ही है। वहां पर भी वितरण करते हैं गीता जयंती या क्रिसमस पर इसको क्रिसमस मैराथन कहते थे। अब धीरे-धीरे इसका नाम प्रभुपाद का नाम हो गया है। सर्दी हो या गर्मी, आप देशी हो या विदेशी, ब्रह्मचारी हो या गृहस्थ। यारे देख , तारे कह ' कृष्ण ' - उपदेश । आमार आज्ञाय गुरु हञा तार ' एइ देश ॥ (चैतन्य चरितामृत 7.128) अनुवाद:- हर एक को उपदेश दो कि वह भगवद्गीता तथा श्रीमद्भागवत में दिये गये भगवान् श्रीकृष्ण के आदेशों का पालन करे । इस तरह गुरु बनो और इस देश के हर व्यक्ति का उद्धार करने का प्रयास करो । सभी संसार भर के भक्त इस प्रकार की तपस्या कर रहे हैं। कई सारी असुविधाएं उनका सामना कर रहे हैं। भगवान देख रहे हैं और नोट कर रहे हैं। आप उनके लिए क्या कर रहे हो? भगवान देख रहे हैं। आपसे दूर नहीं है। भगवान से कोई दूर जा सकता है? संभव ही नहीं है। आप जहां पर भी जाओ, गुफा में जाओ या आकाश में कोई उड़ान भरो, भगवान सर्वत्र है। भगवान आपके पास ही है। सर्वस्य चाहं ह्रदि सन्निविष्टो मत्तः स्मृतिर्ज्ञानमपोहनं च | वेदैश्र्च सर्वैरहमेव वेद्यो वेदान्तकृद्वेदविदेव चाहम् || (श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप 15.15) अनुवाद: मैं प्रत्येक जीव के हृदय में आसीन हूँ और मुझ से ही स्मृति, ज्ञान तथा विस्मृति होती है | मैं ही वेदों के द्वारा जानने योग्य हूँ | निस्सन्देह मैं वेदान्त का संकलनकर्ता तथा समस्त वेदों का जानने वाला हूँ | इस लोक के प्रत्येक जीव के हृदय प्रांगण में बैठे हैं। वह आपको देख रहे हैं और हम जो प्रयास कर रहे हैं या फिर हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे। यह व्यक्ति ब्रह्म मुहूर्त में जल्दी उठ गया। तो भगवान को पता चला और अब जप कर रहा है, भगवान को पता है। अगर कोई सोया है तो भगवान जानते ही हैं। हमारी तपस्या देखकर भगवान प्रसन्न होते हैं। भगवान ने ध्रुव महाराज की तपस्या देखी और वह ऋषि मुनियों की तपस्या देखकर प्रसन्न होते थे। ग्रंथ वितरण करना और वह भी शीतकाल में तपस्या जरूर है और यह तपस्या के लिए ही जीवन है। जब हम तपस्या करेंगे तो दिव्य तपस्या है। कौन तपस्या नहीं करता? इस संसार में सबको तपस्या करनी पड़ती है और असुविधाओं का सामना करना पड़ता है। लेकिन तपस्या दिव्य होनी चाहिए। ऋषभ उवाच नार्य देहो देहभाजां नलोके कष्टान्कामानहते विड्भुजा ये ।। तपो दिव्यं पुत्रका येन सत्त्वं शुद्धधेरास्माद्ब्रह्मसौख्य वनन्तम् ।। (श्रीमद भगवतम 5.5.1) अनुवाद: भगवान् ऋषभदेव ने अपने पुत्रों से कहा - हे पुत्रो , इस संसार समस्त देहधारियों में जिसे मनुष्य देह प्राप्त हुई है उसे इन्द्रियतृप्ति के लिए ही दिन - रात कठिन श्रम नहीं करना चाहिए क्योंकि ऐसा तो मल खाने वाले कूकर - सूकर भी कर लेते हैं । मनुष्य को चाहिए कि भक्ति का दिव्य पद प्राप्त करने लिए वह अपने को तपस्या में लगाये । ऐसा करने से उसका हृदय शुद्ध हो जाता है और जब वह इस पद को प्राप्त कर लेता है , तो उसे शाश्वत जीवन का आनन्द मिलता है , जो भौतिक आनंद से परे है और अनवरत चलने वाला है । भगवान ऋषभदेव के कुल 100 पुत्र थे। भगवान के केवल 100 पुत्र थे बस? हम सभी भगवान के पुत्र हैं। उस लीला में 100 पुत्र थे। सबसे बड़ा पुत्र भरत ऋषभदेव सब को संबोधित करते हुए कहते हैं। जैसे कृष्ण और अर्जुन का संवाद हुआ था। भगवान अपने भक्तों के साथ संवाद हुआ है। वह अपने पुत्र को संबोधित कर रहे थे। तब उन्होंने कहा हे पुत्रका, एक पुत्र नहीं है, हे पुत्रों 100 पुत्र एकत्रित हुए हैं इसलिए ऋषभदेव कह रहे हैं तपो दिव्यं पुत्रका येन सत्त्वं। तपस्या करो कहते ही कैसी तपस्या करनी चाहिए दिव्य तपस्या करो। यत्करोषि यदश्र्नासि यज्जुहोषि ददासि यत् | यत्तपस्यसि कौन्तेय तत्कुरुष्व मदर्पणम् || (श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप 9.27) अनुवाद: हे कुन्तीपुत्र! तुम जो कुछ करते हो, जो कुछ खाते हो, जो कुछ अर्पित करते हो या दान देते हो और जो भी तपस्या करते हो, उसे मुझे अर्पित करते हुए करो | जो भी तपस्या करो मुझे प्रसन्न करने के लिए तपस्या करो ऐसी तपस्या फिर दिव्य तपस्या कहलाएगी। यत्तपस्यसि कौन्तेय कुंती पुत्र अर्जुन, मदर्पणम् मुझे अर्पित करो। इस ग्रंथ वितरण कार्यक्रम में जो सम्मिलित हो रहे हैं और आशा है कि आप सम्मिलित हो रहे हो। हर व्यक्ति को इस में भाग लेना है। यह जो तपस्या है ग्रंथ वितरण में आप भी जानते हो कैसी कैसी तपस्या है। शीतकाल का नाम ले रहा हूं लेकिन कई सारी और सारी असुविधाएं हैं होती ही रहती हैं और प्रतिकूल परिस्थिति होती ही हैं। तब भी आप ग्रंथों का वितरण करते ही हो। ऐसी तपस्या और ऐसा प्रयास उससे हमारा शुद्धिकरण होगा। शुद्धधेरास्माद्ब्रह्मसौख्य वनन्तम् ऋषभदेव भगवान आगे कह रहे हैं। शुद्धधेरास्माद्ब्रह्मसौख्य वनन्तम् यानी ब्रह्म सुख या कृष्णानंद आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं। आप आगे बढ़ो ,जीव को जो आनंद चाहिए। यह आनंद अमीरी में नहीं है। वह संसार के सुख में नहीं है या आरामदायक परिस्थिति में नहीं है। जो आनंद फकीर या तपस्वी करें, साधक जिस आनंद का अनुभव करते हैं। मैं आनंद अमीरी में नहीं है। हरि हरि। श्रील प्रभुपाद के ग्रंथों का वितरण करते रहिए। आज वैसे महाभारत के युद्ध का पांचवा दिन है। आज पूर्णिमा है। युद्ध एकादशी के दिन प्रारंभ हुआ था। एकादशी से पूर्णिमा तक पहुंचे तो आज पांचवा दिन है। वैसे महाभारत में हर 1 दिन का वर्णन है। हर दिन क्या क्या हुआ, इसका वर्णन आप महाभारत में पढ़ या सुन सकते हो।

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