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जप चर्चा, 25 दिसंबर 2020, पंढरपुर धाम.
जय राधामाधव कुंजबिहारी गोपीजनवल्लभ गिरिवरधारी यशोदानंदन ब्रजजन रंजन यमुनातीर वनचारी.
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय आप भी कह रहे हो? हरे कृष्ण, सभी तो नहीं कह रहे हैं। कई सारे हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे, हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे यह कह रहे हैं। यह अच्छी बात है। कलयुग का धर्म ही है हरे कृष्ण हरे कृष्ण या कलीकाले धर्म हरिनाम संकीर्तन वही श्रीकृष्ण जब श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु के रूप में प्रकट हुए हैं। और प्रकट होकर क्या करते है भगवान? धर्मसंस्थापनार्थाय धर्म की स्थापना करते हैं। और कलयुग के धर्म की स्थापना श्रीकृष्ण ने श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु के रूप में स्थापित की। वह श्रीकृष्ण जब आज के दिन गीताजयंती महोत्सव की जय! अब क्या कहा जाए कि कितना महान दिन है यह। जितना भगवान महान है, या जितनी गीता महान है उतना ही यह दिन, मोक्षदा एकादशी का दिन या उसको वैकुंठा एकादशी भी कहते हैं। यह दिन महत्वपूर्ण है। यही समय है धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्र समवेता समवेता मतलब एकत्रित हुए। कौन-कौन एकत्रित हुए? मामका: मेरे पुत्र पांडु के पुत्र मामका: पांडवाश्चैव युद्ध करने के उद्देश्य से एकत्रित हुए मेरे और पांडु के पुत्रों ने किमकुर्वत। ऐसा प्रश्न पूछते हैं उसके जवाब में वैसे धृतराष्ट्र को तो संजय ने सुनाया है।
अब धृतराष्ट्र को वही बातें संजय सुना रहे थे, जो बातें जो वचन श्रीभगवानुवाच श्रीकृष्ण कह रहे थे अर्जुन से कुरुक्षेत्र में। वही वचन संजय सुना रहे थे धृतराष्ट्र को हस्तिनापुर में। तब यही समय था प्रात काल में ही। सारे सैन्य तो पहले ही पहुंच चुकी थी। और फिर आज के दिन मैं तो राधा पंढरीनाथ की आरती उतार रहा था, मंगल आरती। लेकिन आरती उतारते समय मेरा मन तो कुरुक्षेत्र में था। राधा पंढरीनाथ के स्थान पर श्रीकृष्ण अर्जुन का स्मरण कर रहा था। आरती उतारते समय तो वैसे स्मरण कर ही रहा था। कुरुक्षेत्र धाम की जय! या कुरुक्षेत्रर में पहुंचे हुए श्रीकृष्ण अर्जुन की जय! तो जैसे मैं स्मरण कर ही रहा था तो पुजारी आए, भगवतगीता, कई सारे भगवतगीता लेकर आए अल्टर में। और उन्होंने मेरे समक्ष अल्टर में, राधा पंढरीनाथ के समक्ष, गौर निताई के समक्ष कई सारे भगवतगीता रखी। जैसे राधा पंढरीनाथ जान गए कि मैं सचमुच ही श्रीकृष्ण अर्जुन का स्मरण कर रहा हूं। तो उन्होंने वहां भगवत गीता पहुंचाई। मेरे समक्ष रखी गई। और फिर मैं राधा पंढरीनाथ के साथ भगवतगीता का भी और भगवतगीता के मुख्यपृष्ठ पर जो कृष्णाअर्जुन है उनकी भी आरती करने लगा। और आरती जब पूरी हुई जो आरती गा रहे थे, आरती तो राधा पंढरीनाथ की हो रही थी। लेकिन जो आरती गा रहे थे उन्होंने क्या गाया, राधा पार्थसारथी राधा पार्थसारथी राधा पार्थसारथी राधे तो उन्होंने मुझे भी, सभी को भी राधा पार्थसारथी का स्मरण दिलाया।
श्रील प्रभुपाद ने दिल्ली में नई दिल्ली में राधा पार्थसारथी की प्राणप्रतिष्ठा किए। दिल्ली में जो इस्कॉन नई दिल्ली का धाम है मैं भी वहां का कई सालों तक अध्यक्ष रहा हूं। और वहां के विग्रह राधा पार्थसारथी कहलाते हैं। क्य है वैसे श्रील प्रभुपाद ने नाम ही दिया है राधा पार्थसारथी। तो कुरुक्षेत्र के पार्थसारथी को हस्तिनापुर में स्थापित किए हैं। और साथ मेंं राधा को। हरि हरि, तो नई दिल्ली हस्तिनापुर इंद्रप्रस्थ में स्थापित किए हैं श्रील प्रभुपाद राधा पार्थसारथी को। हरि हरि, तो यहां महाभारत है ही महाभारत महान भारत उस समय इंडिया तो कहतेे ही नहीं थे। कोई सुनते भी नहीं थे, भारत कहते थे। भारत उस समय महाभारत सारे पृथ्वी पर भारत फैला हुआ था।
श्रील व्यासदेव इतिहास लिखें उस समय का। उस समय घटी घटनाओं का तो महाभारत इतिहास। आज के दिन श्रीकृष्ण कुरुक्षेत्र मैं थेे। तो वहां संपन्न हुई जो घटनाएं हैं। घटी हुई घटना या लीला महाभारत में उसकी रचना है। इतिहास मतलब घटी हुई घटना का वर्णन है वह इतिहास पढ़ते हो आप। महाभारत मतलब भारतवर्ष के, मतलब सिर्फ इंडिया ही नहीं, पूरेे पृथ्वी भर के राजा महाराज महायुद्ध के लिए वहां सम्मिलित हुए थे। और उस युद्ध का यह भी महत्व है कि उस युद्ध के मध्य में भगवान है। और वैसे भी यह युद्ध धर्मयुद्ध संपन्न होने जा रहा था। और इस धर्म युद्ध का उद्देश्य धर्म की स्थापना करना था फिर, परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् दुष्टों का संहार भी करने के लिए मैं प्रकट होता हूं। परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् संतों की महात्माओं की, पांच पांडव और अन्य महात्मा उनकी रक्षा के लिए असुरों के संघार के लिए और धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे |
यह अब कहने वाले हैं भगवान थोड़ी देर में। यह संवाद अब शुरू होने जा रहा है। यह संवाद चौथे अध्याय में वे कहेंगे। यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत अर्जुन को उन्होंने भारत कहां। भारतवंशी भी वह भारत। यदा यदा हि धर्मस्य जब-जब होती है क्या होती है? धर्मस्यग्लानिर्भवति धर्म की ग्लानि होती है। अभ्युत्थान- उत्थान होता है। फैलता है अधर्म, धर्म की ग्लानि होती है। तदात्मानं सृजाम्यहम्- मैं प्रकट होता हूं। क्यों प्रकट होता हूं, फिर आगे कहते हैं।
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् | धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे || ८ ||”
अनुवाद भक्तों का उद्धार करने, दुष्टों का विनाश करने तथा धर्म की फिर से स्थापना करने के लिए मैं हर युग में प्रकट होता हूँ |हरि हरि, भगवान धर्म दे रहे हैं। यह भगवतगीता के वचन धर्म है। श्रील प्रभुपाद कहां करते थे, "what is religion lows of the lord" भगवान ने दिए हुए नियम या फिर विधि और निषेध दोनों मिलकर नियम होते हैं। यह विधि और यह निषेध यह करना है यह नहीं करना है। यह भगवतगीता भगवान ने कही। कहकर भगवान ने विधि कहे हैं निषेध कहे हैं। इसके अनुसार मैं जो कह रहा हूं तो श्रीकृष्ण बने हैं कृष्णम वंदे जगदगुरूम श्रीकृष्ण कैसे है कृष्ण की वंदना करते हैं। अहम वंदे कृष्णम मैं कृष्ण की वंदना करता हूं। कैसे कृष्ण की, जगदगुरू जो जगत के गुरु हैं। सारे संसार के गुरु हैं। शिष्यस्तेऽहं शाधि मां त्वां प्रपन्नम् उस युद्ध के मध्य में सेनयोरुभयोर्मध्ये रथं स्थापय मेऽच्युत मेरे रथ को दोनों सेना के मध्य में खड़े करो। अर्जुन ने अभी अभी कहां है। जैसे ही कहां उसके पहले ही भगवान ले गए और अब क्या कहें क्या ना कहें आपसे। कई सारी बातें कहने का या विचार तो मन में कई सारे विचार यह कहो कि वह कहो कितना क्या नहीं कठिन है। तो श्रीकृष्ण अर्जुन के रथ को अर्जुन के रथ को खुद के रथ को भी नहीं वे तो केवल चालक ही है। रथ के मालिक तो अर्जुन ही है वे तो केवल घोड़े हैं हांक रहे हैं।......
जिसके घोड़ेेेेे सफेद वर्ण के है ऐसे महान सुंदर अद्भुत रथ में विराजमान है माधव और पांडव यह दर्शन है। यह लीला वहां संपन्न हो रही है। यहां जिसका वर्णन व्यासदेव किए हैं महाभारत में। और महाभारत में भगवतगीता है। महाभारत के पहले संवाद के पहले मंच बनााया है। कुरुक्षेत्र के मैदान का मंच बना है। और सारी वहां की परिस्थिति का वर्णन हुआ है। दोनों सेना उपस्थित है इसका दर्शन वह जो ब्राह्मण थे ना एक दिन बताया था। आपको श्रीरंगम के वह ब्राह्मण वह गीता का पाठ करते हैं। तो वे श्रीरंगम में नहीं रहते वह सीधे पहुंच जाते हैं कुरुक्षेत्र। और कुरुक्षेत्र का सारा दृश्य का वे दर्शन करते हैं। कृष्ण को जो रथ में विराजमान है और अर्जुन भी वहां हैं। और अर्जुन को कृष्ण उपदेश सुना रहे हैं। ऐसा दृश्य वे महात्मा श्रीरंगम के बे ब्राम्हण दर्शन किया करते थे। तो उस लीला का लीला मतलब रासलीला ही नहीं। यह भी लीला है भगवान जो थी करते हैं वह लीला है। भगवान का हर कृत्य लीला है. भगवान वहां पहुंचे हैं। अर्जुन ने फिर कहां है, कहां था, इस समय कहते होंगे। यही समय होगा, सूर्योदय के समय कुरुक्षेत्र में। मेरे साथ कौन युद्ध करना चाहता है? कौन है? अर्जुन का रथ थोड़ा शत्रु सैन्य से दूर था, तो अर्जुन ने कहा..
सेनायोरुभयोर्मध्ये रथं स्थापय मेऽच्युत मेरे रथ को दोनों सेना के मध्य में खड़े करीए, मेरे रथ को थोड़ा आगे बढ़ाओ, ताकि मैं देखना चाहता हूं मेरे साथ कौन युद्ध खेलना चाहता है, दिखा तो दो कौन है जो मेरे साथ युद्ध करनेवाला हैं। हरि हरि। तो फिर कृष्ण ने वैसे ही किया पार्थ के सारथी बने हैं श्री कृष्ण रथ को आगे खड़े किए हैं दोनों सेना के मध्य में। हम कई बार कुरुक्षेत्र गए हैं हमको पूरा स्मरण है जिसे अर्जुन ने कहा था और श्रीकृष्ण ने फिर वैसा ही किया दोनों सेना क मध्य में रथ को खड़ा किया। तो वह जो स्थान है वहा ज्योतिसर नाम का भी सरोवर है उसी के तट पर दोनों सेना के मध्य में रथ को खड़ा किया। हमको स्मरण आता है वहां का सारा दृश्य, सारा कुरुक्षेत्र ही हमने देखा और सुना भी वहां का इतिहास वहां की महिमा। हरि हरि। तो आज के दिन हमारे इस्कॉन कुरुक्षेत्र के भक्त उसी स्थान पर है और भी कहीं सारे भक्त वहां पहुंच चुके हैं कुरुक्षेत्र में। इस्कॉन के और कई लाखों लोग पहुंचे होंगे। कोरोनावायरस भी है, तो पता नहीं इस साल कितने भक्त आएंगे लेकिन बहुत बड़ी संख्या में भक्तगण वहां पहुंच जाते हैं। कुरुक्षेत्र में आज के दिन, इस क्षण भगवान ने यह गीता का उपदेश सुनाया। वैसे तो कृष्ण सारे संसार के गुरु है ही, लेकिन बन भी गए उस दिन। एक नमूने के रूप में अर्जुन को शिष्य बनाए हैं या अर्जुन ही बन गए शिष्य। लेकिन भगवान तो इस संसार के सभी मनुष्यों को और सभी समय के मनुष्यों को अर्जुन जैसे देखना चाहते थे। कैसे अर्जुन?
अर्जुन ने कहा और भी कुछ कहा... मेरी कल्याण की बात तो कहींए हे श्री कृष्ण अब मैं आपकी शरण ले रहा हूं आपका शिष्य बन रहा हू शाधि मां मुझे आदेश दीजिए, उपदेश कीजिए मैं आपकी शरण में आया हूं। तो श्रीकृष्ण भविष्य में यह चाहते थे कि ऐसा हो जैसे अर्जुन ने शरण ली कृष्ण की और वे श्रीकृष्ण से जो जगतगुरु है, आदिगुरु है उनसे उपदेश सुनना चाहते थे। वैसे भविष्य में लोग, मनुष्य, सर्वत्र भी उसे सुने ऐसी भविष्यवाणी ऐसा उद्देश लेकर श्री भगवान ने इस गीता का उपदेश अर्जुन को सुनाएं हैं। यह भगवान की इच्छा या विचार है गीता का उपदेश सुनाने के पीछे। केवल अर्जुन का उद्धार, अर्जुन को मुक्त करना, अर्जुन को भक्त बना कर उनको तत्वतः तत्व सुनाना और फिर त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोऽर्जुन पुनः जन्म नहीं होगा, तुम मुझेेेे प्राप्त होंगे, मेरे लोक मेरेेे धाम लोटोगे। ऐसा जो श्रीकृष्ण ने कहा है, या व्यक्ति लौटता है जब वे इस गीता के ज्ञान को पढ़ता, सुनता, चिंतन करता है। तो श्रीकृष्ण चाहते हैं कि भविष्य में जब यह दुर्लभ मानव दुर्लभ मानव जनम सत-संगे यह दुर्लभ मनुष्य जीवन जीव को प्राप्त होगा तो क्या करेंगे? यह गीता को पढ़ेंगे, गीता को सुनेंगे। और वही बात बताने के लिए श्रीकृष्ण पुनः आगए श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु के रूप में। अब उन्होंने मानो कहां की, ए मैंने जो गीता का उपदेश सुनाया था ना कुरुक्षेत्र में अब उस गीता के ज्ञान को क्या करो? वह उपदेश जो मैंने सुनाया था, अब हे मनुष्यों अब क्या करो इस गीता के ज्ञान को आप शेयर करो, इस गीता के उपदेश को फैलाओ, सर्वत्र गेहे-गेहे घर घर, देशे-देशे देश देश। यह मेरा उपदेश हिंदुओं के लिए नहीं है, मेरा तो उपदेश मेरे जो है ममैवांशो जीवलोके जीवभूत: सनातन: जो मेरे जीव है।
वैसे सभी जीव भगवान के अंश है तो उन सभी तक, जो अब मनुष्य शरीर प्राप्त किए हैं उन तक यह मेरे उपदेश के ज्ञान का प्रसार प्रचार करो। ऐसा श्रीकृष्ण, श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु के रूप में कहे, ऐसा आदेश दिए। और हां मैं तो कृष्णं वन्दे जगत गुरुं मैं तो गुरु हूं ही, लेकिन आप भी गुरु बनो। चैतन्य महाप्रभु ने ऐसा आदेश दिया आमार अज्ञाय गुरु होइया तारे एयी देश अपने अपने देश में क्या करो? गुरु बनो, कैसे गुरु बनेंगे? जारे दाखो तारे कहो कृष्ण उपदेश कृष्ण का उपदेश कहो, सुनाओ, अगर नहीं कह सकते हा थोड़ा तो सुनाओ, और फिर गीता का वितरण करो, गीता को बांटो। आज का जो यह गीता जयंती महोत्सव है, गीता जयंती महोत्सव इस्कॉन के भक्त कुरुक्षेत्र में भी आज मना रहे हैं। वहां बहुत बड़ा यज्ञ हो रहा है "गीता दान ज्ञान यज्ञ"। और वहां रिपोर्टिंग होगा कृष्ण और अर्जुन के प्रसन्नता के लिए।संसार भर के अंतर्राष्ट्रीय श्रीकृष्ण भावना मृत संघ के (श्रील प्रभुपाद की जय ) इस संघ के संस्थापक आचार्य श्रील प्रभुपाद उनकी प्रेरणा से, एक तो उन्होंने भगवदगीता यथारूप की रचना की और उन्होंने यह भी कहा कि जितनी भाषा में हो सके मेरी ग्रंथो का, गीता भागवत का, गीता का अनुवाद कर सकोगे तो करो।
श्रील प्रभुपाद के भगवदगीता यथारूप का भाषांतर कुछ 80 से अधिक भाषाओं में हो चुका है । फिर श्रील प्रभुपाद ने कहां ही था ग्रंथों का वितरण करो, ग्रंथो का वितरण करो, ग्रंथों का वितरण करो। इस महीने में मैराथन भी श्रील प्रभुपाद ही प्रारंभ किए थे। तो आज के दिन इस्कॉन के लीडर्स हम सभी की ओर से श्रील प्रभुपाद अनुगाज, प्रभुपाद के जो अनुयाई है आप सभी भी, सबका वहा कुरुक्षेत्र में रिपोर्टिंग होगा। वैसे हर मंदिर में हर रोज रिपोर्टिंग तो होता ही है। आज प्रातः काल इस्कॉन पंढरपुर मंदिर में भी रिपोर्टिंग हुआ इतने गीता वितरण की इन्होंने 40 गीता कल वितरण की उन्होंने 1000 गीता वितरित की।
दिन में और भी कार्यक्रम होने वाले हैं यहां पर भी और विश्व भर के और भी मंदिरों में। यह बताने का यह विचार था कि इस वर्ष 2000000 भगवदगीता वितरण करने का संकल्प इस्कॉन ने लिया है। उसका रिपोर्टिंग आज कुरुक्षेत्र में होगा कृष्ण और अर्जुन की प्रसन्नता के लिए। लगभग 2000000 भगवदगीता का वितरण हो चुका है और इस महीने के अंत तक तो 20 लाख से अधिक गीता वितरण होने की संभावना है। इसका रिपोर्टिंग, इसकी घोषणा श्रीकृष्ण अर्जुन को आज कुरुक्षेत्र में होगी,कृष्ण को सुनाएंगे। तो आपने भी जो मुझे इस समय सुन रहे हो जिन्होंने ग्रंथों का वितरण किया है या कर रहे हो उसका रिपोर्टिंग भी उस में सम्मिलित है। पूरा विस्तार से जाकर तो रिपोर्टिंग नहीं कर पाएंगे वहां कुरुक्षेत्र में। अन्य स्थानों पर होगा या यहां पर भी इस मंच पर हम इस कॉन्फ्रेंस में करते हैं।
इस मैराथन के अंत में संकीर्तन महोत्सव भी मनाया जा सकता है, उस दिन इस कॉन्फ्रेंस में भी थोड़ा अधिक विस्तार से रिपोर्ट कृष्ण और अर्जुन को भी सुनाया जाएगा, सभी उपस्थित भक्त भी सुनेंगे। हरि हरि। गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल। मेरा समय समाप्त हुआ है, दिन मे और भी कार्यक्रम है और तीन कार्यक्रम तो है मेरे लिए यहां और भी तीन कार्यक्रम कम से कम होने वाले हैं ही अब मैं मेरी वाणी को यहीं विराम देता हूं।
गीता जयंती महोत्सव की जय। कुरुक्षेत्र धाम की जय। श्रीकृष्ण अर्जुन की जय। श्रीमद भगवदगीता की जय। श्रीला प्रभुपाद की जय। निताई गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल।