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हरे कृष्ण जप चर्चा, पंढरपुर धाम से, 24 दिसंबर 2020 गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल...! आज 779 स्थानों सें अभिभावक जप कर रहे हैं। (जय) राधा माधव (जय) कुंजबिहारी। (जय) गोपीजन वल्लभ (जय) गिरिवरधारी॥ (जय) यशोदा नंदन (जय) ब्रजजनरंजन। (जय) यमुनातीर वनचारी॥ अनुवाद:-वृन्दावन की कुंजों में क्रीड़ा करने वाले राधामाधव की जय! कृष्ण गोपियों के प्रियतम हैं तथा गोवर्धन गिरि को धारण करने वाले हैं। कृष्ण यशोदा के पुत्र तथा समस्त व्रजवासियों के प्रिय हैं और वे यमुना तट पर स्थित वनों में विचरण करते हैं। ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय...! हरि हरि...! भगवान ने सुनाया गीता का उपदेश वह भी वासुदेव ही थें। वसुदेव के पुत्र वासुदेव।ऐसे वासुदेव को हमारा प्रणाम बारंबार प्रणाम हैं। कृष्ण जिनका नाम है गोकुल में जिनका नाम कृष्ण हैं। है तो वैसे वह वासुदेव या मथुरा में वह वासुदेव हुए। मथुरा में वसुदेव के पुत्र के रूप में प्रकट हुए थें, भगवान का नाम हुआ ओम नमो भगवते वासुदेवाय। वासुदेव हरी हरी...! पंढरपुर में नामघोष चलते रहता हैं। दर्शन के लिए जाते हैं दर्शनार्थी कहते रहते हैं वासुदेव हरी हरी...!वासुदेव हरी हरी...! आप कह रहे हो! ओम नमो भगवते वासुदेवाय! बहूनां जन्मनामन्ते ज्ञानवान्मां प्रपद्यते | वासुदेवः सर्वमिति स महात्मा सुदुर्लभः।। (श्रीमद्भगवद्गीता 7.19) अनुवाद:-अनेक जन्म-जन्मान्तर के बाद जिसे सचमुच ज्ञान होता है, वह मुझको समस्त कारणों का कारण जानकर मेरी शरण में आता है | ऐसा महात्मा अत्यन्त दुर्लभ होता है | वासुदेव ही सब कुछ है वासुदेवपरा वेदा वासुदेवपरा मखा:। वासुदेवपरा योगा वासुदेवपरा: क्रिया:।। 28।। वासुदेवपरं ज्ञानं वासुदेवपरं तप:। वासुदेवपरो धर्मों वासुदेवपरा गति:।। 29।। (श्रीमद्भागवतम् 1.2.28-29) अनुवाद: - प्रामाणिक शास्त्रों में ज्ञान का परम उद्देश्य पूर्ण पुरुषोत्तम परमेश्वर श्री कृष्णा हैं। यज्ञ करने का उद्देश्य उन्हें ही प्रसन्न करना हैं। योग उन्हीं के साक्षात्कार के लिए हैं। सारे सकाम कर्म अंततः उन्हीं के द्वारा पुरस्कृत होते हैं। वह परम ज्ञान हैं और सारी कठिन तपस्याएँ उन्हीं को जानने के लिए कि जाती हैं। उनकी प्रेम पूर्वक सेवा करना ही धर्म हैं। वही जीवन के चरम लक्ष्य हैं। ऐसा भागवत में लिखा है भगवान के लिए ही सभी क्रियाएं हैं वासुदेवपरं तप: वासुदेव ही तप है।वही वासुदेव अब कुरुक्षेत्र में पहुंचे हैं। आज पहुंचे होंगे वैसे कल युद्ध का प्रारंभ हैं। यह सब घोषणाएं हो चुकी थीं युद्ध कहां होगा और किस दिन प्रारंभ होगा। जैसे कुश्ती का जंगी मैदान कुश्ती खेलते हैं तो फिर कहां होंगी कुश्ती?,कब होगी कुश्ती?,कौन खेलेगा किसके साथ कुश्ती? ऐसे ही धर्म युद्ध पुरी तयारी के साथ हो रहा हैं। युद्ध की तैयारी हो रही हैं। ऐसे धर्म युद्ध हुआ करते थें। आजकल जैसे युद्ध नहीं छिप- छिप कर होते है, जनता जब सोई है रात के वक्त तब बम फेंक के भाग जाओ डरपोक कहीं का यह तो डरपोको का काम हैं। क्षत्रिय तो, शौर्य का प्रदर्शन किया करते थें। आ जाओ! आव्हान करते थे और फिर मैदान में आ जाते थें। धर्म क्षेत्र में युद्ध होगा तो पहले भी युद्ध हुए थे यहां धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र एक युद्ध भूमि भी रही यज्ञ भी संपन्न हुए ब्रह्मा भी यज्ञ किए थे तो वहां कुरुक्षेत्र में है ब्रह्म कुंड प्रसिद्ध है। ब्रह्म कुंड दर्शनीय है कुरुक्षेत्र का ब्रह्मा कुंड कुछ दिन पुर्व बताया था सूर्यकुंड भी वहा हैं। सरस्वती का प्राकट्य भी है, सरस्वती वहा बहती हैं। राजा कुरु ने वहां खेती की थी ऐसा भी इतिहास है, इसलिए वह कुरुक्षेत्र हुआ। तो कुरुक्षेत्र कुरुओं के वंशज तो कुरु वैसे वहां पहुंचे कौरव तो कौरव है ही और पांडव भी वैसे कौरव ही हैं। दोनों भी कुरु वंशज है, तो राजा कुरु उनके पूर्वज रहे कौरव के पूर्वज कुरु राजा कुरु का यह क्षेत्र या राजा कुरू के नाम से यह क्षेत्र प्रसिद्ध था। कुरुक्षेत्र या फिर यह धर्म क्षेत्र यह धर्म का भी क्षेत्र है यहां धार्मिक कृत्य हुआ करते थें, तो वैसे सुप्रख्यात,सुप्रसिद्ध क्षेत्र कुरुक्षेत्र।अगर युद्ध खेलना है तो मैदान चाहिए। ऐसा मैदान था ऐसा रणांगण था। रन मतलब युद्ध। एक क्रीड़ांगन होता है, यह रणांगण हैं।रण आंगन वही युध्द होगा जहाआबादी नहीं है, जहा गाँव नहीं है जो मैदान ही मैदान हैं। खुला मैदान चाहिए।यह धर्म युद्ध भी और विश्व युद्ध होने जा रहा है। सारे विश्व भर के योद्धा कुछ कौरव के पक्ष में और कुछ पांडव के पक्ष में वैसे पांडव भी कौरव हैं।वे पांडू के पुत्र हैं इसीलिए उन्हें पांडव का आ जाता है लेकिन है तो वह कौरव ही। भाई भाई जो है धृतराष्ट्र और पांडू भाई भाई थें। पांडु के पुत्र पांडव और धृतराष्ट्र के पुत्र कौरव संबोधित किए जाते थें। इतनी बड़ी सेना संसार भर के योद्धा राजा कुछ दुर्योधन के पक्ष में तो कुछ युधिष्ठिर महाराज के, पांडवों के, अर्जुन के पक्ष में युद्ध खेलने वाले थें। वह पहुंचे हैं आज के दिन पहुँचे हैं और कुछ तो बहुत पहले से पहुंचे होंगे। रहने की व्यवस्था किए होंगे तंबू वगैरे खड़े किए होंगे इसके लिए भी कोई साथ चाहिए था।एक युद्ध के लिए रणांगण चाहिए। पूरे दिन भर युद्ध चलता था प्रातः काल से सायं काल तक इसी का नाम है धर्म युद्ध।यह तो धर्म युद्ध प्रातः काल से सूर्योदय से सूर्यास्त तक इसीलिए एक दिन पूछा था, कौन सा समय था, भगवान ने अर्जुन को भगवत गीता उपदेश सुनाया था? उसका उत्तर क्या हैं?सूर्योदय के समय भगवान ने भगवत गीता का उपदेश सुनाया। दोनों सेनाएं तैयार हुई और युद्ध प्रारंभ होने ही जा रहा था, इतने में अर्जुन ने अर्जुन को भगवान ने योग माया के प्रभाव से अर्जुन को संभ्रमित किया हैं। मोह माया में डाल दिए है, फिर ऐसे अर्जुन को स्मितअस्मित स्थित करना है,धीर गंभीर बनाना है युध्द के लिए पुनः तैयार करना है तो फिर श्रीभगवानुवाच गीता सुगीताकर्तव्या किमन्यौ: शास्त्रविस्तरैः । या स्वयं पद्मनाभस्य मुखपद्माद्विनिः सृता ॥ (गीता महात्मय ४) अनुवाद:-चूँकि भगवद्गीता भगवान् के मुख से निकली है, अतएव किसी अन्य वैदिक साहित्य को पढ़ने की आवश्कता नहीं रहती । केवल भगवद्गीता का ही ध्यानपूर्वक तथा मनोयोग से श्रवण तथा पठन करना चाहिए । केवल एक पुस्तक, भगवद्गीता, ही पर्याप्त है क्योंकि यह समस्त वैदिक ग्रंथो का सार है और इसका प्रवचन भगवान् ने किया है। गीता का प्रवचन, गीता का उपदेश सूर्योदय के समय ही प्रारंभ हुआ कुरुक्षेत्र में हरि हरि! वह दिन कल का दिन है आज दशमी है कल होगी एकादशी मोक्षदा एकादशी के दिन भगवान श्रीभगवानुवाच यह महत्वपूर्ण बात कही है भगवानुवाच! भगवान कौन है? ऐश्वर्यस्य समग्रस्य वीर्यस्य यशसा: श्रीय: ज्ञान वैराग्ययोश चैव सन्नम भग इतिंगना।। (विष्णु पुराण 6.5.47) अनुवाद: - पराशर मुनि जो श्रील व्यास देव के पिता हैं श्री भगवान के बारे में कहते हैं कि छः ऐश्वर्य यथा धन बल यश रूप ज्ञान एवं वैराग्य परम पुरुषोत्तम भगवान में पूर्ण मात्रा में विद्यमान होते हैं अतः श्री भगवान सर्व आकर्षक हैं। जो छ: ऐश्वर्य से पुर्ण है उनको संबोधित किया जाता है भगवान इस उपाधि से, वह भगवान है ऐश्वर्यस्य समग्रस्य समग्र ऐश्वर्य से, समग्र यश, समग्र सौंदर्य, समग्र वैराग्य,समग्र ज्ञान, संपूर्ण ज्ञान सर्वग्य है, जो भगवत गीता में जो लिखा है समय-समय पर श्री भगवानुवाच मतलब यह है कि ज्ञानवान उवाच ज्ञानवान कौन ज्ञानवान उवाच कितना है इनका ज्ञान समग्र ज्ञान। कृष्णा ने कहा: वेदाहं समतीतानि वर्तमानानि चार्जुन। भविष्याणि च भूतानि मां तु वेद न कश्चन।। (श्रीमद्भगवद्गीता 7.26) अनुवाद: -हे अर्जुन! श्री भगवान होने के नाते मैं जो कुछ भूतकाल में घटित हो चुका है,जो वर्तमान में घटित हो रहा है और जो आगे होने वाला है, वह सब कुछ जानता हूं। मैं समस्त जीवो को भी जानता हूंँ,किंतु मुझे कोई नहीं जानता। भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा है हेअर्जुन! मैं सब जानता हूंँ। क्या जानता हुँ? समतीतानि वर्तमानानि भविष्याणि च भूतानि मां तु संसार में जितने भी जीव है भूतानि उन सभी जीवो का भूतकाल समतीतानि मैं सभी जीव वर्तमान काल में क्या क्या कर रहे है,कहां है, क्या सोच रहे हैं, इत्यादि इत्यादि बातों को भी और भविष्याणि उनके भविष्य को भी अहम वेद मैं जानता हूंँ। कृष्ण ने कहा मां तु वेद न कश्चन उन्होने ये भी कहा समस्या तो यह है कि मैं तो सभी जिओ के भूतकाल वर्तमान भविष्य काल को भली भांति जानता हूं लेकिन मां तु मतलब किंतु मुझे तो वेद न कश्चन मैं जानता हूं लेकिन दुनिया मुझे नहीं जानती हैं। यह समस्या है भगवानुवाच, ज्ञानवान उवाच जो भी समझ सकते हैं जो भगवान कह रहे हैं। इसे भी हमें इस भगवत गीता के महिमा का महत्त्व हम समझ सकते हैं। कौन बोल रहे हैं? भगवानुवाच भगवान कोन? किस को भगवान कहते हैं? ज्ञानवान उवाच समग्र ज्ञान समग्र ज्ञान वाले भगवान बोल रहे हैं और वह जो बोले वह वह है भगवत गीता,सॉन्ग ऑफ गॉड, श्री कृष्ण के वचन हैं।यह वचन श्री कृष्ण कहने वाले थे। पर उससे पहले भगवदगीता की शुरुआत धृतराष्ट्र से होती है ।धृतराष्ट्र उवाच। संजय उवाच, भगवान उवाच, अर्जुन उवाच बाद में आते हैं। सर्वप्रथम धृतराष्ट्र उवाच आता है ।धृतराष्ट्र हस्तिनापुर में बैठे हैं और संजय से पूछ रहे हैं । “धृतराष्ट्र उवाच धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः | मामकाः पाण्डवाश्र्चैव किमकुर्वत सञ्जय || १ ||” अनुवाद धृतराष्ट्र ने कहा — हे संजय! धर्मभूमि कुरुक्षेत्र में युद्ध की इच्छा से एकत्र हुए मेरे तथा पाण्डु के पुत्रों ने क्या किया ? भगवद गीता अध्याय 1,श्लोक 1 धृतराष्ट्र ने संजय को संबोधित करते हुए कहा ,कुरुक्षेत्र में जो हो रहा है, जो कहा जा रहा है, या जो सोचा भी जा रहा है यह सब मैं देख,सुन और समझ पा रहा हूं ।यह श्रील व्यास देव जी की कृपा से संभव हुआ है। भगवदगीता के अंत में संजय कह रहे हैं “व्यासप्रसादाच्छ्रुतवानेतद्गुह्यमहं परम् | योगं योगेश्र्वरात्कृष्णात्साक्षात्कथयतः स्वयम् || ७५ ||” अनुवाद व्यास की कृपा से मैंने ये परम गुह्य बातें साक्षात् योगेश्वर कृष्ण के मुख से अर्जुन के प्रति कही जाती हुई सुनीं । भगवद गीता अध्याय 18,श्लोक 75 दूरदर्शन हो रहा है, संजय हस्तिनापुर मैं बैठे हैं और कुरुक्षेत्र में जो कई मील दूर है वहां से दूर दर्शन कर रहे हैं। संजय को ऐसी शक्ति और सामर्थ्य श्रील व्यास जी की कृपा से प्राप्त था। श्रील व्यास देव भगवान के श्यक्तावेश अवतार हैं। जब भगवान किसी व्यक्ति को शक्ति का आवेश या ज्ञान का आवेश प्रदान करते हैं। व्यास देव जी के अवतार का उद्देश्य था कि सारे शास्त्रों की रचना करके ज्ञान को उपलब्ध कराएं।इसीलिए वह प्रसिद्ध हैं । ऐसा नहीं है कि उन्होंने ज्ञान बनाया। ज्ञान के स्तोत्र तो भगवान श्री कृष्ण ही हैं। भगवद गीता में लीक है श्री उवाच, श्रील व्यास देव उवाच नहीं। शास्त्रों को अपौरुषेय कहा गया है। शास्त्रों की रचना किसने की ?भगवदगीता की, वेदों की, उपनिषदों की ?शास्त्र अपौरुषेय है ।संसार के किसी पुरुष ने यह ज्ञान नहीं दिया है ।यह ज्ञान पुरुषोत्तम भगवान श्री कृष्ण का दिया हुआ है। यह ज्ञान शाश्वत है। यह ज्ञान इतना पुराना है, यह एक वैदिक वांग्मय है। इस समय ज्ञान उत्पन्न हुआ, इस समय से ज्ञान मिला, उपलब्ध हुआ, इस समय से यह ज्ञान लिखा जा रहा है। पुराणं अपि नवम पुराण अति प्राचीन होते हुए भी सदैव नये हैं ।वेद पुराण सब समय में ही हैं। अव्दैतमच्युतमनादिमनन्तरूपम् आद्यं पुराणपुरुषं नवयौवनं च। वेदेषु दुर्लभमदुर्लभमात्मभत्त्कौ गोविन्दमादिपरुषं तमहं भजामि।। अनुवाद: -जो वेदों के लिए दुर्लभ है किंतु आत्मा कि विशुद्ध भक्ति द्वारा सुलभ है, जो अद्वैत है, अच्छी है, अनादि है, जिनका रूप अनंत है, जो सबके आदि है तथा प्राचीनतम पुरुष होते हुए भी नित्य नवयुवक हैं, उन आदि पुरुष भगवान गोविंद का मैं भजन करता हूंँ। शास्त्रों के लिए भी और भगवान के लिए भी यह बात कही गई है। कृष्ण षोडश वर्षीय लगते हैं ।कृष्ण जब कुरुक्षेत्र के मैदान में पहुँचे थे, तब वह सौ वर्ष के थे यहां की गणना के अनुसार ।पर उनकी दाढ़ी, मूछ नहीं थी। बाल पके नहीं थे। जो कि वृद्धा अवस्था के लक्षण हैं ।जब वह कुरुक्षेत्र गए तो वह सोलह वर्ष के ही लग रहे थे । भगवान की उम्र बढ़ती नहीं। भगवान शाश्वत हैं, ताजे हैं, नए रहते हैं। कृष्ण नए हैं सदा ऐसे ही उनसे संबंधित जो ज्ञान है गीता ,भागवत ,वेद, उपनिषद यह ज्ञान भी शाश्वत है। हमारी स्मरण शक्ति क्षीण हो जाती है, दिमाग काम नहीं करता ,इसलिए लिखने की आवश्यकता रहती है। श्रील व्यास देव जी ने सारे शास्त्रों के ज्ञान को लिखित बनाया। जब श्री कृष्ण भगवत गीता सुनाएंगे तो वह कहने वाले हैं एवं परम्पराप्राप्तमिमं राजर्षयो विदः | स कालेनेह महता योगो नष्टः परन्तप || २ || परमेश्र्वर के साथ अपने सम्बन्ध का विज्ञान, योगविद्या; नष्टः- छिन्न-भिन्न हो गया; परन्तप- हे शत्रुओं को दमन करने वाले, अर्जुन | इस प्रकार यह परम विज्ञान गुरु-परम्परा द्वारा प्राप्त किया गया और राजर्षियों ने इसी विधि से इसे समझा | किन्तु कालक्रम में यह परम्परा छिन्न हो गई, अतः यह विज्ञान यथारूप में लुप्त हो गया लगता है | भगवद गीता अध्याय 4 श्लोक 2 इसलिए यह ज्ञान नष्ट हो गया आच्छादित हो गया लुप्त हो गया । “श्री भगवानुवाच इमं विवस्वते योगं प्रोक्तवानहमव्ययम् | विवस्वान्मनवे प्राह मनुरिक्ष्वाकवेऽब्रवीत् || १ ||” अनुवाद भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा – मैंने इस अमर योगविद्या का उपदेश सूर्यदेव विवस्वान् को दिया और विवस्वान् ने मनुष्यों के पिता मनु को उपदेश दिया और मनु ने इसका उपदेश इक्ष्वाकु को दिया | भगवद गीता अध्याय 4,श्लोक 1 मैंने यह भक्ति योग का ज्ञान विवस्वान सूर्य देव को दिया था। वो ही ज्ञान मैं तुम्हें सूर्योदय के समय (सूर्य साक्षी है)कुरुक्षेत्र में, तुमको सुना रहा हूं । क्यों सुना रहा हूं? क्योंकि तुम मेरे मित्र और भक्त हो इसीलिए मैंने तुम्हारा चयन किया । और यह कैसा ज्ञान है यह रहस्यमई ज्ञान है । “राजविद्या राजगुह्यं पवित्रमिदमुत्तमम् | प्रत्यक्षावगमं धर्म्यं सुसुखं कर्तुमव्ययम् || २ ||” अनुवाद यह ज्ञान सब विद्याओं का राजा है, जो समस्त रहस्यों में सर्वाधिक गोपनीय है | यह परम शुद्ध है और चूँकि यह आत्मा की प्रत्यक्ष अनुभूति कराने वाला है, अतः यह धर्म का सिद्धान्त है | यह अविनाशी है और अत्यन्त सुखपूर्वक सम्पन्न किया जाता है | भगवद गीता अध्याय 9 ,श्लोक 2 ऐसा ज्ञान ,यह उपदेश भगवान ने अर्जुन को निमित्त बनाकर हमें सुनाया। श्रीमद भगवत गीता की जय! भगवत गीता जयंती की जय! इस कृपा से ब्रह्मांड में भ्रमण करने वाले सभी जीवो को कृपा मिली। ब्रह्माण्ड भ्रमिते कोन भाग्यवान जीव। गुरु- कृष्ण- प्रसादे पाय भक्ति-लता-बीज।। ( चैतन्य चरितामृत मध्य लीला १९.१५१ ) अनुवाद:- सारे जीव अपने- अपने कर्मों के अनुसार समूचे ब्रह्माण्ड में घूम रहे हैं। इनमें से कुछ उच्च ग्रह-मंडलों को जाते हैं और कुछ निम्न ग्रह- मंडलों को। जिनको गीता प्राप्त हुई है, जो अध्ययन कर रहे हैं ,तो हमें समझ लेना चाहिए कि हमारा भाग्य उदय हुआ है ।और वह भी भगवत गीता यथारूप होनी चाहिए वरना पुनः हम गुमराह हो जाएंगे । प्रायेणाल्पायषुः सभ्य कलावस्मिन् युगे जनाः । मन्दाः सुमन्दतयो मन्दभाग्या ह्रुपद्रुताः ।। (श्रीमद भागवद् 1.1.10) अनुवाद : हे विद्वान , कलि के इस लौह-युग में लोगों की आयु न्युन है । वे झगड़ालू , आलसी , पथभ्रष्ट , अभागे होते हैं तथा साथ ही साथ सदैव , विचलित रहते हैं । एवं परम्पराप्राप्तमिमं राजर्षयो विदः | स कालेनेह महता योगो नष्टः परन्तप || २ || परमेश्र्वर के साथ अपने सम्बन्ध का विज्ञान, योगविद्या; नष्टः- छिन्न-भिन्न हो गया; परन्तप- हे शत्रुओं को दमन करने वाले, अर्जुन | इस प्रकार यह परम विज्ञान गुरु-परम्परा द्वारा प्राप्त किया गया और राजर्षियों ने इसी विधि से इसे समझा | किन्तु कालक्रम में यह परम्परा छिन्न हो गई, अतः यह विज्ञान यथारूप में लुप्त हो गया लगता है | गीता का ज्ञान काल के प्रभाव से अच्छादित हो गया है ।उसमें गिरावट और मिलावट आ चुकी है ।इसीलिए भगवत गीता यथारूप ही होनी चाहिए। और उसके साथ-साथ परंपरा में होनी चाहिए ।हमें भगवस्ड गीता यथारूप का ही अध्ययन करना चाहिए। क्योंकि हमे परंपरा से प्राप्त हुई है। आप सभी भाग्यवान हो। भगवान ने हम पर गीता का उपदेश सुना कर कृपा करी है ।हमारी गौड़ीय वैष्णव परंपरा में हमारे आचार्यों ने हमें सही भावार्थ सुनाएं और लिखे हैं। भगवान की ओर से आचार्यों की ओर से श्रील प्रभुपाद ने यह भगवद गीता प्रकाशित की है ।तात्पर्य बहुत ही महत्वपूर्ण हैं। वरना अर्थ का अनर्थ निकल जाता है। ऐसी भगवत गीता का संस्करण पढ़कर कोई भक्त नहीं बन पाता ।आप भी निमित्त बनिये। औरों के भाग्य को उदय करिए ।गीता का ज्ञान वितरण करिए ।यह हम कर भी रहे हैं इस दिसंबर के महीने में। गीता को पढ़ भी रहे हैं और वितरण भी कर रहे हैं । यारे देखो तारे कहो कृष्ण उपदेश हरे कृष्ण।।

English

24 December 2020

Bhagavad Gita As It Is - eternal, ever fresh knowledge

Om Namo Bhagavate Vasudevaya!

Who spoke the divine messages of Bhagavad Gita? It was Vāsudeva, the son of Vasudeva. We pay our obeisances to this Vāsudeva,

krsna jinka naam hai gokul jinka dham hai aise sri bhagawan ko mera barambar pranam hai

In Mathura He is known as Vāsudeva and in Pandharpur the devotees chant Vāsudeva.

bahūnāṁ janmanām ante jñānavān māṁ prapadyate vāsudevaḥ sarvam iti sa mahātmā su-durlabhaḥ

Translation After many births and deaths, he who is actually in knowledge surrenders unto Me, knowing Me to be the cause of all causes and all that is. Such a great soul is very rare. (BG 7.19)

Vāsudeva is the One for whom all penances and austerities are done.

vāsudeva-parā vedā vāsudeva-parā makhāḥ vāsudeva-parā yogā vāsudeva-parāḥ kriyāḥ vāsudeva-paraṁ jñānaṁ vāsudeva-paraṁ tapaḥ vāsudeva-paro dharmo vāsudeva-parā gatiḥ

Translation In the revealed scriptures, the ultimate object of knowledge is Śrī Kṛṣṇa, the Personality of Godhead. The purpose of performing sacrifice is to please Him. Yoga is for realising Him. All fruitive activities are ultimately rewarded by Him only. He is supreme knowledge, and all severe austerities are performed to know Him. Religion [dharma] is rendering loving service unto Him. He is the supreme goal of life. (ŚB 1.2.28-29)

Everything is dedicated to Vāsudeva. This Vāsudeva Kṛṣṇa has arrived in Kuruksetra as from tomorrow the battle of Mahabharata is to start. The armies must have reached Kurukshetra today and the necessary announcements, arrangements have been made for the battle. The way arrangements are made for wrestling, similarly everything was planned for the Mahabharata war with certain rules. This way the dharma yuddha took place. Not like in today's way of life where people hide and attack, not like cowards where they throw bombs when the citizens of the country are sleeping. The warriors exhibiting their bravery, chivalry, virtues were challenged.

In Kuruksetra, several battles took place. Brahma kunda, Surya kunda and Saraswati River are prominent places of pilgrimage there. This Kuruksetra name was derived from the king’s name Kuru who had performed yajna on that land. The Pandavas and the Kauravas are descendants of the Kuru dynasty. Kuru-kṣetre is also known as Dharma ksetre. It's a huge battle-field. There were no residences nearby and this dharma yuddha would be taking place there. This Mahabharata was a world war where all the kings from all parts of the world participated on either of the sides. Pandavas were also Kauravas, kaurav means the successor of Kuru, but to differentiate they were known as Pandavas, sons of Pandu. All the kings joined in support of, or against the Pandavas in the battle. Tomorrow is the day when this battle started from sunrise until sunset. Before the battle even started the auspicious message was spoken by Lord Kṛṣṇa to Arjuna. Lord Kṛṣṇa by His Yoga maya potency bewildered Arjuna by which he took shelter at the lotus feet of the Lord.

gītā su-gītā kartavyā kim anyaiḥ śāstra-vistaraiḥ yā svayaṁ padmanābhasya mukha-padmād viniḥsṛtā

Translation : Because Bhagavad-gita is spoken by the Supreme Personality of Godhead, one need not read any other Vedic literature. One need only attentively and regularly hear and read Bhagavad-gita. In the present age, people are so absorbed in mundane activities that it is not possible for them to read all the Vedic literatures. But this is not necessary. This one book, Bhagavad-gita, will suffice, because it is the essence of all Vedic literatures and especially because it is spoken by the Supreme Personality of Godhead. (Text 4, Gita-mahatmya by Adi Sankaracarya)

Tomorrow is the day when Bhagavad Gita was spoken early in morning at the time of sunrise. Today is dasami and tomorrow is Moksada Ekadasi, the day when the Supreme Lord spoke, - bhagavan uvaca. Who is bhagavan?

aishvaryasya samagrasya viryasya yashasah shriyah jnana vairagyayos caiva shannah bhaga itingana

He that possesses the attributes of sovereignty, potency, fame, wealth, knowledge and renunciation in full is known as Bhagavan. (Vishnu Purana 6.5.47)

Krsna is most knowledgeable.

vedāhaṁ samatītāni vartamānāni cārjuna bhaviṣyāṇi ca bhūtāni māṁ tu veda na kaścana

Translation O Arjuna, as the Supreme Personality of Godhead, I know everything that has happened in the past, all that is happening in the present, and all things that are yet to come. I also know all living entities; but Me no one knows. (BG 7.26)

Thus we can understand how important the knowledge Kṛṣṇa is speaking, and what ever He said is known as Bhagavad Gita, the song of God. The first verse was spoken by Dhṛtarāṣṭra.

dhṛtarāṣṭra uvāca dharma-kṣetre kuru-kṣetre samavetā yuyutsavaḥ māmakāḥ pāṇḍavāś caiva kim akurvata sañjaya

Translation Dhṛtarāṣṭra said: O Sañjaya, after my sons and the sons of Pāṇḍu assembled in the place of pilgrimage at Kurukṣetra, desiring to fight, what did they do? (BG 1.1)

Sañjaya was blessed with tele-vision by Srila Vyasa Deva, the saktyavesh avatara. He could witness the entire war sitting in Hastinapur. Vyasa Deva is directly empowered by the Supreme Lord and is also the compiler of the Vedic scriptures (apaurasheya).

The knowledge (Veda Purana) is eternal, ever fresh and so one cannot trace its history ādyaṁ purāṇa-puruṣaṁ nava-yauvanaṁ ca [Bs. 5.33]. Krsna is too youthful, He was 125 years old at that time, but He looked like a 16 year old because He is ever youthful. Whatever is related to Kṛṣṇa is also youthful, ever fresh like the Vedas and Upanishad. Sri Vyasa deva penned down the knowledge which eternally existed for future generations. The knowledge is to acquired via bona-fide disciplic succession.

imaṁ vivasvate yogaṁ proktavān aham avyayam

The Lord says that this Bhagavad Gita was heard by great saintly kings through the process of disciplic succession.

śrī-bhagavān uvāca imaṁ vivasvate yogaṁ  proktavān aham avyayam vivasvān manave prāha  manur ikṣvākave ’bravīt

Translation The Supreme Lord said, ‘I instructed this imperishable science of yoga to the sun-god, Vivasvān, and Vivasvān instructed it to Manu, the father of mankind, and Manu in turn instructed it to Ikṣvāku.’ (BG 4.1)

The same knowledge I'm speaking on this auspicious eleventh day of Moksada Ekadasi because you are My devotee as well as My friend and dear to Me.

sa evāyaṁ mayā te ’dya yogaḥ proktaḥ purātanaḥ bhakto ’si me sakhā ceti rahasyaṁ hy etad uttamam

Translation That very ancient science of the relationship with the Supreme is today told by Me to you because you are My devotee as well as My friend and can therefore understand the transcendental mystery of this science. (BG 4.3)

Who am I? Who are you? How are we related? What is my duty? All these questions are answered.

This knowledge was spoken for all of us through the medium of Arjuna. One should read Bhagavad Gita As It Is because it's spoken by the Lord and makes one's life successful. The real knowledge is being adulterated with the passage of time and break down of disciplic succession. One must get it from a bona-fide disciplic succession. Read Bhagavad Gita As It Is which comes from a bona-fide disciplic succession and Srila Prabhupada on behalf of all the Acaryas has given his commentary. These purports are important. Every Bhagavad Gita has verses but what differs, are the purports. They don't become devotees only by reading Sanskrit and adulterated purports.

You all are fortunate. Make others fortunate by giving them Bhagavad Gita and also distribute the knowledge of Bhagavad Gita. Hear, read and distribute Bhagavad Gita,

yāre dekha, tāre kaha 'kṛṣṇa'-upadeśa āmāra ājñāya guru hañā tāra' ei deśa

Translation “Instruct everyone to follow the orders of Lord Śrī Kṛṣṇa as they are given in the Bhagavad-gītā and Śrīmad-Bhāgavatam. In this way become a spiritual master and try to liberate everyone in this land.” (CC Madhya 7.128)

Hare Krishna!

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Наставления после совместной джапа-сессии 24.12.2020г. Битва длилась 18 дней и по правилам бой начинался на восходе солнца и прекращался на закате. Итак, на самом деле Кришна говорил БГ рано утром на восходе солнца. Эта БГ была рассказана, чтобы подготовить Арджуну к битве, который находился в иллюзии и был сбит с толку. Это важно, поскольку в ней есть слова, сказанные самим Бхагаваном. Бхагаван - тот, кто обладает всеми богатствами в высшей степени. Он самый знающий. Нет ничего, чего бы он не знал. Кришна говорит: «О Арджуна, я знаю все о прошлом, настоящем и будущем всех живых существ». Но меня никто не знает. Я знаю все обо всех, но никто ничего не знает обо мне. Поэтому, когда говорит самая знающая личность, мы можем понять, что это очень важно. И это очень важная вещь -БГ. Первый стих БГ говорит Дхритраштра. Дхритраштра находится в Хастинапуре и спрашивает Санджайю, что сделали его сыновья и сыновья Панду, собравшиеся на дхармакшетре Курукшетре? Шри Вьясадева благословил Санджая видением на расстоянии. Он мог стать свидетелем всей войны Махабхараты, нааходясь в Хастинапуре. Шри Вьясадева - это сам Бхагаван. Он наделен властью от Господа. Он наделен знаниями. Это не значит, что Вьясадева создал это знание. Кришна - творец. Шрила Вьясадев передает это через писания. Кто создал Веды и другие писания? Они не материальны.. Они не созданы кем-либо из этого материального мира. Они были созданы Верховной Личностью Бога. Это знание вечно. У них нет истории создания. Они нерожденные, но всегда новые. БГ также является частью этих знаний. Так что эти знания, несмотря на то, что они самые старые, всегда очень молоды и новы. Кришна тоже самый старый, но его форма всегда молода. Даже когда Кришне было 100 лет, у него никогда не было седых волос, бороды и усов. Он всегда остается как 16-летний. Он всегда молод и свеж. Точно так же все знания, связанные с ним, всегда новые и свежие. Шри Вьясадева записал знание, которое существовало вечно. Кришна говорит в 4-й главе, что это знание изучается в истинной ученической преемственности. Со временем это знание было потеряно. Сначала я отдал его богу солнца. и теперь я даю его тебе в этот день Мокшада экадаши на Курукшетре. Я говорю с тобой, потому что ты мой друг, а также преданный. Кто я? Кто ты? Как мы связаны? В чем моя обязанность? на эти вопросы есть ответы. Кришна говорит, потому что Арджуна, ты мой друг и преданный, поэтому я передаю тебе это знание. Это было фактически для всех нас. Арджуна стал посредником. По милости Кришны эта БГ доступна всем нам, и мы можем изучать ее. Это должна быть БГ иначе снова есть вероятность обмана и неверного руководства. Настоящее знание искажается с течением времени и разрывом ученической преемственности. Так что мы должны получать это только от истинной ученической преемственности. Итак, читайте БГ, как она есть в истинной ученической преемственности Ачарьев, и Шрила Прабхупада от имени всех ачарьев дал свой комментарий к БГ. Этот текст важен. В каждой БГ есть стихи, но что разное, так это перевод. Итак, теперь вам повезло, и вам нужно быть посредником, чтобы сделать других удачливыми. Раздайте БГ как можно большему количеству людей. На Курукшетре был организован грандиозный фестиваль-праздник. Также будет присутствовать Его Святейшество Гопал Кришна Госвами Махарадж. У меня нет подробностей. Но будут читать все стихи БГ. Экран был показан (монитор ноутбука Гурумахараджа) для предоставления некоторых подробностей о завтрашнем мероприятии. Они будут выступать на завтрашнем мероприятии, и все мероприятие будет транслироваться в прямом эфире на YouTube-канале дерева желаний ИСККОН. Будет большая ягья. мы поделимся точным расписанием программы в течение дня через официальные группы WhatsApp. (Перевод Кришна Намадхан дас)