Hindi

इस वर्ष आषाढ़ी एकादशी पर आप पंढरपुर पधारिये हरे कृष्ण ! मैं सोच रहा था कि उन भक्तों के लिए क्या किया जा सकता हैं , जो समय क्षेत्र में परिवर्तन के कारण इस कांफ्रेंस में सम्मिलित नहीं हो पाते हैं। मैं आपको बताना भूल गया था कि मॉरिशस के भक्त जप साधना कार्ड बनाते हैं। पुरे महीने इस कांफ्रेंस में सम्मिलित होने वाले अथवा अधिकतर दिन इसमें सम्मिलित होने वाले भक्तों के नामों की घोषणा की जाती हैं। कुछ भक्त हैं जिनकी उपस्थिति १००% हैं वहीँ कुछ भक्त हैं जिनकी उपस्थिति ०% हैं। हम सभी को इस प्रकार अपना स्कोर कार्ड बनाना चाहिए। मॉरिशियस इस कार्य में अग्रणी हैं जो इस कांफ्रेंस में सम्मिलित होने वाले भक्तों के नामों का एक साधना कार्ड बनाकर उसमे उन नामों को अंकित करते हैं जो इस कांफ्रेंस में सम्मिलत होते हैं। आप उस साधना कार्ड को अन्य देशों में भी भेज सकते हैं , जिससे उन देशों के भक्त भी अपने स्कोर की तुलना कर सकें। हम समय - समय पर सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले भक्तों के नामों की घोषणा करेंगे। यह भी एक कार्य हैं जिसका कार्यान्वन हमें करना होगा। पंढरपुर में जुलाई महीने में उत्सव आ रहा हैं। आपको उस विषय में आमंत्रण पत्रिका अवश्य ही मिल गई होगी। यह मेरे ७०वे जन्मदिवस के उपलक्ष्य में हैं। इस वर्ष हम चन्द्रभागा नदी के तट पर प्रभुपाद घाट का उद्घाटन करेंगे तथा चंद्रभागा मैया के मन्दिर का भी उद्घाटन होगा। अतः इस वर्ष इन दोनों का उद्घाटन होगा। यदि आप इस कार्यक्रम में पधारते हैं तो मैं सोचता हूँ कि हम इस प्रकार एक साथ जप कर सकते हैं। यह भी एक प्रकार से एक साथ जप करने के समान ही हैं। इस जप सत्र के अंत में हम प्रसाद वितरण भी करते हैं , जो आप दूर से इस कांफ्रेंस में सम्मिलित होने के कारण प्राप्त नहीं कर सकते हैं। व्यक्तिगत आध्यात्मिक संग तथा आमने - सामने बातचीत करने का और कोई विकल्प नहीं हैं। मैं आप सभी को यह बताना चाहता हूँ कि इसके लिए एक सम्भवना हैं जब आप इस वर्ष जुलाई महीने में पंढरपुर आकर इसका लाभ ले सकते हैं। हमारे इस उत्सव की प्रबंधन समिति तथा स्वागत समिति सभी भक्तों को , विशेष रूप से हमारे सभी शिष्यों तक पहुँचने का पूरा प्रयास कर रही हैं जिससे एक प्रकार से हमारे इस परिवार का पुनर्मिलन हो सके। इसमें भी मॉरिशियस अग्रणी रह रहा हैं। लगभग ५० भक्तों ने इस कार्यक्रम में आने के लिए अपना आरक्षण करवा लिया हैं। दक्षिण अफ्रीका से भी २५ भक्तों ने इस कार्यक्रम में आने के लिए अपने आरक्षण करवा लिए हैं। कृष्णभक्त प्रभु पहले से ही पंढरपुर पहुँच गए हैं तथा इस कार्यक्रम की तैयारियां प्रारम्भ कर दी हैं। वे इस उत्सव के लिए भौतिक धरातल पर कार्य करने वाले समन्वयक हैं। हम सभी एक साथ बैठकर जप कर सकते हैं , एक साथ कीर्तन तथा नृत्य कर सकते हैं तथा एक साथ प्रसाद भी पा सकते हैं। पंढरपुर में ३ दिन का कीर्तन मेला भी होगा, आप उसमे भी हिस्सा ले सकते हैं। हम श्रील प्रभुपाद की पुस्तकों का वितरण भी करेंगे। लगभग ७००० भगवद - गीता के वितरण का अनुमान हैं। हम उसके लिए प्रायोजकों की तलाश में हैं। हम वहां आने वाले यात्रियों तथा वारकरियों को लगभग ७०,००० प्लेट प्रसाद का वितरण भी करेंगे । एकलव्य प्रभु इस कार्यक्रम के लिए सलाहकार हैं , जो लगभग एक महीने पहले पंढरपुर चले जाएंगे। सुन्दर लाल प्रभु तथा राम - गोविन्द महाराज समेत एक पूरी टीम हैं जो इस कार्यक्रम से लगभग २ - ३ सप्ताह पहले पंढरपुर जा रही हैं। अतः आप सभी भी वहां आइये ! हम भी वहीं उपस्थित होंगे। यह एक प्रकार से छोटे कुम्भ मेले के समान हैं जहाँ लगभग २० लाख भक्त पंढरपुर आएंगे। इनमे से कुछ भक्त हमारे साथ भी सम्मिलित होंगे। यह पंढरपुर धाम का एक मुख्य उत्सव हैं। यह शयन एकादशी का दिन हैं , जिस दिन परम भगवान योग निंद्रा में जाते हैं। वे ४ महीने इस योग निन्द्रा में रहेंगे। चतुर्मास वही समय होता हैं जब परम भगवान विश्राम करते हैं। अतः सभी यात्री इस दिन पाण्डुरंग भगवान विट्ठल के दर्शन करने आते हैं। विट्ठल पंढरपुर के प्रमुख विग्रह हैं जिनकी आराधना संत तुकाराम समेत और भी कई भक्तों ने की हैं तथा विट्ठल ही हमारे परिवार के भी ठाकुर हैं। चैतन्य महाप्रभु भी पंढरपुर पधारे थे तथा यहाँ ११ दिन रुके थे। वे अत्यंत व्यस्त व्यक्ति थे तथा उन्हें और भी कई कार्य करने थे। यदि वे पंढरपुर में ११ दिन रुक सकते हैं तो हम क्यों नहीं ? नित्यानन्द प्रभु भी पंढरपुर आए थे तथा यहीं पर उन्होंने दीक्षा प्राप्त की थी। विश्वरूप भी मायापुर त्यागकर सम्पूर्ण भारत में भ्रमण करते हुए अंततः पंढरपुर आए थे। विश्वरूप भी भगवान हैं , वे बलराम जी का आंशिक विस्तार हैं। बलराम होईलो निताई तथा इसीप्रकार बलराम होईलो विश्वरूप अर्थात बलराम ही नित्यानन्द प्रभु के रूप में अवतरित हुए तथा वही बलराम विश्वरूप के रूप में भी अवतरित हुए। इस प्रकार विश्वरूप ने भी पंढरपुर में ही अपनी लीला को समाप्त किया। इस प्रकार यह भी एक महत्वपूर्ण लीला थी जो पंढरपुर में सम्पन्न हुई। वहां पर हमारी एक मुख्य परियोजना हैं - श्री श्री राधा पण्ढरीनाथ मन्दिर। हमने यहाँ पर प्रारम्भ घाट परियोजना से किया था परन्तु धीरे धीरे पिछले कुछ वर्षों में पंढरपुर में हमारे एक बड़े मंदिर तथा गोशाला की परियोजना का भी शुभारम्भ हो चूका हैं। पंढरपुर में हमारा इस्कॉन जगन्नाथ मन्दिर भी हैं। इस प्रकार यह आज के जप सत्र के लिए कुछ चर्चा का विषय था। यह एक आमंत्रण सत्र बन गया जिससे हम व्यक्तिगत रूप से एक साथ बैठकर जप कर सकें। मैं अभी भी मायापुर में हूँ तथा यहाँ परिक्रमा चल रही हैं। कल शाम में जगन्नाथ मन्दिर में अंतर्राष्ट्रीय दल के साथ था। उसमें लगभग ११०० हिन्दी भाषी भक्त भी सम्मिलित थे। हम इस विषय पर भी चर्चा कर रहे थे कि किस प्रकार परिक्रमा प्रारम्भ हुई थी। १९९० में हमने मात्र ७० भक्तों के साथ इस परिक्रमा को प्रारम्भ किया था। अब इस वर्ष परिक्रमा में लगभग ८००० भक्त सम्मिलित हुए हैं। प्रारम्भ में परिक्रमा में केवल १ दल ही होता था , परन्तु अब हिन्दी भाषी , रूसी भाषी भक्तों का एक एक दल तथा बंगाली भाषी भक्तों के ३ दल हैं , जिनमें से प्रत्येक दल में १५०० से २००० भक्त हैं। हम अत्यन्त प्रसन्न हैं कि अधिक से अधिक मात्रा में भक्त नवद्वीप मण्डल परिक्रमा में सम्मिलित हो रहे हैं। भक्तों की संख्या में प्रतिवर्ष वृद्धि हो रही हैं जिसका श्रेय आपको जाता हैं क्योंकि आप सभी भक्त निरन्तर इस हरिनाम का प्रचार करते हैं। विश्व के किसी भी कोने में उपस्थित भक्त जब भी हरिनाम का जप प्रारम्भ करते हैं तो वे मायापुर के विषय में श्रवण करते हैं तथा इसके तुरंत पश्चात वे मायापुर आने के लिए प्रयत्न करते हैं तथा अंततः नवद्वीप मंडल परिक्रमा में सम्मिलित होते हैं। हरिनाम का विस्तार होता हैं तथा यह अन्य जीवों के साथ जुड़ता हैं तथा अंततः उस सभी जीवों को मायापुर लाता हैं। हरिनाम ही नाम प्रभु हैं जो स्वयं महाप्रभु से अभिन्न हैं तथा वे नाम के रूप में महाप्रभु ही हैं। यह नाम प्रभु रूस , मॉरिशियस , पूर्वी तटों के देश ,दक्षिण - अफ्रीका तथा ऑस्ट्रेलिया तक पहुँचते हैं। हरिनाम जब वहां पहुँचता हैं तब अन्य जीव इससे जुड़ते हैं तथा इस प्रकार भक्तियोग का प्रारम्भ होता हैं। भगवान के नाम तथा रूप से इस प्रकार हमारा सम्बन्ध स्थापित होता हैं। तब वह हरिनाम उन सभी भक्तों को मायापुर , नवद्वीप तथा वृन्दावन लाता हैं। हम ऐसा कहते भी हैं कि नाम से धाम की प्राप्ति होती हैं , अर्थात नाम किसी जीव को धाम तक लाता हैं। कृष्ण स्वयं हरिनाम के रूप में आपसे कहते हैं यहाँ से चलिए ! यहाँ से चलिए ! यहाँ से चलिए ! आप इस स्थान के नहीं हैं, अतः आपको इस स्थान से चलना होगा। इस प्रकार हरिनाम का प्रचार प्रारम्भ हो चूका हैं अथवा हरिनाम के प्रचार का श्री गणेश हो चूका हैं। यह तो मात्र प्रारम्भ हैं इसके अलावा और भी कई कार्य हैं जो अभी बाकी हैं। पॉलिश उत्सव का आयोजन परम पूज्य इन्द्रद्युम्न महाराज द्वारा किया गया। सन्यासी इसके विषय में चर्चा कर रहे थे। जब आप पुनः भगवद्धाम कृष्ण के पास चले जाएंगे , तब हम इस जीवन के अंत में भगवान की लीलाओं में प्रवेश पा सकते हैं। उसमें बहुत आनन्द होगा। यह आज से १०० वर्षों तक , तथा ५०० वर्षों तक भी होगा , जहाँ कहीं भी भक्त हैं , उत्सव हैं , तथा कीर्तन हैं। हम यह प्रार्थना कर सकते हैं कि हम अधिक समय तक जीवित रहें जिससे इस हरिनाम के प्रचार में सेवा कर सकें। न धनम न जनम न सुन्दरीम , कवितां वा जगदीश कामये। मम जन्मनी जन्मनीस्वरे , भवताद भक्तिर अहैतुकी त्वयी।। हे परम भगवान मैं न तो बहुत अधिक धन की कामना करता हूँ , न अनुयायियों की , न ही सुन्दर स्त्रियों की। मैं तो प्रत्येक जन्म में आपके अहैतुकी कृपा की ही याचना करता हूँ। (शिक्षाष्टकम श्लोक - ४) परसों जप के समय मैं कोलकाता जा रहा होऊंगा। यदि इंटरनेट उपलब्ध रहा तो हम किसी पेड़ के नीचे रूककर इस सत्र को संपन्न करने का प्रयास करेंगे। इसके विषय में हम आपको कल बता देंगे। आप सभी से कल पुनः भेंट होगी। हरे कृष्ण .......

English

COME TO PANDHARPUR FOR ASADI EKADASI THIS YEAR Hare Krishna! What can be done for those who find it difficult to join us due to the time factor, I was thinking. I forgot to mention that the Mauritian devotees are keeping a Japa sadhana card. Depending on the month's attendance the best score will be announced. 100% attendance or no attendance at all. We also get scores like that. Mauritius is taking a lead in keeping track of the chanters, filling our Sadhana-card. You can circulate that sadhana card to other countries. We can keep some track. We can announce scores from time to time of the best performer. That is also in the pipeline. There is festival coming up in Pandharpur in July. You must have received some invitation in that regard. It's my 70th birthday party. We also have a big undertaking of Srila Prabhupada ghat on the banks of Chandrabhaga and there is a Chandrabhaga temple. There will be and inauguration of both. If you come then I was thinking we could also chant together. This is also chanting together or we can say almost chanting together. At the end of this chanting Japa session we have been distributing prasada. Somethings like that you can't experience in the conference when you are away. There is no substitute for the personal, spiritual presence and face to face communication. Anyway I am just letting you know that the opportunity is there. Our festival organising committee or reception committee is trying to reach out to all the devotees, specially disciples, so that we can have a family reunion. Again Mauritius is leading. Fifty devotees have already booked their travels. 25 devotees from South Africa have booked their flights. Krishnabhakta Prabhu is already sitting there in Pandharpur and started his preparations. He is on the ground as festival co-ordinator. Then we could all sit together, do our Japa together, chant and dance together and have prasada together. There will be a Kirtana Mela for 3 days in Pandharpur. You can take part in that. We will like to distribute Srila Prabhupad's books. 7000 Bhagvad-Gitas are to be distributed. We are looking for sponsors for that. We wish to distribute 70,000 plates of prasada to the pilgrims or Varkaris. Ekalavya Prabhu is one of the festival advisors. He will be going there a month in advance. Sundarlal Prabhu and Ram Govinda Maharaja as well. There is a whole team that is going to arrive in Pandharpur 2 - 3 weeks in advance. So come! We will be there. Be part of this happening. It's going to be mini Kumbha-mela because this is time we are expecting 2 million pilgrims in Pandharpur. Some of them will join us. This is Pandharpur Dham’s major festival time. It will be Sayana Ekadasi. It's the time when the Lord prepares to take rest. He will be sleeping for 4 months. Caturmas is a time when the Lord rests. So pilgrims come to take darsana of Panduranga or Vitthal. Vitthal is the presiding Deity of Pandharpur worshiped by Sant Tukaram and so many saints and it is also my family Deity. Caitanya Mahaprabhu had come and spent eleven days in Pandharpur. He was a busy person and had lots of things to do. If He could spend eleven days in Pandharpur and stay there, then why not you? Nityananda Prabhu had come to Pandharpur and he was initiated there. Visvarupa left Mayapur and travelled all over India and had then come here to Pandharpur. Visvarupa is also Lord. He is a partial expansion of Balaram. Balaram hoile Nitai and Balaram hoile Visvarupa.(Balaram became Nityanand Prabhu, Balaram became Visvarupa) So that Visvarupa wound up his pastimes in Pandharpur. That's quite a significant pastime which took place in Pandharpur. We have a major project there - Sri Sri Radha Pandharinath temple. We have started with a ghat project. We have a big temple project, goshala and we have been doing lots of things in Pandharpur for some years now. We also have Pandharpur ISKCON Jagannatha mandir. So this was a japa talk for today. It became an invitation talk so that we can chant together in person. I am still here in Mayapur and Parikrama is also on. I was with the international party in Jagannatha mandir yesterday. There were 1100 Hindi speaking devotees. We were also remembering how the Parikrama started. We were 70 devotees in 1990. Now this year there are over 8000 devotees on Parikrama. Initially there used to be only one group. Now there is the Hindi speaking, Russian speaking, three Bengali speaking parties each having 1500 to 2000 devotees. We are happy that more and more devotees are joining Navadvipa mandala Parikrama. Numbers are increasing year after year after year because of all your efforts to spread the holy name every year. Those who receive the holy name wherever in whichever part of the world then immediately they come to know about Mayapur and then they make plans to come to Mayapur , go on Navadvipa mandala Parikrama. Holy name goes out, holy name spreads and connects to the soul and brings those souls to Mayapur. Holy name is Nama Prabhu who actually is Mahaprabhu in the form of Nama Prabhu. It goes to Russia, goes to Mauritius, goes to the East coast, goes to South Africa, Australia. Holy name is going and then souls are connected and then Bhakti-yoga happens. Relations are established with the holy name, the name of the Lord and the form of the Lord. Then that holy name brings them to Mayapur, Navadwip and Vrindavan also. We have been saying from Nama to Dham. Nama brings one to Dham. Krsna in the form of the holy name goes and brings you - ‘Let's go! Let's go! Let's go! Let's go back home! You don't belong to this place. You don't belong to that place, you don't belong to that place. Get out of here.’ So spreading of the holy name has just started. Sri Ganesha has been done as we say. It's just the beginning. Lots more is about to happen. Polish Festival is conducted by Indradyumna Maharaja. Sannyasis were talking about it. If you go back to Krsna that will happen. Then one will enter into the pastimes of the Lord at end of this life! It will be fun! It may happen 100 years from now, 500 years from now, Krishna consciousness is spreading far and wide - devotees everywhere, festivals everywhere, kirtanas everywhere. Maybe we should just stay on , stay on longer. Like- na dhanaṁ na janaṁ na sundarīṁ kavitāṁ vā jagad-īśa kāmaye mama janmani janmanīśvare bhavatād bhaktir ahaitukī tvayi ॥4॥ O almighty Lord, I have no desire to accumulate wealth, nor do I desire beautiful women, nor do I want any number of followers. I only want Your causeless devotional service, birth after birth. (4) Day after tomorrow I will be travelling to Kolkata during japa time. We will see if we can stop somewhere under the tree and if internet is available then we can conduct a session. So we will let you know tomorrow. See you chanting again tomorrow. Hare Krishna!

Russian

Джапа сессия 12.03.2019 Хари Хари Пожалуйста, примите мои смиренные поклоны. Вся слава Шриле Прабхупаде. Слава Шриле Гурудеву. Это очень уникальный разговор о джапе, потому что он стал личным приглашением на Вьяса-пуджу В этом году пройдет мега-фестиваль, посвященный 70-й Вьяса-пудже Гурудева. Если вы чувствуете, что воспевание на этой конференции особенное, тогда милостиво приезжайте на фестиваль Ашади Экадаши на Вьяса-пуджу, что бы испытать что-то волнующее особенное Фестиваль Вьяса Пуджа датируется 9-15 июля 2019 года Увидимся там! ПРИЕЗЖАЙТЕ В ПАНДАРПУР ДЛЯ АШАДИ ЭКАДАШИ В ЭТОМ ГОДУ Харе Кришна! Я думал о том, что можно сделать для тех, кому трудно присоединиться к нам из-за временного фактора. Я забыл упомянуть, что преданные Маврикия ведут таблицу джапа-садханы. В зависимости от посещаемости вконце месяца будет объявлен лучший результат. 100% посещаемость или отсутствие посещаемости вообще. Мы также получаем такие оценки. Маврикий занимает первое место, проводя учет воспевающих, заполняя нашу карту Садханы. Вы можете разослать эту карту садханы в другие страны. Мы можем отслеживать некоторые записи. Время от времени мы сможем объявлять лучшие результаты. Это также в стадии разработки. В июле в Пандхарпуре пройдет фестиваль. Вы наверное уже получили приглашение по этому поводу. Это мой 70-й день рождения. У нас есть большое начинание Шрилы Прабхупады. Гат на берегах Чандрабхага, и есть храм Чандрабхага. В это время будет торжественное открытие обоих. Я подумал, если вы приедете, мы могли бы воспевать вместе. Это также воспевание вместе или, можно сказать, почти воспевание вместе (имелось ввиду на конференции). Вконце этого сеанса повторения джапы мы раздавали прасад. Вы не можете почувствовать чего-то подобного на конференции, когда вы далеко. Ничто не может заменить личного, духовного присутствия и общения лицом к лицу. В любом случае, я просто сообщаю вам, что такая возможность есть. Наш оргкомитет фестиваля или комитет по приему гостей, стараются охватить всех преданных, особенно учеников, чтобы семья могла воссоединиться. Снова Маврикий лидирует. Пятьдесят преданных уже запланировали свою поездку. 25 преданных из Южной Африки забронировали свои рейсы. Кришнабхакта Прабху уже находится в Пандхарпуре и начал свою подготовку. Он на месте, как координатор фестиваля. На фестивале мы все могли бы сидеть вместе, вместе повторять джапу, петь, танцевать вместе и вместе вкушать прасад. В Пандхарпуре будет 3х дневная киртана мела. Вы можете принять в ней участие. Мы хотели бы распространять книги Шрилы Прабхупады. Должны быть распространены 7000 Бхагавад-Гит. Мы ищем спонсоров для этого. Мы хотим раздать паломникам 70000 тарелок прасада. Экалавья Прабху - один из консультантов фестиваля. Он поедет туда за месяц вперед. Сундарлал Прабху и Рам Говинда Махараджа также. Есть целая команда, которая собирается прибыть в Пандхарпур за 2-3 недели до начала. ТАК ПРИЕЗЖАЙТЕ! МЫ БУДЕМ ТАМ. БУДЬТЕ ЧАСТЬЮ ЭТОГО СОБЫТИЯ. ВСЕ ДОЛЖНЫ БЫТЬ СЧАСТЛИВЫ. Это будет мини Кумбха-мела, потому что в это время мы ожидаем 2 миллионов паломников в Пандхарпуре. Некоторые из них присоединятся к нам. Это главное время фестиваля Пандхарпур Дхам. Это будет Шаяна Экадаши. Это время, когда Господь готовится отдохнуть, Он будет отдыхать 4 месяца. Чатурмасья - это время, когда Господь отдыхает. Итак, паломники приходят, чтобы получить даршан Пандуранги или Виттала. Виттал является главным Божеством Пандхарпура, которому поклонялись Святой Тукарам и так много святых, и это также Божество моей семьи. Чайтанья Махапрабху пришел и провел одиннадцать дней в Пандхарпуре. Чайтанья Махапрабху был очень занят, у него было много дел. Если Он мог прийти и провести одиннадцать дней в Пандхарпуре и остаться там одиннадцать дней, почему бы вам этого не сделать? Нитьянанда Прабху пришел в Пандхарпур, и получил там посвящение. Вишварупа покинул Маяпур и путешествовал по всей Индии, а затем приехал сюда в Пандхарпур. Вишварупа также Господь. Он является частичной экспансией Баларама. Balaram hoile Nitai и Balaram hoile Visvarupa. (Баларам стал Нитьянандой Прабху, Баларам стал Вишварупой) Итак, Вишварупа завершил свои игры в Пандхарпуре. Это довольно значительные события, которые произошли в Пандхарпуре. У нас есть крупный проект - храм Шри Шри Радха Пандхарината. Мы начали с проекта Гхат. У нас есть большой храмовый проект, Гошала, несколько лет мы делаем много проектов в Пандхарпуре. У нас также есть Пандхарпур ИСККОН Джаганнатха Мандир. Это был разговор о джапе на сегодня. Это было приглашение. Я ЖДУ ЧТО ВЫ ПРИЕДЕТЕ В ПАНДХАРПУР, ЧТОБЫ МЫ МОГЛИ ВОСПЕВАТЬ ВМЕСТЕ, ЛИЧНО. Я все еще здесь, в Маяпуре, и Парикрама продолжается. Вчера я был на международном собрании в Джаганнатха Мандире. Было 1100 говорящих на хинди преданных. Мы вспоминали, как началась парикрама. В 1990 году нас было 70 преданных. В этом году в парикраме более 8000 преданных. Первоначально была только одна группа. Сейчас есть хинди-говорящие, говорящие по-русски, говорящие на бенгали три группы, в каждой по 1500-2000 преданных. Мы рады, что все больше и больше преданных присоединяются к Навадвипа-мандале Парикраме. Количество растет год за годом, каждый год благодаря вашим усилиям по распространению Святого Имени. Те, кто получают Святое Имя где бы то ни было в какой-либо части света, сразу же узнают о Маяпуре, а затем планируют приехать в Маяпур и отправиться в Навадвипа-мандалу парикраму. Святое Имя выходит за пределы, Святое Имя распространяется, соединяется с душами и приводит их в Маяпур. Святое имя - Нама Прабху, который на самом деле является Махапрабху в форме Нама Прабху. Он идет в Россию, на Маврикий, на восточное побережье, в Южную Африку, Африку, Австралию. Святое Имя действует, соединяя души, и когда души соединены, тогда происходит бхакти-йога. Устанавливаются отношения со Святым Именем, Именем Господа и формой Господа. Затем это святое имя приводит их в Маяпур, Навадвип и наконец во Вриндаван. Мы говорили от Намы до Дхамы. Нама приводит вас в Дхаму. Кришна в образе Святого Имени приходит к вам и говорит: «Пойдем! Пойдем! Пойдем! Возвращайся домой! Ты не принадлежишь этому месту! Ты не принадлежите тому месту! Убирайтесь отсюда». Итак, распространение Святого Имени только началось. Как мы говорим Sri Ganesha has been done. Это только начало. Многое еще должно произойти. Польский Фестиваль проводится Индрадьюмной Махараджей. Я помню. Саньяси говорили об этом. Если вы вернетесь к Кришне, обратно во Вриндаван в игры Господа вконце этой жизни! Это будет весело! это может произойти через 100 лет, через 500 лет, сознание Кришны распространяется повсюду - повсюду преданные, повсюду праздники, повсюду киртаны. Может быть, мы должны просто остаться, остаться здесь подольше. Подобно- …мама джанмани джанманишваре бхаватад бхактир ахаитуки твайи॥4॥ …Единственное, чего я хочу, — это по Твоей беспричинной милости жизнь за жизнью служить Тебе». (4) Послезавтра я буду путешествовать в Калькутту во время джапы. Посмотрим, сможем ли мы остановиться где-нибудь под деревом, и если интернет будет доступен, мы сможем провести конференцию. Так что мы дадим вам знать завтра. Увидимся на воспевании завтра. Харе Кришна