Hindi

माया के संस्मरणों को जला दीजिए आज हमने इस जप सत्र को थोड़ा पहले प्रारम्भ किया हैं क्योंकि मुझे आज भागवतम पर कक्षा देनी हैं इसलिए इसे जल्दी समाप्त करना होगा। आप सभी इसे मायापुर टीवी पर सुबह ८ बजे से देख सकते हैं। मैं अपनी कक्षा के लिए तैयारी भी करना चाहता हूँ। जप करते समय भी मैं निरन्तर भागवतम के उन श्लोकों पर चिन्तन करता रहता हूँ , जिन पर आज मुझे प्रवचन देने हैं। यह परशुराम और उनके पिता जमदाग्नि तथा उनकी लीलाओं के विषय में हैं। जप करते समय भी मुझे बलपूर्वक उन लीलाओं के विषय में चिंतन करना पड़ा। ऐसा नहीं हैं कि उन्हें केवल मुझ पर थोपा गया हैं अपितु मैं स्वयं उन लीलाओं का चिंतन करना चाहता हूँ जिससे मैं उन्हें हमारे श्रोताओं को बता सकूँ। वास्तव में तो मैं हरिनाम प्रभु से प्रार्थना कर रहा था कि वे मुझे पर्याप्त बुद्धि दे जिससे मैं उन लीलाओं को उज्जवल ढ़ंग से , स्पष्ट रूप से , तथा सही प्रकार से प्रस्तुत कर सकूँ। जब मैं जप कर रहा था तो मैं उन सभी विचारों द्वारा पहले से ही अधिकृत हो चूका था। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। यह जप का समय हैं जब हम कृष्ण का स्मरण तथा प्रार्थना करते हैं। कृष्ण का स्मरण करने का अर्थ हैं उनकी लीलाओं तथा रूप का स्मरण करना। मंगल आरती में हमनें राधा - माधव और पंचतत्त्व के दर्शन किये। अतः जप करते समय भी वही रूप हमारे मन में आता हैं। हम राधा - माधव के उस रूप के बारे में चिंतन तथा मनन करते हैं। हमें उन्हें अपने मानस पटल पर पूर्ण रूपेण स्थिर करना चाहिए जिससे हम सदैव उनके विषय में चिंतन कर सकें। हमारे सूक्ष्म शरीर में स्मृति पटल होता हैं , शास्त्रों में पटल का अर्थ होता हैं पर्दा अथवा बोर्ड। स्मृतियाँ उस स्मृति पटल पर सदा के लिए अंकित हो जाती हैं। उसी स्मृति पटल पर कई जन्मों की बुरी आदतें भी यथावत अंकित हैं। यह एक प्रकार से महा संचय यंत्र हैं जहाँ बहुत अधिक मात्रा में यादें , आदतें संचित रहती हैं। यह बाहरी हार्ड - ड्राइव के समान हैं , कई बार जब उसमें स्थान समाप्त हो जाता हैं तो हम दूसरी हार्ड ड्राइव लगाते हैं। इस स्मृति पटल पर कई यादें तथा संस्कार अंकित रहते हैं। हम उन्हें यथावत रखते हैं तथा दिवास्वप्न या रात्रिस्वप्न में कई बार उन यादों को टटोलते हैं। अतः यहाँ इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि जब आप हरे कृष्ण महामंत्र का जप करते हैं तो इससे चेतो दर्पण मार्जनम होता हैं। स्मृति पटल को दर्पण भी कहा जा सकता हैं। हमारे पिछले जन्मों तथा जब हम कृष्णभावनाभावित नहीं थे तब की स्मृतियों ने इस दर्पण को पूर्ण रूपेण ढँक रखा हैं। जब भी हम हरे कृष्ण का जप करते हैं तो कुछ मात्रा में इन यादों की सफाई होती हैं। माया के संस्मरण तथा गलत यादें इसमें जल जाती हैं। जिस प्रकार कम्प्यूटर में सीडी को बर्न करते हैं, इसीप्रकार यहाँ भी बहुत अधिक यादें जलती हैं। जब हम हरे कृष्ण का जप करते हैं तो हमारे मन में उपस्थित भौतिक इच्छा रूपी अग्नि के ये सभी संस्मरण बुझ जाते हैं। जैसे जैसे हम हरे कृष्ण का जप करते हैं वैसे वैसे हमारी पुरानी यादें समाप्त हो जाती हैं तथा हमारे मानस पटल पर नई यादें अंकित हो जाती हैं। यह भगवान के रूप , गुण , लीलाओं तथा भक्तों के विषय में चिंतन करने का समय होता हैं। यदि आप इस विषय में सुनते हैं तो हम उसे याद रखते हैं। अतः हरे कृष्ण का जप करते समय हम भगवान कृष्ण के नाम , रूप , गुण तथा लीलाओं से सम्बन्धित यह नई सामग्री हमारे स्मृति पटल पर इंकित करते हैं। जैसे जैसे हम जप करते हैं वैसे वैसे हम और अधिक कृष्णभावनाभावित बनते हैं। साथ ही साथ हम पुरानी मायावी यादों को समाप्त करके नई यादों को पुनः अंकित करते हैं। जब हम नई यादों को सुरक्षित करते हैं तो स्वाभाविक रूप से पुरानी यादें नष्ट होती हैं , यह एक साथ होता हैं। हम कृष्ण से आकर्षित होते हैं तथा उसी समय हम माया से प्रतिकर्षित होते हैं , ये दोनों कार्य एक ही साथ संपन्न होते हैं। हरे कृष्ण का जप करके हम हमारे मन की उन स्मृतियों को साफ करते हैं। हम हमारे मन को कृष्ण से भर देते हैं। यह केवल एक बिंदु हैं। आज सुबह मुझे उन श्लोकों पर चिंतन करने के लिए बाधित किया जा रहा था जिन पर आज भागवतम कक्षा में मुझे प्रवचन देने हैं। मैं भगवान परशुराम तथा उनके पिता जमदग्नि के विषय में चिंतन , तथा मनन कर रहा था। हमें इस चर्चा को यही विराम देना होगा। आप लगभग एक घंटे के पश्चात पुनः नित्यम भागवत सेवया हेतु हमारे साथ जुड़ सकते हैं। हम प्रतिदिन जप करते हैं तथा प्रतिदिन भागवतम का अध्ययन भी करते हैं। यही हमारी जीवन शैली हैं। हम भगवान के नाम , रूप , गुण तथा लीलाओं के विषय में चिंतन करते हैं। प्रभुपाद कहते थे नित्यम भागवत सेवया। वे इसके विषय में बताते थे कि दो प्रकार के भागवत होते हैं - पहला पुस्तक भागवत तथा दूसरा व्यक्ति भागवत। हम इस प्रकार दोनों भागवतों की सेवा करते हैं पुस्तक को पढ़कर तथा शुद्ध भक्तों का संग और सेवा करके। हम प्रभुपाद के इस्कॉन के संचालन तथा प्रचार के लिए दिन भर व्यस्त रहते हैं। यह भी भागवतम की ही सेवा हैं। हम सुबह के समय भागवतम का अध्ययन करते हैं तथा जप करते हैं। तत्पश्चात आप जारे देखो तारे कहो कृष्ण उपदेश (चैतन्य चरितामृत , मध्य लीला - ७.१२८) द्वारा दिन भर पवित्र नाम तथा पवित्र भागवतम की सेवा करते हैं। श्रील प्रभुपाद की पुस्तकों का वितरण करके हम कई प्रकार से सभी को कृष्ण देते हैं और इस प्रकार हम दिन के लगभग २४ घंटे व्यस्त रहते हैं। प्रभुपाद कहते थे कि हमारा लक्ष्य हैं दिनभर २४ घंटे व्यस्त रहना तथा माया से दूर रहना। दिनभर भगवान की सेवा करो जिससे माया आपसे दूर रहेगी। हरे कृष्ण ……

English

BURN THE CD OF MAYA MEMORIES We started our japa talk earlier because it has to be ended earlier, as I have to give Bhagavatam class this morning. You are welcome to listen to it on mayapur.tv at 8.00 am. I wish to prepare for my class. While chanting also I couldn't control, but keep thinking of Bhagavatam verses which I have to talk about this morning. It is about Parasuram and his father Jamadagni and their pastimes. While chanting I was forced to think about those thoughts. They were not just imposed upon me, but I wanted to think and remember those pastimes so that I can share that with my audience. In fact I was praying to Harinama Prabhu to give me intelligence to reveal those pastimes more vividly, distinctly, clearly. I was kind of preoccupied thinking of that subject matter as I was chanting HARE KRISHNA HARE KRISHNA KRISHNA KRISHNA HARE HARE HARE RAMA HARE RAMA RAMA RAMA HARE HARE It is time to chant and remember Krsna and pray to Krsna. Remembering Krsna is remembering His pastimes, His form. In Mangal-aarti we have darsana of Radha-Madhava and Pancatattva. Then while chanting those forms come to our mind. We think and contemplate about those forms of Radha-Madhava. We have to get them settled and etched in the memory so that They get stuck there. In part of our subtle existence there is something like smriti- patal as sastras describe patal as a screen or board. Things gets impressed or etched on that smriti patal. That smriti-patal has many,many, many wrong memories collected from birth after birth. It's a maha storage unit. Something like an external hard drive. Sometimes the built in hard drive does not have sufficient space, so you add another external hard drive. That smriti-patal has many memories, samskaras, and what not. We keep it and keep visiting them in our day dreaming or night dreaming. So the idea is, as you chant Hare Krishna, it does -ceto darpana marjanam. That smriti-patal could be also called a darpan or mirror. The memories of our previous lives or non-Krishna conscious activities also cover that mirror. Every time we chant Hare Krishna some cleansing or erasing is done. Wrong memories, Maya memories are being burnt. Like in a computer they burn the CD. So here also lot of burning occurs. As we chant HARE KRISHNA the forest fire of this material existence is extinguished. What we have done earlier is erased, burnt off and new data uploaded as we chant Hare Krishna. It is time to remember the name, form, pastime and devotees of Krishna. If you have heard or read this subject matter then we remember. So during the chanting of Hare Krishna we upload this new data of Krsna’s names, forms, qualities and pastimes. We try to become more and more Krishna conscious as we keep chanting. Simultaneously we erase mayavi or illusory thoughts and memories and we upload fresh ones. As we upload new ones we get rid of the old ones. It happens simultaneously. We become attached to Krsna and there is detachment from Maya which happens instantaneously and simultaneously. By chanting the Hare Krishna mantra we clean our mindset. We fill up our minds with Krsna. This was just one of the points. This morning I was forced to remember a section of the Bhagavatam which I had to recite and share in Bhagavatam class. I was chanting and remembering, thinking of Lord Parasuram and his father, Jamadagni. We will have to stop now. You can join again in about an hour's time for nityam bhagavata sevaya. ( SB. 1.2.18) We chant every day, we recite Bhagavatam every day. This is our life style. We deal with the name , form, pastimes and qualities. Prabhupada also described nityam bhagavata sevaya!. He explained that there are two types of Bhagavat - book Bhagavat and person Bhagavat. We serve both book and person by reading and studying as well as a pure devotee who is a mahabhagavat. We stay busy in assisting Prabhupad's ISKCON, propagate it. That is also serving Bhagavatam. We recite Bhagavatam in morning, chant Hare Krishna in the morning. Then you serve the holy name and holy Bhagavatam differently all day long, by doing yare dakho tare kaho krsna upadesh. (CC Madhya 7.128) By distributing Srila Prabhupad's books in various ways we share Krsna with others and try to stay busy 24 hours a day. Prabhupada would say that our goal is to stay busy 24 hours a day and stay away from Maya. All day serve Lord and keep Maya at a distance. Hare Krishna!

Russian

Джапа сессия 10.03.2019 Сожгите компакт-диск с воспоминаниями майи! Мы начали нашу беседу о джапе раньше, потому что ее нужно закончить раньше, так как я должен провести класс Бхагаватам сегодня утром. Приглашаем послушать его на сайтеmayapur.tv в 8.00. Я хочу подготовиться к моему классу. Во время воспевания я не мог сохранять контроль и продолжал думать о стихах из Бхагаватам о которых я должен буду говорить сегодня утром. Речь идет о Парашураме и его отце Джамадагни и их лилах. Во время воспевания я должен был поразмышлять об этих вещах. Они не были навязаны мне, я хотел подумать и вспомнить эти игры, чтобы сегодня утром поделиться ими со своей аудиторией. На самом деле я молился Господу, Святому Имени, я молился Харинаме Прабху, дать мне разум, чтобы я мог более ярко, отчетливо и ясно раскрыть эти игры. Я был занят размышлениями на эту тему, во время повторения HARE KRISHNA HARE KRISHNA KRISHNA KRISHNA HARE HARE HARE RAMA HARE RAMA RAMA RAMA HARE HARE Сейчас время воспевать и помнить о Кришне, молиться Кришне. Вспоминать Кришну, это значит вспоминать Его игры, Его форму. На Мангала-арати у нас есть даршан Радха-Мадхавы и Панчататтвы. Позже, во время воспевания эти формы приходят в наш ум. Мы думаем и размышляем о формах Радха-Мадхавы. Мы должны пригласить Их и запечатлеть в памяти, чтобы Они остались там. В нашем тонком теле есть что-то вроде смрити-патала, шастры описывают патал как экран или доску. Вещи впечатаны или запечатлены на этом смрити патале. Этот смрити-патал имеет много-много-много неправильных воспоминаний, собранных рождение за рождением. Это маха хранилище. Что-то вроде внешнего жесткого диска. Иногда встроенному жесткому диску не хватает места, поэтому вы добавляете еще один внешний жесткий диск. На этом жестком диске много воспоминаний, самскар, форм. Мы храним их и продолжаем посещать в наших дневных или ночных сновидениях. Идея в том, что когда вы повторяете Харе Кришна, происходит - чето дарпана марджанам. Этот смрити-патал также можно назвать дарпан или зеркало. Воспоминания о нашей прошлой жизни, прошлой деятельности, не связанной с сознанием Кришны, покрывают это зеркало. Каждый раз, когда мы повторяем Харе Кришна, происходит некоторое очищение или стирание. Мы освобождаемся от наших воспоминаний. Неправильные воспоминания, воспоминания майи сгорают. Как сгорает CD-диск. Мы помещаем что-то на CD-диск, и этот диск сгорает. Когда мы повторяем ХАРЕ КРИШНА, лесной пожар этого материального существования гаснет. То, что мы сделали ранее, стирается, сгорает и загружаются новые данные. Когда мы повторяем Харе Кришна мы вспоминаем имя Кришны, форму Кришны, лилы и преданных Кришны. Мы вспоминаем, если мы слышали или читали что-то о Кришне, изучали эту тему, тогда мы вспоминаем. Поэтому во время повторения Харе Кришна мы загружаем новые данные об именах, формах, качествах и играх Кришны. Продолжая воспевать, мы стараемся все больше и больше осознавать Кришну. Одновременно мы стираем майю или иллюзорные мысли и воспоминания и загружаем свежие. Когда мы загружаем новые, мы избавляемся от старых. Это происходит одновременно. Мы привязываемся к Кришне, и отделяемся от майи, это происходит мгновенно и одновременно. Повторяя Харе Кришна маха-мантру, мы очищаем наш ум. Мы наполняем наши чувства и ум Кришной. Это был только один из пунктов. Этим утром я должен был вспомнить часть Бхагаватам, которую мне нужно будет читать сегодня утром и рассказывать для преданных на классе по Бхагаватам. Я воспевал и вспоминал, думал о Господе Парашураме и его отце Джамадагни. Нам придется остановиться сейчас. Вы можете присоединиться снова примерно через час для нитйам бхагавата севайа. (ШБ. 1.2.18) Мы воспеваем каждый день, мы читаем Бхагаватам каждый день. Это наш стиль жизни. Мы общаемся с именем, формой, играми и качествами. Прабхупада также описал нитйам бхагавата севайя, он объяснил, что есть два типа Бхагавата - книга Бхагават и личность Бхагават. Мы служим обоим - читая и изучая как книгу, так и личность, которая является чистым преданным, является махабхагаватой. Мы продолжаем помогать ИСККОНу Прабхупады, распространять его. Это также служение Бхагаватам. Мы рассказываем Бхагаватам утром, повторяем Харе Кришна утром. Затем вы служите Святому Имени и Святому Бхагаватам по-разному в течение всего дня, выполняя йаре дахо таре кахо кришна упадеш. (ЧЧ Мадхья 7.128) Распространяя книги Шрилы Прабхупады, мы делимся Кришной с другими и стараемся быть занятыми 24 часа в сутки. Прабхупада сказал бы, что наша цель - оставаться занятыми 24 часа в сутки и держаться подальше от майи. Весь день служить Господу и держать Майю на расстоянии. Харе Кришна