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जप चर्चा
20 सितंबर 2019
हरे कृष्ण!!!
आज हमारे साथ इस कॉन्फ्रेंस में 505 स्थानों से भक्त जप कर रहे हैं और अब यह संख्या बढ़कर 516 हो गयी है। जप करने वालों की संख्या धीमी गति से बढ़ रही है।
कल हमनें बताया था कि किस प्रकार से कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने दीक्षा के पश्चात हरे कृष्ण महामंत्र का जप किया एवं उन्हें किस प्रकार से इस जप ने बहुत अधिक प्रभावित किया था। महाप्रभु में यह परिवर्तन धीरे - धीरे नहीं आया अपितु यह एकदम से आया। जैसे ही उन्होंने हरे कृष्ण महामंत्र के जप को स्वीकार किया,तुरंत ही उनमें यह परिवर्तन आ गया और एक प्रकार से वह पागल हो गए। यह आध्यात्मिक पागलपन हरे कृष्ण महामंत्र जप के परिणामस्वरूप प्राप्त हुआ था।
हमें चैतन्य महाप्रभु की नकल नहीं करनी चाहिए और न ही हम कर सकते हैं। हमारी चेतना में हरे कृष्ण महामंत्र के जप द्वारा परिवर्तन क्रमशः धीरे धीरे आएगा। वह एकदम से नहीं आ सकता। हमें इसके लिए धैर्य रखना चाहिए अर्थात हमारी चेतना में आध्यात्मिक पागलपन जब तक नहीं आ जाता, तब तक हमें इंतज़ार करना चाहिए और जप करना चाहिए। जप के परिणाम स्वरूप हमें भी वह परमानंद पाने की अवस्था प्राप्त होगी।
जगन्नाथ स्वामी, नयन पथ गामी, भवतु मे।
हम भगवान श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु को तथा जगन्नाथ को यह प्रार्थना करते हैं और इस प्रार्थना में कहते हैं कि "हे भगवान! मैं जहां पर भी देखूं, मुझे आपके ही दर्शन हो अर्थात प्रत्येक स्थान पर मुझे जगन्नाथ, कृष्ण, या चैतन्य महाप्रभु दिखाई दे।" यह प्रेम के साथ जप का अंतिम परिणाम होगा।
हम हरे कृष्ण महामंत्र का जप करते हैं जिसका लक्ष्य यह होना चाहिए कि हमें प्रत्येक स्थान पर भगवान की अनुभूति हो और दर्शन हो। हरे कृष्ण महामंत्र के जप द्वारा हम पूर्णरूपेण से कृष्ण भावनाभावित बन सकते हैं। हम हमारी चेतना को पूर्ण रूप से विकसित कर सकते हैं अर्थात हरे कृष्ण महामंत्र के जप द्वारा हमारी चेतना में क्रांति आ सकती है जिससे हम पूर्ण रूप से कृष्ण भावना भावित बन सकते हैं।
हम जप के द्वारा कृष्ण के प्रति सचेत हो जाते हैं।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम, हरे हरे।।
हमें हरिनाम के प्रति उस तरह का विश्वास भी रखना चाहिए। दस नाम अपराधों में से एक अपराध यह भी है कि हरिनाम के जप में पूर्ण विश्वास न होना। वास्तव में वह विश्वास क्या है? हमें इस जप में यह विश्वास होना चाहिए कि जब मैं हरे कृष्ण महामंत्र का जप करूंगा, यह जप पुनः मुझे भगवान के पास ले जाएगा। यह जप मुझे पूर्ण रूप से कृष्ण भावना भावित बना सकता है, यह अतिश्योक्ति नहीं है। हमें हरे कृष्ण महामंत्र पर इतना विश्वास होना चाहिए और इसी विश्वास के साथ हमें जप करना चाहिए। हमें अपने अंदर इस तरह के विश्वास की भावना और चेतना विकसित करनी चाहिए।
हम गौड़ीय वैष्णव हैं और हमारी आध्यात्मिक परंपरा में वृंदावन के छः गोस्वामी आते हैं। वृंदावन के, षष्ठ गोस्वामी हरे कृष्ण महामंत्र का जप करते थे परंतु उन्होनें कभी भी ऐसा नही कहा कि अब मैं कृष्ण के साथ हूं अथवा मुझे भगवान की प्राप्ति हो गयी है अपितु वे सदैव भगवान कृष्ण के साथ विरह का अनुभव किया करते थे और उस विरह के भाव में जप करते थे।
वे कहते थे
हे राधिके, हे व्रज देविके ललिता
नंद सुनो
अर्थात हे राधे! आप कहाँ हो, हे कृष्ण! आप कहां हो। जैसे जैसे हम हरे कृष्ण महामंत्र का जप करते हैं, वैसे वैसे ही हमारे अंदर यह विरह का भाव उत्पन्न होता है कि मैं उनको कहाँ देख सकता हूं? मैं उनको क्यों नहीं देख पा रहा हूँ?
चैतन्य महाप्रभु ने भी उन भावनाओं का व्यक्त किया। जब वे जप करते थे, वह जप करते समय कृष्ण को ढूंढने की कोशिश करते थे। कभी वे गदाधर पंडित से पूछते- गदाधर! कृष्ण कहाँ है, मैं कृष्ण को देखना चाहता हूँ। वह कहाँ है, मुझे बताओ। गदाधर पंडित जोकि चैतन्य महाप्रभु के अंतरंग पार्षद व मित्र हैं, वे दोनों एक ही साथ बड़े हुए थे। गदाधर पंडित ने महाप्रभु से कहा 'ओह! कृष्ण तो आपके हृदय में है।' जैसे ही निमाई ने सुना कि भगवान उनके हृदय में है, वह हनुमान की तरह अपने हृदय को चीरने लगे, अपने नाखून अपने हृदय में गड़ाने कर उसे खोलने की कोशिश करने लगे । महाप्रभु कह रहे थे कि' क्या सच में! भगवान मेरे हृदय में है? ठीक है, मैं अपने दिल के अंदर देखूंगा।' इस प्रकार से वे अपने वक्ष स्थल को खरोंच रहे थे, उसमें से बहुत ज़्यादा खून निकलने लगा।
जब चैतन्य महाप्रभु ऐसे कर रहे थे, तो शची माता भी वहां से अधिक दूर नहीं थी, उन्होंने देखा कि किस प्रकार से निमाई अपने हृदय को चीर रहा है और अपने आपको आघात पहुंचा कर अपने हृदय में भगवान को देखना चाहता है, ऐसा दृश्य देख कर शची माता अत्यंत चिंतित और अत्यंत दुखी हुई परंतु गदाधर पंडित ने आगे जो महाप्रभु को कहा, उससे शची माता को शांति हुई।
गदाधर पंडित ने चैतन्य महाप्रभु को कहा, नहीं! नहीं! दिल में नही। निमाई, भगवान आपके हृदय में नहीं हैं, वे तो बाहर हैं। जैसे ही महाप्रभु ने यह सुना, उन्होंने अपने हृदय को खरोंचना और स्वयं को आघात पहुंचाना बंद कर दिया और वे भगवान को बाहर ढूंढने लगे, शची माता अत्यंत ही प्रसन्न हुई। उन्होंने गदाधर से कहा, "गदाई, ये तुमने बहुत अच्छा किया। तुमने निमाई को जो बताया, उससे मैं अत्यंत प्रसन्न हूँ। अब तुम सदैव निमाई के साथ में रहना, क्या पता, निमाई कब पुनः इस तरह की मुसीबत में घिर जाए। इसलिए मैं चाहती हूं कि तुम गदाधर कृपया मेरे निमाई के साथ रहो और हमेशा उसकी सहायता करो।"
गौरांग महाप्रभु की अचिंत्य लीलाएं हैं, हमें इन लीलाओं से शिक्षा मिलती हैं अर्थात हमें उपदेश प्राप्त होता है कि हरि नाम का जप एक प्रक्रिया है और जब हम इस हरिनाम को करते हैं, तब हमारे अंदर सुप्त कृष्ण प्रेम पुनः जागृत हो सकता है। अतीत में भी ऐसा कई बार हुआ है, जब कई भक्तों को इस कृष्णप्रेम अर्थात भगवत्प्रेम की प्राप्ति हुई है।
अतः यह संभव है कि आपको भी महामंत्र के जप द्वारा भगवतप्रेम की प्राप्ति हो। चैतन्य महाप्रभु ने स्वयं ऐसा उदाहरण प्रस्तुत किया है।
हम चैतन्य महाप्रभु की नकल नहीं कर सकते हैं परंतु हमें उनके पथ का अनुगमन करना चाहिए। अनुकरण और अनुसरण दोनों में अंतर है, हमें जप की प्रक्रिया में अधिक से अधिक विश्वास विकसित करना चाहिए।
जब हम हरे कृष्ण महामंत्र का जप करते हैं तो इसके परिणामस्वरूप हमारी भी चेतना में परिवर्तन आ सकता है और हमें भी कृष्ण प्रेम को प्राप्ति हो सकती है। अभी हमारे पास बहुत कम समय बचा है इसलिए हम विश्व हरिनाम उत्सव (वर्ल्ड होली नाम फेस्टिवल) के विषय पर थोड़ी सी चर्चा करेंगे और जानेंगे कि आप भक्त इस हरिनाम उत्सव पर क्या कर रहे हो और क्या नहीं कर रहे हो। यह एक विशाल उत्सव है और हमें इस उत्सव को एक सफल विशाल हरिनाम उत्सव के रूप में मनाना चाहिए। जैसा कि नाम से ही पता चलता है कि वर्ल्ड होली नाम अर्थात विश्व हरिनाम अर्थात अंतरराष्ट्रीय हरि नाम उत्सव। यह कोई लोकल या स्थानीय उत्सव नही है, सभी को इसमें सम्म्मलित होकर इसे मनाना चाहिए।
चैतन्य चरितामृत में चैतन्य महाप्रभु का एक अत्यंत प्रेरणादायक संदेश है। एक बार चैतन्य महाप्रभु बैठे हुए थे और बोले कि "मैं यहाँ एकमात्र माली हूं और यहां देखो कितने अधिक फल लगे हुए हैं जो हर जगह पेड़ों के नीचे लटक रहे हैं और सभी इन फलों की मांग कर रहे हैं, परंतु मैं तो अकेला माली हूं, मैं अकेला इतने सारे फल कैसे बांट सकता हूँ? इसलिए मुझे फल बांटने वालों की जरूरत है। मदद! मदद!"
महाप्रभु कहते हैं कि मुझे वितरक चाहिए जो यह सेवा कर सकें। भक्त कहाँ है? आप भक्त आगे आइये और अपनी टोकरियों में ये फल भर इनका वितरण कीजिए ।
ये फल कौन से है? चैतन्य महाप्रभु यहां कृष्ण प्रेम रूपी फल अर्थात हरिनाम की बात कर रहे हैं।
स्थान अस्थान नहीं विचार
पात्र अपात्र न विचार
यह मत देखना कि यह पात्र है या नही है, या यह स्थान अनुकूल है या नहीं है। बस सभी को इस कृष्ण प्रेम रूपी हरिनाम के फल का वितरण करो,पूरे विश्व में भगवान के प्यार के फल का वितरण करो, महामंत्र का प्रचार करो।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।
गो लोकेर प्रेम धन हरिनाम संकीर्तन। चैतन्य महाप्रभु इस हरिनाम संकीर्तन अर्थात गोलोक के प्रेम धन को इस धरती पर ले कर आए थे। वे देखना चाहते हैं कि अब इस प्रेम धन का अधिक से अधिक मात्रा में वितरण हो। इस कांफ्रेंस में जो अभी जप कर रहे हैं, क्या आपने सुना कि चैतन्य महाप्रभु क्या चाहते हैं? वे हमें निर्देश दे रहे हैं कि हम इसका वितरण करें। आप इसका पालन कीजिए, जो इस कॉन्फ्रेंस में जप नहीं कर रहे हैं और जप चर्चा को नहीं सुन पाए हैं,आप उन्हें भी बताइए जिससे वे भी सम्पूर्ण विश्व में महाप्रभु के प्रेम रूपी हरिनाम का वितरण करें।
जप सत्र के दौरान आप में से कई भक्त विश्व हरिनाम उत्सव की रिपोर्ट कमेंट में लिख कर भेज रहे थे। मॉरीशस में परम पूज्य कदंब कानन स्वामी महाराज व्यक्तिगत रूप से विश्व हरिनाम उत्सव का नेतृत्व कर रहे हैं। दुबई में श्यामलंगी माताजी शिष्य सभाओं की व्यवस्था कर रही हैं और आज या कल वे 64 माला का सत्र करेंगी। मुस्लिम देशों में साप्ताहिक कार्यक्रम शुक्रवार को होते हैं। वे इस विश्व हरिनाम उत्सव में प्रोग्राम करेंगे। अहमदाबाद में मुरली मनोहर प्रभु विश्व हरिनाम उत्सव के लिए एक दिवसीय पद यात्रा का आयोजन कर रहे हैं और पुणे में कुछ भक्त, स्कूल के विद्यार्थियों के पास जाकर हरिनाम का प्रचार कर रहे हैं, वे विद्यार्थियों से जप कराते हैं।
रूस में भक्तों से बात हुई, कि वे सेंट पीटर्सबर्ग में जाकर हरिनाम कीर्तन का आयोजन करें।सोलापुर से रामलीला माताजी ने कहा कि वे इस विश्व हरिनाम उत्सव के लिए इनडोर (घर के अंदर) जप करती हैं मैंने उन्हें कहा कि आप अब घर के अंदर नही, घर के बाहर जाकर प्रभात फेरी कीजिए और हरिनाम संकीर्तन कीजिए। जब महाप्रभु, श्रीवास आंगन में कीर्तन किया करते थे, तो इससे अद्वैत आचार्य जी चैतन्य महाप्रभु से प्रसन्न नहीं थे। अद्वैत आचार्य जी चाहते थे नवद्वीप की गलियों में हर जगह कीर्तन किया जाए।
मैं कुछ उत्साहजनक रिपोर्ट पढ़ और सुन रहा हूँ। इसके अतिरिक्त मुझे दिन के समय में भी कई रिपोर्ट्स और ईमेल आते हैं कि किस प्रकार सभी भक्त इस विश्व हरिनाम उत्सव में नाम उत्सव को मना रहे हैं। इस प्रकार से आप व्यस्त रहिए, यह अत्यंत ही विशेष समय है जब आप इस मैराथन को सफल बना सकते हैं, एवं इसका प्रचार कर सकते हैं। आप अधिक से अधिक मात्रा में हरिनाम का प्रचार कीजिए।
आप सोचिए कि किस प्रकार से मैं भी इस हरिनाम का वितरण कर सकता हूँ और उसके अनुसार अधिक से अधिक कार्य कीजिए। इसका प्रचार कीजिए फिर आप अपनी रिपोर्ट हमें भेज सकते हैं कि आपने इस विश्व हरि नाम उत्सव के समय क्या किया। हम इस कॉन्फ्रेंस को यहीं विराम देते हैं और आप सभी इस कार्य पर लग जाइए। यह अभी कार्य करने का समय है अर्थात हरिनाम के प्रचार का समय है।
गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल!