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जप चर्चा
पंढरपुर धाम से
30 मार्च 2021
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।।
जय श्री कृष्ण चैतन्य प्रभु नित्यानंद ।
श्री अद्वैत गदाधर श्रीवासादी गौरभक्त वृंद ।।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।।
735 स्थानो से आज जप हो रहा है । पांडुरंग पांडुरंग पांडुरंग ।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।।
गौर पूर्णिमा भी संपन्न हुई । संपन्न हुई कि आपने संपन्न की ? कुछ किया आपने ? हां ! सुंदरी श्यामा ? गौर पूर्णिमा के दो दिन बाद मतलब आज एक विशेष घटना घटी , वैसे साल वही नहीं था , संभावना है 60- 70 वर्षों के उपरांत । चैतन्य महाप्रभु प्रकट हुए, चैतन्य महाप्रभु लीला सम्पन्न की फिर ,संत तुकाराम महाराज की जय । देहू गाव मे संत तुकाराम महाराज प्रकट हुये और उसी गावं से संत तुकाराम महाराज अपने गांव गए । अपना गांव कौन सा था ? वैकुंठ था । आज वह दिन है , महाराष्ट्र में तुकाराम बीज कहते हैं , द्वितीय है । आज के दिन तुकाराम महाराज ,
आम्ही जातो आमच्या गावा ।
आमचा राम राम घ्यावा ।।
(संत तुकाराम महाराज)
अनुवाद: मैं अपने गाव लौट रहा हू । मेरा नमस्कार स्विकार करो ।
ऐसा कहते हुए मैं अपने गांव जा रहा हूं । राम राम मंडळीनो राम राम , फिर मिलेंगे आप भी आ जाओ । आप भी किर्तन करो और दूसरी वाली फ्लाइट से आप भी आ जाना ऐसा ही तुकाराम महाराज ने कहा , वह दिन आज का था । देहू गांव में आज बहुत बडा उत्सव होता है , लाखों लोग वारकरी कहो या तुकाराम महाराज के अनुयाई कहो , तुकाराम महाराज के भक्त कहो आज देहूगांव में पहुंचते हैं । 1 साल मैं भी गया था , 1 साल तो गया ही था । देहू गांव में एक विमान आ गया , कहां से आया होगा ? 450 वर्ष पूर्व की बात कर रहे हैं , तब कोई विमानतल या विमान संसार में था ? वह विमान कहां से आया होगा ? वैकुंठ विमान ही आ गया , वैसे देहू पुणे के पास है कहो या पुणे का ही एक अंग हो गया है , थोड़ा दूर था लेकिन पुणे का भाग था ।
पुणे का नाम वैसे एक समय पुण्य नगरी था , इस पुण्य नगरी मे ही यह देहू गांव है , पुणे में बड़ा विमानतल तो हो गया लेकिन उस वक्त , उस दिन भगवान ने देहू गांव को ही विमानतल बनाया । अपने धाम से एक विमान भेजा । हरि हरि । और तुकाराम महाराज आरूढ हुये , उन्होंने बेल्ट वगैरे बांध दिया , वैमानिक भी थे , एयर होस्ट वगैरा भी थे , एयर होस्टेस नहीं थी (हंसते हुए) इस विमान ने उड़ान भरा तुकाराम महाराज जब कह रहे थे कि मैं अपने गांव जा रहा हूं तब कई सारे गांव वाले भी वहां एकत्रित थे। ऐसे इंद्रायणी का तट है वहां ,इंद्रायणी नाम की पवित्र नदी वहां बहती है उसके तट पर ही देहू गांव है । तुकाराम महाराज ने जब कहा , मैं अपने गांव जा रहा हूं , वह देहू गांव के गांव करी लोगोने और तुकाराम महाराज के कई भक्त , शिष्य बड़ी संख्या में वैसे कुछ समय से कुछ दिनों से वहां उपस्थित थे ही । हरि हरि । तुकाराम महाराज कीर्तन कर रहे थे और वह कीर्तन करते समय ,
जय जय राम कृष्ण हरि।
जय जय राम कृष्ण हरि।।
जय जय राम कृष्ण हरि।
जय जय राम कृष्ण हरि।।
जय जय राम कृष्ण हरि।
जय जय राम कृष्ण हरि।।
आप तो सो रहे हो , फिर वैकुंठ कैसे जाओगे ? सोयेगा वह खोयेगा । तुकाराम महाराज का जो वह कीर्तन था वह बडा विशेष कीर्तन था या कुछ विशेष भाव के साथ , विचारों के साथ वह कीर्तन कर रहे थे । वह भगवान को तो चाहते थे किंतु वह भगवान को उनके अपने धाम में भगवत धाम में मिलना चाहते थे , भगवत धाम भी लौटना चाहते थे , ऐसी तीव्र इच्छा के साथ और प्रार्थना के साथ वह कीर्तन कर रहे थे । कई दिनों तक वह अखंड कीर्तन चलता रहा और तुकाराम महाराज की प्रार्थना भी गंगोहम जैसे गंगा का ओघ , गंगा बहती है या गंगा सागर को मिलती है , सदैव मिलती रहती है , हर क्षण मिलती रहती है । गंगा का सागर से मिलन होते ही रहता है वैसे महारानी कुंती ने भी कहा है , "मेरी भक्ति कैसी हो ? मेरी प्रार्थना कैसी हो ? मेरी भाव भक्ति कैसी हो ? गंगोहम जैसे गंगा का ओघ , जैसे गंगा अखंड बहती है " हरि हरि ।
तुकाराम महाराज ने यह सिखाया , कीर्तन करना है , जप करना है तो कैसे करें कैसे भाव हो ।
वैष्णव आदित्य
श्लोक ३३
कृष्ण त्वदीयपदपङ्कजपञ्जरान्त मद्यैव मे विशतु मानसराजहंसः । प्राणप्रयाणसमये कफवातपित्तैः *कण्ठावरोधनविधौ स्मरणं कुतस्ते।।
अनुवाद:-अनुवाद हे भगवान् कृष्ण , इस समय मेरे मन रूपी राजहंस को अपने चरणकमल के डण्ठल के जाल में प्रवेश करने दें । मृत्यु के समय जब मेरा गला कफ , वात तथा पित्त से अवरुद्ध हो जाएगा , तब मेरे लिए आपका स्मरण करना कैसे सम्भव हो सकेगा ?
राजा कुलशेकर की यह प्रार्थना है , संत तुकाराम महाराज प्रार्थना कर रहे थे , राजा कुलशेकर ने प्रार्थना की और श्रील प्रभुपाद ने भी हमको वैसे ही प्रार्थना करने के लिए सिखाया आप जप करते हो तब मैं तो आपका ही हू , मैं तो आपका ही हूं , मैं आपका ही दास हूं , इस दास को सेवा दीजिए । मुझे सेवा के लिए योग्य बना दो ऐसे कई प्रार्थनाएं हैं , हम सुनाते आये हैं । उसमें श्रावय और दर्शय भी है । हे राधे , हे कृष्ण मुझे सुनाईये , आपकी जो कृष्ण के साथ लीला संपन्न होती है उसे सुनाइए और केवल सुनाइए नहीं सुनाते सुनाते मुझे क्या हो जाए? उसका दर्शन हो जाए । तुकाराम महाराज के भाव और भक्ति का क्या कहना ? और यही तो उनसे सीखना है ।
थोर महात्मे होऊनी गेले , चरित्र त्यांचे पहा जरा , आपण त्यांच्या समान व्हावे हाच सापडे बोध खरा.
ऐसे मराठी में कहते हैं । ऐसे संत महात्मा कई हो चुके हैं । तुकाराम महाराज की जय । तुकाराम महाराज संत शिरोमणि थे । उनके चरित्र का अध्ययन करो , सुनो और सीखो , चरित्र त्यांचे पहा जरा ।...........
क्या उनके गुण हमे आ सकते हैं ऐसी लालसा हमे उत्तपन करनी चाहिए।
और फिर उस इच्छा पूर्ति के लिए हमारे प्रयास भी ज्यारी होने चाहिए।
संत तुकाराम महाराज की गाथा हम यहां लेकर बैठे हैं। तुकाराम महाराज ने की हुई कथा या तुकाराम महाराज के उपदेशामृत जिसमें भगवान का नाम रूप गुण लीला का वर्णन भी उनके हृदय प्रांगन में प्रकाशित होता था और फिर उसे वो कहते हैं। और फिर बाद में वह कहते या लिखते लिखते ज्यादा ऐसी स्फूर्ति उनको आती थी और वह कोई सन्यासी वगैरह भी नहीं थे आप यदि सोचेंगे तो वह ब्रह्मचारी है वह सन्यासी है यह सब आपके लिए सुलभ है हम तो घर के गृहस्थ हैं लेकिन तुकाराम महाराज गृहस्थ ही थे और यहां हमे जो अधिकतर श्रोता सुनते हैं वो गृहस्थ ही होते हैं। हम सभी के समक्ष तुकाराम महाराज का आदर्श हैं।
गृहस्थ के समक्ष तो हैं ही तो ऐसी भक्ति उन्होंने करके दिखाएं ऐसी स्पूर्ति उनको होती रहती थी। उनके मुख पद्म से कई सारे वचन निकलते जिन्हें महाराष्ट्र में कहते हैं अभंग तुकाराम महाराज जी ने 4000 अभंगों की रचना की और तुकाराम महाराज के अभंग वेद वाणी ही हैं वैसे श्रील प्रभुपाद जी कहते हैं, नरोत्तम दास ठाकुर जी के गीत हैं या, श्रील भक्तिविनोद ठाकुर जी के गीत हैं यदि गुणवत्ता के बारे में विचार करे तो वेद वाणी से अभिन्न हैं वो वेद वाणी ही हैं और जो वेद वाणी हैं वो तुकाराम महाराज जी के वाणी में या मराठी में ये 400 साल पहले की वाणी हैं तो थोड़ी कठिन जाती हैं समझ ने में या फिर बंगला भाषा मे हमारे गौड़ीय वैष्णव लिखे है पदावलि या भजन ये सारी संपत्ति तुकाराम महाराज छोड़ कर गए है ये हमारे देश की सम्पत्ति हैं......
सुंदर ते ध्यान उभे विटेवरी
कर कटावरी ठेवोनिया
सुंदर ते ध्यान उभे विटेवरी
तुळसीहार गळा कासे पितांबर
आवडे निरंतर तेची रूप
सुंदर ते ध्यान उभे विटेवरी
मकर कुंडले तळपती श्रवणी
कंठी कौस्तुभ मणी विराजित
सुंदर ते ध्यान उभे विटेवरी
तुका म्हणे माझे हेची सर्व सुख
पाहीन श्रीमुख आवडीने
सुंदर ते ध्यान उभे विटेवरी
सुंदर ते ध्यान उभे विटेवरी
अभंग – संत तुकाराम महाराज
जय जय विट्ठल रखु माई
जय जय विट्ठल रखु माई
जय जय विट्ठल रखु माई
उनके साक्षात्कार हैं या उनको जैसे पांडुरंग विट्ठल कृष्ण दर्शन देते थे वैसा ही वे उसका वर्णन करते थे.......
इस अभंग में
सुंदर ते ध्यान उभे विटेवरी
कर कटावरी ठेवोनिया
सुंदर ते ध्यान उभे विटेवरी
तो उनको वह ध्यान सुंदर लग रहा है या फिर भगवान के सौंदर्य का वह अनुभव कर रहे हैं साक्षात्कार हो रहा है और उसी को लिख रहे हैं तुलसी हार गळा कासे पितांबर केवल वह भी ठीक है मूर्ति का दर्शन कर रहे हैं आपको मूर्ति का दर्शन करते हुए लिखा है या कह रहे हैं करकटा वरी ठेऊनिया उन्होंने कमर पर अपने हाथ रखे हैं गले में तुलसी की माला पहनी है मकर कुंडले तड़पती श्रवणी कंठी कौस्तुभ मणि विराजीत ऐसी बात नहीं है उनको साक्षात भगवान दिखते और जो विष्णु श्री लगने विग्रह को शीला है हम बद्ध जीवों को ऐसा ही कुछ भगवान के दर्शन करते करते ऐसे ही विचार आते रहते हैं। लोग अपराध करते रहते हैं लेकिन किंतु तुकाराम महाराज जब भी विग्रह का दर्शन कर रहे हैं तो उनको उनके लिए विग्रह ही भगवान है विग्रह तो भगवान हैं ही और आगे क्या है भेद नाहि देवात या उसकी शुरुआत कैसी है भेद नाहि देवात या गोविंद गोविंदा तो है ही गोविंद गोविंद जी मनाला गलियां छंद मग गोविंद ते काया भेद नाहि देवात या तुकाराम महाराज अभंग गा रहे हैं वो वही गा रहे जो उनका जो भाव है उनके जो विचार है उनका जो साक्षात्कार है यह अलग-अलग अभंग पहली बार रचना कर रहे हैं यह रिपीट कर रहे हैं और किसी ने लिखा है उसको दौरा रहे वह उनका ओरिजिनल है वह अभंगो के मूल कर्ता हैं।
हरि हरि कर्म महाराज तुकाराम महाराज का क्या कहना कहने भी नहीं आता हमको....
वैष्णवेर क्रिया मुद्रा कबू न बजाए ऐसा भी तो कहा ही है वैष्णव की क्रिया मुद्रा भाव भक्ति दिव्य विद्वान भी भलीभांति नहीं समझ सकते जो समझ गया तुकाराम महाराज जैसे वैष्णव को तो बन गया वैष्णव खुद ही किंतु जो वैष्णव नहीं है वह कैसे पहचाने गा दूसरे वैष्णव को...
हरि हरि ऐसे तुकाराम महाराज है और ज्यादा तो कुछ कहा नहीं और हम झट से कहते हैं ऐसे तुकाराम महाराज ये सुनकर आपको लगता होगा कैसे तुकाराम महाराज आप ऐसे तो कह रहे हो ऐसे श्री भगवान को मेरे बारंबार प्रणाम है लेकिन ऐसे तो फिर कैसे बता तो दो थोड़ा फिर बाद में कहो ऐसे तो ज्यादा तो कुछ कहा नहीं समय भी नहीं है और कहने को भी नहीं आता तुकाराम महाराज के बारे में तुकाराम महाराज उनकी भाव भक्ति हरि हरि दोबारा मैं ऐसे कह रहा था कि ऐसे तुकाराम महाराज कीर्तन कर रहे थे देहूगांव के बाहर बगल में ही आज के दिन कुछ 400 वर्ष पूर्व और वह कुछ ज्यादा बूढ़े वगरे नही थे उनकी उम्र तो बस 34 साल की थीं।
उसके बाद उन्होंने कहा बस हो गया चलो चलते हैं भगवत धाम लौटते हैं। भगवान के पास पहुंचते हैं वैसे उन्होंने खुप प्रचार भी किया भक्ति का हरिनाम का प्रचार बड़े कम समय में उन्होंने विट्ठल प्राप्ति या भगवत प्राप्ति उनको हुई है। भगवत साक्षात्कार हुआ देहू गांव के पास ही ऐसे तीन पहाड़ है अलग-अलग तुकाराम महाराज की लीला भी हुई है उन तीन पहाड़ो के संबंध में उसमे जो भंडारा नाम का एक गांव है तो उस पहाड़ पर जाकर वहा बैठ गए तो.......
भगवान का दर्शन नहीं होता तब तक मैं तो यहां से ना तो हीलूंगा ना डुलूंगा ऐसा संकल्प लेकर वहां पहुंच गए ऐसे ही ध्रुव महाराज कहो वृंदावन में भी मधुबन में ध्रुव टीला है छोटा सा पहाड़ है वहां ऐसे ध्रुव महाराज को भगवान ने दर्शन दिए देना ही पड़ा भगवान के लिए कोई पर्याय ही नहीं था ऐसा ज़िद्द लेकर बैठे थे ऐसा उनका निश्चय था उत्साह और धैर्य भी था वैसे ध्रुव महाराज का वैसे ही तुकाराम महाराज का और ऐसा ही जब होता है उत्साह निश्चित,धैर्य तभी भगवान मिलते हैं। नहीं तो भूल जाओ मर जाओ तुकाराम महाराज जब वह कीर्तन कर रहे थे उस पहाड़ के ऊपर उनके पास कोई ना संगी था ना ही कोई वाद्य थे वही का पत्थर लेकर उसका ही करताल बनाकर उसको पीटते थे जय जय राम कृष्ण हरि जय जय राम कृष्ण हरि जय जय राम कृष्ण हरि जय जय राम कृष्ण हरि जैसे सूरदास का कीर्तन सुनने के लिए भगवान पहुंच जाते थे तो वैसे तुकाराम महाराज का कीर्तन सुनने के लिए पंढरपुर से भगवान वहा देहु उपस्थित हो जाते थे, और इसीसे यह सिद्ध होता है.....
पद्म पुराण
नाहं तिष्ठामि वैकुण्ठे योगिनां हृदयेषु वा । मद्भक्ताः यत्र गायन्ति तत्र तिष्ठामि नारद ॥
अनुवाद :- न मैं वैकुण्ठ में हूँ , न योगियों के हृदय में । मैं वहाँ रहता हूँ , जहाँ मेरे भक्त मेरी लीलाओं की महिमा का गान करते हैं ।
जय हो पांढुरंग पांढुरंग पांढुरंग .....
जहां मेरा कीर्तन होता है और तुकाराम महाराज ऐसे कीर्तनकार होते हैं कीर्तन तो होते रहता है लेकिन तुकाराम महाराज जैसे भक्ति भक्तिमान भक्त कीर्तन करते हैं तो तत्र तिष्ठामि नारद ऐसे भगवान कहते हैं कि वहां भगवान रहते हैं।
और अभी तो थोड़ा कह सकते कि ऐसे थे तुकाराम महाराज कीर्तन कर ही रहे थे कुछ दिनों से और भगवान ने उनकी प्रार्थना पुकार सुनली वार्तालाप हो गया वैकुंठ या गोलोक में गोलोक निवासी भगवान के साथ और उन्होंने व्यवस्था की और विमान भेजा तुकाराम महाराज ने अपना स्थान ग्रहण किया उड़ान भरी और उन्होंने कहा कि मैं अपने गांव जा रहा हूं यह भी कहा तब गांव वाले कह रहे थे हां आपके गांव को जाने के लिए विमान में बैठकर जाने की जरूरत थोड़ी हैं आपका गांव तो यह रहा वह भी नहीं यह रहा तो चलो चलके जाते हैं वहां 2 मिनट में पहुंच जाएंगे जब 2 मिनट का चलना होगा आप विमान में बैठ रहे हो और कह रहे हो मैं मेरे गांव जाता हूं तो तुकाराम महाराज जी जिस गांव को अपना गांव माने थे या कह रहे थे तो वह दूसरा ही गाव था दूसरा ही जगत था वह भगवान के गांव के है वैसे हम भी भगवान की गांव की है लेकिन हमने अपना गांव कानपुर या नागपुर या कोल्हापुर ऐसे पूरी बनाया है।
और हम महाराष्ट्र में चलाता रहता है कोल्हापुरकर, नागपुरकर, आरवडेकर और क्या अमरनगरकर और वैसे यह सब करमर कर ही है करो मरो फिर करने के लिए आओ फिर मरो तुकाराम महाराज तो देहु को ही अपना गांव कुछ समय के लिए मानते थे लेकिन हमारा शाश्वत गांव भगवत धाम ही है। तब तुकाराम महाराज आज के दिन वही पवित्र दिन हैं आज तुकाराम महाराज के वैकुंठ गमन का दिन है। उन्होंने प्रस्थान कर लिए तो कर ही लिए भगवत धाम है कि नहीं वैकुंठ हैं कि नही तो सुनने में आता है यहां तो केवल कुंठ है लेकिन तुकाराम महाराज ने यह सिद्ध कर दिया वैकुंठा धामा की या गोलोक धाम की और संत तुकाराम महाराज की जय आज हम बैठे बैठे कुछ कह रहे हैं हम जाएंगे और तुकाराम महाराज वैकुंठ विमान में उस समय प्रस्थान किया ऐसे ही वह करते रहते हैं सभी भक्तों वृंद वारकरी मंडली और कहते हैं कि वहां एक पेड़ था और पेड़ है जो तुकाराम महाराज ने वहां से उड़ान भरी थी तब जब वह समय जब आता है तो वह पेड़ हिलने लगता है कंपित होने लगता हैं तो सभी समझ जाते हैं कि प्रस्थान हो रहा है यही समय है और फिर कीर्तन और फिर कीर्तन बड़े जोरो के साथ होता है।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे
गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल ठीक है