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जप चर्चा
पंढरपुर धाम से
दिनांक २९.०३.२०२१
जगन्नाथ मिश्र महोत्सव।
हरे कृष्ण !!
गौरांग!
जय निमाई!
645 स्थानों से भक्त जप कर रहे हैं। क्या आप तैयार हैं? आप सभी का स्वागत हैं। आज एक विशेष उत्सव हैं।
कल इस समय तक निमाइ नहीं थें किंतु आज हैं,जय निमाइ।
जय सचिनंदन जय सचिनंदन
जय सचिनंदन गौर हरि
सचिमता प्रान धन गौर हरि
युग अवतारी गौर हरि
नदिया विहारी गौर हरि
हमें केवल हरि हरि नहीं गौर हरि कहना चाहिए।
आप सभी को नव वर्ष की शुभकामनाएं।
आज से नया वर्ष प्रारंभ हो रहा हैं।दुनिया के लिए होता हैं क्रिस्ताभध,कईयों का शकाभध होता हैं और गोडिय वैष्णवों का गोराभध होता हैं।अभध मतलब वर्ष।आज से नया वर्ष प्रारंभ हो रहा है। चैतन्य महाप्रभु को प्रकट हुए 535 वर्ष आज पूरे हुए।
आज प्रातः काल में उठते ही जो सबसे पहला दर्शन मैंने किया वह चंद्रमा का था। ब्रह्म मुहूर्त में पूर्णिमा का चांद निकला था।वैसे आज तो प्रतिपदा हो गई,लेकिन पूर्णिमा के तुरंत बाद का समय हैं, तो लगभग पूर्णिमा जैसे ही चंद्रमा का दर्शन मैंने किया। तो मैंने सोचा कि यह चंद्र तो चैतन्य महाप्रभु के प्राकटय का साक्षी हैं,यह वही चंद्रमा है जो 535 वर्ष पूर्व जब चैतन्य महाप्रभु का प्राकटय हुआ तब भी था और आज भी हैं। बाकी लोग तो आए और प्रस्थान भी कर गए। लेकिन चंद्रमा तो अब भी हैं। उस दिन का और उस समय का चंद्रमा आज भी वही चंद्रमा हैं। हरि हरि।। चंद्रमा को देखकर मैं सोच रहा था कि क्या सच में यह चांद उस वक्त साक्षी था या नहीं था क्योंकि उस दिन तो चंद्रग्रहण था। तो जब चंद्र ग्रहण होता है तो चंद्र दिखता नहीं है वैसे चंद्रमा होता तो हैं ही। केवल ग्रहण लगने की वजह से वह दिखता नहीं हैं। इसलिए चंद्रमा तो था लेकिन चंद्रमा का हमारे लिए दर्शन नहीं था। गोडिय वैष्णव में कहा जाता है कि चंद्रग्रहण का तो चंद्र ने अपने मुंह को छुपाने के लिए बहाना बनाया था।क्योंकि चंद्रमा सोच रहा था कि यह तो भगवान गौर चंद्र प्रकट होने जा रहे हैं। पहले थे रामचंद्र, श्री कृष्ण चंद्र और अभी गौर चंद्र प्रकट होने जा रहे हैं और यह गौर चंद्र कैसे हैं
बहुकोटिचन्द्र जिनिवदनउज्ज्वल ।
गलदेशेवनमाला करेझलमल।।
अनुवाद-
चैतन्य महाप्रभु का मुख मंडल करोड़ों चंद्रमा की भांति उद्भासित हो चमक रहा हैं, तथा उनकी वनकुसुमो की माला भी चमक रही हैं।
हमारा चंद्र सोच रहा था कि ऐसे गौर चंद्र के समक्ष मेरा धब्बे वाला और कलंक वाला मुखड़ा कैसे दिखाउ।इसीलिए चंद्रमा ने चंद्रग्रहण के बहाने से अपना मुंह छुपा लिया।वही 535 वर्ष पहले वाला चंद्रमा आज भी हैं। अभी कुछ समय पहले,ब्रह्म मुहूर्त के समय पर तो था। भक्तों ने चंद्रमा और मेरा,हम दोनों का चित्र भी खींचा। पता नहीं उन्होंने ऐसा क्यों किया।क्योंकि मैं तो महत्वपूर्ण नहीं हूं। स्मरण तो उस वक्त चैतन्य महाप्रभु का कर रहे थे और कुछ भक्त हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे गा रहे थे या जगन्नाथ मिश्र उत्सव में सम्मिलित हुए थे।जगन्नाथ मिश्र महोत्सव की जय। जैसे नंद बाबा ने जो उत्सव मनाया था,उसे नंदोत्सव कहते हैं।जन्माष्टमी से अगले दिन जो नवमी होती हैं, उस नवमी के दिन नंद महाराज ने उत्सव मनाया था।उस उत्सव का नाम हैं,नंदोत्सव।
जब श्री कृष्ण का जन्म हुआ था तो किसी को भी पता नहीं चला था। प्रातः काल में नंदबाबा को पता चला था और जैसे ही पता चला तो वैसे ही इस समाचार को नंद बाबा ने पूरे नंद मंडल में फैला दिया। उस वक्त नंद बाबा ने कैसे समाचार फैलाया था,यह तो भगवान कृष्ण की ही व्यवस्था हैं कि किस प्रकार से उनके जगत में समाचार भेजे जाते हैं। इस कला और शास्त्र का हमें नहीं पता। घर घर में और पूरे ब्रजमंडल में समाचार इतनी तेजी से पहूंचा कि जितना आजकल के मैसेज में भी नहीं पहुंच सकता। आजकल जो हम मैसेज भेजते हैं वह 50-60 लोगों को ही जा पाता हैं,लेकिन नंद बाबा ने तो ब्रज के हर व्यक्ति तक यह समाचार पहुंचाया था। वे नंद महाराज ही अब गोर लीला में जगन्नाथ मिश्र के रूप में प्रकट हुए हैं। श्री कृष्ण ने ऐसी व्यवस्था की,कि श्री कृष्ण ही अब श्री कृष्ण चैतन्य बनने वाले हैं। श्री कृष्ण ने हीं नंद बाबा को जगन्नाथ मिश्र बनाया और खुद बन गए जगन्नाथ मिश्र नंदन।जो नंदनंदन थे,अब वह बन गए हैं,जगन्नाथ मिश्र नंदन।गोर लीला में नंद नंदन भी थे,नंद महाराज भी थे, यशोदा भी थी ,देवकी भी थी,कौशल्या भी थी। हरि हरि।। यह समाचार हर घर पहुंच गया कि निमाई का जन्म हुआ हैं। कुछ व्यक्तियों को तो यह समाचार अगले दिन नहीं बल्कि पहले ही पता चल गया था।जैसे अद्वैत आचार्य को, वैसे तो वह है ही अद्वैत। यानी दो नहीं हैं। वह स्वयं ही भगवान हैं। वे सदाशिव हैं।यह अचरज वाली बात नहीं हैं, कि उन्हें पहले ही पता था।जैसे ही जगन्नाथ मिश्र नंदन का जन्म हुआ वैसे ही शांतिपुर में उसी समय अद्वैत आचार्य को पता चल गया और उनके साथ में हरिदास ठाकुर भी थे। वे दोनों गंगा के तट पर तुरंत ही बड़े हर्ष उल्लास से नाचने और गाने लगे।
जय सचिनंदन।
जय सचिनंदन।
जय सचिनंदन, गोर हरि।।
आसपास के लोगों को तो पता नहीं था,कि हुआ क्या हैं।जब निमाई शचि माता के गर्भ में थे
śrī-rādhāyāḥ praṇaya-mahimā kīdṛśo vānayaivā-
svādyo yenādbhuta-madhurimā kīdṛśo vā madīyaḥ
saukhyaṁ cāsyā mad-anubhavataḥ kīdṛśaṁ veti lobhāt
tad-bhāvāḍhyaḥ samajani śacī-garbha-sindhau harīnduḥ
(चैतन्य चरिता मृत आदि लीला 1.6)
जब निमाई शचि माता के गर्भ में थे और जब अद्वैत आचार्य योगपीठ गए थे,अद्वैत आचार्य ने शचि माता को साष्टांग दंडवत प्रणाम किया।अद्वैत आचार्य का साष्टांग दंडवत प्रणाम केवल शचि माता के लिए ही नहीं था,बल्कि वह तो निमाई को भी नमस्कार कर रहे थे। जो शचि माता के गर्भ में उपस्थित थे।
वांछा कल्प तरु भयश्रच कृपा सिंधुभय एव च
पति तानां पावनेभयो वैश्य वैष्णवेभयो नमो
नमः
मैं भगवान के उन समस्त वैष्णव भक्तों को सादर नमस्कार करता हूं ,
जो सबकी इच्छा को पूर्ण करने में कल्पतरु के समान हैं,दया के सागर हैं, तथा पतित्तों का उद्धार करने वाले हैं।
तो अद्वैत आचार्य ने उसी वक्त जान लिया था और वह प्रसन्न थे। भगवान को बुलाने के लिए अद्वैत आचार्य ने ही प्रार्थना की थी कि प्रभु धर्म की हानि हो रही हैं।
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत |
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।।
(भगवद्गीता 4.7)
अब आपके प्राकट्य का समय आ चुका हैं, कृपया प्रकट होइए। इसीलिए अद्वैत आचार्य ने तो तुरंत ही पहचान लिया था कि भगवान प्रकट हुए हैं और प्रकट होकर कहां हैं? शचि माता के गर्भ में हैं। यही जानकर उन्होंने शचि माता को नमस्कार किया और शचि माता की परिक्रमा भी की।जैसे जब भगवान मंदिर में होते हैं तो हम भगवान की परिक्रमा करते हैं, तो इस समय पर शचि माता का देह ही मंदिर हैं। हरि हरि।। चैतन्य महाप्रभु पूर्णिमा की रात्रि को प्रकट हो चुके हैं। जगन्नाथ मिश्र उत्सव मना रहे हैं।उन्होंने हर जगह सभी को समाचार भेजा हैं और दूर-दूर से केवल लोग ही नहीं बल्कि देवता लोग भी आ रहे हैं। देवता तो प्राकट्य से पहले ही वहां पहुंच चुके थे। उनको पता था कि निमाई का जन्म हुआ हैं। कई सारी देवियां भी आ रही हैं।इंद्र पत्नी शचि भी आ गई हैं। इंद्र पत्नी का नाम भी शचि हैं।शांतिपुर से अद्वेत आचार्य की भार्या सीता ठकुरानी भी आ गई हैं और जगह-जगह से गोर भक्त आ रहे हैं। जैसे श्रीमद्भागवतम् में वर्णन आता है कि जब श्री कृष्ण का जन्म हुआ था तो किस प्रकार से ब्रजवासी दौड़कर नंद भवन में गोकुल की ओर जा रहे थे,इसी प्रकार से आज सब जगन्नाथ मिश्र के भवन में जा रहे हैं।नंद भवन गोकुल में हैं और जगन्नाथ मिश्र भवन मायापुर में हैं।जगन्नाथ मिश्र के भवन में आनंद हुआ हैं। जगह-जगह से लोग कई सारी भेंट लेकर आ रहे हैं। आते ही भक्त कीर्तन भी कर रहे हैं। मैं ऐसा सोच रहा था कि उस समय पर जगन्नाथ मिश्र के भवन में उत्सव कैसे मनाया गया होगा। बहुत कुछ किया गया होगा।अभी बालक निमाई शचि माता की गोद में ही थे, फिर उन्हें पालने में लेटाया गया होगा। यह सब अद्भुत बाते हैं।
जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्त्वतः ।
त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोऽर्जुन।।
(भगवद्गीता 4.9)
उनके जन्म और कर्म की लीलाएं सब दिव्य,अद्भुत और अचिंतय हैं। भगवान अब शिशु बने हैं।सारे संसार के जो निवास हैं जगन निवास, सारा जगत जिनमें निवास करता हैं, सारा ब्रह्मांड जिनमें हैं, वही भगवान आज शिशु बने हैं। जगन्नाथ मिश्र भवन में शचि माता की गोद में शिशु रूप में विराजित हैं। सभी उस बालक को आशीर्वाद दे रहे हैं। स्वागत भी कर रहे हैं। स्वागतम निमाई,सुस्वागतम निमाई। तुम्हारा स्वागत हैं निमाई।सब लोग अपने अपने ढंग से स्वागत कर रहे हैं और शुक्रिया अदा कर रहे हैं।आपके प्राक्टय के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। हम आपके आभारी हैं। सबसे ज्यादा तो अद्वैत आचार्य ने आभार प्रकट किया होगा। क्योंकि उनकी प्रार्थना को सुनकर ही भगवान प्रकट हुए हैं। सारे संसार ने ही उनका आभार प्रकट किया होगा। क्या आप भी आभार प्रकट करना चाहते हो? आप भी आभारी हो या नहीं? विदेशों में एक उत्सव होता है थैंक्सगिविंग सेरेमनी। लेकिन उनकी पद्धति अलग हैं, हमारी अलग। हरि हरि।।तो हमें भी भगवान का शुक्रिया अदा करना चाहिए। हमें भी उनका स्वागत करना चाहिए। कल्पना करो कि आप भी जगन्नाथ मिश्र के घर पहुंचे हैं, आपको भी बुलावा आया हैं। आज से 535 वर्ष पूर्व तो नहीं आया था। ना जाने उस समय हम कहां थे। मानव थे या दानव थे, ना जाने क्या थे। कौन थे। कहां थे। निश्चय ही हम और किसी भावना में होंगे। अपनी ही दुनिया में होंगे। हमने ध्यान ही नहीं दिया होगा कि भगवान प्रकट हुए हैं। किंतु आज तो हम उस उत्सव में भाग ले सकते हैं। भगवान की हर लीला नित्य लीला हैं, इसलिए जगन्नाथ मिश्र सचमुच आज उत्सव मना रहे हैं। पूर्णिमा के अगले दिन होने वाला यह उत्सव, जगन्नाथ मिश्र उत्सव यह एक नित्य उत्सव हैं। एक ही साथ चैतन्य महाप्रभु बालक भी हैं, निमाई भी हैं, सन्यास लेने के लिए प्रस्थान भी कर रहे हैं, वह खांटवा भी गए हैं, और सन्यास भी ले लिया हैं।यह सारी लीलाएं नित्य लीला हैं।
adyapiha sei lila kare gaura-raya,
kona kona bhagyavan dekhibare paya
(भक्ति विनोद ठाकुर नवदीप महातमय प्रमाण खंड)
हम उस समय तो भाग नहीं ले सके तो आज तो हम भाग लें ही सकते हैं।उत्सव मना ही सकते हैं और आज हम उत्सव मना भी रहे हैं।जब किसी जन्म उत्सव में हम जाते हैं तो कुछ उपहार लेकर जाते हैं और यह तो पहला ही जन्मदिन है निमाइ का। तो जो लोग वहां उत्सव में सम्मिलित होने के लिए आ रहे थे और जन्म दिवस मनाने के लिए आ रहे थे वह तो उपहार ला ही रहे थे किंतु निमाई भी बदले में उन्हे भेंट दे रहे थे।
dadāti pratigṛhṇāti
guhyam ākhyāti pṛcchati
bhuṅkte bhojayate caiva
ṣaḍ-vidhaṁ prīti-lakṣaṇam
आपस में लेनदेन चल रहा था। केवल लेना और लेना ही अच्छा नहीं हैं। केबल लेते जाओ और देने कि मत सोचो,यह अच्छा नहीं हैं। जैसे प्रभुपाद कहा करते थे कि जब भारतीय विदेश जाते हैं,तो कुछ लेने के लिए जाते हैं। जैसे अगर विद्यार्थी गए तो शिक्षा लेने के लिए जाते हैं,राजनीतिज्ञ ब्याज लेने के लिए जाते हैं। सब लोग केवल लेने के लिए ही जाते हैं। प्रभुपाद ने कहा कि मैं आपके देश में लेने के लिए नहीं बल्कि देने के लिए आया हूं।प्रभुपाद ऐसे पहले भारतीय हैं जो देने के लिए गए और क्या दिया उन्होंने? उन्होंने भारत की तरफ से भेंट दी। भारत की भेट। श्रील प्रभुपाद ने सारे संसार को भगवान दिए।
कृष्ण सॆ’ तॊमार, कृष्ण दितॆ पारो,
तॊमार शकति आछॆ
आमि तो’ कांगाल, ‘कृष्ण’ ‘कृष्ण’ बोलि,
धाइ तव पाछॆ पाछॆ
(भक्ति विनोद ठाकुर द्वारा रचित)
आपके पास कृष्ण है और उस कृष्ण को हमें दे सकते हैं।
ऐसे ही कुछ अमेरिकी कुछ पर्याय ढूंढ रहे थे या भगवान को खोज रहे थे या वे लोग शांति की तलाश में थे,तो जब वह प्रभुपाद से मिले तो वे मांग कर रहे थे। प्रभुपाद ने उनको कृष्ण दिए,भगवान का नाम दिया और भगवद्गीता यथारूप दी और साथ ही साथ अपनी संस्कृति दे दी, गौ सेवा दी, कृष्ण प्रसाद दिया।
पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति |
तदहं भक्त्युपहृतमश्नामि प्रयतात्मन:।।(भगवद्गीता 9.26)
हरि हरि।।
श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु सभी को भेट दे रहे हैं, कौन सी भेज दे रहे हैं? गोलोकैर प्रेम धन हरि नाम संकीर्तन।चैतन्य महाप्रभु गोलोक वृंदावन से आते आते जो वहां की सबसे कीमती वस्तु हैं गोलोक का प्रेम धन वो अपने साथ में लाए और उन्होंने वितरण शुरू कर दिया। भेट ले भी रहे थे और भेट दे भी रहे थे। आज जो आप इस समय उत्सव में सम्मिलित हो आप कृष्ण और राम नाम के हीरे मोती ले लो,यह मोती वितरित किए जा रहे हैं।लूट सको तो लूट लो। यही अवसर हैं, लूटो और बांट दो। इस प्रकार यह उत्सव संपन्न हुआ।
जगन्नाथ मिश्र महोत्सव की जय।
आप सब की उपस्थिति के लिए आभार।
हरे कृष्णा।।