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जप चर्चा,
पंढरपुर धाम से,
20 दिसंबर 2021
*ध्यानपूर्वक जप की महिमा एवम् भगवद्गीता अध्याय 4*
1020 स्थानों से आपका स्वागत हैं।
वैसे आपके मन में या घर में पधार के व्यक्तिगत रूप से मैं आपका स्वागत कर रहा था,आपको भगवान का दर्शन तो लेना हैं किंतु मैं भी दर्शन दे रहा था और साथ-साथ मैं औरों का दर्शन कर रहा था, आप जप करने वाले भक्तों का दर्शन कर रहा था और मेरे साथ और भी लोग आपका दर्शन कर रहे थे।मॉरीशस के भक्त और भी अन्य भक्त अन्य मंदिरों से आपका दर्शन कर रहे थे। कुछ भक्त तो सो भी रहे थे,लेकिन यह सीसीटीवी कैमरा हैं, आप सीसीटीवी कैमरा की निगरानी में बैठे हैं।कोई ना कोई आपको देख रहा हैं। मैं आपको देख सकता हूं। इस मशीन के माध्यम से हम आपको देख सकते हैं तो क्या भगवान भी हमें नहीं देख सकते?वह भी देख रहे हैं और देखते रहते हैं।भगवान की सदैव आप पर, मुझ पर, हम सब पर लगातार नजर रहती हैं। इसलिए कृष्णा ने कहा हैं भगवत गीता में मैं अनुमनता हूं,मैं साक्षी हूं,तो हम जो जो करते हैं, उन सब कार्यों के या कथनों के साक्षी भगवान रहते हैं।
उपद्रष्टाऽनुमन्ता च भर्ता भोक्ता महेश्वरः।
परमात्मेति चाप्युक्तो देहेऽस्मिन्पुरुषः परः।।13.23।
प्रति क्षण हर समय भगवान लिखते हैं और देखते हैं कि हमने क्या किया।आप प्रयास करें ताकि कृष्ण नोट ना करें कि आप सो रहे थे। पर अब नोट तो हो गया हैं,वह तो हर चीज देखते हैं और लिखते हैं
पर हमको टालना चाहिए।यह एक अपराध हैं।क्यों यह हुआ कि नहीं ध्यान पूर्वक जप ना करने का अपराध। आपके ध्यान में विघ्न हैं, बहुत बड़ा विघ्न हैं, यह ध्यान पूर्वक जप ना करना बल्कि यह तो जप करने में रोक देता हैं। आपने भगवान की उपस्थिति को अनदेखा कर दिया। तो यह भी एक विचार हैं, एक सोच हैं। तो ध्यान के साथ जप करें।सीधे बैठिए।ठीक से बैठो।श्रील प्रभुपाद कहां करते थे या एक बार कहे थे रिकॉर्डिंग में, जब हम ठीक से नहीं बैठते हैं तो फिर नींद आ जाती हैं या नींद की तैयारी हो जाती हैं। तो योगी की तरह हम जप योगी तो हैं ही, तो नियमों का पालन करना होगा।
पूर्ण तरीके से अष्टांग योगी, ध्यान योगी जैसे सतयुग में हुआ करते थे,वैसे तो हमको नहीं बनना हैं, लेकिन कुछ तो नियमों का पालन करना ही होगा।जैसे भगवद्गीता के छठे अध्याय में कृष्ण ने ध्यान योग की बात की हैं। ध्यान यानी मेडिटेशन।हमें वह भी पढ़ना चाहिए तो फिर ध्यान पूर्वक जप करने में और मदद होगी।भगवान ने टिप्स या नियम दिए हुए हैं,तो उनमें से कुछ नियमों का तो पालन करना ही पड़ता हैं। अगर हम सतयुग के ध्यान योगी नहीं हैं, तो भी और कुछ नियम हम पर भी लागू होते हैं।तो समय ही कृष्ण हैं और हमेशा आप समय के साथ रहिए।समय कृष्ण हैं और हमेशा समय के साथ रहो।मैं अपने आप को भी यही याद दिला रहा हूं, मैं अपने आपको भी स्मरण दिला रहा हूं, क्योंकि मैंने भी सोचा था कुछ कहने का परंतु अभी-अभी कही हुई बातें महत्वपूर्ण लगी, जो भी बातें अभी आपसे कहीं मैंने मेरे को नहीं लगता कि मैंने अपने समय को बर्बाद किया।
मतलब समय का दुरुपयोग नहीं करा। हम कृष्ण के साथ ही थे और वह बातें भी कृष्ण के संबंध में ही थी।ध्यान करने के संबंध में थी। तो हमने समय का सदुपयोग ही करा हैं। मैंने जो आपका समय लिया वह उपयोगी था।तो भगवत गीता कितनी पुरानी है क्या आप बता सकते हैं? कितने साल पुरानी हैं यह भगवत गीता, तो इसका जवाब बिना सोचे झट से या आंख बंद करके भी जवाब देते हैं, यह 5000 वर्ष पुरानी हैं, ऐसा कोई कहेगा तो हम कहेंगे यह झूठ हैं।यह सच नहीं हैं। यह गलत हैं, इसीलिए गलत हैं, क्योंकि गीता पढ़ी ही नहीं हैं। कभी गीता खरीदी ही नहीं हैं। कभी इस गीता को सुना ही नहीं हैं। तो चौथे अध्याय के प्रारंभ में श्री कृष्ण कह रहे हैं तो मैं इन्हीं कुछ बातों पर जोर डालना चाहता हूं, संसार में कितना अज्ञान हैं। लोग गीता को नहीं पढ़ते ,कृष्ण को नहीं सुनते और अपने मनोधर्म के अनुसार मनोधर्म की बातों के अनुसार चलते हैं।
मेरा विचार यह हैं,वह हैं। हमें कृष्ण को सुनना चाहिए तो अज्ञान के स्थान पर ज्ञान की स्थापना होगी। कृष्ण ने गीता के 14 वे अध्याय में कहा हैं
BG 4.1
“श्री भगवानुवाच
इमं विवस्वते योगं प्रोक्तवानहमव्ययम् |
विवस्वान्मनवे प्राह मनुरिक्ष्वाकवेऽब्रवीत् || १ ||”
अनुवाद
भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा – मैंने इस अमर योगविद्या का उपदेश सूर्यदेव विवस्वान् को दिया और विवस्वान् ने मनुष्यों के पिता मनु को उपदेश दिया और मनु ने इसका उपदेश इशवाकु को दिया
तो कृष्ण कहते हैं, कि मैं यह अभी अर्जुन को सुना रहा हूं। अभी-अभी यह संवाद शुरू हुआ हैं। चौथा अध्याय शुरू हुआ हैं। करीब 10-11 मिनट से कृष्ण अर्जुन के साथ बात कर रहे हैं और फिर उन्होंने यह बात कहना प्रारंभ किया।कृष्ण जब यह कह रहे थे तो ऐसा नहीं कि कृष्ण ने कहा कि अब मैं चौथा अध्याय सुना रहा हूं, तृतीय अध्याय संपूर्ण हुआ, यह तो रचना श्रील व्यास देव की हैं, और उन्होंने ही गीता का विभाजन 18 अध्याय में किया और कितने श्लोक किस अध्याय में होगें तय किया क्योंकि कृष्ण तो बोलते जा रहे थे, तो उन्होंने कहा कि मैं जो तुमको अभी बातें सुना रहा हूं, हे अर्जुन!इन बातों का ही नाम हैं, भगवद् गीता।तो यह भगवद्गीता मैंने विवस्वान को सुनाई थी।
इमं विवस्वते योगं प्रोक्तवानहमव्ययम् |
विवस्वान्मनवे प्राह मनुरिक्ष्वाकवेऽब्रवीत् || १ ||”
विवस्वान ने यह बातें मनु को कहीं और फिर मनु ने इस बात को इश्वाकु राजा को कहीं, तो रघुवंश की बात चल रही हैं।तो रघुवंशी इश्वाकु को मनु ने वही गीता वही वचन बताएं।इसीलिए अगले श्लोक में कृष्ण कहने वाले हैं
Bg 4.2
एवं परम्पराप्राप्तमिमं राजर्षयो विदुः । स कालेनेह महता योगो नष्टः परन्तप || २ ||
इस प्रकार यह परम विज्ञान गुरु - परम्परा द्वारा प्राप्त किया गया और राजर्षियों ने इसी विधि से इसे समझा किन्तु कालक्रम में यह परम्परा छिन्न हो गई , अत : यह विज्ञान यथारूप में लुप्त हो गया लगता है ।
यहां परंपरा का उल्लेख और स्थापना भी हो रही हैं,यहां विवस्वान ने मनु को और फिर मनु ने इश्वाकु और उसके बाद फिर सभी नाम गिनाए।
Bg 4.2
एवं परम्पराप्राप्तमिमं राजर्षयो विदुः । स कालेनेह महता योगो नष्टः परन्तप || २ ||
इस प्रकार यह परम विज्ञान गुरु - परम्परा द्वारा प्राप्त किया गया और राजर्षियों ने इसी विधि से इसे समझा किन्तु कालक्रम में यह परम्परा छिन्न हो गई ,अत : यह विज्ञान यथारूप में लुप्त हो गया लगता हैं।
आपको पता होना चाहिए की परंपरा कि बात कहां पर कही हुई हैं।यह समझने से अच्छा रहता हैं।आप प्रचार कर सकते हो,इस अध्याय में इस संदर्भ में कृष्ण ने यह बात कहीं हैं। जैसे यहां परंपरा की बात कर रहे हैं। फिर इसमें आगे यह भी कहा हैं
Bg 4.2
एवं परम्पराप्राप्तमिमं राजर्षयो विदुः । स कालेनेह महता योगो नष्टः परन्तप || २ ||
इस प्रकार यह परम विज्ञान गुरु - परम्परा द्वारा प्राप्त किया गया और राजर्षियों ने इसी विधि से इसे समझा किन्तु कालक्रम में यह परम्परा छिन्न हो गई , अत : यह विज्ञान यथारूप में लुप्त हो गया लगता है ।
काल बड़ा बलवान हैं। काल के प्रभाव से क्या होता हैं?मैंने जो बातें कही थी और फिर परंपरागत बातें कही जा रही थी,उनमे समय के साथ कुछ बिगाड़ आ जाता हैं और सत्य को फिर आच्छांदित किया जाता हैं।उसमें कुछ मिलावट आ ही जाती हैं। यह सब काल का प्रभाव हैं। समय का प्रभाव हैं। समय का ही नाम ले रहे हैं और भी कुछ कारण हो सकते हैं। लेकिन समय बड़ा बलवान हैं तो
Bg 4.2
एवं परम्पराप्राप्तमिमं राजर्षयो विदुः । स कालेनेह महता योगो नष्टः परन्तप || २ ||
इस प्रकार यह परम विज्ञान गुरु - परम्परा द्वारा प्राप्त किया गया और राजर्षियों ने इसी विधि से इसे समझा किन्तु कालक्रम में यह परम्परा छिन्न हो गई , अत : यह विज्ञान यथारूप में लुप्त हो गया लगता है ।
अर्जुन को परंतपा भी कह रहे हैं। ऐसे भगवान अर्जुन को कई अलग-अलग नामों से पुकारते हैं।उसकी भी एक लिस्ट भक्तों ने बनाई हैं और अर्जुन भी कृष्ण को कई सारे नामों से पुकारते हैं और कृष्ण ने अर्जुन को कई सारे नामों से पुकारा हैं। आप पता लगाइए। आपस में संशोधन कर सकते हैं।इसकी भी सूची बनाई गई हैं।आप इस सूची को प्राप्त कर सकते हो।यह भी एक पढ़ाई का विषय हो सकता हैं।कृष्ण के कौन-कौन से नाम अर्जुन ने कहे हैं और अब कृष्ण ने अर्जुन को उन नामों से संबोधित किया हैं। यह भी आपके लिए एक अलग विषय वस्तु की बात हो सकती हैं और इस प्रकार हम व्यस्त रह सकते हैं और गीता की अच्छे से और गहराई से पढ़ाई कर सकते हैं
हम भलीभांति समझ भी सकते हैं।तो इतना कहकर फिर कृष्ण आगे कहते हैं, चौथे अध्याय के तीसरे श्लोक में
BG 4.3
“स एवायं मया तेऽद्य योगः प्रोक्तः पुरातनः |
भक्तोऽसि मे सखा चेति रहस्यं ह्येतदुत्तमम् || ३ ||”
अनुवाद
आज मेरे द्वारा वही यह प्राचीन योग यानी परमेश्र्वर के साथ अपने सम्बन्ध का विज्ञान, तुमसे कहा जा रहा है, क्योंकि तुम मेरे भक्त तथा मित्र हो, अतः तुम इस विज्ञान के दिव्य रहस्य को समझ सकते हो |
क्या कहा श्री भगवान उवाच, कृष्ण ने क्या कहा? वही ज्ञान जो मैंने विवस्वान को सुनाया विवस्वान ने मनु को और मनु ने इशवाकु को और फिर परंपरा में यह ज्ञान का प्रचार हो रहा था,लेकिन काल के प्रभाव से इसमें बिगाड़ आया, तो इसीलिए अर्जुन अब इस समय इसी जगह पर तुमको मैं वही बात वही बचन सुनाऊंगा जो मैंने विवस्वान को सुनाया था।
BG 4.3
“स एवायं मया तेऽद्य योगः प्रोक्तः पुरातनः |
भक्तोऽसि मे सखा चेति रहस्यं ह्येतदुत्तमम् || ३ ||”
एव शब्द का उपयोग कर रहे हैं।वही शब्द वही वचन वही गीता में पुनः तुमको सुना रहा हूं।भगवत गीता यथारूप मूल रूप में जो मैंने सुनाई थी विवस्वान देवता को, वही गीता अब मैं तुम्हें सुना रहा हूं। तो अब भगवत गीता कितने साल पुरानी हो गई हैं?आप तो कह रहे थे 5000 वर्ष, नहीं। तो फिर तात्पर्य में यहां श्रील प्रभुपाद ने समझाया हैं कि कितने लाखो वर्ष पूर्व राम और
रामायण का काल आ गया।इशवाकु वंशज तो राम ही हैं,रघुवंशज राम ही हैं। भगवान ने इशवाकु को भगवद्गीता सुनाई। भगवान ने त्रेता युग में विवस्वान को भगवद्गीता सुनाई थी।विवस्वान ने मनु को सुनाई और मनु ने इशवाकु को, तो आप इसे जरूर पढिएगा।श्रील प्रभुपाद का तात्पर्य जरूर पढिएगा, चौथे अध्याय के पहले श्लोक मे ही भगवान बता रहे हैं कि हे अर्जुन, लाखों वर्ष पूर्व ही यह ज्ञान दिया गया था और वही ज्ञान मैं सुना रहा हूं। भगवान कह रहे हैं कि मैने यह गीता का ज्ञान विवस्वान को सुनाया था, वही ज्ञान अब मैं सुना रहा हूं।
भगवद्गीता 4.3
“स एवायं मया तेऽद्य योगः प्रोक्तः पुरातनः |
भक्तोऽसि मे सखा चेति रहस्यं ह्येतदुत्तमम् || ३ ||”
अनुवाद
आज मेरे द्वारा वही यह प्राचीन योग यानी परमेश्र्वर के साथ अपने सम्बन्ध का विज्ञान, तुमसे कहा जा रहा है, क्योंकि तुम मेरे भक्त तथा मित्र हो, अतः तुम इस विज्ञान के दिव्य रहस्य को समझ सकते हो |
योगः प्रोक्तः पुरातनः,पुरातनः शब्द भी महत्वपूर्ण हैं। यह भगवद्गीता कैसी हैं? पुरातन हैं, अति प्राचीन हैं। फिर आपके मन में यह बात बैठ जाएगी कि भगवत गीता कितनी पुरानी हैं? त्रेता युग में कही गई थी, नहीं कई लाखो वर्ष पुरानी हैं, कई हजारों वर्ष नहीं लाखो वर्ष पुरानी हैं। अगर ऐसा कहोगे तो लोग कहेंगे कि गीता का इतना महत्त्व में कह रहे हैं लाखों वर्ष पुराने हैं हजारों नहीं लाखों में या करोड़ों वर्ष पुरानी है लेकिन ऐसा कहना भी झूठ ही है यह सच नहीं है हरि हरि विवस्वान को तो सुनाई ही त्रेता युग में यानी लाखों साल पहले सुनाई तो क्या उसके पहले नहीं सुनाई थी क्या भगवान जब-जब प्रकट होते हैं
तो सही उत्तर क्या है भगवद्गीता कितनी पुरानी हैं? महाराज तो यहां कह रहे हैं कि लाखों वर्ष पुरानी भी नहीं हैं, तो कितने वर्ष पुरानी हैं? कितनी पुरानी हैं यह भगवद्गीता?एक उत्तर तो यह हो सकता हैं कि जितने पुराने कृष्ण हैं उतनी पुरानी ही भगवद्गीता हैं, या जितनी पुरानी आत्मा हैं, इतनी पुरानी यह भगवत गीता हैं, जितना पुराना भगवान का धाम हैं,उतनी ही पुरानी भगवद्गीता हैं। भक्ति योग भी इतना पुराना हैं। कब से भक्ति योग हो रहा हैं? जबसे कृष्ण हैं, तभी यह भगवद्गीता पर भी प्रवचन हो रहे हैं,कृष्ण ने तो गीता के द्वितीय अध्याय में ही कहा हैं कि ऐसा कोई समय नहीं था जब तुम नहीं थे, मैं नहीं था,या यह सब राजा नहीं थे। यह अब भी हैं और रहेंगे। हम अब भी हैं और रहेंगे। कृष्ण शाश्वत हैं। वैसे ही भगवद्गीता भी जो कृष्ण का ज्ञान देती हैं, वह शाश्वत हैं। जब कोई वस्तु बनती हैं, जैसे कि यह माउस तो इस माउस के संबंध का ज्ञान कितना पुराना हैं? जब से यह माउस बना हैं, जब से यह अस्तित्व में आया हैं। जैसे कि काला हैं, यह इसे यह कहा जाता हैं, आदि आदि। तो जब से यह माउस हैं, तब से इस के संबंध का ज्ञान हैं। कृष्ण ने कहा भी हैं कि
भगवद्गीता 15.15
“सर्वस्य चाहं ह्रदि सन्निविष्टो
मत्तः स्मृतिर्ज्ञानमपोहनं च |
वेदैश्र्च सर्वैरहमेव वेद्यो
वेदान्तकृद्वेदविदेव चाहम् || १५ ||”
अनुवाद
मैं प्रत्येक जीव के हृदय में आसीन हूँ और मुझ से ही स्मृति, ज्ञान तथा विस्मृति होती है | मैं ही वेदों के द्वारा जानने योग्य हूँ | निस्सन्देह मैं वेदान्त का संकलनकर्ता तथा समस्त वेदों का जानने वाला हूँ |
मुझे जानने के लिए वेद हैं या पुराण हैं या उपनिषद हैं। यह गीता तो वेद ही हैं, क्योंकि वेद का एक विभाग उपनिषद होता हैं और इस गीता को भी गीतोपनिषद कहा हैं।
सर्वोपनिषदो गावो दोग्धा गोपालनन्दनः ।
पार्थो वत्सः सुधिभोक्ता दुग्धं गीतामृतं महत् ।।
“यह गीतोपनीषद, भगवद्गीता, जो समस्त उपनिषदों का सार है, गाय के तुल्य है और ग्वालबाल के रूप में विख्यात भगवान् कृष्ण इस गाय को दुह रहे है । अर्जुन बछड़े के समान है, और सारे विद्वान् तथा शुद्ध भक्त भगवद्गीताके अमृतमय दूध का पान करने वाले हैं ।” (गीता महात्म्य ६)
ऐसा गीता महात्म्य में कहां हैं। यह गीता उपनिषद रूपी गाय हैं और इसका दोहन कृष्ण कर रहे हैं।खैर इसको गीताोपनिषद कहा हैं, उपनिषद हो गए वेद। उपनिषद मतलब वेद। भगवान कह रहे हैं कि वेदों की रचना मैंने की हैं और भगवद्गीता उसी के अंतर्गत हैं और किस लिए वेद हैं? मुझे जानने के लिए वेद हैं। तो कृष्ण जब से हैं तब से उनके संबंध का यह ज्ञान हैं। यहां तो गीता की बात चल रही हैं, फिर भागवतम् भी हैं, पुरान भी हैं। यही कहना है कि गीता शाश्वत हैं। ऐसा समय नहीं था, जब गीता नहीं थी या गीता का उपदेश नहीं था। यह था यह है और यह रहेगा।
इस प्रकार हमें जो हमारे संकीर्ण विचार हैं, जो हम पर कई प्रकार की संसार की विचारधारा को आच्छादिंत करती रहती हैं और हम मुंडी हिलाते रहते हैं। इसी को ब्रेनवाशिंग कहते हैं। संसार का पूरी तरह से ब्रेनवाश हो रखा हैं।जगत के लोगों का तो ब्रेनवाश हुआ ही हुआ हैं और हम उनके साथ रह के उनके जैसे बन गये हैं और वह हैं कैसे? श्रील प्रभुपाद कहते हैं कि वह डॉक्टर फ्रॉग की तरह हैं या जिसको कूप मंडूक दृष्टि भी कहते हैं। कूप मतलब कुआ और मंडूक मतलब मेंढक। कुएं में रहने वाला मेंढक। हम कुएं में बंद मेंढक बने हैं।उसकी विजिट के लिए एक दूसरा मेंढक आ गया,उससे मिलने। कहां से? पेसिफिक द्वीप से। वह कुएं में रहने वाला मेंढक पूछता हैं कि कहां से आए हो? तो वह कहता हैं कि महासागर से,तो वह कहता हैं, अच्छा महासागर कितना बड़ा हैं? बहुत बड़ा हैं। तो मेरे कुएं ऐसे दुगना हैं क्या?नहीं नहीं इससे बहुत बड़ा हैं।4 गुना? नहीं नहीं इससे बहुत बड़ा। तो क्या 10 गुना? नहीं नहीं इससे भी बहुत बड़ा। तो कूप मंडूक के सोचकर भी परे हैं। वह तो विचार भी नहीं कर सकता कि महासागर कितना विशाल होता हैं,वह गहरा हैं, उसमें गांभीर्य हैं, या जो भी हैं यह कूप मंडूक अपने हिसाब से कैलकुलेशन करता हैं और सोचता हैं कि ऐसा होगा या वैसा होगा तो हमको यह कूप मंडूक वृत्ति को छोड़ना है।अंततः कूप मंडूक तो इतना बड़ा हैं जो तिगुना हैं,चोगुना हैं,दस गुणा हैं,बस अपने पेट को फुला रहा था
इस प्रयास में उसका पेट फट गया, जैसे गुब्बारा फट जाता हैं। तो यह जो गीता का ज्ञान हैं इसको यथारूप स्वीकार करना चाहिए, बिना किसी चुनौती के और बिना किसी अपने विचारों को मिलाये कि मेरा विचार ऐसा हैं, वैसा हैं। मैं कूप मंडूक,मेरा विचार यह हैं। तुम मेरे तुम्हारे विचारों को अपने घर में रखो या कहीं उसको फेंक दो और भगवान के विचारों को स्वीकार करो और भगवान के विचारों के अनुरूप बनो। इसी को ही कहते हैं, उच्च विचार।उच्च विचार क्या हैं? भगवान का विचार उच्च विचार हैं और भगवान का विचार क्या हैं?
भगवद्गीता भगवान का विचार हैं। तो उसको स्वीकार करना उच्च विचार हैं। कृष्ण के विचार को यथारूप स्वीकार करो।श्रील प्रभुपाद ने इसलिए इस गीता को यथारूप नाम दिया हैं। और तात्पर्य भी बहुत महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि हमारी जो कई सारी भ्रांतियां हैं उसका नाश कृष्ण के वचन कर देते हैं या भगवद्गीता उसका नाश कर देती हैं और यह तात्पर्य भी क्योंकि प्रभुपाद इन को और अधिक समझाते हैं। प्रभुपाद परंपरा के आचार्य के भाष्य के आधार पर और उन टिकाओ की मदद से समझाते हैं, इसलिए इस पर विचार करो और ऐसे उच्च विचार कि भगवत गीता का प्रचार प्रसार होना चाहिए, जिससे कि सारा संसार ही उच्च विचार वाला बनेगा। अभी सभी की विचारधारा नीच हैं। नीच कहीं का। सारा संसार ही नीच हैं।
उसको उच्च बनाना हैं। उच्च विचार। नीच विचार नहीं होने चाहिए।जिसे हम कहते हैं कि सोचो मत बस कर दो। डोंट थिंक जस्ट डू इट। आजकल यह चलता हैं। सोचना ही नहीं हैं। पहले करो।इस सोच को ठुकराना हैं और इसके स्थान पर भगवान की सोच जो हैं, या भगवान का जो विचार हैं, उसको अपनाना हैं। भगवान का दिया हुआ जो ज्ञान हैं, जिसको प्रभुपाद ने आगे समझाया हैं, हमको उस विचारधारा के बनना हैं। वो कृष्ण के विचार हैं। उसी को कृष्ण भावना भावित होना कहते हैं। ठीक हैं, तो इसी के साथ यही संदेश हैं कि अधिक से अधिक भगवद्गीता का वितरण करो। स्वयं ज्ञानवान बनो और अपने आसपास की दुनिया के लोगों को भी ज्ञानवान बनाओ।ज्ञानदानेन वर्धते। ज्ञान का दान करने से हमारा भी ज्ञान बढ़ता हैं। विद्यादानेन वर्धते। विद्या देने से और प्रचार करने से हमारी भी विद्या बढ़ती हैं। क्या आप नहीं चाहते कि आप अधिक ज्ञानवान हो या आपके ज्ञान का विज्ञान बने?आपको साक्षात्कार हो उस ज्ञान का। सेवा करो। इस महीने ग्रंथों का वितरण ही श्रीला प्रभुपाद की सेवा हैं। प्रभुपाद की यथारूप भगवद्गीता का वितरण यह सेवा हैं और सेवा करोगे तो मेवा मिलेगा।ठीक हैं। मैंने कुछ अधिक ही समय ले लिया। अब मैं यहीं रुकूंगा। हरे कृष्णा।