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*जप चर्चा* *08 सितंबर 2021* *वृंदावन धाम से* हरे कृष्ण आज 824 स्थानों से भक्त जप में सम्मिलित हैं जय राधे ! जय वृंदावन धाम की जय ! और वैसे कहना चाहिए गिरिराज धरण की जय ! क्योंकि राधा की कृपा हो गई या फिर गिरिराज की कृपा हो ही गई और हम गिरिराज को पहुंच गए। हमने ऐसी परिक्रमा की जैसे पहले कभी नहीं की थी। क्या व्यशिष्ठ रहा ? अपने वाहन में बैठकर गोवर्धन की परिक्रमा पहली बार की। ई-रिक्शा अब वृंदावन में और गोवर्धन में पहुंची है तो हरि हरि ! पहले सोचा था कि कुछ ही स्थानों का दर्शन करेंगे हमने शुरुआत मानसी गंगा से की। मानसी गंगा की जय हरि हरि ! भगवान के मन से गंगा प्रकट हुई, मानसी गंगा कहलाई। हम वहां गए हरि हरि और मानसी गंगा के तट पर ही हरिदेव है। ब्रज के जो अलग-अलग देव् हैं, बलदेव, केशव देव, गोविंद देव, फिर हरिदेव, कुछ विशेष देव प्रसिद्ध हैं जैसा कि हम पहले भी बता चुके हैं। उनका दर्शन करने गए हरि हरि ! उस विग्रह को जब दूर से देखा तब हम दौड़ने लगे, दौड़ते हुए विग्रह की ओर गए वहां का दर्शन मंडप बड़ा विशाल है। प्रवेश करते ही हरिदेव वहां कुछ दूरी पर दिखे और इसीलिए भी दौड़े क्योंकि चैतन्य महाप्रभु का स्मरण हुआ क्योंकि विग्रह दर्शन के लिए, हरिदेव के दर्शन के लिए, वे दौड़े थे। तो फिर हम भी दौड़े क्योंकि चैतन्य महाप्रभु दौड़े थे। हरि हरि ! एनीवे चैतन्य महाप्रभु की उत्कंठा है किन्तु हमारी उत्कंठा तो, इतना नहीं हो सकती है। कुछ ऐसा साधक, या हम भी चैतन्य महाप्रभु के चरणों का कुछ अनुसरण करने का प्रयास कर रहे थे। जैसे श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने हरिदेव का दर्शन किया, श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने गोवर्धन की परिक्रमा की, उस प्रकार हम भी कर रहे थे हरि हरि ! फिर वहां से सोचा कि चलो गोविंद कुंड तक जाते हैं। गोविंद कुंड की जय ! जहां गिरिराज , गिरधारी का अभिषेक इंद्र ने किया। हरि हरि ! उस अभिषेक का जल एकत्रित हुआ। सुरभि गाय का दोहन हुआ, सुरभि गाय वही लेकर आए थे। सुरभि गाय का दूध और अपने ऐरावत द्वारा काफी सारा जल ( स्वर्ग में जो गंगा बहती है ) स्वर्ग से इंद्र लाये थे। उस जल और दूध से अभिषेक हुआ और फिर उससे कुंड बन गया जोकि गोविंद कुंड कहलाता है। कृष्ण को गोविंद, गोविंदा, नाम देने वाले इंद्र ही थे। इंद्र के गर्व को जब भगवान ने नष्ट किया या दमन किया या यह सब हरि हरि ! एक तो है गिरधर गोपाल और एक है गिरिराज, गिरिराज को धारण करने वाले भगवान हैं गिरधारी। यह दो हैं एक गिरिराज हैं और एक गिरिधारी है इसको भी याद रखिएगा। इतने विचार या यादें आ रही थी जब हम लोग परिक्रमा कर रहे थे या अलग-अलग स्थानों पर परिक्रमा मार्ग पर जा रहे थे। क्योंकि इस परिक्रमा मार्ग पर, कई बार 50 से अधिक बार, गिनती बहुत समय पहले छोड़ दी, कितनी कितनी बार परिक्रमा की, ब्रज मंडल परिक्रमा की, कितनी बार गोवर्धन परिक्रमा कर चुके हैं। उस समय भी हमने परिक्रमा की और कुछ और समय भी हमने परिक्रमा की। हर समय कुछ श्रवण और कीर्तन हम किया करते थे और फिर हमने ब्रजमंडल दर्शन ग्रंथ भी लिखा है उसमें भी गोवर्धन परिक्रमा का सारा वर्णन है। यह सारी बातें जो पहले की परिक्रमा में कहीं और सुनी हुई बातें याद आ रही थी या भागवत में हमने पढ़ा या श्रील प्रभुपाद की कृष्ण लीला पुरुषोत्तम, श्रीकृष्ण, कब से पढ़ रहे हैं। हमारे होली डेज, हमारे ब्रह्मचारी डेज तब कितना सारा श्रवण कीर्तन पहले का हुआ है। अभी स्मरण हो रहा था, जिसका संकीर्तन हमने किया था। श्रीप्रह्लाद उवाच *श्रवणं कीर्तनं विष्णोः स्मरणं पादसेवनम् । अर्चनं वन्दनं दास्यं सख्यमात्मनिवेदनम् ॥* *इति पुंसार्पिता विष्णौ भक्तिश्चेन्नवलक्षणा । क्रियेत भगवत्यद्धा तन्मन्येऽधीतमुत्तमम् ॥* (श्रीमदभागवतम ७. ५. २४) अनुवाद- प्रह्लाद महाराज ने कहा : भगवान् विष्णु के दिव्य पवित्र नाम , रूप , साज - सामान तथा लीलाओं के विषय में सुनना तथा कीर्तन करना, उनका स्मरण करना , भगवान् के चरणकमलों की सेवा करना , षोडशोपचार विधि द्वारा भगवान् की सादर पूजा करना, भगवान् से प्रार्थना करना , उनका दास बनना, भगवान् को सर्वश्रेष्ठ मित्र के रूप में मानना तथा उन्हें अपना सर्वस्व न्योछावर करना ( अर्थात् मनसा , वाचा, कर्मणा उनकी सेवा करना ) - शुद्ध भक्ति की ये नौ विधियाँ स्वीकार की गई हैं । जिस किसी ने इन नौ विधियों द्वारा कृष्ण की सेवा में अपना जीवन अर्पित कर दिया है उसे ही सर्वाधिक विद्वान व्यक्ति मानना चाहिए , क्योंकि उसने पूर्ण ज्ञान प्राप्त कर लिया है । आप की लीलाओं का स्मरण खूब हो रहा था उसको मन में समाए रखना उसको धारण करना, कुछ कठिन भी हो रहा था। इतनी सारी यादें और स्मरण और कहां रखें हमारे हृदय भी कुछ छोटे ही हैं। अतः जी भर के याद कर रहे थे हरि हरि ! वहां से आगे बढ़े, हर स्थान पर कौन कौन से विचार आए, इतना सारा मैं कह भी नहीं सकता। उसके लिए *तुण्डे ताण्डविनी रतिं वितनुते तुण्डावली - लब्धये कर्ण - क्रोड़ - कडुम्बिनी घटयते कर्णार्बुदेभ्यः स्पृहाम् । चेतः - प्राङ्गण - सङ्गिनी विजयते सर्वेन्द्रियाणां नो जाने जनिता कियद्धिरमृतैः कृष्णेति वर्ण - द्वयी ॥* (चैतन्य चरितामृत अंत्य 1 . 99) अनुवाद " मैं नहीं जानता हूँ कि ' कृष् - ण के दो अक्षरों ने कितना अमृत उत्पन्न किया है । जब कृष्ण के पवित्र नाम का उच्चारण किया जाता है , तो यह मुख के भीतर नृत्य करता प्रतीत होता है । तब हमें अनेकानेक मुखों की इच्छा होने लगती है । जब वही नाम कानों के छिद्रों में प्रविष्ट होता है , तो हमारी इच्छा करोड़ों कानों के लिए होने लगती है । और जब यह नाम हृदय के आँगन में नृत्य करता है , तब यह मन की गतिविधियों को जीत लेता है , जिससे सारी इन्द्रियाँ जड़ हो जाती हैं । " एक मुख् से कितना कह सकते हैं। इसीलिए श्रील रूप गोस्वामी ने जो भाव व्यक्त किया है "तुण्डावली - लब्धये" अगर मेरे कई सारे मुख्य होते, अर्थात एक मुख से कितना कहा जा सकता है हरि हरि ! फिर वहां से आगे बढ़े पूँछड़ी का लौटा बाबा का दर्शन किया। यह सब कह कर हम आपको स्मरण दिला रहे हैं। आपने कभी परिक्रमा की कि नहीं ? किसने किसने परिक्रमा की ? चैतन्य ने किया। भक्तिन ी थिंक फ्रॉम रूस , माताजी ने भी परिक्रमा की। मेरे विचार से कई सारे लोगों ने परिक्रमा की है और कईयों ने परिक्रमा नहीं भी की है। जिन्होंने नहीं की है, क्या देरी है ? क्यों प्रतीक्षा कर रहे हो ? तुरंत वृंदावन की ओर बढो, आ जाओ, वृंदावन की परिक्रमा करो। बृज वास करो और वृंदावन का वास करो, देखो कार्तिक मास आ रहा है। वृंदावन सदैव स्वागत करता है कृष्ण ही स्वागत करते हैं। कृष्ण प्रतीक्षा में हैं और अभी तक आपका अप एंड डाउन, राउंड एंड राउंड, चल रहा है। अप एंड डाउन इसी ब्रह्मांड में ,नरक से लेकर स्वर्ग तक और स्वर्ग से लेकर नर्क तक यह अप एंड डाउन, जाएं तो जाएं कहां, संसार के लोग कहां तक जा सकते हैं। बस स्वर्ग तक जा सकते हैं। दे कांट गो बियोंड, नीचे जाएंगे तो नर्क है और ऊपर जाएंगे तो स्वर्ग है। यह दोनों का द्वंद है। स्वर्ग और नरक का द्वंद है और दोनों द्वंदों में हम पिसे जा रहे हैं। अब निकल पड़ो, वहां से बाहर निकल आओ, गेट आउट फ्रॉम देयर और नाम से धाम तक भी है। *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे* भगवान का नाम लो, भगवान का नाम लेते लेते, जैसे-जैसे हम भगवान का नाम लेंगे, हमको हरिनाम, धाम पहुंचा देगा। नाम तो आपको प्राप्त हुआ है , अब धाम प्राप्ति हो जाए या कम से कम दर्शन के लिए तो आइए। यहाँ रहिये, परिक्रमा कीजिए, धाम वास भी 5 अंगों में से एक साधन है। अब हम लौटा बाबा भी गए और फिर आगे बढ़े, फिर यतिपुरा गए। हम बात कर ही रहे थे जो मेरे साथ भक्त थे। यतिपुर, यति मतलब, वैराग्य या सन्यासी कहते हैं। यतिपुर यह माधवेंद्र पुरी के नाम से, बना हुआ है और गोविंद कुंड के तट पर भी माधवेंद्र पुरी की कुछ लीलाएं हुई , कृष्ण ने दर्शन दिया, कृष्ण ने माधवेंद्र पुरी को दूध पिलाया इत्यादि, फिर हम लोग "पूंछडी का लौठा बाबा" का दर्शन करते हुए, राउंड लेते हैं यूटर्न होता है पूंछडी मतलब गोवर्धन मयूर के आकार का है उसकी पूंछ है, पूंछनि का लौठा, पूछ उधर है और मुख है जिधर राधा कुंड श्याम कुंड है। उस मयूर का मुख् है या फिर मयूर की आंखें हैं श्याम कुंड राधा कुंड, यतिपुर की जय ! यहाँ श्याम कुंड के तट पर माधवेन्द्र पुरी की बैठक भी है। वहां से हम आगे बढ़े और उद्धव कुंड की ओर और वहीं पर हमने संध्या को गायत्री की, गोविंद उद्धव तट पर आगे बढ़े तो जय राधे, राधा कुंड श्याम कुंड की जय ! अब क्या कहूं ? कहूंगा ही नहीं , नहीं तो कहता ही जाऊंगा, रुकूंगा ही नहीं। हमारे और भी स्पीकर पार्थ सारथी और कौन-कौन आप में से भी बोलने वाले हो, प्रभुपाद की यादें या स्मरण, प्रभुपाद लीलामृत, आपको समय देना है। मैंने वादा किया है। राधा कुंड श्याम कुंड का दर्शन कीजिए, प्रणाम कीजिए। हमने भी किया था या फिर यह भी कह सकते हैं कि आप सभी की ओर से हमने भी प्रणाम किया, राधा कुंड श्याम कुंड जिसमें संगम कहते हैं राधा कुंड और श्याम कुंड का संगम है मिलन है हम वहां पर भी पहुंचे हरि हरि ! निताई गौर प्रेमानंदे ! हरि हरि बोल ! गिरिराज महाराज की जय ! ऐसा भी कहते हैं गिरिराज महाराज, बृजवासी, राधा कुंड श्याम कुंड की जय ! गौर प्रेमानंदे !

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