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जप चर्चा वृंदावन धाम 9 सितंबर 2021 812 स्थानों से भक्त जप कर रहे हैं । निताई गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल ! तो ठीक है तैयार हो जाइए । पद रेणू तुम तैयार हो ? और एकनाथ गौर ? और सभी लोग ! जगन्नाथ स्वामी ! आप जहां भी हो तैयार हो जाइए । एक तो आज जपा टॉक 7:15 बजे तक यह चलेगा । आज यहां कृष्ण बलराम हॉल में हिंदी कक्षा होगी । हिंदी भागवतम् क्लास होगा तो मैं क्लास दे रहा हूं । आपका स्वागत है तो इसीलिए यह जो यह जो क्लास है इसको थोड़ा छोटा करेंगे ताकि 8:00 बजे के भागवत कक्षा की तैयारी कर सकते हैं । ठीक है तो आज की मंगल आरती की गायन की सेवा कृष्ण बलराम की कृपा से और श्रील प्रभुपाद की कृपा से मुझे प्राप्त हुई थी और शायद जानते होंगे नहीं जानते होगे यहां कृष्ण बलराम के मंगल आरती में वैसे श्रील प्रभुपाद के समाधि मंदिर में गुर्वष्टक गाया जाता है । "संसार-दावानल-लीढ-लोक" उस अष्टक का गुर्वष्टक का गान तो श्री प्रभुपाद के समाधि मंदिर में होता है 4:10 पर शुरुआत होती है और फिर 4:30 बजे कृष्ण बलराम मंदिर में जब मंगल आरती होती है तो उस मंगल आरती में जो गीत गाया जाता है विभावरी - शेष , आलोक - प्रवेश , निद्रा छाडि ' उठ जीव । बोलो हरि हरि , मुकुन्द मुरारि , राम - कृष्ण हयग्रीव ॥ 1 ॥ अनुवाद:- 1. अरे जीव ! रात्रि समाप्त हो गई है और उजाला हो गया है अतः निद्रा त्यागकर उठो तथा श्रीहरि , मुकुन्द , कृष्ण तथा हयग्रीव नामों का कीर्तन करो । तो सोचा कि जिसको मैंने गाया जिस मंगल आरती के गीत को तो उसी को सुनाते हैं या उसी के साथ मेरा भी कुछ चिंतन होगा या मनन होगा । गा तो लिया है लेकिन कभी-कभी गाते समय गाते तो हैं लेकिन सुनते नहीं या ध्यान नहीं देते । देना तो चाहिए ध्यान पूर्वक गायन करना चाहिए या क्या गा रहे हैं जिसको समझना चाहिए । समझ के साथ गाने से या ध्यान पूर्वक गायन करने से फिर उस गायन का पूरा लाभ भी होगा और वह लाभ क्या है ? स्मरण है । कृष्ण का स्मरण होगा । जब गायन होता है गायन हुआ कीर्तन और फिर श्रवण । एक व्यक्ति गाते हैं और मैं गा रहा था पीछे से भक्त गा रहे थे या मैं जब गा रहा था तो वे सुन रहे थे । वे गा रहे थे तो मैं सुन रहा था तो यह श्रवण कीर्तन होता ही है । श्रीप्रह्राद उवाच श्रवणं कीर्तनं विष्णो: स्मरणं पादसेवनम् । अर्चनं वन्दनं दास्यं सख्यमात्मनिवेदनम् ॥ ( श्रीमद् भागवतम् 7.5.23 ) अनुवाद:- प्रह्लाद महाराज ने कहा : भगवान् विष्णु के दिव्य पवित्र नाम , रूप , साज - सामान तथा लीलाओं के विषय में सुनना तथा कीर्तन करना , उनका स्मरण करना , भगवान् के चरणकमलों की सेवा करना , षोडशोपचार विधि द्वारा भगवान् की सादर पूजा करना , भगवान् से प्रार्थना करना , उनका दास बनना , भगवान् को सर्वश्रेष्ठ मित्र के रूप में मानना तथा उन्हें अपना सर्वस्व न्योछावर करना ( अर्थात् मनसा , वाचा , कर्मणा उनकी सेवा करना ) -शुद्ध भक्ति की ये नौ विधियाँ स्वीकार की गई हैं । उसी से विष्णु का स्मरण या कृष्ण का स्मरण या जो भी गायन का या श्रवण कीर्तन का जो विषय है तो उसी का स्मरण भी होना चाहिए । ठीक है तो वैसे एक दिन आपको सुन आए थे वह भी श्रील भक्ति विनोद ठाकुर की रचना है । "यशोमती नंदन व्रजबर नागर" तो उस गीत में भी या कृष्ण का जो संबंध है भक्तों के साथ फिर यशोदा के साथ है या ग्वाल वालों के साथ या गोपियों के साथ है या अन्य विशेष विशेष भक्तों के साथ है उसका भी स्मरण दिलाते हैं यह कृष्ण का नाम । हरि हरि !! और फिर जब उस नाम में सारे नामों का समावेश होता ही है । जप करते समय हरे कृष्ण महामंत्र का जप करते समय भी अगर यह गीत याद आ जाए या वैसे कोई भी गीत वैष्णव गीत लेकिन यहां एन नाम वाली गीत का हम उल्लेख कर रहे हैं तो इसका भी स्मरण करते हैं जप करते समय वह तो उचित है । हमारे स्मरण को बढ़ाने वाला या बढ़ाने में मदद करने वाला यह गीत है तो आइए थोड़ा, समय तो बीत रहा है उसका थोड़ा सुन लेते हैं समझ लेते हैं । "विभावरी - शेष , आलोक - प्रवेश" रात्रि बीत चुकी है अब भोर का समय हुआ है प्रातःकाल या ब्रह्म मुहूर्त "आलोक - प्रवेश" आलोक मतलब प्रकाश और कुछ या आभास हो रहा है कुछ आभास कुछ प्रकाश या सूर्य उदय हुआ तो नहीं किंतु आभास हो रहा है । इसी को भोर कहते हैं या वर्न कहते हैं तो आलोक प्रवेश तो सूर्य किर्ने तो नहीं दिख रही हे, यह सब आप कल्पना कर सकते हो तो फिर क्या करने का समय है रात बीत चुकी है या बीती है लगभग और आलोक प्रवेश तो क्या करो ? "निद्रा छाडि ' उठ जीव" हे जीव निद्रा को त्यागो और उठो । उठकर क्या करना है ? बोलो, मुंह खोलो और बोलो क्या बोलना है ? हरि हरि, बोलो हरी हरी । बोलो हरी हरी । मुकुंद मुरारी तो हरी हरी जानते हो वैसे एक-एक शब्दों की खूब व्याख्या हो सकती है । एक-एक शब्द कहो एक एक नाम कहो फिर एक-एक नाम तो कृष्ण ही है । एक एक नाम कृष्ण है तो कितनी सारी व्याख्या संभव है । मुकुंद मुरारी तो कृष्ण को मुकुंद क्यों कहते हैं ? मुक्तिदाता इसलिए मुकुंद कहते हैं । उनका एक नाम मुरारी है । मुर राक्षस के वे आरि या शत्रु रहे । इसलिए मुर-अरी । "राम - कृष्ण हयग्रीव" तो हरी हरी बोलो या रामकृष्ण बोलो, हयग्रीव बोलो । हय मतलब घोड़ा और ग्री मतलब गर्दन तो एक भगवान का अवतार या रूप है घोड़े का गर्दन या मुख है उस रूप को हयग्रीव कहते हैं । नृसिंह वामन , श्रीमधुसूदन , व्रजेन्द्रनन्दन श्याम । पूतना - घातन , कैटभ - शातन , जय दाशरथि - राम ॥ 2 ॥ अनुवाद:- 2. नृसिंह , वामन , मधुसूदन , ( पूतना का वध करने वाले ) तथा कैटभशातन ( कैटम नामक असुर का नाश करने वाले ) व्रजेन्द्रनन्दन श्यामसुन्दर का नाम लो । वे रावण का वध करने के लिए दशरथनन्दन श्रीराम के रूप में अवतरित हुए थे । "नृसिंह वामन" आगे का नाम है नरसिंह और वामन भी तो यह भी कृष्ण ही है । कृष्ण बन जाते हैं "केशव धृतनरहरी रूप" केशव धारण करते हैं नरहरि रूप । "केशव धृत वामन रूप" तो "नृसिंह, वामन, श्रीमधुसूदन" सुदन मतलब शत्रु तो यह मधु कैटभ भारे आगे आने वाला है तो मधु दैत्य का वध करने वाले हे श्री मधुसूदन फिर कई भाव आता है कि मुझ में भी ऐसा ही कोई असुर छुपा हुआ है । मुझ में भी कुछ आसुरी प्रवृत्ति है तो है प्रभु उस आसुरी प्रवृत्ति का मुझ में छुपे हुए उस असुर का वध करो । जैसे और और असुरों का आप वध किए तो इस असुर को क्यों छोड़ रहे हो । इसका भी ऐसी प्रार्थना भक्त करते हैं या अर्जुन भी कर रहे थे भगवद् गीता । "व्रजेन्द्रनन्दन श्याम" और आप व्रजेंद्र, व्रज-इंद्र । वृंदावन के इंद्र हो आप व्रजेंद्र नंदन । नहीं नहीं । व्रजेंद्र तो नंद महाराज है । वैश्य समाज के मुखिया है प्रधान है इंद्र है । इंद्र मतलब मुखिया तो उनके नंदन आप हो । व्रजेंद्र के नंदन हो । श्याम हो आप, घनश्याम हो तो भगवान के अंग के रंग का उल्लेख श्याम कहने से फिर शाम कहते हैं श्याम मतलब काला साबला लेकिन ऐसा अर्थ है । श्याम कहते हैं हमको कौन याद आते हैं ? कृष्ण याद आते हैं । श्याम का तो कई सारे अर्थ हो सकते हैं । श्याम मतलब श्याम वर्ण का लेकिन श्याम कहते ही हम और कोई विचार करते ही नहीं । पहले कौन याद आते हैं ? घनश्याम ही याद आते हैं । "पूतना - घातन" तो पूतना का वध करने वाले हैं कन्हैया बालकृष्ण ने, कृष्ण जब छट्टी का दिन था 6 दिन के थे श्री कृष्ण और उन्होंने 6 दिन के बालक ने उस विशालकाय वध किया । "कैटभ - शातन" कैटभ नाम का एक विशेष असुर रहा तो उसका विनाश किया । "जय दाशरथि - राम" और जय हो किसकी ? दशरथी राम । केवलराम नहीं कहा । दास रथी । दशरथ के पुत्र दशरथ नंदन तो यह शैली है संस्कृत की । दशरथ का पुत्र दासरथी । वसुदेव का पुत्र वासुदेव । वैसे शब्द बन जाते हैं नाम बन जाते हैं या राम का तो जय दासरथी राम । दशरथी नहीं । दशरथी कहना गलत होगा । दाशरथि कहना होगा । यशोदा - दुलाल , गोविन्द - गोपाल , वृन्दावन - पुरन्दर । गोपीप्रिय - जन , राधिका - रमण भुवन - सुन्दरवर ॥ 3 ॥ झंडू बाम:- 3. यशोदा मैया के लाडले गोपाल का नाम लो । वे वृन्दावन में सर्वश्रेष्ठ हैं , वे गोपियों के प्रियतम हैं तथा श्रीमती राधारानी को आनन्द प्रदान करने वाले हैं । समस्त त्रिभुवन में अन्य कोई उनके समान सुन्दर नहीं है । "यशोदा - दुलाल" यशोदा के दुलाल, सच्ची दुलाल वहां श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु सच्ची दुलाल । केवल गाय के रखवाले ही नहीं, गाय को आल्हाद देने वाले गोविंद । गो मतलब गाय गो मतलब पृथ्वी, गो मतलब भूमि भी तो इनको सुख आनंद देने वाले गोविंद कहते हैं और गोपाल गाय के रखवाले गाय की सेवा करते हैं । गाय से प्रेम करते हैं श्री कृष्ण गोपाल । "वृन्दावन - पुरन्दर" तो वृंदावन के इंद्र जैसा ही बात "पुरंदर" वृंदावन के पुरंदर हो आप । "गोपीप्रिय जन" और गोपियों के प्रिय हो आप हे श्री कृष्ण तो नाम तो कहा गोपीप्रिय जन । आगरा में सोचेंगे तो बहुत कुछ याद आता है । गोपी और गोपीजन और फिर गोपियों के प्रिय जन । "राधिका - रमण" और राधारमण राधिका रमण राधिका के साथ रमने वाले आप । "मया सह रमस्व" हम भी जब जप करते हैं तो यह भी व्याख्या है । "हरे हरे" अंत वाला हरे हरे जब कहते हैं 15 वा 16 वा नाम हरे हरे । उस वक्त हम क्या कहते हैं ? हरे हरे कहते हैं । मया सह रमस्व" आप राधिका के साथ तो रमते हो औरों के साथ रमते हो कईयों के साथ रहते हो वृंदावन में सभी के साथ रमते हो तो हे प्रभु मेरे साथ फिर रमीए ऐसी प्रार्थना हम करते हैं जब हम जप करते हैं या नाम जप स्मरण करते हैं तो रमणरेती में हम बैठे हैं तो यहां की रेती जो व्रज की रज यहां है । यहां रमण किए कृष्ण बलराम इसीलिए श्रील प्रभुपाद ने यहां कृष्ण बलराम की विग्रह कि स्थापना किए श्री कृष्ण बलराम की जय ! इसीलिए कृष्ण बलराम के साथ ऑल्टर में एक गाय है एक बछड़ा है और 900000 गायों में से एक ऑल्टर में भी है और उसका बछड़ा भी है तो यह रमन करते हैं । "भुवन - सुन्दरवर" और भुवन सुंदर । 'वर' मतलब श्रेष्ठ हो या त्रिभुवन सुंदर यह सारा जो संसार है ब्रह्मांड है जिसमें आप सुंदर हो, सौंदर्य की खान हो या सौंदर्य वैसे आपका एक वैभव है, माधुर्य है । सौंदर्य का माधुर्य है, वेणू आपका एक माधुर्य है । प्रेम माधुर्य, वेणु माधुर्य, रूप माधुर्य, लीला माधुर्य इसके लिए आप प्रसिद्ध हो । रावणान्तकर , माखन - तस्कर , गोपीजन - वस्त्रहारी । व्रजेर राखाल , गोपवृन्दपाल , चित्तहारी वंशीधारी ॥ 4 ॥ अनुवाद:- 4. उन्होंने रावण का अन्त किया , गोपियों के घरों से माखन चुराया , गोपियों के वस्त्र चुराये । वे व्रज एवं व्रजवासियों के रखवाले हैं तथा वंशी बजाकर सभी का चित्त चुरा लेते हैं । "रावणान्तकर" दुबारा राम की ओर राम का स्मरण हो रहा है । रावण के अंत करने वाला "रावणान्तकर" । "माखन - तस्कर" तो माखन चोर । माखन तस्कर यह तो कितनी प्यारी लीला है माखन तस्कर । यही समय है कृष्ण, हम तो यहां गा रहे हैं जीव जागो या "निद्रा छाडि ' उठ जीव" हे जीवों उठो और हरी हरि बोलो । कृष्ण जैसे उठते थे वे अपने मित्र को इकट्ठा करके डाका डाला शुरू कर देते । आज उस गली में जाते, आज उस गोपी के घर जाते उस वहां जाते सारी कोशल बनती और 'मोहि माखन भावे' ऐसा भी कहते यशोदा से । 'मेवा पकवान कहती तू' 'मुझे नहीं भावे' मुझे पसंद नहीं है तुम्हारा मेवा पकवान 56 भोग, कचौरी क्या-क्या खिलाती रहती हो मुझे इतना अच्छा नहीं लगता जितना मुझे माखन प्रिय है मुझे माखन खिलाया करो ना । 'मैया मोहि माखन भावे' मुझे माखन पसंद है । "गोपीजन - वस्त्रहारी" तो फिर गोपियों के वस्त्रहरण आपने किया चीर घाट पर । वृंदावन के प्रसिद्ध घाटों में एक घाट है चीर घाट जहां वस्त्र हरण किया तो उसकी सारी लीला है । श्रीशुक उवाच हेमन्ते प्रथमे मासि नन्दव्रजकमारिकाः । चेरुर्हविष्यं भुञ्जानाः कात्यायन्यर्चनव्रतम् ॥ (श्रीमद् भागवतम 10.22.1 ) अनुवाद:- शुकदेव गोस्वामी ने कहा : हेमन्त ऋतु के पहले मास में गोकुल की अविवाहिता लड़कियों ने कात्यायनी देवी का पूजा - व्रत रखा । पूरे मास उन्होंने बिना मसाले की खिचड़ी खाई । पहले महीने में शरद ऋतु के बाद हेमंत ऋतु आता है और हेमंत ऋतु में मार्गशीर्ष और पौष 2 महीने होते हैं इन 2 महीनों में से पहला महीना मतलब मार्गशीर्ष महीने में पूरे 1 मास के लिए गोपियां वहां स्नान कर रही थी और पूजा भी कर रही थी कात्यायनी की तो 1 महीने के उपरांत और प्रार्थना भी कर रही थी हमें प्राप्त हो । कात्यायनि महामाये महायोगिन्यधीश्वरि । नन्दगोपसुतं देवि पतिं मे कुरु ते नमः । इति मन्त्रं जपन्त्यस्ताः पूजां चक्रुः कमारिकाः ॥ ( श्रीमद् भागवतम् 10.22.4 ) अनुवाद:- प्रत्येक अविवाहिता लड़की ने निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए उनकी पूजा की : " हे देवी कात्यायनी , हे महामाया , हे महायोगिनी , हे अधीश्वरी , आप महाराज नन्द के पुत्र को मेरा पति बना दें । मैं आपको नमस्कार करती हूँ । " हे देवी "नन्दगोपसुतं" उनको हमें "पतिं कुरु ते नमः" हमें पति रूप में प्राप्त हो कौन ? "नन्दगोपसुतं" नंद महाराज का जो पुत्र है वह हमें प्रति रूप में प्राप्त हो तो श्री कृष्ण आए पूर्णिमा के दिन और वस्त्र हरण किए । हरि हरि !! तो "व्रजेर राखाल" वृंदावन के रखवाले हैं । "गोपवृन्दपाल" तो गोपवृन्द उसके वे पालक है । 'गोप' सभी गोप वृंदावन के वृंद मतलब समूह । गोपवृंदपाल तो वे केबल गोपाल ही नहीं है गायों के रखवाले नहीं है वे गोपों के भी रखवाले हे । 'व्रजजन पालन' । "चित्तहारी वंशीधारी" या चित्त को हरण करते हैं चित्तहरी । मच्चित्ता मद्गतप्राणा बोधयन्त: परस्परम् । कथयन्तश्च मां नित्यं तुष्यन्ति च रमन्ति च ॥ ( भगवद् गीता 10.9 ) अनुवाद:- मेरे शुद्धभक्तों के विचार मुझमें वास करते हैं , उनके जीवन मेरी सेवा में अर्पित रहते हैं और वे एक दूसरे को ज्ञान प्रदान करते तथा मेरे विषय में बातें करते हुए परम सन्तोष तथा आनन्द का अनुभव करते हैं । गीता में कृष्ण 'मच्चित्ताः' मेरी भक्त का चित्त मुझ में लगा रहता है तो चित्त हरि है । कृष्ण का एक नाम चित्त हरि । वे हर लेते हैं किसको ? चित् को । "वंशीधारी" आप वंशीधारी हो । वंशी वादन करते हो मुरली वादन करते हो । हरि हरि !! योगीन्द्र - वंदन , श्रीनन्द - नन्दन , व्रजजन भयहारी । नवीन नीरद , रूप मनोहर , मोहन - वंशीबिहारी ॥ 5॥ अनुवाद:- 5. वे योगियों द्वारा वन्दनीय हैं तथा समस्त व्रजवासियों के भय का हरण करने वाले हैं । तुम उन नन्दनन्दन का नाम लो । उनका सुन्दर रूप नवीन मेघों के समान अत्यन्त मनोहर है और वे वंशी बजाते हुए विहार करते हैं । "योगीन्द्र - वंदन" योगी वंदना करते हैं । आप की वंदना करते हैं योगी । "श्रीनन्द - नन्दन" नंदन नंदन के पुत्रों हो । "व्रजजन भयहारी" वृंदावन के जो व्रजजन है उनके भय को हर लेते हो । "भयहरी" भय से मुक्त करते हैं । कई लीलाओं में से किया श्रीकृष्ण ने । "नवीन नीरद" आप नवीन नीरद कृष्ण का नाम हुआ । नवीन ! क्या नवीन ? नीरद 'नीर' मतलब जल और 'द' मतलब देने वाला । जल कौन देता है ? वादल जल देते हैं । केसे वादल ? नवीन नीरद । फ्रेश मॉनसून क्लाउड जिसको श्रील प्रभुपाद अंग्रेजी में कहते हैं तो उनका जो वादलों का जो रंग का होता है वैसे ही आप उस रंग वाले आप हो । "रूप मनोहर" आपका मन नहीं आपका रूप मनोहरी है मन को हरने वाला है । "मोहन - वंशीबिहारी" तो आप मोहन वंशीबिहारी तो वंसी बजाते हुए आप बिहार करते हो और मोहन मोहित भी करते हो । गोपियों को व्रज जनों को आपने मुरली वादन से । यशोदा - नन्दन , कंस - निसूदन , निकुञ्जरास विलासी । कदम्ब - कानन , रास परायण , वृन्दाविपिन - निवासी ॥ 6 ॥ अनुवाद:- 6. वे यशोदा मैया के नन्दन परन्तु कंस के संहारक हैं । वे निकुंजों एवं कदम्ब के वनों में रासलीला करते हैं तथा वृन्दावन के वनों में निवास करते हैं । ऊपर नंदनंदन कहा था श्रील भक्ति विनोद ठाकुर लिख रहे हैं गा रहे हैं यशोदा नंदन अब यह यशोदा के नंदन हो या कृष्ण को बहोत, कृष्ण प्रसन्न होते हैं जब हम उनको नंद नंदन या यशोदा नंदन कहते हैं या सचिनंदन कहते हैं । मेरा मां का नाम लिया मेरा मां का नाम ले रहे हैं यह व्यक्ति या मैं यशोदा का हूं । मैं नंदबाबा का हूं ऐसा कह रहे हैं तो कहने वाले से कृष्ण बड़े प्रसन्न होते हैं । जो कहेगा यशोदा नंदन । "कंस - निसूदन" कंस का वध करने वाली "कंस - निसूदन" मथुरा में जैसे पहुंचे श्री कृष्ण और बलराम भी दोनों साथ में पहुंचे थे तो पहली लीला तो मुख्य लीला 'कंस - निसूदन' मथुरा में कंस टिला है । एक छोटा सा टीला है, पहाड़ है । रंगेश्वर महादेव मंदिर के पास में तो वहां रंगेश्वर जो वहां के दिगपाल है तो वही पर कंसटिला , कंस निसूदन हुआ । "निकुञ्जरास विलासी" और आप निकुंजो में विलास करते हो गोपियों के साथ राधा के साथ जो लीलाएं संपन्न होती है वृंदावन में वह निकुंज में होती है । 'निकुंज विराजो घनश्याम राधे राधे' । 'कुंज बिहारी राधा कुंज बिहारी' । कुंजों में बिहार करते हैं गोपियों के साथ और फिर गोचरण भूमि में खुले मैदान होते हैं जहां गाय चरती है वह भी एक लीला हुई । मित्रों के साथ खेलते हैं और गायों को चराते हैं वह एक क्षेत्र व्रज का और दूसरा क्षेत्र है जहां गोपियों के साथ मिलते हैं गोपियों के साथ विचरण विलास होता है तो उसको निकुंज कहते हैं और फिर नंद ग्राम में माता पिता के साथ रहते हैं तो यह तीन प्रकार की लीलाएं हैं । साख्य रस, वात्सल्य रस, माधुर्य रस यह अलग-अलग क्षेत्रों में यह अलग-अलग भाव रस वाली लीलाएं संपन्न होती है । "कदम्ब - कानन" और कदम्ब कि वृक्ष जहां हो वहां लीला खेलते हो । "रास परायण" और रास में प्रवीण हो या रास खेलते रहते हो । "वृन्दाविपिन - निवासी" वृंदा विपिन मतलब वृंदावन ही । 'विपिन' मतलब वन तो वृंदादेवी का 'वृंदायाःदेवी वनम्' वृंदावन तो वहां के आप निवासी हो मतलब आप व्रजवासी हो । वृंदावन वासी हो हे श्री कृष्ण । आनन्द - वर्धन , प्रेम - निकेतन , फुलशर - योजक काम । गोपांगनागण , चित्त - विनोदन , समस्त - गुणगण - धाम ॥ 7 ॥ अनुवाद:- 7. वे गोपियों के आनन्द का विशेष रूप से वर्धन करने वाले हैं , प्रेम के अतुल भण्डार हैं तथा अपने पुष्पबाणों से गोपियों के काम को बढ़ाने वाले हैं । वे गोप बालकों के चित्त को आनन्दित करने वाले एवं समस्त गुणों के आश्रय हैं । "आनन्द - वर्धन" आनंद को बढ़ाने वाले आप हो ।"प्रेम - निकेतन" प्रेम का निकेतन । "फुलशर - योजक काम" और आप फूलों से बने हुए वाण । उसकी वृष्टि करते हो या उसको चलाते हो वाण उसको काम वाण लेकिन यह प्रेम वाण है । पुष्प वाणाय कृष्ण का पुष्प वाणाय तो उसे फिर गोपियां घायल हो जाती है और उसी के साथ उनका प्रेम तो उसे फिर गोपियां घायल हो जाती है और उसी के साथ उनका प्रेम और उदित होता है । प्रेम बढ़ता है गोपियों का उसी के साथ "फुलशर - योजक काम" । "गोपांगनागण" गोप-अंगणा मतलब स्त्रियां गोपांगणा गण तो आप गोपांगणा के प्रिय । "चित्त - विनोदन" चित्त को आनंद देने वाले । "समस्त - गुणगण - धाम" और सभी गुणों के खान । "समस्त - गुणगण - धाम" एक गुण दूसरा गुण गुणगण धाम । समस्त गुणों के खान आप हो । यामुन - जीवन , केलि - परायण , मानसचन्द्र - चकोर । नाम - सुधारस , गाओ कृष्ण - यश राख वचन मन मोर ॥ 8 ॥ अनुवाद:- 8. वे यमुना मैया के जीवनस्वरूप हैं और उसके तटों पर नाना क्रीड़ायें करने में रत रहते हैं । वे राधारानी के मनरूपी चन्द्रमा के चकोर हैं । श्रील भक्तिविनोद ठाकुर कह रहे हैं - हे मेरे मन ! तुम मेरी बात मान लो और निरन्तर अमृतसदृश श्रीकृष्ण के इन नामों का यशोगान करो । "यामुन - जीवन" यामुन मतलब यमुना के जीवन आप यमुना के जीवन हो । वैसे यमुना जीवन वह सही नहीं होगा व्याकरण दृष्टि से तो 'जामुना जीवन'। "केलि - परायण" केली मतलब लीला में आप परायण हो, प्रवीण हो, कुशल हो । कई लीलाएं खेलते रहते हो आप "केलि - परायण" । "मानसचन्द्र - चकोर" क्योंकि आप कृष्णचंद्र हो मानसचन्द्र - चकोर या चकोर पक्षी भी होता है तो जिस की प्रतीक्षा में जो प्रतीक्षा में रहता है जल की प्रतीक्षा में । "नाम - सुधारस" तो किसने को कहा है; कृष्ण है चकोर और कृष्ण चकोर जो है वह कैसे जीवित रहते हैं ? जो राधा के मन से उत्पन्न होने वाली जो भाव या कांति है उसी पर यह चकोर उसी को ग्रहण करता है, उसी से जीवित रहता है तो कृष्ण है चकोर "मानसचन्द्र - चकोर" और राधा रानी उनको जीवित रखती हैं या राधा के मन का चंद्र । "नाम - सुधारस" यह नाम है, यह सुधा है, अमृत है । "नाम - सुधारस , गाओ कृष्ण - यश" तो कृष्ण के नाम का गायन करो । "राख वचन मन मोर" तुम मेरी बात मान लो और निरन्तर अमृतसदृश श्रीकृष्ण के इन नामों का यशोगान करो । ठीक है रुक जाते हैं यहां पर । ॥ निताई प्रेमानंदे हरि हरि बोल ॥ ॥ हरे कृष्ण ॥

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