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जप चर्चा वृंदावन धाम से 7 सितंबर 2021 आज 816 स्थानों से भक्त जुड़े है । मैं कुछ हरिकथा करना चाहता ही हु किंतु प्रभुपाद कथा हो रही है , अभी तक प्रभुपाद कथा सुनकर हम तृप्त नही हुए है । मैं सोच रहा था सभी का स्वागत होता ही है , सभी बोल सकते थे किंतु उनको अलग से आमंत्रित किया जा सकता है । अभी हम कर ही रहे है , आप सुनो अन्य भक्त नेपाल से , थाइलैंड , बर्मा, मोरिशिएस , बांग्लादेश और जहां जहाँ से भक्त जप करते है , जप चर्चा सुनते है उनमें से कुछ भक्तोसे भी हम सुनना चाहेंगे । गुरुकुल , भक्ति वेदांत स्वामी गुरुकुल पंढरपुर के कई विद्यार्थी है जिन्होंने अभी तक अपनी शब्दांजली नही दी है , वह भी दे सकते है। उनके आचार्य यहा उपस्थित है , आप सुन रहे है? मोरिशिएस से चैतन्य स्वामी महाराज , मोरिशिएस के भक्त लीलाधर , गौर्य आप उनसे संपर्क कर सकते हो , अगर महाराज यहा पर नही है तो उनको भी आमंत्रित किया जा सकता है । ठीक है । अपने हाथ उपर करना प्रारंभ करो , संकीर्तन गौर बांग्लादेश से अगर यहाँ पर उपस्थित है तो वह भी बोल सकते है । उसी तरह जैसा मैंने कहा , कुछ तुम और कहना चाहते हो या उसी बात को दैराना चाहते हो ? (पद्मावली प्रभुजीसे पूछते हुये) पद्मावली प्रभुजी , सभी भक्तों को हाथ उपर करने के लिए बताते है । गुरुमहाराज , गैरांग , राधा श्यामसुंदर की जय । हरि हरि । गौरांग गौरांग कह सकते है । कृष्ण बलराम की जय । राधा श्यामसुंदर की जय । जय श्री राधे , जय श्री श्याम । गिरिराज गोवर्धन की जय । मैंने जब वृंदावन की पंचक्रोशी परिक्रमा की तब सोचा तो था कि हम गोवर्धन दर्शन के लिए जाएंगे , गिरिराज गोवर्धन की जय । लेकिन अभी यह निश्चित नहीं है कि मैं जा सकूंगा कि नहीं इसलिए मैं सोच रहा था कि कम से कम गिरिराज को याद तो करते हैं । गिरिराज का स्मरण करते हैं , गोपियों का एक गोपी गीत प्रसिद्ध है और साथ ही साथ ऐसे कई गीत है गोपियों के जीवन गीत है , गोपी गीत है अभी सारी सूची का नाम मैं नहीं लूंगा उसमें वेणु गीत भी है , गोपी गीत भी है । अध्याय संख्या 21 कल हमने बताया था दशम स्कंध । इस वेणु गीत में गोपियों ने गिरिराज गोवर्धन की गौरव गाथा इन शब्दों में कही है , और गोपिया कह रही है तो यह भी समझना चाहिए कि राधा रानी भी कह रही है , राधा और गोपियां कह रही है । ऐसे शुकदेव गोस्वामी दशम स्कंध के कथा में गोपी गोपी कहते हैं गुप्या उचु या गोपियों ने कहा तब वहां समझना चाहिए कि जहा जहा गोपियों ने कहां , गोप्या उचु ऐसा लिखा है वहां राधारानी रहे ने भी कहा ही है । वेणु गीत भी राधा रानी का भी गीत है गोपियों का भी गीत है । इसको हम गोपी गीत नही कहते हैं , गोपी का गीत नहीं कहते हैं , गोपी गीत अलग से है किंतु इस वेणु गीत में गोपीयोने और राधा रानी है कहा , हन्तायमद्रिरबला हरिदासवर्यो यद्रामकृष्णचरणस्परशप्रमोदः । मानं तनोति सहगोगणयोस्तयोर्यत् पानीयसूयवसकन्दरकन्दमूलैः ॥१८ ॥ (श्रीमद्भागवत 10.21.18) यह गोवर्धन पर्वत समस्त भक्तों में सर्वश्रेष्ठ है । सखियो , यह पर्वत कृष्ण तथा बलराम के साथ ही साथ उनकी गौवों , बछड़ों तथा ग्वालबालों की सभी प्रकार की आवश्यकताओं - पीने का पानी , अति मुलायम घास , गुफाएँ , फल , फूल तथा तरकारियों की पूर्ति करता है । इस तरह यह पर्वत भगवान् का आदर करता है । कृष्ण तथा बलराम के चरणकमलों का स्पर्श पाकर गोवर्धन पर्वत अत्यन्त हर्षित प्रतीत होता है हे अबलाओ , गोपिया स्वयं को अबला कह रही है । गिरिराज तो बलवान है लेकिन देखो हम यह जो अबला है , हम जो निर्बल है , हन्तायमद्रिरबला हे अबलाओं , हे गोपियों देखो गिरिराज को देखो , अद्री मतलब गिरिराज , कैसे हैं गिरिराज ? हरिदासवर्य्य मैं यह व्याख्या तो नहीं करना चाहता था लेकिन चैतन्य महाप्रभु ने जो वृंदावन भेट वृंदावन परिक्रमा और गोवर्धन परिक्रमा की इसका भी मैं संकेत करना चाहता था । गोपियों ने कहा यह हरिदासवर्य्य को देखो , यह गिरीराज जो है यह हरिदासो में श्रेष्ठ है ।राम कृष्ण चरण स्पर्श प्रमोद: और क्या होता है ? जब बलराम और कृष्ण इस गिरिराज पर चढ़ते हैं उनके चरणों का जो गिरीराज को स्पर्श होता है , गिरिराज कृष्ण बलराम के चरणों को स्पर्श करता है और कृष्ण बलराम चलते हैं ,गिरिराज स्पर्श करते हैं । गिरिराज स्पर्श करते हैं तो क्या होता है ? प्रमोद: यह गिरिराज आनंद का अनुभव करता है । हरि हरि । और यह वृक्ष वगैरह जो है ना यह तो गोवर्धन के रोंगटे खड़े हुए है , जब कृष्ण बलराम स्पर्श करते हैं तो यह वृक्ष लता वेली है यह मानो जैसे गिरिराज के रोंगटे खड़े हो गए हैं । ऐसा गोपिया सोचति हैं , कह रही है कि देखो इनको तो स्पर्श करते हैं , यह बलराम कृष्ण इनको स्पर्श करते है किंतु हम को स्पर्श नहीं करते हैं । या हमको कब स्पर्श करेंगे ? और हम भी कब अनुभव करेंगे जैसे गिरिराज को अनुभव होता है । राम कृष्ण चरण स्पर्श प्रमोद: , यह कहते समय थोड़ा मन में कुछ शोक भी कर रही है , गिरिराज भाग्यवान है भगवान इनको स्पर्श करते रहते हैं लेकिन हम बेचारी अबला उनसे दूर रहती है या वह हमको स्पर्श नहीं कर रहे है , कब करेंगे? उत्कंठा भी है , आगे कहती है यह गोपिया कि यह गिरिराज भी वैसे सभी का सम्मान करते रहता है । आने वाली गाये हैं , गोप है उन सब का यह गिरिराज सत्कार सम्मान करता है । पानीयसूयवसकन्दरकन्दमूलैः आगे गोपियों ने उस वेणु गीत में कहा, यह सत्कार सम्मान है , आपका स्वागत है , आपका स्वागत है केवल ऐसा कह कर ही या कहते हुए ही यह गिरिराज गोवर्धन सब का सत्कार सम्मान नहीं करते । इनका सत्कार सम्मान करने की जो पद्धति है वह बड़ी प्रैक्टिकल है । सुव्यवस्थ , गायों के लिए यहां प्रचुर मात्रा में घास है और यहाँ का घास खा खा के , नाम भी देखो गोवर्धन , नाम की ओर ध्यान दो गो-वर्धन गो-वर्धन गाय वर्धित होती है , गाय वृष्ट पृष्ठ होती है और गायों को वृष्ट पृष्ठ करने वाला यह गोवर्धन है । नाम के उपर ध्यान देना , गोवर्धन क्यों कहा जा रहे ? यह है गोकुल , यह नंदगोकुल , यह गोवर्धन , यह गोलोक । देखिए गाय का भी कितना महिमा है । धाम का नाम ही गोलोक , गोलोक है । जहाँ कृष्ण रहते है । यह वैसे गाय का लोक है । गोपसम अलंकृतम ऐसा भी भागवत में कहा गया है । यह वृंदावन अलंकृत है कौन करता है इस वृंदावन को अलंकृत गाय करती है उनकी उपस्थिति और यहाँ गोप है। वृंदावन के जो जन हैं लोग हैं उनको क्या कहते हैं गोप कहते हैं गायों के कारण उनका नाम हुआ गाय का पालन करने वाले गायों के रखवाले इस गोलुक के वृंदावन के लोग उनको गोप कहते है और उनकी पत्नियां हो गई गोपी जैसे गोप और गोपी और फिर गोपाल भी हो गए वैसे गाय केंद्र में है। और यह गिरिराज ब्रज मंडल का यह तिलक है तिलक से जैसे शोभा बढ़ती है हम तिलक पहन लेते हैं तो फिर हम तैयार हो गए हमारा मेकअप कहो या हमारा साज श्रृंगार हो गया अब हम तैयार हैं तिलक लगाया अब हम तैयार हो गए। तो तिलक का जैसा महिमा है तो वैसा महिमा गिरिराज का भी है ब्रज के तिलक है गिरिराज गोवर्धन और गोवर्धन क्योंकि गाय गाय का सत्कार सम्मान करते हैं कैसे सूयवस खुप हरियाली छाई रहती है। केवल देखने के लिए नहीं गायों को खाने के लिए भी और पानीयसूयवसकन्दरकन्दमूलैः आगे 10.21.18 हन्तायमद्रिरबला हरिदासवर्यो यद्रामकृष्णचरणस्परशप्रमोदः । मानं तनोति सहगोगणयोस्तयोर्यत् पानीयसूयवसकन्दरकन्दमूलैः ॥१८ ॥ अनुवाद:- यह गोवर्धन पर्वत समस्त भक्तों में सर्वश्रेष्ठ है । सखियो , यह पर्वत कृष्ण तथा बलराम के साथ ही साथ उनकी गौवों , बछड़ों तथा ग्वालबालों की सभी प्रकार की आवश्यकताओं - पीने का पानी , अति मुलायम घास , गुफाएँ , फल , फूल तथा तरकारियों की पूर्ति करता है । इस तरह यह पर्वत भगवान् का आदर करता है । कृष्ण तथा बलराम के चरणकमलों का स्पर्श पाकर गोवर्धन पर्वत अत्यन्त हर्षित प्रतीत होता है। प्रचुर मात्रा में जल उपलब्ध है कई सारे सरोवर कई सारे कुंड है फिर राधा कुंड भी है गोविंद कुंड है अप्सरा कुंड भी हैं कई सारे कुंड हैं और साथ ही कई सारे झरने हैं। या वाटर स्पोर्ट्स होते हैं यहां इसे हम क्या कहते हैं यह टुरिस्ट स्पॉट है। कृष्ण के समय में भी गिरिराज के तलहटी यह ओरिजिनेशन टूरिस्ट स्पॉट वाटरफॉल भी है सभी तरफ जल है। जिसमें गाय जल पीती है और कृष्ण अपने मित्रों के साथ खेलते हैं। पानीयसूयवसकन्दरकन्दमूलैः पानी है सुयव मतलब घास हैं, कन्दर मतलब जहा कृष्ण बलराम अपने मित्रों के साथ विश्राम करते हैं यहां ऐ सी है इस कन्दरा में विश्राम करो खेलो इन गुफाओं में कन्दरकन्दमूलैः गोपिया कह रही है। गिरिराज का गौरव गाथा गा रही है कन्दरकन्दमूलैः कंद,मूल,फल भी देता है यह गिरिराज तो कृष्ण बलराम और उनके मित्र “पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति | तदहं भक्तयुपहृतमश्र्नामि प्रयतात्मनः।। BG 9.26 “पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति | तदहं भक्तयुपहृतमश्र्नामि प्रयतात्मनः || २६ ||” अनुवाद:- यदि कोई प्रेम तथा भक्ति के साथ मुझे पत्र, पुष्प, फल या जल प्रदान करता है, तो मैं उसे स्वीकार करता हूँ | पत्रं पुष्पं फलं तोयं कैसा पत्र वह पत्र प्राप्त है पत्ते प्राप्त है सब्जियों का सलाद बना सकते हैं पुष्पम वहां हैं वनमाल्य वंशी उसकी मालाएं बनाई जाती हैं। मित्र माला बनाते हैं वणमाला वैजयंती माला इत्यादि प्रकार की माला भी होती है और वही वणमाला कृष्ण प्रसिद्ध हैं वनमाली मित्र ही कुछ रंग बिरंगी फूल इकट्ठे करेंगे कुछ पत्ते भी ले लेंगे और फिर माला बनाई हुई पहनाते हैं। कन्दरकन्दमूलैः कन्द, फल,पत्ते ये सब भी यहां गोवर्धन उपलब्ध कराता है। और यह सब उपलब्ध करा कर भी मानम तनोति मान सम्मान करता है कृष्ण बलराम का उनके मित्रों का गोपो का गायों का तो इन सब शब्दों में गोपियों ने और साथ में राधा रानी भी है वेणु गीत में ऐसे उद्गार है। राधा गोपियों के गोवर्धन के संबंध में हरि हरि तो अभी हाथ ऊपर हो रहे हैं कोई बात नहीं। ठीक है अभी कुछ दो-तीन ही हाथ ऊपर है तो अब हम और समय देते हैं रामप्रसाद ठीक है जल्दी तैयार हो जाइए ठीक है शामकुंड तैयार है। मैं तो बोलते ही रहता हूं मैंने एक दो बार कहा कि मैंने ही बोलने का ठेका लिया है ऐसा नहीं है और आप चुप मारकर सुनते ही जाओगे हंसते हुए मैं भी आपको तैयार कर रहा हूं ताकि आप बोलते जाओगे बोलते जाओगे जो जो सुनते हो उस पर चिंतन करो विचार करो फिर अपने शब्दों में कहो अपना अनुभव अपने साक्षात्कार आपको तैयार होना है उस तरह ठीक है। मैं कुछ और समय के लिए बोलता हूं श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु जब बृंदावन आए और ब्रज मंडल परिक्रमा कर रहे थे तब ब्रजमंडल के रास्ते में ब्रज मंडल परिक्रमा के मार्ग में फिर एक दिन हम राधा कुंड को शाम कुंड को भी आ जाते हैं। हम भी आ जाते हैं और चैतन्य महाप्रभु भी आए थे और फिर गोवर्धन की परिक्रमा होती है फिर हम उस परिक्रमा को आगे बढ़ाते हैं अगले बद्रिकाश्रम की ओर जाते हैं वृंदावन में बद्री का आश्रम वृंदावन में बद्री है केदार है रामेश्वर है वह थोड़ा आगे बढ़ते हैं गोवर्धन परिक्रमा तो चैतन्य महाप्रभु गोवर्धन परिक्रमा कर रहे हैं। राधा भाव में गोपी भाव में चैतन्य महाप्रभु जय श्री कृष्ण चैतन्य राधा कृष्ण नाहि अन्य तो है। तो यह दोनों भी भूमिका चल रही है कभी राधा बनकर तो कभी कृष्ण बनकर सब अनुभव करते कि हमारे कृष्ण आगए हमारे श्यामसुंदर आ गए हैं। आये तो गौर सुंदर लेकिन सभी अनुभव करते हैं हमारे श्यामसुंदर आ गए यह कइयों का अनुभव था जो चैतन्य महाप्रभु वृंदावन की और गोवर्धन की परिक्रमा कर रहे थे लेकिन चैतन्य महाप्रभु अपना जो राधा भाव है इसको भी प्रकट करते हैं करते रहे खासकर उन में वृंदावन में तो गोवर्धन परिक्रमा करते समय चैतन्य महाप्रभु पूरी परिक्रमा में यह जो वेणु गीत में जो अभी-अभी हमने जो कहा गोवर्धन की गाथा जिन शब्दों में राधा गोपीयो ने गाई अंतअयम बल हरिदास यह जो वचन है जो श्लोक है इसी श्लोक को पूरी परिक्रमा के मार्ग में श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु कहते थे गए और जो वे कह रहे हैं क्या कहना जितना कुछ हुआ उससे कृष्णदास कविराज गोस्वामी महाराज उनको भी कठिन जा रहा है सारा वर्णन करना श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु के सारे भाव जो ब्रज मंडल में और फिर गोवर्धन परिक्रमा के समय चैतन्य महाप्रभु प्रणाम करने के लिए उनको नीचे झुकते ही वो स्तंभित हो जाते हैं। और फिर गिरिराज को देखा तो स्तंभित हो जाते हैं। ना हील रहे हैं ना डोल रहे हैं अपने नेत्रों से देख रहे है गिरिराज को तो फिर दूसरे ही क्षण फर गिरिराज कि ओर दौड़ते हैं। शीला को आलिंगन देते हैं और क्रंदन करने लगते हैं और फिर वही लोटने लगते हैं फिर मुश्किल से उठते हैं आगे बढ़ रहे हैं और उनकी आंखों से अश्रु धाराएं अश्रु बिंदु नहीं धाराएं बह रही है। आप फिर जानते हैं कई लोग जो गोवर्धन परिक्रमा करते हैं तो गोवर्धन का अभिषेक भी करते हैं। पूरे ब्रज मंडल परिक्रमा में कुछ लोग जैसे फिर कुछ आधुनिक लोग या दिल्ली वाले आएंगे तो फिर कार में बैठेंगे और कार से एक हाथ बाहर है और उस हाथ में क्या है कई पात्र है और उसमें वह दूध या थोड़ा दूध अधिक पानी होता है और कार से घूमते हैं स्पीड बढ़ाते ताकि दूध समाप्त न हो हंसते हुए तो पांच 10 किलो या लीटर दूध में सारे गोवर्धन की परिक्रमा और अभिषेक भी करते हैं। भाव तो सही होते हैं गोवर्धन की पूजा मतलब गोवर्धन का अभिषेक यह विधि भी है। तो श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु कैसा अभिषेक कर रहे थे पूरे गोवर्धन परिक्रमा मार्ग पर उन्होंने अभिषेक किया गिरिराज गोवर्धन का और जल कहां से लाया उनकी आंखों से जो अश्रु धाराएं बह रही थी उन्ही के साथ श्री कृष्णा महाप्रभु अभिषेक कर रहे थे गिरिराज गोवर्धन की जय । ठीक है।

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