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*जप चर्चा*, *पंढरपुर धाम*, *3 अक्टूबर 2021* हरे कृष्ण । हमारे साथ 833 स्थानों से भक्त जप कर रहे हैं । सुस्वागतम। हरि हरि । उसी के साथ हमारा श्रवणम् कीर्तनम् हो रहा है। श्रवण कीर्तन करते हैं तो क्या होता है ? श्रवण कीर्तन का क्या फल होता है ? श्रीप्रह्लाद उवाच श्रवणं कीर्तनं विष्णोः स्मरणं पादसेवनम् । अर्चनं वन्दनं दास्यं सख्यमात्मनिवेदनम् ॥२३ ॥ इति पुंसार्पिता विष्णौ भक्तिश्चेन्नवलक्षणा । क्रियेत भगवत्यद्धा तन्मन्येऽधीतमुत्तमम् ॥२४ ॥ अनुवाद:- प्रह्लाद महाराज ने कहा : भगवान् विष्णु के दिव्य पवित्र नाम , रूप , साज - सामान तथा लीलाओं के विषय में सुनना तथा कीर्तन करना , उनका स्मरण करना , भगवान् के चरणकमलों की सेवा करना , षोडशोपचार विधि द्वारा भगवान् की सादर पूजा करना , भगवान् से प्रार्थना करना , उनका दास बनना , भगवान् को सर्वश्रेष्ठ मित्र के रूप में मानना तथा उन्हें अपना सर्वस्व न्योछावर करना ( अर्थात् मनसा , वाचा , कर्मणा उनकी सेवा करना ) - शुद्ध भक्ति की ये नौ विधियाँ स्वीकार की गई हैं । जिस किसी ने इन नौ विधियों द्वारा कृष्ण की सेवा में अपना जीवन अर्पित कर दिया है उसे ही सर्वाधिक विद्वान व्यक्ति मानना चाहिए , क्योंकि उसने पूर्ण ज्ञान प्राप्त कर लिया है । श्रवणं कीर्तनं विष्णोः स्मरणं। साथ में हम भगवान के विश्वभर के विग्रहों के दर्शन कर रहे थे। हमें स्मरण में मदद हो रही थी। भगवान का दर्शन करते हैं तो भगवान का स्मरण होता है। श्रवणं कीर्तनं विष्णोः स्मरणं । हरि हरि !! थोड़ा स्मरण को आसान कर रहे थे। विग्रह मतलब भगवान, भगवान को बिना देखे भी भगवान का चित्र ,फोटोग्राफ या मूर्तियां। उनको देखे बिना भी हम दर्शन कर सकते हैं। वह हमको करना है । आत्मा दर्शन कर सकता है। विग्रह सामने हो या ना हो, दर्शन और स्मरण भी संभव है। ध्रुव महाराज के समक्ष भगवान आकर खड़े हुए। उन्हें विग्रह कहो या साक्षात भगवान कहो। तो ध्रुव महाराज के समक्ष आ गए। यह कहां की बात है? मधुबन में, वहां पर उन्होंने तपस्या करी और भगवान से मिलना चाहते थे । भगवान से सीधे प्रत्यक्ष आमने सामने बात करना चाहते थे। वह उनसे कुछ मांगना चाहते थे उनकी महत्वाकांक्षा थी। यह विषय नहीं है । लेकिन बात यह है कि भगवान आ गए, सामने खड़े थे। लेकिन भगवान ने देखा कि ध्रुव जो मुझे मिलना और देखना चाह रहा था । वह आंख भी नहीं खोल रहा है। ध्रुव आंखें खोलो। मैं आया हूं, देखो देखो मुझे देखो तो सही। आंखें तो खोलो तो भी ध्रुव महाराज आंखें नहीं खोल रहे थे । फिर भगवान ने महसूस किया । भगवान समझ गए कि मुझे क्यों नहीं देख रहा है। मेरा दर्शन क्यों नहीं कर रहा है । भगवान समझ गए कि मेरा दर्शन तो वह कर रहा है । दैः साङ्गपदक्रमोपनिषदैगायन्ति यं सामगाः । ध्यानावस्थिततद्गतेन मनसा पश्यन्ति यं योगिनो यस्यान्तं न विदुः सुरासुरगणा देवाय तस्मै नमः ॥ ( श्रीमद् भगवतम् 12.13.1 ) अनुवाद:- सूत गोस्वामी ने कहा : ब्रह्मा , वरुण , इन्द्र , रुद्र तथा मरुत्गण दिव्य स्तुतियों का उच्चारण करके तथा वेदों को उनके अंगों , पद - क्रमों तथा उपनिषदों समेत बाँच कर जिनकी स्तुति करते हैं , सामवेद के गायक जिनका सदैव गायन करते हैं , सिद्ध योगी अपने को समाधि प्र में स्थिर करके और अपने को उनके भीतर लीन करके जिनका दर्शन अपने मन में करते हैं तथा जिनका पार किसी देवता या असुर द्वारा कभी भी नहीं पाया जा सकता - ऐसे भगवान को मैं सादर नमस्कार करता हूँ । ध्यान अवस्था में भक्ति योगी भी दर्शन करते हैं । भगवान का दर्शन अपने हृदय प्रांगण में करते हैं। तो वैसे ही भगवान ह्रदय में है। हे भगवान ! मैं आपको देखना चाहता हूं । जॉर्ज हैरिसन गा रहे थे । मैं आपके साथ रहना चाहता हूं । आपके पास पहुंचना चाहता हूं। आपको देखना चाहता हूं। हे मीठे सुंदर भगवान। ध्रुव जब नहीं देख रहा था, जब भगवान को सामने खड़े हुए । तो भगवान ने क्या किया। अंदर का जो दर्शन, जो हृदय में दर्शन कर रहा था। दर्शन स्मृति पटल पर होता है। हमारे अंदर एक स्क्रीन है जिसे स्मृति पटल कहा जाता है। हमारे अंतःकरण का एक अंग है। जो इस स्क्रीन पर वह दर्शन देख रहे थे। ध्रुव महाराज देख रहे थे। भगवान ने क्या किया? उसको बंद किया । अंदर के दर्शन को बंद किया। जब दर्शन नहीं हो रहा था। तब धर्मराज सोचे क्या हुआ मैं दर्शन खो तो नही बैठा और ऐसा सोचते हुए ध्रुव महाराज ने आंखे खोल दी और वह आश्चर्यचकित हुए। उन्होंने भगवान को अपने समक्ष देखा वही भगवान के दर्शन हुए। उन्होंने वैसे ही दर्शन अपने समक्ष देखा जिनका भी स्मरण कर रहे थे, उस दर्शन में कोई अंतर नहीं था। बहिर नरसिंह हृदये नरसिंह भगवान हृदय में है, भगवान बाहर है, भगवान सर्वत्र हैं । श्रवणं कीर्तनं विष्णोः स्मरणं तो भी हम सहायता ले सकते हैं, स्मरण करने के लिए। भगवान का चित्र, भगवान के विग्रह के समक्ष, भगवान के चरणों में बैठकर जप करोगे या धाम में जा कर जप करोगे या घर में मंदिर बना कर जप करोगे। यह सारे चित्र भी है। तुलसी महारानी की जय। तुलसी भी है और भक्त भी है। यह सब हम को सहायता करते हैं। गाय भी है पास में, कुत्ता नहीं है । वहां पर भगवान है । भगवान की गाय हैं। भक्ति रसामृत सिंधु में उद्दीपन कहते हैं। मुझे अभी शास्त्र का नहीं बताना था। हमको मदद करते हैं। स्मरण के लिए हमको सहायता करते हैं। श्रवण कीर्तन का फल हमको प्राप्त हो। श्रवणं कीर्तनं विष्णोः स्मरणं विष्णु का स्मरण मतलब विष्णु के रूप का भी स्मरण, केवल रूप का स्मरण ही स्मरण नहीं है। भगवान के नाम का स्मरण, भगवान के गुणों का स्मरण भी स्मरण है, भगवान की लीला का स्मरण भी स्मरण है और भगवान के भक्तों का, भक्त भी प्रातः स्मरणीय होते हैं । हम जो ब्राह्मण बने होते हैं वह गायत्री मंत्र प्राप्त किए होते हैं । तो उनके लिए कहा है। *ध्यायंस्तुवंस्तस्य यशस्त्रि-सन्ध्यं। वन्दे गुरोः श्रीचरणारविन्दम्।* त्रिसंध्याकाल में हम गुरुजनों का स्मरण करते हैं। ध्यान करते हैं, उनकी स्तुति करते हैं। तो वह भी, गुरुजन भी स्मरणीय है, स्मरण करने योग्य हैं। वह स्मरण भी भगवान के स्मरण से अलग नहीं है। उनको भी भगवान से अलग नहीं किया जा सकता। यह सब स्मरण के विषय हैं। वैसे हम आपको विग्रहों के दर्शन करा रहे थे । लेकिन यह नहीं समझना कि केवल विग्रह का दर्शन ही दर्शन है। विग्रह का दर्शन ही स्मरण है । भगवान का नाम है, रूप है, गुण है, लीला है, धाम है, परिकर है । इनका स्मरण भी स्मरण है या ध्यान है या दर्शन है कहो। तो धन्यवाद यह सारे भगवान के स्वरुप हमारे समक्ष प्रकट हुए, इस प्रेजेंटेशन के रूप में और भगवान जो सर्वत्र हैं , पूरे संसार भर में है, जहां जहां प्राण प्रतिष्ठा हुई है, जहां जहां विग्रह आराधना होती है। यह सारे विग्रहों को हमने एकत्रित किया। हमने नहीं किया यह पहले से ही उपलब्ध है और आप चाहते हो तो आप भी प्राप्त कर सकते हो। आप में से अगर कोई इच्छुक है तो आप हाथ उठा सकते हो। आपको भेजने की व्यवस्था करेंगे । फिर आप भी इनका दर्शन कर सकते हो या औरों को दर्शन दे सकते हैं। अपने इष्ट मित्रों को, अपने पड़ोसियों को, घर वालों को एकत्रित करो । आप यह 1 दिन का प्रदर्शन जीत भी सकते हो। हमने तो यह प्रदर्शन 4 दिन किया है। किसी फंक्शन पार्टी या बर्थडे पार्टी या किसी अवसर में उनको दर्शन दे दो। *दर्शन दो घनश्याम नाथ मोरी, अँखियाँ प्यासी रे।* तो वैसे भी भगवान दर्शन देते हैं। जब हमारी आंखें कैसी होती है? प्यासी होती है। प्यासी समझते हो? जब हम भूखे प्यासे हैं तो हम जल और पानी का महत्व समझते हैं । ऐसे प्यासे होते हैं, असली प्यास जब होती है तो फिर हम कुछ उपाय ढूंढते ही हैं। फिर हम जल को प्राप्त करते ही हैं। पी लेते ही हैं। ऐसे भूख प्यास होना भी अनिवार्य है । ताकि फिर हम दर्शन करेंगे । वैसे कई लोगो को भूख प्यास नहीं है । भगवान के दर्शन की कोई प्यास या कोई अभिलाषा नहीं है । जॉर्ज हैरिसन तो कह रहे थे कि उनको तो भगवान के दर्शन की प्यास थी। वह प्यासे थे । वह गाना गा रहे थे कि मैं भगवान को देखना चाहता हूं और भगवान के साथ रहना चाहता हूं, बड़ा ही प्रसिद्ध गीत है । आप उनका दर्शन करना चाहते हो ? आनंदनी चाहती है और कोई नहीं चाहता है या आपके पास हाथ नहीं है। चाहने से भी अच्छा है चाहना । चाहने से भी दर्शन होगा । तो कहीं लोग दर्शन करना चाहते नहीं इसलिए दर्शन करने के लिए कहीं आते-जाते नहीं है । भगवान सर्वत्र हैं। भगवान सब जगह है । तो मूर्ख क्या भगवान मंदिर में नहीं है? भगवान सर्वत्र हैं । भगवान मंदिर में भी है । शीला में भी हैं, पत्थर में भी हैं । भगवान शीला बने हैं। कुछ लोग आते हैं उन्हें कई बार देखा मंदिर के सामने रास्ते पर सामने आ जाते हैं और वही से दर्शन करते हैं और दर्शन करने से पहले वह देखते हैं कि हमको कोई देख तो नहीं रहा है । इधर उधर देखते हैं और जब कोई उनको देख ही रहा होता तो झट से दर्शन कर लेते हैं । उनको लगता है कि कोई देख लेगा तो उनको कहेगा धार्मिक कहीं का, धार्मिक, पुराना फैशन, भगवान का दर्शन करता है। हम इसके साथ व्यापार नहीं करेंगे, इत्यादि । हमारे देश के कई देशवासी अमेरिका और यूरोप गए। तो शुरुआत में छिपकर भगवान की आराधना और आरती उतारते थे छुप-छुपकर ताकि अमेरिकन और यूरोपियन को पता नहीं चले कि यह धार्मिक लोग हैं या हिंदू है । तो यह डर के मारे भी, सामाजिक दबाव कहो या समाज के कुछ ऐसे बंधन है। जो हमको दर्शन करने से दूर रखते हैं । हरि हरि !! फिर मंदिर में कोई आ भी गए तो भगवान के विग्रह तो है भगवान समक्ष है। लेकिन वह तो भगवान को देखते ही नहीं है। ऐसे आते हैं, भगवान सामने है और हाथ भी नहीं जोड़ेंगे, साक्षात दंडवत तो छोड़ दो। यह तो बहुत ज्यादा है साक्षात दंडवत। वह हाथ भी नहीं जोड़ेंगे। हरि हरि। हाथ जोड़ के खड़े भी हो जाएंगे और आंखें बंद कर लेंगे। आंख बंद करके रखेंगे और आंख बंद करके फिर उनकी जो मांग की जो सूची है, वह भगवान को पढ़कर सुनाएंगे। आपने वह तो दे दिया। आपने बीच पर घर तो दिया, लेकिन टेलीविजन नहीं दिया। वह तो दिया लेकिन वह नहीं दिया। तो वह अपनी सूची में से हटा देते है। जब भी वह आते हैं तब और आइटम सूची में जोड़ देते हैं और आंख बंद करके भगवान को सुनाते हैं। हे भगवान, हमें हमारी रोजी रोटी दीजिए । यह भगवान ! वह भगवान ! सूख संपत्ति घर आवे । कष्ट मिटे तन का । मसाज करो भगवान का । कष्ट मिटे तन का हमारा तो आंख खोलके भगवान का दर्शन और सौंदर्य का कुछ सराहना वगैरह नहीं होता है । ऐसा आंख बंद करके 1-2 मिनट में । कुछ निवेदन हो करते रहते हैं और भगवान सुंदर वगैरह की बात नहीं करते । अच्छा झूमर है, देखो झूमर कितना ! इनको विदेश से पैसा आता है ना इस्कॉन वालों को ऐसा सोचते हुए फिर लौटेंगे भी । हरि हरि !! तो विग्रह ने उनको कोई स्मरण तो नहीं दिया ,भगवान का स्मरण । विग्रह ने स्मरण नहीं दिया । विग्रह के दर्शन के लिए आए मंदिर में आए लेकिन उनका स्मरण ही नहीं किया उन्होंने और और क्या सोचते । विश्व भर के बारे में सोचते हैं लेकिन कृष्ण का छोड़के । हरि हरि !! तो हम लोग जब, यह प्रभुपाद सिखाया हमारे आचार्य परंपरा में सिखाया जाता है कि विग्रह स्वयं भगवान है । भगवान से भिन्न नहीं है, प्राण प्रतिष्ठा जो हुई है । प्राण की प्रतिष्ठा हुई है इस विग्रह में या यह विग्रह भगवान बने हैं । उत्तिष्ठोत्तिष्ठ गोविन्द उत्तिष्ठ गरुडध्वज । उत्तिष्ठ कमलाकान्त त्रैलोक्यं मङ्गलं कुरु ॥ 2 ॥ ( श्री वेंकटेश्वर सुप्रभातम् ) ऐसे भगवान है तो भगवान विश्राम करते हैं रात्रि को विश्राम करते हैं और दिन में भी विश्राम करते हैं भगवान तो इसलिए हम विग्रह को स्वयं भगवान के समान मानते हैं ऐसी हमको को शिक्षा दी जाती है । ऐसा प्रशिक्षण दिया जाता है इस्कॉन में की विग्रह स्वयं भगवान है । फिर भगवान को जगाते भी हैं ,जैसे यशोदा जगाती है कहो गोकुल में या नंदग्राम में । "उठी उठी गोपाला" अलग अलग भाषा में कोई अलग अलग गीत भी हो सकते हैं । उसी के साथ कृष्ण को हम जगाते हैं । फिर बाल भोग होता है । इसमें अधिकतर मिठाईयां होती हैं । यह क्यों ? ऐसा प्रभुपाद से पूछा गया तो प्रभुपाद कहे की प्रातः काल में बाल कृष्ण, बच्चा है बालक है तो इसलिए उनको मिठाइयां अच्छी लगती है । फिर मैं ध्यान के समय वह बड़े हो गए, फिर राज भोग फिर आप हलवा, पूरी सब खिलाओ । लेकिन प्रातः काल में बाल भोग मिष्ठान बालक जो है और दोपहर का भोजन राजा जैसा राजभोग और फिर भगवान का अभिषेक होता है, अभिषेक मतलब स्नान । भगवान का स्नान होता है और पंढरपुर में यहां जब स्नान होता है भगवान का अभिषेक हो रहा है तो बीच में ही, बालक जो है उनका माखन चोरी का समय होता है माखन चोरी का । मेरा माखन कहां है ? माखन चाहिए ! माखन । "मोहे माखन भावे" "मेवा पकवान कहती तू" "रुचि नहीं आवे" मैया से कहते । यह सारा 56 भोग और क्या मेवा पकवान खिलाती रहती हो ! मुझे यह अच्छा नहीं लगता है । आप मुझे माखन खिलाया करो तो यहां पांडुरंग का अभिषेक हो रहा है तो बीच में ही क्या करते हैं ? अभिषेक को रोक देते हैं । उनको माखन खिलाते हैं । माखन का बड़ा गोला एक आधा किलो या 1 किलो ऐसा बड़ा और उनको खिलाते हैं । जब खिलाते हैं उसी समय एक विशेष छोटी आरती भी कर देते हैं उस रूप का दर्शन कराते हैं जो माखन खा रहे हैं माखन चोर तो फिर भगवान का श्रृंगार होता है । नए कपड़े हर दिन । रात का कपड़ा भी होता है और मंदिर में होता है क्या ? बहुत सारे कपड़े ! रात के कपड़े । हो सकता है पुजारी के पत्नी का कई सारे कपड़े हैं । पुजारी के जो पत्नी है उसके तो दर्जन साड़ियां हैं । बनारसी साड़ी यहां के साड़ी, वहां की साड़ी लेकिन जिस विग्रह की पूजा करते थे राधा रानी के लिए ऐसा कई खादी का वह भी सीधा-साधा और वह बदलते हैं 1 हफ्ते में या 1 महीने में । उनके पत्नी साड़ी हर दिन बदलते हैं । राधा रानी के साड़ी बदलते नहीं । राधा रानी को साड़ी नहीं देंगे । अपने धर्म पत्नी को साड़ी देंगे । हरि हरि !! तो यह समझ नहीं है कि यह विग्रह भगवान है, भगवान यहां पर है । इसलिए मंदिर में प्रवेश करते ही श्रीमान उनके समक्ष प्रणाम करो, नमस्कार करो । मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु । मामेवैष्यसि सत्यं ते प्रतिजाने प्रियोऽसि मे ॥ ( भगवद् गीता 18.65 ) अनुवाद:- सदैव मेरा चिन्तन करो, मेरे भक्त बनो, मेरी पूजा करो और मुझे नमस्कार करो । इस प्रकार तुम निश्चित रूप से मेरे पास आओगे । मैं तुम्हें वचन देता हूँ, क्योंकि तुम मेरे परम प्रियमित्र हो । हम प्रवेश करते हैं, भगवान को नमस्कार करते हैं तो मंदिर से दुबारा कहीं बाहर दुबारा नमस्कार करते हैं । बीच में भी और कई बार नमस्कार होते ही हैं । इससे एक व्यक्ति कृष्ण भावना भावित होता है । यही तो कृष्ण भावना भवित है । हम कृष्ण भावना भावित होते हैं । एक तो विग्रह के रूप में यहां कृष्ण है इस बात का स्मरण रखना इस बात को समझना इसी से हम कृष्ण भावना भावित होते हैं । विग्रह तो है लेकिन कौन परवाह करता है । है या नहीं है कोई फर्क नहीं पड़ता या हम विग्रह आराधना कर रहे हैं क्योंकि हमको पिता मिलता है । कई बार अमीर लोग अपने घरों में रखते हैं कोई पुजारी को और उसको मासिक वेतन मिलता है तो वेतन के लिए पूजा करता है वह बेचारा । वह भी कृष्ण भावना भावित नहीं है । तो हम कैसा हमारा लेनदेन विग्रह के साथ है ? क्या सोचते हैं हम विग्रह के संबंध में ? तो विग्रह भगवान है कि नहीं यह वह और हे भी तो फिर उनसे हम क्या कहेंगे ? क्या मांगेंगे ? वैसे स्तुति करनी चाहिए भगवान की । इसलिए कहा है विग्रह की आराधना के समय आरती मतलब आरती उतारना करते ही है । आरती को गाना भी होता है जिस आरती में भगवान की स्तुति भगवान का नाम, रूप, गुण, लीला का वर्णन होता है । आरती भी और साथ में ... हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे । हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ॥ यह कीर्तन होना चाहिए । विग्रह के आराधना के साथ यह ... हरेर्नाम हरेर्नाम हरेर्नामैव केवलम् । कलौ नास्त्येव नास्त्येव नास्त्येव गतिरन्यथा ॥ ( बृहन्नारदीय पुराण ) अनुवाद:- कलह और दम्भ के इस युग में मोक्ष का एकमात्र साधन भगवान् के पवित्र नाम का कीर्तन करना है । कोई दूसरा मार्ग नहीं है । कोई दूसरा मार्ग नहीं है । कोई दूसरा मार्ग नहीं है । हरि नाम का कीर्तन भी होना चाहिए । ऐसे जीव गोस्वामी और आचार्यों का भी यह जोर संस्तुति दी गई है, नहीं तो आप ने की हुई विग्रह आराधना यह संपूर्ण नहीं है या आप तमोगुण में कर रहे हो आरती । तो कई मंदिरों में हमारे हिंदू मंदिरों में जो पुजारी होता है, कोई गाने के लिए होता ही नहीं है तो फिर वह एक मशीन होती है । मशीन ही घंटा बजाती है, मशीन ही क्या क्या करती है मशीन ! बटन को दबाओ और इतने जोर जोर से घंटा बजता है अलग-अलग नाद होते है और उसमें भगवान का गुणगान होता ही नहीं है । वे इस प्रकार का आराधना या आरती हमारे देश में होते हैं । आपने देखा है कि नहीं ? वृंदावन में भी है या हरिद्वार में है ही और यहां वहां हर जगह, जम्मू कश्मीर से कन्याकुमारी तक । हमने भी यात्रा किए हैं तो हमने कई मंदिरों में, पुजारी अकेला होता है तो आरती शुरू करने से पहले ही शुरू हो जाता है । मशीन में सब बजता रहता है । शंख बाजे घण्टा बाजे , बाजे करताल मधुर मृदंग बाजे परम रसाल ।।५ ।। अनुवाद:- शंख , करताल एवं मृदंग की मधुर ध्वनि सुनने में अत्यन्त प्रिय लग रही है । ( गौर आरती, भक्ति विनोद ठाकुर ) सारे वाद्य बजते एक ही साथ । वह सब ऐसा मशीन खरीद के लाते हैं और पुजारी भी रखा है किराए का पुजारी है । हरि हरि !! और मंगल आरती में फिर उठता भी नहीं है । भगवान को जगाना चाहिए प्रातः काल में मंगल आरती के समय और मंगल आरती क्यों करते हैं ? वही समय है भगवान के जगने का वही समय है । इसीलिए हम विग्रह को भगवान का जगने का वही समय है मतलब, गोकुल में या नंदग्राम उनके जगने का, या जगते नहीं तो जगाया जाता है । यशोदा आती है जगाने के लिए तो मंगल आरती करते हैं ब्रह्म मुहूर्त में क्यों करते हैं हम ? वही भगवान का जगने का वही समय है और फिर कृष्ण धीरे-धीरे तैयार हो जाते हैं । यशोदा तैयार करती है कृष्ण को । स्नान हुआ यह हुआ, श्रृंगार हुआ । इतने में आ गए ग्वाल बालक । ग्वाल बालक आ गए अपने अपने गाय बछड़े लेकर । ऐ ! कृष्ण तुम देर हो गए हो । क्या हुआ ? तुम माया में हो । जल्दी करो । यह सब अष्टक कालीन लीला के अंतर्गत भगवान का नित्य लीला की बात है । नित्य लीला में भगवान प्रातः काल में उठते हैं, ब्रह्म मुहूर्त में उठते हैं तो हमको भी उठाना जगाना होगा भगवान को उसी समय । इस तरह हमारा जीवन भी थोड़ा भगवान केंद्रित, विग्रह केंद्रित हो जाता है । भगवान को जगाना फिर हम जगते हैं, हमें तो जगना होगा । हरि हरि !! भोजन करना है तो भोग लगाया ? कृष्ण पूछेंगे पहले । भगवान को भोग लगाया ? हां हां । बाल रोग लगाया या राजभोग, फिर हम प्रसाद लेते हैं इत्यादि इत्यादि । कृष्ण के विग्रह जीवन के केंद्र में, जीवन हम जीते हैं । और जो 5 अंग है, भक्ति के तो 64 आइटम्स बताया गया है भक्ति के, आइटम्स कहो या प्रकट कहो । 64 नहीं तो फिर नवविधा भक्ति करो । नवविधा भक्ती नहीं तो फिर कम से कम 5 प्रकार की भक्ति करो ऐसे भक्तिरसामृतसिंधु में सीखाया गया है समझाया है । तो 5 जो भक्ति के प्रधान अंग है उसमें क्या क्या है ? साधु स है भक्तों का संग । नोट करो याद रखो पहले बताया है आपको । आप भूलते रहते हो । हां गायत्री ? तो साधु संग और भागवत श्रवण कहा है 2 नंबर । नाम संकीर्तन 3 नंबर और धाम वास नंबर 4 और विग्रह आराधना नंबर 5 तो यह जो महा साधन । यह महा साधन कहा है । आप लोग साधक हो आप लोग साधना करते हो इसलिए साधक कहा जाता है । इसी हिसाब से आप साधु भी हो जाते हो । साधु साधना करते हैं इसीलिए उनको साधक कहा भी जाता है तो कौन सी साधना है तो साधना के 5 प्रधान साधना है । अंतिम प्रकार है शायद मैंने कहा कि नहीं ? वह विग्रह आराधना है, भगवान की आराधना । घर में विग्रह की आराधना, साधारण भी रख सकते हैं अगर घर में है तो । यहां तक की फोटोस भी रखा जा सकता है । गौर निताई का फोटो भी रखो, तस्वीर रखो । पंचतत्व का और कुछ वेदी होना चाहिए घर में । घर में वेदी होना चाहिए । वह घर का केंद्र वही है वेदी । जिस घर में ऐसा वेदी नहीं देवघर या कृष्ण घर नहीं है तो घर तो स्मशान भूमि है या भोग भूमि जरूर है । क्योंकि हम उस देश के वासी हैं जो तपोभूमि के लिए प्रसिद्ध है । हमारी भूमि भारत भूमि तपोभूमि । भोग भूमि तो पाश्चात्य देश भोग के लिए प्रसिद्ध है । फिर भोग से होते हैं रोग आपको बताए ही हैं । फिर वेदी में अर्पित करेंगे तो उसी तरह से । ठीक है । ॥ हरे कृष्ण ॥

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