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*जप चर्चा* *पंढरपुर धाम से* *02 अक्टूबर 2021* हरे कृष्ण एकादशी के दिन कुछ भक्त जुड़ ही जाते हैं। अन्य दिनों में तो वे जप करना भूल ही जाते हैं या हमारे साथ जप नहीं करते। एकादशी के दिन संख्या बढ़ जाती है। आप का स्वागत है! वेलकम! आजकल आप श्रवण के साथ विग्रहों के दर्शन भी कर रहे हो। वैसे इस्कॉन मंदिरों में श्रृंगार दर्शन तो प्रतिदिन होता है। आप तो एक ही विग्रह के दर्शन करते हो लेकिन आप यहां अपने कंफर्ट जोन में बैठे-बैठे संसार भर के विग्रहों के दर्शन कर रहे हो। आपको अच्छा लग रहा है? क्या आप प्रसन्न हैं? कई लोगों ने हाथ ऊपर किए हैं। थाईलैंड से भी हाथ ऊपर उठ रहे हैं। रशिया, मोरिशस इत्यादि से भी उठ रहे हैं। मैं कहना प्रारंभ कर ही चुका हूं, कुछ समय के लिए मैं स्वयं को थोड़ा कंट्रोल करूँगा। आज मैं थोड़े समय के लिए ही बोलूंगा जिससे फिर आप भी बोल सकें। हमने वादा किया था कि जो कल नहीं बोल पाए वह आज बोल सकते हैं। अपने हाथ अथवा इंटरनेट के हैंड्स उठाइए। वैसे भी शो इज नॉट कंपलीट। यह तो इस्कॉन का वैभव है। भगवान के विग्रह इस्कॉन का वैभव है। ऐसे इतने विग्रह आपको किसी संघ, संस्था या संगठन में नहीं मिलेंगे। कुछ तो बदमाश होते हैं। मायावादी होते हैं, उनका भगवान के रूप में विश्वास ही नही होता। अधिकतर देवी देवता को ही लेकर बैठे रहते हैं। *कामैस्तैस्तैर्ह्रतज्ञानाः प्रपद्यन्तेऽन्यदेवताः | तं तं नियममास्थाय प्रकृत्या नियताः स्वया ||* ( श्रीमद भगवतगीता ७.२०) अनुवाद:- जिनकी बुद्धि भौतिक इच्छाओं द्वारा मारी गई है, वे देवताओं की शरण में जाते हैं और वे अपने-अपने स्वभाव के अनुसार पूजा विशेष विधि-विधानों का पालन करते हैं | देवता के पुजारी कामी होते हैं। अपनी कामवासना की पूर्ति के लिए भजन्ते ईशदेवता: । यह सब कृष्ण कह रहे हैं, हमें जिम्मेदार नहीं ठहराना। यदि आपकी कोई शिकायत हो तो कृष्ण के पास पहुंचा दो। यदि कोई जानता है तो कृष्ण जानते हैं। कृष्ण ज्ञानवान हैं। उनकी सारी व्यवस्था है। देवी देवता के पुजारी, देवी देवता के आराधना करते रहते हैं। मायावादी तो स्वयं भगवान ही बनना चाहते हैं, जोत में जोत मिलाना चाहते हैं। उनके लिए विग्रह की आराधना का कोई प्रश्न ही नहीं है। यदि वे विग्रह की आराधना करते भी हैं, तो उनकी समझ सही नही है। वे विग्रह तत्व को नहीं जानते। वे भगवत तत्व/विग्रह तत्व को कहीं जानते। क्रिश्चियन को पता ही नहीं है, उनके अनुसार गॉड कोई बूढ़ा व्यक्ति है, दाड़ी वाला जो हिडिंग इन द बुश ( मतलब पेड़ पौधे) हैं। उन्होंने अब्राहम को देखा, इतना ही दर्शन किया। आप कौन हो, हु आर यू गॉड, हाऊ आर यू गॉड? तब भगवान (गॉड) ने उत्तर दिया, 'आई एम व्हाट आई एम।' मैं हूं, जो भी हूं मैं। ज्यादा कुछ खुलासा नहीं किया, स्पष्टीकरण नहीं किया, न तो दर्शन दिया। क्रिश्चियन लोग मैन इज मेड इन इमेज ऑफ गॉड कहते हैं जोकि सत्य है। मैन इज मेड इन द इमेज ऑफ गॉड। भगवान ने मनुष्य को कैसे बनाया ? जैसे कि वे स्वयं हैं। गॉड की इमेज है, गॉड का रूप है लेकिन उनको पता नहीं क्यों कैसा रूप है। भगवान कुछ हल्के से बूढ़े हैं, दाढ़ी वाले हैं। कहते हैं कि भगवान ने एक पहाड़ के ऊपर से उनको कभी ऐसा हल्का सा दर्शन दिया। जो बौद्धपंथी होते हैं उनका शून्यवाद चलता है। मायावादी निर्विशेषवादी होते हैं, उनके अनुसार भगवान का कोई विशिष्टय नहीं है अर्थात भगवान कोई विशेष नहीं है। भगवान का कोई रूप नहीं है, न ही भगवान का कोई सौंदर्य है। यह मायावादी हुए। बौद्धपंथीय, उनका शून्यवाद है, वह कहां से भगवान के विग्रह की आराधना करेंगे। वैसे वे थोड़ा सा बुद्धदेव की आराधना करते हैं। हमने बर्मा में भगवान के चरण भी उनके मंदिर में देखें। वे कुछ जानते हैं, कुछ नहीं जानते हैं। हरि! हरि! निश्चित ही वे कृष्ण को नहीं जानते। *एते चांशकलाः पुंसः कृष्णस्तु भगवान् स्वयम् । इन्द्रारिव्याकुलं लोकं मृडयन्ति युगे युगे ॥* (श्रीमद भागवतम 1.3.28) अर्थ:- उपर्युक्त सारे अवतार या तो भगवान् के पूर्ण अंश या पूर्णांश के अंश ( कलाएं ) हैं , लेकिन श्रीकृष्ण तो आदि पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् हैं । वे सब विभिन्न लोकों में नास्तिकों द्वारा उपद्रव किये जाने पर प्रकट होते हैं । भगवान् आस्तिकों की रक्षा करने के लिए अवतरित होते हैं । वे न तो कृष्ण के विभिन्न अवतारों को जानते हैं और न ही मानते हैं कि दस अवतार हैं या *अद्वैतमच्युतमनादिमनन्तरूप माद्यं पुराणपुरुषं नवयौवनञ्च ।* *वेदेषु दुर्लभमदुर्लभमात्मभक्ती गोविन्दमादिपुरुषं तमहं भजामि ॥* (ब्रह्म संहिता 5.33) अनुवाद - जो अद्वैत, अच्युत, अनादि , अनन्तरूप, आद्य ,पुराण - पुरुष होकर भी सदैव नवयौवन - सम्पन्न सुन्दर पुरुष हैं , जो वेदों के भी अगम्य हैं, परन्तु शुद्धप्रेमरूप आत्म - भक्तिके द्वारा सुलभ हैं , ऐसे आदिपुरुष गोविन्दका मैं भजन करता हूँ ॥ भगवान के अनन्त रूप हैं। *परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् । धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ||* ( श्रीमद भगवतगीता ४.८) अनुवाद:- भक्तों का उद्धार करने, दुष्टों का विनाश करने तथा धर्म की फिर से स्थापना करने के लिए मैं हर युग में प्रकट होता हूँ | भगवान हर युग में प्रकट होते हैं, अलग-अलग रूपों में प्रकट होते हैं, केशव धृत वामन रूप, केशव धृत मीन शरीर, केशव धृत रामशरीर अर्थात केशव ने राम शरीर धारण किया इत्यादि। यह दस अवतार गीत गोविंद में दशावतार स्तोत्र में वर्णित है। यह जो तथाकथित अलग-अलग धर्म है, उनको ज्ञान नहीं है, उनका भगवान के रूप में विश्वास नहीं है, हमारे देश में मायावादी हैं ही, निराकार या निर्गुणवादी भी बहुत बड़ी संख्या में है। अधिकतर जो हिंदू है, वे ऐसे ही हैं या तो वे देवी देवता के पुजारी हैं या मायावादी हैं या निराकार, निर्गुणवादी हैं, भौतिक वादी तो हैं ही। यह सारे बॉलीवुड या हॉलीवुड के हीरो के पीछे लगे रहते हैं। उन हीरो के फोटोग्राफ इनके घरों में, उनके घरों की दीवारों पर लगे होते हैं या वे अपने पर्स में भी अपने हीरो का फोटो रखते होंगे। वे उन्हीं की वरशिप करते हैं। ऐसी परिस्थिति में कृष्ण को जानकर, पहचान कर उनके विग्रह का जो सिद्धांत है अथवा तत्व है, उनकी स्थापना करना यह इस्कॉन कर रहा है। यह हमारी परंपरा में होता आ रहा है। सृष्टि के प्रारंभ से विग्रह की आराधना हो रही है। पृथु महाराज जोकि भगवान के शक्त्यावेश अवतार हुए, उन्होंने विग्रह की आराधना की, पृथु महाराज विग्रह आराधना के लिए प्रसिद्ध है। हमारी परंपरा में श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु विग्रह की आराधना करते रहे। वे प्रतिदिन जगन्नाथपुरी में जगन्नाथ जी का दर्शन करते थे। हरि! हरि! तत्पश्चात जब वे वृंदावन गए, केशव देव, बलदेव, हरिदेव गोविंद देव के दर्शन किए। भारत का भ्रमण किया तब उन्होंने बाला जी का दर्शन, यहां दर्शन, वहां दर्शन किया। छठ गोस्वामी वृंदों ने विग्रह की आराधना की, विग्रह की स्थापना की। चैतन्य महाप्रभु ने आदेश दिया। मंदिरों का निर्माण करो। विग्रहों की आराधना करो और वृंदावन का गौरव बढ़ाओ। उसी परंपरा में श्रील प्रभुपाद, इस्कॉन मंदिर मतलब भगवान का घर जहां भगवान विग्रह के रूप में रहते हैं। हरि! हरि! एक व्यक्ति बंगाल के थे। उनका कोई अतपत्य नहीं था। उनके कोई बाल बच्चे नहीं थे। हो भी नहीं रहे थे, उन्होंने विग्रह को ही अपना पुत्र मान लिया। अडॉप्टेड द डीटी ऑफ लार्ड एस देयर सन। वे पुत्र के रूप में उनकी देखरेख या देखभाल करते थे। उन्होंने अपनी सारी प्रॉपर्टी अथवा संपत्ति विग्रह के नाम से कर दी। विग्रह के नाम से सारे कागजात बनाएं, सारी प्रॉपर्टी। क्या आप में से कोई तैयार है?, हम लोग कहते हैं कि यह तेरे बाप का थोड़े ही है जबकि जवाब तो ये है कि हमारे बाप का ही है। वो बाप है विठोबा। भगवान ही सबके बाप हैं, हमारे बाप की ही सारी प्रॉपर्टी है। इस गृहस्थ ने सारी सम्पति विग्रह के नाम से कर दी। जब वे नहीं रहे, उनकी मृत्यु हुई। उनका अंतिम संस्कार भगवान के विग्रह ने किया, भगवान के विग्रह साथ में गए। उनके हाथों से उनके करकमलों से सारे अंतिम संस्कार भी करवाए। ऐसी श्रद्धा, भक्ति विश्वास उस बंगाल के गृहस्थ में थी। हरि! हरि! भगवान विग्रह के रूप में हमें केवल दर्शन ही नहीं देते, हम उनको नमस्कार भी कर सकते हैं। वे हमें सेवा का अवसर देते हैं। हम उनका श्रृंगार कर सकते हैं। जैसे यशोदा श्रृंगार करती है या यशोदा स्नान करवाती है वैसे ही हम भी भगवान का अभिषेक कर सकते हैं। भगवान के लिए हमारे इस्कॉन मंदिर में प्रतिदिन कुछ माताएं आती हैं, प्रभु जी आते हैं लेकिन अधिकतर माताएं आती हैं और कई घंटों तक माला बनाती रहती हैं। वो माला कृष्ण को पहनाई जाती है। यह भगवान की सीधी सेवा है या कुछ माताएं या पुरुष भी आते हैं विग्रह की आराधना करते हैं *श्रीविग्रहाराधन-नित्य-नाना।श्रृंगार-तन्-मन्दिर-मार्जनादौ। युक्तस्य भक्तांश्च नियुञ्जतोऽपि वन्दे गुरोः श्रीचरणारविन्दम्।।* ( गुर्वाष्टक 3) अर्थ:- श्रीगुरुदेव मन्दिर में श्री श्रीराधा-कृष्ण के अर्चाविग्रहों के पूजन में रत रहते हैं तथा वे अपने शिष्यों को भी ऐसी पूजा में संलग्न करते हैं। वे सुन्दर सुन्दर वस्त्र तथा आभूषणों से श्रीविग्रहों का श्रृंगार करते हैं, उनके मन्दिर का मार्जन करते हैं तथा इसी प्रकार श्रीकृष्ण की अन्य अर्चनाएँ भी करते हैं। ऐसे श्री गुरुदेव के चरणकमलों में मैं सादर वन्दना करता हूँ। हमारी इस्कॉन बीड, इस्कॉन नोएडा, इस्कॉन सोलापुर मंदिर के भक्तों के साथ साथ कोंगरीगेशन (संघ) के भक्त भी वहां पहुंचते हैं और भगवान की आराधना करते हैं, श्रृंगार करते हैं, भोग बनाते हैं। यह सारी सेवा डायरेक्ट सेवा है। यू आर डायरेक्ट सर्विग टू लार्ड। *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।* यह भी तो प्रत्यक्ष सेवा है। लेकिन थोड़ा समझने में कठिन जाता है कि भगवान के नाम से हम किस तरह से डायरेक्ट सेवा करते हैं किन्तु जब हम विग्रह की आराधना करते हैं, दयालु चैतन्य, थाईलैंड में हमारे समक्ष सेवा कर रही हैं, आप भी देख सकते हो। हरि बोल! गौरांग! यदि आपका बड़ा स्क्रीन है तो आप देख सकते हो। उनकी धर्म पत्नी भी आ गयी। विग्रह की आराधना चल रही है, यह प्रत्यक्ष सेवा है। यह सीधे भगवान की सेवा करने का अवसर प्राप्त होता है। ओके! मैं अभी रुक जाता हूं और अपनी वाणी को विराम देता हूं। मेरी वाणी रुकने का नाम तो नहीं लेती लेकिन क्या करें, आप भी कुछ बोलना चाहते हो। ठीक है। हरे कृष्ण!

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