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जप चर्चा पंढरपुर धाम 30 सितंबर 2021 857 स्थानों से भक्त जप कर रहे हैं । हरि हरि !! हरे कृष्ण ! आभार माने जा रहे हैं । आपको हमने कृष्ण को दिखाया । कृष्ण का दर्शन कराया । नाम भी दिया, नाम तो दिया ही है जब दीक्षा होती है । श्याम कांत ! तुम्हारी भी दीक्षा हुई तो नाम तो देते हैं । नाम के साथ फिर भगवान का रूप भी देते हैं या बताते हैं कि आप नाम जप करो ताकि भगवान की रूप का दर्शन होगा और नाम फिर नाम लेने से भगवान के काम भी पता चलता है । भगवान के लीलाओं का पता चलता है और फिर नाम से धाम तक । नाम से कहां तक ? धाम तक । यह नाम हमको धाम में पहुंचा देता है । हरि हरि !! तो शुरुआत होती है नाम से और नाम से नामी तक हम पहुंचते हैं । नाम से धाम कहो या नाम से नामी कहो । यह समझते हो ना नामी ? ऐसे ऐसे नाम के नामी । नामी मतलब व्यक्ति । जिनका नाम कृष्णा है । नाम नामी । जैसे धन धनी होता है ना धन-धनी । आप जानते हो धन । जिसके पास धन है जिसका धन है उसको धनी कहते हैं । काम काम वासना है तो काम में तो फिर जो काम से कामी होता है । यह कामी है । मैं समझा रहा हूं आपको नाम और नामी । कितना अच्छा होता कि हम इसको समझ ही जाते नाम नामी तो नाम से नामी तक । यह सारे हम दर्शन कर रहे थे । पूरा विश्व भर का भ्रमण सिर्फ केवल $8 में । ऐसा कोई गीत भी पहले चलता था । विश्व भर का भ्रमण $8 डॉलर में । हम सारे संसार का भ्रमण किए । कहां कहां गए ? मोहन प्रिया थक गई ! संसार का यात्रा करके भ्रमण करके थक गई तो संसार की यात्रा हुई । अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, इंडिया, यूरोप भर के कई देशों में हम गए । ब्राजील में भी और भगवान के दर्शन किए हमने वैसे $8 भी नहीं । $8 खर्च भी नहीं करने पड़े आपको । विश्व भर का भ्रमण $8 डॉलर में । घर बैठे बैठे फ्री में आपने यात्रा की । ठीक है श्याम प्रेयशी ? घर में बैठो और पूरे विश्व भर में जाओ । यह कृष्ण अब सारे संसार भर में जाकर बैठे हैं । यह कृष्ण कृपा मूर्ति श्रील प्रभुपाद की जय ! तो परंपरा की ओर से परंपरा की आचार्यों की ओर से श्रील प्रभुपाद ने और समय आ चुका था तो श्रील प्रभुपाद, तैयारी हो रही थी श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु के समय से ही तैयारी हो रही थी या भविष्यवाणी तो हो ही चुकी थी मेरे नाम का प्रचार पृथ्वीते आछे यत नगर आदी ग्राम । सर्वत्र प्रचार होइबे मोर नाम ॥ ( चैतन्य भागवद् अंत्य 4.126 ) अनुवाद:- इस पृथ्वी के प्रत्येक नगर तथा ग्राम में मेरे नाम का प्रचार होगा । संसार भर में पृथ्वी पर सर्वत्र नगर आदि ग्रामों में मेरे नामों का प्रचार होगा तो केवल नाम का प्रचार ही नहीं होगा या जहां होता है नाम का प्रचार वहां तो फिर भगवान पहुंची जाते हैं वहां विग्रह पहुंच जाएंगे और वहां फिर तो श्रील प्रभुपाद, यह बालक जब बड़ा होगा कुंडली में लिखा हुआ था 108 मंदिरों का निर्माण करेगा तो श्रील प्रभुपाद ने अपने जीवन में 108 मंदिरों का निर्माण कीया और मंदिर तो फिर दुर्गा, काली, गणेश के नहीं बनाए । वैसे भारत में मंदिर में जाओ तो मंदिर के जो ऑल्टर है वेदी पर सुपर बाजार होता है । कितने सारे विग्रह होते हैं तो फिर आपके पसंद आपकी चॉइस है । उसमें से आप चुन सकते हैं तो वैसे शिवजी काहे ही हैं महादेव ने कहा है ... आराधनानां सर्वेषां विष्णोराराधन परम् । तस्मात्परतरं देवि तदीयानां समर्चनम् ॥ ( चैतन्य चरितामृत मध्यलीला 11.31 ) अनुवाद:- ( शिवजी ने दुर्गा देवी से कहा 🙂 हे देवी , यद्यपि वेदों में देवताओं की पूजा की संस्तुति की गई है , लेकिन भगवान् विष्णु की पूजा सर्वोपरि है । किन्तु भगवान् विष्णु की सेवा से भी बढ़कर है उन वैष्णवों की सेवा , जो भगवान् विष्णु से सम्बन्धित हैं । हे देवी ! पार्वती को बता रहे हैं, आराधना विष्णु की होनी चाहिए या विष्णु तत्व की होनी चाहिए या आप भगवान के अलग-अलग अवतारों की आराधना । हरि हरि !! तो श्रील प्रभुपाद वैसे ही किए । प्रचार होना था मेरे नाम का प्रचार होगा .. हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे । हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ॥ का प्रचार होगा तो आराधना होगी तो उनकी होगी राधा कृष्ण की आराधना होगी या फिर श्री श्री गौर निताई की जय ! गौर निताई की आराधना होगी क्योंकि गौर निताई कृष्ण बलराम है और जगन्नाथ बलदेव सुभद्रा की जय ! वहां भी जगन्नाथ है वहां भी बलदेव पर बीच में सुभद्रा है । इस प्रकार श्रील प्रभुपाद जो आराध्य है मतलब आराधना करने योग्य या शास्त्र में गीता भागवत शास्त्र में पुराणों की बात अलग है । फिर शिवपुराण भी है यह पुराण भी है वहां पुराण भी है, हरि हरि !! गीता भागवत यह सार ग्रंथ है और फिर साधु है शास्त्र है आचार्य है उनके अनुसार आराधना तो भगवान की होनी चाहिए और कई भी बात है । देवी देवता भगवान नहीं है या फिर ... हरेर्नाम हरेर्नाम हरेर्नामैव केवलम् । कलौ नास्त्येव नास्त्येव नास्त्येव गतिरन्यथा ॥ ( चैतन्य चरितामृत मध्यलीला 6.242 ) अनुवाद:- कलह और दिखावे के इस युग में उद्धार का एकमात्र साधन भगवान् के पवित्र नाम का कीर्तन है । इसके अतिरिक्त अन्य कोई साधन नहीं है , अन्य कोई नहीं है , अन्य कोई नहीं है । केवल हरि का नाम होना चाहिए तो देवी देवता हरि भी नहीं है और ब्रह्म की आराधना कैसे करोगे ? अहम् ब्रह्मास्मि । जिनको ब्रह्म का साक्षात्कार होता है वह तो खुद की आराधना करते हैं अहम् ब्रह्मास्मि । वह ब्रह्म में ही हूं । आराधना की प्रश्न ही नहीं है । आराधना में फिर आराध्य देव चाहिए । आराध्या देव हो फिर आराधक हो । आराधक आराधना करने वाला हो और आराधना की विधि हो तो अहम् ब्रह्मस्मि कहने वाले खत्म । आराध्य और आराधक, मैं ब्रह्म हूं मैं ब्रह्म हूं अहम् ब्रह्मस्मि ! सोहम सोहम हरे हरे हरे सोहम हरे सोहम सोहम सोहम हरे हरे शायद पहले आपको बताया था । वृंदावन में एक आश्रम है वहां जप होता है । कैसा जप ? हरे सोहम हरे सोहम सोहम सोहम । सोहम स-अहम, वह अहम समझ लो क्या कहा जा रहा है । 'सह' वह अहम वह भगवान में हूं । हरे सोहम ! राधा और मैं, मैं मैं राधा राधा तो यह है मायावादी । मायावादी कैसे होते हैं ? कल ही तो बताया था, मायावादी ! कृष्ण अपराधि । प्रभु कहे , " मायावादी कृष्णे अपराधी । " ब्रह्म ' , ' आत्मा , ' चैतन्य ' कहे निरवधि ॥ ( श्री चैतन्य चरितामृत मध्यलीला 17.129 ) अनुवाद:- श्री चैतन्य महाप्रभु ने उत्तर दिया , “ मायावादी निर्विशेषवादी लोग भगवान् कृष्ण के सबसे बड़े अपराधी हैं । इसीलिए वे मात्र ' ब्रह्म , ' आत्मा ' तथा ' चैतन्य ' शब्दों का उच्चारण करते हैं । ऐसा अपराध करते हैं मायावादी । अद्वैत वादी, निराकार वादी, निर्गुण वादी । ऐसे कई सारे नाम भी है या शंकराचार्य के अनुयाई बने हैं और इसका खूब प्रचार है संसार भर में, भारत भर में, हिंदू धर्म में । इसको चैतन्य महाप्रभु ने कहा है ... जीवेर निस्तार लागि" सुत्र कैल ब्यास । मायावादि-भाष्य शुनिले हय सर्वनाश ॥ ( चैतन्य चरितामृत मध्यलीला 6.169 ) अनुवाद:- श्रील व्यासदेव ने बद्धजीवों के उद्धार हेतु वेदान्त-दर्शन प्रस्तुत किया, किन्तु यदि कोई व्यक्ति शंकराचार्य का भाष्य सुनता है, तो उसका सर्वनाश हो जाता है । या भक्ति का नाश होगा । मायावती भक्ति नहीं करते । किसकी भक्ति करेंगें ? मैं ही ब्रह्म हूं । अद्वैत, अद्वैत मतलब 2 नहीं है । भगवान और हम अलग थोड़े ही हैं, मैं ही भगवान हूं । आपको भी मैं भगवान बना सकता हूं । हरि हरि !! मैं नहीं कुछ ऐसा प्रस्ताव रखते हैं तो सावधान । श्रील प्रभुपाद हमको ... कृष्ण से तोमार , कृष्ण दिते पारो , तोमार शकति आछे । ( श्रीवैष्णव कृपा - प्रार्थना ) अनुवाद:- आप मुझे कृपाकर कृष्णनामरूपी धनके प्रति श्रद्धाकी एक मूंदमात्र प्रदान कीजिए । क्योंकि श्रीकृष्ण आपके जदयके धन हैं । अतः आप कृष्णभक्ति प्रदान करने में समर्थ हैं । आपके पास कृष्ण है उस कृष्ण को हमें दे सकते हो । ऐसा शक्ति ऐसा सामर्थ्य ऐसी युक्ति, बुद्धि आपके पास है तो हमें कृष्ण दीजिए तो श्रील प्रभुपाद ने सारे संसार को कृष्ण को दिया भगवान को दिया तो जब हम इन सारे विग्रह का दर्शन कर रहे थे तो उस पर विचार आ रहा था । हरि हरि !! तो अब कृष्ण पहुंचे हैं सारे संसार भर में । अब वही रहेंगे भगवान और भी भगवान कई रूपों में या कई सारे विचार हैं तो श्रील प्रभुपाद केवल मूर्तियां विग्रह ही नहीं दिए फिर उनकी आराधना करना भी सिखाए । हरि हरि !! हरीभक्ति विलास नामक ग्रंथ सनातन गोस्वामी लिखे तो उसी के आधार पर अर्चना पद्धति भी सिखाए । विग्रह की आराधना कैसी करनी होती है ! और फिर आराधना के अंतर्गत कहो या भगवान की विग्रह की स्थापना होती है तो जो कृष्ण कहे हैं गीता में ... मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु । मामेवैष्यसि सत्यं ते प्रतिजाने प्रियोऽसि मे ॥ ( भगवद् गीता 18.65 ) अनुवाद:- सदैव मेरा चिन्तन करो, मेरे भक्त बनो, मेरी पूजा करो और मुझे नमस्कार करो । इस प्रकार तुम निश्चित रूप से मेरे पास आओगे । मैं तुम्हें वचन देता हूँ, क्योंकि तुम मेरे परम प्रियमित्र हो । यह बड़े सारगर्भित बातें कहे श्री कृष्ण भगवद् गीता में । चार कार्य करो और गीता प्रवचन का कुछ समापन ही होने जा रहा है तो कृष्ण कहे वह श्री कृष्ण इस बात को यह भी बात कहे की अब मैं गुह्यत्तम बात कहने जा रहा हूं कुछ गुह्य बातें कहीं हैं कुछ गुह्यत्तर बातें कहीं हैं अब गुह्यत्तम बात कहूंगा । आप सब समझते हो ना ? गुह्यत्तर-त्तम, गुड, बेटर, बेस्ट ऐसा अंग्रेजी में कहते हैं । गुड - गुह्य, बेटर - गुह्यत्तर, बेस्ट - गुह्यत्तम तो कृष्ण ने कहा कि मैं गुह्यत्तम बात बताऊंगा । इतने में आप सो रहे हो । उस वक्त और जगना चाहिए ना, गुह्यत्तम बात कहने जा रही हैं मुझे बहुत सतर्क रहना चाहिए । इसको मिस नहीं करना चाहूंगा मैं । गुह्यत्तम बात कही जा रही है तो कृष्ण कहे "मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां" तो विग्रह होने से, मूर्ति होने से विग्रह की आराधना करने से फिर हम यह जो चार कार्य भगवान ने करने के लिए कहे "मन्मना" मेरा स्मरण करो । हम थोड़ा विग्रह का दर्शन करते हुए भी जप कर रहे थे तो कुछ स्मरण करने में मदद हो रही थी कि नहीं ? ऐसे तो चार्ट में लिख भी रहे थे मेरे आभार भी मान रहे थे कि मैं आपको दर्शन दे रहा हूं । मैं कौन हूं ? हरि हरि !! मेरे हाथ में तो इंटरनेट वगैरह है, तो "मन्मना" भगवान का स्मरण भगवान की विग्रह का दर्शन उनके सौंदर्य का दर्शन करते हैं तो, हरि हरि !! स्मरण हो जाता है । "मन्मना" मेरा स्मरण करो तो विग्रह का स्मरण करते हम दर्शन करते हैं । जब दर्शन कर रहे थे तो मुझे कई सारी बातें और भी याद आ रही थी । मैंने बाल्टीमोर के अमेरिका की बाल्टीमोर के जगन्नाथ का दर्शन किया तो हर वर्ष बाल्टीमोर न्यूयॉर्क के पास है । बाल्टीमोर से न्यूयॉर्क लाते हैं जगन्नाथ के विग्रह को और मैंने कई बार कई साल न्यूयॉर्क में उस जगन्नाथ के समक्ष मैंने कीर्तन में करता था तो मुझे वो बाल्टीमोर के जगन्नाथ के विग्रह का दर्शन करते ही वो जगन्नाथ याद आ गए । 5th एवेन्यू मैनहैटन न्यूयॉर्क का एक क्षेत्र मैनहैटन कहते हैं ।उसमें एवेन्यू चलते हैं 5th एवेन्यू सबसे प्रतिष्ठित यह एवेन्यू । यह बाजार है मार्केटप्लेस है 5th एवेन्यू । लेकिन जब इस्कॉन की रथ यात्रा होती है तो सब ट्रैफिक बंद हो जाते हैं और जगन्नाथ के लिए सारे मार्ग खुला होते है । जगन्नाथ रथ में और हम सब रथ के समक्ष तो मैं कीर्तन करता था तो जगन्नाथ के लिए कई साल सालों के बाद साल कीर्तन करता था जगन्नाथ की खुशी के लिए तो मुझे याद आ रहा था । फिर भुवनेश्वर के जगन्नाथ को देखा । भुवनेश्वर के जगन्नाथ बलदेव सुभद्रा उनका श्रृंगार कुछ विशेष था । परंपरागत जैसे जगन्नाथपुरी में होता है । जगन्नाथ पुरी के पास ही है भुवनेश्वर तो इस्कॉन भुवनेश्वर में फिर श्रृंगार है सारे वस्त्र हैं मुझे जगन्नाथ पुरी के जगन्नाथ का स्मरण हुआ वह दर्शन जिस प्रकार कुछ श्रृंगार हुआ था तो उसी तरह से । फिर राधा गोपाल का दर्शन किया इस्कॉन आरवडे । फिर तो क्या कहना बहुत सारी यादें आ रही थी । जब प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव राधा गोपाल का अविस्मरणीय रहा आप में से कोई थे वहां ? गिरिराज गोवर्धन तो थे और भी कुछ थे तो इस तरह से तो यह जो विग्रह का दर्शन आप कर रहे थे इन विग्रहों के साथ मेरा कुछ संबंध है । मैंने उन मंदिरों में जाके दर्शन किए हैं या उनकी सेवा की है या मैंने उनकी आरती उतारी है तो "मन्मना" स्मरण हो रहा था भगवान का भी ।विग्रह का स्मरण हो रहा था फिर कृष्ण का स्मरण जगन्नाथ का फिर उनकी लीला का फिर ऐसे धीरे-धीरे स्मरण होता है रूप का दर्शन फिर उनका लीला का दर्शन फिर वह धाम का दर्शन या स्मरण लीला का स्मरण धाम का स्मरण जहां वे स्थित है तो "मन्मना भव मद्भक्तो" भगवान कहते हैं मेरे भक्त बनो तो हम जब आराधना करते हैं फिर हमारे इष्ट देव भी होते हैं । कुछ विग्रह उनके हम फिर हम को अधिक प्रिय होते हैं हमारा संबंध कुछ अधिक घनिष्ठ होता है । कोई भक्त राधा गोविंद के भक्त हैं "मन्मना भव मद्भक्तो" , कुछ तो बांके बिहारी के भक्त हैं तो कोई राधा गोपाल के भक्त हैं कोई राधा पंढरीनाथ के भक्त हैं तो इस तरह से अपनी-अपनी पसंद या भगवान आकृष्ट करते हैं हमको या ऐसी कोई परिस्थिति बन जाती हैं जब हम वहां रहते हैं और वहां के इस्कॉन के विग्रह का हम भक्त बनते हैं । 'भक्त समाज' उस विग्रह का भक्त समाज, राधा गोपीनाथ भक्त समाज चौपाटी में तो वह गोपीनाथ के भक्त बन जाते हैं तो "मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी" और तीसरी बार भगवान ने कहे 'मद्याजी' मत्-आजी ,मेरी अर्चना करो, मेरी आराधना करो कृष्ण कहे हैं तो विग्रह होने से आराधना आसान होता है । ब्रह्म ज्योति की आराधना कैसे करोगे? ब्रह्म ज्योति ! हां? फिर आप ब्रह्मज्योति को समझते हो तो आप समझ जाओगे कि कैसे आराधना करेंगे । ब्रह्म ज्योति की आराधना हो सकती है ? नहीं हो सकती, तो भगवान ने कहा मेरी आराधना करो । यह विग्रह होने से फिर हम उनकी आराधना करते हैं और चौथी बात है "मां नमस्कुरु" मुझे नमस्कार करो । ना तो ब्रह्म की आराधना हो सकती है । विश्वरूप की आराधना विश्वरूप, जो रूप भगवान ने अर्जुन को दिखाया । उनकी कैसे आराधना करोगे ? विश्वरूप को कैसे माल्यार्पण करोगे ? पहुंच सकते हैं उनके गले तक ? हां ? विश्वरूप ! यहां भी है वहां भी है और डरावना भी रूप है तो कैसे ? ताकि हम आराधना करें भगवान विग्रह के रूप में प्रकट होते हैं । भगवान ही होते हैं विग्रह बन जाते हैं । अर्च्ये विष्णौ शिलाधीगुरुषु । नरमतीः वैर्ष्णवे जाति-बुर्द्धि ॥ ( पद्म पुराण ) अनुवाद:- जो यह सोचता है कि मंदिर में पूजा योग्य देवता लकड़ी या पत्थर से बना है, जो वैष्णव गुरु को एक सामान्य इंसान के रूप में देखता है, या जो भौतिक रूप से एक वैष्णव को एक विशेष जाति से संबंधित मानता है, वह नरकी है, जो नरक का निवासी है। यह सब छोड़ देना चाहिए वैष्णव किसी जाति का होता है । इस जाति का उस जाति का जात पात समाप्त जब वैष्णव बन जाता है उसका कोई संबंध नहीं इस जाति से उस जाति से लेकिन ऐसा समझना इस जाति का उस जाति का फलाने देश का वह ऐसा है वैसा है । नहीं तो "वैर्ष्णवे जाति-बुर्द्धि" "गुरुषु । नरमतीः" गुरु एक साधारण व्यक्ति है "अर्च्ये विष्णौ शिलाधी" और जिस विग्रह की हम आराधना करते हैं वह शिला ही है, पत्थर ही है या कास्ट लकड़ी ही है या धातु ही है । ऐसा समझना वैसी समझ तो उस व्यक्ति को नरक में पहुंचाती है । नरकीय स्थिति को वो प्राप्त करेगा जो यह सोचता है की पत्थर ही है, लकड़ी ही है तो भगवान विग्रह के रूप में हमको ऐसा अवसर प्रदान करते हैं । उनका स्मरण हम कर सकते हैं । उनके भक्त हम बन सकते हैं । उनके आराधना कर सकते हैं । उनको नमस्कार कर सकते हैं । यह नमस्कार करना बहुत बड़ी विधि है "मां नमस्कुरु" । नामसङ्कीर्तनं यस्य सर्वपापप्रणाशनम् । प्रणामो दुःखशमनस्तं नमामि हरिं परम् ॥ ( श्रीमद् भागवतम् 12.13.23 ) अनुवाद:- मैं उन भगवान् हरि को सादर नमस्कार करता हूँ जिनके पवित्र नामों का सामूहिक कीर्तन सारे पापों को नष्ट करता है और जिनको नमस्कार करने से सारे भौतिक कष्टों से छुटकारा मिल जाता है । प्रणाम करो ऐसा भागवतम का जो अंतिम श्लोक है उसमें दो बातें करने के लिए कहे हैं भागवद् कहता है । 18000 श्लोक तो उसमें कहा है कि नाम संकीर्तन करना चाहिए । "नामसङ्कीर्तनं यस्य सर्वपापप्रणाशनम्" यह नाम संकीर्तन ... हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे । हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ॥ तो यहां भगवतम समाप्त होता है और बातें नहीं तो मेरा भगवान का नाम और ..."प्रणामो दुःखशमनस्तं नमामि हरिं परम्" स्कंद 12 अध्याय 13 श्लोक 23 , 12.13.23 आप समझते हो जब हम ऐसा कहते हैं ? तो उसमें, आप देखिएगा इस श्लोक को भी तो वहां हरि नाम का महिमा है । हरि नाम करने के लिए कहा है और क्या करने के लिए ? "प्रणामो" प्रणाम करने के लिए कहा है । "प्रणामो दुःखशमनस्तं" दुख 'करलो तुआर दुख नहीं' दुख नहीं होगा, दुख समाप्त होगा । एक उनका नाम लो और उनको नमस्कार करो । उनको प्रणाम करो भगवान को प्रणाम करो मतलब इसी के साथ हम ... सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज । अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा श्रुचः ॥ ( भगवद् गीता 18.66 ) अनुवाद:- समस्त प्रकार के धर्मों का परित्याग करो और मेरी शरण में आओ । मैं समस्त पापों से तुम्हारा उद्धार कर दूँगा । डरो मत । हरि हरि !! तो विग्रह को हम प्रणाम कर सकते हैं और ऐसा करने से फिर भगवान कहे हैं "मामेवैष्यसि" हरि हरि !! तो अब भगवान पहुंच गए हैं सदा के लिए वहां रहेंगे और इस प्रकार ... परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् । धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥ ( भगवद् गीता 4.8 ) अनुवाद:- भक्तों का उद्धार करने, दुष्टों का विनाश करने तथा धर्म की फिर से स्थापना करने के लिए मैं हर युग में प्रकट होता हूँ । भगवान धर्म की स्थापना करेंगे या करवाते हैं स्वयं भी करते हैं धर्म की स्थापना अपने भक्तों से करवाते हैं तो हम सब को भी धर्म की स्थापना का कार्य करना है । अपने जीवन में धर्म की स्थापना, अपने घर में धर्म की स्थापना, वर्णाश्रम धर्म की स्थापना और यथासंभव अपने पड़ोस में, घर घर जाओ और वहां धर्म की स्थापना करो तो श्रील प्रभुपाद ने चैतन्य महाप्रभु की ओर से हम को यह होमवर्क दिया हुआ है या कृष्ण का ही वर्क है कृष्ण का ही कार्य है "धर्मसंस्थापनार्थाय" । हरि हरि !! ठीक है मैं यही रुकता हूं । ॥ हरे कृष्ण ॥

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