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*जप चर्चा* *29 सितंबर 2021* *पंढरपुर धाम से* हरे कृष्ण ! 888 स्थानों से भक्त आज जप में सम्मिलित हैं हरि बोल ! गुड न्यूज़ जय गौड़िय वैष्णव एंड कंपनी हरि हरि! यहां वैसे भी हम जप करके भगवान का नाम लेकर भगवान का दर्शन करना चाहते हैं। अभिनत्वात नाम नामिनो , *नाम चिन्तामणि, कृष्ण चैतन्य रस विग्रह। पूर्ण,नित्य, सिद्ध, मुक्त, अभिनत्वात नाम नामिनो ।।* (चैतन्य चरितामृत मध्य लीला 17.133) अनुवाद : भगवान का नाम चिन्तामणि के समान है, यह चेतना से परिपूर्ण हैं। यह हरिनाम पूर्ण1, नित्य, शुद्ध तथा मुक्त है । भगवान तथा भगवान के नाम दोनों अभिन्न हैं । नाम और नामी अभिनत्वात ये तत्व की बात कहो, नाम नामी में भेद नहीं, लिख लो नाम नामिनो, आपको पता होना चाहिए। यह श्लोक बड़ा महत्वपूर्ण है। नाम चिंतामणि नाम को कहा है चिंतामणि, धाम भी है चिंतामणि, चिंतामणि धाम माता जी मॉरीशस में बैठी है और नाम चिंतामणि धाम चिंतामणि और चैतन्य इस नाम में चैतन्य है। चैतन्य इसमें एक्साइटमेंट है। चैतन्य जगेगा जड़ के स्थान पर चेतना आ जाएगी हमारा जीवन जो प्रतीक है। हम जड़ जगत से जुड़े हैं तो हम भी जड़ ही बन जाते हैं किंतु यह नाम जप करने से हममें चैतन्य आ जाता है। हमारी चेतना उदित होती है। जागृत होती है मतलब जीव ही जग जाता है। हम शरीर के स्तर पर कार्य करने के बजाए आत्मा के स्तर पर आ जाते हैं। आत्मा एक्टिव होता है आत्मा एक्टिवेटेड होता है। एक्टिवेटेड आत्मा इज मोटिवेटेड, मोटिवेशनल स्पीच आप सुनते हो तब आप मोटिवेट होते हो। आध्यात्मिक जीवन को स्वीकार करना मतलब हमारी आत्मा को जगाना है। आत्मा के स्तर पर सक्रिय होना है और यही है फिर जीव जागो ! जीव् जागो , मतलब जीव सोया हुआ है। जीव जागो *जीव जागो, जीव जागो, गौराचांद बोले।कोत निद्रा याओ माया-पिशाचीर कोले।।* *भजिनो बोलिया एसे संसारमितोरे।मुलिया रोहिले सुमि अविचार भोरे।।* *तोमारे लोइते आमि होइनु अवतार।आमि विना बन्धु आर के आछे तोमार।।* *एनेछि औषधी माया नाशिबारो लागि'। हरिनाम महामंत्र लओ तुमि मागि'।।* *भकतिविनोद प्रभु चरणे पोडिया। सेइ हरिनाम मंत्र छोइलो मागिया।।* १. भगवान् श्रीगौरचन्द्र पुकार रहे हैं, "उठो, उठो! सोती आत्माओं उठ! लम्बे काल से तुम माया पिशाचिनी की गोद में सो रहे हो। २. "इस जन्म-मृत्यु के संसार में आते समय तुमने कहा था "हे भगवन्! निश्चित् ही मैं आपका भजन करूँगा,' किन्तु अब तुम अपने उस वचन को भूल गये और अविद्या के अंधकार में डूब गये। ३. "केवल तुम्हारे उद्धार हेतु मैंने अवतार लिया है। मेरे अतिरिक्त आखिर तुम्हारा कौन मित्र है? ४. "मैं मायारूपी रोग को जड़ से उखाड़ने की औषधी लाया हूँ। अब प्रार्थना करते हुए यह हरे कृष्ण महामंत्र मुझसे ले लो।" ५. भक्तिविनोद श्रीगौरांग महाप्रभु के चरणों पर गिर पड़ते हैं और हरिनाम की भिक्षा माँगने के पश्चात् उन्हें महामंत्र प्राप्त होता है। वृंदावन में गाते हैं विभावरी शेष, रात अब बीत चुकी है। ब्रह्मा मुहूर्त हो चुका है निद्रा छाड़ि जीव उठो निद्रा त्यागो बोलो हरि हरि, मुकुंद मुरारी, राम कृष्ण हयग्रीव ! बोलो हरि हरि ! हरि हरि ! नहीं बोल रहे हो? आप बोलो हरि हरि! इस प्रकार हम जो मुर्दे बने हैं। शरीर तो मुर्दा ही है या प्रेत है आत्मा है। आत्मा सोया हुआ है, टेकेन बैक सीट और हमारा शरीर एक्टिव है। मन है बुद्धि है अहंकार है। चैतन्य रस विग्रह नाम चिंतामणि अर्थात नाम को कहा गया है नाम चिंतामणि "चैतन्य रस विग्रह" वह रस की मूर्ति है। अखिलरसामृत सिंधु, भगवान को कहा है अखिलरसामृत सिंधु, यह नाम ही भगवान है, नाम ही है चैतन्य रस विग्रह है रस के स्त्रोत हैं। रस कहो, फिर आनंद कहो, रस के विग्रह, फिर महारास भी है। वात्सल्य रस, सख्य रस, माधुर्य रस, दास्य रस, शांत रस, यह 5 प्रधान रस हुए 7 गौण रस भी हैं। इन सारे रसों के प्रधान अखिलरसामृत सिंधु या मूर्ति कहो, परसोनिफिकेशन ऑफ कृष्ण, जिसमें कृष्ण कृपा मूर्ति हम कहते हैं श्रील प्रभुपाद की जय ! कृष्ण कृपा की मूर्ति जन्मे, कृष्ण की कृपा की मूर्ति का दर्शन या प्रदर्शन किया। कृष्ण कृपा मूर्ति महान बनता है गुरुजनों में, आचार्यो में, इसीलिए उनको कहते हैं हिस डिवाइन ग्रेस ! फिर ऊपर वाला कृष्ण डिवाइन ग्रेस कृष्ण कृपा मूर्ति सेम थिंग तो ओरिजिनल तो कृष्ण ही हैं। कृपा, हे कृष्ण करुणा सिंधु हम कहते हैं यह नाम ही है "करुणा सिंधु" यह नाम ही है "दीनबंधु" यह नाम ही है "जगतपति" नाम चिंतामणि चैतन्य रस विग्रह फिर कहा है नित्य शुद्ध मुक्त पूर्ण यह सब नाम के विशेषण हैं आप समझते हो विशेषण होते हैं विशेष और विशेषण होता है एडजेक्टिव्स कहते हैं विशेष, विशेषण, कृष्ण विशेष हैं और कृष्ण के विशेषण हैं कृष्ण करुणा सिंधु हैं यह विशेषण हुआ दीनबंधु हैं यह विशेषण हुआ यह वैशिष्ठ हुआ वैशिष्ठ कृष्ण के हैं वैशिष्ठ हरि नाम के भी हैं। इसीलिए यहां कहा है यह पद्म पुराण का वचन है " नित्य शुद्ध पूर्ण मुक्त" अतः यह नाम कैसा है नित्य है भगवान स्वयं ही नित्य हैं उनके नाम भी नित्य हैं। किन्तु हमारे नाम तो, हम कभी गधे बन जाते हैं कभी बिल्ली बन जाते हैं कभी पेड़ बन जाते हैं नाम बदलते हैं पेड़ कहीं का, गधा कहीं का, कहीं कौवा कहीं का, कृष्ण तो कृष्ण ही रहते हैं सब समय क्योंकि सृष्टि के प्रारंभ में भी कृष्ण थे। क्रिएशन के लिए क्रिएटर चाहिए, किन्तु बुद्धू इतना भी नहीं समझते और मानकर बैठे हैं बिग बैंग थ्योरी, ऐसा कुछ एक्सप्लोजन हुआ और हो गई सृष्टि, एक्सप्लोजन से कंस्ट्रक्शन होता है कि डिस्ट्रक्शन होता है? बिगबैंग एक्सप्लोजन हुआ, उसी के साथ सृष्टि नहीं होती है उसी के साथ प्रलय होता है। *अवजानन्ति मां मूढा मानुषीं तनुमाश्रितम् | परं भावमजानन्तो मम भूतमहेश्र्वरम् ||* (श्रीमद भगवद्गीता 9.11) अनुवाद- जब मैं मनुष्य रूप में अवतरित होता हूँ, तो मूर्ख मेरा उपहास करते हैं | वे मुझ परमेश्र्वर के दिव्य स्वभाव को नहीं जानते | कृष्ण ने कहा है अवजानन्ति मां मूढा, मुझे वह नहीं जानते *येऽप्यन्यदेवताभक्ता यजन्ते श्रद्धयान्विताः | तेऽपि मामेव कौन्तेय यजन्त्यविधिपूर्वकम् ||* (श्रीमद भगवद्गीता 9.23) अनुवाद- हे कुन्तीपुत्र! जो लोग अन्य देवताओं के भक्त हैं और उनकी श्रद्धापूर्वक पूजा करते हैं, वास्तव में वे भी मेरी पूजा करते हैं, किन्तु वे यह त्रुटिपूर्ण ढंग से करते हैं अन्य भी हैं वे शरण लेते हैं देवताओं की, इसकी शरण लेते हैं उसकी शरण लेते हैं। नित्य भगवान नित्य हैं तो भगवान का नाम भी नित्य है नित्य मुक्त है, अर्थात वे निश्चित ही हैं और मुक्त भी हैं अतः भगवान का नाम भी मुक्त है बद्ध नहीं है। माया का प्रभाव नहीं होता, फिर नाम भी अच्युत है। अर्जुन उवाच | *नष्टो मोहः स्मृतिर्लब्धा त्वत्प्रसादान्मयाच्युत | स्थितोऽस्मि गतसन्देहः करिष्ये वचनं तव ||* (श्रीमद भगवद्गीता 18.73) अनुवाद- अर्जुन ने कहा – हे कृष्ण, हे अच्युत! अब मेरा मोह दूर हो गया | आपके अनुग्रह से मुझे मेरी स्मरण शक्ति वापस मिल गई | अब मैं संशयरहित तथा दृढ़ हूँ और आपके आदेशानुसार कर्म करने के लिए उद्यत हूँ | च्युत और अच्युत भगवन का एक नाम भी है अच्युत भगवद प्रसादात अर्जुन ने कहा कृष्ण से यह, जो भगवद्गीता है यह प्रसाद मुझे आप से प्राप्त हुआ। हे अच्युत ! और च्युत मतलब नीचे गिरना, पतन होना इसको च्युत कहते हैं और अच्युत मतलब भगवान का कभी पतन नहीं होता, माया नेवर टेक फॉल डाउन, ऐसा कभी नहीं होता। *मयाध्यक्षेण प्रकृतिः सूयते सचराचरम् | हेतुनानेन कौन्तेय जगद्विपरिवर्तते ||* (श्रीमद भगवद्गीता 9.10) अनुवाद- हे कुन्तीपुत्र! यह भौतिक प्रकृति मेरी शक्तियों में से एक है और मेरी अध्यक्षता में कार्य करती है, जिससे सारे चर तथा अचर प्राणी उत्पन्न होते हैं | इसके शासन में यह जगत् बारम्बार सृजित और विनष्ट होता रहता है | वे अध्यक्ष हैं माया के अधीन वे कभी नहीं होते। *अहम् ब्रह्मास्मि* मायावादी कहते हैं ब्रह्म को माया ने घेर लिया, झपट लिया इसलिए ब्रह्म का पतन हुआ था और अब मुझे साक्षात्कार हुआ। क्या साक्षात्कार? "ब्रह्म सत्य जगत मिथ्या" यह जगत मिथ्या है ब्रह्म सत्य है। अहम् ब्रह्मास्मि मै ब्रह्मा नहीं था माया ने मुझे झपट लिया था माया के अधीन था और अब अहम ब्रह्मस्मी। यह मायावादी जो कृष्ण अपराधी होते हैं मायावादी कैसे होते हैं ? कहो मायावादी , आप क्या कहोगे कृष्ण अपराधी ! मायावादी, कृष्ण अपराधी! मायावादी, कृष्ण अपराधी! कृष्ण के चरणो में अपराध करते हैं अनाड़ी होते हैं लास्ट नियर ऑफ़ मायावादी, प्रभुपाद कहते हैं हरि हरि ! अर्थात यह नहीं कि ब्रह्म का पतन हुआ , ब्रह्म माया में फस गया था और अब वह ब्रह्म मुक्त हुआ आप समझ रहे हैं कि मैं क्या कह रहा हूं ? भगवान अच्युत हैं और ब्रह्म भी अच्युत हैं। वैसे ब्रम्हेति, परमात्मेति , भगवानेति, ऐसे शब्द हैं ब्रम्ह भगवान है परमात्मा भी भगवान हैं और भगवान तो भगवान है ही या ब्रह्म और परमात्मा के स्त्रोत हैं भगवान स्वयं और यह भगवान का वैशिष्ट या खासियत कहो कि वे अच्युत हैं नेवर फाल्स डाउन उनका पतन नहीं होता वे संसार में आते जरूर हैं हमारे उद्धार के लिए लेकिन भगवान माया में नहीं फंसते, यह नहीं कि ब्रह्म माया में था अब मैं ब्रह्म सत्य जगत मिथ्या, मैं ब्रह्म हो गया हरि हरि ! अतः नित्य भगवान का नाम नित्य भगवान नित्य हैं और शुद्ध भगवान का नाम कैसा है शुद्ध है। इसीलिए वो हमको भी शुद्ध बना सकता है भगवान का नाम, भगवान स्वयं शुद्ध हैं पवित्र हैं उनके संग से हम भी शुद्ध होते हैं। चेतोदर्पणमार्जनम, सूर्य के संग में जो भी क्षेत्र आ जाता है यहां पर लोग मल मूत्र का विसर्जन करते होंगे या और भी कोई गंदे इलाके होंगे तो सूर्य की किरणों से वो सारा क्षेत्र भी शुद्ध होता है। उसका शुद्धिकरण होता है और यह करते समय उसमे कोई बिगाड़ नहीं आता। सूर्य सदैव शुद्ध ही रहता है या पवित्र ही रहता है क्योंकि वो सूर्य है। सन नेवर गेट्स कॉन्टैमिनेटेड, वैसे ही कृष्ण सूर्य सम कृष्ण कैसे हैं कृष्ण सूर्य सम, उसी प्रकार भगवान का नाम भी सूर्य सम है। तो यह क्या करता है? यह स्वयं शुद्ध है और इसके संपर्क में जो भी आते हैं वह भी शुद्ध हो जाते हैं *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे* इसको कह के जब हम उसका श्रवण करते हैं तब यही है भक्ति योग या भक्ति के प्रकार हैं। श्रवणं कीर्तनम विष्णु स्मरणम यह जो हम करते हैं तब हम भगवान के संपर्क में आते हैं भगवान के साथ हमारा यह मतलब संबंध स्थापित होता है और इस संबंध से हम भी शुद्ध होते हैं। इसी को कहते हैं शुद्ध नाम जप, जप की भी तीन अवस्थाएं हैं। आप जानते हो यह हरिनाम चिंतामणि में समझाया है भक्तिरसामृत सिंधु , में भी या यह भी अपराध पूर्ण जप , ऐसा जप अपराध पूर्ण अपराध युक्त जप अपराध के साथ जप, भी हो रहा है। अपराध हो रहे हैं और फिर हम समझ लेते हैं इसको कहते हैं यह वैष्णव अपराध है यह अपराध है यह वह अपराध है यह नाम अपराध है। गुरुर अवज्ञा श्रुति शास्त्र निन्दनं यह नाम अपराध है। इसको हम सीखते हैं समझते हैं टालने का प्रयास करते हैं इसको क्लीयरिंग स्पीच कहते हैं या टेक्निकली इसको नामाभास कहा है। यह दूसरी अवस्था है आप को यह भली-भांति समझना है और इसका अभ्यास भी करना है इसको आपको औरों को सिखाना भी है। *यारे देख तारे कह कृष्ण उपदेश*, करोगे तब यह सब सिखाना भी है। हम क्यों सिखा रहे हैं आपको, खाली फोकट उद्देश्य होगा, एक उद्देश्य होगा आप सिखाओ औरों को पहले स्टूडेंट बनो फिर बिकम टीचर आज का स्टूडेंट कल का टीचर और सिखाने से फिर आप स्वयं भी सीखोगे, स्वयं को भी साक्षात्कार होंगे सिखाते सिखाते, विद्या दानेन वर्धते कहा है उसको भी लिखो अभी-अभी हमने क्या कहा, विद्या दानेन वर्धते ,विद्या का होता है वर्धन विद्या बढ़ जाती है। कैसे? दानेन, विद्या का दान करने से विद्या बढ़ जाती है। घट नहीं जाती है डरने की आवश्यकता नहीं है ऐसा नहीं की यह सारा ज्ञान देते जाएंगे फिर हमारा दिवाला निकल जाएगा, हमारा क्या होगा? वी बिकम बैंकरप्ट ऐसा नहीं होता है। इसका फायदा है ज्ञान देने में, आपका ज्ञान बढ़ेगा यह आपका ज्ञान विज्ञान बन जाएगा। *शमो दमस्तपः शौचं क्षान्तिरार्जवमेव च । ज्ञानं विज्ञानमास्तिक्यं ब्रह्मकर्म स्वभावजम् ॥* ॥ (श्रीमद भगवद्गीता 18.42) अनुवाद- शान्तिप्रियता, आत्मसंयम, तपस्या, पवित्रता, सहिष्णुता, सत्यनिष्ठा, ज्ञान,विज्ञान तथा धार्मिकता – ये सारे स्वाभाविक गुण हैं, जिनके द्वारा ब्राह्मण कर्म करते हैं | ज्ञान विज्ञान सहित कर्म, भगवत गीता 18 अध्याय 42 श्लोक कृष्ण ने कहा , ज्ञानं विज्ञानमास्तिक्यं ब्रह्मकर्म स्वभावजम् ब्राह्मण ज्ञानी भी होता है और विज्ञानी भी होता है। ज्ञान विज्ञान इंप्लीमेंटेशन, अमल करेंगे, साक्षात्कार होगा, नित्य शुद्ध, मुक्त भगवान का नाम मुक्त है। माया से मुक्त है सदा सदैव और कौन हैं वैसे 14 और भी हैं विशेषण है , उस लिस्ट में यह चार हैं नित्य है, शुद्ध है, मुक्त है और पूर्ण हैं। भगवान का नाम, *ॐ पूर्णमद: पूर्णमिदं पूर्णात् , पूर्ण मुदच्यते। पूर्णस्य पूर्णमादाय, पूर्ण मेवा वशिष्यते।* ईशोपनिषद यह एक बहुत बड़ा सिद्धांत है या तत्व है उसको भी हमको कंठस्स्थ करना चाहिए ह्रदयगम भी करना चाहिए। भगवान पूर्ण हैं और इस पूर्ण से जो भी उत्पन्न होता है वह भी पूर्ण है। यहां तक कि हमारा शरीर है जो ब्रह्मांड में है वह पिंड में भी है हमारे शरीर को पिंड भी कहते हैं "पिंडे पिंडे मतिर भिन्ने मुंडे मुंडे मतिर भिन्ने" अच्छा लगता है आपको सुनने में, मुझको अच्छा लगता है पिंडे पिंडे, पिंड मतलब यह शरीर को पिंड कहा है। मतलब इस पिंड में उस पिंड में हर पिंड में क्या होता है मतिर भिन्ने , दुर्देव से या सुदेव से, मति भिन्न होती है। हर एक का अपना-अपना मत होता है इस संसार में तो होता ही है फिर हम जब परंपरा में बातों को सीखते और समझते हैं तब हम एक विचार के हो जाते हैं। हमारी मती एक जैसी हो जाती है वैसे भी हम अलग अलग व्यक्ति हैं। तो अलग -अलग विचार करेंगे किंतु फिर भी सारे विचार कृष्ण भावना भावित ही होंगे और य मती स गति भी कहा है चार ही अक्षर हैं बहुत ही सिंपल मंत्र है लेकिन बहुत कुछ छुपा हुआ है इसमें सारगर्भित है। य मति स गति जैसी हमारी मति होगी वैसे ही हमारी गति होगी, लक्ष्य क्या है ? हम कहां पहुंचेंगे, इस संसार में कहते हैं यह रामकृष्ण मिशन में, यह सब कहा जाता है और कहते हैं "यत मत तत् पथ" जितने भी मत हैं जितने भी पथ हैं वह सही हैं। लेकिन यह बकवास है ऐसे प्रचार से सावधान ! हरि हरि ! जप की तीन स्थितियां एक अपराध के साथ जप करते हैं फिर नामभास मतलब कुछ क्लीयरिंग अपराधों से बचने का प्रयास है। नामभास क्लीयरिंग स्टेज और फिर शुद्ध नाम जप, हमारा लक्ष्य या गति तो शुद्ध नाम जप करना है। भगवान शुद्ध हैं हम भी शुद्ध हो गए तभी उनका सानिध्य संभव है। भगवान शुद्ध हैं भगवान पवित्र हैं परम ब्रम्ह परमधाम पवित्रं परमं भवान , पवित्र भगवान के साथ रहना है हमको भी पवित्र होना। ए दूर रहो दूर रहो ,गेट आउट, अस्पर्शय, गंदे कहीं के , से सम डिस्टेंस, सोशल डिस्टेंस, स्टे अवे, दूर रहो, भगवन के नाम की बात चल रही है तो भगवान का नाम ही पूर्ण है और भगवान का नाम षड ऐश्वर्य पूर्ण है भगवान का नाम पूर्ण है मतलब क्या ? षड ऐश्वर्य पूर्ण है समग्रस्य ऐश्वर्ययस्य वीररस्य:, यशस: ,श्र्या, ज्ञान, वैराग्य षण्णां िटिंगना , भगवान की परिभाषा पराशर मुनि श्रील व्यास देव के पिता श्री पराशर मुनि का यह वचन है षड ऐश्वर्य पूर्ण भगवान, यह भगवान की व्याख्या, इसको कहते हैं भगवान! पराशर मुनि ने जो कहा उनको क्रेडिट मिलता है उन्होंने कहा समग्रस्य : समग्र ऐश्वर्य , समग्र मतलब पूर्ण कंप्लीट फॉर्म पूर्ण ऐश्वर्या, वीर्यवान, यशस, यश यशस्वी हो ना टू बी सक्सेसफुल, यशस्वी संपूर्ण यश, यश वान, यशवंत भी कहते हैं। महाराष्ट्र में नाम चलता है जैसे हमारे महाराष्ट्र के चीफ मिनिस्टर पीछे एक यशवंतराव चौहान, यशवंत एक ही बात है। गणमान्य, गुणवंत ,वीर, यश, श्रेया मतलब सौंदर्य , भगवान कंप्लीट ब्यूटी और ज्ञान भगवान ज्ञानवान है , सर्वज्ञ हैं पूर्ण ज्ञान गीता में भगवान ने कहा भगवान उवाच , यहां ज्ञानवान उवाच , मतलब कौन बोल रहे हैं? भगवान बोल रहे हैं। जैसे भगवान ज्ञानवान बोल रहे हैं यह पांचवा वैभव है और ज्ञान वैराग्य और भगवान वैराग्य की मूर्ति है। भगवान चैतन्य महाप्रभु ने संयास ले लिया रास क्रीडा होने जा रही थी। वहां से आगे बढ़े तो यह सारा संसार उन्हीं का है यह सब हम सब को दे दिया भोगने के लिए स्वयं नहीं भोगते , भगवान वैराग्य वान हैं हरि हरि ! यह भगवान के षड ऐश्वर्य पूर्ण , नित्य शुद्ध ,मुक्त, भगवान षड ऐश्वर्या पूर्ण भी हैं और फिर अंत में कहा है। अभिनत्वात नाम नामिनो नाम और नामी अभिन्न हैं नाम और नामी में भेद नहीं है। क्या क्या नोट किया आपने ? एक तो नाम, नाम चिंतामणि, चैतन्य रस विग्रह, पूर्ण शुद्ध नित्य मुक्त और अंत में अभिनत्वात नाम नामिनो, ठीक है फूड फॉर थॉट आपके लिए पूरा इतना डाइजेस्ट करो, यह करने के लिए क्या करना होगा चिंतन करना होगा, मनन करना होगा ,भूल गए तो फिर अपने नोट्स देखना होगा, नोट लिखे नहीं तो फिर गए काम से, इसीलिए व्यास देव ने ग्रंथ लिखा क्योंकि इस कलयुग के लोग मंद होंगे , बुद्धि भी मंद, हरि भरोसे, राम भरोसे, राम भरोसे चलता है ठीक है अब मैं यहीं विराम देता हूं। निताई गौर प्रेमानंद ! हरी हरी बोल !

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