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जप चर्चा ३०.०५.२० विषय:- गौड़ीय वैष्णववाद की सर्वोत्कृष्टता को समझना। हरि! हरि!

मैं ठीक हूँ, आप ठीक हो? संसार में ऐसा चलता रहता है। हरि! हरि! आप सब ठीक हैं, यस। चैतन्या पदम् गंधा ठीक हो? और आप सभी? हरि! हरि!

  आज 808 स्थानों से जप हो रहा है, आप का सुस्वागतम है। इस प्रकार हम हर प्रातः काल मिलते हैं। सुप्रभात! हमारी मॉर्निंग मिलने के कारण गुड़ मॉर्निंग चल रही है। हम केवल मिल ही नही रहे हैं अपितु हम भगवान के साथ भी मिलने का प्रयास कर रहे हैं। जप करना हमारा वही प्रयास है, इससे हमारी प्रातः शुभ व मंगल दायक होती है। जब हम एकत्रित होकर जप योग करते हैं तब हम केवल एक दूसरे से ही नहीं मिलते, एक दूसरे का ही सान्निध्य लाभ ही नहीं उठाते अपितु हम भगवान के साथ सान्निध्य करने का प्रयास करते हैं। हम साधना करते हैं ताकि हमें भगवान का सान्निध्य प्राप्त हो। भगवान का दर्शन हो या भगवान का साक्षात्कार हो पाए। हरि! हरि! आगे बढ़ते हैं, यह केवल परिचयात्मक टिप्पणी थी, अब आगे कुछ कहेंगे। आप के प्रश्नों के उत्तर भी देने हैं। आप की समस्याओं का समाधान भी करना है (पदमावली प्रभु, प्रश्न कहाँ है? भक्तों ने जो प्रश्न पहले पूछे थे? तुम उसे मुझे फारवर्ड कर् दो ताकि उनके उत्तर दिए जा सकें।) हरि! हरि! (जय) श्रीकृष्ण चैतन्य प्रभुनित्यानन्द। श्रीअद्वैत गदाधर श्रीवासादि – गौरभक्तवृन्द।। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। एक प्रस्तुतिकरण है, इसका नाम गौड़ीय वैष्णववाद की सर्वोत्कृष्टता को समझना है- पता नहीं, हम इस प्रेजेंटेशन के संबंध में कितना बता पाएंगे! परन्तु ऐसा हो सकता है कि हम हर रोज थोड़ा थोड़ा इसके विषय में बताएं। यह प्रस्तुतिकरण बहुत ही महत्वपूर्ण है, इसे समझना बहुत महत्वपूर्ण है। आप अंग्रेजी में इसका शीर्षक पढ़ रहे होंगे। अंडरस्टैंडिंग द सुपर एक्सीलेंस ऑफ द गौड़ीय वैष्णवनिज्म अर्थात गौड़ीय वैष्णववाद की सर्वोत्कृष्टता को समझना। आप गौड़ीय वैष्णव हो। आप कौन हो? स्वर्णमंजरी, तुम कौन हो? केवल वैष्णव या वैष्णवी ही नहीं अपितु कई सारे वैष्णव भी होते हैं। वैष्णव संप्रदाय भी हैं किंतु गौड़ीय वैष्णव होना कुछ खास बात है, कुछ विशेष बात है। विशेष क्या है?गौड़ीय वैष्णव होना एक सर्वोत्कृष्ट बात है। हरि!हरि! गर्व से कहिए हम गौड़ीय वैष्णव हैं। बहुत अच्छा! गर्व से कहिए हम कौन हैं? गौड़ीय वैष्णव हैं। गौड़ीय वैष्णवों की जय! गौड़ीय वैष्णव भक्तवृंदों की जय! यदि आप गौड़ीय वैष्णव बनोगे तो आप सभी की जय। वैसे आप इस अंतर्राष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ में आकर गौड़ीय वैष्णव बन तो रहे ही हो। गौड़ीय वैष्णव इस्कॉन ही है, यह हरे कृष्ण आंदोलन ही गौड़ीय वैष्णवता है, गौड़ीय वैष्णवता का आंदोलन। सभी तो नहीं किंतु कुछ विशेषताओं के कारण गौड़ीय वैष्णव सर्वोत्कृष्ट बनते हैं अर्थात कुछ अलग-अलग क्षेत्रों में या अलग अलग विभागों में सर्वोत्कृष्ट बनते हैं । इसे विभाग या प्रकार कह सकते हैं। १) अचिंत्यभेदाभेद तत्व:- हर संप्रदाय का अपना एक तत्व होता है या उनका वेदांत सूत्र पर भाष्य होता है। फिर उनको नाम देते हैं वशिष्ट अद्वैत तत्व, द्वैताद्वैत तत्व, द्वैत तत्व। शंकराचार्य एक वैष्णव नहीं थे। उन्होंने वैष्णवता का प्रचार नहीं किया इसलिए उनका अद्वैत तत्व निकृष्ट है। इन सभी तत्वों में गौड़ीय वैष्णव का जो तत्व अथवा सिद्धांत है जिसका नाम अचिंत्यभेदाभेद तत्व है, वह सर्वोपरि है। बलदेव विद्याभूषण जी ने इसे सिद्ध किया। गौड़ीय संप्रदाय ही सर्वोत्कृष्ट संप्रदाय है। पदम् पुराण में वर्णित है- सम्प्रदायविहीना ये मंत्रास्ते निष्फला मताः। अनुवाद:- यदि कोई मान्यता प्राप्त गुरु शिष्य परंपरा का अनुसरण नहीं करता तो उसका मंत्र या उसकी दीक्षा निष्फल है। सम्प्रदायविहीन मंत्र अर्थात आपको मंत्र तो मिला लेकिन किसी संप्रदाय से नहीं मिला। अथवा यह किसी संप्रदाय का मंत्र ना होकर संप्रदाय के बाहर का मंत्र है। इसका अर्थ है यह प्रमाणिक नहीं है, उसका कोई प्रमाण नहीं है, कोई अथॉरिटी नहीं है। सम्प्रदायविहीना ये मंत्रास्ते निष्फला मताः अर्थात जिस मंत्र का किसी सम्प्रदाय या परंपरा से संबंध नहीं है। कुछ उटपटांग ही संस्थाओं या तथाकथित किसी गुरुजन से मंत्र लिया गया है तो वह निष्फला मताः अथवा विफल है अर्थात उससे कोई फल प्राप्त नहीं होगा। एक होता है विफल और दूसरा होता है सफल। यह बातें छोटी छोटी हैं, विफल दूसरा सफल। इन दोनों को सदा के लिए याद रखना चाहिए। हम यहां थोड़ा विस्तार से बता रहे हैं। हमारा आधा समय तो बीत गया। हरि! हरि! २) गौड़ीय वैष्णव:- सभी सम्प्रदायों में गौड़ीय सम्प्रदाय एक विशेष सम्प्रदाय या एक सर्वोत्कृष्ट सम्प्रदाय है। श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु की जय! चैतन्य महाप्रभु के कारण या श्री कृष्ण के कारण या राधा कृष्ण के कारण यह गौड़ीय सम्प्रदाय सर्वोत्कृष्ट है। ३) रागानुग साधन भक्ति- साधन भी कैसा हो? रागानुग साधन। यह भी गौड़ीय वैष्णव सम्प्रदाय की या गौड़ीय वैष्णवों की सर्वोत्कृष्टता है। वे रागानुग साधन भक्ति करते हैं। राग या अनुराग यह अलग अलग भाव है। माधुर्य, वात्सल्य या सख्य के रस, राग या भाव, भक्ति। उसमें भी साख्य के भी कई प्रकार हैं, माधुर्य के भी प्रकार हैं, उनमें भी सर्वोत्कृष्ट माधुर्य राग मार्ग हैं। हमारे मार्ग का नाम ही रागमार्ग है। हम अवलंबन करते हैं। राग व अनुग मतलब राग का अवलंबन करने वाले राग- अनुग। मैं पहले भी कहता रहता हूं इस पर ध्यान दीजिए। राग-अनुग से शब्द हुआ रागानुग। राग मतलब राग, अनु मतलब पीछे-पीछे अवलम्बन करना और ग मतलब पीछे-२ जाना अवलम्बन करना। श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने हमें नंद बाबा जैसी भक्ति साधना या वैष्णव गोपियों जैसी भक्ति साधना करने के लिए कहा है। आराध्यो भगवान ब्रेजेश तनय:- ,तत्-धाम वृन्दावनम्। रम्या काचित् उपासना व्रजवधु-वर्गेन वा कल्पिता।। श्रीमद् भागवतं प्रमाणं अमलं प्रेम पुमर्थो महान्। श्री चैतन्य महाप्रभोर मतं इदं तत्रादरो न परः।। (चैतन्य मञ्जुषा) अनुवाद:- भगवान बृजेंद्र नंदन श्री कृष्ण एवं उनकी तरह ही वैभव युक्त उनका श्रीधाम वृंदावन आराध्य वस्तु है। व्रज वधुओं ने जिस पद्धति से कृष्ण की उपासना की थी, वह उपासना की पद्धति सर्वोत्कृष्ट है। श्रीमद् भागवत ग्रन्थ ही निर्मल शब्द प्रमाण है एवं प्रेम ही पुरुष पुरुषार्थ है- यही श्री चैतन्य महाप्रभु का मत है। यह सिद्धांत हम लोगों के लिए परम आदरणीय है। श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु कहते हैं कि व्रजवधु-वर्गेन- ब्रज की वधू अर्थात गोपियां। उनकी भक्ति की पद्धति या भाव या उनका जो राग है, उसका अवलंबन करो। ऐसी भक्ति करना ही रागानुग साधन भक्ति कहलाता है और यही गौड़ीय वैष्णव परंपरा का विशिष्ट है। ४) गोलोक धाम- गोलोक धाम की जय! धाम तो धाम होता है। सभी धाम हैं, वैकुंठ धाम, साकेत धाम , फिर गोलोक धाम भी है। गोलोक में मथुरा धाम है और द्वारिका धाम भी है। गोलोक में वृंदावन भी है। वृन्दावनं परित्यज्य पादमेकं न गच्छति (लघु भागवतामृत 1.5.461) अर्थात ''मैं वृन्दावन छोड़ एक पग भी नही जाता।'' भगवान जहाँ रहते हैं, कौन से भगवान? कृष्णस्तु भगवान स्वंयम। गोलोकनाम्नि निजधाम्नि तले च तस्य देवीमहेशहरिधामसु तेषु तेषु। ते ते प्रभावनिचया विहिताश्च येन गोविन्दमादिपुरुषं तमहं भजामि॥ यह गोलोक धाम वैसे ही सर्वोपरि और सर्वोत्कृष्ट है। गौड़ीय वैष्णव उस गोलोक धाम को अपना अंतिम गंतव्य स्थान बनाते हैं।रास्ते में कहीं भी नहीं रुकते। चाहे स्वर्ग आ गया या अन्य लोक आ जाए, वे वहाँ से आगे बढ़ते रहते हैं। ऊपर चढ़ते रहते हैं और गोलोक में अवतरण(लैंडिंग) होती हैजो कि सर्वोपरि है। गोलोक धाम गौड़ीय वैष्णवों की पसंद है हम और कहीं नहीं रुकेंगे, सीधे वही जाएंगे। गोलोक धाम् की जय! ५) रस विचार:-रस विचार, रस तत्व भी है, रस शास्त्र भी है। हरि! हरि! द्वादश रस भी हैं। सात गौण और पांच मुख्य रस हैं। इन सभी रसों में भी सर्वोपरि सर्वोत्कृष्ट रस भी है। अनर्पित चरिम चिरातकरुंयावतीर्ण: कलौ समरयितुमुन्नतुज्जवल- रसां साव-भक्ति-श्रियं।हरि:पुरट-सुंदर-द्युति-कंदम्ब-संदीपित: सदा हृदय-कंदरे स्फुरतु व: शची- नंदन:।। ( श्री चैतन्य चरितामृत आदि लीला 1.4) अनुवाद: श्रीमती शचीदेवी के पुत्र के नाम से विख्यात वे महाप्रभु आपके हृदय की गहराई में दिव्य रूप में विराजमान हैं। पिघले सोने की आभा से दीप्त, वे कलियुग में अपनी अहैतुकी कृपा से अपनी सेवा के अत्यंत उत्कृष्ट तथा दीप्त आध्यात्मिक रस के ज्ञान को, जिसे इसके पूर्व अन्य किसी अवतार ने प्रदान नहीं किया था, प्रदान करने के लिए अवतीर्ण हुए हैं। उन्नत उज्जवल रस माधुर्य रस है और उसे देने के लिए श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु प्रकट हुए। श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु यह सर्वोत्कृष्ट माधुर्य रस देने के लिए व उसका आस्वादन करने हेतु भी प्रकट हुए। गौड़ीय वैष्णव रस विचार, रस शास्त्र में प्रवीण होते हैं और भली-भांति जानते हैं कि सर्वोकृष्ट रस कौन सा है और वे उसी का आस्वादन भी करते हैं। ६) भागवत व चैतन्य चरितामृत की सर्वोत्कृष्टता:- यहां भागवत व चैतन्य चरितामृत की सर्वोत्कृष्टता पर विचार हो रहा है। उसका एक आधार यह एक श्लोक या वचन ही है। आराध्यो भगवान ब्रेजेश तनय:- ,तत्-धाम वृन्दावनम्। रम्या काचित् उपासना व्रजावधु-वर्गेन वा कल्पिता।। श्रीमद् भागवतं प्रमाणं अमलं प्रेम पुमार्थो महान्।श्री चैतन्य महाप्रभोर मतं इदं तत्रादरो न परः।। (चैतन्य मञ्जुषा) अनुवाद:- भगवान बृजेंद्र नंदन श्री कृष्ण एवं उनकी तरह ही वैभव युक्त उनका श्रीधाम वृंदावन आराध्य वस्तु है। व्रज वधुओं ने जिस पद्धति से कृष्ण की उपासना की थी, वह उपासना की पद्धति सर्वोत्कृष्ट है। श्रीमद् भागवत ग्रन्थ ही निर्मल शब्द प्रमाण है एवं प्रेम ही पुरुष पुरुषार्थ है- यही श्री चैतन्य महाप्रभु का मत है। यह सिद्धांत हम लोगों के लिए परम आदरणीय है। हर गौड़ीय वैष्णव को यह श्लोक आना चाहिए अर्थात हमें इस श्लोक से परिचित होना चाहिए। हमें इसे केवल कंठस्थ ही नहीं अपितु इसको हृदयंगम करना चाहिए। तत्पश्चात आप दावा कर सकते हो, हां, मैं गौड़ीय वैष्णव हूं क्योंकि मैं जानता हूं, क्या जानता हूँ। श्री चैतन्य महाप्रभोर मतं- श्री चैतन्य महाप्रभु के मत को मैं जानता हूं। संसार में कई सारे मत मतान्तर हैं किंतु चैतन्य महाप्रभु का मत कैसा है- मतं इदं। यह है श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु का मत। हरि! हरि! यह श्लोक अथवा मंत्र चैतन्य मंजूषा नामक ग्रंथ से है। चैतन्य मंजूषा श्री नाथ द्वारा रचित है। एक विश्वनाथ चक्रवर्ती हैं और दूसरे श्रीनाथ चक्रवर्ती हैं। चैतन्य महाप्रभु के समय श्रीनाथ चक्रवर्ती थे, आपने कविकर्णपुर का नाम सुना है। कविकर्णपुर के गुरु श्री नाथ चक्रवर्ती जी थे। विश्वनाथ चक्रवर्ती ठाकुर , जीव गोस्वामी सनातन गोस्वामी, श्रीधर गोस्वामी... आदि के जैसे श्रीनाथ चक्रवर्ती के भी कमैंट्स हैं अथवा इनके भी ग्रंथ हैं। चैतन्य मंजूषा नामक भी उनका एक ग्रंथ है। आराध्यो भगवान ब्रेजेश तनय: उसी में से यह एक वचन है। यह सर्वोत्कृष्ट बातें जो बताई जा रही हैं, इसका आधार वैसे श्रीनाथ चक्रवर्ती द्वारा रचित चैतन्य मंजूषा का यह श्लोक है जो भगवान चैतन्य महाप्रभु के मत को स्पष्ट अर्थात मत प्रदर्शित करने वाला है। गौड़ीय वैष्णव की उत्कृष्टता का आधार क्या है अर्थात आधार ग्रंथ क्या है? श्रीमद्भागवतम और साथ ही साथ चैतन्य चरितामृत, चैतन्य भागवत। बहुत सारे भक्त केवल भागवत तक पहुंच पाते हैं लेकिन गौड़ीय वैष्णव श्रीमद्भागवतम् से आगे बढ़ते हैं और एक और ऊंचा उत्कृष्ट ग्रंथ चैतन्य चरितामृत का आस्वादन करते हैं। यदि आपने भागवत का अध्ययन किया है तो आप ग्रेजुएट हो गए अर्थात आपका ग्रेजुएशन हो गया। या कह सकते हैं एक प्रकार से आपकी बी टेक हो गयी लेकिन जो चैतन्य चरितामृत पढ़ते हैं, वे एमटेक हो गए। मास्टर ऑफ टेक्नोलॉजी। श्रील प्रभुपाद समझाते थे कि भागवतम् का अध्ययन ग्रेजुएशन है तो चैतन्य चरितामृत का अध्ययन पोस्ट ग्रेजुएशन है। यह हमारा गौड़ीय वैष्णवों का सिलेबस है। हमारी टेक्स्ट बुक कौन सी है? गीता, भागवत, चैतन्य चरितामृत। ये हमारे सर्वोत्कृष्ट ग्रंथ हैं। ७) पूर्ण पुरषोत्तम भगवान श्रीकृष्ण व श्री चैतन्य महाप्रभु :- गोविन्दमादिपुरुषं तमहं भजामि वैसे और भी पुरुष हैं, नारायण भी हैं, दत्तात्रेय भी हैं, द्वारकाधीश और भी कई सारे हैं परंतु उनमें से एक आदि पुरुष गोविंद है जोकि वृंदावन में रहते हैं। एते चांशकलाः पुंसः कृष्णस्तु भगवान स्वयम। इन्द्रारिव्याकुलं लोकं मृडयन्ति युगे युगे।। (श्रीमद् भागवतम १.३.२८) अनुवाद:- उपर्युक्त सारे अवतार या तो भगवान के पूर्ण अंश या पूर्णांश के अंश (कलाएं) हैं, लेकिन श्रीकृष्ण तो आदि पूर्ण पुरषोत्तम भगवान हैं। वे सब विभिन्न लोकों में नास्तिकों द्वारा उपद्रव किये जाने पर प्रकट होते हैं। भगवान आस्तिकों की रक्षा करने के लिए अवतरित होते हैं। भगवान आदि है, अद्वैतम अच्युतम हैं।अद्वैत मतलब वे कृष्ण से भिन्न नहीं है। वे दो नहीं है, वह एक ही है। कृष्णस्तु अद्वैतम अच्युतम अर्थात उनमें से कभी च्युत नहीं होता अर्थात पतन नही होता। अद्वैतमच्युतमनादिमनन्तरूपम् आद्यं पुराणपुरुषं नवयौवनं च। वेदेषु दुर्लभमदुर्लभमात्मभक्तौ गोविन्दमादिपुरुषं तमहं भजामि।। वे सब में रहते हैं और उन सभी में श्री कृष्ण और श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु विशिष्ट हैं, वे विशेष हैं। वे पहली मोमबत्ती हैं। ब्रह्म संहिता में वर्णन है कि पहली मोमबत्ती जलाई फिर दूसरी जलाई... कई सारी जलाई। जल रही हैं तो ठीक हैं।लेकिन पहली कौन सी मोमबत्ती है? वो कृष्ण हैं। यदि पहली मोमबत्ती नहीं होती तो फिर दूसरी तीसरी चौथी भी नहीं होती। ऐसी और भी बातें है जिनका इस प्रस्तुतिकरण में उल्लेख नहीं किया है। जैसे गौड़ीय वैष्णवों का सर्वोत्कृष्ट महामंत्र होता है और क्या बचा? गौड़ीय वैष्णवों का प्रसाद। गौड़ीय वैष्णव जितना महात्यम प्रसाद का जानते हैं, उतना सचमुच कोई नहीं जानता। चैतन्य महाप्रभु ने भी प्रसाद के गुणों के विषयों में अपने व्यकितगत अनुभवों का वर्णन किया है। भाई-रे! एक-दिन शांतीपुरे, प्रभु अद्वैतेर घरे, दुइ प्रभु भोजन बसिल शाक करि आस्वादन, प्रभु बले भक्त-गण, एइ शाक कृष्ण आस्वादिल॥1॥ अनुवाद:- (1) हे भाइयों! एक दिन शांतिपुर में, दोनों प्रभु, श्रीचैतन्य महाप्रभु और नित्यानंद प्रभु, अद्वैत प्रभु के घर मे दोपहर भोजन के लिए बैठे थे। आश्चर्यजनक साग का आस्वादन करने के पश्चात्-चैतन्य महाप्रभु ने कहा, “मेरे प्रिय भक्तों, यह साग इतना स्वादिष्ट है, भगवान् कृष्ण ने अवश्य ही इसको चखा है। ” महाप्रभु अद्वैत आचार्य के घर में हैं और कह रहे हैं एइ शाक कृष्ण आस्वादिल ... मैंने अभी अभी साग का आस्वादन किया। भगवान ने इसका आस्वादन किया होगा, निश्चित ही किया होगा, नहीं तो इतना मीठा प्रसाद। भगवान की लार इसमें मिक्स भी हुई होगी तभी तो भगवान के भक्त, कृष्ण प्रसाद ग्रहण करने के लिए इतने उत्कण्ठित रहते हैं। यह सारा आध्यात्मिकता है। वैसे अन्य धर्मों या सम्प्रदायों में प्रसाद की इतनी महिमा नहीं हैं, जितनी गौड़ीय वैष्णव सम्प्रदाय में हैं। महाप्रसाद की महिमा गोलोक जैसे है। हरि! हरि! इसलिए हमारे धर्म को केवल गौड़ीय वैष्णव नहीं कहा जाता , इसे किचन रिलीजन भी कहा जाता है। धर्म के केंद्र में क्या है? रसोई है।जहां कृष्ण हैं, वहां पास में भगवान का रसोईघर होता है। कृष्ण से कृष्ण की रसोई अलग नहीं की जा सकती। कृष्ण के जीवन से प्रसाद अभिन्न है, ठीक है। हमने अभी गौड़ीय वैष्णवता की विशिष्टता जो स्लाइड आप देख रहे हो, उसे सारा कवर नहीं किया है। आप ही बता सकते हैं? क्या क्या बचा है और क्या-क्या इस सूची में आ सकता था। हमने एक दो आइटम बताएं जो इसमें नहीं हैं लेकिन इसमें होने चाहिए थे। इसलिए आप भी सोचिए। यह मैं केवल जो मेरे सामने प्रत्यक्ष बैठे हैं, उन्हीं से नहीं कह रहा हूं, मेरा निवेदन आप 800- 900 गौड़ीय वैष्णव जो इस प्रस्तुतिकरण को देख और सुन रहे हैं , आप सभी से है। आप सोचकर लिखिए। उत्सव का एक नाम बताया जा रहा है। वैसे हमनें इस टॉपिक पर मायापुर में दो वर्ष पहले एक सेमिनार दिया था।यह हमारी लीडरशिप संघ नामक संघ जो हर 2 साल के उपरांत होता है, यह उसके सेमिनार का टॉपिक है, यह प्रेजेंटेशन वहाँ दिया था लेकिन यह पूर्ण नहीं है तो आपकी मदद से हम इसे पूर्ण कर सकते हैं। मेरा विचार है कि इस विषय पर एक पुस्तक और ग्रंथ की रचना भी होनी चाहिए। हरिबोल! अच्छा! आप का भी अनुमोदन है। अब आप सब लिखिए।कुछ मिनट के लिए चैट सेशन ओपन है आपके कोई प्रश्न या कमैंट्स है, वो भी लिखिए और इस सर्वोत्कृष्ट सूची में कौन कौन से टॉपिक ऐड किए जा सकते हैं , वह भी आप लिखिएगा। उसका हम प्रयोग करेंगे। आपके प्रश्नों का भी उत्तर कभी भविष्य में देने का प्रयास करेंगे। केवल अवसर प्राप्त हो जाना चाहिए। हरे कृष्ण। धन्यवाद!

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30 May 2020 Understanding the Super excellence of Gaudiya Vaisnavism Hari Hari Are you okay? I'm okay. This goes on in the world. Are you seriously okay? Yes, Caitanya! Purnagandha, are you okay? Please make sure you are okay. Chanting is taking place from 777 locations. Welcome to you all. Our mornings are good as we are meeting. We are not just meeting, but with Japa we are trying to meet our Lord. When we do Japa yoga together, our morning becomes auspicious. When we come together, we do not just take the association of each other, but we also take the association of the Lord. We do sadhana so that we can take association of the Lord, darsana of the Lord, and realization of the Lord. 808 participants are there now. There is one presentation entitled "Understanding the Super excellence of Gaudiya Vaisnavism". I don't know how much we can tell you about this presentation. Understanding this is very important. You all are Gaudiya Vaisnavas. You are not just Vaisnavas or Vaisnavis. There are Vaisnava sampradayas also, but being Gaudiya Vaisnava is super-excellent. So you can proudly say that you are Gaudiya Vaisnava. You are becoming Gaudiya Vaisnava as you have joined ISKCON. Not all, but some special aspects which make Gaudiya Vaisnavism special are written over here. 1. Acintya Bheda-bheda Tattva and Gaudiya sampradaya In Vedanta sutra, the commentary is there for all tattva. There are many tattvas like Vishishtadvaita tattva, Dvaita Advaita tattva, Dvaita tattva. Sankaracarya was not a Vaisnava and neither did he preach Vaisnavism. Among all tattva, the name of tattva which belongs to Gaudiya Vaisnava is acintya-bheda-bbheda tattva. It is the topmost amongst all. Baladeva Vidyabhusan has proven this. sampradaya-vihina ye mantras te nisphala matah atah kalau bhavisyanti catvarah sampradayinah sri-brahma-rudra-sanaka vaisnavah ksiti-pavanah catvaras te kalau bhavya hy utkale purusottamat Translation "The mantra that is not received in disciplic succession does not produce results. Therefore in the Age of Kali, there are four such disciplic successions. They are the Sri, Brahma, Rudra, and Sanaka sampradayas. In the Age of Kali, these four disciplic lines will appear out of Purusottama in Orissa." (Padma Purana quoted in Prameya-Ratnavali) Padma Purana states that the mantra which is received from the so-called guru who does not belong to sampradayas is fruitless. One is viphala (fruitless) and another is saphal (fruitful). Gaudiya sampradaya is the greatest amongst all the sampradayas because of Caitanya Mahaprabhu, Radha Krsna. 2. Raganuga Sadhana Bhakti What is our sadhana or practice? Raganuga Sadhana. There are many ragas or mellows with which we perform bhakti. Raga-anu-ga means we follow raga or mellow. Nanda baba did bhakti in vatsalya bhava. We have to aim for such bhakti. Caitanya Mahaprabhu has asked us to follow the bhakti of the damsels of Vraja. aradhyo bhagavan vrajesa-tanayas tad-dhama vrndavanam ramya kacid upasana vraja-vadhu-vargena va kalpita srimad bhagavatam pramanam amalam prema pum-artho mahan sri-caitanya mahaprabhor matam idam tatradarah na parah Translation The Supreme Personality of Godhead, Lord Krishna, the son of Nanda Maharaja, is worshipped along with His transcendental abode Vrndavana. The most pleasing form of worship for the Lord is that which was performed by the gopis of Vrndavana. Srimad Bhagavatam is the spotless authority on everything and pure love of Godhead is the ultimate goal of life for all men. These statements, for which we have the highest regard, are the opinion of Sri Caitanya Mahaprabhu. [Caitanya-matta-manjusa commentary on Srimad-Bhagavatam by Srinath Chakravarti.] This type of bhakti is called Raganuga Sadhana Bhakti. This is Gaudiya Vaisnavism's specialty. 3. Goloka Dhama There is Vaikuntha Dhama, Saket Dhama and also Goloka Dhama. There is Mathura, Dvaraka, Vrindavan in Goloka. vṛndāvanaṁ parityajya padam ekaṁ na gacchati Translation Kṛṣṇa never goes even one step from Vṛndāvana. In Goloka, Krsna stays in Vrindavan. goloka-nāmni nija-dhāmni tale ca tasya devī-maheśa-hari-dhāmasu teṣu teṣu te te prabhāva-nicayā vihitāś ca yena govindam ādi-puruṣaṁ tam ahaṁ bhajāmi Translation Lowest of all is located Devī-dhāma [mundane world], next above it is Maheśa-dhāma [abode of Maheśa]; above Maheśa-dhāma is placed Hari-dhāma [abode of Hari] and above them all is located Kṛṣṇa's own realm named Goloka. I adore the primeval Lord Govinda, who has allotted their respective authorities to the rulers of those graded realms. [Brahma-saṁhitā 5.43] Gaudiya Vaisnavas make Goloka Dhama their final destination. They don't stop anywhere in between such as at the heavens. They land in Goloka. Gaudiya Vaishnavas have made their choice. They straight away go to Goloka. 4. Rasa- Vicara There is rasa tattva, rasa sastra and rasa vicara. There are dvadasa rasas. There are 5 primary rasas and 7 secondary rasas. Out of this, madhurya rasa is the topmost. anrpita-carīṁ cirāt karuṇayāvatīrṇaḥ kalau samarpayitum unnatojjvala-rasāṁ sva-bhakti-śriyam hariḥ puraṭa-sundara-dyuti-kadamba-sandīpitaḥ sadā hṛdaya-kandare sphuratu vaḥ śacī-nandanaḥ Translation: May the Supreme Lord who is known as the son of Śrīmatī Śacī-devī be transcendentally situated in the innermost chambers of your heart. Resplendent with the radiance of molten gold, He has appeared in the Age of Kali by His causeless mercy to bestow what no incarnation has ever offered before: the most sublime and radiant mellow of devotional service, the mellow of conjugal love.[CC Adi 1.4] Caitanya Mahaprabhu appeared to distribute this. He also appeared to taste this rasa. Gaudiya Vaisnavas are experts in this. They know the highest rasa and they taste it. 5. Superexcellence of Srimad-Bhagavatam and Sri Caitanya-caritamrta Contemplation is going on, on the supremacy of this rasa. aradhyo bhagavan vrajesa-tanayas tad-dhama vrndavanam ramya kacid upasana vraja-vadhu-vargena va kalpita srimad bhagavatam pramanam amalam prema pum-artho mahan sri-caitanya mahaprabhor matam idam tatradarah na parah Everyone should learn this verse by heart. Not only by heart, we have to embed this verse in our heart. We should know Caitanya Mahaprabhu's opinion. This verse is from the book entitled Caitanya-matta-manjusa written by Srinath Chakravarti. Superexcellence is based on this verse. What is the basis of Gaudiya Vaisnavism? Srimad-Bhagavatam and Caritamrta-caritamrta. Many reach up to Srimad-Bhagavatam, but Gaudiya Vaisnavas have one more which is Caitanya-caritamrta. If you have completed the studying of Srimad- Bhagavatam then you have completed your graduation. You have completed your B.Tech. If you have completed studying Caitanya-caritamrta then you have completed your Master Of Technology, M.Tech. Prabhupada would say that studying Caitanya-caritamrta is like post-grad study. Caitanya-caritamrta is the topmost literature. Gaudiya Vaisnavas have their syllabus and textbook-like Gita, Bhagavat, and Caitanya-caritamrta. These are topmost literatures. 6. Krsna and Krsna Caitanya, the Supreme Personality of Godhead govindam adi-purusam. There are many purusas, but Krsna is the primeval of all of them. Dvarakadhish is also not adi, but Krsna in Vrindavan is primeval. ete cāṁśa-kalāḥ puṁsaḥ kṛṣṇas tu bhagavān svayam indrāri-vyākulaṁ lokaṁ mṛḍayanti yuge yuge All of the above-mentioned incarnations are either plenary portions or portions of the plenary portions of the Lord, but Lord Śrī Kṛṣṇa is the original Personality of Godhead. All of them appear on planets whenever there is a disturbance created by the atheists. The Lord incarnates to protect the theists. [ SB 1.3.28] There are many incarnations of the Lord. All of them are advaitam acyutam. Advaitam means they are not different from the Lord. Acyutam means they are eternal. But among them Sri Krsna and Sri Krsna Caitanya Mahaprabhu are special. They are the first candle as stated in Brahma Samhita. When all candles are lit up they look the same. But the first candle is Krsna. If the first candle would not be there, then the remaining candles also would not be there. There are many things. We have the maha-mantra. We have prasada. Gaudiya Vaisnavas know the greatness of prasada. Caitanya Mahaprabhu has expressed the glories of prasada. bhai-re! eka-dina santipure, prabhu adwaitera ghare, dui prabhu bhojane bosilo sak kori’ aswadana, prabhu bole bhakta-gana, ei sak krishna aswadilo Translation O brothers! One day at Sri Advaita’s house in Santipura, the two Lords Caitanya and Nityananda were seated for lunch. Lord Caitanya tasted the green leafy vegetable preparation and addressed the assembly of His devotees, “This sak is so delicious! Lord Krishna has definitely tasted it.[ “Prasada Sevaya song by Bhaktivinod Thakur] One day at Sri Advaita's house in Santipura, the Lord experienced that Lord Krsna has tasted the prasada. Prasada is mixed with the Lord's saliva. This is all the spirituality within it. All other religions don't give this much importance to prasada as we do. In Goloka also there is such importance given to prasada. Hence our Gaudiya Vaisnavism is called a kitchen religion. Where there is Krsna, there is a kitchen nearby. Prasada is inseparable from Krsna's life. We didn't cover all the points. You can let us know what we didn't mention. The chat session is open now and you can write your questions and comments which can be added to this list. I had given a seminar on this topic in Mayapur ILS 2 years ago. I am also thinking about writing the book on this topic. Hare Krishna! Thank you!

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Наставления после совместной джапа сессии 30 мая 2020 г. ПОНИМАНИЕ ВЫСШЕГО СОВЕРШЕНСТВА ГАУДИЯ-ВАЙШНАВИЗМА (ДЕНЬ 1). Хари Хари. У вас все хорошо? У меня все хорошо. Так происходит в мире. У вас действительно все хорошо? Да, Чайтанья! Пурнагандха, ты в порядке? Пожалуйста убедитесь что вы в порядке. Воспевание происходит из 777 мест. Добро пожаловать всем вам. Наше утро доброе, когда мы встречаемся. Мы не просто встречаемся, но вместе с джапой мы пытаемся удовлетворить нашего Господа. Когда мы занимаемся джапа-йогой вместе, наше утро становится благоприятным. Когда мы собираемся вместе, мы не просто общаемся друг с другом, но мы также общаемся с Господом. Мы выполняем садхану, чтобы получить общение с Господом, даршан Господа и сознание Господа. 808 участников с нами сейчас. Есть одна презентация под названием «Понимание превосходства гаудия-вайшнавизма». Я не знаю, сколько мы можем сказать вам об этой презентации. Понимание этого очень важно. Вы все Гаудия Вайшнавы. Вы не просто вайшнавы или вайшнави. Существуют различные вайшнавские сампрадаи, но быть Гаудия-вайшнавом - это превосходно. Поэтому вы можете с гордостью сказать, что вы Гаудия Вайшнав. Вы становитесь Гаудия-вайшнавом, вступая в ИСККОН. Не все, но некоторые особые аспекты, которые делают Гаудия-вайшнавизм особенным, написаны здесь. 1. Ачинтья Бхеда-абхеда Таттва и Гаудия Сампрадая. В Веданта-сутре есть комментарий для всех таттв. Есть много таттв, таких как Вишиштадвайта таттва, Двайта Адвайта таттва, Двайта таттва. Шанкарачарья не был вайшнавом и не проповедовал вайшнавизм. Среди всех таттв, таттва принадлежащая Гаудия-вайшнаву, называется ачинтья-бхеда-абхеда таттва. Это таттва самая важная среди всех. Баладева Видьябхушана подтвердил это. сампрадайа-вихина йе мантрас те нишпхала матах атах калау бхавишьянти катварах сампрадайинах шри-брахма-рудра-санака вайшнава кшити-павана катварас те калау бхавья хи уткале пурушоттамат сампрадая-вихина йе мантрас те нишпхала матах атах калау бхавишьянти чатварах сампрадайинах шри-брахма-рудра-санака вайшнавах кшити-паванах чатварас те калау бхавья хй уткале пурушоттамат Перевод: “Любая мантра, полученная вне ученической преемственности, не принесет никаких плодов. Вот почему в этот век Кали явятся четыре великих личности, которые станут ачарьями четырех вайшнавских сампрадай, основанных Шри Лакшми-деви, Брахмой, Рудрой и Санакой. Их учения распространятся из Пурушоттама-кшетры (Джаганнатха Пури, Орисса)". (Падма Пурана цитируется в Прамея-Ратнавали) Падма Пурана утверждает, что мантра, полученная от так называемого гуру, который не принадлежит сампрадайе, бесплодна. Один - вифала (бесплодный), а другой - сапал (плодотворный). Гаудия сампрадая является величайшей среди всех сампрадай благодаря Чайтанье Махапрабху, Радхе Кришне. 2. Рагануга Садхана Бхакти. Что такое наша садхана или практика? Рагануга Садхана. Есть много раг или вкусов/настроений, с помощью которых мы совершаем бхакти. Рага-ану-га означает, что мы следуем раге или настроению. Нанда Баба совершал бхакти в ватсалья бхаве. Мы должны стремиться к такому бхакти. Чайтанья Махапрабху попросил нас следовать бхакти пастушек Враджа. арадхйо бхагаван враджеша-танайас тад-дхама вриндаванам рамйа качид упасана враджа-вадху-варгена ва калпита шримад бхагаватам праманам амалам према пум-артхо махан шри чайтанья махапрабхор матам идам татрадарах на парах Перевод: «Шри Чайтанья Махапрабху учил: высшим объектом поклонения является Шри Кришна, сын Махараджи Нанды; Враджа-дхама – это Его трансцендентная обитель, столь же почитаемая, как и Сам Господь; наилучший способ поклонения Кришне – тот, которым Ему поклонялись девушки-пастушки Враджи; «Шримад-Бхагаватам» – высшее авторитетное свидетельство Истины (амала-пурана), а Кришна-према – это наивысшая цель жизни» Эти утверждения, к которым мы относимся с большим уважением, являются мнением Шри Чайтаньи Махапрабху. (комментарий к «Шримад-Бхагаватам» под названием «Чайтанья-мата-манджуша» (словарь учения Шри Чайтаньи Махапрабху, написанной Вишванатхом Чакраварти) Этот тип бхакти называется Рагануга Садхана Бхакти. Это особенность Гаудия вайшнавизма. 3. Голока дхама. Это Вайкунтха Дхама, Сакет Дхама, а также Голока Дхама. На Голоке есть Матхура, Дварака, Вриндаван. вриндаванам паритйаджйа падам эках на гаччхати Перевод: Кришна не отходит даже на шаг от Вриндавана. На Голоке Кришна пребывает во Вриндаване. голока-намни ниджа-дхамни тале ча тасья деви-махеша-хари-дхамасу тешу тешу те те прабхава-ничая вихитах ча йена говиндам ади-пурушам там ахам бхаджами Перевод: Низший слой существования - это Деви-дхама (материальный мир). Выше расположена Махеш-дхама (обитель Шивы). Еще выше находится Хари-дхама (обитель Вишну), и выше всего простирается собственная обитель Кришны - Голока. Я поклоняюсь изначальному Господу - Говинде, который наделил властителей этих низших сфер возможностью править ими. (Брахма-самхита 5.43) Гаудия-вайшнавы считают Голока-дхаму своим конечным пунктом назначения. Они не хотят оставаться нигде между духовным небом и землей. Они достигают Голоки. Гаудия Вайшнавы сделали свой выбор. Они сразу идут на Голоку. 4. Раса-Вичара (экстатическая любовь к Кришне). Есть раса таттва, раса шастра и раса вичара. Есть двадаша расы. Есть 5 первичных рас и 7 вторичных рас. Из всех, мадхурья раса является высшей. анарпита-чарим чират карунайа̄ватирнах калау самарпайитум уннатоджджвала-расам сва-бхакти-шрийам харих пурата-сундара-дйути-кадамба-сандипитах сада хр̣дайа-кандаре спхурату вах шачи-нандана Перевод Шрилы Прабхупады: Да проникнет Верховный Господь, божественный сын Шримати Шачи-деви, в самую глубину вашего сердца. Сияя, как расплавленное золото, Он по Своей беспричинной милости нисшел на землю в эпоху Кали, чтобы даровать миру то, чего не давало ни одно из воплощений Господа: высочайшую, лучезарную расу преданного служения — расу супружеской любви. (Ч.Ч. Aди 1.4 ) Чайтанья Махапрабху, раздавал этот вкус. Он испытывал эту расу. Гаудия Вайшнавы являются экспертами в этом. Они знают высшую расу и пробуют ее на вкус. 5. Превосходство Шримад-Бхагаватам и Шри Чайтанья-чаритамриты. Продолжается обсуждение превосходства этой расы. арадхйо бхагаван враджеша-танайас тад-дхама вриндаванам рамйа качид упасана враджа-вадху-варгена ва калпита шримад бхагаватам праманам амалам према пум-артхо махан шри чайтанья махапрабхор матам идам татрадарах на парах Каждый должен выучить этот стих наизусть. Не только наизусть, мы должны поместить этот стих в наше сердце. Мы должны знать мнение Чайтаньи Махапрабху. Этот стих взят из книги под названием «Чайтанья-матта-манджуша», написанной Вишванатхой Чакраварти. В основе этого стиха лежит превосходство. Что лежит в основе гаудия-вайшнавизма? Шримад-Бхагаватам и Чайтанья-чаритамрита. Многие читали «Шримад-Бхагаватам», но у Гаудия-вайшнавов есть еще Чайтанья-чаритамрита. Если вы закончили изучение «Шримад-Бхагаватам», то вы сдали свой выпускной экзамен. Вы завершили свой B.Tech (бакалавриат). Если вы закончили изучение Чайтанья-чаритамриты, то вы получили степень магистра технологий, M.Tech (магистратура). Прабхупада сказал бы, что изучение Чайтанья-чаритамриты подобно обучению в аспирантуре. Чайтанья-чаритамрита - высшая литература. У Гаудия-вайшнавов есть свои учебные программы и учебники, такие как Гита, Бхагаватам и Чайтанья-чаритамрита. Это высшая литература. 6. Кришна и Кришна Чайтанья, Верховная Личность Бога говиндам ади-пурушам. Есть много пуруш, но Кришна - первый из всех. Дваракадиш тоже не ади, но Кришна во Вриндаване изначальный. эте чамша-калах пумсах кршнас ту бхагаван свайам индрари-вйакулам локам мрдайанти йуге йуге Перевод Шрилы Прабхупады: Все перечисленные воплощения представляют собой либо полные части, либо части полных частей Господа, однако Господь Шри Кришна — изначальная Личность Бога. Они нисходят на разные планеты, когда там по вине атеистов возникают беспорядки. Господь нисходит, чтобы защитить верующих. (Ш.Б. 1.3.28) Есть много воплощений Господа. Все они являются адвайтам ачьютам. Адвайтам означает, что они не отличны от Господа. Ачьютам означает, что они вечны. Но среди них особенными являются Шри Кришна и Шри Кришна Чайтанья Махапрабху. Первая свеча, как сказано в Брахма самхите. Когда все свечи горят, они выглядят одинаково. Но первая свеча это Кришна. Если бы первой свечи не было, то и оставшихся свечей тоже не было бы. У нас есть много вещей. У нас есть маха-мантра. У нас есть прасадам. Гаудия вайшнавы знают величие прасада. Чайтанья Махапрабху выразил славу прасадам. бхаи-ре! эк-дина шантипуре, прабху адваитера гхаре, дуи прабху бходжане босило шак кори' асвадана, прабху боле бхакта-гана, эи шак кршна асвадило Перевод: О братья! Однажды в Шантипуре, в доме Шри Адвайты, Господь Чайтанья сел обедать с Нитьянандой и, отведав зелени, сказал: "О Мои преданные, этот шак изумителен на вкус! Наверняка его попробовал Сам Господь Кришна". («Песня Прасада Сева» Бхактивинода Тхакура) Однажды в доме Шри Адвайты в Шантипуре Господь почувствовал, что Господь Кришна отведал прасад. Прасад смешан со слюной Господа. В этом вся духовность. Остальные религии не придают прасаду такого большого значения, как мы. На Голоке также придается такое же значение прасаду. Поэтому наш Гаудия-вайшнавизм называется кухонной религией. Там, где есть Кришна, поблизости есть кухня. Прасадам неотделим от жизни Кришны. Мы не охватили все пункты. Вы можете написать нам, что мы не упомянули. Сессия чата сейчас открыта, вы можете написать свои вопросы и комментарии, которые могут быть добавлены в этот список. Я провел семинар на эту тему в Маяпуре ILS (Международная санга лидеров ИСККОН) 2 года назад. Я также думаю о написании книги на эту тему. Харе Кришна! Спасибо! (Перевод Кришна Намадхан дас, редакция бхактин Юлия)