Hindi
*जप चर्चा*
*परम् पूज्य भक्ति आश्रय वैष्णव स्वामी महाराज*
*वृंदावन धाम से*
*दिनांक 23.04.2022*
हरे कृष्ण!!!
*गुरवे गौरचंद्राय राधिकायै तदालये।कृष्णाय कृष्णभक्त्ताय तद् भक्ताय नमो नमः।।*
*वाछां – कल्पतरुभ्यश्च कृपा – सिन्धुभ्य एव च। पतितानां पावनेभ्यो वैष्णवेभ्यो नमो नमः।।*
परम पूज्य श्रीलोकनाथ महाराज और उनके कृपा सानिध्य में उपस्थित आज के ज़ूम लिंक में जितने भी भक्तवृंद है और विशेषकरके पदमाली प्रभु जो कृपा करके बीच-बीच में मुझे सेवा का अवसर प्रदान करते हैं, आप सभी के चरणों में मेरा सादर प्रणाम! उन्होंने आज श्री अभिराम ठाकुर की तिरोभाव तिथि पर कुछ चर्चा करने के लिए बताया है। आप अगर गौरमंडल दर्शन में गए होंगे, (हुगली) वर्धमान जिले में खानकुला है। जिसके पास कृष्ण नगर, राधा नगर है, वहां श्रील अभिराम ठाकुर की पूजा का मंदिर स्थित है। श्रील अभिराम ठाकुर द्वादश गोपालों में से एक है एवं नित्यानंद प्रभु के अति प्रिय कृपा पार्षद हैं। श्रील अभिराम ठाकुर के बारे में ऐसा कहा जाता है कि वे ब्रज लीला में साक्षात श्रीदाम अर्थात भगवान के प्रिय सखा थे। एक समय भगवान कृष्ण अपने सखाओं के साथ लुका छुपी खेल रहे थे। (हाइड एंड सीक) श्रीदाम जी के छुपने की बारी थी, वे एक गुफा में छिप गए थे। कृष्ण को खेलते खेलते अचानक याद आया कि मुझे नवद्वीप में लीला करनी है, वे नवद्वीप चले गए। कृष्ण बलराम सब चले गए, श्रीदाम रह गए। नवद्वीप लीला में गौरांग महाप्रभु ने देखा कि श्रीदाम नहीं है।
उन्होंने बलराम से कहा- श्रीदाम कहां है? तब महाप्रभु ने कहा- वो भांडीरवन के पीछे वंशीवट है, वहां छिपा हुआ है। आज भी आप जब भांडीरवन के वंशीवट में जाएंगे, वहां श्रीदाम की गुफा है, जहां वे बैठे थे। द्वापर युग से लेकर कलयुग तक वहीं छिपे थे। नित्यानंद प्रभु, द्वापर में बलराम थे और अब कलियुग में नित्यानंद हो गए थे। युग परिवर्तन हुआ तो बहुत कुछ परिवर्तन हो गया था। द्वापर युग में लोगों की हाइट 12 हाथ थी, अब तो साढ़े तीन हाथ है। गौरांग महाप्रभु ने नित्यानंद प्रभु को भेजा कि जाओ! आवाज करो, वह आएगा। नित्यानंद प्रभु ब्रज में गए श्रीदाम! श्रीदाम! श्री दाम! पुकारा। श्रीदाम ने सुना, कौन मुझे बुला रहा है? वे बाहर निकले, उन्होंने देखा कि कोई छोटे साइज का मनुष्य है। नित्यानंद प्रभु ने बोला कि क्या आप श्रीदाम हैं? उन्होंने कहा कि हां, मैं ही श्रीदाम हूं। नित्यानंद प्रभु ने कहा कि श्री कृष्ण , चैतन्य लीला में हैं, वे आपको बुला रहे हैं। श्रील अभिराम ठाकुर ने कहा- तुम्हें कैसे पता कि वे बुला रहे हैं, तुम कौन हो? नित्यानंद प्रभु ने कहा कि मैं बलराम हूँ।अभिराम ठाकुर( श्रीदाम) ने पूछा कि आप दाऊ हो, मेरे दादा हो? दाऊ दादा हो? लगता तो नहीं हैं कैसे विश्वास करूं कि आप ही दाऊ दादा हो। कैसे मान लूं। बलराम ने कहा कि कैसे मानोगे, मैं आधार कार्ड तो लेकर आया नहीं। कोई आई.डी. प्रूफ तो है नहीं। अभिराम ठाकुर ने कहा कि अगर तुम सचमुच में दाऊ हो तो एक ही पहचान है कि हमारी सखा मंडली में कृष्ण के जितने भी गोप सखा हैं अथवा सखा मंडली में मेरे साथ कोई टक्कर नहीं ले सकता था। कृष्ण तो मेरे से हार जाता था , कृष्ण का मेरे साथ टक्कर रहता था, वह खेलते हुए हमेशा हार जाता था। केवल मुझे तो टक्कर देने वाला दाऊ है। दाऊजी मुझे टक्कर देने वाले हैं। विशेषकर जब हमारी दौड़ प्रतियोगिता होती थी वह मुझे पकड़ लेते थे।
अगर सचमुच श्री गौरांग है, श्री संकर्षण हैं आप मेरे दाऊ दादा हैं, तो चेक कर लेते हैं। हम दौड़ प्रतियोगिता करते हैं, यदि तुम मुझे ओवरटेक कर लोगे तो मान लूंगा। नही तो...तुम्हारी हाइट इतनी है और मेरी इतनी, ऐसे कैसे मान लूं।
नित्यानंद प्रभु बोले- ठीक है! दोनों दौड़ प्रतियोगिता के लिए खड़े हो गए लेकिन कहा कि यहां कहां दौड़ेंगे, एक साथ गोवर्धन तलहटी में चलते हैं, वहां दौड़ लगाएंगे। दोनों गोवर्धन तलहटी पर चले गए और जाकर दौड़े। (हम लोग जब गोवर्धन परिक्रमा करते हैं, तो दौड़ कर नहीं, आराम से पैदल करते हैं। फिर महीना आराम करते हैं, पता नही क्या कर दिया हो।) उन दोनों ने दौड़ना शुरू किया, दौड़ दौड़ कर सात परिक्रमा लगा दी। सातवीं बार में नित्यानंद प्रभु ने उसे पकड़ लिया, तब श्रीदाम बोले कि मान गया कि तुम ही दाऊ हो। नहीं तो किसी में इतनी ताकत नहीं है कि मुझे दौड़ते हुए पकड़ ले। इतने लंबे-लंबे मेरे पैर, मैं इतने बडे बडे कदम रखता हूँ तो कलयुग के मुनष्य इतने छोटे कैसे पकड़ सकते हैं, तुम्हारी हाइट इतनी छोटी। उस समय नित्यानंद प्रभु के पास हल था, उन्होंने हल से खींचकर उनको अपने समान कर दिया और बोला चलो अब चलना है। श्रीदाम के मन में था कि भगवान श्रीकृष्ण जी चले गए, आप भी चले गए मुझे बुलाया भी नहीं। ये अच्छा नही किया। मुझे बुला लेना था, यह तो ठीक नहीं हुआ, उनके मन में परीक्षा करने की भावना थी। वे नित्यानंद प्रभु के साथ गए, वही श्रीदाम गौर लीला में अभिराम ठाकुर के नाम से प्रसिद्ध हैं। राम दास गोपाल वही हैं, वह नित्यानंद प्रभु के मुख्य पार्षद हैं। जब
महाप्रभु सन्यास लेकर पूरी में थे, उस समय नवद्वीप से भक्त लोग वहां उनके पास जाते थे। एक समय नित्यानंद प्रभु के साथ उनके पार्षद रामदास भी गए थे। चैतन्य महाप्रभु ने नित्यानंद प्रभु को आदेश दिया कि मैं तो यहां रहूंगा, तुम जाकर बंगाल में प्रचार करो। अपने पार्षद रामदास को साथ लेकर जाओ, वह साक्षात ब्रज के गोपाल, ग्वाल हैं । नित्यानंद प्रभु के साथ उन्होंने अद्भुत लीला प्रदर्शन किया।
श्रील अभिराम ठाकुर की दो लीलाएं काफी प्रसिद्ध हैं, उनके पास एक चाबुक होता था, उसका नाम जय मंगल था। अगर किसी पर कृपा करते तो उसको चाबुक मार देते।
अगर किसी को मारते थे, तो समझो वह कृष्ण प्रेम में आ गया। सोचो, मार खाने से ही कृष्ण प्रेम आ जाता था तो कृपा करने से क्या होता। वह ऐसे ही किसी को नहीं मारते थे, चाबुक रखा हुआ था। जिस पर मन करता था, उसको खूब पीटते थे। उसका पिटाई से अंदर सब बदल जाता था।
श्रील अभिराम ठाकुर का एक और विशेष स्वभाव था। अगर पता चलता कि यह भगवान बड़ें प्रसिद्ध हैं, यहां ठाकुर जी की पूजा हो रही है, ये बड़ें प्रसिद्ध व्यक्ति थे, तो जाकर प्रणाम करते थे। उनके प्रणाम को सहन करना, किसी के बस की बात नहीं था। साक्षात कृष्ण या भगवत तत्व , विष्णु तत्व न हो, उनके प्रणाम को सहन नहीं कर सकते थे। क्योंकि वे साक्षात भगवत थे। हमेशा उसी मूड में रहते थे, उसी भाव में रहते थे, उनका अतिमानवीय कृत्य है। मनुष्य लोक में रहते मनुष्य की तरह व्यवहार करते हुए भी भगवद चिंतन में रहते थे। नित्यानंद प्रभु उनके परम मित्र हैं, उनके प्रभु हैं। वे नित्यानंद के पुत्र को जाकर प्रणाम करते थे, छह पुत्रों को प्रणाम करके मार डाला। जब सातवीं पुत्री आई, उनको भी जाकर प्रणाम किया, उनको कुछ नहीं हुआ। केवल पुत्रों को प्रणाम हुआ, वे ही गए, ऐसा नहीं है। विग्रहों को प्रणाम करते थे, अगर कोई कहता था कि मेरी साक्षात शालिग्राम शिला है, अगर वो सही में साक्षात शालिग्राम नहीं होगा, तो अभिराम प्रभु के प्रणाम करते ही वो टूट जाता था। विग्रह भी सही नहीं होगा, भगवान की उपस्थिति न हो उसमें तो वह विग्रह भी टूट जाता, फट या टेढ़ा मेढ़ा हो जाता था। बंगाल में कई विग्रहों को प्रणाम करके अभिराम ठाकुर ने परीक्षण किया था।
जब हम गौरमंडल दर्शन में जाते हैं, जब हम लोग श्रीपाद दर्शन के लिए गए थे। आप लोग ध्यान देकर सुनिए, जब हम दर्शन के लिए जाते हैं- दो प्रकार का दर्शन होता है एक है श्रीधाम और दूसरा श्रीपाद। जहां पर भगवान की साक्षात लीला होती है, उसको हम श्रीधाम कहते हैं। जहां पर भगवान के नित्य पार्षद / निज जन का वास होता है या भजन इत्यादि करते हैं, वह स्थान श्रीपाद कहलाता है। वह भी इतना ही शक्तिशाली है बल्कि उससे ज्यादा शक्तिशाली होता है भगवान तो भगवान ही हैँ लेकिन जो भगवान के भक्त होते हैं उनको हम रिलेट कर सकते हैं। भगवान को तो हम कर ही नहीं सकते, भक्तों का चरित्र भगवान के चरित्र से ज्यादा इंपोर्टेंट है। उससे ज्यादा प्रेरणा प्राप्त करते हैं। हम लोग नवद्वीप मंडल दर्शन करने के लिए जाते हैं और नवद्वीप की परिक्रमा करते हैं। बहुत लोग मायापुर जाते हैं और आसपास के द्वीप के दर्शन कर लेते हैं। नहीं नहीं। भगवान चैतन्य महाप्रभु के जो निजी भक्त/ पार्षद गण है उनके निज गण हैं, वह महाप्रभु से कुछ कम नहीं है। महाप्रभु के कृपा पात्र हैं उनकी जो भ्रमण स्थलियाँ है, उनको श्रीपाद कहा जाता है। गौरांग महाप्रभु के स्थान को मायापुर कहते हैं, नवद्वीप तो छोटा सा है लेकिन गौरमंडल काफी विशाल है। गौर मंडल के अंदर काफी स्थान है, महाप्रभु के जितने निज गण हैं। महाप्रभु ने उनको आस पास गौर मंडल में स्थान दे दिया है, एक से एक महान भक्त हैं।
उनको श्रीपाद कहा जाता है। उनमें से एक पाद अभिराम ठाकुर है, जिनका स्थान खानापुर है। खानापुर इसलिए कहते हैं क्योंकि वहां एक नदी का नाम खाना है, उसके किनारे एक स्थान है जहां कृष्ण प्राप्ति अर्थात गोपीनाथ विग्रह की प्राप्ति अभिराम ठाकुर जी को हुई थी। वह कृष्ण नगर है। आप बंगाल के विषय में प्रसिद्ध जनरल नॉलेज पढ़ेंगे। राजा राममोहन राय का नाम बड़ा प्रसिद्ध है, इन्होंने सती प्रथा को बंद करवाया था। राजा राम मोहन राय का ब्रिटिश साम्राज्य में बहुत बड़ा कॉलेज था। राजा राममोहन राय का जहां पर घर था, उसके ठीक विपरीत नदी थी, जहाँ अभिराम ठाकुर का स्थान है। आज भी सब उस स्थान पर जाते हैं जहां श्री गोपीनाथ जो कुंड से प्रकट हुए थे जिसे अभिराम कुंड कहते हैं। वह दिव्य कुंड है, उन्होंने उस कुंड के नीचे से श्री गोपीनाथ विग्रह को प्रकट किया था। उनकी पत्नी का नाम मालिनी देवी था, अभिराम ठाकुर के जो शिष्य थे, उनको वे बोलते थे कि समय हो रहा है, मैं जा रहा हूँ। शिष्य कहते थे हम आपको छोड़कर कैसे रह सकते हैं। उन्होंने कहा कि अपना विग्रह बना लो, मालिनी देवी का अपना भी एक विग्रह है, सब अद्भुत है। वहां जब हम दर्शन करने के लिए गए थे, खानपुर के पास बहुत प्राचीन सुंदर मंदिर है- राधा काला चांद मंदिर। जब हम राधा काला चांद मंदिर में गए, उसमें बहुत सुंदर राधा रानी है। वैसे कृष्ण हमेशा राधा रानी के अनुराग/ साथ में रहते हैं लेकिन यहां विग्रह देखा कि कृष्ण राधा रानी के पीछे खड़ें हैं लेकिन एक बार पता चला कि विग्रह तो ऐसे ही थे। लेकिन एक बार अभिराम ठाकुर आए , उस समय पट खुला था और आकर जैसे ही प्रणाम करने लगे। कृष्ण डर गए कि ये आया है और मुझे कुछ कर देगा और जाकर राधा रानी के पीछे स्वयं छुप गए। जब कृष्ण छिप गए थे, तो पुजारी आया तो उसने देखा कृष्ण पोजीशन चेंज करके राधा रानी के पीछे खड़े हैं। अभिराम ठाकुर भी देख रहे हैं कि कृष्ण कहाँ गए, कृष्ण पीछे खड़ें हैं।
महाप्रभु के जाने के बाद में श्रीनिवास आचार्य, अभिराम ठाकुर का दर्शन करने व आशीर्वाद लेने के लिए आए। श्रीनिवास आचार्य ने उनको व उनकी पत्नी मालिनी देवी को प्रणाम किया। जब श्री निवास आचार्य प्रणाम कर रहे थे, उस समय अभिराम ठाकुर के पास चाबुक पड़ा था, उन्होंने उसे उठाया और श्रीनिवास आचार्य को पीटा। श्रीनिवास आचार्य ने फिर से प्रणाम किया, अभिराम ठाकुर ने फिर से पीटा। तब श्रीनिवास आचार्य ने एक बार और प्रणाम किया, उन्होंने फिर से उन्हें पीटा, तीन बार पिटने के बाद उनकी पत्नी मालिनी देवी ने बोला, बहुत हो गया, प्रभु! और कितना कृष्ण प्रेम देंगे । तीन बार दे चुके हो और वह संभाल नहीं सकेगा। वह बच्चा है, आप उसको कितना प्रेम का हाई डॉज दे रहे हो। इस प्रकार अभिराम ठाकुर प्रेम/ गदगद लीला में इतना मग्न रहते थे। किसी को चांटा मारते थे किसी को प्रणाम करते थे। किसी को चाबुक से पीट देते थे, जिससे वो कृष्ण प्रेम से भर जाते थे। इस प्रकार से अभिराम ठाकुर जब वहां रहते थे तब एक दिन उनके मन में आया कि मेरा सखा बांसुरी बजाता है, तो मैं भी बाँसुरी बजाऊं। मन में बांसुरी बजाने के लिए आया तो बांसुरी को ढूंढने लगे। बोले कहां से बांसुरी बजाऊंगा, ढूंढते ढूंढते कोई भी बांसुरी भी नहीं मिल रही थी। तब उन्हें एक लकड़ी पड़ी हुई मिली जिसको कई व्यक्ति उठा नहीं सकते थे। वह लकड़ी इतनी भारी थी जिसे लगभग 16- 17 आदमी मिलकर भी उठा नहीं सकते थे, उन्होंने इतने विशाल लकड़ी को उठाकर छेद कर लिया और बाँसुरी की तरह बजाने लगे। ऐसे अद्भुत गुणगान है कहते हैं कि बांसुरी बजाने के बाद उन्होंने बाँसुरी को वहां गाड़ दिया था। वही बकुल वृक्ष हुआ। यदि आप कृष्ण नगर दर्शन करने के लिए जाएंगे, वहीं मंदिर के आगे रामपुर है और उसके आगे विशाल बकुल वृक्ष है। उसे सिद्ध बकुल भी कहा जाता है। बांसुरी पेड़ के रूप में प्रकट हुई अद्भुत लीला है।
एक तार्किक था, जो नवद्वीप में उस समय में शक्ति उपासक था बहुत बड़ें बड़ें सिद्ध आकर उनसे तर्क किया करते थे।
तर्क करके अंतत: अभिराम ठाकुर से परास्त हो कर वैष्णव बने। इस प्रकार उन्होंने और उनके शिष्यों के द्वारा अनेक अद्भुत अद्भुत लीलाएं प्रस्तुत की गयी। आज भी हम वहां अभिराम ठाकुर के स्थल का दर्शन करते हैं।
श्री गोपीनाथ की उपासना करते थे और उनकी पत्नी मालिनी देवी पूजा करती रही। वह भी अपने विग्रह दे गए थे।
वो विग्रह ऑल्टर में नहीं है, पुजारी को कहेंगे, अलग से दिखाएंगे। मालिनी देवी वे विग्रह भी हैं एक समय वहां प्रतिष्ठान उत्सव कर रहे थे, तब सबको बुलाया गया, गौर मंडल के सब भक्तों को बुलाया गया। सारे बड़े बड़े भक्त महंत सब आए थे। प्रसाद वितरण इत्यादि हो रहा था, उनकी पत्नी प्रवचन कर रही थी। सब बड़े बड़े भक्त बैठे हुए थे। जब वह प्रवचन कर रही थी तब उस समय एक हवा का झोंका आया, मालिनी देवी का घुंघट उड़ गया। उस समय बड़े-बड़े लोग सामने बैठे थे। उनके एक हाथ में पुस्तक थी तो साड़ी का घूंघट कैसे ठीक करें। संभालाना था, सबके सामने कैसे करें। तुरंत दो हाथ और निकल पड़े, वे चतुर्भुज हो गई और तुरंत दो हाथों से साड़ी ठीक हो गई। सामने बैठे लोग हैरान हो गए कि ये तो प्रवचन कर रही थी, ये कैसे हुआ। वे समझ गए कि मालिनी देवी साधरण नहीं हैं, वो भी असाधारण है। इस प्रकार अभिराम ठाकुर ने नित्यानंद प्रभु के पार्षद के रूप में उनके साथ नवद्वीप में अति अद्भुत लीला की।अभिराम दास जो राम दास के रूप में भी प्रसिद्ध है, आज भी उनके विग्रह के दर्शन वहां हो जाएंगे। अति दिव्य स्थान है। बुकल वृक्ष, रामकुंड है। बहुत ही भव्यशाली और बहुत ही कृष्ण प्रेम से भरा स्थल है।
महाप्रभु के जाने के बाद में वे भी चैत्र कृष्ण के सप्तमी को धाम में चले गए। आज अभिराम ठाकुर का तिरोभाव है, ऐसे ऐसे भगवद साक्षात सख्य भाव के भक्त थे। कृष्ण लीला के श्री दाम और चैतन्य लीला के अभिराम ठाकुर के तिरोभाव तिथि पर हम सब नित्यानंद प्रभु के श्री चरणों में ही प्रार्थना करेंगे कि हम पर अपनी कृपा करें। उनके जैसे पार्षद श्री गोपाल, श्रीदाम अभिराम ठाकुर हमको थोड़ा लात भी मार दे, एक चांटा भी मार दे, अपने चाबुक से पीट दे वैसे तो आजकल चाबुक तो रहा ही नहीं लेकिन अपने दिव्य विलास धाम से अगर थोड़ा बहुत गुस्सा भी करके कैसे भी हम पर थोड़ा दृष्टिपात कर ले वही हमारे लिए बहुत बड़ा आशीर्वाद हो जाएगा ।कृष्ण प्रेम के लायक तो हम अभी बने ही नहीं लेकिन उनकी कृपया से हम कृष्ण प्रेम के लायक बन सकते हैं। नित्यानंद प्रभु बहुत कृपालु हैं, प्रेम दाता हैं, उन्हीं के पार्षद हैं रामदास, वही गोप सखा श्रीदाम अभिराम ठाकुर के आज तिरोभाव तिथि पर हम सभी हृदय से यही प्रार्थना /श्रद्धांजलि उनके चरणों में अर्पित करते हैं। हे अभिराम ठाकुर! आपके पूजित श्रीगोपीनाथ के चरणों में हम प्रार्थना करते हैं कि अधमों को आपकी कृपा की आवश्यकता है। हम पर दया कीजिए। आज की विशेष तिथि में गोपीनाथ, श्रीदाम सखा और मालिनी देवी के श्री चरणों में खानपुर कृष्ण नगर की भूमि उसकी तरु लता, उनके शिष्य, प्रशिष्य सभी को प्रणाम करते हैं कि हमें भी अभिराम ठाकुर की कृपा प्राप्त हो।
श्री अभिराम ठाकुर की जय!
श्री नित्यानंद प्रभु की जय!!
हरे कृष्ण