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*हरे कृष्ण*
*जप चर्चा -08-06 -2022*
(गुरु महाराज द्वारा )
*कृष्ण जिनका नाम है गोकुल जिनका धाम है ऐसे श्री भगवान को मेरा बारंबार प्रणाम है।*
गोकुल धाम की जय ! कृष्ण कन्हैया लाल की जय ! एक लीला कल या परसों में मैं पढ़ रहा था मुझे बहुत अच्छी लगी वह, जब मैंने उसको पढ़ा और फिर चिंतन भी किया, सोच ही रहा था कुछ मनन कर रहा था फिर उसी समय सोचा इतनी मधुर कथा लीला को शेयर करना चाहिए। तो आज वही अब मैं करने जा रहा हूं वैसे आप पढ़ ही रहे हो मेरे पीछे जो स्क्रीन है भगवान कृष्ण ने यहां मिट्टी खाई थी और यह दृश्य गोकुल के ब्रह्मांड घाट का है और नाम भी क्यों ब्रह्मांड घाट पड़ा। वैसे आप देख रहे हो यशोदा देख रही है कृष्ण के मुख में और यशोदा को दिखाई दिया पूरा ब्रह्मांड कृष्ण के मुख में तो इस प्रकार यह लीला स्थली संपन्न हुई। उस घाट का नाम बन गया ब्रह्मांड घाट, ब्रह्मांड घाट की जय ! ब्रह्मांड घाट को भी देख रहे हो। ब्रज मंडल परिक्रमा में जब हम जाते हैं तब कई बार और हर बार हर साल यहां पहुंचते ही हैं
*ब्रह्माण्ड भ्रमिते कोन भाग्यवान् जीव। गुरु-कृष्ण-प्रसादे पाय भक्ति-लता-बीज*
(चैतन्य चरितामृत मध्य 19. 151)
अनुवाद- “सारे जीव अपने-अपने कर्मों के अनुसार समूचे ब्रह्माण्ड में घूम रहे हैं। इनमें से कुछ उच्च ग्रह-मण्डलों को जाते हैं और कुछ निम्न ग्रह-मण्डलों को। ऐसे करोड़ों भटक रहे जीवों में से कोई एक अत्यन्त भाग्यशाली होता है, जिसे कृष्ण की कृपा से अधिकृत गुरु का सान्निध्य प्राप्त करने का अवसर मिलता है। कृष्ण तथा गुरु दोनों की कृपा से ऐसा व्यक्ति भक्ति रूपी लता के बीज को प्राप्त करता है।
यहां शुकदेव गोस्वामी कथा सुनाने वाले हैं। यहां यमुना के तट पर संपन्न हुई इस लीला को शुकदेव गोस्वामी गंगा के तट पर राजा परीक्षित को सुनाएं और वही कथा हम पढ़ते सुनते हैं।
*एकदा क्रीडमानास्ते रामाद्या गोपदारकाः। कृष्णो मृदं भक्षितवानिति मात्रे न्यवेदयन् ॥* (श्रीमदभागवतम १०.८.३२)
अनुवाद -एक दिन जब कृष्ण अपने छोटे साथियों के साथ बलराम तथा अन्य गोप-पुत्रों सहित खेल रहे थे तो उनके सारे साथियों ने एकत्र होकर माता यशोदा से शिकायत की कि "कृष्ण ने मिट्टी खाई है।"
एक समय की बात है या एक दिन की बात है कृष्ण ने क्या किया मद भक्षण वहां की मिट्टी खाई, कृष्ण एकांत में गए और और देख रहे थे कि कोई मुझे देख तो नहीं रहा ना उन्होंने सोचा कि मैं अकेला हूं मुझे कोई देख नहीं रहा है तब उन्होंने मद भक्षण किया किंतु वहां पर सीसीटीवी कैमरा लगे होते हैं चोरों को पकड़ने के लिए तो वहां स्वयं बलराम ने और मित्रों ने भी देख लिया कृष्ण को मिट्टी भक्षण करते हुए। ऐसा तो नहीं करना चाहिए था ना , बलराम और मित्र दौड़े नंद भवन की ओर। यशोदा मैया देखो यू नो व्हाट ? कृष्ण ने मिट्टी खाई , यशोदा दौड़ पड़ी कहां है, मुझे ले चलो , दिस वे दैट वे बलराम और मित्र बड़े उत्साह के साथ यशोदा को वहां ले जाते हैं। अब यशोदा पीटेगी डाटेगी कृष्ण को, वह सब देखना चाहते हैं। अब यशोदा पहुंच गई और पूछा तुम ने मिट्टी खाई ? कृष्ण कुछ बोल नहीं रहे हैं, तुमने खाई है ना मिट्टी ? कृष्ण कुछ बोल नहीं रहे क्योंकि इस समय बची हुई मिट्टी को पहले खाना चाहते थे। बोलने से पहले वह बोलना प्रारंभ करते तो मुख में मिट्टी दिखने वाली थी इसीलिए बची हुई मिट्टी को समाप्त करने का प्रयास हो रहा था। तब कृष्ण कहते हैं
*नाहं भक्षितवानम्ब सर्वे मिथ्याभिशंसिनः । यदि सत्यगिरस्तर्हि समक्षं पश्य मे मुखम् ॥*
(श्रीमदभागवतम 10.8.35)
अनुवाद - श्रीकृष्ण ने उत्तर दिया, "हे माता, मैंने मिट्टी कभी नहीं खाई। मेरी शिकायत करने वाले मेरे सारे मित्र झूठे हैं। यदि आप सोचती हैं कि वे सच बोल रहे हैं, तो आप मेरे मुँह के भीतर प्रत्यक्ष देख सकती हैं।
नहीं ! नहीं ! मैंने मिट्टी नहीं खाई, कौन कहता है ? यशोदा कहती है देखो तुम्हारा बड़ा भाई बलराम भी कहता है। ना अहम भक्षिता ना अहम भक्षिता, तुम उनकी बात को सच मानती हो ?
*न तु मां शक्यसे द्रष्टुमनेनैव स्वचक्षुषा | दिव्यं ददामि ते चक्षु: पश्य मे योगमैश्र्वरम् ||*
( श्रीमद भगवद्गीता 11.8)
अनुवाद- किन्तु तुम मुझे अपनी इन आँखों से नहीं देख सकते, अतः मैं तुम्हें दिव्य आँखें दे रहा हूँ, अब मेरे योग ऐश्र्वर्य को देखो ।
कृष्ण ने कहा तो तुम स्वयं ही देखो मेरे मुख में, तब पता चलेगा मेरे मित्र और बलराम भी झूठ बोल रहे हैं। ऐसा कहते हुए कृष्ण ने जब अपना मुंह खोल कर दिखाया और यशोदा ने मुख में देखा तो क्या देखा, मिट्टी को देखा और हां खाई हुई मिट्टी को देख लिया था। लेकिन तो भी यशोदा ने मिट्टी के ढेर के ढेर देखें , फिर सारी पृथ्वी को देखा, सारे ग्रह नक्षत्र दिखे, उसको कृष्ण के मुख में यहां । शुकदेव गोस्वामी काफी लंबी लिस्ट आकाश को देखा सभी दिशाओं को देख रही है , यशोदा द्वीप देख रही है सो मेनी आइलैंड। इन द माउथ ,कई सारे पर्वत देख रही है कई सारे समुंद्र देख रही है। सारे ब्रह्मांड का वह दर्शन कर रही है। दर्शन, क्या दर्शन? जब हम करते हैं हम कोई भी प्रेम से उसको निहारता है उसका आस्वादन करता है उसकी प्रशंसा करता है। किंतु ऐसा नहीं हो रहा था जब यशोदा ने देखा तो उसका दिमाग चकरा गया, समभ्रमित हुई यशोदा , यह क्या देख रही हूं मैं ! मेरे लाला के मुख में क्या यह कोई सपना तो नहीं है फिर सोचती है कि सपना कैसे हो सकता है। मैं सोई तो नहीं हूं, मैं तो यहां यमुना के तट पर हूं, यह स्वप्न तो नहीं हो सकता या यह कोई योग माया है या मेरी बुद्धि का यह भ्रम है, नहीं मैं देख तो रही हूं यह सत्य है, मैं सोई नहीं हूं, मैं स्वयं देख रही हूं यह झूठ तो नहीं हो सकता यह सपना नहीं है फिर उसको याद आता है।
*तस्मान्नन्दात्मजोऽयं ते नारायणसमो गुणैः । श्रिया कीर्त्यानुभावेन गोपायस्व समाहितः ॥*
( श्रीमदभागवतम 10.8.19 )
अनुवाद -अतएव हे नन्द महाराज, निष्कर्ष यह है कि आपका यह पुत्र नारायण के सदृश है। यह अपने दिव्य गुण, ऐश्वर्य, नाम, यश तथा प्रभाव से नारायण के ही समान है। आप इस बालक का बड़े ध्यान से और सावधानी से पालन करें।
नारायण इस बालक मैं होंगे, गुरु गर्गाचार्य बता कर गए थे। नारायण जैसे गुण इस बालक में होंगे या है तो क्या गर्गाचार्य की कही हुई बात सच निकल रही है मेरा बालक नारायण जैसा है या नारायण है। नहीं !नहीं ! यह तो मेरा बालक है , इट्स माय सन, यह भगवान के ऐश्वर्य का विराट रूप का, विश्वरूप का दर्शन या पूरे ब्रह्मांड का दर्शन, जो मुख में कर रही है। यह है भगवान का ऐश्वर्य या ऐश्वर्य का ज्ञान लेकिन यह ऐश्वर्या का ज्ञान वह समभ्रमित हो रही थी या उनका जो वात्सल्य है वात्सल्य अपने पुत्र के प्रति, कृष्ण के प्रति वात्सल्य, माय सन मेरा पुत्र है यह, भगवान नहीं हो सकता भगवान नहीं है ,आई डोंट केयर भगवान है या नहीं है, यह तो मेरा ही पुत्र है ऐसा सोचती हुई पुनः गोद में लिया और पुनः स्तनपान कराने लगी यशोदा और यह कथा जब शुकदेव गोस्वामी सुना रहे थे। राजा परीक्षित को कि कैसे यशोदा ने पुन:, अभी तो डांट रही थी फिर दर्शन भी कर रही थी मुख में, वह सब कुछ छोड़ छाड़ के उसको समाप्त किया। यशोदा ने कैसे बालक को अपनी गोद में लिटाया और स्तनपान करा रही है और जब यह बात राजा परीक्षित ने सुनी है तो वह
श्रीराजोवाच नन्दः *किमकरोद्ब्रह्मन्श्रेय एवं महोदयम् । यशोदा च महाभागा पपौ यस्याः स्तनं हरिः ॥*
(श्रीमदभागवतम 10.8.46)
अनुवाद -माता यशोदा के परम सौभाग्य को सुनकर परीक्षित महाराज ने शुकदेव गोस्वामी से पूछा : हे विद्वान ब्राह्मण, भगवान् द्वारा माता यशोदा का स्तन-पान किया गया। उन्होंने तथा नन्द महाराज ने भूतकाल में कौन-से पुण्यकर्म किये जिनसे उन्हें ऐसी प्रेममयी सिद्धि प्राप्त हुई? ।
यशोदा मैया की जय ! परीक्षित ऐसा ही कह रहे थे भाग्यवती यशोदा ! क्या भाग्य है यशोदा का, तपो स्वयं हरि ! यशोदा कृष्ण को अपने स्तन का पान कराती है। कैसा है सौभाग्य भगवान बने हैं अपत्य ,
अंबा मतलब मां को अंबा कह के संबोधित किया जाता है ऐसे षड ऐश्वर्य संपन्न भगवान यशोदा को अंबा कह कर पुकार रहे हैं, महान भगवान कितने छोटे शिशु बने हैं। वत्स बने हैं और वात्सल्य रस का वह भी आस्वादन कर रहे हैं। यशोदा का भी वात्सल्य का आदान-प्रदान होता है कृष्ण के मध्य में, राजा परीक्षित कह रहे हैं। यशोदा चा महाभागा, भाग्यवान यशोदा मैया जो उन्होंने देखा वह ब्रह्मांड का ही दर्शन था, स्वप्न नहीं था। असत्य, झूठ नहीं था वह कल्पना नहीं थी और तुम कह रहे हो मैंने मिट्टी खाई लेकिन मिट्टी तो मेरे बाहर भी मिट्टी है सर्वत्र और मेरे अंदर भी ,
*यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति |तस्याहं न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति ||*
(श्रीमद भगवद्गीता 6.30)
अनुवाद- जो मुझे सर्वत्र देखता है और सब कुछ मुझमें देखता है उसके लिए न तो मैं कभी अदृश्य होता हूँ और न वह मेरे लिए अदृश्य होता है |
इस संसार में जो मुझको देखता है और मुझमे जो सारे संसार को देखता है। ऐसा व्यक्ति ज्ञानवान है विद्वान है। ऐसे ही भगवान शुद्ध कर रहे हैं
*नमस्तेऽस्तु दाम्ने स्फुरद्दीप्तिधाम्ने त्वदीयोदरायाथ विश्वस्य धाम्ने ।नमो राधिकायै त्वदीय-प्रियायै नमो अनंत लीलाय देवाय तुभ्यम्।।*
(दमोदराष्टकम 8)
हे दामोदर, आपके उदर को बाँधने वाली दैदीप्यमान रस्सी को प्रणाम! आपके उदर को प्रणाम जो सम्पूर्ण जगत् का धाम है! आपकी सर्वप्रिया श्रीमती राधारानी को प्रणाम! और अनन्त लीला करने वाले। हे भगवन्, आपको भी मेरा प्रणाम है।
और लीलाएं होने वाली हैं वह दामोदर लीला भी संपन्न होने वाली है और जब हम उस दामोदर लीला को संपन्न करते हैं तब दामोदर अष्टक गाते हैं। जब दामोदर अष्टक गाते हैं, कई सारी मधुर लीलाएं कृष्ण की और बाल लीला और भी मधुर मधुरतम कहीं जाती है। कृष्ण की बाल लीलाएं , भगवान तो बड़े हैं, महान हैं तो भी लीला मधुर तो है ही लेकिन बड़े महान भगवान जब छोटे हो जाते हैं। शिशु हो जाते हैं वैसे भगवान है विशंभर ! सारे विश्व का लालन-पालन करने वाले इसीलिए कृष्ण को विशंभर कहा जाता है। लेकिन यहां तो नंद बाबा और यशोदा पालक बने हैं। पालन करने वाले कृष्ण का लालन-पालन नंद बाबा यशोदा कर रहे हैं। कृष्ण स्वयं को ही इतना छोटा बना देते हैं, बालक बना देते हैं और फिर बाल सुलभ लीलाएं खेलते हैं जैसे मिट्टी खाना, छोटे बालक कहीं कहीं पर मिट्टी खाते रहते हैं, मतलब आप शहर में हो और यदि आपके बालक हैं वहां तो मिट्टी मिलती ही नहीं है वहां तो स्टील है या फिर फर्श है। ऐसा सोच रहा था यह जो लीला है मद भक्षण लीला, गांव वाले उसको समझ सकते हैं क्योंकि वह अनुभव किए हुए होते हैं। कृष्ण बाल सुलभ लीलाएं खेलते हैं।
मैंने मिट्टी नहीं खाई, यशोदा कहीं पकड़ती है माखन खाते हुए या माखन खाते हुए चोरी की कोई शिकायत सुनते हुए, सुनने के उपरांत जब यशोदा कृष्ण का गला पकड़ती है, कान पकड़ती है, तब कृष्ण कहते हैं मैं नहीं माखन खायो, नहीं नहीं मैंने माखन नहीं खायो, मैं नहीं माखन खायो कहते कहते फिर मैं नहीं माखन खायो, मैंने ही माखन खायो तो यहां पर भी मैंने मिट्टी नहीं खाई, मैंने मिट्टी नहीं खाई और यदि तुम कहती हो कि मैं ने ही मिट्टी खाई, तो देख लो अभी मैं दिखाता हूं मेरे मुंह में ,बच्चे कभी कभी झूठ बोल लेते हैं। उनको बोलना पड़ता है, डर जाते हैं कि अगर मैं सच कहूंगा तो मेरी पिटाई होगी। कृष्ण यह भी दिखा रहे हैं या झूठ बोल रहे हैं। संसार भर के बालक भी और बालिकाएं भी झूठ बोलती हैं, आपको याद होगा आपने भी झूठ बोला होगा, मां ने जब तुम को पकड़ा होगा गलती करते हुए, ऐसे कृष्ण बन जाते हैं, बाल लीला खेल रहे हैं, बाल सुलभ लीला बिल्कुल बालक जैसे ही उनका व्यवहार होता है। मां से डरे ही हैं और झूठ भी कुछ बोल रहे हैं या फिर वहां दामोदर अष्टक गाते गाते फिर अंतिम अष्टक जब हम गाते हैं। *नमस्तेऽस्तु दाम्ने स्फुरद्दीप्तिधाम्ने त्वदीयोदरायाथ विश्वस्य धाम्ने*
तुम्हारे उदर को नमस्कार , कैसा है उदर ? विश्वस्य धाम्ने , सारे विश्व का धाम है तुम्हारा उदर या मुख, सारा विश्व तुम्हारे अंदर है सब कुछ मेरे अंदर भी है, बाहर भी है, हरि हरि ! ऐसी है कृष्ण लीला की मधुर लीलाएं ऐसा है वात्सल्य या योग माया यह सब अलग-अलग परिस्थिति निर्माण करती है। उसका सेटिंग द सीन कहो , यहां हम देखते हैं अलग-अलग सेटिंग्स या अलग-अलग लीलाएं और कुछ लीलाएं कैसी, वात्सल्य में, डालने का वैसे हमें यही दर्शन होता है कि यशोदा का अपने प्यारे लाडले कन्हैया से इतना अधिक प्रेम है और कृष्ण की सारी महानता और इतना सारा यह वैभव ,
*मयाध्यक्षेण प्रकृतिः सूयते सचराचरम् | हेतुनानेन कौन्तेय जगद्विपरिवर्तते ||*
(श्रीमद भगवद्गीता 9.10)
अनुवाद- हे कुन्तीपुत्र! यह भौतिक प्रकृति मेरी शक्तियों में से एक है और मेरी अध्यक्षता में कार्य करती है, जिससे सारे चर तथा अचर प्राणी उत्पन्न होते हैं | इसके शासन में यह जगत् बारम्बार सृजित और विनष्ट होता रहता है |
अनंत कोटि ब्रह्मांड नायक है सारी प्रकृति के अध्यक्ष हैं इस प्रकार का वैभव में , यशोदा नॉट इंटरेस्टेड हरि हरि ! और इसी के साथ यशोदा का वात्सल्य उमड़ आता है और प्रदर्शित होता है यशोदा मैया की जय ! कृष्ण कन्हैया लाल की जय !गोकुल धाम की जय ! आप सुनते रहो ,हरि नाम लेते रहो, भगवान की लीला का स्मरण करो, आज प्रातः काल में मैं दोनों ही कर रहा था मुझे पता नहीं चल रहा था कि मैं लीला का स्मरण कर रहा हूं या नाम का स्मरण कर रहा हूं या नाम स्मरण करते हुए लीला का स्मरण हो रहा था, लीला का स्मरण करते करते नाम का स्मरण हो रहा था। कृष्ण के नाम में और धाम में लीला में भेद नहीं है, लीला भी कृष्ण ही है और नाम भी कृष्ण ही है। जैसे ध्यान पूर्वक नाम जप करते हैं वैसे ही लीला का भी ध्यान पूर्वक ध्यान करना चाहिए या ध्यानपूर्वक श्रवण करना चाहिए और ध्यान भी वैसे करते रहना चाहिए, नाम जप करते समय जो रूप गुण लीला का स्मरण हुआ, उसको स्मरण करते रहना चाहिए उसको मनन कहते हैं
श्रीप्रहाद उवाच
*श्रवणं कीर्तनं विष्णो: स्मरणं पादसेवनम् । अर्चनं वन्दनं दास्यं सख्यमात्मनिवेदनम् ॥* २३॥
*इति पुंसार्पिता विष्णौ भक्तिश्चेन्नवलक्षणा । क्रियेत भगवत्यद्धा तन्मन्येऽधीतमुत्तमम् ॥* २४॥ श्रीमदभागवतम
अनुवाद - प्रह्लाद महाराज ने कहा : भगवान् विष्णु के दिव्य पवित्र नाम, रूप, साज-सामान तथा लीलाओं के विषय में सुनना तथा कीर्तन करना, उनका स्मरण करना, भगवान् के चरणकमलों की सेवा करना, षोडशोपचार विधि द्वारा भगवान् की सादर पूजा करना, भगवान् से प्रार्थना करना, उनका दास बनना, भगवान् को सर्वश्रेष्ठ मित्र के रूप में मानना तथा उन्हें अपना सर्वस्व न्योछावर करना (अर्थात् मनसा, वाचा, कर्मणा उनकी सेवा करना)- शुद्ध भक्ति की ये नौ विधियाँ स्वीकार की गई हैं। जिस किसी ने इन नौ विधियों द्वारा कृष्ण की सेवा में अपना जीवन अर्पित कर दिया है, उसे ही सर्वाधिक विद्वान व्यक्ति मानना चाहिए, क्योंकि उसने पूर्ण ज्ञान प्राप्त कर लिया है।
स्मरण करते रहना श्रवण और कीर्तन जब कर रहे थे तब श्रवण कीर्तन हमको कुछ कुछ स्मरण दिलवाया, यह रिमाइंडर हुआ श्रवण कीर्तन के समय तो हुआ ही स्मरण, स्मरणीय बातें, स्मरण करने के उपरांत उस समय श्रवण कीर्तन के समय श्रवण करने के उपरांत उसको स्मरण करते ही रहो, उसको कहते हैं मनन, श्रवण कीर्तनम विष्णु स्मरणम को कंटिन्यू करना है, उसी को मनन करते रहना है और यह मनन भी अनिवार्य है और फिर हम और भी कुछ कर रहे हैं भूल गए श्रवण को नहीं छोड़ दिया, उन्हें मिलेंगे ऐसा नहीं करना होता है। श्रवण कीर्तन विष्णु स्मरणम का लाभ, स्मरण करते ही रहो ऐसे फिर शुद्ध भक्तों या भगवान भगवत धाम की इस मंतव्य,
*स्मर्तव्यः सततं विष्णुर्विस्मर्तव्यो न जातुचित् । सर्वे विधि-निषेधाः स्युरेतयोरेव किङ्कराः ॥*
(चैतन्य चरितामृत मध्य 22. 113)
अनुवाद - कृष्ण ही भगवान् विष्णु के उद्गम हैं। उनका सतत स्मरण करना चाहिए और किसी भी समय उन्हें भूलना नहीं चाहिए। शास्त्रों में उल्लिखित सारे नियम तथा निषेध इन्हीं दोनों नियमों के अधीन होने चाहिए।"
गोपियों की स्पेशलिटी है, गोपियां कहो या यशोदा कहो या ग्वाल बाल कहो या कृष्ण के मित्र कहो उन्होंने सुनी हुई याद की हुई या देखी हुई लीला या ऐसे होता ही है जब उनके साथ खेलने वाले ग्वाल बाल अपने-अपने घर लौटते हैं। फिर हर घर का जो बालक कृष्ण के साथ गाय चराने गया था लौटता है तो कहता है मैया डैडी डैडी कम हेयर , अपने माता पिता को बुलाते हैं भोजन के समय सारे दिन भर की जो घटनाएं हैं। वंडरफुल कृष्ण की लीलाएं, कथाएं हैं उनका जो आंखों देखा उसको भी सुनाएंगे और इस प्रकार यह आकाशवाणी कहो हर घर में रेडियो, लेकिन वक्ता कौन है, ग्वाल बाल हैं। जो सबको सुनाते हैं और इस प्रकार यह लीलाएं उनका विस्तार होता है फैलाई जाती हैं , फैलती है और ताजी रहती हैं। फिर इस प्रकार जो संस्मरण है और जो मनन है इसको भी करना है।
गौर प्रेमानंदे !
हरि हरि बोल !