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जप चर्चा दिनांक ०५.०८.२०२० हरे कृष्ण! आज इस जप चर्चा में 810 स्थानों से प्रतिभागी सम्मिलित हैं। सूत उवाच यं ब्रह्मा वरुणेन्द्ररुद्रमरुत: स्तुन्वन्ति दिव्यै: स्तवै- र्वेदै: साङ्गपदक्रमोपनिषदैर्गायन्ति यं सामगा: । ध्यानावस्थिततद्गतेन मनसा पश्यन्ति यं योगिनो यस्यान्तं न विदु: सुरासुरगणा देवाय तस्मै नम: ॥ ( श्री मद् भागवतम १२.१३.१) अनुवाद:- सूत गोस्वामी ने कहा ब्रह्मा, वरुण, इन्द्र, रूद्र तथा मरुत्गण दिव्य स्तूतियों का उच्चारण करके तथा वेदों को उनके अंगों, पद- क्रमों तथा उपनिषदों समेत बांच कर जिनकी स्तूति करते हैं, सामवेद के गायक जिनका सदैव गायन करते हैं, सिद्ध योगी अपने को समाधि में स्थिर करके अपने को उनके भीतर लीन करके जिनका दर्शन अपने मन में करते हैं तथा जिनका पार किसी देवता या असुर द्वारा कभी भी नहीं पाया जा सकता- ऐसे भगवान को मैं सादर नमस्कार करता हूं। हरि !हरि! श्री कृष्ण जन्माष्टमी महोत्सव की जय! इस जन्माष्टमी उत्सव के अंतर्गत ही हमारी यह हरि कथा संपन्न हो रही है। आपका स्वागत है। आप सभी जीवों का स्वागत है। मेरी प्यारी आत्माओं! मेरी तो नहीं( मुस्कराते हुए)। आप प्यारी प्यारी आत्माएं हो, आप किस की आत्माएं हो? आप कृष्ण अथवा भगवान की आत्मा हो। (हंसते हुए) नहीं, आप भगवान की आत्मा नहीं हो लेकिन आप भगवान से संबंधित हो अर्थात मेरा यह कहने का तात्पर्य है कि आप भगवान के हो। आप किसके हो? ममैवांशो जीवलोके जीवभूतः सनातनः । मनःषष्ठानीन्द्रियाणि प्रकृतिस्थानि कर्षति ॥ ( श्रीमद् भगवतगीता १५.७) अनुवाद:- इस बद्ध जगत् में सारे जीव मेरे शाश्र्वत अंश हैं । बद्ध जीवन के कारण वे छहों इन्द्रियों के घोर संघर्ष कर रहे हैं, जिसमें मन भी सम्मिलित है। भगवान कहते हैं कि मैं परमात्मा हूं। मैं भगवान हूं और तुम मेरे अंश हो। मैं परम् आत्मा हूं और आप आत्मा हो एवं मेरे हो। "ममैवांशः" अर्थात मेरे ही तो अंश हो और आप कितने समय के लिए मेरे अंश रहोगे? 'सनातन' अर्थात आप सदैव मेरे अंश के रूप में रहोगे। आप सदैव मेरे भक्त या दास या मित्र या माता पिता के रूप में रहोगे। कृष्ण कन्हैया लाल की जय! उनके साथ हमारा ऐसा ही संबंध है।यह संबंध ज्ञान कहलाता है। इसी संबंध ज्ञान से हमारा आध्यात्मिक जीवन का आरंभ होता है। हम भगवान के हैं और भगवान हमारे हैं। यदि ऐसा हम समझ के साथ कह सकते हैं, तो उससे हमारा कल्याण होगा। मैं भगवान का हूं और भगवान किसके हैं (पूछते हुए) क्या आपके नहीं हैं? आप कह तो नहीं रहे हो? हरि! हरि! हम भगवान के हैं और हम सदा के लिए भगवान के ही रहेंगे। ऐसा ही भगवान ने भगवत गीता में अर्जुन से कहा। वैसे वह बात हमारे लिए ही कही गयी है। हम श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के संबंध में चर्चा कर रहे हैं। भगवान् का जन्माष्टमी अर्थात अष्टमी के दिन जन्म होगा ... लेकिन वैसे हम इस कथा प्रसंग में वह जन्म आज ही करने वाले हैं। उसी कथा के अंतर्गत हम सुन रहे थे कि कैसे देवता मथुरा मंडल में पधारे और देवताओं ने गर्भ स्तुति की। यह स्तुति बड़ी महत्वपूर्ण है। इसलिए हमने भी कहा:- "यं ब्रह्मा वरुणेन्द्ररुद्रमरुत: स्तुन्वन्ति दिव्यै: स्तवै-" ऐसे हैं भगवान। भगवान् कैसे हैं? भगवान् ऐसे हैं कि ब्रह्मा वरुणेन्द्ररुद्रमरुत: स्तुन्वन्ति दिव्यै: स्तवै अर्थात जिनकी स्तुति देवता भी करते हैं। भगवान् ऐसे हैं कि र्वेदै: साङ्गपदक्रमोपनिषदैर्गायन्ति यं सामगा: अर्थात सभी शास्त्रों में वेद, पुराण, उपनिषद, गीता, भागवतम 'हरि सर्वत्र ज्ञीयते' भगवान् के नाम का गुणगान होता है। भगवान ऐसे हैं कि 'ध्यानावस्थिततद्गतेन मनसा पश्यन्ति यं योगिनो'अर्थात योगी भी जिनका ध्यान अवस्था में ध्यान करते हैं। श्रीमद्भागवतम् में भगवान की ऐसी स्तुति भी की गई है। देवताओं ने जो स्तुति की, यह वैसी स्तुति नहीं है। "यस्यान्तं न विदु: सुरासुरगणा देवाय तस्मै नम:" यस्यान्तं यस्यान्तं न विदु: अर्थात जिनके अंत को क्योंकि वे अनंत हैं, कोई नहीं जानता। भगवान का कोई अंत नहीं है, इसलिए वे अनंत हैं। सुरासुरगणा न विदु:अर्थात उनके अंत को ना तो सुर जानते हैं और ना ही असुर। असुर तो उनको जान ही नहीं सकते। वैसे सुर भी नहीं जानते। भक्त हो या अभक्त कोई भी उन्हें नही जानता। भगवान का अंत नहीं है। भगवान अनंत हैं। देवाय तस्मै नमः ऐसे भगवान को बारंबार प्रणाम है। देवताओं ने जो स्तुति की है, उसे गर्भ स्तुति भी कहा जाता है। श्रीमद्भागवतम् के दसवें स्कंध के द्वितीय अध्याय में इस स्तुति का उल्लेख हुआ है। आपके पास अगर फुरसत हो तो... वैसे आपके पास तो मरने की फुर्सत भी नहीं है, आप फिर देवताओं द्वारा की गई स्तुति को कहांँ से पढ़ोगे। हम माया की गौरव गाथा या ग्राम कथा तो सुनते रहते हैं, इस नेता अथवा अभिनेता या राजनेता ने यह कहा, वह कहा। इसकी स्तुति की, उसकी स्तुति की। हम लोग बकवास सुनने में तो व्यस्त रहते हैं लेकिन किसके पास फुर्सत है जो देवताओं द्वारा की गई गर्भ स्तुति को पढ़े। आप तो कम से कम पढ़ो। दुनिया तो नहीं पढ़ रही है लेकिन अब आप दुनिया वाले नहीं रहे। क्या आपको दुनिया में रहना है? मरना है? फिर गर्भ स्तुति मत पढ़िए। यदि गर्भ स्तुति पढ़ोगे तो फिर आप कभी नहीं मरोगे। अगर आप मरना चाहते हो पुनरपि जननं पुनरपि मरणं, पुनरपि जननी जठरे शयनम्। इह संसारे बहुदुस्तारे, कृपयाऽपारे पाहि मुरारे॥ (२१) ( भज गोबिंदम् श्री शंकराचार्य द्वारा रचित भजन) भावार्थ : बार-बार जन्म, बार-बार मृत्यु, बार-बार माँ के गर्भ में शयन कराने वाले इस संसार से पार जा पाना अत्यन्त कठिन है, हे कृष्ण मुरारी कृपा करके मेरी इस संसार से रक्षा करें। यदि आपको पुनरपि जननं पुनरपि मरणं पसंद है तो 'गो ऑन' अर्थात 'आगे बढ़ो।' टेलीविजन में 24 घंटे कोई ना कोई माया की स्तुति या कोका कोला स्तुति की ब्रेकिंग न्यूज़ चल रही होती है। वह भी एक प्रकार की स्तुति ही है। अखबारों या मीडिया में जो एडवर्टाइजमेंट होती है, वह माया की गौरव गाथा अथवा स्तुति ही है। हरि! हरि! देवताओं ने गर्भ स्तुति की है।गर्भ स्तुति मतलब जब कृष्ण देवकी के गर्भ में थे तब देवताओं द्वारा की गयी स्तुति। देवताओं द्वारा, भगवान को संबोधित करते हुए कई सारे स्तुति के वचन कहे गए हैं। वैसे जब कोई सात दिवसीय कथा आदि होती है, तब इस गर्भ स्तुति पर पूरा सत्र या फिर कई सत्र हो सकते हैं। इस कथा को सुनाने वाले कथाकार होते हैं या राधा गोविंद महाराज जब कथा सुनाते हैं तब एक-एक वचन पर फिर प्रवचन होता है। इस स्तुति के अंत में देवता भगवान को संबोधित करते हुए कह रहे थे कि आप कई सारे अवतारों में प्रकट हुए हो और होते हो। मत्सयाश्र्चकच्छपनृसिंहवराहहंस- राजन्यविप्रविबुधेषु कृतावतारः। त्वं पासि नरित्रभुवनं च यथाधुनेश भारं भुवो हर यदूत्तम वन्दनं ते।। ( श्रीमद् भागवतम १०.२.४०) अनुवाद- हे परम् नियंता, आप इसके पूर्व अपनी कृपा से सारे विश्व की रक्षा करने के लिए मत्स्य, अश्व, कच्छप, नृसिंहदेव, वराह, हंस, भगवान रामचंद्र, परशुराम का तथा देवताओं में से वामन के रूप में अवतरित हुए हैं। अब आप इस संसार का उत्पातों को कम करके अपनी कृपा से पुनः हमारी रक्षा करें। हे यदुश्रेष्ठ कृष्ण, हम आपको सादर नमस्कार करते हैं। आप इतने सारे अवतार ले चुके हो और अब आप पुनः अवतार लेने वाले हो। यहां हमें समझना होगा कि भगवान् के अलग अलग अवतार होते हैं या जैसा कि कृष्ण कहते हैं कि परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् । धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥ ( श्री मद् भगवतगीता ४.८) अनुवाद:-भक्तों का उद्धार करने, दुष्टों का विनाश करने तथा धर्म की फिर से स्थापना करने के लिए मैं हर युग में प्रकट होता हूँ। लेकिन कृष्ण अवतार नहीं हैं । तब फिर कृष्ण कौन हैं? कृष्ण अवतारी हैं? हमें यह अंतर समझना होगा। अब भगवान कृष्ण स्वयं प्रकट हो रहे हैं। एते चांशकलाः पुंसः कृष्णस्तु भगवान् स्वयम्। इन्द्रारिव्याकुलं लोकं मृडयन्ति युगे युगे।। ( श्रीमद्भागवतम १.३.२८) अनुवाद- ऊपर्यक्त सारे अवतार या तो भगवान् के पूर्ण अंश या पूर्णांश के अंश ( कलाएं) हैं लेकिन श्रीकृष्ण तो आदि पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् हैं। वे सब विभिन्न लोकों में नास्तिकों द्वारा उपद्रव किए जाने पर प्रकट होते हैं। भगवान् आस्तिकों की रक्षा करने के लिए अवतरित होते हैं और यह सब जो अन्य अवतार हैं वे भगवान की कला हैं, भगवान के अंश अथवा स्वांश हैं लेकिन कृष्ण अंशी हैं या अवतारी हैं, वे प्रकट हो रहे हैं। 'त्वं पासि' हे प्रभु! आप प्रकट होते हो और आप हमारा पालन करते हो। हमारी रक्षा करते हो। आप हम सभी के रखवाले हो। हरि! हरि! ' भारं भुवो हर यदूत्तम वन्दनं ते' आप पृथ्वी का भार हल्का करने वाले हो। "जयति जयति देवो पृथ्वी भारणं मुकंद" देवता भी कह रहे हैं कि हे प्रभु!आप प्रकट होकर पृथ्वी के भार को हटाओगे। 'वन्दनं ते' हे प्रभु,आप हमारी वंदना को स्वीकार कीजिए। तत्पश्चात यम, ब्रह्मा, वरुण, इन्द्र इत्यादि देवता स्तुति के अंत में देवकी को संबोधित करते हुए कहते हैं। देवकी मैया की जय! दिष्टयाम्ब ते कुक्षिगतः परः पुमा- नंशेन साक्षाद्भगवान्भवाय नः। माभूद्भयं भोजपतेर्मुमूर्षो- र्गोप्ता यदूनां भविता तवात्मजः ( श्रीमद् भागवतं १०.२.४२) अनुवाद- हे माता देवकी, आपके तथा हमारे सौभाग्य से भगवान अपने सभी स्वांशों यथा बलदेव समेत अब आपके गर्भ में है अतएव आपको उस कंस से भयभीत नहीं होना है, जिसने भगवान के हाथों से मारे जाने की ठान ली है। आपका शाश्वत पुत्र कृष्ण सारे यदुवंश का रक्षक होगा। मैया! 'कुक्षिगतः' तुम्हारे गर्भ में जो बालक है, यह साधारण बालक नहीं है। वह साक्षात भगवान हैं। अब साक्षात भगवान तुम्हारे गर्भ में विद्यमान है इसलिए 'माभूद्भयं' डरना नहीं, डरने की कोई आवश्यकता नहीं है। निर्भय बनो। सबको अभयदान देने वाले भगवान् साक्षात तुम्हारे गर्भ में यदूनां भविता तवात्मजः अर्थात तुम्हारे पुत्र के रूप में प्रकट होने जा रहे हैं। हरि! हरि! इतना कह कर देवता अपनी वाणी को विराम देते हैं क्योंकि अब वह शुभ मुहूर्त आ गया है। अष्टमी का दिन भी बीत चुका है। अब अष्टमी की रात्रि है। भगवान रात्रि में भी मध्य रात्रि को प्रकट होना चाहते हैं। भगवान चंद्रवंश में प्रकट होने जा रहे हैं। भगवान् श्री कृष्ण चंद्रवंशी हैं और भगवान् श्री राम सूर्यवंशी हैं। रात्रि के समय चंद्र का राज होता है इसीलिए चंद्र को रजनीश भी कहा जाता है अर्थात चंद्र का एक नाम रजनीश है। रजनी मतलब रात्रि। रात्रि के ईश 'रजनीश' अर्थात चंद्रमा हैं और दिन के ईश- 'सूर्य अर्थात दिनेश' कहलाते हैं। भगवान चंद्रवंश में प्रकट हो रहे हैं। जब रात्रि के समय चंद्र का राज होता है, भगवान उसी समय प्रकट होना चाहते हैं। इतना ही नहीं, भगवान उसी समय भी प्रकट होना चाहते हैं जिस समय रात्रि को चंद्र का उदय होगा। शुक्ल पक्ष की अष्टमी को चंद्रमा का उदय ठीक मध्य रात्रि को होता है। आपको दिमाग लगाना होगा और झट से समझना होगा। (ठीक है। बाद में सोचिएगा कि क्या कहा जा रहा है।) हर शुक्ल पक्ष की अष्टमी को चंद्रमा का उदय मध्य रात्रि को ही होता है।वही होना था, भगवान उस क्षण की प्रतीक्षा कर रहे थे। जब पूर्व दिशा में चंद्रमा का उदय होते ही स्वयं जो कृष्णचंद्र है, उनका भी उदय होगा। आकाश में चंद्रमा का उदय होगा और देवकी के गर्भ सिंधु से कृष्णचंद्र अथवा देवकीनंदन का जन्म होगा। दो चंद्रों का जन्म या प्राकट्य कहा जाए, एक ही समय होगा। उस रात्रि को भगवान ने ऐसा ही किया। अपना जन्म भी उसी समय किया जब पूर्व दिशा में चंद्रमा का उदय हुआ। उस दिन दो चंद्र हुए। एक चंद्र जो आकाश में उदित होता है औऱ दूसरे कृष्ण चंद्र। उस दिन एक अद्भुत घटना और घटी। जब उस रात्रि को चंद्र का उदय हुआ और उसी समय कृष्ण भी उदित हुए हैं अर्थात कृष्ण भी प्रकट अथवा उनका जन्म हुआ। अष्टमी का चंद्र आधा होता है। इतना तो आपको पता ही होगा। यह एक सामान्य ज्ञान है कि अष्टमी का चंद्र आधा होता है और पूर्णिमा का पुरनेंद्र सुंदर मुख: अर्थात पूर्ण होता है। चंद्रमा उस रात्रि को यह जानकर कि मेरे वंश में भगवान प्रकट होने जा रहे हैं या प्रकट हो रहे हैं, वह इतना अधिक हर्षित हुआ कि उनका चेहरा प्रफुल्लित हो गया और खिल गया। वह उस खुशी में उस रात्रि को आधा नहीं रह पाया, उस मध्य रात्रि को पूर्ण चंद्र हुआ। पूर्णिमा के दिन पूर्णचंद्र होता है लेकिन उस रात्रि को अष्टमी की रात्रि को पूर्ण चंद्र हुआ। चंद्रदेव इतना हर्ष और उल्लास का अनुभव कर रहे थे। फिर उसी समय और सारे वातावरण के संबंध शुकदेव गोस्वामी कहते हैं अथ सर्व गुणोपेतः कालः परमशोभनः। यर्ह्यैवाजनजन्मर्क्षं शान्तर्क्षग्रहतारकम्।। दिशः प्रसेदुर्गगनं निर्मलोडुगणोदयम्। मही मङ्गलभूयिष्ठपुरग्रामव्रजाकरा।। नद्यः प्रसन्नसलिला हृदा जलरुहश्रियः। द्विजालिकुलसन्नादस्तवका वनराजयः।। ववौ वायुः सुखस्पर्शः पुण्यगन्धवहः शुचिः अग्नयश्र्च द्विजातीनां शान्तास्तत्र समिन्धत।। मनांस्यासन्प्रसन्नानि साधूनामसुरद्रुहाम। जायमानेअजने तस्मिन्नेदुर्दन्दुभयः समम्।। ( श्रीमद् भागवतम् १०.३.१-५) अनुवाद- तत्पश्चात भगवान के आविर्भाव की शुभ वेला में सारा ब्रह्मांड सतोगुण, सौंदर्य तथा शांति से युक्त हो गया। रोहिणी नक्षत्र तथा अश्विनी जैसे तारे निकल आए। सूर्य, चंद्रमा तथा अन्य नक्षत्र एवं गृह अत्यंत शांत थे। सारी दिशाएँ अत्यंत सुहावनी लगने लगीं और मनभावन नक्षत्र निरभ्र आकाश में टिमटिमाने लगे। नगरों, ग्रामों, खानों तथा चरा गाहों से अलंकृत पृथ्वी सर्व मंगल मय प्रतीत होने लगी। निर्मल जल से युक्त नदियां प्रवाहित होने लगी और सरोवर तथा विशाल जलाशय कमलों तथा कुमुदिनियों से पूर्ण होकर अत्यधिक सुंदर लगने लगे। फूल पत्तियों से पूर्ण एवं देखने में सुहावने लगने वाले वृक्षों और हरे पौधों में कोयल जैसे पक्षी तथा भौरों के झुंड देवताओं के लिए मधुर ध्वनि में गुंजार करने लगे। निर्मल मंद वायु बहने लगी जिसका स्पर्श सुखद था और जो फलों की गंध से युक्त थी। जब कर्मकांड में लगे ब्राह्मणों ने वैदिक नियमानुसार अग्नि प्रज्जवलित की थी तो अग्नि इस वायु से अविचलित रहती हुई स्थिर भाव से जलने लगी। इस तरह जब अजन्मा भगवान विष्णु प्रकट होने को हुए तो कैसे कंस जैसे असुरों तथा तथा उसके अनुचरों द्वारा सताए गए साधुजनों तथा ब्राह्मणों को अपने ह्रदयों के भीतर शांति प्रतीत होने लगी और उसी समय स्वर्ग में दुंदुभियां बज उठीं। अथ सर्व गुणोपेतः कालः परमशोभनः अर्थात जब कृष्ण के प्राकट्य की शुभ घड़ी निकट पहुंची रही थी तब काल की शोभा इतनी अधिक बढ़ गयी और कृष्ण के स्वागत अथवा अगवानी करने के लिए सर्वत्र पृथ्वी भी सज धज के तैयार हो गयी । उसने ग्रीन साड़ी पहनी हुई थी। उस पर जो फूल खिले थे, ऐसा लग रहा था जैसे साड़ी के ऊपर एंब्रायडरी की गई है। नद्यः प्रसन्नसलिला हृदा जलरुहश्रियः अर्थात नदियों में विशेषतया यमुना मैया में भरपूर बाढ़ आ चुकी थी। नदियां प्रसन्न थी, उनमें निर्मल जल से बह रही था। वैसे निर्मल जल तो नहीं होगा क्योंकि वर्षा ऋतु का जल निर्मल नहीं होता। शरद ऋतु में होता है लेकिन जैसा भी जल है, वे नदियां प्रसन्न थी। द्विजालिकुलसन्नादस्तवका वनराजयः और कई सारे पंछी कलरव कर रहे थे। उन्हें द्विजा भी कहते हैं अर्थात जो पक्षी दो बार जन्म लेते हैं उन्हें द्विजा कहते हैं। पहला जन्म उनका अंडे में होता है और अंडे से बाहर निकलना उनका सेकंड बर्थ कहलाता है इसलिए संस्कृत में पक्षियों को द्विज कहते हैं। सारे पक्षी गान कर रहे हैं। " ववौ वायुः सुखस्पर्शः पुण्यगन्धवहः शुचिः। वायु बह रही है और कैसी वायु बह रही है? सुगंधित, शीतल और मंद वायु बह रही है। वायु जब मंद मंद बहती है और सुगंधित व शीतल होती है तब उसका स्पर्श होते ही व्यक्ति एक प्रकार के सुख का अनुभव करता है। भगवान को सुख देने के लिए वायु इस प्रकार बह रही है।ऐसा वातावरण बन चुका है। सारी 'कंडीशन फेवरेबल' है। मनांस्यासन्प्रसन्नानि साधूनामसुर द्रुहाम। जितने साधु मंडली या भक्त वृन्द अथवा ऋषि मुनि (राज ऋषि, महा ऋषि, देवऋषि) हैं उनके मन में मनांस्यासन्प्रसन्नानि है। जगुः किन्नरगन्धर्वास्तुष्टुवुः सिद्धचारणाः विद्याधर्यश्र्च ननृतुरप्सरोभिः समं मुदा।। ( श्री मद् भागवतम १०.३.६) अनुवाद: उस समय किन्नर तथा गंधर्व शुभ गीत गाने लगे, सिद्धों तथा चारणों ने शुभ प्रार्थनाएं कीं तथा अप्सराओं के साथ विद्याधारी प्रसन्नता से नाचने लगीं। यह देवताओं के अलग-अलग नाम व प्रकार हैं। इनमें कोई किन्नर है तो कोई गंधर्व है। कोई सिद्ध है तो कोई चारण है। कोई विद्याधर है। वे सभी अपने-अपने ढंग से अपना हर्ष व्यक्त कर रहे हैं और भगवान का स्वागत कर रहे हैं। कृष्ण का अभिनंदन कर रहे हैं। किन्नर और गंधर्व गा रहे हैं। अप्सराएं नृत्य कर रही हैं। कई सारे वाद बज रहे हैं। पुष्प वृष्टि भी हो रही है। मुमुचुर्मुनयो देवाः सुमनांसि मुदान्विताः। मन्दं मन्दं जलधरा जगर्जुरनुसागरम्। निशीथे तमउद्भते जायमाने जनार्दने।। देवक्यां देवरूपिण्यां विष्णुः सर्वगुहाशयः। आविरासीद्यथा प्राच्यां दिशीन्दुरिव पुष्कलः।। ( श्रीमद् भागवतं १०.३.७-८) अनुवाद:- देवताओं तथा महान् साधु पुरषों ने प्रसन्न होकर फूलों की वर्षा की और आकाश में बादल उमड़ आए तथा मंद स्वर से गर्जन करने लगे मानो समुन्द्र की लहरों की ध्वनि हो। तब हर हृदय में स्थित पूर्ण पुरषोत्तम भगवान् विष्णु रात्रि के गहन अंधकार में देवकी के हृदय से उसी तरह प्रकट हुए जिस तरह पूर्वी क्षितिज में पूर्ण चंद्रमा उदय हुआ हो क्योंकि देवकी श्रीकृष्ण की ही कोटि की थी। जलधर् अर्थात बादल जो जल को धारण करते हैं। उसे जलधर या जलदा भी कहते हैं। जल देने वाला इसलिए बादल को जलद कहते हैं। जो जल देता है या जल को धारण करता है जलधर कहलाता है। ' मन्दं मन्दं' रिमझिम वर्षा भी हो रही है और यह सब जब हो ही रहा था तब देवक्यां देवरूपिण्यां विष्णुः सर्वगुहाशयः। आविरासीद्यथा प्राच्यां दिशीन्दुरिव पुष्कलः।। देवकी ने अपने गर्भ में कृष्ण को धारण किया है। देवरूपिण्यां विष्णुः सर्वगुहाशयः अर्थात देवकी के गर्भ में जो विष्णु हैं, उस विष्णु / कृष्ण का प्राकट्य हुआ। कृष्ण प्रकट हो गए। सब घड़ी की ओर देख रहे हैं। मध्य रात्रि में चंद्रमा उदित होता है। जैसे ही चंद्रमा का पूर्व दिशा में उदय होता है, उसी क्षण देवकी के गर्भ सिंधु से भगवान् प्रकट होते हैं। शुकदेव गोस्वामी कह रहे हैं तमद्भतं बालकमम्बुजेक्षणं चतुर्भुजं शङ्खगदाद्युदायुधम्। श्रीवत्सलक्ष्मं गलशोभिकौस्तुभं पीताम्बरं सान्द्रपयोदसौभगम्।। महार्हवैदूर्यकिरीटकुणडल त्विषा परिष्वक्तसह स्त्रकुन्तलम्। उद्दामकाञ्च्यङ्गदकङ्कणादिभिर विरोचमानं वसुदेव एक्षेत।। ( श्री मद् भागवतम १०.३.९-१०) अनुवाद- तब वसुदेव ने उस नवजात शिशु को देखा जिनकी अद्भुत आँखे कमल जैसी थीं और जो अपने चारों हाथों में शंख, चक्र, गदा तथा पद्म चार आयुध धारण किए थे। उनके वक्षस्थल पर श्रीवत्स का चिन्ह था और उनके गले में चमकीला कौस्तुभ मणि था। वह पीताम्बर धारण किए थे, उनका शरीर श्याम घने बादल की तरह, उनके बिखरे बाल बड़े- बड़े तथा उनका मुकुट और कुंडल असाधारण तौर पर चमकते वैदूर्यमणि के थे। वे करधनी, बाजूबंद, कंगन तथा अन्य आभूषणों से अलंकृत होने के कारण अत्यंत अद्भुत लग रहे थे। भगवान् के प्रकट होते ही वसुदेव एक्षेत अर्थात वसुदेव ने देखा। कृष्ण को सर्वप्रथम देखने वाले वसुदेव ही थे। वैसे वहाँ दो ही व्यक्ति थे। एक वसुदेव और दूसरी देवकी। देवकी ने तो बाद में देखा। सर्वप्रथम भगवान् को देखने वाले वसुदेव एक्षेत अर्थात वसुदेव ही थे। वसुदेव को वासुदेव कैसे दिखे ? ऐसा सावधानी से कहना होगा। कैसे दिखे वासुदेव वसुदेव को? 'वसुदेव एक्षेत: वसुदेव ने किस को देखा? वासुदेव को देखा। वसुदेव के पुत्र वासुदेव हैं इसलिए भगवान का नाम वासुदेव है। ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः! वसुदेव के पुत्र, वासुदेव आपको नमस्कार! वासुदेव कैसे दिखे वसुदेव को। तमद्भतं बालकमम्बुजेक्षणं चतुर्भुजं शङ्खगदाद्युदायुधम्। श्रीवत्सलक्ष्मं गलशोभिकौस्तुभं पीताम्बरं सान्द्रपयोदसौभगम्।। उन्होंने भगवान अर्थात अद्भुत बालक कमलनयन बालक का दर्शन किया। आंखों में सौंदर्य होता है इसलिए पहला उल्लेख आंखों का ही हो रहा है। वैसे भगवान के सभी अंग, सभी अव्यय अर्थात वे सर्वांग सुंदर हैं फिर भी उनकी आंखों में विशेष सौंदर्य है। अम्बुज अर्थात कमल सुंदर होता है। इसीलिए जब भगवान के अलग-अलग अंगों का वर्णन होता है तब उन अंगों की तुलना कमल के साथ होती है। चरण कमल या कमल नयन पद्मनाभ नमः पंकजनाभायः , नमः पंकजमालिने नमः पंकज नेत्ररायः नमः पंकजम् अग्रे पंकज... पंकज... पंकज। वे चतुर्भुज भी हैं। उनके वक्षस्थल पर श्रीवत्स का चिन्ह हैं। गले में कंठी कौस्तुभ मणि धारण किए हैं। पीतांबर वस्त्र पहने हुए हैं, उनके सारे अंगों की आभा कांति श्याम है। उन्होंने सारे अलंकार पहने हुए हैं। उनके बाल थोड़े विशेष हैं। वे काले और साँवले हैं। हरि! हरि! इसी का स्मरण करते रहो। वसुदेव एक्षेत, वसुदेव ने वासुदेव को देखा। भगवान कहते हैं मेरा जन्म कैसा है? जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्त्वतः । त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोऽर्जुन ॥९॥ ( श्री मद् भगवतगीता ४.९) अनुवाद:- हे अर्जुन! जो मेरे अविर्भाव तथा कर्मों की दिव्य प्रकृति को जानता है, वह इस शरीर को छोड़ने पर इस भौतिक संसार में पुनः जन्म नहीं लेता, अपितु मेरे सनातन धाम को प्राप्त होता है। भगवान का जन्म और उनकी लीलाएं भी दिव्य हैं। क्या ऐसा कभी किसी बालक का जन्म होता है? आपने भी जन्म दिया होगा? यह बालक तो हंस रहा था। उसके मुख पर सुमित हास्य था। क्या कोई ऐसा बालक है जो संसार में जन्म लेते ही हँसे? इस संसार में पहला धंधा अर्थात बालक क्या करता है अर्थात वह जन्म लेते ही क्या करता है? अश्रुदेवी को पता है। बालक रोता है इसलिए यह अद्भुत बालक भिन्न है। वह इस जगत का बालक नहीं है। इस जगत के बालक रोते हैं लेकिन यह बालक हंस रहा था। आपने यह भी देखा कि बालक ने वस्त्रों के साथ जन्म लिया है। यह नहीं है कि बालक ने जन्म लिया और फिर देवकी मैया लोई बाजार शॉपिंग करने के लिए गई कि इस बच्चे के वस्त्र अलंकार शॉपिंग करके लाते हैं। ऐसा नहीं हुआ था। यह अद्भुत बालकम सभी वस्त्रों और अलंकारों व वस्तुओं के साथ खुद स्वयं पैदा हुआ है। हरि! हरि! ठीक है। विचार करो। विचारों का मंथन करो। पढ़ो, इसके तात्पर्य को पढ़ो, गर्भ स्तुति पढ़ो, कृष्ण बुक में यह भी मिलेगा आपको कृष्णा इज द सुप्रीम पर्सनैलिटी आफ गोड़हेड या लीला पुरुषोत्तम श्री कृष्ण ग्रंथ से भी यह पढ़ सकते हो। ओके ( ठीक है) टाइम ऊपर हो गया है। हम यहां पर विराम देते हैं। कल पुनः हम आगे बढ़ेंगे! हरे कृष्ण! श्रील गुरुदेव की जय

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5th August 2020 The Birth of the Transcendental Rajneesh Hare Krishna! suta uvaca yam brahma varunendra-rudra-marutah stunvanti divyaih stavair vedaih sanga-pada-kramopanisadair gayanti yam sama-gah dhyanavasthita-tad-gatena manasa pasyanti yam yogino yasyantam na viduh surasura-gana devaya tasmai namah Translation Suta Gosvami said: Unto that personality whom Brahma, Varuna, Indra, Rudra and the Maruts praise by chanting transcendental hymns and reciting the Vedas with all their corollaries, pada-kramas and Upanisads, to whom the chanters of the Sama Veda always sing, whom the perfected yogis see within their minds after fixing themselves in trance and absorbing themselves within Him, and whose limit can never be found by any demigod or demon — unto that Supreme Personality of Godhead I offer my humble obeisances. [SB 12.13.1] Today devotees from 933 locations are chanting. All pyari atmas, you are welcome. You are souls belonging to Krsna. You belong to Krsna and Krsna belongs to you. Today we will discuss Sri Krsna Janmastami. Sri Krsna Janmastami Mahotsav ki Jai! mamaivamso jiva-loke jiva-bhutah sanatanah manah-sasthanindriyani prakrti-sthani karsati Translation The embodied souls in this material world are My eternal fragmental parts. But bound by material nature, they are struggling with the six senses including the mind. [BG 15.7] How long are all the souls my fragmented parts? The answer is santana (eternal). In all the mellows, ie. Dasya, Sakhya, Vatsalya, Madhurya, we have a relationship with Krsna. By this Sambandh Gyana, we progress in our spiritual life. All souls are eternally part and parcel of Krsna. Krsna explained all these in Bhagavad-Gita to Arjuna, but all this knowledge is for us. We are shifting our discussion to Janmastami Mahotsav. Yesterday we were discussing the Garbha Stuti by the demigods. The song of glory by the demigods to the Lord in the womb. yam brahma varunendra-rudra-marutah stunvanti divyaih stavair vedaih sanga-pada-kramopanisadair gayanti yam sama-gah Srimad Bhagavatam describes and glorifies Krsna and the demigods sing His glories (Brahma, Rudra, Varuna, etc). All the sages worship Him and meditate upon Him. Since the Lord is eternal, the demigods or the demons cannot know the end of the Lord. It is not possible for anyone to understand that. All we can do is surrender and offer obeisances. You should read this song of glories, but you don't have time. You are so busy that you don't have time to even die. We may have time to read the nonsense news about the mundane happenings. If you want to die like any other person and you wish to continue with this cycle of birth and death, then don’t read. All these advertisements are glorifying Maya. But we are devotees. We are intelligent. We must hear and read the glories of the Lord only. We are hearing the Garbha Stuti. You must also read it. When it is Bhagavat Katha, each and every verse is explained, but we won't be discussing it in that detail. In the end the demigods say, “There are many incarnations, but this time You are Yourself descending on the planet. All the other incarnations are some quality expansions or portion expansions or portion of a portion expansions. But You are the source of these expansions( Krsna Avatari).” ete cāṁśa-kalāḥ puṁsaḥ kṛṣṇas tu bhagavān svayam indrāri-vyākulaṁ lokaṁ mṛḍayanti yuge yuge Translation All of the above-mentioned incarnations are either plenary portions or portions of the plenary portions of the Lord, but Lord Śrī Kṛṣṇa is the original Personality of Godhead. All of them appear on planets whenever there is a disturbance created by the atheists. The Lord incarnates to protect the theists. [SB 1.3.28] jayatu jayatu devo devakī-nandano 'yaṁ jayatu jayatu kṛṣṇo vṛṣṇi-vamśa-pradīpaḥ jayatu jayatu megha-śyāmalaḥ komalāṅgo jayatu jayatu pṛthvī-bhāra-nāśo mukundaḥ Translation All glories to this Personality of Godhead known as the son of Śrīmatī Devakī devī! All glories to Lord Śrī Kṛṣṇa, the brilliant light of the Vṛṣṇi dynasty! All glories to the Personality of Godhead, the hue of whose soft body resembles the blackish color of a new cloud! All glories to Lord Mukunda, who removes the burdens of the earth! [Mukund Mala Stotram Text 3] pṛthvī-bhāra-nāśo mukundaḥ You are the destroyer of the burden of this planet, Earth. Please accept our obeisances. then the demigods address mother Devaki, O Mother! The child in your womb is not an ordinary child. This is the Supreme Personality of Godhead. Do not carry any kind of fear. Be Fearless! The giver of fearlessness is in your womb now. He is going to take birth as your child and thus they end their prayers of glory. As the auspicious time has arrived, the eight moon day has passed and it's the night now. The Lord has chosen the time of Midnight. The Lord is born in the Chandra Vansha, the lineage of the Moon. The Moon is also called Rajneesh which means the Lord of the night, so Krsna chose to be born at midnight. The Sun is called Dinesh meaning the Lord of the Day. There is a fixed moon rise time daily, and on every eighth moon of the bright half of a Lunar month, the moon rises at midnight. The Lord wanted to take birth with the moon. Two moons will rise together, one is the moon, and the other is Sri Krsna Chandra. When the moon rose, the same time Krsna was also born. So what happened to the moon of the eight night, which is only half visible became fully visible out of excessive happiness that the Supreme Personality of Godhead was appearing in His lineage. The moon is fully visible on the 15th day, Purnima, but here on the eighth day, when only half a moon is visible, the moon was seen as bright and full. As the time was coming every corner of the Earth seemed to be delighted and decorated. It is wrapped in a green saree and the flowers are embroidered designs. Yamuna is flooded with a lot of water. These waters of rivers are full of happiness. Many birds are chirping. The birds are twice born, once in the egg and the second time is when the egg hatches and the bird comes out. Fragrant, pleasant, a cool and slow wind is blowing. The touch of such is a wind is pleasure-some. All the sages, rsis, devotees, saintly people, all are extremely blissful. All other different types of demigods are also expressing their happiness in their own unique way and welcoming the Lord. The Gandharvas are singing and the Apsaras are dancing. Some are playing different instruments. The clouds, called Jaldhara in Sanskrit are ones which carries water, are showering drizzles of rain. Now Devaki, who is bearing Lord Visnu/Krsna in her womb, has appeared out of her womb. Krsna is checking the time, as the moon is appearing to rise, the same time Krsna appears from the womb of Devaki. Now Vasudeva saw Krsna. He was the first one to see Krsna. There were only two persons in the prison, Vasudev and Devaki. Vasudev was the first one to see Krsna. Vasudev saw Vaasudev. We must carefully differentiate between these names. Krsna is Vaasudev- the son of vasudev. He saw the child has beauty in His eyes. He has beautiful lotus petal shaped eyes. Eyes are the charms of children, though all the parts of Krsna's body are, the eyes are the first to be mentioned. Since the lotus is considered to be the most beautiful, the Lord's body parts are compared to the lotus. He is wearing a golden yellow dhoti. He had the kaustubh mani on His chest. He is decorated with various ornaments. He has beautiful curly hair. Vasudev is seeing this four armed form of Vaasudev. We also should meditate upon this form at the time of birth. Have you ever seen such birth? A child smiling? The first thing that a child does, is it cries, but this is not any ordinary child. He is smiling and He has appeared with clothes. It is not that the child is born and Devaki has gone to Loi Bazaar to buy clothes. That is why we say that the appearance of the Lord is Amazing - Adbhuta. You all must read this pastime of the birth of Lord Krsna. You will find this in the Krsna book also. It’s time for me to stop now. Hare Krishna! Srila Prabhupada Ki Jai!

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5 августа 2020 Рождение трансцендентного Раджниша Харе Кришна! suta uvaca yam brahma varunendra-rudra-marutah stunvanti divyaih stavair vedaih sanga-pada-kramopanisadair gayanti yam sama-gah dhyanavasthita-tad-gatena manasa pasyanti yam yogino yasyantam na viduh surasura-gana devaya tasmai namah Перевод Сута Госвами сказал: Я в почтении склоняюсь перед Личностью Бога, Верховным Господом, которого славят Брахма, Варуна, Индра, Рудра и Маруты, воспевая трансцендентные гимны и декламируя Веды со всеми их дополнительными разделами, пада-крамами и Упанишадами. Я кланяюсь Господу, для которого всегда поют чтецы «Сама-веды» и которого созерцают в уме совершенные йоги, вошедшие в транс и полностью погрузившиеся в размышления о Нем. Я выражаю почтение Верховному Господу, пределов величия которого не знают ни полубоги, ни демоны. [ШБ. 12.13.1] Сегодня воспевают преданные из 933 мест. Добро пожаловать, все pyari atmas. Вы души, принадлежащие Кришне. Вы принадлежите Кришне, а Кришна принадлежит вам. Сегодня мы обсудим Шри Кришна Джанмаштами. Шри Кришна Джанмаштами Махотсав ки Джай! mamaivamso jiva-loke jiva-bhutah sanatanah manah-sasthanindriyani prakrti-sthani karsati Перевод Живые существа в материальном мире суть Мои вечные отделенные частицы. Оказавшись в обусловленном состоянии, они вынуждены вести суровую борьбу с шестью чувствами, к числу которых относится ум. [БГ. 15.7] Как долго все души мои неотъемлемые части? Ответ - сантана (вечно). Во всех отношениях. Дасья, Сакхья, Ватсалья, Мадхурья, у нас есть отношения с Кришной. Благодаря этой самбандха-гьяне мы прогрессируем в нашей духовной жизни. Все души - это вечные неотъемлемые частицы Кришны. Кришна объяснил всё это в Бхагавад-Гите Арджуне, но все эти обозначения предназначены для нас. Мы переносим наше обсуждение на Джанмаштами Махотсав. Вчера мы обсуждали Гарбха Стути, полубогов. Песнь прославления Господа во чреве полубогами . yam brahma varunendra-rudra-marutah stunvanti divyaih stavair vedaih sanga-pada-kramopanisadair gayanti yam sama-gah Шримад Бхагаватам описывает и прославляет Кришну, а полубоги воспевают Его славу (Брахма, Рудра, Варуна и т. д.). Все мудрецы поклоняются Ему и размышляют о Нём. Поскольку Господь вечен, полубоги или демоны не могут познать Господа до конца. Никто не может этого понять. Всё, что мы можем, - это предаться и предложить поклоны. Вы должны прочитать эту песнь славы, но у вас нет времени. Вы так заняты, что у вас нет времени даже умереть. У нас может быть время прочитать бессмысленные новости об обыденных событиях. Если вы хотите умереть, как любой другой человек, и хотите продолжить этот цикл рождений и смертей, не читайте. Вся эта реклама прославляет Майю. Но мы преданные. Мы разумны. Мы должны слышать и читать только славу Господа. Мы слышим Гарбха Стути. Вы также должны это прочитать. Эта Бхагават Катха объясняется в каждом стихе, но мы не будем обсуждать это так подробно. В конце полубоги говорят: «Есть много воплощений, но на этот раз Ты Сам нисходишь на планету. Все другие воплощения являются некоторыми полными воплощениями, или частичными воплощениями, или частью частичного воплощения. Но Ты источник этих экспансий (Кришна Аватари) ». ete cāṁśa-kalāḥ puṁsaḥ kṛṣṇas tu bhagavān svayam indrāri-vyākulaṁ lokaṁ mṛḍayanti yuge yuge Перевод Все перечисленные воплощения представляют собой либо полные части, либо части полных частей Господа, однако Господь Шри Кришна — изначальная Личность Бога. Они нисходят на разные планеты, когда там по вине атеистов возникают беспорядки. Господь нисходит, чтобы защитить верующих. [ШБ. 1.3.28] jayatu jayatu devo devakī-nandano ‘yaṁ jayatu jayatu kṛṣṇo vṛṣṇi-vamśa-pradīpaḥ jayatu jayatu megha-śyāmalaḥ komalāṅgo jayatu jayatu pṛthvī-bhāra-nāśo mukundaḥ Перевод Вся слава этой Личности Бога, известному как сын Шримати Деваки деви! Слава Господу Шри Кришне, сияющему свету династии Вришни! Вся слава Личности Бога, оттенок мягкого тела которого напоминает черноватый цвет нового облака! Вся Слава Господу Мукунде, снимающему бремя земли! [Текст 3 Мукунд Мала Стотрам] pṛthvī-bhāra-nāśo mukundaḥ Ты снимаешь бремя этой планеты, Земли. Пожалуйста, прими наши поклоны. Тогда полубоги обращаются к матери Деваки, о Мать! Ребенок в твоей утробе - не обычный ребенок. Это Верховная Личность Бога. Не бойся ничего. Будь бесстрашной! Дарующий бесстрашие сейчас в твоём чреве. Он собирается родиться вашим ребенком. И таким образом они прекратят свои молитвы прославления. Когда наступило благоприятное время, пришёл восьмой лунный день и наступила ночь. Господь выбрал время полуночи. Господь родился в Чандра Ванша, Лунной династии. Луну также называют Раджниш, что означает Повелитель ночи, поэтому Кришна решил родиться в полночь. Солнце называется Динеш, что означает «Повелитель дня». Ежедневно существует фиксированное время восхода Луны, и каждую восьмую луну яркой половины лунного месяца Луна восходит в полночь. Господь хотел родиться с луной. Две луны восстанут вместе, одна - это луна, а другая - Шри Кришна Чандра. Когда взошла луна, в это же время родился Кришна. Итак, что случилось на восьмую ночь с луной, которая видна только наполовину, она стала полностью видимой из-за чрезмерного счастья, что Верховная Личность Бога появился в её роду. Луна полностью видна на 15-й день, Пурнима, но здесь, на восьмой день, когда видна только половина луны, луна была видна яркой и полной. Приближалось время, каждый уголок Земли казался восхитительным и украшенным. Он завернут в зеленое сари, а цветы представляют собой вышитые узоры. Ямуна залита большим количеством воды. Эти воды рек полны счастья. Многие птицы щебечут. Птицы рождаются дважды, один раз в яйце, а второй раз - когда вылупляется из яйца и птица выходит. Ароматно, приятно, дует прохладный и тихий ветер. Прикосновение такого ветра доставляет удовольствие. Все мудрецы, риши, преданные, святые люди - все чрезвычайном блаженстве. Все остальные типы полубогов также по-своему выражают свое счастье и приветствуют Господа. Гандхарвы поют, а апсары танцуют. Некоторые играют на разных инструментах. Облака, которые на санскрите называются Джалдхара, - это те, которые несут воду, проливают капельками дождик. Деваки, которая носила Господа Вишну / Кришну в своей утробе, появился из её чрева. Кришна проверяет время, что луна восходит, и в то же период, Кришна появляется из чрева Деваки. Теперь Васудева увидел Кришну. Он был первым, кто увидел Кришну. В тюрьме было всего два человека, Васудева и Деваки. Васудева был первым, кто увидел Кришну. Васудева увидел Ваасудев. Мы должны тщательно различать эти имена. Кришна - это Vaasudev, сын Васудева. Он увидел, что у ребенка прекрасные глаза. У него красивые глаза в форме лепестков лотоса. Глаза - очарование детей, хотя все части тела есть у Кришны, о глазах, следует упомянуть в первую очередь. Поскольку лотос считается самым красивым, части тела Господа сравнивают с лотосом. На Нём золотисто-желтое дхоти. На Его груди каустубх мани. Он украшен разнообразным украшениями. У него красивые вьющиеся волосы. Васудев видит эту четырехрукую форму Ваасудева. Мы также должны медитировать на эту форму во время рождения. Вы когда-нибудь видели такое рождение? Улыбающийся ребенок? Первое, что делает ребенок, это плачет, но это не обычный ребенок. Он улыбается и появился в одежде. Дело не в том, что ребенок родился, а Деваки пошла на Лой Базар, чтобы купить одежду. Вот почему мы говорим, что явление Господа удивительно - Адбхута. Вы все должны прочитать эту игру рождения Господа Кришны. Вы также найдете это в книге Кришны. Пора мне остановиться. Харе Кришна! Шрила Прабхупада Ки Джай!