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हरे कृष्ण
जप चर्चा
पंढरपुर धाम से,
20 अक्टूबर 2020
गौर निताई! आज हमारे साथ 761 स्थानों से भक्त जप कर रहे है। गौर प्रेमानंदे हरी हरी बोल!
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय!
ॐ अज्ञानतिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जन शलाकया ।
चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्रीगुरवे नम:।।
तो भगवगीता अध्याय 14। प्रकृति के 3 गुण,
श्री भगवान उवाच
परं भूयः प्रवक्ष्यामि ज्ञानानां ज्ञानमुत्तमम् |
यज्ज्ञात्वा मुनयः सर्वे परां सिद्धिमितो गताः ||
भगवतगीता १४.१
अनुवाद:- भगवान् ने कहा - अब मैं तुमसे समस्त ज्ञानोंमें सर्वश्रेष्ठ इस परम ज्ञान को पुनः कहूँगा, जिसे जान लेने पर समस्त मुनियों ने परम सिद्धि प्राप्त की है |
वहीं टॉपिक है जो पिछले कुछ दिनों से हम समझा रहे है या कह रहे है। प्रकृति के तीन गुण, आपको बताया था ना? इस अध्याय को पढ़िए कहा तो था ना? कहा था! गीता का 14 वा अध्याय। और यह भी कहा था कि केवल 14 अध्याय में ही 3 गुणों की चर्चा नहीं है, और भी अध्यायों में है भगवान ने चर्चा की है। इसलिए भगवान ने क्या? परं भूयः प्रवक्ष्यामी कहा भूयः मतलब पुनः! तो भगवान भी कह रहे है कि, मैं पुनः तुम्हें कहूंगा जो अब मैं कहने जा रहा हूं 14 वे अध्याय में भगवान ने यह नहीं कहा कि,इस 14 वा अध्याय में कह रहा हूं, श्रील व्यासदेव इस प्रकार की रचना किए है! हरि हरि। कृष्ण का सवांद जब चल रहा था तो भगवान ने नहीं कहा कि, थिक है छठवां अध्याय! या श्री भगवान उवाच! तो ऐसी रचना श्रील व्यासदेव ने की है। परं भूयः प्रवक्ष्यामि ज्ञानानां ज्ञानमुत्तमम् | परं भूयः पुनः मैं समझाऊंगा, प्रकृति के तीन गुणों की चर्चा में पुनः करूंगा ऐसा भगवान कह रहे है। और इसीलिए हम भी पुनः पुनः इन तीन गुणों की चर्चा पिछले कुछ दिनों से कर रहे है। आगे क्या कहें ज्ञानानां ज्ञानमुत्तमम् | अब मैं जो कहूंगा हे अर्जुन तुमसे यह ज्ञान की बात है! वैसे तुम हो अज्ञानी और हम सब भी अज्ञानी है, लेकिन तुमको मैं जो कुछ भी कहूंगा परं भूयः प्रवक्ष्यामि क्या कहूंगा? ज्ञान की बात कहूंगा! और यह ज्ञान कैसा है? ज्ञानानां ज्ञानमुत्तमम् उत्तम ज्ञान में तुमको कहूंगा! साधारण ज्ञान नहीं, उत्तम! उत्तम ज्ञान मैं कहूंगा। तो यह तीन गुणों के संबंधित जो ज्ञान है उसको भगवान उत्तम ज्ञान कह रहे है। वैसे अन्य स्थानों पर भगवान कहे है, राजविद्या, राजगुह्यम और उत्तमम! मैं तुम्हें कुछ गोपनीय बात कहूंगा, यह भगवतगीता तो ज्ञान का राजा है! और यह उत्तम ज्ञान है। तो 3 गुणों के संबंधित जो ज्ञान है उसे भगवान उत्तम ज्ञान कहे है। उत् मतलब ऊपर और तम मतलब अज्ञान या अंधेरा होता है। तो उत्तम ज्ञान मतलब तम से परे वाला ज्ञान! तुम तो अभी तम या तमोगुण में मग्न हो, तल्लीन हो, बद्ध हो तमोगुण से! हरी हरी। तो उस तम से परे वाला यह ज्ञान है। और तमोगुण तो होता ही है, लेकिन रजोगुण में भी कुछ तमगुण का मिश्रण होता ही है। और हम सत्वगुणी बने तो भी उसमें कुछ तमोगुण की मात्रा होती ही है। हरी हरी। इसीलिए वैसे श्रीमद्भागवत को अमल पुराण कहा गया है। में विषयांतर नहीं कर रहा हूं। अमल मतलब मल रहित। जिसमें कोन सा मल नहीं है? इस श्रीमद्भागवत में तम, या रज, या सत्व गुण का मल नहीं है। यह अमल पुराण है! यह शुद्ध सत्व की चर्चा करता है। ग्रंथराज श्रीमद् भागवत। वैसे अन्य पुराण है उनका भी उल्लेख हुआ है। यह 6 पुराण है, यह पुराण तमगुनी है, या रजगुणी के उद्धार के लिए है। मतलब उन पुराणों में भी सत्वगुण, रजगुण और तमगुण का मल है। तो जो भगवान यहां पर कह रहे है ज्ञानानां ज्ञानमुत्तमम् मतलब जो ज्ञान में तुम्हें कह रहा हूं, यह तुम्हें रजोगुण तमोगुण और सत्वगुण से परे पहुंचा देगा। मतलब इस प्रकृति के 3 गुणों का तुम्हें ज्ञान होगा और उसके अनुसार तुम कार्य करोगे। और फिर लक्ष्य तो है गुनातीत होना! इन गुणों से परे पहुंचना! इस उद्देश्य से तो बता जा रहा है कि तुम बद्ध हो, है जीव या अर्जुन तुम बद्ध हो! यह रजगुण, तमगुण और सत्वगुण का बंधन है। या तुम्हारी जीवन शैली तमगुनी है। तो इस संसार में कुछ लोग लोग जीवनशैली जीते है वह तमगुनी होती है या रजगुनी होती है। या कोई सत्वगुणी जीवनशैली जीते है। जैसे हम चर्चा कर रहे है, मिश्रण भी होता है! एक गुण दूसरे के साथ इतनी मात्रा में मिल गया तो इन तीन गुणों से फिर कई गुण बन जाते है। और इसे अलग गुणों से लोग अलग-अलग जीवन शैली जीते है। देशी या विदेशी जीवनशैली, या शहरों की या गांव की जीवनशैली, ऋषि मुनियों की या वन में रहते हैं उनकी जीवनशैली और फिर शहरों में रहने वाले लोगों की जीवनशैली जो एक दूसरों से प्रतियोगिता करते रहते है रजगुणी बनके तो इसी कई जीवनशैली संसार में है। क्योंकि वह अलग अलग गुणों से प्रभावित है, या फिर 3 गुणों के अलग-अलग मिश्रण से उनसे यह गुण बने है। लेकिन लक्ष्य तो गुनातीत पहुंचना है! अब जब मैं जीवनशैली की बात कर रहा हूं, तो जीवनशैली सरल होनी चाहिए। और जब मैं अमेरिका में था तो एक कोई संगठन है जिसमें कुछ लोग इकट्ठे होकर एक प्रकार के जीवनशैली का प्रचार प्रसार कर रहे है। तो उसका उन्होंने नाम दिया है और उन्होंने मुझे कहा कि, महाराज या स्वामी जी हम ऐसी जीवनशैली अवलंब कर रहे है, जिसमें जिसका नाम है किस फार्मूला तो मैंने कहा कि मैं एक सन्यासी हो तो यह किस या चुंबन क्या बात है? तो उन्होंने कहा कि, नहीं नहीं! उस किस की बात नहीं! तो मैंने पूछा कि, कौन सी किस की बात है? तो उन्होंने कहा कीप इट सिंपल स्टुपिड है मूर्खो, अपने जीवनशैली को थोड़ा सरल बना दो! तो हम लोग फिर कहते तो रहते है, हमारा भी उद्देश रहता है सिंपल लिविंग एंड हाई थिंकिंग की जीवनशैली कैसी हो? सरल हो, ज्यादा क्लिष्ठा नहीं हो! मतलब सत्व गुनी हो या फिर सत्व गुण का उसमें प्राधान्य हो। और विचार उच्च हो गीता भागवत के विचार हो, जो भगवान के विचार है। तो वैसे विचार उच्च है तो ही हम लोग साधारण जीवन या सरल जीवन से प्रसन्न होंगे। और अगर विचार नीच हे या फिर तमोगुण या रजोगुण से वशीभूत विचार है, या हम सोच रहे है, तो वह जीवन सरल नहीं! वह विचार ही नीच विचार हो गए तो तमोगुण के विचार नीच होते है या नीचतम होते है। और राजगुनी लोगों के विचार नीचतर होते है।और सत्वगुणी लोगों में भी कुछ नीचता होती रहती है थोड़े से नीचे होते है। रजगुनि मतलब अधिक नीच लोग और जो तमगुनी होते हैं उनके विचार नीचे यानी सर्वाधिक नीच होते है। तो ऐसे तमगुणी से रजगुनी होना बेहतर है। इसका मतलब हमने थोड़ी प्रोग्रेस की है। क्योंकि हम बता रहे थे, तमगुनी मतलब तीन डोरियों से हमें बांध दिया है। और रजगुनी मतलब दो डोरियों से बांध दिया है। और सत्वगुणी मतलब एक डोरी से बांध दिया है। जैसे कभी कभी पशुओं को कई डोरियों से बहुत मजबूती से बांधा जाता है, और पशु तो बंधन पसंद नहीं करते वह प्रयास करते है डोरी को तोड़कर कहीं जाने का या खाने का। तो तीन दूरी है तो मुश्किल है डो डोरिया है तो आसान है और एक डोरी ने तो और भी आसान है। तो तमगुण से बेहतर रजगुण और रजगुण से बेहतर सत्वगुण! लेकिन सत्वगुण भी बंधन है। तो अगर हमारे विचार नीच है या फिर विचार ही नहीं है, विचारहीन है और आधुनिक सभ्यता में यही प्रचार है। जस्ट डू इट बस करो! अच्छा लगता है? करो! पहले करो और बाद में सोचो! कई लोग टी शर्ट पहन के घूमते रहते हैं और उसके पीछे लिखा होता है जस्ट डू इट सोचना भी नहीं! अच्छा लगता है? करो! जैसे पतिंगा को ज्वलनशील अग्नि अच्छी लगती है और बहुत तेजी के साथ वह उसकी तरफ दौड़ पड़ता है, और उसी के साथ उसका वहीं पर अंतिम संस्कार हो जाता है, वह जल जाता है। तो इसी प्रकार जस्ट डू इट का परिणाम यही होता है! जैसे पतिंगा बड़ी स्पीड के साथ अग्नि के और दौड़ता है वैसे हम भी जा रहे है। लेकिन इसे कौन समझता है? संसार की जो चमक-दमक है यह सारा सोना नहीं है! जो चमकता है वह सोना नहीं है। हो सकता है अग्नि में भी सोने जैसी चमक होगी लेकिन सोना नहीं है। तो सिंपल लिविंग हाई थिंकिंग सिंपल लिविंग से ही हाई थिंकिंग होगा तभी सिंपल लिविंग से व्यक्ति प्रसन्न होगा वरना भूल जाओ! तो विचार अगर नीच है और वह चाहेगा हाईलिविंग उच्च जीवनशैली और वैसे थोड़ा-थोड़ा भगवान कहे हैं पहले श्लोक में कहे है, यज्ज्ञात्वा मुनयः सर्वे परां सिद्धिमितो गताः || (भगवतगीता १४.१) यह ज्ञान कैसा है? ज्ञानानां ज्ञानमुत्तमम् जो में कहूंगा, उसको सुनो! आप सून रहे हो? और इसको सुनकर किसी का लाभ हुआ है? और इस बात को उत्तम ज्ञान भी कह रहे हो । आप हमको कुछ समझाओ बुझाओ कि यह कैसे उत्तम ध्यान है। तब भगवान कहते हैं ,
श्रीभगवानुवाच |
परं भूयः प्रवक्ष्यामि ज्ञानानां ज्ञानमुत्तमम् |
यज्ज्ञात्वा मुनयः सर्वे परां सिद्धिमितो गताः ||
(भगवद् गीता 14.1)
अनुवाद: भगवान् ने कहा - अब मैं तुमसे समस्त ज्ञानोंमें सर्वश्रेष्ठ इस परम ज्ञान को पुनः कहूँगा, जिसे जान लेने पर समस्त मुनियों ने परम सिद्धि प्राप्त की है |
यज्ज्ञात्वा मतलब जिस ज्ञान को जानकर , फिर वह सारा भगवत गीता का ज्ञान कहां हो या साथ ही साथ उसके अंतर्गत तिन गुणों का जो ज्ञान है , वैसे यहा तो तीन गुणों का ही उल्लेख है । उसी ज्ञान की ओर उंगली दिखाते हुए या संकेत करते हुए भगवान कह रहे है ,
यज्ज्ञात्वा मुनयः सर्वे
इस ज्ञान को जानकर समझकर , और केवल समझ कर ही नहीं उस पर अमल करके , क्या हुआ ? मुनयः मुनी , मुनि लोग चिंतनशील होते हैं , आप कहेंगे हम तो मन ही नहीं है ? लेकिन आपको मुनि बनना होगा । आपको , हर साधक को मुनि बनना होगा । मुनी ग्रहस्त भी हो सकते हैं । हरी हरी ।
ऋषी , मुनि या योगी बनने के लिए हिमालय जाने की या गुफा में प्रवेश करने की या बन में रहने की आवश्यकता नहीं है , ऐसे गृहे थाको वने थाको, सदा हरि बले डाको,
बन में रहते हो या घर में रहते हो , क्या करो ? गृहे थाको वने थाको, सदा हरि बले डाको
गृहे थाको वने थाको, सदा हरि बले डाको,
सुखे दुःखे भुल नाको।
वदने हरिनाम कर रे॥1॥
(भक्ती विनोद ठाकूर)
अर्थ
: भगवान गौरांग बहुत ही मधुर स्वर में गाते हैं- हरे कृष्ण, हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम, हरे राम, राम राम हरे हरे॥चाहे आप घर में रहे, या वन में रहें, सदा निरन्तर हरि का नाम पुकारें “हरि! हरि!” चाहे आप जीवन की सुखद स्थिति में हों, या आप दुखी हों, हरि के नाम का इस तरह उच्चारण करना मत भूलिए।
हमको मुनि बनना पड़ेगा । भूतकाल में कई सारे मुनियोने , साधकों ने ,भक्तों ने , वैष्णवो ने , शिष्यों ने क्या किया ? इस ज्ञान को समझा यज्ज्ञात्वा फिर क्या हुआ ? सुनिये भगवान क्या कहते है , परामगत: कहां गए ? परामगत: उच्च स्थान को प्राप्त किया , वैकुंठ गए , परामगत: और फिर बीच मे कहते हैे , परम सिद्धि इत: गत: इत: मतलब यहां से , जहां भी वह थे यह मुनिजन या साधक अपनी साधना उन्होंने की , अपने जीवन शैली को वैसे ही बनाया , इन तीन गुणों को समझने के ऊपरांत जो समझ में आया उसी के अनुसार उंहोणे अपनी जीवन शैली को बनाया , वैसे वह जीए और फिर इत: गत: , इत: मतलब यहां से , जहां वे थे इत: यहां से परम गत: वह जहा भी थे , दिल्ली में थे , मायापुर में थे , महापुर में है तो फिर वह पहुच ही गए , पहुचे हुये महात्मा है । लेकिन जो दिल्ली में थे , नागपुर में थे , उदयपुर में थे या बेंगलुर में थे , या जहां-जहां वह थे । इत: परम गत: यहा से इस संसार से ,स्थान की बात है तो स्थान को छोड़कर परम गति को प्राप्त किया , परमधाम को प्राप्त किया , ऐसे भी समझ है और ऐसा मतलब निकाल सकते हैं । इत: मतलब जब तमोगुण में फंसे हुए थे , तमोगुण की परिस्थिती मे जो थे , तमोगुणी थे या वह रजोगुणी थे या वह सत्वगुणी थे । तमोगुणी , रजोगुणी , सत्वगुणी स्थिति या परिस्थिति या मन:स्तिथी , मनःस्थिती से परे परम गत: परे गये मतलब गुनातीत हुए , तीन गुणों से परे पहुंच गए और उस अवस्था का नाम वैसे शुद्ध सत्व हुवा । यह चौथा गुण कहो , वैसे गुणों में गणना नहीं है । तमोगुण , रजोगुण , सत्वगुण से परे है उसे शुद्ध सत्व कहते हैं । जैसे हमने कहा ही है जो सत्व है , सत्वगुण मे भी कुछ मल है वह मल अभी निकाल दिया ।
चेतो-दर्पण-मार्जनं भव-महा-दाबाम्नि-निर्वापणं श्रेयः-कैरव-चन्द्रिका-वितरणं विद्या-वधू-जीवनम् ।
आनन्दाम्बुधि-वर्धनं प्रति-पदं पूर्णामृतास्वादनं सर्वात्म-स्नपन परं विजयते श्री-कृष्ण-सङ्कीर्तनम् ।।
(चैतन्य चरितामृत अंत लिला 20.12 , शिक्षाष्टकम 1)
अनुवाद : "भगवान् कृष्ण के पवित्र नाम के संकीर्तन की परम विजय हो, जो हृदय रूपी दर्पण
को स्वच्छ बना सकता है और भवसागर रूपी प्रज्वलित अग्नि के दुःखों का शमन कर सकता
है। यह संकीर्तन उस वर्धमान चन्द्रमा के समान है, जो समस्त जीवों के लिए सौभाम्य रूपी श्वेत
कमल का वितरण करता है। यह समस्त विद्या का जीवन है। कृष्ण के पवित्र नाम का कीर्तन दिव्य जीवन के आनन्दमय सागर बिस्तार करता है। यह सबों को शीतलता प्रदान करता है और मनुष्य को प्रति पग पर पूर्ण अमृत का आस्वादन करने में समर्थ बनाता है।
अपने चेतना का मार्जन किया , हमने अपनी चेतना को स्वच्छ किया । अपने अंतकरण को स्वच्छ किया । विचारों का मंथन किया , विचारों का मंथन , मंथन किया और जो भी जो माखन निकाला वह जो माखन शुद्ध सत्वगुण है । जो छाछ से भी अधिक मूल्यवान है । छाछ को पीछे छोड़ा और उसके के ऊपर यह माखन पहुंच गया । माखन का गोला या जब धातु , सोने को तपाते हैं तब उस सोने में अन्य धातुओं का मिश्रण अगर था तो वह सारे धातु या तो जल के राख होगे या फिर अलग होंगे । और फिर आपको शुद्ध सोना जो है वह शुद्ध सोना आपको मिलेगा । हमारे भावना में , हमारे विचारों में , हमारे जीवन शैली में जो तमोगुण का मिश्रण था , जो रजोगुण का मिश्रण था और सत्व गुण का मिश्रण था उसको हमने हटाया ।
नायं देहो देहभाजां नृलोके कष्टान्कामानह्हते विइ्भुजां ये ।
तपो दिव्यं पुत्रका येन सत्त्ं शुद्धवेच्यस्माइृह्यासौख्यं त्वनन्तम् ॥
(श्रीमद भागवत 5.5.1)
अनुवाद: भगवान् तषभदेव ने अपने पुत्रों से कहा-है पुत्रो, इस संसार के समस्त देहधारियों में जिसे मनुष्य देह प्राप्त हुई है उसे इन्द्रियतृप्ति के लिए ही दिन-रात कठिन श्रम नहीं करना चाहिए क्योंकि ऐसा तो मल खाने वाले कूकर-सूकर भी कर लेते हैं। मनुष्य को चाहिए कि भक्ति का
दिव्य पद प्राप्त करने के लिए वह अपने को तपस्या में लगाये। ऐसा करने से उसका हृदय शुद्ध हो जाता है और जब वह इस पद को प्राप्त कर लेता है, तो उसे शाश्चत जीवन का आनन्द मिलता है, जो भौतिक आनंद से परे है और अनवरत चलने वाला है ।
भगवान ऋषभदेव अपने पुत्रों को कह रहे हैं , अपने सौ पुत्रों को संबोधित कर रहे हैं तब उन्होंने कहा , सुनो भरत या भारत आदि पुत्रों , आप तपस्या करो , तपस्या करो , तपो दिव्यं और दिव्य तपस्या करो , तपस्या का जो तप या ताप है या तपस्या की जो अग्नि भी है वह ज्ञान की अग्नि है , तप की जो ज्योति है , तप का जो ताप है इससे क्या होता है ? सत्त्ं शुद्धवेच्यस्माइृह्यासौख्यं इससे शुद्धिकरण होगा । तप की अग्नि , ज्ञान की अग्नि हमारे अंतरण , चेतना में , भावना में विचारों में , जीवन के शैली में जो जो तमोगुण , रजोगुण , सत्व गुण का जो प्रभाव है उस सब को मिटा देगा , मिटा देगी यह तपस्या । हमारी साधना भक्ति यह ,
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।।
यह भी तप है , यह भी यज्ञ है और हमारी जीवन शैली है । यह जीवनशैली गौडिय वैष्णव की है ही , इस्कॉन के अनुयाई है , इसका हम अनुसरण करेंगे । तब ऋषभदेव भगवान ने कहा शुद्धवेच्यस्माइृह्यासौख्यं तुम्हारा शुद्धिकरण होगा । शुद्धवेच्यस्माइृह्यासौख्यं त्वनन्तम् फिर जो आनंद है वह आनंद तुम्हारी प्रतीक्षा में है । इृह्यासौख्यं ब्रह्मा का परब्रह्मा का वह कृष्णानंद तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहा है । श्रवणानंद या प्रसादानंद , आनंद , भगवान आनंद2 है । आनंद ! नंद के घर क्या भयो ? आनंद भयो । नंद के घर आनंद भयो । कृष्ण ही आनंद है या कृष्ण का दूसरा नाम आनंद है , आनंद मतलब कृष्ण । सच्चिदानंद घन श्री कृष्णा । ब्रह्यासौख्यं त्वनन्तम् अनंत - अनंत सुख को प्राप्त करोगे , तुम तपस्या करोगे या इस संदर्भ में कह सकते हैं इस ज्ञान को हम प्राप्त करेंगे , प्रकृति के इन 3 गुणों का जो का ज्ञान प्राप्त करेगे तो यह ज्ञान ,
श्रीभगवानुवाच |
परं भूयः प्रवक्ष्यामि ज्ञानानां ज्ञानमुत्तमम् |
यज्ज्ञात्वा मुनयः सर्वे परां सिद्धिमितो गताः ||
(भगवद् गीता 14.1)
अनुवाद : भगवान् ने कहा - अब मैं तुमसे समस्त ज्ञानोंमें सर्वश्रेष्ठ इस परम ज्ञान को पुनः कहूँगा, जिसे जान लेने पर समस्त मुनियों ने परम सिद्धि प्राप्त की है |
ज्ञानमुत्तमम् उत्तम ज्ञान है , यज्ज्ञात्वा इसको जानकर मुनयः मुनी , जो भूतकाल के मुनि या फिर वर्तमान के मुनि भी परां सिद्धिमितो गताः या से , जो जहा जहा है , उनकी मनःस्थिती तमोगुणी थी , रजोगुणी थी या सत्वगुणी थी वहा से ऊपर उठेगी और पुन्हा कृष्णभावना भावीत अवस्था को मन:स्थिति को , विचारों को , जीवन शैली को प्राप्त करेंगे जीवन मुक्त होंगे । भगवत धाम लौटेंगे या भगवत धाम लौटने के लिये वह पात्र बनेंगे । हरि हरि । इसको आप और आगे पढ़िए , यह नही की , हम तो गोडीय वैष्णव है , यह तिन गुणों हमको थोडी1 पढना है हम तो रासलीला पढेगे , हम मधुर लीला का श्रवण करेंगे ।यह इन 3 गुणों की चर्चा , 3 गूण क्या होते हैं , नहीं ! नहीं ! यह फिर गलत धारणा हुई , यह ज्ञान की नींव है , इसके बिना हम आगे बढ़ नहीं पाएंगे । पहेली बात पहले यह एक सिद्धांत है , पहेली बात पहले , दूसरी बात बाद में जीवन का लक्ष्य क्या है ? इस को ध्यान में रखते हुए कुछ कदम उठाना पड़ेगा । यह प्रारंभिक कदम है और यह हमारा सब समय साथ देंगे । यह नहीं कि हम पीएचडी करना चाहते हैं तो फिर हम इस एबीसीडी को कोई महत्व नहीं देंगे । यह ऐसा होता है क्या ? नहीं , मैं पीएचडी करने जा रहा हूं तो मेरा ए बी सि डी से कोई संबंध नहीं है ,मुझे एबीसी की कोई परवाह नहीं है , मैं पीएचडी करने वाला हूं । ऐसा थोड़ी होता है , (हसते हुये) एबीसीडी साथ में रहेगी । एबीसीडी के बिना तुम आगे नहीं बढ़ सकते , एबीसीडी आपके हमेशा साथ रहेगी । श्रील प्रभुपाद कहा करते थे , भगवद गीता का ज्ञान यह प्रारंभिक है , प्रारंभिक ज्ञान है ,लेकिन यह ज्ञान काम आएगा , अनिवार्य रहेगा आध्यात्मिक जीवन की हर स्तरपर , हर श्रेणीपर यह ज्ञान होगा । ठीक है ।
आपको कोई प्रश्न है ? या तो आप यहां लिखो या फिर कहो , क्या प्रश्न है ?
पद्मावली आप इधर हो ?
पद्मावली प्रभुजी : हाँ , गुरुमहाराज , शंभू नाथ प्रभु आपका कोई प्रश्न है आज की जप चर्चा के लिये ?
गोवर्धन प्रभुजी दिल्ली से ,
प्रश्न: जब हम सुबह के कार्यक्रम करते हैं , जप करते हैं , प्रवचन करते हैं , सुबह के कार्यक्रम बिलकुल सत्वगुण मे होते हैं लेकिन जब हम जब हमारी जॉब पर जाते हैं , काम पर जाते है वहां लगता है कि रजोगुण का प्रभाव बढ़ रहा है , तो उसके लिए क्या करना चाहिए कि हम वहां पर भी सत्वगुण में रहे ?
उत्तर : सुबह थोड़ा बैटरी को चार्ज करो , अधिक चार्ज करो बैटरी ताकि वह चार्ज दिन भर बना रहे । चार्ज थोड़ा कम किया सुबह में तो फिर फिन के मध्य मे डिस्चार्ज हो जाएगा । हरि हरि । उस समय भी आप याद रखो कि दिन में भी कैसे सत्वगुण मे रहना है या कैसे सत्वगुणी रहना है या गुनातीत रहना है , आप किस को मिलते हो , या क्या पढ़ते हो , क्या खाते हो यह सब से ही हमारा पूरा जीवन प्रभावित होता है । प्रातः काल की स्थिती को और जीवनशैली को थोड़ा बनाए रखो और यह अभ्यास की बात है । हरि हरि । जब कहीं महामारी होती है तब वहा जाने वाले जो डॉक्टर या और जो लोग वहा सहायता के लिये जाना चाहते हैं या और किसी कारण के लिए तो इनॉग्लेशन करके जाते हैं , एक इंजेक्शन लेकर जाते हैं फिर वहां जाने से वहां के जो किटाणू है , जीव जंतु है , जो भी मलेरिया है यह है, वह है उससे वह व्यक्ति प्रभावित नहीं होता । वहां जाने पर भी वहां के परिस्थिती से वह प्रभावित नहीं होता है , रोगग्रस्त नहीं होता , हरे कृष्ण महामंत्र का जो सुबह का जप है , श्रवण कीर्तन है या फिर तीन गुणो अध्ययन भी कर लिया , अध्याय भी पढ़ लिया तो यह सब तैयारी करके हम जब जायेंगे तो फिर वह इनॉग्लेशन करने जैसी बात है । इनॉग्लेशन करके आप गए फिर आप काफी हद तक सुरक्षित रहोगे ।
शंभूनाथ प्रभुजी
प्रश्न : जिस प्रकार से प्रकृति के द्वारा सुबह के समय सत्वगुण का प्राधान्य रहता है फिर दोपहर को रजोगुण का रहता है फिर शाम के समय तमोगुण का रहता है तो यह प्रकृति के द्वारा इस प्रकार से क्यों व्यवस्था कि गई है ? और क्योंकि , दोपहर के समय भी रजोगुण का प्रभाव होता है तो हमारे विचार भी जाते हैं ?
उत्तर : हम जब जप करते है , जप करने के लिए तो हमको वैसे कोई नियम नहीं है ऐसे भगवान ने व्यवस्था की हुई है । हम अगर परमहंस है , हम गुनातीत ही पहुंचे हैं तो उनके लिए कोई नियम नहीं है , यह आपका दिन का रजोगुण उनपर प्रभाव नही डालेगा या उनके ऊपर रात्रि को तमोगुण का प्रभाव नहीं होगा जो भक्ति कर रहे हैं या जो जप कर रहे हैं , इस प्रकार हम तीनों कालों को या प्रातकाल कहो या दिन का काल कहो या रात्री का काल कहो हम उस काल का जो गुण है उसके अतीत पहुंच सकते हैं , इसलिए कहा है कीर्तनीय सदा हरी करो ताकि दिन में रजोगुण का प्रभाव नहीं होगा और रात्रि में तमोगुण का प्रभाव नहीं होगा । श्रीलं प्रभूपाद ने हमको कहा था कि , दिन के चौबीस तास भगवान की सेवा में , भगवान की ध्यान में लगे रहो । भगवान ने ऐसी व्यवस्था तो की है , प्रातःकाल मे सत्वगुण का प्राधान्य है लेकिन हमतो उस समय भी हम लेटे रहते हैं , उसका फायदा उठाणा चाहीये । हरी हरी । तब ही हम गुणों से अतीत पहुंच जाएंगे रहेंगे , सब अवस्था में सब त्रिकालो में इसी तरह , और भक्तों का संग करना चाहीये । प्रभूपाद हमको दिन में प्रचार के लिए भेजते थे तब प्रभूपाद का यह सुझाव रहाता था कि आप अकेले मत जाना , आप संघ बनाकर जाना , जब लाइफ मेंबरशिप बनाने जाना है तो साथ मे भक्तों को रखते है ताकी दोनो मिलकर फिर उस दिन के रजोगुण से लढो , रजोगुण लोगों के साथ जो वार्तालाभ है तो दोनों मिलके आप मजबूत बनोगे । ऐसा भी आप कर सकते हो , दिन में फिर रात में भक्तों का संग कर सकते हो , भक्तों के साथ बात करो कि अब ऐसा हो रहा है , वैसा हो रहा है तो अब मुझे क्या करना होगा या फिर माला निकालो और जप करो , प्रार्थना करो भगवान से या ग्रंथ साथ में रखो और खोल कर देखो कि अब क्या करना चाहिए ? यह तमोगुण का यहां खेल चल रहा है । हरि हरि । जैसे हमने कहा कि तीन गुणों का प्रभाव सारी सृष्टि पर है । इसी से सतयुग मिश्रित है , इसी से कलयुग या फिर इसी से कौन से कौन से युग है ? द्वापारयुग भी है । वैसे 24 घंटे का जो कालावधी है उसपर भी तीन गुणों का प्रभाव होता है । प्रातकाल एक ढंग का , रजोगुण वाला दिन है और रात में ऐसा है ,यह काल चक्र सर्वत्र है और सर्वदा है और सारे कार्यकलापों में है तो सावधान रहिये , और तैयारी करो ।
राधानाथ कृष्ण प्रभुजी यवतमाल से ,
प्रश्न: महाराज आपने बोला लेकिन ऐसे बहुत बार होता है कि , हमको पता नहीं चलता कि हम कौन से गुण में हैं , हमारा गुण बदल जाता है जैसे दूसरों को भी हम देखते हैं तो हम उनको समझाना चाहते है कि आपकी ऐसी ऐसी समस्या है लेकिन वह उसको समझते नहीं है , लेकिन वही समस्या हमारे साथ भी होती है तो कैसे समझना कि हमारे अंदर तमोगुण या रजोगुण बढ़ गया है और उसका हल क्या रहेगा ?
उत्तर : हल तो है , हरे कृष्ण , हरे कृष्ण , उसका कोई दूसरा पर्याय ही नहीं है या गीता भागवत का श्रवण ही उसका हल है , संसार के सारे प्रश्नों के उत्तर गीता , भागवत है यह कृष्णा भावना ही सारे प्रश्नों का उत्तर है । बड़े-बड़े प्रश्न कहो या यह जन्म की समस्या है , मृत्यु की समस्या है , बुढ़ापे की समस्या है और बीमारी की समस्या है यह कृष्णा भावना ही उसका उत्तर है । प्रात:काल में आप सो रहे हो मतलब आप कौन से गुण में होंगे ? आप ब्रह्म मुहूर्त में , मंगल आरती में नहीं उठ रहे हो या उठ कर आप जप नहीं कर रहे हो तो आप कौन से गुण में होंगे ? तमोगुण में हो । ऐसा है भागम भाग चल रही है , ईर्ष्या द्वेश चल रहा है , ईर्ष्या द्वेश यह रजोगुण के कारण होता है ।
श्री भगवानुवाच
काम एष क्रोध एष रजोगुणसमुद्भवः |
महाशनो महापाप्मा विद्धयेनमिह वैरिणम् ||
(भगवद् गीता 3.37)
अनुवाद : श्रीभगवान् ने कहा – हे अर्जुन! इसका कारण रजोगुण के सम्पर्क से उत्पन्न काम है, जो बाद में क्रोध का रूप धारण करता है और जो इस संसार का सर्वभक्षी पापी शत्रु है |
काम एष क्रोध एष रजोगुणसमुद्भवः वैसे अर्जुन ने पूछा था यह क्या है ? कौन है ? यह कौन स गुण है या अवगुण है कि हम नहीं चाहते फिर भी , भगवद् गीता के तिसरे अध्याय के अंत मे अर्जुन ने प्रश्न पूछा है , जैसे आप प्रश्न पूछ रहे हो तो यह किसके कारण हो रहा है ? इच्छा नही होते हुये भी हम लोग पाप करते हैं । यह किसकी योजना है ? हमने तो नहीं किया लेकिन ऐसा कार्य ऐसा पाप हमसे कोई करवा रहा है , कौन है ? उत्तर में भगवान ने कहा है , काम एष क्रोध एष अर्जुन इसका कारण है काम , तुम्हारी कामवासना और तुम्हारा क्रोध ही कारण है या फिर धीरे कहा जा सकता है कि अन्य जो शत्रु है यह कारण है , यह तुमसे पाप करवाते हैं तो फिर आगे भगवान ने कहा है , काम एष क्रोध एष रजोगुणसमुद्भवः और यह काम वासना उत्पन्न कैसे होती है ? रजोगुण से काम उत्पन्न होता है और काम से हम वशीभूत होते हैं और हमारे सब काम धंधे चलते रहते है । मैं अभी काम में हूं , काम में हूं मतलब कामवासना में हूं , काम वासना से लिप्त होकर मे काम कर रहा हूं । प्रेम के लिए समय नहीं है आप तो प्रेम की बात कर रहे हो जप करने की बात प्रेम करने की बात है , मंदिर जाने के बात प्रेम की बात है , भगवत गीता अध्ययन करना प्रेम की बात है , नहीं , नहीं , वह नहीं करूंगा मैं काम में हूं , यह रजोगुण है । तो आप भगवत गीता का 14 वा अध्याय पढ़िए और भी अध्यायो में ऐसे लक्षण बताए हैं , तमोगुण का लक्षण यह है , रजोगुण की यह पहचान है , सत्वगुणी के कार्यकलाप ऐसे होते हैं ऐसा भगवान ने कहा है , फिर आप जो दान देते हो , आपने तो सोचा होगा कि मैं तो इतना बड़ा दानवीर , दानशुर हू , मैंने दान दिया लेकिन आपने जो दान दिया वह तमोगुणी दान था या रजोगुण दान था या सत्वगुणी था इसका ध्यान किसको है ? यह भी समझना होगा ताकि हम ने दिए हुए दान से हम भी लाभान्वित हो । हरी हरी । सब अज्ञान ही है तो भगवान कह रहे हैं यज्ञात्वा इस ज्ञान को सुनो , मैं जो सुना रहे हो ज्ञानानं उत्तमम हम पढ़ते नहीं है , हम सुनते नहीं है सिर्फ प्रश्न पूछते रहती है , पूछेंगे ही क्योंकि हमने पहले पढ़ा नहीं था , पहले सुना नहीं था , तोे पढो , सुनो , समझो और फिर उसके अनुसार अपनी जीवनशैली बनाओ और यथा संभव औरों को भी समझाओ । ठीक है , तो हम यही रुकते हैं ।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।।
परम पूज्य लोकनाथ स्वामी महाराज की जय।
श्रील प्रभुपाद की जय ।