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जप चर्चा, वृंदावन धाम से, 1 नवम्बर 2021 आप सभी का स्वागत है, नियमीत उपस्थित रहने वाले और आज उपस्थित हुए सभी का स्वागत हैं। आज का कार्यक्रम हिंदी भाषा मे होने वाला है एकादशी श्रवण कीर्तन महोत्सव ॐ अज्ञान तिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जन शलाकया चक्षुरुन्मीलितं येनतस्मै शीगुरवे नमः आज एकादशी व्रत है। मुझे विश्वास है कि आप सभी विश्वास से दमोदर मास व्रत का पालन कर रहे हैं दामोदर मास शुरू है आप सभी दामोदर मास मना रहे हैं और यह महत्वपूर्ण पडाव हैं। इस दामोदर मास के मध्य में एकादशी आई है।पहले ही दामोदर मास का उत्साह है और उस में एकादशी महोत्सव आने से उत्साह दृगृणित हो रहा हैं। आज दामोदर मास मे एकादशी व्रत है, महोत्सव है यह अतिरिक्त महोत्सव, व्रत है। आज वक्त निकल रहा है 7: 10 मे 25 मिनट बाकी है मुझे कृष्ण-बलराम के दर्शन के लिए मंदिर जाना है।वृंदावन धाम कि जय..! मुझे कृष्ण-बलराम मंदिर जाना है और मैं व्यस्त हुं,और अगले वक्ता जो आने वाले है वे है सार्वभौम प्रभु वे आप सभी के साथ दामोदर अष्टक का पठन और महत्व समझायेंगे। आगे कि और बढ़ते हुए मै भक्तीविनोद ठाकुर द्वारा एकादशी गीत साझा करता हूँ। यह एकादशी गीत मायापुर के अनेक स्थान तथा पुरे विश्व के भक्त एकादशी के दिन यह गीत गाते हैं। शूधद-भकत- चरण-रेणु, भजन अनुकूल। यह गीत नहीं गाऊंगा, मै यह गीत पढूंगा और मेरा विचार है कि मैं आपको इसका अर्थ समझाऊंगा। हम अनेक बार ये मंत्र, वो स्तोत्र, गीत, स्तुति, प्रार्थना गाते है किंतु हम इसका अनेक बार पठन, श्रवण करते हुए भी अर्थ नहीं समझ पाते। आज यह जरूरी है कि जिसका हम पठन और श्रवण करते है उसका जितना हो सके उतना संक्षिप्त में अर्थ जानेंगे, और मै बताना चाहता हूँ कि एकादशी के दिन श्रील भक्तिविनोद ठाकुर जी ने अत्याधिक महत्व दिया है। गौडिय वैष्णवों के लिए पिछले एकादशी से आने वाली एकादशी तक सेवा और साधना का अवलोकन करे। पिछले दो हप्ते में हमने कैसा प्रदर्शन किया हमारी साधना, जप, और भक्तिमय सेवा, आपकी कमजोरी तथा खुबी कि नोंद करे और उसमें सुधार लाए, जैसे वैष्णव अपराध, दस नामअपराध, धाम अपराध, सेवा अपराध, श्रीविग्रह आराधना अपराध इन अपराधों कि बढ़ी सुची है भक्तिरसामृतसिंधु में। भक्तिविनोद ठाकुर के अनुसार एकादशी का दीन सुनिश्चित किया है आत्मअवलोकन के लिए देखिए कि आप कैसे अपने जीवन में बदलाव, परिवर्तन हो सके तो अमल मे लाएं। आत्मविश्लेषण, चिंतन, मनन करे। शूधद-भकत- चरण-रेणु, भजन अनुकूल। भकत सेवा, परम-सिध्दी, प्रेम-लतिकार मूल।। 1।। अनुवाद: -शुद्ध भक्तों की चरणरज ही भजन के अनुकूल है। भक्तों की सेवा ही परमसिद्धि है तथा प्रेमरूपी लता का मूल (जड़) है। भक्तीविनोद ठाकुर ने लिखा है शुध्द भक्तों कि चरणरज ही भजन के लिए अनुकूल हैं। भक्त-पद-धूलि आर भक्त-पद-जल। भक्त-भुक्त-अवशेष,--- तिन महा-बल।। ( श्री चैतन्य चरितामृत अंन्त लीला 16.60) अनुवाद: - भक्त के चरणों की धूल, भक्त के चरणों का प्रक्षालित जल तथा भक्त व्दारा छोड़ा गया शेष भोजन--ये तीन अत्यंत शक्तिशाली वस्तुएँ हैं। पद धुली, पदजल,भक्तभुक्त अवशेष इत्यादि।चैतन्य चरितामृत मे अन्य बातों कि भी नोंद हैं। शुध्द भक्तों कि चरणधुली,चरणामृत,भक्तभूक्त अवशेष,बचा हुआ महाप्रसाद आपके भक्तीमय जीवन के लिए अनुकूल हैं। भकत सेवा, परम-सिध्दी, प्रेम-लतिकार मूल।। शुद्ध भक्तों कि सेवा ही परम सिध्दी हैं। वपु सेवा, उनकि चरण धुली, चरणामृत, वाणी सेवा, आदेशों का पालन करना यही भगवत सेवा और परमसिध्दी हैं। नष्टप्रायेष्वभद्रेषु नित्यं भागवतसेवया । भगवत्युत्तमश्लोके भक्तिर्भवति नैष्ठिकी ॥ (श्रीमद्भागवत 1.2.18) अनुवाद:-भागवत की कक्षाओं में नियमित उपस्थित रहने तथा शुद्ध भक्त की सेवा करने से हृदय के सारे दुख लगभग पूर्णतः विनष्ट हो जाते हैं और उन पुण्यश्लोक भगवान् में अटल प्रेमाभक्ति स्थापित हो जाती है , जिनकी प्रशंसा दिव्य गीतों से की जाती है । प्रभुपाद कहते है कि दो भागवत हैं। ग्रंथ भागवत, आध्यात्मिक भागवत और कृष्ण भागवत है। विष्णु सेवा मे, वैष्णवों कि सेवा मे रहना यही प्रेमरुपीलता कि जड़ हैं। "प्रेम-लतिकार मूल" यह जड़ हैं। शुध्द भक्तों कि सेवा ही भक्ति कि जननी हैं। माधव-तिथि, भक्ति जननी, यतने पालन करि। कृष्ण वसति, वसति बलि, परम आदरे बरि॥2॥ अनुवाद: -माधव तिथि (एकादशी) भक्ति देने वाली है इसलिए मैं यत्नपूर्वक इसका पालन करता हूँ। मैं श्रीकृष्ण के धाम को ही आदरपूर्वक अपना निवास-स्थान चुनता हूँ। माधव-तिथि, भक्ति जननी, यतने पालन करि। माधव तिथि यह वैष्णव तिथि हैं।तिथि मतलब दिन जैसे प्रथमा, व्दितिया, तृतिया, चतुर्थी। वैष्णव तिथि अथवा जन्माष्टमी और माधव तिथि मतलब एकादशी का अर्थ है माधव कि तिथि।इस दिन माधव का गुणगान और सेवा करनी चाहिए।भक्ति जननी का अर्थ है भक्ति कि जननी एकादशी उत्सव में नियमों का अनुसरण करे। 'यतने पालन करि' माधव तिथि भक्ति देने वाली हैं। यत्नपूर्वक इसका पालन करना चाहिए। भक्तिविनोद ठाकुर ने इन नियमों का एकादशी के दिन पालन करने को कहा है किंतु हमे इन नियमों का हर दिन पालन करना चाहिये। कृष्ण वसति, वसति बलि, परम आदरे बरि॥ जहाँ कृष्ण रहते हैं वहा तुम्हे जाना चाहिये। 'परम आदरे बरी' जीन जीन स्थानो मे आनंदपुर्वक भ्रमन किया उन लिला स्थलियों पे जाना चाहिये। गौर आमार, ये सब स्थाने, करल भ्रमण रंगे। से-सब स्थान, हेरिब आमि, प्रणयि-भकत-संगे॥ अनुवाद:-मेरे गौरसुन्दर ने जिन जिन स्थानों में आनन्दपूर्वक भ्रमण किया, मैं भी प्रेमी भक्तों के साथ उन-उन स्थानों का दर्शन करूँगा। हे प्रभु गौरांग..! गौरांग..! गौर ही कृष्ण हैं। वह जिन जिन स्थानों मे आनंदपुर्वक भ्रमण किया है प्रेमी भक्तो के साथ उन स्थानो कि परिक्रमा करो। श्रील प्रभुपाद भी हमेशा कहते थें। कभी किसी जगहपर अकेले न जाए। हम नहीं जानते कौन किस भाव से भक्ति कर रहे हैं। हो सकता है कोई बाबाजी, सहजीवी, गोस्वामी हमे भक्ति से भटका दे और हम भटक जाये इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि हम प्रेमी भक्तो के संग मे ही यात्रा करे। जो भक्त प्रेभुप्रेमी हो, वृंदावन प्रेमी हो, मायापुर प्रेमी हो उन्ही के साथ ही परिक्रमा करे। श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने जगनानंद पंडित से वृंदावन मे कहा ऐसे लोगों से सावधान रहे। भक्तिविनोद ठाकुर कह रहे है कि मुझे उन जगहों पर जाना पसंद हैं।सिर्फ आखों से ही देखना नहीं है बल्कि कानों से सुनना तथा महसूस करना चाहिए। जैसे आपने उस स्थान को देखा, सुना है वैसा ही आपकोे दृश्यमान छबि प्रकट करना महत्वपूर्ण हैं। मृदंग-वाद्य, शुनिते मन, अवसर सदा याचे। गौर-विहित, कीर्तन शुनि’, आनन्दे हृदय नाचे॥4॥ अनुवाद: -मृदङ्ग की मधुर ध्वनि को सुनने के लिए मेरा मन सर्वदा लालायित रहता है तथा श्रीगौरसुन्दर द्वारा प्रवर्तित कीर्तनों को सुनकर आनन्द से भरकर मेरा हृदय नाचने लगता है। मृदंग-वाद्य, शुनिते मन, अवसर सदा याचे। उन्होंने कहा मेरा मन हमेशा उस अवसर कि बाट देखता है कि कब मृदुंग कि मधुर ध्वनि को सुनने के लिए मेरा मन सदैव लालायीत रहता है तथा श्रीगौरसुंदर व्दारा प्रवर्तित किर्तनो को सुनकर आनंद से भरकर मेरा हृदय नाचने लगता हैं। महाप्रभोः कीर्तन-नृत्यगीत वादित्रमाद्यन्-मनसो-रसेन। रोमाञ्च-कम्पाश्रु-तरंग-भाजो वन्दे गुरोः श्रीचरणारविन्दम्॥2॥ (संसार दावानल) अनुवाद:-श्रीभगवान् के दिवय नाम का कीर्तन करते हुए, आनन्दविभोर होकर नृत्य करते हुए, गाते हुए तथा वाद्ययन्त्र बजाते हुए, श्रीगुरुदेव सदैव भगवान् श्रीचैतन्य महाप्रभु के संकीर्तन आन्दोलन से हर्षित होते हैं। वे अपने मन में विशुद्ध भक्ति के रसों का आस्वादन कर रहे हैं, अतएव कभी-कभी वे अपनी देह में रोमाञ्च व कम्पन का अनुभव करते हैं तथा उनके नेत्रों में तरंगों के सदृश अश्रुधारा बहती है। ऐसे श्री गुरुदेव के चरणकमलों में मैं सादर वन्दना करता हूँ। महाप्रभोः कीर्तन-नृत्यगीत वादित्रमाद्यन्-मनसो-रसेन। महाप्रभु का किर्तन, नृत्य, गीतों कि आवाज अलौकिक हैं। गौड़ीय वैष्णवों का विशिष्ट वाद्य है मृदंग और उसी के साथ करताल बजाया जाता हैं। भक्ति विनोद ठाकुर कह रहे हैं करताल, मृदंग इन वाद्यों के साथ जब भगवान के लीलाओं का गायन किया जाता है तब मेरा हृदय नाचने लगता हैं। गौर-विहित, कीर्तन शुनि’, आनन्दे हृदय नाचे। इस संगितम दिव्य वातावरण में जहा भगवान के गुण और लीलाओं को गाया जा रहा हो, वहा इतना आनंद का अनुभव होता है कि मेरा हृदय आनंद से नाचने लगता है, उन्होंने यह नहीं कहा कि मेरा शरीर नाच रहा है बल्कि ये कहा कि मेरा हृदय नाच रहा हैं। हृदय आत्मा का निवास स्थान हैं। मेरी आत्मा नाच रही हैं। किर्तन ही मेरी आत्मा का भोजन हैं। इस आनंद मे आत्मा नाचने लगता हैं। वृंदावन वह स्थान हैं जहा भक्ति नाचने लगती हैं। युगल-मूर्ति, देखिया मोर, परम-आनन्द हय। प्रसाद-सेवा, करिते हय, सकल प्रपन्च जय॥5॥ अनुवाद:-युगल मूर्ति का दर्शन कर मुझे परम आनन्द प्राप्त होता है। महाप्रसाद का सेवन करने से मैं माया को भी जीत लेता हूँ। युगल-मूर्ति, देखिया मोर, परम-आनन्द हय। वे कहते हैं कि जब मै युगल विग्रहों के दर्शन करता हूँ,तब अत्यंत आनंद का अनुभव करता हूँ।राधाकृष्ण,राधामाधव,गौरनिताई जब मै इनका दर्शन करता हूँ तो मुझे परम आनंद मिलता हैं। प्रसाद-सेवा, करिते हय, सकल प्रपन्च जय॥ जब हम अर्चाविग्रहो को मंदिर में, घर में, ब्रम्हचारी आश्रम में भोग या छप्पन भोग लगाते हैं, भगवान को अर्पित प्रसाद ही ग्रहण करने से सारे प्रपंचों का निवारण हो जाता हैं। प्रसाद में भगवान कि मधुरता मिश्रीत होती है इसे ग्रहण करने से मन भी संयम मे आता हैं। भगवान के दर्शन कि योग्यता प्राप्त होती है। भाई-रे! एक-दिन शांतीपुरे, प्रभु अद्वैतेर घरे, दुइ प्रभु भोजन बसिल शाक करि आस्वादन, प्रभु बले भक्त-गण, एइ शाक कृष्ण आस्वादिल॥1॥ अनुवाद:-हे भाइयों! एक दिन शांतिपुर में, दोनों प्रभु, श्रीचैतन्य महाप्रभु और नित्यानंद प्रभु, अद्वैत प्रभु के घर मे दोपहर भोजन के लिए बैठे थे। आश्चर्यजनक साग का आस्वादन करने के पश्चात्-चैतन्य महाप्रभु ने कहा, “मेरे प्रिय भक्तों, यह साग इतना स्वादिष्ट है, भगवान् कृष्ण ने अवश्य ही इसको चखा है। ” एक दिन चैतन्य महाप्रभु शांतिपूर मे अव्दैताचार्य के घर मे गये और चैतन्य महाप्रभु को प्रसाद दिया वह बहुत स्वादिष्ट था, बाद मे सभी को उन्होंने बुलाया ओर कहा इस प्रसाद मे भगवान कि लार है इसलिए यह बहुत ही स्वादिष्ट हैं। "सकल प्रपंच जय" भगवान को अर्पित प्रसाद ग्रहण करने से सारे प्रपंचों का निवारण हो जाता हैं। प्रसाद मे भगवान कि मधुरता मिश्रित होती हैं। इसे ग्रहण करने से मन भी संयमित होता हैं। जप और प्रसाद आपको भगवान का दर्शन करवा सकता है। किर्तन, दर्शन, भक्तों कि सेवा, अर्चना विग्रह सेवा, जप, प्रसाद से ही आप कृष्ण दर्शन के पात्र बनते हैं। ये दिन गृहे, भजन देखि गृहते गोलोक भाय, चरण-सीधु, देखिया गंगा, सुख ना सीमा पाय॥6॥ अनुवाद:-जिस दिन घर में भजन-कीर्तन होता है, उस दिन घर साक्षात् गोलोक हो जाता है। श्रीभगवान् का चरणामृत और श्रीगंगाजी का दर्शन करके तो सुख की सीमा ही नहीं रहती। ये दिन गृहे, भजन देखि गृहते गोलोक भाय, जीस दिन मै घर में किर्तन का आयोजन करता हूँ, भक्तों को आमंत्रित करता हूँ, किर्तन मे भाग लेता हूं तो घर मे किर्तन होते हुए देखकर ऐसा लगता है जैसे घर गोलोक वृंदावन बन जाता है। उनका घर गंगा के तट पर है, वे कहते हैं कि गंगा को देखकर अति सुख का अनुभव होता हैं। गंगा भगवान के चरणों से उत्पन्न हुईं हैं। गंगा, जमुना, सरस्वती, कावेरी, गोदावरी, सिंधु आदि नदियाँ भगवत चरणामृत है वे भगवान कि कृपा हैं। तुलसी देखि, जुड़ाय प्राण, माधवतोषणी जानि’। गौर-प्रिय, शाक-सेवने, जीवन सार्थक मानि॥7॥ अनुवाद:-माधवप्रिया तुलसी जी का दर्शन कर त्रितापों से दग्ध हुआ हृदय सुशीतल हो जाता है। गौरसुन्दर के प्रिय साग का आस्वादन करने में ही मैं जीवन की सार्थकता मानता हूँ। तुलसी देखि, जुड़ाय प्राण, माधवतोषणी जानि’। अब भक्तिविनोद ठाकुर तुलसी महारानी कि ओर मुडते हैं। तुलसी महारानी कि जय...! तुलसी महारानी जी कि बहुत सारी कहानियाँ हैं। तुलसी कृष्णप्रेयसी नमो नमः। गृहांगन मे तुलसी देखकर प्राण जुड़ता हुआँ अनुभव होता है, तुलसी बहुत ही उंचे स्थान पर हैं। तुलसी देवी माधव तोषणी है, वह माधव को संतोष देती हैं। गौर-प्रिय, शाक-सेवने, जीवन सार्थक मानि॥ एक बार फिर से प्रसाद का महत्व बता रहे हैं भगवान को अर्पित प्रिय शाक (पालक) का सेवन करने से जिवन सार्थक होता हैं। भक्तिविनोद ठाकुर इस निष्कर्ष पर पहुँचे भकतिविनोद, कृष्ण भजने, अनुकूल पाय याहा। प्रति-दिवसे, परम सुखे, स्वीकार करये ताहा॥8॥ अनुवाद:-कृष्ण भजन के अनुकूल जीवननिर्वाह के लिए जो कुछ पाता है, यह भक्तिविनोद प्रतिदिन उसे सुखपूर्वक ग्रहण करते हैं। भकतिविनोद, कृष्ण भजने, अनुकूल पाय याहा। वह कहते है जो भी मेरी भक्ति के लिए अनुकूल है उनका मै स्विकार करता हूँ। प्रति-दिवसे, परम सुखे, स्वीकार करये ताहा॥ भक्तिविनोद ठाकुर कहते है, हर रोज परमसुख के साथ स्विकार करता हूँ। हरि हरि! भक्तिविनोद ठाकुर कि जय...! भक्तिविनोद ठाकुर द्वारा रचित इस भजन कि जय...! इसे गाते रहिये और इसके अर्थ को पढिए। आप इस गीत के भावों को अनुभव कर सके। हरि हरि! कृष्ण बलराम कि जय..! वृंदावन धाम कि जय..! दामोदर मास कि जय..! एकादशी महोत्सव कि जय..! गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल..! अब पुज्य सार्वभौम प्रभु दामोदर अष्टक पर चर्चा करेंगे, वे वृंदावन के बहुत बडे प्रचारक हैं। मुझे मंदिर मे कार्यक्रम के लिए जाना होगा। आप यहा बने रहिये और कथा को श्रवण करिये।

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