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1st May 2020
(जय) श्रीकृष्ण चैतन्य प्रभु नित्यानंद। श्री अद्वैत गदाधर श्री वासादि गौरभक्त वृंद।।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।
आज से हम लोग कथा महोत्सव अर्थात श्रवण उत्सव प्रारंभ कर रहे हैं। कौन-सा उत्सव? श्रवण उत्सव सप्ताह। जैसा कि नेत्रों के लिए नेत्र उत्सव होता है। जगन्नाथपुरी में रथ यात्रा के एक दिन पहले जब भगवान के दर्शन खुल जाते हैं, तब उत्सव मनाया जाता है जिसे नेत्र उत्सव कहते हैं।
हरि बोल!
जब जगन्नाथ पुरी मंदिर बंद रहता है और कुछ समय के पश्चात पुनः जब खुलता है, तब जगन्नाथ के भक्त जगन्नाथ जी के दर्शन के लिए पुनः आ जाते हैं। (अखियाँ प्यासी रे..... )कब से दर्शन नहीं हुआ, कब से दर्शन नहीं हुआ, आज दर्शन होगा। भक्त जा कर दर्शन करते हैं। चूंकि दर्शन नेत्रों से होता है, इसलिए वह नेत्रों के लिए उत्सव बन जाता है। फीस्ट फ़ॉर आईज ( Feast for eyes) जिस प्रकार हमारा संडे फीस्ट (प्रसाद) जिव्हा के लिए होता है,वैसे ही भगवान का दर्शन नेत्रों के लिए उत्सव होता है और जब जब कथा होती है तब वह कानों के लिए श्रवण उत्सव होता है।
गोपाल गुरु गोस्वामी का हरे कृष्ण महामंत्र पर भाष्य है, जिसमें वे कहते हैं कि हे राधे, हे कृष्ण, मुझे सुनाइये, मुझे सुनाइए। हे सीता, हे राम आपकी लीला जो राधा के साथ , कृष्ण के साथ, सीता के साथ या राम के साथ है 'श्रवन्ते' सुनाइये। अर्थात यह श्रवण उत्सव हुआ। उन्होंने आगे यह भी कहा है, दर्शय .. मुझे दर्शन भी दीजिए,मुझे दर्शन भी दीजिए, मुझे दर्शन हो।
जगन्नाथ स्वामी नयन पथ गामी भवतु मे। हे प्रभु, मैं जहां भी देखूं, मुझे आपका ही दर्शन हो। हम जो यह कथा आपको सुनाएंगे, इसमें श्रवय भी होगा और दर्शय भी होगा। हम कथा का श्रवण करके ही तो दर्शन करने की तैयारी करते हैं। श्रवण किये बिना दर्शन नहीं होता। नवधा भक्ति में पहली सेवा श्रवणं, कीर्तनं, विष्णु समरणं.. ( गुन गुनाते हुए) श्रवण है। यह कानों के लिए श्रवण उत्सव होगा। उसी के साथ नेत्रों के लिए नेत्रो उत्सव होगा। भक्ति विलोचनेन... विलोक्यन्ति ही... भगवान की कथा का श्रवण करने से क्या होगा?आशा करते हैं कि हमारे नेत्रों से अश्रुधाराएं बहने लगेगी। जब भी अश्रुधाराएँ बहेगी, तब विलोक्यन्ति ही अर्थात दर्शन होगा। हम जो यह सात दिवसीय कथा सुनाने जा रहे हैं, यह कथा हमको त्रेतायुग तक पहुंचाएगी। जब राम की कथा होगी , तब हम कौन से युग में पहुंचेंगे? त्रेतायुग में और जब रुक्मिणी की कथा होगी तब कौन से युग में पहुंचाएगी? द्वापरयुग में। जब नरसिंह भगवान का प्राकट्य होगा तब यह हमें सतयुग में पहुंचाएगी। इन तीन युगों का दर्शन होगा अर्थात यह कथा तीन युगों तक पहुंचा देगी।
कल सीता नवमी है। हम पहले तीन दिवस राम कथा या सीता राम कथा कहेगें। उस कथा का सीधा संबंध सीता राम से होगा। यह सीधी नहीं हो सकती कि सीधी राम की कथा हो रही है या सीधी सीता की कथा हो रही है। यह त्रि दिवसीय सीता राम से संबंधित कथा होगी। ततपश्चात दो दिवसीय रुक्मिणी द्वादशी की कथा,रुक्मिणी द्वारकाधीश की कथा व रुक्मिणी हरण की कथा हो सकती है और उसी के अंतर्गत हम विट्ठल रुक्मिणी की कथा और पंढरपुर महात्म्य भी सुनाने वाले हैं। ऐसा हमने सोचा है, बीच में मोहिनी एकादशी भी आ रही है। उस दिन मैं पंढरपुर में ही हूं इसलिए पंढरपुर महिमा ही सुनाऊंगा। तत्पश्चात नरसिंह भगवान का प्रकाट्य की कथा होगी और अंतिम दिन माधवेन्द्र पुरी और श्री राधा रमन का प्राकट्य दिवस है। हमारे पास समय कम है, राम की कथा या सीता राम की कथा, यह कोई कहानी नहीं है। जैसा कि मैं कहता रहता हूं, एक था राजा और एक थी रानी और कहानी।
जब हम कहानी कहते और सुनते हैं, वह कोई काल्पनिक कहानी भी हो सकती है लेकिन सीता राम की कथा कोई कहानी नहीं है अपितु यह इतिहास है। यह घटित घटनाएं हैं। एक समय था, त्रेता युग में राम थे। संभवामि युगे युगे हुआ, राम प्रकट हुए और तत्पश्चात सीता प्रकट हुई। साकेत या दिव्य जगत में श्री राम का अपना धाम है जो कि वैकुंठ धाम से ऊंचा है, उससे ऊंचा द्वारिका धाम है और उससे भी ऊंचा मथुरा व सबसे ऊंचा वृंदावन धाम है। वैकुण्ठ और गोलोक के बीच में अयोध्या है, वहां से भगवान प्रकट हुए और यह सारी घटनाएं घटी।भगवान प्रगट होकर इस पृथ्वी/ इस धरातल पर 11000 वर्षों तक रहे। श्रीराम इस पृथ्वी पर दस सहस्त्र दस शतानीः चः इतने वर्ष रहे। दस सहस्त्र अर्थात दस हजार और दस शतानी मतलब एक और हजार वर्ष अर्थात ग्यारह हजार वर्ष रहे। श्री राम और सीता और उनके परिकर अयोध्या से यहां प्रकट हुए और उनके साथ अयोध्या में रहे। वे कई सारे अरण्यों में होते हुए लंका तक गए। लंका से पुष्पक विमान में बैठकर वापिस अयोध्या लौटे। राम अयोध्या के राजा बने।
राम की ख्याति कैसी है? राम कैसे थे? राजा राम जैसे, राजा हो तो राम जैसा। राज्य हो तो राम जैसा। यह समझना होगा कि महाभारत इतिहास है, रामायण भी इतिहास है। इतिहास लिखने वाले इतिहासकार कहलाते हैं। रामायण इतिहास के लेखक रचयिता वाल्मीकि ऋषि/ वाल्मीकि मुनि हैं। वे एक इतिहासकार हैं, उन्होंने इतिहास लिखा। जैसी यह घटनाएं घट रही थी, उन्होंने उन लीलाओं, कथाओं को देखा तो नहीं था लेकिन ब्रह्मा जी ने उन्हें ऐसी क्षमता, ऐसा सामर्थ्य दिया था। हम उस प्रसंग को कहने वाले हैं। वाल्मीकि ने गंगा के तट पर अपने आश्रम में फिर यह रामायण, इतिहास उसी समय लिखा। जब राम पृथ्वी पर थे, चूंकि उनकी लीलाएं पहले ही प्रारंभ हो चुकी थी। ग्यारह हजार वर्षों में से कुछ ही वर्ष बीत चुके थे। अयोध्या में राम की बाल कांड की लीला संपन्न हो चुकी थी। फिर अयोध्या कांड। इस इतिहास के सात कांड हैं, कांड या कैंटोज़( स्कंध) कहा जाए। जैसे भागवत में कैंटो होते हैं, उसी प्रकार रामायण में 7 कांड हैं और इसके 500 सर्ग हैं अर्थात अध्याय जैसा कि भगवत गीता में कहते हैं। इस इतिहास के 24000 श्लोक हैं। राम की बाल लीला या बाल कांड संपन्न हो चुका है।अयोध्या कांड संपन्न हुआ, अरण्यकांड संपन्न हुआ, फिर किष्किंधा कांड संपन्न हुआ, तत्पश्चात सुंदर कांड, युद्ध कांड संपन्न हुआ। लंका में युद्ध हुआ और तत्पश्चात जय श्री राम! राम विजय महोत्सव संपन्न हुआ भगवान राम ने रावण का वध किया। राम अयोध्या वापस लौटे और राजा राम बन गए। जब वह राज्य संभाल रहे थे, तब एक बार वह भ्रमण कर रहे थे। वह रात्रि का समय भी हो सकता है, वह पता लगाना चाह रहे थे कि दुनिया वालों के, उनके राज्य, उनके राजकाज के संबंध में क्या विचार हैं, क्या चर्चा होती है। भ्रमण करते हुए उन्हें एक बात सुनाई दी।
एक धोबी अपनी पत्नी को डांट रहा था, "हो सकता है कि राम ने अपनी पत्नी को स्वीकार किया हो, वह राक्षस के संग में रही, फिर पता नहीं क्या-क्या हुआ, अंग संग हुआ या नहीं हुआ या जो भी हुआ बहुत कुछ होने की संभावना है अथवा हुआ होगा। उन्होंने सीता को स्वीकार किया लेकिन मैं तुम्हें स्वीकार नहीं करूंगा।" इस संबंध में कुछ समस्या थी। "यहां से चली जाओ, निकल जाओ", वह धोबी अपनी पत्नी को डांट और धमका रहा था और उसका त्याग कर रहा था। राम ने ऐसे वचन सुने, उसके उपरांत उन्होंने सोचा कि मेरे संबंध में ऐसी टीका टिप्पणी हो रही है, मेरे कार्य और व्यवहार के संबंध में ऐसा दोषारोपण हो रहा है।राम ने आदेश दिया, उन्होंने लक्ष्मण को कहा- "निकालो यहां से, भेज दो वन में।" "मैं इसके साथ नहीं रहूंगा।" राम बड़े कठोर थे, लक्ष्मण न चाहते हुए भी बड़े भाई का आदेश है, इच्छा नहीं थी, यह उचित नहीं हैं, ऐसा नहीं करना चाहिए। सीता को पुनः वन में नहीं भेजना चाहिए, ऐसा लक्ष्मण सोच रहे थे लेकिन राम अग्रज हैं। लक्ष्मण अनुज हैं, अग्रज, अनुजा 'जा' मतलब जन्म लेना। राम का जन्म पहले हुआ था। ज्यादा अंतर नहीं था एक ही दिन का अंतर था। एक दिन पहले ही जन्म लिए थे, फिर भी लक्ष्मण बड़े भ्राता के रूप में राम का सदा सम्मान किया करते थे।
लक्ष्मण ने वैसे ही किया, उसे करना ही पड़ा। राम का आदेश था। लक्ष्मण ने उसी समय सोच के रखा कि जब हम अगली बार प्रकट होंगे तब मैं छोटा भाई नहीं बनूंगा, मैं अग्रज बनूंगा और राम को अनुज बनाऊंगा। राम और लक्ष्मण जब द्वापर युग में पुनः प्रकट हुए, तब लक्ष्मण बलराम बड़े भ्राता और राम श्री कृष्ण छोटे बन जाते हैं। लक्ष्मण सीता माता को वन में छोड़कर आए। ऐसे कहीं पर भी नहीं छोड़ आए वे उन्हें वाल्मीकि मुनि के आश्रम के पास छोड़ कर आए। वाल्मीकि मुनि को पता चल ही गया और उन्होंने सीता को अपने ही आश्रम में आश्रय दिया। सीता उस समय गर्भवती भी थी। प्रह्लाद महाराज की मैया भी जब गर्भवती थी तब नारद मुनि ने उन्हें अपने आश्रम में रखा था और यहां वाल्मीकि मुनि ने सीता को अपने आश्रम में रखा जब सीता गर्भवती थी। सीता उसी आश्रम में रहने लगी वाल्मीकि जी ने उसे अपनी पुत्री के रूप में संभाला,उसकी रक्षा की। उसी आश्रम में लव और कुश का जन्म हुआ, वहीं उनका लालन पालन भी हुआ। वाल्मीकि मुनि और सीता मैया ने लव और कुश का लालन पालन आश्रम में ही किया।वहीं पर इस रामायण की रचना हुई। लव कुश बालक ही हैं वाल्मीकि मुनि, रामायण लिखने वाले हैं।
आपको बता रहे थे कि बाल कांड हुआ फिर अयोध्या कांड, अरण्य कांड, किष्किंधा कांड सुंदर कांड और युद्ध कांड हुआ और यह उत्तरकांड चल रहा है, यह अंतिम कांड है। राम अभी-अभी वनवास से लौटे हैं। वह स्वयं एक ही बार वनवासी बने लेकिन सीता को दो बार वनवास मिला। सीता जब दूसरी बार वनवास में भेजी गई, उस समय वाल्मीकि मुनि के आश्रम में जब लव और कुश का जन्म भी हो चुका था, तब वाल्मीकि जी ने रामायण की रचना की। आप समझ रहे हैं ना! रामायण के बालकांड में पहला कांड के प्रथम सर्ग में अर्थात प्रथम अध्याय को संक्षिप्त रामायण या मूल रामायण भी कहते हैं। इस अध्याय में 100 श्लोक हैं।इन एक सौ श्लोकों या प्रथम सर्ग के कथाकार नारद मुनि हैं। मूल रामायण या संक्षिप्त रामायण के कथाकार नारद ऋषि हैं। एक समय नारद मुनि वाल्मीकि ऋषि के आश्रम में आ पहुंचे- "नारायण, नारायण, जय श्री राम"। नारद मुनि बजाय बीना राधिका रमन नाचे .. राधिका रमन भी गाते हैं, नारायण भी कहते हैं, सीता राम के भी अनन्य भक्त हैं। वे राम नाम का उच्चारण करते हुए वाल्मीकि मुनि के आश्रम में पहुंचे।
रामायण के पहले श्लोक में जिज्ञासा है। किसकी जिज्ञासा है? वाल्मीकि मुनि की जिज्ञासा है। वाल्मिकी मुनि ने कुछ प्रश्न पूछा, या प्रश्न पूछने की तैयारी कर रहे हैं। ऐसा उल्लेख है, उन्होंने नारद मुनि से पहले प्रश्न नहीं पूछा नारद मुनि से बोले फिर प्रश्न पूछा। वह दूसरा श्लोक है।
... वीर्यवान
धर्मस्य कर्ज
वाल्मीकि जानना चाहते हैं कि इस त्रेता युग के समय कौन है? सम्परते लोके , इस लोक में, इस पृथ्वी पर वीर्यवान कौन हैं? धर्मज्ञ कौन है? सत्यवचनी कौन है और दृढ़व्रत कौन है? ऐसे प्रश्न पूछे जा रहे हैं। चरित्रवान कौन है? सभी जीवों का हित सोचने वाले या करने वाले कौन हैं?
एदत्त ... इसके संबंध में मैं सुनना चाहता हूं।
सर्वभूतेषु कह इत: सभी जीवो का हित सोचने वाले और करने वाले कौन है इसके संबंध में मैं सुनना चाहता हूं वाल्मीकि मुनि कह रहे हैं, पूछ रहे हैं। यही जिज्ञासा रही, "अथातो ब्रह्म जिज्ञासा" और भी उन्होंने जिज्ञासा के कुछ वचन कहे हैं। नारद उवाच: नारद ने उत्तर दिया या नारद इसका उत्तर देंगे उत्तर का जो पहला वचन है उन्होनें कहा उसे सुनो।
इक्ष्वाकुवंश प्रभवो रामोनामजनेसुत: इक्ष्वाकु वंश जिसके बारे में आप पूछ रहे हो, ऐसा चरित्रवान, धैर्यवान, वीर्यवान कौन है, उन्होंने कह ही दिया की वे हैं श्रीराम, जय श्रीराम और फिर इसी सर्ग में जिसमें 100 श्लोक है, नारद मुनि राम की संक्षिप्त कथा, पूरी रामायण उन्होनें बालकांड के एक सर्ग में सुनाया और इस सर्ग के अंत में जब वे सुना ही रहे है। त्रेता युग का काल कैसा रहा उस संबंध में भी कुछ उल्लेख किया है। कलि काल कैसा है, कैसा हाल है, बड़ा बुरा हाल है। लेकिन त्रेता युग में कुछ और ही स्थिति परिस्थिति थी हर युग में अलग-अलग परिस्थिति होती है। उस समय के लोग कैसे थे ? त्रेता युग में सभी लोग प्रसन्न थे, उनके चेहरे पर उल्लास, उत्साह था पर अभी क्या है उदास, उदासीनता परंतु उस समय सभी संतुष्ट रहा करते थे। उनके पोषण के साधन भी उपलब्ध थे। सुधार्मिक: सभी लोग धार्मिक थे। निरामया: अमया: मतलब सूक्ष्म रोग जिसे आधि भी कहते हैं यानी व्याधि से ग्रसित नहीं थे। कोरोना वायरस नहीं हुआ करता था उस समय।
न तो शारीरिक रूप से और न ही मानसिक रूप से रोगी थे। ऐसा शास्त्रों में कहा गया है कि जो मानसिक रोग होता है वह शारीरिक रोग से भी भयानक होता है। अमेरिका के 20 परसेंट लोगों को मेंटल हॉस्पिटल में भेजा जाना चाहिए, जबकि कुछ ही भेजे जाते हैं लेकिन ऐसी स्थिति तो है रोगी तो सभी हैं। दुर्भिक्ष भयः वर्जिता: किसी प्रकार का दुर्भिक्ष श्रील प्रभुपाद कहा करते थे कि कलयुग में ऐसा समय आएगा लोग भिक्षामदेही यानि कोई भिक्षुक आएंगे द्वार पर तो लोग भिक्षा नहीं देंगे या द्वार पर आएंगे तो वहां 'अतिथि देवो भव:' का साइन नहीं होगा बल्कि यह साइन होगा 'कुत्तों से सावधान' लोग दानी नहीं होंगे और मन की भी ऐसी ही स्थिति होगी और समृद्धि भी नहीं होगी तो देने की क्षमता भी नहीं होगी, ऐसा प्रभुपाद कलयुग का वर्णन किया करते थे। लेकिन त्रेता युग में दुर्भिक्ष भय: वर्जिताः नहीं हुआ करते थे। लोग दानी हुआ करते थे, ऐसा नहीं हुआ करता था कि पिताजी की उपस्थिति में पुत्र की मृत्यु हो जाए, ऐसा उल्टा पुल्टा नहीं होता था पहले बड़े मरेंगे फिर छोटे मरेंगे। नारियां भी पतिव्रता होती थी पति पत्नी में सामान्यता पति अधिक आयु वाले होते थे तो पहले पति जाते थे ऐसा नहीं है, स्त्रियां कभी भी विधवा नहीं होती थी। कभी किसी को ज्वर नहीं आता था।
यह कोरोना का क्या लक्षण है बुखार। लेकिन त्रेता युग में किसी को बुखार ही नहीं आता था, कोई भुखमरी नहीं होती थी। आजकल भूख से भी लोग मर रहे हैं। उस समय चोरी भी नहीं होती थी आजकल गार्डस् का बिजनेस बढ़ गया है उस युग में गार्ड की जरूरत नहीं होती थी, ना ही ताले या ताले की फैक्ट्री हुआ करती थी, लोग घर बार खुला ही छोड़ देते थे, ऐसा होता था ऐसा हो चुका है , यह इतिहास है। ये सारी बातें नारद मुनि वाल्मीकि मुनि को सुना रहे हैं। जिसे हम सब अब सुन रहे हैं, यह 9 से 10 लाख साल पुरानी बातें हैं। यह रामायण, महाभारत आदि की बातें कभी पुरानी नहीं होती हमेशा ताजी रहती है, जिस प्रकार अखबार में कल जो खबर छपी थी वह आज के लिए बेकार हो गई उसे कूड़ा करकट के डिब्बे में डाल देते हैं, यह 9 लाख साल पुरानी खबरें हैं , ये आज भी ताजा हैं और आगे भी ताजा रहेंगी ऐसी हमारी श्रद्धा होनी चाहिए जब हम सुन रहे हैं। जब सही समझ व श्रद्धा के साथ इसे समझेंगे तो क्या होगा? नारद मुनि कहे जो भी इस रामायण का पाठ करेगा या इसे सुनेगा तो यह उसके पाप का विनाश करेगा और श्रवण कर्ता भी पुण्यात्मा बनेंगे।जय जय राम कृष्ण हरि या फिर राम की कथा रामायण को सुनेंगे ।
अब सीता नवमी आ रही है तो सीता राम की कथा को सुनो इसे सुनकर आप पुण्यात्मा बनेंगे। यह बहुत ऊंचा पुण्य कृत्य है, ऐसा कृत्य करेंगे तो भगवान राम में हमारा प्रेम उत्पन्न होगा व सब पापों से व्यक्ति मुक्त हो जाएगा। संक्षिप्त रामायण सुनाकर फिर नारद मुनि ने वहां से प्रस्थान किया। वाल्मीकि व उनके शिष्यों ने उनकी आराधना पूजा करने के उपरांत नारद मुनि आकाश मार्ग से चले गए, वे परिव्रजकाचार्य हैं। वह सर्वत्र भ्रमण करके प्रचार करते रहते हैं , उनके शिष्य भी सर्वत्र हैं वाल्मीकि मुनि भी उनके शिष्य हैं, श्रील व्यास देव भी नारद मुनि के शिष्य हैं। श्रीमद्भागवत की रचना के पहले श्रील व्यास देव को उपदेश करने वाले नारद मुनि ही तो थे। श्रील व्यास देव ने और भी बहुत सारे ग्रंथ लिखे थे फिर भी वह प्रसन्न नहीं थे तो फिर नारद मुनि ने उनको आदेश उपदेश दिया फिर श्रील व्यासदेव ने श्रीमद्भागवत की रचना की, इसी प्रकार यहां हो रहा है वाल्मीकि मुनि ने आचार्य नारद मुनि से आदेश उपदेश प्रेरणा प्राप्त की आगे वे रामायण की रचना करेंगे। शुरुआत में वाल्मीकि मुनि ने एक उपदेश (श्लोक) कहा उससे पहले उन्होंने कभी स्वयं की प्रेरणा से कोई रचना नहीं की थी। लेकिन एक दिन ऐसी घटना घटी जिसमें दो पक्षी क्रौंच व क्रौंची का प्रीति समागम चल रहा था तो वहां एक निषाद आ जाता है और वह नर पक्षी को मार देता है तो बेचारी मादा पक्षी बड़ी व्याकुल हुई उसके पति नहीं रहे, यह दृश्य देखकर वाल्मीकि मुनि ने शिकारी को श्राप दिया। श्राप देते समय उनके मुख से शोक की जगह श्लोक निकला।
यानी कर रहे थे शोक और निकला श्लोक। उन्होंने कहा है निषाद तुझे कभी शांति ना मिले क्योंकि तुमने इस निरपराध पक्षी की हत्या की है जो काममग्न और मोहित हो रहा था, तुम सदा परेशान रहोगे। तो इस प्रकार यह पहला श्लोक वाल्मीकि की रचना का बना। क्रौंच व क्रोंची जो काम आतुर थे उनमें से एक का वध हुआ और इसी का संबंध राम व सीता की जोड़ी से है ऐसा आचार्य समझा रहे हैं। जैसे पहले सीता का अपहरण हुआ जब वे बढ़िया से अरण्यकांड में विचरण कर रहे थे। इस प्रकार यहां जो निषाद है, वह राम की लीला में रावण है जिसने सीता का वध तो नहीं किया परंतु अपहरण किया था। जिससे राम को विरह की घटना से दुखी किया, इस घटना से यह क्रौंच व क्रोंची के मध्य जो स्नेह हो रहा था। यह श्लोक जो शोकाकुल वाल्मीकि मुनि ने कहा यह आधार बन जाता है इसी पर आधारित यह रामायण की रचना हो जाती है। यह हम कल बताएंगे कि वाल्मीकि मुनि फिर ब्रह्मा जी से मुलाकात होती है वह वाल्मीकि से कहेंगे कि तुम रामायण की रचना करो इसी प्रकार कल सीता नवमी है और अब हम रोज अलग-अलग कथा कहेंगे।
राम कथा की जय
जय गौर निताय की